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मतभेदों के सागर के बीच समानताएं तलाशने की जद्दोजहद करती है ‘द फिशरमैन्स डॉटर’: निर्देशक एडगर डी ल्यूक जैकोम

फिल्म द फिशरमैन्स डॉटर के निर्देशक एडगर डी ल्यूक जैकोम का कहना है कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में हमारे आचरण और हमारे जीने के तरीके में स्पष्ट अंतर हैं, और साथ ही मनुष्य होने के नाते हम अपने बीच समानता के धागे भी पा सकते हैं और मैं अपनी फिल्म के माध्यम से यही पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं। यह फिल्म एक मछुआरे की कहानी बयान करती है जो बहुत मजबूत व्यक्तित्व का है और उसका अपनी बिछुड़ी हुई ट्रांस-डॉटर के साथ मिलन होता है। फिल्म निर्माता आज 54वें इफ्फी के मौके पर एक संवाददाता सम्मेलन में मीडिया से बातचीत कर रहे थे।

एक एकाकी द्वीप पर मछुआरे पिता और उसकी ट्रांस-डॉटर फिर से मिलते हैं और वे अपने कष्‍टमय अतीत और वर्तमान को स्‍वीकार करने आते हैं। मीडिया से बातचीत में एडगर ने फिल्म निर्माण के प्रति अपने दृष्टिकोण और उनकी सिनेमाई कल्पना को बढ़ावा देने वाले कारकों को भी साझा किया। फिल्मकार ने कहा कि उनके दादा मछुआरे थे, जिनके जीवन ने इस फिल्म के लिए प्रत्यक्ष प्रेरणा का काम किया।

 

फिल्म के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने बताया, पर्यटन, बंदरगाहों और इमारतों के कारण सेंटा मार्टा के मछुआरे विस्थापित हो गए थे और इसी तरह ट्रांस कम्‍युनिटी को भी स्‍थानांतरित होना पड़ा था और इस फिल्म का विचार दोनों समुदायों को एक कहानी में जोड़ना और एक साथ लाना था।

द फिशरमैन्स डॉटर एडगर डी ल्यूक जैकोम की पहली फिल्म है और उम्मीद है कि यह मछुआरों और ट्रांस कम्‍युनिटी दोनों को विशिष्‍ट परिप्रेक्ष्‍य प्रदान करेगी।

निर्देशक के बारे में:

एडगर डी ल्यूक जैकोम की लघु फिल्म सिन रेग्रेसो (2007) बियारिट्ज़ और सैंटियागो के महोत्सवों में थी। उन्होंने यूनिवर्सिडैड डेल नॉर्ट से संचार में मास्‍टर्स किया है और वह रॉबर्टो फ्लोर्स प्रीएतो की रुइडो रोजा (2014) और लीबिया स्टेला गोमेज़ की एला (2015) में सहायक निर्देशक थे। उन्होंने अपनी तीन पटकथाओं के साथ एफडीसी का स्‍क्रीनराइटिंग स्‍टीमुलस जीता है। वह कई वर्षों तक यूनिवर्सिडैड डेल मैग्डेलेना में प्रोफेसर रहे।

पूरी बातचीत यहां देखें:

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