आयुष
आयुष पद्धतियों में बौद्धिक संपदा अधिकार और व्यावसायीकरण पर गोलमेज सम्मेलन आयोजित
बौद्धिक संपदा की रक्षा और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकियों का पारंपरिक ज्ञान के साथ समन्वय
पिछले दशक में वैश्विक भागीदारी से आयुष विनिर्माण क्षेत्र में जबरदस्त वृद्धि हुई: वैद्य राजेश कोटेचा, सचिव, आयुष
Posted On:
08 OCT 2024 7:00PM by PIB Delhi
"आयुष प्रणालियों के पारंपरिक ज्ञान में बौद्धिक संपदा, नियामक ढांचे और व्यावसायीकरण पहलुओं" पर केंद्रित एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन आज यहां पेटेन्ट, डिजाइन और ट्रेडमार्क महानियंत्रक कार्यालय (सीजीपीडीटीएम) में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (एनआईए), जयपुर के सहयोग से किया गया। सम्मेलन में आयुष प्रणालियों में पारंपरिक ज्ञान की रक्षा और उसे आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण चुनौतियों और अवसरों पर विचार-विमर्श करने के लिए शिक्षाविदों, सरकार और उद्योग के प्रमुख विशेषज्ञ एकत्र हुए।
इस कार्यक्रम में आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लिया। श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय, हरियाणा के कुलपति प्रो. (वैद्य) करतार सिंह धीमान, राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (एनआईए), जयपुर में रस शास्त्र और भैषज्या कल्पना के प्रमुख प्रो. अनुपम श्रीवास्तव, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के प्रो. रूपेश चतुर्वेदी सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति इस कार्यक्रम में शामिल हुए।
वैद्य कोटेचा ने अपने संबोधन में आयुर्वेद में अनुसंधान और शिक्षण की आवश्यक भूमिका पर जोर दिया और बताया कि किस प्रकार ये स्तंभ पारंपरिक चिकित्सा में बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं।
उन्होंने आयुष पद्धतियों को मजबूत करने के लिए मंत्रालय की पहलों पर प्रकाश डालते हुए कहा, “विकसित डिजिटल प्रणाली और वैज्ञानिक साक्ष्यों का सहेजकर रखा गया ज्ञान भारतीय चिकित्सा पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। हम बौद्धिक संपदा की रक्षा और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीकों के साथ समन्वित करते हैं।” वैद्य कोटेचा ने आयुर्वेद अनुसंधान के आधुनिकीकरण और अंतर्राष्ट्रीयकरण में योगदान के लिए जेएनयू में आयुर्वेद जीवविज्ञान कार्यक्रम और उसके दूरदर्शी दृष्टिकोण की प्रशंसा की।
उन्होंने पारंपरिक चिकित्सा के लिए वैश्विक मानकों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ भारत के सहयोग पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने भारत के बढ़ते आयुष विनिर्माण क्षेत्र में योगदान देने का इन पहलों को श्रेय दिया, जिसमें पिछले एक दशक में जबरदस्त वृद्धि हुई है। वैद्य कोटेचा ने जोर देकर कहा कि उचित आईपीआर ढांचे के माध्यम से पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए आयुष उत्पादों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को और बढ़ाने के लिए शिक्षा और उद्योग के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है।
श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय, हरियाणा के कुलपति प्रोफेसर (वैद्य) करतार सिंह धीमान सम्मेलन में मुख्य अतिथि थे। उन्होंने अनुसंधान और व्यावसायीकरण में आ रही चुनौतियों का समाधान करने के लिए सभी आयुष एजेंसियों के बीच अधिक सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “पारंपरिक चिकित्सा की आणविक समझ और आयुष प्रणालियों के लिए विशिष्ट शोध उपकरण विकसित करना आवश्यक है। इसके अलावा, हमें भविष्य के विद्वानों को आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार करने के लिए स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में आईपीआर को एक मुख्य विषय के रूप में शामिल करना चाहिए।”
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (एनआईए) जयपुर में रस शास्त्र और भैषज्या कल्पना के प्रमुख प्रो. अनुपम श्रीवास्तव ने सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी विभाग (आईएसएम एंड एच) से आयुष मंत्रालय की स्थापना तक आयुष प्रणालियों के विकास पर चर्चा की। उन्होंने भारत के पारंपरिक औषधीय ज्ञान को बायोपाइरेसी से बचाने में पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल) की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने बौद्धिक संपदा जागरूकता में व्याप्त अंतर को दूर करने के लिए, आयुष पेशेवरों की जरूरतों के अनुरूप आईपीआर पर विशेष रूप से छह महीने का पाठ्यक्रम प्रस्तावित किया।
जेएनयू के स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के प्रो. रूपेश चतुर्वेदी ने भारत और विश्व स्तर पर पारंपरिक ज्ञान की रक्षा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने आयुष उत्पादों के व्यावसायीकरण की सुविधा के लिए अनुसंधान अंतराल को दूर करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “आयुष प्रणालियों से जुड़े मालिकाना मुद्दों को केवल समर्पित अनुसंधान और नवाचार के माध्यम से हल किया जा सकता है।
इन सत्रों में आयुष नवाचारों के लिए बौद्धिक संपदा के सृजन और संरक्षण, आवश्यक नियामक ढांचे तथा व्यावसायीकरण और लाभ साझाकरण के लिए रणनीतियों पर चर्चा की गई।
यह सम्मेलन आयुष पद्धतियों की विनियामक और बौद्धिक संपदा चुनौतियों पर विचार करने में एक महत्वपूर्ण आयोजन था। इसमें व्यक्त किये गये विचार और चर्चाएं अनुसंधान, नीतिगत ढांचों और शैक्षिक पहलों को मजबूत करने के लिए एक साझा दृष्टिकोण तैयार करने पर केंद्रित थीं, जो वैश्विक स्तर पर भारत के पारंपरिक ज्ञान को बढ़ावा देती हैं। इस कार्यक्रम ने वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में आयुष प्रणालियों के योगदान को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग को भी बढ़ावा दिया।
इस सम्मेलन में हुई चर्चा आयुष क्षेत्र में अनुसंधान, व्यावसायीकरण और बौद्धिक संपदा संरक्षण में प्रगति को और बढ़ावा देगी। आयुष मंत्रालय यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि आयुष प्रणालियां वैश्विक स्वास्थ्य सेवा समाधानों के एक अभिन्न अंग के रूप में विकसित होती रहें।
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