उप राष्ट्रपति सचिवालय
राज्य सभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के तीसरे बैच के प्रतिभागियों को उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ
Posted On:
12 SEP 2024 5:07PM by PIB Delhi
शुभ दिन!
मैं राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश जी के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। आप सभी को आज उनकी बात सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका इंटर्नशिप कार्यक्रम बहुत ही सोच-समझकर बनाया गया है। इसमें मेरे, हरिवंश जी के, महासचिव के और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर भागीदारी रही है। यह तीसरा संस्करण है और इसका मूल उद्देश्य आपको शिक्षित करना नहीं है क्योंकि आप सबमें अपनी मदद करने की योग्यता और क्षमता है। विचार सिर्फ आपको प्रेरित करने का है, विचार उस आग को प्रज्वलित करने का है जो आपको भारतीय संसद से जोड़ती है और प्रकारांतर से, भारतीय राष्ट्रवाद, और राष्ट्र के साथ जोड़ती है। इसलिए यहां से आप सैनिक बनेंगे, योद्धा बनेंगे और इस बात का प्रचार करेंगे कि हमें हमेशा राष्ट्र को सर्वोपरि रखना चाहिए। हम अपने राष्ट्र को स्वार्थ से ऊपर, दलीय स्वार्थ से ऊपर रखेंगे। इसलिए हमें यह समझना होगा कि राष्ट्र और संविधान का क्या अर्थ है।
मुझे दुख है कि कुछ उच्च पदों पर बैठे जो लोग हैं, उन्हें भारत के बारे में कुछ भी नहीं पता है। उन्हें हमारे संविधान के बारे में कुछ भी नहीं पता है, उन्हें हमारे राष्ट्रीय हित के बारे में कुछ नहीं पता है। मुझे यकीन है कि आप जो देख रहे हैं, उससे आपका दिल दुख रहा होगा। अगर हम सच्चे भारतीय हैं, अगर हमें अपने देश पर भरोसा है, तो हम कभी भी देश के दुश्मनों का साथ नहीं देंगे। हम सब देश के लिए पूरी ताकत से खड़े रहेंगे।
कल्पना कीजिए, इस आज़ादी को पाने में, इस आज़ादी की रक्षा करने में, और इस देश की रक्षा करने में कितने लोगों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। मेरे भाईयों और बहनों, अब वे भी युद्ध की स्थिति में हैं। माताओं ने अपने बेटों को खोया, पत्नियों ने अपने पतियों को । हम राष्ट्रवाद का उपहास नहीं उड़ा सकते। देश के बाहर हर भारतीय को इस राष्ट्र का राजदूत बनना होगा। कितना दर्दनाक है। जो संवैधानिक पद पर बैठे हैं, वह इसका ठीक उल्टा कर रहे हैं।
इससे अधिक निंदनीय, घृणित और असहनीय बात कुछ हो नहीं सकती कि आप राष्ट्र के दुश्मनों के साथ हो जाएं। वे स्वतंत्रता का मूल्य नहीं समझते।
वे यह नहीं समझते कि इस देश की सभ्यता 5000 साल पुरानी है। सबसे पहले मैं आपका ध्यान अपने संविधान की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। कुछ लोग इतने अज्ञानी हैं कि वे संविधान को हल्के में लेते हैं, संविधान पवित्र है। इसे संविधान के संस्थापकों, संविधान सभा के सदस्यों द्वारा 3 वर्ष के कठोर 18 सत्रों में बिना किसी व्यवधान, बिना किसी शोर-शराबे, बिना किसी नारेबाज़ी, बिना किसी पोस्टरबाजी के तैयार किया गया था।
यह बहस, संवाद, चर्चा और विचार-विमर्श से काम करता है। साथियों, उनके सामने दुर्गम हिमालय जैसी चुनौतियां थीं। मुद्दे विभाजनकारी थे, उन पर आसानी से आम सहमति नहीं बन सकती थी। उन्होंने इसके लिए काम किया, उन्होंने हमारे लिए काम किया। अज्ञानता की पराकाष्ठा है कि कुछ लोग हमारे देश को विभाजित करना चाहते हैं।
