उप राष्ट्रपति सचिवालय

नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्यों के लिए संसदीय कार्यप्रणाली की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए ओरिएंटेशन कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूलपाठ (अंश)

Posted On: 27 JUL 2024 2:52PM by PIB Delhi

सभी को नमस्कार, आप सबका परम सौभाग्य है कि आप दुनिया की सबसे पुरानी, सबसे बड़ी और सबसे जीवन्त लोकतंत्र के सर्वश्रेष्ठ मंदिर का हिस्सा हैं। आप इतिहास रचित करने की स्थिति में हैं और आपका नाम इतिहास में दर्ज है।

आप वास्तव में भाग्यशाली हैं कि आपको सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र, में सर्वोच्च निकाय का सदस्य होने का यह महान विशेषाधिकार मिला है। जो विश्व स्तर पर सबसे अधिक कार्यरूप में है। इस अवसर पर मैं आप सभी को बधाई देता हूं।

सबसे महत्वपूर्ण काम संसद का है। मैं आपसे ये उम्मीद करता हूँ कि ऐसी परिस्थिति में मेरे द्वारा कही गई बातों को आप सदाचार और सद्भाव से लेंगे।

मैंने एक प्रतिवाद के साथ शुरुआत की है। मैं आपको सलाह या सुझाव या मार्गदर्शन देने की स्थिति में नहीं हूं।

आखिर भारतीय संसद की आवश्यकता क्या है? आप और हम इससे जुड़े हुए हैं। संसद कि मूल मुख्य और निर्णायक भूमिका दो हैं - संविधान का सृजन करना, संरक्षण करना और सामयिक दृष्टि से इसको देखना और दूसरा प्रजातन्त्र की रक्षा करना।

आपसे ज़्यादा गंभीर प्रजातन्त्र का प्रहरी कोई नहीं है। प्रजातन्त्र पर कोई संकट आएगा, प्रजातान्त्रिक मूल्यों पर कुठाराघात होगा तो आपकी भूमिका निर्णायक है।

आपातकाल के काले अध्याय, भारतीय लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय काल जहां तानाशाही के तरीके से, बेतहाशा रूप के अंदर मौलिक अधिकारों को कुचला गया, लोगों को जेल मे डाला गया उसको यदि अगर छोड़ दें तो हमारा कार्यकाल कमोबेश उत्तम रहा है।

हम इस बात पर पूर्ण रूप से गर्व कर सकते हैं कि हमारी संसद के सदस्यों ने शुरू से ही जनता के समर्थन में अपना आचरण और कार्य किया है। हर समय, हर काल में उन्होंने इस राष्ट्र के विकास में योगदान दिया है। केवल एक ही दर्दनाक, दिल दहला देने वाला काला दौर रहा है और वह था जब आपातकाल की घोषणा की गई थी।

उस समय हमारा संविधान केवल एक कागज तक सीमित रह गया था। इसे टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया और देश के नेताओं को जेल में डाल दिया गया। आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (एमआईएसए) एक निष्ठुर शब्द बन गया। देश के वरिष्ठ राजनेताओं में से एक श्री लालू प्रसाद यादव आपातकाल के अत्याचारों से इतने प्रभावित और द्रवित हुए कि उन्होंने अपनी नवजात बालिका शिशु का नाम मीसा रखा। इस बच्ची को सदन का सदस्य बनने का अवसर मिला। अब यह दूसरे सदन में है। यदि हम उस आपातकाल के दौर को नज़रअंदाज़ कर दें तो हमारी संसद ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। इसने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।

आज के दिन हमारा मुख्य कार्य क्या है? हम इसको और प्रभावी बनाएँ, और सार्थक बनाएँ। दुनिया के बदलते हुए रूप को देखकर, भारत की बढ़ती ताकत को देखकर हमारी भूमिका हो।

