पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय

पत्तन, पोत परिवहन, और जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्ल्यू) ने भारतीय जहाज निर्माण उद्योग के पुनरुत्‍थान पर कार्यशाला का आयोजन किया

मंत्रालय भारत में जहाज निर्माण और मरम्मत उद्योग में नई जान फूंकने की अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग है: श्री टी के रामचंद्रन, सचिव, एमओपीएसडब्ल्यू

100-दिवसीय कार्य योजना के तहत जल्द ही एक नई जहाज निर्माण और जहाज मरम्मत नीति लेकर आएगा एमओपीएसडब्ल्यू

कार्यशाला ने उद्योग विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं, और समुद्री प्रोफेशनलों को अपनी-अपनी अंतर्दृष्टि को साझा करने के लिए एक सहयोगात्मक मंच उपलब्‍ध कराया

‘एमआईवी 2030’ में भारत की जहाज निर्माण और जहाज मरम्मत रैंकिंग को वैश्विक स्तर पर शीर्ष 10 में पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि ‘अमृत काल विजन 2047’ में तो इसे शीर्ष 5 में पहुंचाने का और भी अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है

Posted On: 04 JUL 2024 8:12PM by PIB Bhopal

पत्तन, पोत परिवहन, और जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्ल्यू) ने भारतीय जहाज निर्माण उद्योग के पुनरुत्‍थान पर एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का सफलतापूर्वक आयोजन किया जिसकी अध्यक्षता बंदरगाह, शिपिंग, और जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्ल्यू) के सचिव श्री टी.के.रामचंद्रन ने की।

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इस कार्यक्रम ने प्रमुख हितधारकों, विभिन्न सरकारी मंत्रालयों, विभागों, शिपिंग ऑपरेटरों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों/निजी क्षेत्र के शिपयार्डों के प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाया ताकि भारत में जहाज निर्माण और मरम्मत करने वाले इकोसिस्‍टम में नई जान फूंकने और इसे भारत के महत्वाकांक्षी समुद्री भारत विजन 2030 (एमआईवी 2030) और अमृत काल विजन 2047 के अनुरूप करने की रणनीतियों पर चर्चा की जा सके।

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पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडबल्यू) के सचिव श्री टीके रामचंद्रन ने कहा, ''माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए तैयार है, जिसमें एक मजबूत समुद्री क्षेत्र इस यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आत्मनिर्भरता स्वालंबन पर बल देती है, जो पत्तन और पोत निर्माण उद्योगों तक फैली हुई है। बंदरगाह के बुनियादी ढांचे और अंतर्देशीय जलमार्गों में प्रयासों और विकास के बावजूद, हम विदेशी जहाजों पर निर्भर हैं और अभी तक वैश्विक जहाज निर्माण बाजार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्राप्त नहीं कर पाए हैं। इसे पहचानते हुए, मंत्रालय अब समुद्री भारत दृष्टिकोण (एमआईवी) 2030 और समुद्री अमृत काल दृष्टिकोण (एमएकेवी) 2047 के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हमारे जहाज निर्माण और जहाज मरम्मत के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस संवादात्मक कार्यशाला के माध्यम से पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडबल्यू) का लक्ष्य हितधारकों के सुझावों के आधार पर विशिष्ट नीतियां पेश करना और इन क्षेत्रों में मांग और क्षमता वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए और अधिक मूल्यवान योगदान आमंत्रित करना है।''

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मंत्रालय द्वारा पेश की गई प्रस्तुति में भारतीय विदेशी और तटीय कार्गो की बढ़ती प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला गया। इसके साथ ही इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि भारतीय स्वामित्व वाले/ध्वजांकित जहाजों द्वारा ढोए जाने वाले कार्गो का हिस्सा पिछले एक दशक में घट रहा है और वर्तमान में यह केवल 5.4 प्रतिशत है। यदि कोई पहल नहीं की जाती है, तो यह हिस्सा और भी कम हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय स्वामित्व वाले/भारतीय निर्मित जहाजों की भारत के अपने शिपिंग बाजार में भी कोई भूमिका नहीं रह जाएगी।

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इसके अलावा, राष्ट्रीय व्यापार के लिए आवश्यक बेड़े का स्वामित्व लेने के अनेक प्रमुख लाभ हैं जिनमें संकट के समय बेड़े की उपलब्धता, प्रतिबंधों से सुरक्षा और भारत के बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार की सुरक्षा शामिल है, जिसे वर्तमान में विदेशी राष्ट्रों को चार्टर करने और माल ढुलाई प्रबंधन शुल्क पर खर्च किया जा रहा है।

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साथ ही, यदि भारतीय शिपिंग बाजार की जरूरतों से उत्पन्न जबरदस्त मांग को भारतीय शिपयार्ड द्वारा पर्याप्त तरीके से नियोजित किया जाता है, तो इसके परिणामस्वरूप 2047 तक 237 बिलियन अमरीकी डॉलर (20 लाख करोड़ रुपये) से अधिक का अवसर मिल सकता है।

