जल शक्ति मंत्रालय

वर्षांत समीक्षा 2022 : जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय

Posted On: 03 JAN 2023 3:44PM by PIB Delhi

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय देश के जल संसाधनों के विकास और विनियमन के लिए नीतिगत दिशानिर्देश और कार्यक्रम तैयार करने लिए जिम्मेदार है। इसका उद्देश्य देश में पानी जैसे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन की निरंतर बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए जल संसाधनों का टिकाऊ विकास, गुणवत्ता का रखरखाव और कुशलतापूर्वक उपयोग सुनिश्चित करना है। जमीनी स्तर पर इन योजनाओं और नीतियों का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर विभाग ने कई नीतियां और योजनाएं लागू की गई हैं और दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। वर्ष 2022 में विभाग ने कई पहल की हैं, उपलब्धियां हासिल की हैं और विकास कार्य किए हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं...

  • 2022 में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत 50 परियोजनाएं पूरी की गईं और 2,056 करोड़ रुपये की 43 नई परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है
  • प्रधानमंत्री ने कोलकाता में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 30 दिसंबर 2022 को दूसरी राष्ट्रीय गंगा परिषद की अध्यक्षता की
  • प्रधानमंत्री ने 990 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से 20 एसटीपी और 612 किलोमीटर नेटवर्क सहित 7 सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का उद्घाटन किया
  • प्रधानमंत्री ने 1,585 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से एनएमसीजी के तहत विकसित करने के लिए 5 सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की आधारशिला रखी
  • 93,068 करोड़ रुपये की लागत के  साथ 2021-26 के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) से लगभग 22 लाख किसान लाभान्वित होंगे
  • 2016-17 से 2021-22 के दौरान प्राथमिकता वाली परियोजनाओं के एआईबीपी कार्यों के माध्यम से 34.63 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य की तुलना में 24.35 लाख हेक्टेयर (लगभग 70.31 प्रतिशत) क्षमता विकसित की गई है
  • गंगा क्वेस्ट 2022 में भारत के साथ-साथ 180 से ज्यादा देशों के 1.73 लाख से ज्यादा लोगों की सक्रिय भागीदारी देखने को मिली
  • राष्ट्रीय जल मिशन के तहत देश भर में जल संरक्षण में सुधार के लिए एक विशेष अभियान –कैच द रेन का शुभारम्भ किया गया
  • जल संसाधन, आरडी और जीआर विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत सिंचाई, उद्योग और घरेलू क्षेत्र में जल के कुशल उपयोग को प्रोत्साहन, विनियमन और नियंत्रण के लिए 20.10.2022 को ब्यूर ऑफ वाटर यूज इफिशिएंसी (बीडब्ल्यूयूई) की स्थापना की गई
  • 39,317 करोड़ रुपये के केंद्रीय समर्थन के साथ 44,605 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली पहली नदी जोड़ो परियोना केन-बेतवा लिंक परियोजना को मार्च, 2030 तक पूरा करने की योजना है
  • चार राज्यों कर्नाटक, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को शामिल करते हुए विश्व बैंक और एआईआईबी द्वारा सह वित्तपोषित डीआरआईपी फेज-2 को विश्व बैंक द्वारा जून 2022 को अधिसूचित कर दिया गया है
  • दिसंबर 2021 में बांध सुरक्षा अधिनियम के पारित होने के बाद, केंद्र सरकार ने 17 फरवरी 2022 को राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति का गठन किया और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एनडीएसए) की स्थापना की
  • एफएमपी/आरएमबी की स्थापना के बाद (मार्च 2022 तक), बाढ़ प्रबंधन एवं सीमा क्षेत्र कार्यक्रम (एफएमबीएपी) के एफएमपी घटक के तहत राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों को 6,686.79 करोड़ रुपये और एफएमबीएपी योजना के आरएमबीए घटक के तहत 1,095.16 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की गई
  • राष्ट्रपति ने समानता के साथ स्थायी विकास के लिए जल सुरक्षा के विषय पर 1-5 नवंबर 2022 तक होने वाले 7वें इंडिया वाटर वीक 2022 का शुभारम्भ किया

 

 

. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन :

दिसंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने नमामि गंगा मिशन को यूएन डिकेड की विश्व की 10 शीर्ष बहाली फ्लैगशिप पहलों में से एक के रूप में मान्यता दी है। नमामि गंगे को दुनिया भर से मिलीं 160 से ज्यादा प्रविष्टियों में से चुना गया था। नेशनल ज्योग्राफिक इंडिया के साथ सह-निर्मित बनाए गए वृत्तचित्र गंगाः रिवर फ्रॉम द स्काइज  को एशियन क्रिएटिव अवार्ड्स 2022 में तीन श्रेणियों- सर्वश्रेष्ठ वृत्त चित्र, सर्वश्रेष्ठ करंट अफेयर्स और सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक इतिहास या वन्य जीव कार्यक्रम; एशियन टेलीविजन अवार्ड्स 2022 में सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक इतिहास/ वन्य जीव कार्यक्रम के पुरस्कार मिले।

वर्ष 2022 में, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के तहत 2,056 करोड़ रुपये की कुल लागत से 43 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई, जिससे 32,898 करोड़ रुपये की लागत के साथ परियोजना की कुल संख्या 406 हो गई। इसी अवधि में एनएमसीजी ने 50 परियोजनाएं पूरी भी कर दीं, जिसके परिणामस्वरूप अभी तक कुल 224 परियोजनाएं पूरी हो गई हैं।

सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर के संबंध में जनवरी से नवंबर 2022 के बीच 910 एमएलडी शोधन क्षमता के निर्माण/ पुनर्वास और 427 किमी सीवर नेटवर्क बिछाने के लिए 41 एसटीपी सहित 25 परियोजनाओं को पूरा किया गया है। अब तक गंगा बेसिन में 5,270 एमएलडी शोधन क्षमता और 5,213 किमी सीवर नेटवर्क के निर्माण के लिए 176 सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।

एनएमसीजी ने गंगा क्वेस्ट, गंगा उत्सव आदि कई सार्वजनिक आउटरीच कार्यक्रम भी आयोजित किए गए,  जिनमें से सभी को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। गंगा क्वेस्ट 2022 में भारत के साथ-साथ 180 से अधिक देशों के 1.73 लाख से अधिक लोगों की सक्रिय भागीदारी देखी गई। आजादी का अमृत महोत्सव अभियान को समर्पित गंगा उत्सव 2022 ने गंगा नदी के राष्ट्रीय नदी के रूप में घोषित होने का उत्सव मनाया। अगस्त 2022 तक गंगा और उसकी सहायक नदियों के आसपास बसे शहरों और कस्बों में 75 अलग-अलग कार्यक्रम होंगे। इनमें हरिद्वार, मथुरा, दिल्ली, कानपुर, वाराणसी, पटना, भागलपुर, कोलकाता आदि 15 बड़े शहरों में 3 दिवसीय कार्यक्रम और 60 छोटे कस्बों/ शहरों में 1 दिवसीय कार्यक्रम शामिल हैं। साथ ही, कार्यक्रमों से स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा और अर्थ गंगा के तहत गतिविधियों जैसे घाट में हाट, घाट पर योग, गंगा आरती आदि को प्रमुखता मिलेगी।

2022 में अर्थ गंगा अवधारणा के विकास और प्रोत्साहन पर भी जोर दिया गया है, जिसके तहत कई पहल कराई गईं। इनकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं...

