उप राष्ट्रपति सचिवालय
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"भारत-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद" 2023 संस्करण में उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ के संबोधन का मूल पाठ

Posted On: 15 NOV 2023 3:36PM by PIB Delhi

आप सभी का अभिनंदन!

जब मैं पुस्तक का विमोचन करता हूं, तो मुझे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में 3 वर्षों तक बिताए गए अपने दिन याद आते हैं, इसलिए मैंने आप सभी को 'नॉमस्कार' कहा।

नौसेना अध्यक्ष एडमिरल आर. हरि कुमार ने अपने संबोधन में लगभग हर चीज़ का अवलोकन किया है और मेरे विचार करने के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा है। वह एक विशेषज्ञ हैं, मैं उनमें से नहीं हूं। आप सभी सूक्ष्म स्तर पर गहराई तक जा सकते हैं और मैं दूर से चीजों को केवल स्थूल स्तर पर ही देखता हूं। इसलिए मेरे लिए यह भाषण सीख था; लेकिन मैं इसे आपके साथ साझा करूंगा, रक्षा क्षेत्र मेरा पहला प्यार था और इसी तरह मुझे सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ में दाखिला मिला। मैं क्वालिफाई तो हो गया लेकिन मेरी दाहिनी आंख ने मेरी ज्यादा मदद नहीं की इसलिए मुझे दूसरी स्ट्रीम लेनी पड़ी।

नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन के अध्यक्ष एडमिरल करमबीर सिंह और एडमिरल आर. हरि कुमार जब मेरे स्वागत के लिए वहां आए तो मैंने उन दोनों को महान नाम के लिए बधाई दी थी। एक है हरि, दूसरे जो कर्म में विश्वास रखें, वो करमबीर।

महानिदेशक, नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन, वाइस एडमिरल प्रदीप चौहान।

मैं भारतीय नौसेना के नौसेना स्टाफ के 23वें नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा, विशिष्ट दर्शकों की उपस्थिति का स्वागत करता हूं। मैं जानता हूं कि इस कमरे में हर किसी के पास विशिष्ट विशेषज्ञता है। इस कमरे में हर कोई मानवता के बड़े कल्याण के लिए सकारात्मक स्थितियों को बढ़ाने के लिए प्रमुख केंद्र के रूप में कार्य कर रहा है।

विशिष्ट प्रतिभागियों को नमस्कार और मेरा मानना है कि एक सत्र पहले ही समाप्त हो चुका है। यह हर दृष्टि से एक महत्वपूर्ण संवाद है

हमारे पड़ोस की शांति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण प्रासंगिक मुद्दे पर हितधारकों और रणनीतिक विशेषज्ञों के बीच इस संवाद का आयोजन करने के लिए भारतीय नौसेना को बधाई। यह भारत के विकास और समृद्धि के लिए बहुत आवश्यक है। वैश्विक स्तर पर हम सभी जिस स्थिति का सामना कर रहे हैं और उसके साथ आने वाली चुनौतियां हैं, उसे देखते हुए यह समसामयिक रूप से बहुत प्रासंगिक है।

विचार-विमर्श का विषय - "भारत-प्रशांत समुद्री व्यापार और कनेक्टिविटी पर भूराजनीतिक प्रभाव" वास्तव में उपयुक्त और सामयिक है। जब ये चीजें बहुत सुरक्षित नहीं हैं तो हम वैश्विक स्तर पर इसका असर पहले से ही महसूस कर रहे हैं।'

भारत और प्रशांत क्षेत्र के 38 देशों के मध्य बहुत कुछ हो रहा है। इनमें अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया भी शामिल हैं। इन क्षेत्रों में वैश्विक जनसंख्या का 64 प्रतिशत निवास करता है और यह क्षेत्र वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 62 प्रतिशत का योगदान देते हैं।