देश का हर नागरिक आपसे अपेक्षा रखता है, आपसे उम्मीद रखता है और ये मान कर चलता है कि आपका आचरण इतना उत्तम होगा, इतना सर्वश्रेष्ठ होगा, जनता को इतना समर्पित रहेगा कि वो आपका अनुकरण करेंगे।

हम संसदीय प्रणाली को राजनीतिक दल की भूमिका से आकलन कर के नहीं देख सकते। राजनीति का स्थान है, राजनीति करनी होती है। राजनीति करना स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए आवश्यक है। लेकिन राष्ट्र से जुड़े हुए मुद्दों को देखकर, राष्ट्रहित को देखकर, राष्ट्रवाद को समर्पित करते हुए।

ऐसे मौके आते हैं जब हमें राजनीतिक चश्मे से देखना नज़रअंदाज करना होता है।

जब मैं इस कसौटी पर आज के हालात को देखता हूँ, तो मुझे चिंता होती है। पीड़ा होती है, परेशानी होती है। और मैं ये मान कर चलता हूँ, आप इससे भली-भांति वाकिफ हैं। लंबे समय से हमारी संसद विचार-विमर्श और सार्वजनिक विचार-विमर्श का एक दुर्ग माना जाता रहा है।

यह संवैधानिक मूल्यों और स्वतंत्रता का गढ़ रहा है। समय-समय पर थोड़ी बहुत गड़बड़ होती रही है पर समझदारी से सदन के नेताओं ने एक मार्गदर्शन किया है।

आज के हालात चिंताजनक हैं। अमर्यादित आचरण राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग किया जा रहा है। यह प्रजातंत्र की मूल भावना पर कुठाराघात है। मर्यादा को नुकसान पहुंचाना लोकतंत्र की जड़ों को हिलाना है।

लोकतंत्र के लिए इससे बड़ा कोई खतरा नहीं हो सकता कि यह धारणा बनाई जाए कि अशांति और व्यवधान संसद और राष्ट्र की प्रतिष्ठा की कीमत पर राजनीतिक लाभ उठाने के राजनीतिक हथियार हैं।

मेरा आपसे गुजारिश रहेगी, आपका आचरण मर्यादित हो, शिष्टाचार पूर्ण हो। विचार प्रक्रिया का अभिसरण होना चाहिए। आये दिन मै ये सामना करता हूँ, किसी भी सदस्य ने कोई विचार व्यक्त किया, उस विचार को सुनना नहीं चाहते, उस विचार की ओर ध्यान नहीं देना चाहते, उस पर अविलम्ब तुरंत प्रतिघात करना चाहते हैं, ये ठीक नहीं है।  आप विचार को सुनिए, सुनने में ये नहीं है कि आप उसको स्वीकार करने के लिए विवश हैं, आपका अधिकार है कि आप सुनने के पश्चात, उसका अध्ययन करने के पश्चात, आप अपनी असहमति व्यक्त करें|

मित्रों!

दूसरों के विचारों को नजरअंदाज करना संसदीय परंपरा का हिस्सा नहीं है। दूसरे दृष्टिकोण पर कम से कम विचार करने की आवश्यकता है। यदि आप दूसरे दृष्टिकोण को सुनते हैं तो ऐसा नहीं है कि आप उस दृष्टिकोण से सहमत हैं।

आप सबने देखा होगा ऐसा आचरण हो रहा है कि मेरे पास हर सप्ताह ऐसी डाक आती है कि पढ़ते हुए दिल कांप जाता है। नौकरी-पेशा लोगों से, विद्यार्थियों से कि आप बैठकर वहाँ कर क्या रहे हो? कैसा अखाड़ा बन गया है? ऐसी नारेबाजी तो कहीं नहीं होती है, ऐसा उत्पात तो कहीं देखा नहीं जाता है। क्या आपने जिम्मा ले रखा है कि यह सबसे अधिक कुप्रबंधित संगठन होगा?