  • बेसिन यानी घाटी क्षेत्रों में 75 सहकार गंगा ग्रामों के विकास के लिए सहकार भारती के साथ एमओयू
  • गंगा नदी में 60 लाख आईएमसी और महशीर मछली को छोड़ना और 70,000 से ज्यादा हिल्सा का पालन
  • 16 अगस्त 2022 को 26 स्थानों पर जलज आजीविका मॉडल (जैव विविधता संवेदनशील पर्यटन-आधारित नाव सफारी) का शुभारंभ किया गया। इसे 75 स्थानों पर दोहराया जाएगा।
  • शहरी जल स्रोतों के स्वास्थ्य की स्थिति की निगरानी के लिए वेब आधारित टूल का शुभारम्भ

 

इस साल एनएमसीजी ने 17 से 21 अप्रैल 2022 तक हुए प्रतिष्ठित सिंगापुर वर्ल्ड वाटर वीक में भाग लिया और 17 अप्रैल 2022 को विकासशील देशों में सतत् अपशिष्ट जल प्रबंधन: नदी कायाकल्प में एक नवोन्मेषी भारतीय दृष्टिकोण पर एक सत्र का आयोजन किया। 24 अगस्त से 1 सितंबर 2022 तक एनएमसीजी ने स्टॉकहोम इंटरनेशन वाटर वीक 2022 में भी भाग लिया। 24 अगस्त 2022 को, एनएमसीजी ने जीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिटीज पर एक सत्र की मेजबानी की।

एनएमससीजी ने सी-गंगा के साथ मिलकर 5पी (लोग, नीति, योजना, कार्यक्रम और परियोजनाएं) के मानचित्रण व सम्मिलन पर जोर के साथ एक बड़े बेसिन में छोटी नदियों का उद्धार और संरक्षणकी विषय वस्तु पर आधारित 7वें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन की मेजबानी की।

राष्ट्रीय गंगा परिषद की दूसरी बैठक : प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 30 दिसंबर, 2022 को कोलकाता में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक की अध्यक्षता की। बैठक के दौरान, प्रधानमंत्री ने गंगा के किनारे विभिन्न रूपों में हर्बल खेती को बढ़ाने के उपायों पर जोर दिया। बैठक से पहले, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने नमामि गंगे और पेयजल और स्वच्छता परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया। प्रधानमंत्री ने 990 करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली 7 सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं (20 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और 612 किमी नेटवर्क) का उद्घाटन किया। ये परियोजनाएं पश्चिम बंगाल राज्य में 200 एमएलडी से अधिक की सीवेज उपचार क्षमता को बढ़ाएंगी। प्रधानमंत्री ने 1,585 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के तहत विकसित की जाने वाली 5 सीवरेज बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (8 सीवेज उपचार संयंत्र और 80 किलोमीटर नेटवर्क) की आधारशिला भी रखी। इन परियोजनाओं से पश्चिम बंगाल में 190 एमएलडी नई एसटीपी क्षमता जुड़ जाएगी।

प्रधानमंत्री ने कोलकाता में टॉलीनाला और गंगा की एक सहायक नदी आदि गंगा नदी के कायाकल्प के लिए परियोजना के महत्व के बारे में बताया। नदी की खराब स्थिति को देखते हुए, एनएमसीजी द्वारा 653.67 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ परियोजना को मंजूरी दी गई है, जिसमें 10 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी), 11.60 एमएलडी और 3.5 एमएलडी क्षमता के 3 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और आधुनिक सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण शामिल है। यह परियोजना शत-प्रतिशत केंद्र प्रायोजित है और केंद्र सरकार इस परियोजना का पूरा खर्च वहन करेगी।

प्रधानमंत्री श्री मोदी ने गंगा नदी के नौवहन जलमार्ग के रूप में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि भारत में 1,000 से अधिक जलमार्गों का निर्माण किया जा रहा है और उन्होंने यह भी कहा कि हमारा उद्देश्य आधुनिक क्रूज जहाजों को भारतीय नदियों में चलाना है। जलमार्गों के पर्याप्त विकास के साथ, भारत का क्रूज पर्यटन क्षेत्र एक नई भव्य यात्रा शुरू करने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने घोषणा करते हुए कहा कि 13 जनवरी, 2023 को दुनिया का सबसे लंबा रिवर क्रूज काशी से 2,300 किलोमीटर की यात्रा करके बांग्लादेश होते हुए डिब्रूगढ़ पहुंचेगा।

ख. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) – त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) :

सरकार ने 27.07.2016 को चरणबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए 77,595 करोड़ रुपये (केंद्रीय अंश- 31,342 करोड़ रुपये; राज्य का अंश- 46,253 करोड़ रुपये) की अनुमानित लागत से 99 प्राथमिक सिंचाई परियोजनाओं (और 7 चरण) के वित्तपोषण को स्वीकृति दी गई है। इन कार्यों में एआईबीपी और सीएडी कार्य शामिल हैं। केंद्रीय सहायता (सीए) राज्य अंश के लिए वित्तपोषण की व्यवस्था दीर्घकालिक सिंचाई कोष (एलटीआईएफ) के तहत नाबार्ड के माध्यम से की गई है। योजना के तहत सृजित की जाने वाली लक्षित सिंचाई क्षमता 34.63 लाख हेक्टेयर है। संबंधित राज्य सरकारों द्वारा 2016-17 से इन परियोजनाओं पर 56,271 करोड़ रुपये (मार्च 2022 तक) खर्च किए जाने की जानकारी दी गई है। जनवरी 2020 में, वित्त मंत्रालय ने केंद्र प्रायोजित योजना को 31.03.2021 तक जारी रखने की सूचना दी थी।

भौतिक प्रगति : 2016-17 से 2021-22 के दौरान प्राथमिकता वाली परियोजनाओं के एआईबीपी कार्यों के माध्यम से 34.63 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य की तुलना में लगभग 24.35 लाख हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता विकसित की गई है। 2022-23 के दौरान सृजित क्षमता फसली मौसम की समाप्ति के बाद ही उपलब्ध होगी।

पीएमकेएसवाई-एआईबीपी के तहत पूरी हुई परियोजना : चिह्नित 99 परियोनजाओं में से 50 प्राथमिकता वाली परियोजनाओं के एआईबीपी कार्यों को अभी तक पूरा कर लिया गया है। इनमें से, 2022-23 में अभी तक 4 परियोजनाएं के पूरा होने की सूचना दी गई है।