मैं आपको भारतीय संविधान की प्रस्तावना के बारे में बताता हूँ। हम भारत के लोग इसके मूलस्रोत हैं। हम ही इसके स्रोत हैं। न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए, हम खुद को यह संविधान अर्पित करते हैं। जरा सोचिए, कोई इस देश के बाहर भाईचारे को टुकड़े-टुकड़े करना चाहता है, ऐसी वास्तविक स्थिति की कल्पना करके जो अस्तित्व में है ही नहीं।
मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि आप उस कालखंड को याद करें जब विपक्ष के नेता, जो बाद में प्रधानमंत्री बने, श्रीमान अटल बिहारी वाजपेयी जी, वे देश का प्रतिनिधित्व करने विदेश गए थे और नरसिम्हा राव जी प्रधानमंत्री थे। प्रधानमंत्री जी के मन में एक क्षण के लिए भी विचार नहीं आया होगा कि विपक्ष का नेता बाहर जाकर राजनीति करेगा।
नहीं। हमारे खून की हर बूंद हमारे देश के लिए समर्पित है। और वे हमारा खून चूसना चाहते हैं।
वे भारत की एक खास छवि बनाना चाहते हैं। आप लोकतंत्र के हिस्सेदार हैं। आप सबसे महत्वपूर्ण हिस्सेदार हैं।
मैंने भारत को और सरकार को करीब से देखा है, जब मैं 1989 में संसद के लिए चुना गया था। मैं एक चिंतित सांसद था। क्यों? क्योंकि हमारे सोने को स्विट्जरलैंड भेजा जा रहा था, ताकि उसे दो बैंकों में रखा जा सके।
हमारी विदेशी मुद्रा लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। अब यह 680 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
मैं जम्मू-कश्मीर गया था, श्रीनगर खास तौर पर मंत्री के रूप में। मौत का सन्नाटा। सड़क पर एक दर्जन से ज़्यादा लोग नहीं दिखते थे। अब हर साल 2 करोड़ पर्यटक आ रहे हैं।
तब हमारी अर्थव्यवस्था का आकार लंदन और पेरिस जैसे शहरों से भी छोटा था। अब आप जानते हैं कि हम कहाँ हैं।
मैं आंकड़े पेश नहीं करना चाहता।
देश के साथ इस प्रकार का व्यवहार हमारी अस्मिता को चुनौती, हमारे अस्तित्व पर कुठाराघात, हमारी नींव में दीमक का काम करना, विदेशी भूमि पर जाकर देश के दुश्मनों के साथ बैठना, एक नॉरेटिव शुरू करना !
इन विभाजनकारी ताकतों ने खुद को उजागर कर दिया है। मैं नहीं चाहता कि आप चुपचाप देखते रहें। मैं आपको कोई विचार नहीं देना चाहता। मैं आपको कोई दिशा नहीं देना चाहता। मैं चाहता हूँ कि आप अपनी दिशा खुद चुनें। मैं चाहता हूँ कि आप खुद पर, अपने विश्वासों पर विश्वास करें। और फिर उसे जाहिर करें।
इन चार हफ़्तों में आपको कुछ चीज़ें देखने का मौक़ा मिला है। और उसके कारण, आप दिन-ब-दिन सीखते रहेंगे। जैसा कि महासचिव महोदय ने कहा, आप उन सभी लोगों से जुड़ेंगे जिन्हें इस कार्यक्रम से लाभ मिला है।
आप अपने विचार साझा करेंगे। जीवन में आप जहां भी जाएंगे, आपको अपनी मदद करने, समाज की मदद करने, अपने मित्रों की मदद करने के लिए भरपूर अवसर मिलेगा, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात, सबसे पहले आपको राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखना होगा।
सच बोलने की कोई सीमा नहीं हो सकती। या तो आप सच बोलें या न बोलें। राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता की भी कोई सीमा नहीं हो सकती। यह 100% होनी चाहिए।
कुछ लोगों को पता ही नहीं है कि हमारा संविधान क्या कहता है। आरक्षण हमारे संविधान में अंतर्निहित है। यह सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से है। यह हमारे संविधान का एक जीवंत पहलू है। कुछ लोग इसे हल्के में लेते हैं।
कोई भी व्यक्ति, जो पूरी तरह से समझदार है, यह दावा कैसे कर सकता है कि कोई खास धार्मिक व्यक्ति अपने धार्मिक स्थल पर अपने कपड़े पहनकर नहीं जा सकता। मेरे पास इसकी निंदा करने के लिए शब्द नहीं हैं। हमें बेहद सावधान रहना चाहिए।