इसका एक नतीजा क्या है? कि जो चर्चा संसद मे होनी चाहिए उसे लोग बाहर करते हैं। प्रत्येक पल एक सदस्य समाचार पत्र में सुर्खियां प्राप्त करने की कोशिश करता है। वह उस स्थान को पाने के लिए संघर्ष करता है।

मैं आपसे ज्यादा वहाँ देख पाता हूँ क्योंकि मैं वहाँ सामने ऊपर बैठता हूँ। एक सदस्य अपनी बात कहेगा, तुरंत बाहर जाकर मीडिया बाइट देगा। वहाँ से ट्वीट करेगा।

सदस्य आएगा अपने भाषण के समय के एक मिनट पहले और भाषण देकर चला जाएगा। कितना दर्दनाक है। आपकी वहाँ उपस्थिति इस काम के लिए नहीं है कि आप इस हिट एंड रन रणनीति को अपनाएं।

आप आएं, अपनी बात रखें, चले जाएं, दूसरों की बात न सुनें, जाएं और बाइट दें। इससे बड़ी कोई विभाजनकारी गतिविधि नहीं हो सकती। मेरा आपसे आग्रह रहेगा, दिल टटोलकर इसको आगे बढ़ाना।

हमारी गरिमा बनेगी तो जनता का विश्वास होगा। शिष्टाचार के माध्यम से हमें राष्ट्र के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना है, जिससे ये पता चले की आम आदमी को कि असहमति को शत्रुतापूर्ण टकराव के बजाए आपसी बातचीत से, संवाद से हल किया जा सकता है। बाधा क्यों? व्यवधान क्यों? संवाद, बहस, चर्चा और विचार-विमर्श क्यों नहीं?

आपके लिए एक नॉर्थ स्टार है, आपके लिए लाइट हाउस है, संविधान सभा की कार्यवाही।

तीन साल के करीब संविधान सभा चली, 11 सत्र हुए और मैं आपको बता दूँ कि उनके सामने बहुत ही गहरे मुद्दे थे, विवादित मुद्दे थे। भाषा के मुद्दे थे, क्षेत्र के मुद्दे थे, संस्कृति के मुद्दे थे। उन्होंने कभी ऐसा आचरण नहीं किया कि किसी ने नारेबाजी की हो, कोई वेल में आया हो, या दूसरे की बात न सुनी हो हमें जो संविधान मिला है उसका निर्माण बातचीत के माध्यम से हुआ, सामंजस्य के माध्यम से हुआ।

संविधान सभा ने अपने लगभग तीन वर्षों के 11 सत्रों के कार्यकाल के दौरान सर्वोत्तम प्रणालियों, उच्चतम शिष्टाचार, संवाद, चर्चा, बहस के उच्चतम मानकों का उदाहरण प्रस्तुत किया। एक बार भी कोई व्यवधान या बाधा नहीं हुई।

कोई भी वेल में नहीं आया, किसी ने नारे नहीं लगाए और वह उस स्थिति में था जब संविधान सभा को विवादास्पद, विभाजनकारी, भावनात्मक मुद्दों का सामना करना पड़ा। उन्होंने टकराव से नहीं बल्कि सहयोग से समाधान निकाला।

इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है की ऐसा वातावरण किया जाए की ना तो हम एक दूसरे के शत्रु हैं ना विरोधी है वह एक पक्ष रखते हैं आप दूसरा पक्ष रखते हैं मूल उद्देश्य एक ही है हमारे राष्ट्रवाद को विकसित करना जनता का कल्याण करना एक नई परंपरा और है, व्यक्तिगत आरोप। और किसी भी हद तक जा सकते हैं। आचरण मे दिखावटीपन, मैं महसूस करता हूँ। किसी और को प्रभावित करने के लिए नारे लगाते हैं। ध्यान आकर्षित करना करने के लिए नारे लगाते हैं