2021-26 के दौरान पीएमकेएसवाई एआईबीपी (सीएडीडब्ल्यूएम सहित) का कार्यान्वयन : भारत सरकार ने 93,068 करोड़ रुपये के प्रावधान के साथ 2021-26 के लिये प्रधानमंत्री कृषि संचाई योजना (पीएकेएसवाई) के क्रियान्वयन को मंजूरी दे दी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल पीएमकेएसवाई 2016-21 के दौरान सिंचाई विकास के उद्देश्य से राज्यों के लिए 37,454 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता और भारत सरकार द्वारा लिए गये ऋण को चुकाने के सम्बंध में 20,434.56 करोड़ रुपये मंजूर किये हैं। त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीबी), हर खेत को पानी (एचकेकेपी) और भूमि, जल व अन्य विकास घटकों को 2021-26 में जारी रखने को भी मंजूरी दी गई। एआईबीपी के अंतर्गत 2021-26 के दौरान कुल अतिरिक्त सिंचाई क्षमता को 13.88 लाख हेक्टेयर तक करना है। 60 निर्माणाधीन परियोजनाओं को पूरा करने पर ध्यान देने के अलावा, अतिरिक्त परियोजनाओं को भी शुरू किया जा सकता है, जिसमें उनसे सम्बंधित 30.23 लाख हेक्टेयर क्षेत्र विकास भी शामिल है। जनजातीय इलाकों और जल्दी सूखे का सामना करने वाले इलाकों की परियोजनाओं को शामिल करने के मानदंडों में ढील दी गई है। इसके साथ ही, योजना के तहत जल से संबंधित घटक के लिए 90 प्रतिशत केंद्रीय वित्तपोषण के साथ रेणुकाजी बांध परियोजना (हिमाचल प्रदेश) और लखवार बहुउद्देश्यीय परियोजना (उत्तराखंड) नामक दो राष्ट्रीय परियोजनाओं को भी शामिल किया गया है।

कार्यान्वयन में सुधार और अधिकतम लाभ के लिए कई नए उपाय और संशोधन किए गए हैं, जो इस प्रकार हैं :

  • एआईबीपी के तहत नई बड़ी / मध्यम सिंचाई (एमएमआई) परियोजनाओं के साथ-साथ राष्ट्रीय परियोजनाओं के वित्तपोषण को शामिल करना।
  • एआईबीपी के तहत एक परियोजना के समावेशन के लिए वित्तीय प्रगति की आवश्यकता कम कर दी गई है और सिर्फ 50 प्रतिशत भौतिक प्रगति पर विचार किया जाता है।
  • सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (डीपीएपी), जनजातीय, मरु विकास कार्यक्रम (डीडीपी), बाढ़ प्रवण, आदिवासी क्षेत्र, बाढ़ प्रवण क्षेत्र, वामपंथ प्रभावित क्षेत्र, कोरापुट, ओडिशा के बलांगीर और कालाहांडी (केबीके), महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा और मध्य प्रदेश एवं बुंदेलखंड क्षेत्र में 50 प्रतिशत या उससे ज्यादा कमान क्षेत्र वाली परियोजनाओं के साथ ही विस्तार नवीनीकरण आधुनिकीकरण (ईआरएम) परियोजनाओं और राष्ट्रीय औसत से कम शुद्ध सिंचाई वाले राज्यों के लिए भी उन्नत चरण (50 प्रतिशत भौतिक प्रगति) के मानदंड को कम कर दिया गया है।
  • देय केंद्रीय सहायता के लिए बाद के वर्षों में भी प्रतिपूर्ति की अनुमति है।
  • 90 प्रतिशत या ज्यादा भौतिक प्रगति के साथ परियोजना पूर्णता की अनुमति है।
  • परियोजनाओं की निगरानी के लिए ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) विकसित की गई है। 99 प्राथमिकता वाली परियोजनाओं में से प्रत्येक के लिए एक नोडल अधिकारी चिह्नित किया गया है जो एमआईएस में नियमित रूप से परियोजना की भौतिक और वित्तीय प्रगति को दर्ज करता है।
  • परियोजना के घटकों की जियो-टैगिंग के लिए जीआईएस आधारित एप्लिकेशन विकसित किया गया है। परियोजनाओं के नहर नेटवर्क के डिजिटलीकरण के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीकों का उपयोग किया गया है। इसके अलावा, 99 प्राथमिकता वाली परियोजनाओं की कमान में सालाना आधार पर रिमोट सेंसिंग के माध्यम से फसल क्षेत्र का आकलन किया जा रहा है।
  • भूमि अधिग्रहण (एलए) के मुद्दे के समाधान और जल परिवहन दक्षता के लिए भूमिगत पाइपलाइन (यूजीपीएल) के उपयोग को सक्रिय रूप से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इस मंत्रालय ने जुलाई, 2017 में पाइप्ड सिंचाई नेटवर्क की योजना और डिजाइन के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे।
  • किसानों द्वारा विकसित सिंचाई क्षमता का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए इन परियोजनाओं के क्षेत्र में कमान क्षेत्र विकास कार्यों के परी-पस्सू कार्यान्वयन की कल्पना की गई है। परी-पस्सू व्यवस्था में सभी हितधारकों के साथ एक समान व्यवहार होता है। भागीदारी सिंचाई प्रबंधन (पीआईएम) पर ध्यान केंद्रित करते हुए नए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। इसके अलावा, सीएडीडब्ल्यूएम पूर्णता की स्वीकृति के लिए जल उपयोगकर्ता संघ (डब्ल्यूयूए) को सिंचाई प्रणाली का नियंत्रण और प्रबंधन का हस्तांतरण आवश्यक शर्त बना दिया गया है।

 

पीएमकेएसवाई-एआईबीपी के तहत वित्तीय प्रगति इस प्रकार है :

(करोड़ रुपये में)

जारी धनराशि

2016-17

से 2021-22

2022-23

(अभी तक)

कुल

2021-22 में जारी धनराशि

केंद्रीय सहायता

15308

142

15450

1862

राज्य का अंश

28422

684

29106

2307

कुल

43730

826

44556

4169

 

महाराष्ट्र के लिए विशेष पैकेज : 2023-24 तक चरणों में विदर्भ और मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र में सूखा प्रवण जिलों में 83 सतही लघु सिंचाई (एसएमआई) परियोजनाओं और 8 प्रमुख / मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने के उद्देश्य से केंद्रीय सहायता प्रदान करने के लिए 18.07.2018 को एक विशेष पैकेज स्वीकृत किया गया था। 1.4.2018 को उक्त परियोजनाओं की कुल शेष लागत 13,651.61 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। कुल सीए 2017-18 के दौरान व्यय के लिए प्रतिपूर्ति सहित 3831.41 करोड़ होने का अनुमान है। इन योजनाओं के पूरा होने पर संभावित रूप से 3.77 लाख हेक्टेयर की क्षमता सृजित होगी। योजना के तहत अभी तक 1,935 करोड़ रुपये की सीए जारी की जा चुकी है। योजना के अंतर्गत 28 एसएमआई परियोजनाओं को महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा पूरा किए जाने की सूचना दी गई है। इन 28 परियोजनाओं की पूर्ण सिंचाई क्षमता 20,437 हेक्टेयर है। इन सभी परियोजनाओं के माध्यम से 2018-19 से 2021-22 के दौरान कुल 1,28,205 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता सृजित होने की सूचना दी गई है। 2022-23 के दौरान सृजित अतिरिक्त क्षमता के बारे में फसल के मौसम की समाप्ति के बाद ही जानकारी उपलब्ध होगी।

