विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

एक नए अध्ययन से सोलर क्रोमोस्फीयर में एकॉस्टिक शॉक्स के समय तापमान में अत्यधिक वृद्धि का पता चला है

Posted On: 15 JUN 2023 5:12PM by PIB Delhi

एक नए अध्ययन में यह पता चला  है कि क्रोमोस्फीयर में दिखने वाले  चमकदार कण  सौर प्लाज्मा में ऊंचाई  की ओर बढने  वाले आघात  के कारण उत्पन्न  होते हैं  और वे  पिछले आकलनों  की तुलना में  तापमान में अत्यधिक वृद्धि प्रदर्शित करते हैं। यह अध्ययन चमकदार सौर सतह और अत्यंत गर्म कोरोना के बीच स्थित क्रोमोस्फीयर के तापमान की प्रक्रिया की समझ को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।

क्रोमोस्फीयर सौर वातावरण के भीतर एक अत्यधिक सक्रिय परत है और ऊर्जा (विशेष रूप से गैर-तापीय ऊर्जा) को स्थानांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो कोरोना को गर्म करने के साथ ही ऐसी सौर पवनों को प्रज्ज्वलित करती है जो सौर वातावरण के आसपास के क्षेत्रों में बाहर की ओर निकली हुई हैं। हालांकि इस ऊर्जा का एक बड़ा अंश गर्मी और विकिरण में परिवर्तित हो जाता हैI वास्तव में इस ऊर्जा का केवल एक छोटा अंश ही कोरोना को गर्म करने और सौर पवनों को शक्ति देने के लिए प्रयुक्त हो पाता है।

निचली परतों से सौर वातावरण के उच्च क्षेत्रों में ऊर्जा कैसे प्रसारित होती है इसके लिए वर्तमान में व्यापक रूप से दो मान्य सिद्धांत हैं। पहले वाले में चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का पुनर्व्यवस्थापन शामिल है जो उच्च से निम्न क्षमता में परिवर्तित हो जाता है। वहीं दूसरे में ध्वनिक तरंगों सहित विभिन्न प्रकार की तरंगों का प्रसार शामिल है।

एकॉस्टिक शॉक वेव्स क्रोमोस्फीयर में होनेवाले वे हीटिंग इवेंट्स हैं जो प्राप्त चित्रों में क्षणिक चमक के रूप में दिखाई देते हैं और इन्हें कण (ग्रेन्स) कहा जाता है। इन ध्वनिक तरंगों में कितनी ऊर्जा होती है और यह क्रोमोस्फीयर को कैसे गर्म करती है, यह सौर एवं प्लाज्मा खगोल भौतिकी में मौलिक रुचि का विषय है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एस्ट्रोफिजिक्स- आईआईए में खगोलविदों के नेतृत्व में भारत, नॉर्वे और संयुक्त राज्य अमेरिका के सौर भौतिकविदों की एक टीम ने इन ध्वनिक आघातों की घटनाओं के दौरान तापमान में वृद्धि की मात्रा का निर्धारण किया है।

उच्चतम ज्ञात छायांकन (इमेजिंग), तरंगदैर्घ्य वेवलेंथ और टेम्पोरल रिज़ॉल्यूशन के अब तक देखे गए डेटा का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों ने पाया है कि औसतन तापमान वृद्धि लगभग 1100 के (केल्विन) और अधिकतम लगभग 4500 के (केल्विन) हो सकती है, जो पहले के अध्ययनों की तुलना में अनुमान से तीन गुना अधिक है। उन्होंने यह भी पाया कि जो तापमान में वृद्धि दिखाने वाली वायुमंडलीय परतें मुख्य रूप से ऊंचाई की ओर बढ़ती हैं।

एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (एएंडए) पत्रिका में प्रकाशन के लिए स्वीकार किए गए इस  अध्ययन में ध्वनिक आघातों के दौरान वायुमंडलीय गुणों का पता लगाने के लिए, टीम ने स्वीडिश सोलर टेलीस्कोप और भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) उपलब्ध कराए गए एक सुपरकम्प्यूटर पर इन कणों के उच्च गुणवत्ता वाले अध्ययन के लिए  एसटीआईसी  नामक अत्याधुनिक व्युत्क्रम (इन्वर्जन) वाले कूट (कोड) का उपयोग किया। इस टीम ने व्युत्क्रम (इनवर्जन) की प्रक्रिया को अनुकूलित करने के लिए मशीन लर्निंग तकनीकों का भी उपयोग किया है, जिससे गणना में काफी तेजी आई है।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के एक विद्या वाचस्पति (पीएचडी) छात्र एवं इस शोधपत्र के लेखक श्री हर्ष माथुर ने बताया कि "वे प्रक्रियाएँ जिनके द्वारा सूर्य के आंतरिक भाग से ऊर्जा को क्रोमोस्फीयर में पहुँचाया जाता है के साथ ही  कोरोना  भी एक पहेली बना रहता है" और "हम ध्वनिक आघातों के दौरान तापमान में वृद्धि और प्लाज्मा गति को निर्धारित करने में सक्षम हैं। उन्होंने आगे कहा कि कम ऊंचाई से उत्पन्न हुई इन ध्वनि तरंगों के कारण लगने  वाले ये आघात वर्णमंडल (क्रोमोस्फीयर) को गर्म कर सकते हैं। इसी अध्ययन के के सह-लेखक, और आईआईए से ही के नागराजू ने बताया, "ये आघात तरंगें (शॉक वेव्स) क्रोमोस्फीयर के प्लाज्मा घनत्व को बढ़ाती हैं और इसके परिणामस्वरूप, ऐसी घटनाओं की पहचान करने के लिए उपयोग किए गए अध्ययन एक विशिष्ट चमक जिन्हें कण (ग्रेन्स) कहा जाता है का प्रदर्शन करते हैं।"

इस अध्ययन के प्रमुख अन्वेषक, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के जयंत, जोशी ने बताया, "इस अध्ययन के दौरान गणना की गई तापमान वृद्धि पिछले अनुमानों की तुलना में 3 से 5 गुना अधिक है।" उन्होंने कहा, "हमारे परिणाम पहले के उन अध्ययनों की व्याख्या का समर्थन करते हैं कि ये ऊंचाई की और बढने वाले अर्थात उपरिगामी (अपफ्लोइंग) प्लाज्मा हैं।"

बेंगलुरु, भारत की इस भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) टीम में पीएचडी छात्र, श्री हर्ष माथुर, पीएच.डी. आईआईए से ही डॉ. के. नागराजू और डॉ. जयंत जोशी हैंI वहीं नॉर्वे और अमेरिका (यूएसए) की टीम में क्रमशः ओस्लो विश्वविद्यालय के प्रो. ल्यूक रूपे वैन डेर वोर्ट और लॉकहीड मार्टिन सोलर एंड एस्ट्रोफिजिक्स लेबोरेटरी के डॉ. सौविक बोस शामिल हैं।

प्रकाशन लिंक: https://www.aanda.org/10.1051/0004-6361/202244332

अधिक जानकारी के लिए, कृपया हर्ष माथुर से harsh.mathur@iiap.res.in पर संपर्क करें I

वर्णमंडल (क्रोमोस्फीयर)  में पंक्ति-वार तापमान, वेग और विक्षोभ (टेम्परेचर , वेलोसिटी  तथा टर्बुलेंस) की छवियां और वे समय (कॉलम) के साथ कैसे परिवर्तित होती   हैं। आकृतियां कण (ग्रेन्स)  के स्थान अर्थात ध्वनिक आघात (एकॉस्टिक sशॉक्स)  को इंगित करती है। ध्वनिक आघात  के स्थान पर  टी = 49.6, 57.8, और 66.1 के मान  से  तापमान में लगभग  2000 के (केल्विन)  की  वृद्धि होने के  साथ ही  और लगभग -3 किमी / सेकेंड का उपरिगामी -प्रवाह (अपफ्लो) हुआ है ।

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