यह बिल्कुल अनुचित और अतिवादिता है। साथियों हमारे मूल्य शाश्वत हैं। लेकिन कुछ लोग यह नहीं समझते, वे नहीं समझते कि इस देश के लिए जब लाल बहादुर शास्त्री ने आह्वान किया कि सप्ताह में एक दिन शाम को भोजन नहीं करेंगे, तो पूरे देश ने नहीं किया I यह वह देश है जब भारत के प्रधानमंत्री ने कोविड की लड़ाई में कहा जनता का कर्फ्यू, तब लोगों ने मजाक उड़ाने की कोशिश की I
लेकिन भारत ने पूरी दुनिया के सामने अपनी बात रखी। भारत ने सैकड़ों अन्य देशों की मदद करते हुए कोविड से लड़ाई लड़ी। उन्हें समझ नहीं आ रहा है। उनका दृष्टिकोण पक्षपातपूर्ण है। उन्हें सिर्फ़ स्वार्थ ही नज़र आता है।
वे दलदल में फंसे हुए हैं। उनमें खोट है। अगर आप अपने देश पर विश्वास नहीं कर सकते, तो आप कायर हैं।
मैं इन उदार शब्दों का प्रयोग इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मैं एक संवैधानिक पद पर हूँ। लेकिन मुझे इससे बचने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है।
जब मैंने आप सभी से बातचीत की, तो मुझे आप सभी में प्रतिभा दिखाई दी। मुझे चिंता थी कि जीवन में आपको कहां जगह मिलेगी? लेकिन आपकी प्रतिभा को देखते हुए, आपकी क्षमता को देखते हुए, मुझे विश्वास था कि आप जहां भी जाएंगे, वहां अच्छा प्रदर्शन करेंगे। मैं आप सभी से दृढ़ता से आग्रह करता हूं। अवसर बढ़ रहे हैं। आपको बस उस ओर देखना है। सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती के इन जालों से बाहर निकलें। मुझे यकीन है कि आपको यहां यह अनुभव जरूर हुआ होगा।
बेतुका, असामान्य, आचरण, और जानबूझकर राष्ट्रीय भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला। मैं मीडिया से अपील करता हूँ कि उन्हें राष्ट्रीय भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए। मुझे कोई संदेह नहीं है, कोई भी भारतीय हमारे मूल्यों के अपमान को कभी स्वीकार नहीं करेगा।
कोई भी भारतीय कभी भी यह स्वीकार नहीं करेगा कि हम अपने दुश्मनों से संपर्क करने के लिए अपने राष्ट्रवाद से समझौता करें। मैंने शुरू में कहा था कि एक समय पर मैं स्तब्ध रह गया था, जब मैंने आपसे बातचीत की थी। पड़ोसी राज्यों में कुछ होता है, और वे कहते हैं कि यह भारत में भी हो सकता है। वे इस देश को विभाजन से पीड़ित देखने के लिए बहुत अधिक काम कर रहे हैं। वे ऐसी चुनौतियाँ पैदा करना चाहते हैं जहाँ कोई चुनौती नहीं है।
दुनिया में ऐसा कौन सा देश है, जहां इस तरह की आर्थिक उन्नति हो रही है? विदेश मंत्री का एक संबोधन आपको जरूर भेजा गया होगा। उसे पढ़िए। विदेश मंत्री ने साफ तौर पर इशारा किया है कि हम कहां हैं।
मैं आपको भारत द्वारा हासिल की गई प्रगति के बारे में नहीं बताना चाहता। लेकिन एक बात तो तय है कि हम उम्मीद और संभावना के दौर में जी रहे हैं। हम समानता के दौर में जी रहे हैं। हम न्याय के दौर में जी रहे हैं। और कोई है जो इसके उलट को सच बनाने की कोशिश कर रहा है।
ये बेलगाम तोपें, ये बेलगाम तोपें जो भारत के दुश्मनों द्वारा संचालित हैं, ये बेलगाम तोपें जो हर मायने में उन हितों द्वारा संचालित हैं जो देश में अशांति पैदा करना चाहते हैं, विभाजन लाना चाहते हैं, इन्हें युवाओं द्वारा और सभी नागरिकों द्वारा मिलकर बेअसर किया जाना चाहिए।
बर्दाश्त की भी कोई हद होती है। पर वह बर्दाश्त जवाब दे देती है जब देश का नुकसान करने की कोई हद नहीं रहती। धरती पर आज के दिन अगर कोई स्वर्ग है तो वह भारत है। दुनिया की संस्थाएं कह रही है इंटरनेशनल मोनेटरी फंड कह रहा है की डिजिटल रिवोल्यूशन में इंडिया एक मॉडल कंट्री है। वर्ल्ड बैंक कह रहा है कि यह एक ऐसा देश है जो निवेश और अवसरों का पसंदीदा गंतव्य है।