कार्यशाला में विभिन्न सरकारी मंत्रालयों, विभागों, शिपिंग ऑपरेटरों और पीएसयू/निजी क्षेत्र के शिपयार्ड सहित 50 संगठनों के 100 से अधिक प्रतिभागियों जैसे रक्षा मंत्रालय; कोयला मंत्रालय; डीजी शिपिंग, शिपयार्ड एसोसिएशन ऑफ इंडिया; नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन ग्रीन पोर्ट एंड शिपिंग; रॉयल आईएचसी नीदरलैंड; एचपीसीएल; इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड; गेल; गार्डन रीच शिपयार्ड; इंडियन नेशनल शिप ओनर्स एसोसिएशन; हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड; पेट्रोल और प्राकृतिक गैस मंत्रालय; ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड आदि ने भाग लिया।

इस आयोजन का उद्देश्य मांग उत्पन्न करने वालों और आपूर्तिकर्ताओं/निर्माताओं को एक सहयोगात्मक साझा मंच पर लाना था, ताकि यह सुनिश्चित करने के लिए विचार तैयार किए जा सकें कि भारतीय शिपिंग उद्योग की लोकप्रिय मांग भारतीय जहाज निर्माण उद्योग के लिए अवसर बन सके।

इस कार्यक्रम में हितधारकों ने भारतीय शिपयार्डों की सीमाओं, आपूर्ति और मांग दोनों के लिए ज़रूरी प्रोत्साहनों और इन्हें सुगम करने के लिए जल परिवहन मंत्रालय द्वारा दी जा सकने वाली मद आदि पर मंत्रणा की। इस उद्योग के प्रतिष्ठित लोगों से प्राप्त सुझावों और जानकारियों को दर्ज किया गया और मंत्रालय को उम्मीद है कि यहां उठाए गए विभिन्न मुद्दों को हल किया जाएगा। उन्हें अपने 100 दिनों के एजेंडे में शामिल किया जाएगा। इसका इकोसिस्टम विकसित करने और उसे बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। एमआईवी 2030 के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी, जिनमें भारत को 2030 तक शीर्ष 10 जहाज निर्माण देशों में से एक बनाना और 2047 तक जहाज निर्माण के शीर्ष 5 देशों में से एक बनाना शामिल है।

इससे पहले भी पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने "जहाज निर्माण वित्तीय सहायता नीति, पहले इनकार का अधिकार नीति (आरओएफआर)" और शिपयार्डों को इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्जा देने जैसी योजनाओं के जरिए जहाज निर्माण और जहाज मरम्मत उद्योग के विकास में सहायता करने की कोशिश की है। इन उपायों के बावजूद भारत में कमर्शियल जहाज निर्माण, वैश्विक जहाज निर्माण की बड़ी कंपनियों की तुलना में अभी भी मजबूत स्थिति में नहीं पहुंच पाया है। वैश्विक जहाज निर्माण बाजार में भारत का हिस्सा 1 फीसदी से भी कम है। ऐसा मांग की कमी के चलते है। इसके नतीजतन पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय हमारे घरेलू बेड़े को मजबूत करने की आवश्यकता को देखते हुए घरेलू स्तर पर मांग के सृजन को मजबूत करने के लिए नीतिगत उपायों को परख रहा है।

भारतीय जहाज निर्माण कंपनियों द्वारा स्वदेशी कम कार्बन उत्सर्जन वाले या शून्य कार्बन उत्सर्जन वाले जहाजों/पोतों के विकास में जो अनूठी प्रगति की गई है वो सुरक्षित, टिकाऊ और हरित जहाजों के निर्माण में दुनिया का नेतृत्व करने की हमारी क्षमता दिखलाती है। पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय समुद्री क्लस्टरों के विकास के जरिए जहाज निर्माण हितधारकों को एक साथ लाने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण पर काम कर रहा है।

मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 (एमआईवी 2030) और अमृत काल विजन 2047 के साथ तालमेल बिठाते हुए, कार्यशाला ने भारत के समुद्री विकास को आगे बढ़ाने में इन दूरदर्शी विज़न के महत्व पर जोर दिया। एमआईवी 2030 ने जहाज निर्माण और जहाज मरम्मत में भारत की वैश्विक रैंकिंग को 20वें स्थान से ऊपर उठाकर शीर्ष 10 में पहुंचाने का साहसिक लक्ष्य निर्धारित किया है और शीर्ष 5 स्थान के लिए भी एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, जैसा कि अमृत काल विजन 2047 में उल्लेख किया गया है। एमएकेवी 2047 के तहत एक अन्य प्रमुख लक्ष्य हैं, 1300 एमएमटीपीए तटीय माल ढुलाई संभालना और भारतीय विदेशी कार्गो का अधिक भाग भारतीय स्वामित्व वाले/भारतीय निर्मित जहाजों के लिए निर्धारित किया जाना। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, एमओपीएसडब्ल्यू, क्षमताओं का विकास करना और क्षेत्र को वैश्विक क्षमता तक विकसित करना; वैश्विक सर्वोत्तम तौर-तरीकों, प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकियों को अपनाना; विदेशी मुद्रा भंडार की रक्षा करना; उद्योग स्थायित्व और हरित पहल को आगे बढ़ाना तथा जहाज निर्माण क्षमता का विस्तार करना चाहता है।

यह रणनीतिक दृष्टि, भारत को वैश्विक समुद्री शक्ति बनाने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य, देश की समुद्री अवसंरचना और क्षमताओं को बढ़ाने की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा है।

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