पोलावरम सिंचाई परियोजना : आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा 90 के अंतर्गत पोलावरम सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना के रूप में घोषित किया गया है, जो 1 मार्च 2014 को लागू हुआ था। अन्य लाभों के अलावा 2,454 मीटर मिट्टी-पत्थर से बने बांध और 1,128.4 मीटर लंबे स्पिलवे के साथ इस परियोजना का लक्ष्य पूर्वी गोदावरी, विशाखापत्तनम, पश्चिम गोदावरी और कृष्णा जिलों में 2.91 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा विकसित करना है। केंद्र सरकार परियोजना के सिंचाई घटक की 01 अप्रैल, 2014 तक बकाया लागत की 100 फीसदी धनराशि का भुगतान कर रही है। आंध्र प्रदेश सरकार भारत सरकार की ओर से परियोजना के सिंचाई घटक को लागू कर रही है। संशोधित लागत समिति (आरसीसी) रिपोर्ट के तहत परियोजना की अनुमोदित लागत 47,725.74 करोड़ रुपये (2017-18 मूल्य स्तर पर) है। राष्ट्रीय परियोजना घोषित होने के बाद से अब तक, पोलावरम सिंचाई परियोजना को लागू करने के लिए कुल 13,226.043 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। जल संसाधन विभाग, आंध्र प्रदेश सरकार से मिली सूचना के अनुसार, 15.12.2022 तक परियोजना कार्यों पर 20,744.23 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।

सीडब्ल्यूपीआरएस पोलावरम सिंचाई परियोजना के विभिन्न अंगों का भौतिक, गणितीय और डेस्क अध्ययन कराने के काम में शामिल है। कुशल ऊर्जा अपव्यय के लिए दबाव और स्टिलिंग बेसिन के लिए स्पिलवे की रूपरेखा का परीक्षण करके स्पिलवे और स्टिलिंग बेसिन के लेआउट को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से स्पिलवे के 2-डी भौतिक मॉडल (1:50 स्केल) का अध्ययन किया गया। स्पिलवे और पावर इनटेक के 3-डी व्यापक भौतिक मॉडल (1:140 स्केल) पर, संपर्क चैनल, गाइड बंध और स्पिल चैनल के डिजाइन लेआउट को अनुकूलित करने के लिए अध्ययन किए गए। इन अध्ययनों से स्पिलवे के सामने और स्पिलवे के डाउनस्ट्रीम एवं स्पिल चैनल और इसके आगे के डाउनस्ट्रीम में प्रवाह की स्थिति में सुधार होगा। नदी के व्यवहार के लिए गणितीय मॉडल अध्ययन और डायाफ्राम की दीवार के निर्माण से संबंधित परिमार्जन और सुरक्षा उपायों का आकलन किया गया। स्पिल चैनल में प्रवाह की स्थितियों का आकलन करने के लिए गणितीय मॉडल का अध्ययन किया गया। अन्य अध्ययनों में स्पिलवे कंक्रीट कूलिंग अध्ययन, एक स्पिलवे ब्लॉक का 3डी स्यूडो-डायनैमिक और 2-डी डायनैमिक स्ट्रेस विश्लेषण और पोलावरम कंक्रीट ग्रेविटी बांध का इंस्ट्रूमेंटेशन शामिल है।

. बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डीआरआईपी) चरण 2 और चरण 3 :

भारत 5,334 बड़े बांधों के साथ चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर आता है। इसके अलावा, वर्तमान में लगभग 411 बांध निर्माणाधीन हैं। कई हजार छोटे बांध भी हैं। ये बांध देश की जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारतीय बांध और जलाशय सालाना लगभग 300 अरब क्यूबिक मीटर पानी का भंडारण करके हमारे देश की आर्थिक और कृषि विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 अक्टूबर, 2020 को आयोजित बैठक में बाहरी सहायता प्राप्त बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डीआरआईपी) चरण 2 और चरण 3 को मंजूरी दी थी। लगभग 736 बांधों (बड़े बांधों का 14 प्रतिशत) के पुनर्वास के प्रावधान के साथ योजना में 19 राज्य और 3 केंद्रीय एजेंसियां शामिल हैं। दस (10) वर्षों की कार्यान्वयन अवधि के लिए 10,211 करोड़ रुपये का बजट परिव्यय तय किया गया है। यह योजना 10,211 करोड़ रुपये (चरण-2 : 5,107 करोड़ रुपये, चरण-3 : 5,104 करोड़ रुपये) के बजट परिव्यय और 10 साल की अवधि की है, जिसे दो चरणों में लागू किया जाएगा और प्रत्येक चरण 6 वर्ष की अवधि का होगा, इनमें 2 वर्ष का ओवरलैप होगा।

योजना के तहत फंडिंग पैटर्न 80:20 (विशेष श्रेणी के राज्यों), 70:30 (सामान्य श्रेणी के राज्यों) और 50:50 (केंद्रीय एजेंसियों) का है। योजना में विशेष श्रेणी के राज्यों (मणिपुर, मेघालय और उत्तराखंड) के लिए 90 प्रतिशत कर्ज धनराशि के केंद्रीय अनुदान का भी प्रावधान है।

योजना के चार घटक हैं ; (i) चयनित बांधों की सुरक्षा और परिचालन प्रदर्शन में स्थायी रूप से सुधार के लिए बांधों और संबंधित संपत्तियों का पुनर्वास; (ii) भाग लेने वाले राज्यों के साथ-साथ केंद्रीय स्तर पर बांध सुरक्षा से सम्बंधित संस्थागत व्यवस्था को मजबूत करना; (iii) बांधों के सतत संचालन और रखरखाव के लिए आकस्मिक राजस्व सृजन; और (iv) बजट प्रबंधन।

योजना के दूसरे चरण को दो बहु-पक्षीय वित्तपोषण एजेंसियों- विश्व बैंक और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) द्वाला मिलकर वित्तपोषण किया जा रहा है। 10 राज्यों और सीडब्ल्यूसी के संबंध में विश्व बैंक के साथ कर्ज समझौते और परियोजना समझौते को 12 अक्टूबर, 2021 से प्रभावी घोषित किया गया है। विश्व बैंक ने चार अतिरिक्त राज्यों (कर्नाटक, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) को भी जून 2022 में अधिसूचित कर दिया है। एआईआईबी ने 19 मई, 2022 को शेष 25 करोड़ डॉलर के लिए 10 मूल राज्यों के साथ कर्ज समझौता किया। 2,100 करोड़ रुपये की निविदाएं प्रकाशित हो गई हैं। लगभग 1,100 करोड़ रुपये के अनुबंध जारी कर दिए गए हैं। विभिन्न भागीदार कार्यान्वयन एजेंसियों ने योजना के तहत 392 करोड़ रुपये का व्यय किया है।

हीराकुंड बांध परियोजना : हीराकुंड बांध ओडिशा के संबलपुर से लगभग 15 किमी दूर महानदी नदी पर बनाया गया है। यह दुनिया का सबसे बड़ी कच्चा बांध है। यह भारत की स्वतंत्रता के बाद शुरू हुईं बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है।

सीडब्ल्यूपीआरएस हीराकुंड बांध, ओडिशा (डीआरआईपी के अंतर्गत) के अतिरिक्त स्पिलवेज के लिए हाइड्रोलिक मॉडल अध्ययनों में शामिल है। 42450 एम3/ए से 69,632 एम3/एस तक डिजाइन बाढ़ में संशोधन के कारण 27182 एम3/एस की अतिरिक्त बाढ़ को सुरक्षित रूप से गुजरने देने के लिए दो अतिरिक्त स्पिलवे के निर्माण का प्रस्ताव किया गया था। बाएं किनारे पर अतिरिक्त स्पिलवे और उनके घटकों के डिजाइन को अंतिम रूप देने के लिए 2-डी फिजिकल सेक्शनल (1:40 स्केल) और 3-डी फिजिकल कॉम्प्रिहेंसिव (1:100 स्केल) मॉडल अध्ययन किया जा रहा है, ताकि हीराकुंड बांध की निर्वहन क्षमता को बढ़ाया जा सके।