वैश्विक व्यापार का 50 प्रतिशत और तेल का 40 प्रतिशत हिंद-प्रशांत क्षेत्र से होता है और भारत के संदर्भ में इसमें हमारा 90 प्रतिशत व्यापार इस क्षेत्र से होता है, जिसमें 80 प्रतिशत महत्वपूर्ण माल ढुलाई-कोयला, पेट्रोलियम और गैस, लौह अयस्क, उर्वरक आदि शामिल हैं।

2.4 मिलियन वर्ग किलोमीटर के विशेष आर्थिक क्षेत्र-ईईजेड में बड़ी भारी संभावनाएं हैं और किसी भी संभावित दोहन के साथ चुनौतियां भी आती हैं, समुद्री व्यापार सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत-प्रशांत क्षेत्र की शांति, समृद्धि और स्थिरता में भारत का हित है।

वास्तव में भू-राजनीतिक परिदृश्य अत्यंत महत्वपूर्ण है और वर्तमान समय में समुद्री व्यापार और कनेक्टिविटी पर इसके प्रभाव को अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता है।

मित्रो, पिछले कुछ वर्षों में हम विकास के पथ लगातार बढ़ रहे हैं। एक राष्ट्र के रूप में हम वर्तमान में पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में विद्यमान हैं। हम 2022 में ब्रिटेन और फ्रांस से आगे निकल गये।

2030 तक जापान और जर्मनी को पीछ छोड़ भारत तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।

जैसे-जैसे अभूतपूर्व विकास और गहरी तकनीकी पैठ के साथ भारत की आर्थिक शक्ति बढ़ती है, वैसे ही वैश्विक और क्षेत्रीय मामलों में हमारी हिस्सेदारी और चुनौतियां भी बढ़ती हैं। जी-20 के दौरान भारत की अध्यक्षता में इसे विश्व स्तर पर सराहा गया है।

इस वर्ष इस श्रेणी में यह चौथा संवाद है। हमने "उकसाव, अनिश्चितता, अशांति: तूफ़ान में प्रकाशस्तंभ" थीम के साथ रायसीना डायलॉग, 2023 का आयोजन किया है। इससे पहले भारत-प्रशांत सेना प्रमुखों के सम्मेलन की मेजबानी की गई थी और हाल ही में चाणक्य रक्षा संवाद की मेजबानी की गई।

यह मंच इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा चुनौतियों की जटिलताओं का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने और क्षेत्र के भीतर सामूहिक सुरक्षा के लिए भविष्य के रुख को परिभाषित करने के लिए बेहद उपयुक्त है ताकि इस क्षेत्र में व्यापार के लिए एक अनुकूल वातावरण बन सके।

यहां मौजूद लोग मार्ग तलाश कर लेंगे और हम जिस संकटपूर्ण स्थिति का सामना कर रहे हैं, उसे देखते हुए आगे बढ़ने का रास्ता निकालने की तत्काल आवश्यकता है।

यह संतोष का विषय है कि भारत मानवता के छठे हिस्से का घर है। यहां वैश्विक सुरक्षा और व्यापार से संबंधित मुद्दों पर गहन और विचारशील विचारों को प्रमुखता दी जाती है। यह अतीत की तुलना में यह बड़ा परिवर्तन है। ऐसे आयोजन पहले भारत में नहीं होते थे। भारत में क्षेत्रीय और वैश्विक प्रकृति के मुद्दों को संबोधित करने के लिए मानव संसाधन का एक साथ आना वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में हो रहे बदलाव को इंगित करता है।

ये संवाद एक प्रभावशाली मंच और विशेषज्ञों के बीच संवाद, रक्षा, रणनीति और सहयोगात्मक साझेदारी से जुड़े सतही मुद्दों से परे चर्चा का अप्रतिम अवसर प्रदान करते हैं। ये सभी समुद्री व्यापार और कनेक्टिविटी के लिए महत्वपूर्ण हैं।