6 दशक के पश्चात कोई प्रधानमंत्री लगातार तीसरे टर्म में आया। प्रधानमंत्री किसी राजनीतिक दल का नहीं है, प्रधानमंत्री को सदन का नेता कहा जाता है, प्रधानमंत्री देश का है।  उस प्रधानमंत्री को राज्यसभा में प्रतिपक्ष ने नहीं सुना।

विषय देखिए क्यों नहीं सुना उस समय क्या नारा लगा एल ओ पी एल ओ पी एल ओ पी, समय को नजरअंदाज करते हुए मैंने प्रतिपक्ष के नेता को और सदन के नेता को माननीय मल्लिकार्जुन खड़गे जी को माननीय जगत प्रकाश नड्डा जी को 1.30 घंटे से ज्यादा का समय दिया और किसी को उनको टोकने नहीं दिया।टोकने का अधिकार तभी हो सकता है जब वक्ता स्वीकार करें कि सामने कोई बोल सकता है यदि वह स्वीकार न करे तो आप चैलेंज नहीं कर सकते।  कितना गलत काम हुआ।

सोचिए किस बात को लेकर यह टिप्पणी होगी की सभापति महोदय का झुकाव इधर है या इधर है मेरा झुकाव हर परिस्थिति में सदस्य की मूल भावना की ओर है संविधान की ओर है कानून की ओर है और देश की तरफ है आप इसको जरा ध्यान से देखिए

अब अपने सामने चुनौती है, हमें अपने को पुनर्स्थापित करना होगा। हम बहुत दूर भटक गए हैं। इतने भटक गए हैं कि सार्वजनिक जीवन में जो आप लोग हो,  आपकी प्रतिष्ठा आपके सामने है, आपके पीछे से नहीं है। आपकी प्रतिष्ठा का आधार होगा इस संसद में आपने क्या किया। क्या योगदान किया, कितना महत्वपूर्ण योगदान किया। मेरे लिए तो सदस्यों को समझाना जटिल हो गया है। एक चुनौती हो गई है, हर बात के उपर चुनोती मुझे देना, हर बात पर टोका टोकी करना, गिरावट की सीमा को हम लाँघ गए हैं।

मेरा आपसे आग्रह है, राष्ट्र द्वारा अपनी प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करके राष्ट्र की मदद करें कि आप लोकतंत्र के योद्धा हैं, आप लोकतंत्र के सबसे बड़े हितधारक हैं।

इस भारत को विकसित भारत बनाने में सबसे अहम भूमिका आपकी है। और अहम भूमिका में सबसे पहले एक चीज देखेंगे क्या आपका आचरण उत्तम है|

सदन में बैठकर तीन काम होते हैं तो मुझे पीड़ा होती है। एक, अवसर की तलाश में रहते हैं कि मैं कब व्यवधान पढ़ा करूँ। राजनीतिक दल सदन शुरू होने से पहले तय करते हैं कि आज व्यवधान करना है। मन को टटोलिए क्या यह सही है। दुनिया में नज़र फैलाइये, कई प्रजातांत्रिक देश हैं। सुदृढ़ लोकतंत्र पनप रहा है वहाँ। क्या वहाँ ऐसा होता है, अपने यहाँ क्यों?  उन देशों की तो पृष्ठभूमि 5000 साल की सांस्कृतिक विरासत की नहीं है, उन देशों के अंदर वह ज्ञान का भंडार नहीं है जो इस भारत में वेद हैं, उपनिषद हैं, पुराण हैं, अनेक माध्यम हैं। ऐसी परिस्थिति में हम ऐसा आचरण करें। इसका एक गलत संकेत और भी जाता है।

प्रजातन्त्र के जो मूल स्तम्भ हैं, (कार्यपालिका, न्याय पालिका और विधायिका, विधायिका अपने आचरण से कमजोर होती हैं। कमजोर होती हैं तो आम आदमी को फ़र्क पड़ता है। आपकी नजर से वो चाहते हैं कि आप सरकार को पारदर्शी बनाएं, सरकार को उत्तरदायी बनाएं, सरकार के सामने एक दूरदर्शिता की योजना रखें, ये सब आप नहीं रख पाते हो।

