मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय

'वन हेल्थ अप्रोच' के तहत एवियन इन्फ्लूएंजा पर एक उच्चस्तरीय मंथन सत्र का आयोजन


विचार-मंथन सत्र को एवियन इन्फ्लूएंजा प्रबंधन में एक समन्वित और व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है

Posted On: 17 JUL 2024 3:01PM by PIB Delhi

पशुपालन और डेयरी विभाग ने एवियन इन्फ्लूएंजा पर एक उच्चस्तरीय विचार मंथन सत्र का आयोजन किया जिसमें वन हेल्थ अप्रोच के तहत निगरानी और टीकाकरण पर ध्यान केन्द्रित किया गया। विचार विमर्श सत्र का आयोजन पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव सुश्री अलका उपाध्याय की अध्यक्षता में कल कृषि भवन में हुआ। कार्यक्रम में अधिकारियों और विशेषज्ञों के अलग अलग समूह ने भाग लिया।

स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डा. राजीव बहल ने सत्र के दौरान वन हेल्थ मिशन के बारे में जानकारी दी। सत्र में भाग लेने वालों में आईसीएमआर मुख्यालय, आईसीएमआर-एनआईवी पुणे, सीएसआईआर- सेंटर फार सेल एण्ड मालेक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र, आईसीएआर-एनआईएचएसएडी भोपाल, आईसीएआर-एनआईवीईडीआई बेंगलूरू के वरिष्ठ विशेषज्ञों और इनके साथ ही पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, जैवप्रौद्योगिकी विभाग, डीएम सेल, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) विभाग के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।

भारत में पोल्ट्री क्षेत्र उच्च गुणवत्ता प्रोटीन का एक विश्वसनीय स्रोत उपलब्ध कराकर खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देता है और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका को समर्थन देता है। पिछले दशक में 7 से 10 प्रतिशत की दर से बढ़ने वाला यह क्षेत्र व्यापार और निर्यात को भी बढ़ावा देता है और देश की आर्थिक वृद्धि में बेहतर योगदान करता है। हालांकि, बार बार होने वाले अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा (एचपीएआई) के प्रकोप से इसकी क्षमता बाधित होती है और निर्यात प्रभावित होता है।

अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा (एचपीएआई) एच5 का उप-प्रकार वायरस जैविक रूप से बढ़ रहा है और पूरी तरह स्थापित अनुवांशिक वंशावली के उभरते जाने के साथ इसका भौगालिक क्षेत्रों में विस्तार हो रहा है। अमेरिका में हाल में डेयरी पशुओं में एचपीएआई फैलना, जो कि अन्य स्तनधारियों में भी फैल गया एचपीएआई की महामारी जैसी क्षमता को रेखांकित करता है। इस खतरे से निपटने के लिये बेहतर समन्वय और व्यापक रणनीति के साथ मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को एक साथ जोड़ते हुये वन हेल्थ दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। सत्र के दौरान मानव स्वास्थ्य, पशुपालन और वन्यजीव क्षेत्र को लेकर विस्तृत प्रस्तुतीकरण दिये गये जिसमें एवियन इन्फ्लूएंजा फैलने पर वर्तमान में अपनाये जा रहे निगरानी प्रोटोकाल और प्रतिक्रिया तंत्र पर प्रकाश डाला गया। इस दौरान पर्यावरण निगरानी बढ़ाने और मौजूदा नियम प्रक्रियाओं के अद्यतन पर जोर दिया गया।

मंथन सत्र के दौरान विशेषज्ञों ने एवियन इन्फ्लूएंजा जैसी विदेशी और मानव व जानवरों में फैलने वाली उभरती जूनोटिक बीमारियों के मामले में तैयार रहने के लिये एक सक्रिय वन हेल्थ समन्वय की आवश्यकता जताई। विचार विमर्श मानव, पशुओं और वन्यजीवों के बीच संपर्क वाले क्षेत्रों में निगरानी त्रत्र को मजबूत बनाने पर केन्द्रित रहा जिसमें सक्रिय निगरानी बढ़ाने और एक-दूसरे क्षेत्र की जानकारी रखने वाली संयुक्त प्रतिक्रिया टीमों को तैनात करने पर जोर दिया गया।