शांति सुनिश्चित करके भारत-प्रशांत के जीवंत परिदृश्य में स्थिर और समृद्ध भविष्य सुरक्षित करने के लिए सभी हितधारकों को अपेक्षित परिणाम हासिल होगा। इस परिदृश्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं। सभी देश हमारे जीवन को बहुत बेहतर बनाते हैं। अत: इसका अपना ही महत्व है। इसे सुनिश्चित करने के लिए हमें काफी गंभीरता से कार्य करना होगा।

आपके विचार-विमर्श में इस क्षेत्र के देशों के बीच उभरते और प्रासंगिक हितधारक के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करने हेतु क्षेत्र में सुरक्षा उपायों के लिए एक रणनीति के विकास पर स्पष्ट ध्यान दिया जाएगा। वास्तव में भारत ऐतिहासिक रूप से सदियों से समुद्र के माध्यम से इस प्रकार की कनेक्टिविटी और व्यापार में विश्वास और अभ्यास करता रहा है।

भारत-प्रशांत में समुद्री व्यापार और कनेक्टिविटी की समकालीन चुनौतियों का विश्लेषण करने के लिए एक विचार मंच की अवधारणा वास्तव में विचारणीय है; विशेष रूप से विस्फोटक वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए इसकी आवश्यकता है। कई संकटपूर्ण स्थितियां हैं, जो संभावित रूप से भारत-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार की सुचारू आवाजाही और कनेक्टिविटी के रखरखाव में बाधक हो सकती है।

एक राष्ट्र के रूप में भारत की पहचान शांति के निरंतर समर्थक के रूप में है। इससे पूर्व भारत ऐसे विस्तार में कभी भी शामिल नहीं रहा। ये संकेत कुछ वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिया था कि ये विस्तार का युग नहीं है।

'वसुधैव कुटुंबकम' के प्रति हमारी दृढ़ प्रतिबद्धता - हमारे उपनिषदों का सार - 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' की अवधारणा, हमारे जीवन यापन की पद्धति और वैश्विक दृष्टिकोण दोनों का प्रतीक है। यह जी-20 के दौरान सांकेतिक रूप से दर्शनीय था।

आज का भारत 'वसुधैव कुटुंबकम' के सिद्धांत को संजोते और उसका पालन करते हुए महान आकांक्षाओं को भी शक्ति प्रदान करता है। सम्पूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी ये महान आदर्श, ये महान इच्छाएं भौतिक रूप में तभी अर्थपूर्ण हो पाती हैं, जब आप उन्हें शक्तिपुंज के रूप में संजोते हैं। इसका संकेत इसी धरती की वैश्विक विभूति चाणक्य और स्वामी विवेकानन्द जी ने भी दिया है। आपकी शक्ति वैश्विक व्यवस्था और शांति को परिभाषित करेगी।

मित्रो, भारत का एक अग्रणी वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में उभरना और उसकी अभूतपूर्व वृद्धि वैश्विक शांति और सद्भाव के लिए एक स्थिर कारक है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि ठीक एक दशक पहले भारत की गिनती दुनिया की 5 नाजुक अर्थव्यवस्थाओं में होती थी। हमने एक लंबा सफर तय किया है। वर्तमान में, इस अर्थव्यवस्था के आकार की सीमा चिंता का विषय है, हम सबसे तेजी से बढ़ रहे हैं और इसलिए भारत को यह सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण रचनात्मक भूमिका निभानी होगी कि हम वैश्विक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए अग्रणी नेतृत्व करें।

मैंने पहले संकेत दिया था, और मैं दोहराता हूं कि आप शांति लागू नहीं कर सकते, आप शांति के लिए बातचीत नहीं कर सकते, आप संख्यात्मक दृष्टि से शांति की आकांक्षा नहीं कर सकते। आपको सभी मापदंडों पर मजबूत होना होगा। वर्तमान परिदृश्य में भारत इसके लिए बिल्कुल उपयुक्त है, क्योंकि भारत की विकास गाथा एक पठार की तरह है। विकास हर स्तर पर सभी से जुड़ा है। शांति कोई विकल्प नहीं है, यही एकमात्र रास्ता है। इसके विघटन से मानवीय दुख और वैश्विक चुनौतियां उत्पन्न होती हैं।