भारत के निर्माण के लिए आपके मन में कुछ सोच है उस सोच को सदन में व्यक्त करने के लिए बहुत साधन है।मैं आज भी कहता हूं चाहे कार्यपालिका में कोई मंत्री हो, चाहे किसी भी संस्था में हो, सबसे महत्वपूर्ण अंग उस संसद सदस्य का है जो संसदीय प्रणाली के माध्यम से देश की सेवा करना चाहता है। एक बात देखिए, प्रश्न काल बहुत महत्वपूर्ण है। आप सप्लीमेंट्री पूछते हैं, मैं किसी पर आक्षेप नहीं कर रहा हूँ। हाथ जोड़कर अनुरोध कर रहा हूँ, जवाब को नहीं पढ़ते पहले। सबसे पहले आपको देखना चाहिए, कि मंत्री ने जवाब क्या दिया है, किस विषय के ऊपर वो प्रश्न है। किस क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। प्रश्न मान लो एक राज्य का है, वो दूसरे राज्य का पूछते है। चेयर पर यह कहना, कि आप हमें सप्लीमेंट्री की इजाज़त दीजिए।

आपसे साझा कर रहा हूँ, आपको आश्चर्य होगा। कुछ सदस्य एक साथ कागज भेज देते हैं, कि वो हर प्रश्न पर सप्लीमेंट्री पूछना चाहते हैं।

मैं आपको बताता हूँ, मैं इसे प्रोत्साहित नहीं करता, मैं विषय को देखकर, सदन में चारों तरफ नजर फैला कर, कि हाँ, यह मछली से जुड़ा हुआ मामला है, तो मैं बंगाल की तरफ देखूँगा, ओडिशा की तरफ देखूँगा, आपके लिए देखूँगा। जब सप्लीमेंट्री का मैं निर्णय करता हूँ, मैं ध्यान देता हूँ, कि जेंडर संतुलन भी हो, पार्टी बैलेंसिंग भी हो, इसके बाद वरिष्ठ नेता, उपस्थिति दर्ज कराने की दृष्टि से, हाथ खड़े कर देते हैं, जब पता है कि आप चिट भेजिए, मैंने व्यवस्था की है, और हमारे सचिवालय की व्यवस्था सुदृढ़ है, कि ज्यों ही आप हाथ खड़े करते हूँ, आपके पास तुरंत कोई आएगा, फिर भी वैल में जाकर देते हो, इसे नहीं होना चाहिए।

बड़े भारी मन से मैंने यह तय किया, जब कुछ अधिकांश लोग कहने लग गए, हार्डकॉपी  भी स्‍वीकार करो, अधिकांश लोगों ने कहा, क्या नुकसान हो जाएगा।

एक मुद्दा आता है कि हमारे अधिकार क्या है? और उसमें कहते हैं कि भारत के संविधान ने हमें एक अधिकार दिया है कि हम सदन में बात करेंगे तो 140 करोड़ का कोई भी व्यक्ति न्यायालय में मुकदमा नहीं कर पाएगा ना दीवानी मुकदमा कर पाएगा ना फौजदारी मुकदमा कर पाएगा।यह अधिकार सोच कर दिया गया है आपकी रक्षा इसलिए की गई है कि आप प्रजातंत्र की रक्षा करेंगे आप संविधान की रक्षा करेंगे आप जनता के कल्याण की बात करोगे सदन को यदि यह अखाड़ा बनने दिया जाए कि आप मनमानी से चाहे जो कहोगे और बाहर से कोई उस पर मुकदमा नहीं कर पाएगा। मैंने अपना फैसला सुना दिया है और मैं कहूंगा उस प्वाइंट आफ ऑर्डर को आप पढ़िए मैंने स्पष्ट कहा है।