अर्थ शास्त्री बताते हैं कि हमारी ग्रोथ रेट क्या है, ऐसी स्थिति में कोई अपना और संविधान की शपथ लेने वाला ऐसा कृत्य करें? आपको मैं बताना चाहता हूं उदयपुर में प्रताप गौरव जाइए और वहां देखिए आप कि जब किसी ने ऐसा कृत्य किया तो उसकी मां ने क्या किया। मैं ज्यादा नहीं कहना चाहता भारत मां को बचाने के लिए उस मां ने अपने बेटे का सर कलम कर दिया। आप सब बुद्धिमान है। आप सब समझते हैं, आप जानते हैं मैं कोई ऐसी बात नहीं कर रहा जो हकीकत नहीं है। पर हमारे कान सुनते रहेंगे और जुबां चुप रहेगी हमारा व्यवहार चुप रहेगा।
इन अवसरों पर चुप्पी अपराध है। हम उस दुष्कर्म में साथ दे रहे हैं, चुप रहकर। आपमें से प्रत्येक को बोलना चाहिए। हम किसी भी तरीके से राष्ट्रवाद के प्रति समर्पण को कम नहीं होने देंगे। हमारा संकल्प है कि राष्ट्रवाद सर्वोपरि है, परिवार से ऊपर है, खुद से भी ऊपर है, राजनीति से भी ऊपर है।
मेरा कोई सरोकार नहीं है कि राजनीतिक दल कैसे राजनीति करें। करें, कानून के दायरे में, संविधान के दायरे में करें। सरकार की आलोचना करें, पर देश के ऊपर, देश की अस्मिता के ऊपर और वह भी पराकाष्ठा कि दुश्मनों के साथ मिलकर!! यह एक घटना नहीं है यह लगातार हो रही घटना है।
आप अंदाजा लगाएंगे कि इसके अलावा कोई एजेंडा नहीं है। हर विदेश यात्रा का एक तात्पर्य हो जाता है कि किस तरीके से भारत को बदनाम किया जाए, भारत की छवि को धूमिल किया जाए।
वे हमारे पवित्र संस्थाओं को कलंकित और अपमानित करने के सबसे घृणित कार्य में लगे हुए हैं। ना धर्म का ज्ञान है, ना संस्कृति का ज्ञान है, ना संविधान का ज्ञान है, और ना उन लोगों की स्थिति का अंदाजा है, उन माता बहनों का, जिन्होंने अपने लाडले खोए हैं, भूतकाल में खोए है , और आज भी हम सांस ले रहे हैं, क्योंकि वह हमारे प्रहरी हैं।
युवाओं, मैं चाहता हूँ कि आपमें कोई भय न हो। मैं नहीं चाहता कि आपमें असफलता का भय हो। नहीं। आपको अपनी क्षमता का पूरा दोहन करना चाहिए। आपको अपनी प्रतिभा का पूरा दोहन करना चाहिए। आपको देश, अपने परिवार, अपने दोस्तों और सभी के लिए योगदान देना चाहिए। मेरी बात मान लो - अवसर हैं।
जो कार्यक्रम यहां हो रहा है, निर्मला सीतारमण जी ने जो बजट दिया है, और उसमें जो इंटर्न्स की बात की गई है, लोग समझते नहीं हैं और कहते हैं, "इतना कैसे होगा?" 140 करोड़ के देश में शौचालय कैसे हुआ? 140 करोड़ के देश में मोबाइल कैसे आगे बढ़ा? 140 करोड़ के देश में डिजिटाइजेशन कैसे हुआ? 140 करोड़ के देश में डायरेक्ट ट्रांसफर कैसे हुए? 140 करोड़ के देश में 4 करोड़ अफोर्डिंग हाउस कैसे बन गए? 3 करोड़ आगे बनेंगे|
मैं सरकार या किसी और की ओर से नहीं बोल रहा हूँ। आज यह जमीनी हकीकत है। यह हो रहा है। यह कौन कर रहे हैं? यह आप लोग मिलकर कर रहे हैं। मैं यहां पर पहुंचा हूं, कोई विशेषाधिकार लेकर नहीं। गांव के स्कूल में पढ़ा था, लाइट नहीं थी, शौचालय नहीं था, सड़क नहीं थी। गांव में प्राइमरी स्कूल थी। स्कॉलरशिप मिल गई तो एक मौका मिल गया। आज के दिन कोई कमी नहीं है। हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति जबरदस्त बदलाव का केंद्र बनी है। मेरा आपसे यह कहना है कि जिस यात्रा में हम चल रहे हैं, जो मैराथन मार्च है, जो विकसित भारत की मैराथन मार्च है, जो 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य रखा है। उस महान यात्रा में कोई आज टायर को पंचर करना चाहता है। सड़क खोद रहा है कि यात्रा आगे न निकल जाए और हम आंख बंद कर लें? नहीं!