इसलिए अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली पर फिर से विचार मंथन करने और इस बात पर बहस करने की आवश्यकता है कि टकराव को रोकने और हल करने के लिए कल्पनाशील तरीकों से कूटनीति को फिर से कैसे जीवंत किया जाए।

दुनिया इस समय दो महत्वपूर्ण विन्यासों का सामना कर रही है और कोई भी स्थिति पूर्णतः स्पष्ट नहीं है। मानवता सुरंग के अंत में प्रकाश की तलाश कर रही है। इसलिए एक विशेषज्ञ के रूप में, एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में आपको समाधान खोजने के लिए लीक से हटकर सोचना होगा। जागरूकता और जागृति ऐसे संवादों का एक पहलू है जो वास्तव में भुनाया जा सकता है।

सहयोगात्मक सुरक्षा और नवीन साझेदारियां ही आगे बढ़ने का रास्ता प्रतीत होती हैं, और शायद एकमात्र रास्ता भी।

इस पद पर अपने सीमित अनुभव के कारण मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यही एकमात्र रास्ता है। कोई भी देश अकेला नहीं खड़ा हो सकता, वहां एकजुटता से कार्रवाई करनी होगी, विचार प्रक्रियाओं को साझा करना होगा, कुछ मुद्दों पर एकमत होने के लिए मस्तिष्क का पूरा इस्तेमाल करना होगा। महात्मा गांधी जी ने संकेत दिया था कि दुनिया में हर किसी की जरूरत के लिए सब कुछ है लेकिन लालच के लिए नहीं। किसी व्यक्ति के लालच को नियामक तंत्र द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन एक संप्रभु राष्ट्र के लालच को तभी रोका जा सकता है जब अन्य संप्रभु राष्ट्र एक साथ आएं, कोई रास्ता निकालें, उनके पास एक मंच हो और यह मंच प्रभावशाली होना चाहिए। मुझे अपना दर्द और पीड़ा साझा करने में कोई संदेह नहीं है कि यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मानवता का 1/6 हिस्सा प्रतिनिधित्व नहीं करता है, तो निश्चित रूप से इसकी प्रभावशीलता कम हो गई है, समय आ गया है जब हमें उस पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस, रोबोटिक्स, क्वांटम, सेमी-कंडक्टर, बायो-टेक, ड्रोन और हाइपरसोनिक्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियां न केवल युद्ध के चरित्र को फिर से लिख रही हैं – इस क्षेत्र की शक्ति और महारत भविष्य की रणनीतिक विशेषताओं को निर्धारित करेगी। अब एक आदर्श परिवर्तन आ रहा है और यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में देखा जा सकता है। उनकी तैनाती किसी भी तरह से संभव है और वैश्विक व्यवस्था के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए इसका सकारात्मक उपयोग करने के लिए हमारी तैयारी होनी चाहिए।

ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए, संरचनात्मक सुधारों के साथ-साथ, हमें सांस्कृतिक परिवर्तनों की एक श्रृंखला की आवश्यकता है: नई प्रतिभाएं और नागरिक-सैन्य मिश्रण नए मंत्र प्रतीत होते हैं।

मैं इसमें एक बात और जोड़ूंगा। सभी शोधों को विकसित दुनिया के बड़े कॉरपोरेट्स द्वारा वित्त पोषित किया गया है। भारत जैसे देशों के कॉरपोरेट्स को भी आगे आने, एक टेबल पर बैठकर बातचीत करने, नागरिक और सैन्य बलों के साथ पूर्ण विलय की जरूरत है। ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए भारत द्वारा पहले ही कदम उठाए जा चुके हैं और यह उन कुछ देशों में से एक है जिन्होंने क्वांटम कंप्यूटिंग और आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस जैसी विनाशकारी प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित किया है।