सीडब्ल्यूपीआरएस, बांध सुरक्षा समीक्षा पैनल (डीएसआरपी) के साथ महाराष्ट्र में कई बांधों का निरीक्षण कराने में शामिल है। अभी तक 50 से अधिक परियोजनाओं का निरीक्षण किया जा चुका है और इंस्ट्रूमेंटेशन, रिसाव नियंत्रण, मूल स्थान पर जांच, संरचनात्मक सुरक्षा की समीक्षा और उपचारात्मक उपायों के लिए मूल्यवान सुझाव दिए गए हैं। निरीक्षण की गई परियोजनाओं के लिए सीपीएमयू, डीआरआईपी प्रारूप के अनुसार विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई है। पुनर्वास उपाय करने से पहले, सीडब्ल्यूपीआरएस में उपयुक्त ग्राउट मिक्स डिजाइन, शॉटक्रीट मिक्स डिजाइन, एपॉक्सी-आधारित अंतः क्षेपण प्रणाली और कई परियोजनाओं से संबंधित मरम्मत सामग्री के लिए कई प्रयोगशाला अध्ययन किए जा रहे हैं। वर्तमान में रिसाव नियंत्रण और बांधों की मरम्मत/पुनर्वास से संबंधित 15 से अधिक अध्ययन प्रगति पर हैं।

. केंद्रीय जल आयोग :

सीडब्ल्यूसी ने सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए 2022 के दौरान 8 जलाशयों की आंतरिक सेडिमेंटेशन एसेसमेंट स्टडीज कराई है। माइक्रोवेव डाटा के उपयोग का फायदा यह है कि इमेज बादलों से प्रभावित नहीं होते हैं और हमें मानसून के दौरान भी एफआरएल जैसी ही जलाशयों की इमेज प्राप्त होती हैं। (जो जलाशयों के भरे होने के दौरान ऑप्टिकल इमेजरी से तुलनात्मक रूप से खासा मुश्किल होता है और ऐसा ज्यादातर मानसून के दौरान होता है और उस समय बादल ज्यादा होते हैं)। इन-हाउस अध्ययनों के अलावा, भारत की सभी प्रमुख नदी घाटियों को कवर करने वाले 40 जलाशयों के एक बैच को उपग्रह रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग करके अवसादन मूल्यांकन के लिए अगस्त, 2022 में आउटसोर्स किया गया है।

तीन परियोजनाओं उकाई; तवा; और पूर्वी कोसी नहर के लिए परियोजना के बाद के पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन के लिए अध्ययन 2022 के दौरान पूरा कर लिया गया है। श्रीशैलम और नागार्जुन सागर जलाशयों के लिए जलाशय संचालन नियम केडब्ल्यूडीटी-1 पुरस्कार, टीएसी द्वारा अनुमोदित नोट्स और अंतरराज्यीय समझौतों के अनुसार तैयार किए गए थे।

इंटरनेशनल कमीशन ऑन इरीगेशन एंड ड्रेनेज (आईसीआईडी) में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली राष्ट्रीय समिति भारतीय राष्ट्रीय सिंचाई एवं जल निकासी समिति (आईएनसीआईडी) सचिवालय सीडब्ल्यूसी के तहत आता है। आईएनसीआईडी सचिवालय ने आईसीआईडी के साथ भागीदारी में 1-5 नवंबर, 2022 को ग्रेटर नोएडा में हुए 7वें भारत जल सप्ताह के दौरान एक 1.5 दिवसीय सहायक कार्यक्रम- कॉनक्लेव ऑन वाटर सिक्योरिटी ऑफ इंडिया का आयोजन किया।

आईएनसीआईडी ने वर्ल्ड हेरिटेच इरीगेशन स्ट्रक्चर (डब्ल्यूएचआईएस) पुरस्कारों सहित आईसीआईडी के वार्षिक पुरस्कारों के लिए नामांकन आमंत्रित किए और आगे बढ़ाए। डब्ल्यूएचआईएस-2022 के लिए 4 नामांकन प्रोसेस किए गए और विचार के लिए आईसीआईडी को भेजे गए। 2022 में, भारत ने सबसे अधिक (चार) डब्ल्यूएचआईएस पुरस्कार जीते, जिनके नाम हैं : 1) बैतरणी प्रणाली, ओडिशा, 2) लोअर एनीकट, तमिलनाडु, 3) रुशिकुल्या सिंचाई प्रणाली, और 4) सर आर्थर कॉटन बैराज, आंध्र प्रदेश।

आईसीआईडी में 24वीं कांग्रेस में भागीदारी

3-10 अक्टूबर, 2022 के दौरान एडीलेड, ऑस्ट्रेलिया में इंटरनेशनल कमीशन ऑन इरीगेशन एंड ड्रेनेज (आईसीआईडी) की 24वीं कांग्रेस और 73वीं इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव काउंसिल (आईईसी) का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में माननीय जल शक्ति मंत्री और सीडब्ल्यूसी के अधिकारियों ने भाग लिया। आयोजन के दौरान आईएनसीआईडी के स्टाल का प्रदर्शन किया गया। इसके अलावा, जल संसाधनों से संबंधित मुद्दों पर विदेशी प्रतिनिधियों के साथ बैठकें की गईं।

अगला आईसीआईडी कार्यक्रम यानी आईसीआईडी की 25वीं कांग्रेस और आईसीआईडी की 75वीं आईईसी 1-8 नवंबर, 2023 के दौरान विशाखापत्तनम (विजाग), आंध्र प्रदेश में होना प्रस्तावित है। उक्त कार्यक्रम की आयोजन समिति के अध्यक्ष भारत सरकार के सदस्य (डब्ल्यूपीएंडपी) और पूर्व अतिरिक्त सचिव हैं। उन्होंने आईएनसीआईडी के अन्य प्रतिनिधियों के साथ सम्मेलन के स्थल का चयन और स्टडी टूर जैसे अन्य संबंधित कामों के लिए विशाखापत्तनम का दौरा किया और आंध्र प्रदेश सरकार के अधिकारियों के साथ चर्चा की। इस कार्यक्रम में दुनिया भर से लगभग 1000 से ज्यादा प्रतिनिधियों के आने की उम्मीद है। आईएनसीआईडी ने एनडब्ल्यूए, पुणे के सहयोग से डब्ल्यूएएलएमआई मीट-2022 नाम की एक वेबिनार श्रृंखला का आयोजन किया, जिसमें विभिन्न डब्ल्यूएएलएमआई/ आईएमटीआई की गतिविधियों के साथ-साथ उनसे जुड़े मुद्दों, समाधानों और बाधाओं पर चर्चा की गई।

भारत-ईयू जल साझेदारी (आईईडब्ल्यूपी):

