विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
गणमान्य व्यक्तियों ने सत्येन्द्र नाथ बोस (एस एन बोस) के महान कार्यों के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर क्वांटम यांत्रिकी के विकास का पता लगाया
Posted On:
29 JAN 2024 7:55PM by PIB Delhi
प्रतिष्ठित वैज्ञानिक और वैज्ञानिक प्रशासक, उस ऐतिहासिक अवसर के 100 वर्ष पूरे होने के जश्न के अवसर पर एक साथ एकत्र हुए, जब सत्येन्द्र नाथ बोस ने अपने चार क्रांतिकारी प्रकाशनों में से वह अंतिम प्रकाशन लिखा, जिससे नई क्वांटम यांत्रिकी एवं पिछले कई वर्षों के दौरान क्वांटम यांत्रिकी के विकास की प्रक्रिया का पता लगाया गया है।
भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय सूद ने कोलकाता में एस एन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज (एसएनबीएनसीबीएस) द्वारा फोटोनिक्स, क्वांटम सूचना और क्वांटम संचार पर आयोजित 5 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर बोलते हुए कहा कि हम क्वांटम यांत्रिकी में दूसरी क्रांति से गुजर रहे हैं और मौलिक विज्ञान (फंडामेंटल साइंसेज) और तकनीकी हस्तक्षेप (टेक्निकल इंटरवेंशन्स) के बीच का अंतर कम हो रहा है।
उन्होंने कहा, “चार कार्यक्षेत्रों में कुल 75 करोड़ अमरीकी डालर का निवेश किया जा रहा है। इस नए मिशन का हिस्सा बनने का यह हम सभी के लिए एक अद्भुत समय है। शोधकर्ताओं को उन सही समस्याओं का समाधान करना होगा जो हल करने योग्य हों और जिनका व्यापक अनुप्रयोग हो। उन्होंने कहा कि क्वांटम सेंसिंग, उपग्रह-आधारित क्वांटम संचार और पोस्ट क्वांटम क्रिप्टोग्राफी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।''
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि 23 देशों ने राष्ट्रीय क्वांटम मिशन स्थापित किए हैं और भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से क्वांटम एल्गोरिदम के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देना है।
“विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव, प्रोफेसर अभय करंदीकर ने जोर देकर कहा कि 100 वर्षों के बाद हम देख रहे हैं कि मौलिक विज्ञान की अवधारणाओं को संचार, कंप्यूटिंग और अन्य अनुप्रयोगों के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा रहा है। राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (एनक्यूएम) के जोर पकड़ने के साथ, हमारे पास वैश्विक स्तर पर खेलने का अवसर है। मिशन अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए क्वांटम विज्ञान और प्रौद्योगिकी डोमेन खोलेगा। देशभर में चार मिशन केंद्र (हब) स्थापित किए जाएंगे और प्रत्येक हब से सभी तकनीकी विशेषज्ञों को एक सामूहिक प्रारूप (कंसोर्टियम मोड) में एक साथ लाने की सम्भावना है।
उन्होंने कहा कि छात्र और विशेषज्ञ देश में विकसित स्टार्ट-अप्स के इकोसिस्टम के माध्यम से और सभी तकनीकी विशेषज्ञों को एनक्यूएम के कामकाज में तेजी लाने पर एक कंसोर्टियम मोड में काम करने के लिए देश भर में स्थापित किए जाने वाले चार मिशन केंद्रों के माध्यम से एनक्यूएम में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
उन्होंने देश में अनुसंधान के लिए अनुकूल माहौल बनाने में अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की भूमिका पर भी प्रकाश डाला।
यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ऐतिहासिक अवसर के 100 वर्ष पूरे होने के वार्षिक उत्सव का पहला कार्यक्रम है। साल भर चलने वाले इस उत्सव में तीन अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और कई आउटरीच कार्यक्रम शामिल होंगे, जिन्हें डीएसटी की एक स्वायत्त संस्था एसएनबीएनसीबीएस पूरे वर्ष आयोजित करेगी।
प्रोफेसर तनुश्री साहा-दासगुप्ता, एस.एन. बोस नेशनल सेंटर की निदेशक प्रोफेसर तनुश्री साहा-दासगुप्ता ने कहा कि सत्येन्द्रनाथ बोस का मौलिक शोधपत्र 1924 में आइंस्टीन द्वारा जर्मन में अनुवादित होने के बाद प्रकाशित हुआ था। उन्होंने कहा कि विश्व के विभिन्न क्षेत्रों और भारत के विभिन्न राज्यों से वैज्ञानिक, छात्र और मीडियाकर्मी अपने विचारों का आदान-प्रदान करने, अपने शोध निष्कर्षों को साझा करने और एक-दूसरे से प्रेरणा लेने के लिए इस कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं।
क्वांटम सांख्यिकी पर सत्येन्द्र नाथ बोस के अग्रणी कार्य ने बोस-आइंस्टीन संघनन, क्वांटम सुपरकंडक्टिविटी और क्वांटम सूचना सिद्धांत सहित आधुनिक क्वांटम प्रौद्योगिकियों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। 1924 में, श्री बोस ने चार क्रांतिकारी प्रकाशनों में से अपना अंतिम शोध प्रकाशन लिखा, जिससे नई क्वांटम यांत्रिकी का मार्ग प्रशस्त हुआ (अन्य प्रकाशन 1900 में प्लैंक, 1905 में आइंस्टीन और 1913 में नील्स बोहर के थे)। ब्रह्मांड में आधे मूलभूत कणों का नाम उन्हीं के नाम पर - बोसोन रखा गया है। उन्होंने प्लैंक के नियम को क्रांतिकारी तरीके से निकाला जिससे आइंस्टीन प्रभावित हुए और बाद में उन्होंने परस्पर सहयोग करना जारी रखा।
उनकी साझेदारी के परिणामस्वरूप नए भौतिक सिद्धांत सामने आए, जिनमें बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी और बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट शामिल हैं। बोसोन से संबंधित कार्य के लिए बाद में कई नोबेल पुरस्कार प्रदान किए गए और बल साथ लेकर ले जाने वाले कणों का नाम स्वयं बोस के नाम पर रखा गया।
नए क्वांटम आंकड़ों को विकसित करने के साथ-साथ, बोस का काम नवीन प्रौद्योगिकियों की नींव भी रखता है जिसका अनुप्रयोग दूसरी क्वांटम क्रांति में भी होता है।
प्रोफेसर एस.एन.बोस के जीवन और कार्यों को सम्मानित करने के लिए 1986 में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत स्थापित एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान, एस .एन.बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज, पूरे वर्ष अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करके सैद्धांतिक भौतिकी में बोस के महान कार्य की वर्ष 2024 में शताब्दी मना रहा है। जहां सम्मेलन नोबेल पुरस्कार विजेताओं सहित विश्व भर के विशेषज्ञों को एक मंच पर एक साथ आने और अपने विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर प्रदान करेंगे, वहीं इसके आउटरीच कार्यक्रम विज्ञान को लोकप्रिय बनाने की दिशा में गति भी उत्पन्न करेंगे।
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