आपको स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार है जो अपने आप में श्रेष्ठ है। 140 करोड़ जनता को वह अधिकार नहीं है सदन के बाहर आप बोलते हो कोई मुकदमा कर सकता है फौजदारी कर सकता है दीवानी कर सकता है। लेकिन, सदन के फ्लोर पर बाहर की दुनिया द्वारा ऐसा नहीं किया जा सकता।

इसका मतलब यह तो नहीं है कि उनके पास उपाय नहीं है। उनकी उपाय के लिए उनके अधिकारों का संरक्षण करने के लिए नियम बने हुए हैं और जो मेरी कुर्सी पर पहले बैठे हुए हैं और आज मैं बैठ रहा हूं उनका कर्तव्य है किस प्रकार की प्रवृत्ति को कुंठित ही नहीं करें दंडित करें और दंडित करने की व्यवस्था है। मुझे संसद सदस्य के खिलाफ कोई कार्रवाई करते समय आनंद नहीं आता है, पीड़ा होती है।

समझाइश करता हूँ, बुला कर कहता हूँ। आप अपने इस अधिकार को, जो आपके हाथ में अभिव्यक्ति का परमाणु हथियार है, मेहरबानी करके, चिंतन के साथ, मंथन के साथ, मर्यादित तरीके से, सीमाओं में रहकर करें।

कितना अजीब लगता है, एक सदस्य की आदत हो गई है, कुर्सी पर बैठेंगे, आर्मचेयर संवाद करेंगे, और भद्दी भाषा का उपयोग करेंगे। क्या ये बर्दाश्त करनी चाहिए? बिल्कुल नहीं! ये वोट से तय होने वाले मुद्दे नहीं हैं, ये कुर्सी द्वारा तय किये जाने वाले मुद्दे हैं। पर इसमें मुझे आपका सहयोग चाहिए, क्योंकि देश आपसे अपेक्षा करता है, कि आप सुधार लाएंगे।

सदन की कार्यवाही, पवित्रहै, यह एक मंदिर है इस मंदिर में दुराचार नहीं हो सकता। इसमें मर्यादा भंग नहीं हो सकती, संसद की जो कार्यवाही हैं वह इतिहास में दर्ज की जाती हैं। ये इतिहास में समाहित हैं।

एक संसद सदस्य ने अपने मोबाईल फोन से संसद की प्रोसीडिंग्स ले लीं। यह ठीक नहीं था। बेमन से मुझे दंडित करना पड़ा। दुखी मन से दंडित करना पड़ा। ऐसा नहीं होना चाहिए था। एक सदस्य को सस्पेंड किया गया, उन्होंने न्यायपालिका का द्वार खटखटा दिया। संसद के अंदर जो कुछ भी होता है उसपर किसी का हस्तक्षेप नहीं हो सकता सिवाय चेयर के। ना कार्यपालिका का हो सकता है ना किसी और संस्था का हो सकता है।

संसद अपनी प्रक्रिया के लिए, अपनी कार्यवाही के लिए सर्वोच्च है। सदन में, संसद में कोई भी कार्यवाही कार्यपालिका या किसी अन्य प्राधिकारी की समीक्षा से परे है। वो संसद सदस्य चले गए वहाँ। आभार व्यक्त कर दिया कि आपकी वजह से मेरा कल्याण हो गया। सब गलत आचरण है।

मैं श्री राघव चड्डा का उल्लेख कर रहा हूं। उनकी पार्टी के एक वरिष्ठ सदस्य यहाँ उपस्थित हैं। माननीय चड्डा, माननीय गुप्ता को दोषी ठहराया गया। उसे ऐसे व्यावहार के लिए सज़ा सुनाई गई थी जिसका मैं समर्थन नहीं कर सकता था? क्योंकि वह नियमों और मर्यादाओं के विरुद्ध था। कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।