भारत-ईयू जल साझेदारी (आईईडब्ल्यूपी) भारत सरकार के स्वच्छ गंगा कार्यक्रम सहित जल मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने के लिए 13वें ईयू-भारत शिखर सम्मेलन के दौरान 30 मार्च 2016 को भारत और ईयू द्वारा स्वीकार की गई जल पर संयुक्त घोषणा का परिणाम है। समानता, आदान प्रदान और परस्पर लाभ के आधार पर जल प्रबंधन के क्षेत्र में भारत और ईयू की तकनीक, वैज्ञानिक और प्रबंधन क्षमताओं को मजबूती देने के उद्देश्य से अक्टूबर, 2016 में भारत-ईयू जल साझेदारी पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे।

भारत-ईयू जल साझेदारी (आईईडब्ल्यूपी) का पहला चरण 30 अक्टूबर 2020 को संपन्न हुआ और तीन साल की अवधि का दूसरा चरण 1 नवंबर 2020 से शुरू हो गया है। आईईडब्ल्यूपी का दूसरा चरण प्रगति पर है। आईईडब्ल्यूपी ने 27 अक्टूबर, 2022 को नई दिल्ली में जल सहयोग पर 5वें भारत यूरोपीय संघ जल मंच का आयोजन किया। 5वां भारत-ईयू जल मंच भारत और ईयू में जल के क्षेत्र में अच्छी प्रक्रियाओं, नियामकीय रणनीतियों, व्यावसायिक समाधानों और शोध एवं नवाचार के अवसरों पर विचारों के आदान प्रदान के उद्देश्य से भारत और ईयू एवं ईयू के सदस्य देशों के हितधारकों को एक मंच पर लेकर आया।

इसके अलावा, भारत-ईयू जल साझेदारी (आईईडब्ल्यूपी) के दूसरे चरण के तहत तापी नदी बेसिन प्रबंधन (आरबीएम) योजना के विकास के लिए गतिविधियां शुरू की गई हैं।

भारत डेनमार्क सहयोग :

डेनमार्क के साथ सहयोग के तहत, डेनमार्क के प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात के बाद भारतीय प्रधानमंत्री की घोषणा के क्रम में पणजी में स्मार्ट सिटी लैब की तर्ज पर वाराणसी में सेंटर फॉर एक्सीलेंस फॉर स्मार्ट वाटर रिसोर्सेज मैनेजमेंट (सीओईएसडब्ल्यूएआरएम) और स्मार्ट लैब फॉर क्लीन रिवर्स की स्थापना का प्रस्ताव किया गया।

नतीजतन, दोनों देशों के बीच क्रमशः 03.05.2022 और 12.09.2022 को आशय पत्र और समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इसके साथ ही, डेनमार्क पक्ष के साथ परामर्श से दो अलग-अलग नोट्स अर्थात स्मार्ट लैब और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना का मसौदा तैयार किया गया था।

सिंचाई आधुनिकीकरण कार्यक्रम के लिए समर्थन (एसआईएमपी) :

सिंचाई आधुनिकीकरण कार्यक्रम के लिए समर्थन (एसआईएमपी) जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग द्वारा देश में बड़ी/ मध्यम सिंचाई (एमएमआई) परियोजनाओं के आधुनिकीकरण के लिए एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के तकनीक सहयोग (टीए) के साथ शुरू की गई एक नई पहल है। कार्यक्रम का उद्देश्य जल उपयोग दक्षता में सुधार करना, फसल जल उत्पादकता में वृद्धि करना और अंतत: राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रक्रियाओं के माध्यम से परियोजना के कमांड क्षेत्र में किसानों की आय में वृद्धि करना है। कार्यक्रम के समग्र कार्यान्वयन और प्रबंधन के लिए, राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय सलाहकारों द्वारा समर्थित मुख्य अभियंता (पीओएमआईओ), सीडब्ल्यूसी के तहत एक केंद्रीय सिंचाई आधुनिकीकरण कार्यालय (सीआईएमओ) की स्थापना की गई है।

एसआईएमपी को 4 चरणों में किए जाने का प्रस्ताव है। एसआईएमपी का पहला चरण 31.12.2021 को पूरा हो गया, जिसके तहत 14 राज्यों/ 2 केंद्र शासित प्रदेशों से मिले 57 प्रस्तावों में से सिंचाई आधुनिकीकरण योजनाएं (आईएमपी) तैयार करने के लिए परियोजनाओं के पहले बैच के तहत समावेशन के लिए 4 एमएमआई परियोजनाओं को छांटा गया है।

उसके बाद, दूसरे चरण के परामर्शकों (टीम लीटर और डिप्टी टीम लीडर) को जोड़कर एसआईएमपी का दूसरा चरण शुरू किया गया है। सीडब्ल्यूसी और एडीबी ने संबंधित परियोजनाओं के मुख्य अभियंताओं और राज्य के डब्ल्यूआरडी के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक संयुक्त परामर्श बैठक आयोजित की जिसमें चरण-2 की कार्ययोजना पर विस्तार से चर्चा की गई है और राज्यों के विचार लिए गए हैं।

आईएमपी के पहले चरण की तैयारी के पहले कदम के रूप में, एफएओ द्वारा विकसित आरएपी-एमएएसएससीओटीई (त्वरित मूल्यांकन प्रक्रिया-मानचित्रण प्रणाली और नहर संचालन तकनीकों के लिए सेवाएं) कार्यशालाओं का चरण-2 के परामर्शकों के साथ हर परियोजना क्षेत्र में आयोजन किया जा रहा है। इस तरह की पहली कार्यशाला वाणी विलास सागर परियोजना (कर्नाटक) के लिए 05-16 दिसंबर 2022 के दौरान सफलतापूर्वक आयोजित की गई है।

जल संसाधनों से संबंधित प्रकाशन : - तीन प्रकाशन प्रकाशित किए जा चुके हैं

  • प्रकाशन मौजूदा बड़ी और मध्यम परियोजना- 2021 की स्थिति का संकलन नवंबर 2022 में जारी किया गया।
  • प्रकाशन जल क्षेत्र एक नजर में-2021 नवंबर 2022 में जारी किया गया।
  • प्रकाशन भारत में सार्वजनिक प्रणाली में जल का मूल्य निर्धारण-2022 नवंबर 2022 में जारी किया गया।

वर्ष 2022 में उपग्रह रिमोट सेंसिंग का उपयोग कर कुल 902 हिमनद झीलों और जल स्रोतों की निगरानी की गई है। यह गतिविधि हर महीने जून से अक्टूबर तक की जाती है। इनमें से 544 हिमनद झीलें हैं और 358 जल स्रोत हैं। एनआरएससी 2009 की सूची के अनुसार 10 हेक्टेयर के आकार तक की सभी हिमनद झीलें और एसडीसी द्वारा चिह्नित 10 हेक्टेयर से भी छोटे आकार की कुछ और हिमनद झीलों को निगरानी के लिए शामिल किया गया है।

वर्ष 2022 के दौरान, 2 नए बाढ़ पूर्वानुमान स्टेशन तेलंगाना और मध्य प्रदेश राज्यों जोड़े गए हैं। 1 मई से 14 दिसंबर 2022 की अवधि के दौरान, 11,511 बाढ़ पूर्वानुमान (6476 स्तर और 4336 अंतर्वाह) जारी किए गए थे, जिनमें से 10,812 सटीकता की सीमा के भीतर थे। अत्यधिक बाढ़ की स्थिति के दौरान दैनिक बाढ़ स्थिति रिपोर्ट और विशेष सलाह भी जारी की गईं। 554 रेड और 618 ऑरेंज बुलेटिन भी क्रमशः प्रति घंटे और 3 घंटे के आधार पर जारी और अपडेट किए गए। बाढ़ की सभी जानकारियां एफएफ वेबसाइट, सीडब्ल्यूसी के बाढ़ पूर्वानुमान के ट्विटर और फेसबुक पेजों पर अपडेट की गई थी।