हम सभी को इस मैराथन मार्च की सफलता में योगदान देना होगा। यह जो महान यज्ञ देश में हो रहा है, इसमें हर किसी को आहुति देनी है, ताकि 2047 में भारत विकसित भारत बने। मैं आपको डॉक्टर अंबेडकर के आखिरी भाषण की ओर याद दिलाकर मेरी वाणी को विराम दूंगा। डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान के लिए बड़ा प्रयास किया। उनके उन शब्दों को आप देखिए, कितने सार्थक साबित हुए हैं:
25 नवंबर, 1949, संविधान सभा की अंतिम बैठक। मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अंबेडकर, जिन्हें भारतीय संविधान का जनक सही ही कहा जाता है, ने कहा,
"जो बात मुझे बहुत परेशान करती है, वह यह है कि भारत ने न केवल एक बार अपनी स्वतंत्रता खोई है, बल्कि उसने इसे अपने ही कुछ लोगों की बेवफाई और विश्वासघात के कारण खोया है।"
हमने एक बार आजादी खोई थी, क्योकि कुछ लोग थे—बेवफा और विश्वासघाती।
क्या इतिहास खुद को दोहराएगा ? मैं क्षण भर विराम लूँगा। लगा हुआ है वही विश्वासघात, वही धोखा, वही भारतीय अस्मिता पर प्रहार।
उन्होंने आगे कहा, "यही विचार मुझे चिंता से भर देता है। यह चिंता इस तथ्य के एहसास से और भी गहरी हो जाती है कि जाति और पंथ के रूप में हमारे पुराने दुश्मनों के अलावा, हमारे पास विविध और विरोधी राजनीतिक पंथों वाली कई राजनीतिक पार्टियाँ होंगी।"
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने उस समय एक प्रश्न उठाया था: "क्या भारतीय देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या पंथ को देश से ऊपर रखेंगे?"
जो उन्होंने सोचा नहीं था, शंका व्यक्त की थी, कोई लगा हुआ है इसे हकीकत में बदलने के लिए। हम राष्ट्र से ऊपर कुछ भी कैसे रख सकते हैं? उन्होंने जवाब दिया: “मैं नहीं जानता।” वे यह देखने के लिए जीवित नहीं हैं।
लेकिन इतना तो तय है। उन्होंने कहा, "अगर पार्टियां धर्म को देश से ऊपर रखती हैं, तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा के लिए खो जाएगी। इस स्थिति से हम सभी को पूरी तरह से सावधान रहना चाहिए। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए दृढ़ संकल्पित होना चाहिए।"
मैं आपसे अपील करूंगा: संपर्क में रहें। महासचिव का मंच खुशामद करने का मंच नहीं है। वह आप अन्यथा भी कर सकते हैं।
यह ज्ञान साझा करने, अनुभव साझा करने के लिए है जो हमारे देश को आगे ले जाता है। पूरी दुनिया पर नज़र डालें - यूरोप, यूके, यूएसए - और हमारे देश को देखें।
यहां के अमन-चैन को खत्म करने के लिए अपने में से कोई एक विदेशी भूमि पर जाकर संविधान की शपथ लेने के बाद, एक संवैधानिक पद पर रहते हुए इस प्रकार का कृत्य करे, यह अकल्पनीय है, दिल दहलाने वाला है। यह कृत्य आपके भविष्य के साथ खिलवाड़ है। ऐसा हम नहीं होने देंगे। यह हमारा संकल्प है।
मैं आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। कभी उम्मीद मत खोना, कभी हिम्मत मत हारना, हमेशा खुद पर भरोसा रखना। किसी विचार को अपने दिमाग में मत पड़े न रहने दें - उस विचार के साथ प्रयोग करें, और मुझे कोई संदेह नहीं है कि आप में से हर कोई राष्ट्रीय विकास में बहुत बड़ा योगदान देगा।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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