मित्रो, हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले कई वर्षों में कई वैश्विक मंचों पर विशेष रूप से इस क्षेत्र के संबंध में अपनी दूरदर्शी प्रतिबद्धता को दर्शाया किया है।

हम सक्रिय रूप से समुद्र को अपने विकास की एक महत्वपूर्ण सीमा के रूप में देख रहे हैं। भारत ने बंदरगाह आधारित विकास के लिए महत्वाकांक्षी सागर माला परियोजना शुरू की है। यह परियोजना हमारी लॉजिस्टिक दक्षता को बढ़ाएगी और हमारी आपूर्ति श्रृंखलाओं की लागत को कम करेगी।

लेकिन ये सभी तभी सकारात्मक परिणाम दे सकते हैं जब कोई व्यवधान न हो और यही वह विषय है जिस पर आप सभी अगले 2 दिनों में विचार-विमर्श कर रहे हैं।

सागर माला के तहत चार नए मेगा पोर्ट और एक विश्वस्तरीय ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट प्रस्तावित हैं। परियोजना के अंतर्गत वर्तमान बंदरगाहों की क्षमता और उनके बुनियादी ढांचे और भीतरी इलाकों की एकजुटता पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

हमारी इंडो-पैसिफिक नीति सागर माला परियोजना के तहत बंदरगाह के नेतृत्व वाली समुद्री-वार्ड विकास रणनीति का पूरक है।

न केवल भौतिक कनेक्टिविटी बल्कि डिजिटल और ऊर्जा कनेक्टिविटी के लिए भी आवश्यक है। इस सम्पूर्ण क्षेत्र के विकास के लिए पानी के नीचे केबल और पाइपलाइनों की सुरक्षा भी आवश्यक है।

यह वास्तविकता है कि इन क्षेत्रों में व्यवधान गंभीर परिणाम दे सकता है, सुरक्षा से समझौता कर सकता और समुद्री व्यापार को खतरे में डाल सकता है। इससे कनेक्टिविटी पहलू पूरी तरह से प्रभावित हो सकता है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के आसपास स्थित बंदरगाहों के बीच सुरक्षित डिजिटल संचार, लिंक क्षेत्र में समुद्री व्यापार के विकास के लिए आवश्यक है।

वस्तुतः समुद्र अपने आप में अपार अप्रयुक्त संपदा का स्रोत है। व्यापार और समुद्री मछली पकड़ने के अलावा, तटीय पेट्रोलियम भंडार, महत्वपूर्ण दुर्लभ पृथ्वी तत्व और गहरे समुद्र तल पर मौजूद येट्रियम, स्कैंडियम आदि जैसे खनिज, समुद्र को वैश्विक प्रतिभागियों के बीच प्रतिस्पर्धा के लिए नई सीमा तय करते हैं। समुद्र और उसकी परिसंपत्तियों के दावों को चुनौती देने की संभावना को रोकने के लिए, हमें एक नियामक व्यवस्था और उसके प्रभावी प्रवर्तन की आवश्यकता है।

सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत वैध वाणिज्य के खुले और अप्रतिबंधित प्रवाह के साथ एक स्वतंत्र और शांतिपूर्ण नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र चाहता है। हम स्थापित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधियों के अनुरूप नेविगेशन और अधिक उड़ान की स्वतंत्रता चाहते हैं।

समस्या तब उत्पन्न होती है जब उल्लंघन होते हैं, तंत्र विफल हो जाता है। न तो तत्काल समाधान होता है और न ही कोई जानता है कि समाधान कब होगा। मुझे यकीन है कि आपके स्तर पर विचार-विमर्श होगा तो जागरूकता पैदा होगी।

हम एक न्यायसंगत वैश्विक नियामक व्यवस्था चाहते हैं जो समुद्री संसाधनों और गहरे समुद्र में समुद्री तल के सतत और न्यायसंगत दोहन के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र पर अधिकार का सम्मान करे।

मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन मैं संकेत दे सकता हूं कि यह प्रतिस्पर्धा का वास्तविक क्षेत्र होने जा रहा है क्योंकि नियामक व्यवस्था को अभी भी अंतिम बिंदु तक स्थापित करना बाकी है। यहां मौजूद विशेषज्ञ और विचारक इन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, एक तंत्र विकसित कर सकते हैं।

मुक्त और खुले समुद्रों को अवैध गतिविधियों और नशीले पदार्थों की तस्करी से रक्षा करनी चाहिए। नियम-आधारित शासन में समुद्री डकैती और समुद्री आतंकवाद की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिसमें देशों की क्षेत्रीय अखंडता और उनके विशेष आर्थिक क्षेत्र की सुरक्षा का सम्मान किया जाना चाहिए।

यह जानकारी आश्वस्त करती है कि हमारी नौसेना के पास हमारी लंबी तट रेखा और हमारे समुद्री हितों को सुरक्षित रखने के लिए कौशल, प्रेरणा, शक्ति और संसाधन हैं।

नौसेना के श्वेत वस्त्रधारी पुरुषों और महिलाओं को मेरा सैल्यूट। मैंने वहां देखा है कि उन्होंने उल्लेखनीय रूप से बेहतरीय प्रदर्शन किया है। जब मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल था तब मैंने वहां नौसेना के कौशल, शक्ति और प्रतिबद्धता का परीक्षण किया। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि जब हम चक्रवाती आपदा से गुज़रें, तो गहरे समुद्र में कोई जान न जाए और एक मजबूत तंत्र द्वारा नुकसान को कम किया जाए। उनको मेरा प्रणाम।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में एक प्रमुख केंद्र बनने के साथ, यह महत्वपूर्ण है कि यह क्षेत्र शांतिपूर्ण, स्थिर और विवादों से मुक्त रहे।

भारतीय नौसेना, समान विचारधारा वाले मित्र देशों की अन्य नौसेनाओं के साथ घनिष्ठ समन्वय करके, आम व्यक्ति को सुरक्षित करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है। भारत-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद जैसे मंच शांतिपूर्ण, नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था के लिए अकादमिक सहमति बनाने का अवसर प्रदान करते हैं।

मुझे विश्वास है कि तीन दिवसीय संवाद के छह व्यवसायिक सत्रों में आपके विचार-विमर्श से ऐसी आम सहमति बनाने में मदद मिलेगी।

आप जागरूकता का संचार करते हैं, थिंक टैंक की आपकी भूमिका एक वैश्विक व्यवस्था को सुरक्षित करने में बहुत मदद करेगी जो दुनिया में शांति का संरक्षण, रखरखाव लाएगी।

इस सामयिक मुद्दे पर इतने सम्मानित दर्शकों के साथ मुझे अपने विचार साझा करने का अवसर देने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं।

मैं फिर से कहता हूं कि मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं, आप सभी विशेषज्ञ हैं, आप डोमेन विशेषज्ञ हैं। मैं केवल स्थूल दृष्टिकोण रख सकता हूं, आपके पास सूक्ष्म दृष्टिकोण होगा, लेकिन मैं अपनी आशा, आशावाद और विश्वास व्यक्त कर सकता हूं कि यदि ऐसे विचारक और विशेषज्ञ सक्रिय रहेंगे, कार्यशील रहेंगे, जागरूकता का संचार करेंगे, ऐसी रिपोर्ट देंगे जिन पर कार्यपालिका और विधायिका, नागरिक और सैन्य व्यवस्था द्वारा विचार किया जा सकता है, तब हम वैश्विक शांति और व्यवस्था और सभी के लिए वैश्विक आर्थिक विकास का आश्वासन देते हैं।

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

जय भारत!

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एमजी/एआर/वीएल/एसके


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