यह मेरे सिद्धांत है यह मेरा दायित्व है कि मुझे सभी का ध्यान रखना है और एक बार कार्य करने के बाद मेरे मन में कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैं मौका देता हूं, ध्यान रखता हूं, सलाह देता हूं। पर मेरा मानना है की चेयर की हर रूलिंग को आप पहली बार आए हैं पढ़ना चाहिए पहले तो मेरे द्वारा पढ़िये क्योंकि वह सामूहिक है और मेरे से जो पहले है बहुत विद्वान है उनकी पढ़िये।

एक मुद्दा उठा कि आप हाउस में क्या डिस्कस कर सकते हो? अब हर राजनीतिक दल का सदस्य अपने नेता के प्रति समर्पित है इसमें कोई गलत बात नहीं है और जब कुछ कहा जाता है तो उग्र हो जाते हैं। ऐसा एक मुद्दा मेरी समक्ष आया। देश के बाहर जाकर लोकसभा के एक सदस्य ने ऐसी टिप्पणी कर दी जिससे किसी को आपत्ति हुई। आपत्ति हुई तो वह राज्यसभा के समक्ष उस समय सदन के नेता ने मामला उठाए तो एक मुद्दा उठा की आप लोकसभा के सदस्य की चर्चा राज्यसभा में नहीं कर सकते। अब मैं आपको एक सीधी बात बताता हूं। आप अपनी पुस्तक को खोले और उसमें लिखा हुआ है राज्यसभा में लोकसभा के सदस्य की चर्चा किन परिस्थिति में हो सकती है। उसमें लिखा हुआ उसमें कोई विद्वानता दिखाने की जरूरत मुझको नहीं थी फिर भी मुद्दा बना दिया। अब यह कोई वाद विवाद का केंद्र तो नहीं है राज्यसभा लोकसभा। यह ऐसा स्थान नहीं है जिसको हम डिबेटिंग सोसायटी कह दे।

मैंने यह कहा है कि कोई ऐसा विषय नहीं है जिस पर हम चर्चा नहीं कर सकते हैं। उसकी प्रक्रिया है। देश में कोई व्यक्ति किसी भी पद पर हो उसकी चर्चा संसद में हो सकती है, मेरी चर्चा हो सकती है, किसी की भी हो सकती है। एक प्रक्रिया बुलाओ उस पर हो जाएगी पर यह कहना है कि आपने क्यों कर दिया क्योंकि यह एक्ट में अपराध है। यह नज़रिया गलत है। यह नज़रिया अहंकारी है। इसको हमें बर्दाश्त नहीं करना चाहिए और यह क्यों है अगर मेंबर उस नियम को पढ़ लेते तो तुरंत कैसे चर्चा तो हो सकती है पर आप बताइए क्या वह कंडीशन मीत हुई है, इस पर आप देखिए।

मेरा आपको यह कहना है कि बाधा और व्यवधान तो है एक और नई प्रवृत्ति आ गई है जिसको मैं बताना चाहता हूं जो शुरुआती है पर घातक है और यह है खंडन।

सदन में आ गए पांच लोग बैठकर बात कर रहे हैं वह आकर उससे पूरी चर्चा कर रहा हैं और हर तरीके से यह गलत इसलिए है कि सदन के अंदर नियम है कि आप अपनी सीट पर रहोगे यह नियम है। आपका हर आचरण जो आपकी सीट पर न होकर होता है वह दुराचरण है, चेयर को पीठ दिखाते हैं आवाज भी कई बार इसलिए करते हैं, मुझे हाथ करना पड़ता है काम बोलो और यह दोनों तरफ है यह। आब मुझे यह अच्छा नहीं लगता है कि मैं कुछ लोगों को चिन्हित करूं पर आप अपने विचार विमर्श में भी इस बात पर ध्यान दे सकते हैं।

आपको एक सुझाव दूंगा क्योंकि यहां पर नामांकित श्रेणी के भी सदस्य हैं उनका नामांकन होने का एक अर्थ है।

उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा उस श्रेणी में चुना गया है जिसे राज्य सभा के माध्यम से विशाल स्तर पर समाज को दिशा दिखानी है। ऐसी व्यवस्था लोकसभा में नहीं है माननीय राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए नामांकन एक अत्यंत उच्च पद है पर मैंने देखा की एक नामांकित सदस्य को 6 वर्ष के कार्यकाल में प्रथम भाषण करने में भी उनको दिक्कत आई, समय निकल गया मेरा हर एक से अनुरोध है कि आप अपने हर  साल की एक पुस्तिका कर सकते हो। वह पुस्तिका आम जनता को बताएगी कि आपका योगदान क्या रहा है।

स्पेशल मेंशन का उपयोग ऐसे काम के लिए मत कीजिए जिसकी शेल्फ लाइफ ज्यादा ना हो। स्पेशल मेंशन का मतलब पूरा दिल और दिमाग लगाकर सीमित शब्दों में आप एक ऐसा मुद्दा उठा सकते हैं जिसकी ओर ध्यान सरकार का जाएगा आपका स्पेशल मेंशन आपके देने के साथ खत्म नहीं होता है आपके देने के बाद सरकार का काम चालू होता है यह मैं आपको बताता हूं मैं ज्यादा से ज्यादा स्पेशल मेंशन एडमिट भी कर रहा हूं और समय भी दे रहा हूं आप यह कीजिए।

आपका कोई प्रश्न आ जाए तो मेरा यह रहेगा की प्रश्न के लिए प्रश्न मत पूछो, प्रश्न ऐसा होना चाहिए की कार्यपालिका थर्रा जाए। इस सदस्य ने यह प्रश्न पूछा है सोच कर पूछा है दिमाग से पूछा है। यह नहीं है की लास्ट है, चार क्वेश्चन पूछ लो अपने एक आ जाएगा तो ठीक है बिल्कुल, दिमाग लगाइए पूछने में जवाब देने में उसे 100 गुना ज्यादा दिमाग लगेगा सरकार का। और सप्लीमेंट्री तैयार रखिए कि जब आप क्यों नहीं हुआ।

अब तुरंत हाउस में कहते हैं मेरा जवाब नहीं दिया गया मैं बड़ा पीड़ित होता हूं, वैसे ही जैसे लोकसभा के सदस्य को उठा सकते हैं नहीं उठा सकते आप नियमों की प्रक्रिया देखिए ना यदि अगर कोई मंत्री जवाब गलत देता है वह आपके विशेषाधिकार के ऊपर कुठाराघात करता है बहुत गंभीर मामला है नियमों का पालन करें, उसी समय कहना है की मैं न यहां संतुष्ट हूं, न वहां।

उसे एक चीज मेरे सामने जाती है कि माननीय सदस्य ने नियमों को नहीं पढ़ा है और वह गैलरी में खेलने की दृष्टि से सब कुछ कर रहा है। यह नहीं होना चाहिए।

डिबेट में यदि आप पार्टिसिपेट करते हो तो मैंने यह तय किया है और इसके लिए मैं पक्ष और विपक्ष दोनों का आभारी हूं, 3 मिनट में सदस्य क्या कहेगा और 3 मिनट का समय बोलने को देते हैं नए सदस्य को या उस सदस्य को जिसके दल की संख्या ज्यादा नहीं है, मैंने इसको बदल दिया है। और यही कारण है कि लंच रिसीस को भी कम उपयोग कर रहे हैं और हाउस को लेट भी बैठा रहे हैं पर आपको 7 मिनट बोले आप 7 मिनट में 70 मिनट की बात कह सकते हैं यदि आपने 70 मिनट बैठकर उस पर चिंतन किया हो तो

अपना समय देने के लिए आपका धन्यवाद, मुझे बहुत अच्छा लगा एक पॉइंट ऑफ आर्डर नहीं हुआ एक व्यवधान नहीं हुआ बाधित नहीं हुआ कोई नारा नहीं लगा कोई वैल में नहीं आया।

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एमजी/एआर/पीकेए/आर



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