इन्फ्लूएंजा ए/एच5 वायरस पोल्ट्री और वन्य पक्षियों के जरिये पूरी तरह जाने पहचाने प्रवासी मार्ग के जरिये फैल रहा है। प्रवासी पक्षियों के उड़ान मार्ग के साथ भारत की स्थिति को देखते हुये सर्दियों में जल निकायों में ऐसे प्रवासी पक्षियों की निगरानी के लिये एक प्रभावी रणनीति विकसित करने पर जोर दिया गया ताकि अग्रिम चेतावनी दी जा सके और बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सके। इसके साथ ही मांस, मछली, सब्जियों की बिक्री करने वाले खुले बाजारों, जल निकायों, बूचड़खानों और मुर्गी फार्मो में पर्यावरणीय निगरानी के लिये कम लागत वाले तौर तरीकों का उपयोग करते हुये एसओपी विकसित करने पर विशेष जोर दिया गया। कोविड और पोलियो वायरस के मामले में दूषितजल की जांच का अनुसरण करते हुये सीसीएमबी, आईसीएमआर और एनआईवी ने क्षेत्र में शोध की शुरूआत की है जिसके महत्वपूर्ण और आशाजनक परिणाम मिले हैं।

वैश्विक स्तर पर जो एचपीएआई टीके आमतौर पर उपलब्ध है वह न तो प्रजनन रोकने की क्षमता रखते हैं और न ही सभी तरह के स्ट्रेन के समक्ष शत प्रतिशत प्रभावी होते हैं। टीके से आंशिक प्रतिरक्षा मिलती है जो कि बीमारी की गंभीरता और वायरल शेडिंग को कम करता है लेकिन यह संक्रमण को पूरी तरह से नहीं रोक पाता है। जिन पक्षियों को टीका लगा है वह उनमें लक्षण दिखाये बिना वायरस अपने साथ ले जा सकते हैं और दूसरों में पहुंचा सकते हैं, यह स्थिति निगरानी और बीमारी का पता लगाने को जटिल बना देती है। इस प्रकार की आंशिक प्रतिरक्षा क्षमता से टीके-के प्रभाव को सहने जैसी क्षमता पैदा हो सकती है। इन परिस्थितियों में मजबूत जैवसुरक्षा और आवागमन प्रतिबंधों को सुनिश्चित करने में, विशेषतौर से बैकयार्ड पाल्ट्री सेक्टर, में आने वाले परेशानियों को देखते हुये विशेषज्ञों ने टीकाकरण के बिना ही निगरानी और पशु वध की मौजूदा रण्यानीति को जारी रखने की वकालत की है। हालांकि, उन्होंने मनुष्य और पोल्ट्री पक्षियों के लिये टीके पर उन्नत शोध कार्य की आवश्यकता पर जोर दिया है। आईसीएआर-एनआईएचएसएडी, भोपाल, जिसने कम रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा के लिये टीका प्रौद्योगिकी का व्यवसायीकरण कर दिया है, ने एचपीएआई की रोकथाम के लिये घरेलू टीका विकसित करने में उल्लेखनीय बढ़त हासिल की है। आईसीएमआर मानव उपयोग के लिये एवियन फ्लू की रोकथाम के सेल-कल्चर-आधारित टीका बनाने की भी योजना बना रही है।

गहन विचार विमर्श वाला यह सत्र एवियन इन्फ्लूएंजा प्रबंधन में समन्वित और व्यापक दृष्टिकोण अपनाये जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तौर पर जाना जायेगा। वन हेल्थ दृष्टिकोण का लाभ उठाते हुये पशुपालन और डेयरी विभाग का उद्देश्य निगरानी, प्रतिक्रिया तंत्र और टीका विकास कार्य को आगे बढ़ाना है जिससे कि एवियन इन्फ्लूएंजा और इसी तरह की मनुष्य और पशुओं में फैलने वाली संक्रामक जूनोटिक बीमारियों के प्रभाव को कम किया जा सके।

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