आईपी ​​पते (https://120.57.99.138) के स्थान पर विशिष्ट डोमेन नाम ((https://aff.india-water.gov.in”)) के साथ सभी बाढ़ स्तर और अंतर्वाह पूर्वानुमान स्टेशनों के लिए 5 दिनों की स्वचालित ऑनलाइन बाढ़ सलाह दी गई थी।

साइबर सुरक्षा, मॉडल का समय पर चलना, निर्बाध बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए एनडब्ल्यूआईसी द्वारा प्रदान किए गए भौतिक सर्वर से 5 दिनों की सलाह को सुरक्षित क्लाउड सर्वर में स्थानांतरित कर दिया गया है। 5 दिनों की सलाह के आधार पर दैनिक बाढ़ स्थिति रिपोर्ट सह परामर्श में चेतावनी स्तर से ऊपर होने की संभावना वाले स्टेशनों के संबंध में अगले पांच दिनों के लिए बाढ़ की स्थिति पर एक पैरा जोड़ा गया था। एनसीएमआरडब्ल्यूएफ के 23-सदस्यीय पूर्वानुमान के आधार पर पूर्वानुमान को अपनाया गया है। 5 दिनों के बेहतर बाढ़ परामर्श के लिए पूर्वाग्रह सुधार की तकनीक भी अपनाई गई। आईएमडी, सीडब्ल्यूसी और डीएचएम नेपाल द्वारा देखे गए रियल टाइम डेटा के पास स्टेशन से तीन घंटे की ग्रिड वर्षा से संबंधित उत्पाद विकसित किया गया था। इसे मानसून सीजन 2023 के दौरान राज्य सरकारों और परियोजना प्राधिकरणों द्वारा देखे गए समान डेटा को शामिल करने का प्रस्ताव है।

बेहरमपोर और भोपाल में 2 और सीडब्ल्यूसी प्रयोगशालाओं के लिए एनएबीएल से मान्यता हासिल हो गई। इसके साथ ही 23 सीडब्ल्यूसी प्रयोगशालाओं में से 19 को एनएबीएल की मान्यता मिल चुकी है। सीडब्ल्यूसी की स्तर-2 जल गुणवत्ता प्रयोगशालाओं के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं नाम की रिपोर्ट अक्टूबर, 2022 में प्रकाशित की गई।

राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना (एनएचपी) के तहत सीडब्ल्यूसी गतिविधियां :

इसकी उपलब्धियों में बिहार राज्य में फरक्का बैराज के कारण गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में बाढ़ और गाद के मुद्दे पर अध्ययन का पूरा करना, सात नदी बेसिन में तलछट दर और तलछट प्रवाह के आकलन के लिए भौतिक आधारित गणितीय मॉडल के लिए विकास के चरण का परामर्श कार्य यानी पहले चरण को पूरा करना शामिल है। यमुना, नर्मदा और कावेरी बेसिनों के लिए विस्तारित जल विज्ञान संबंधी भविष्यवाणी (बहु सप्ताह का पूर्वानुमान) के उद्देश्य से परामर्श कार्य के लिए विकास (चरण -1) के 70 प्रतिशत कार्य को पूरा कर लिया गया है। 20 जलाशयों के लिए जल विज्ञान संबंधी सर्वेक्षण का उपयोग करके जलाशय अवसादन अध्ययन को पूरा कर लिया गया। जलीय मौसम की निगरानी के आधुनिकीकरण के प्रयास के तहत 50 अतिरिक्त एडीसीबी और 19 गैर अनुबंधित डिस्चार्ज मीजरिंग सिस्टम या विलॉसिटी रडार सिस्टम (वीआरएस) की खरीद के लिए कार्य का आवंटन कर दिया गया है। 40 एडीसीपी और 5 वीआरएस की आपूर्ति पहले ही की जा चुकी है और संबंधित स्थलों पर लगा दिए गए हैं।

गंगा बेसिन में बाढ़ पूर्वानुमान सहित प्रारंभिक बाढ़ चेतावनी प्रणालीके परामर्श कार्य के लिए 13 करोड़ के अनुबंध मूल्य पर एनआरएससी से डीईएम की खरीद पूरी कर ली गई है; “गंगा बेसिन की एकीकृत जलाशय संचालन प्रणाली के लिए रियल टाइम के निकट निर्णय समर्थन प्रणाली के विकास के लिए परामर्शी सेवाओं के लिए परामर्श का काम सौंप दिया गया है। सीडब्ल्यूसी द्वारा नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए), भोपाल के लिए 44 स्थलों पर और अरुणाचल प्रदेश में जल संसाधन विभाग, अरुणाचल प्रदेश सरकार के लिए 33 स्थलों पर रियल टाइम डेटा एक्विजिशन सिस्टम (आरटीडीएएस) की सफलतापूर्वक स्थापना, परीक्षण और चालू करने का काम कर दिया गया है। जल विज्ञान मौसम संबंधी निगरानी के आधुनिकीकरण के प्रयास के तहत सीडब्ल्यूसी के क्षेत्रीय कार्यालयों के लिए 50 अतिरिक्त एडीसीपी और 19 विलॉसिटी रडार प्रणाली की खरीद; एनडब्ल्यूए पुणे में प्रशिक्षण सुविधाओं का आधुनिकीकरण और अत्याधुनिक उपकरण प्रदान करके जल गुणवत्ता निगरानी गतिविधि के आधुनिकीकरण का काम कर लिया गया है।

2021 के दौरान गंगा बेसिन में जलप्लावन पूर्वानुमान सहित प्रारंभिक बाढ़ चेतावनी प्रणाली के लिए परामर्श के तहत जलीय मौसम विज्ञान और जल विज्ञान संबंधी डेटा का संग्रह और विश्लेषण, 500 स्थानों पर नदी क्रॉस-सेक्शन सर्वेक्षण और हाई रिजॉल्युशन डीईएम (50 प्रतिशत) के साथ सर्वेक्षण किए गए क्रॉस-सेक्शन के एकीकरण से संबंधित कार्य पूरे किए गए हैं। बाढ़ पूर्वानुमान के लिए 1डी और 1डी-2डी युग्मित मॉडल का विकास प्रगति पर है।

87 जलाशयों के लिए जल विज्ञान संबंधी सर्वेक्षण का उपयोग करके जलाशय अवसादन अध्ययन- चरण- II” की गैर-परामर्शी सेवाओं के लिए अनुबंध जारी करने का काम अंतिम चरण में है।

तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (सीएमआईएस) : तमिलनाडु, केरल और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (सीएमआईएस) को लागू करने की जिम्मेदारी आईआईटी मद्रास, चेन्नई को सौंपी गई है और सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एक तटीय डेटा संग्रह स्थल बनाने के लिए सीडब्ल्यूसी, आईआईटी मद्रास और संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी) के बीच एक त्रिपक्षीय एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस परियोजना के तहत तीन अदद तटीय डेटा संग्रह स्थलों को बनाने काम पूरा हो चुका है। साथ ही ये स्थल 31.05.2021 को सीडब्ल्यूसी को हस्तांतरित कर दिए गए हैं। सीडब्ल्यूसी द्वारा तीन डेटा संग्रह स्थलों (देवनारी-तमिलनाडु, कराईकल-पुडुचेरी और पोन्नानी-केरल) पर डेटा संग्रह गतिविधियां कराई जा रही हैं।

दो स्थलों, महाराष्ट्र (उत्तरी क्षेत्र) और गुजरात (दक्षिणी क्षेत्र) में प्रत्येक जगह पर एक-एक, पर तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (सीएमआईएस) के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सीडब्ल्यूपीआरएस, पुणे को सौंपी गई है और सीडब्ल्यूसी, सीडब्ल्यूपीआरएस और संबंधित राज्यों (गुजरात और महाराष्ट्र) ने तीन साल के लिए एक त्रिपक्षीय एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। इस परियोजना के तहत दो तटीय डेटा संग्रह स्थलों (सतपति-महाराष्ट्र, नानी दंती मोती दंती-गुजरात) को बनाने का काम चल रहा है।

वाटर और ग्रैब सैम्पलर को छोड़कर ज्यादातर उपकरण खरीदने का काम पूरा कर लिया गया है। डीडब्ल्यूआरबी इकाइयों को छोड़कर सभी खरीदे गए उपकरण डेटा संग्रह के लिए स्थापित कर दिए गए हैं या उपयोग किए जा रहे हैं। बीमा प्राप्त करने के बाद डीडब्ल्यूआरबी की स्थापना की योजना बनाई गई है। मौसम विज्ञान, बाथमीट्रिक, समुद्रतट/तटीय सर्वेक्षण, नदी निस्सरण डेटा अवलोकन किया जा रहा है। परियोजना के पूरा होने की अवधि को दो साल के लिए यानी जून, 2024 तक बढ़ा दी गई है।

तीन जगहों, गोवा में 2 और दक्षिणी महाराष्ट्र में 1, पर सीएमआईएस का कार्यान्वयन एनआईओ, गोवा को सौंपा गया है और सीडब्ल्यूसी, एनआईओ व संबंधित राज्यों (गोवा और महाराष्ट्र) के बीच तीन साल के लिए एक त्रिपक्षीय एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस परियोजना के तहत तीन अदद तटीय डेटा संग्रह स्थलों (तारखली-महाराष्ट्र, बेनौलियम-गोवा, बागा-गोवा) को बनाने का काम जारी है।

डीडब्ल्यूआरबी, टाइड गेज और सीटीडी को छोड़कर अधिकांश उपकरणों की खरीद पूरी कर ली गई है। समुद्र तट प्रोफाइल सर्वेक्षण, तट रेखा परिवर्तन, तट पर और अपतटीय तलछट, पवन, समुद्री धारा, नदी के डेटा और बाथमीट्री सर्वेक्षण कार्य जैसे मापदंडों के लिए डेटा संग्रह कार्य प्रगति पर है। परियोजना के पूरा होने की अवधि को दो साल की अवधि यानी नवंबर, 2024 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

जलाशयों की निगरानी : केंद्रीय जल आयोग साप्ताहिक आधार पर देश के जलाशयों की भंडारण की स्थिति की निगरानी कर रहा है और हर गुरुवार को बुलेटिन जारी कर रहा है। केंद्रीय जल आयोग की निगरानी वाले जलाशयों की संख्या 10 बढ़ गई और यह वर्तमान में 143 हो गई। इस प्रकार कुल भंडारण क्षमता 177.464 हो गई, जो देश की अनुमानित 257.812 बीसीएम लाइव भंडारण क्षमता की 68.63 प्रतिशत है। इन जलाशयों में से 46 जलाशयों में 60 मेगावाट से अधिक की स्थापित क्षमता वाली जलविद्युत इकाइयां हैं। साप्ताहिक बुलेटिन में पिछले वर्ष के इसी दिन की तुलना में वर्तमान भंडारण स्थिति और पिछले 10 वर्षों का उसी दिन का औसत शामिल होता है।

साप्ताहिक बुलेटिन को प्रधानमंत्री कार्यालय, नीति आयोग, जल शक्ति मंत्रालय, विद्युत मंत्रालय, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग और संबंधित राज्यों के जल संसाधन विभागों के साथ साझा किया जाता है और सीडब्ल्यूसी की वेबसाइट पर भी अपलोड किया जाता है। इस साप्ताहिक बुलेटिन को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के क्रॉप वेदर वॉच ग्रुप (सीडब्ल्यूडब्ल्यूजी) के साथ भी साझा किया जाता है, जिसके सीडब्ल्यूसी के प्रतिनिधि भी सदस्य हैं। सीडब्ल्यूडब्ल्यूजी की बैठक हर शुक्रवार को देश भर में कृषि गतिविधियों की समीक्षा करने और संकट की स्थिति में राज्यों को उपचारात्मक उपाय सुझाने के लिए बुलाई जाती है।

राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना (एनएचपी) के तहत सीडब्ल्यूपीआरएस गतिविधियां : एनएचपी के अंतर्गत सीडब्ल्यूपीआरएस प्रस्ताव में अत्याधुनिक हाइड्रो-एमईटी-डब्ल्यूक्यू इंस्ट्रुमेंट्स टेस्टिंग कैलिब्रेशन एंड सर्टिफाइंग फैसिलिटी  की स्थापना, हाइड्रोमेट इंस्ट्रुमेंटेशन पर आईए का प्रशिक्षण और समर्थन, बाथीमीट्री सर्वेक्षण आदि, राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना के ढांचे के भीतर मौजूदा शोध सुविधाओं को मजबूत बनाना, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, क्षमता विकास, विशेष तकनीक समर्थन के साथ उद्देश्य आधारित अध्ययन आदि शामिल हैं।

परियोजना की शुरुआत से 30.11.2022 तक कुल खर्च 15.56 करोड़ रुपये रहा है। एनएचपी के तहत अब तक की गई प्रमुख गतिविधियां इस प्रकार हैं। चयनित हाइड्रो-मेट-डब्ल्यूक्यू उपकरणों के लिए सीडब्ल्यूपीआरएस में अत्याधुनिक परीक्षण अंशांकन और प्रमाणन सुविधा (टीसीसीएफ) की स्थापना प्रगति पर है।

एनएचपी के तहत पूरी की गई परीक्षण/ कैलिब्रेशन से संबंधित प्रमुख गतिविधियों में शामिल हैं:

  1. करंट मीटर ट्रॉली : 1) करंट मीटर 2) एडीसीपी 3) साइड लुकिंग सेंसर 4) फ्लो ट्रैकर आदि के कैलिब्रेशन और प्रदर्शन के परीक्षण के लिए करंट मीटर ट्रॉली का 7.5 मीटर/सेकंड तक अपग्रेडेशन।
  2. स्वचालित वेदर स्टेशन : रिफरेंस एडब्ल्यूएस, फील्ड टेस्टिंग सेटअप की स्थापना
  3. एडब्ल्यू सेंसर के लिए फील्ड टेस्टिंग सेटअप (फील्ड कैलिब्रेटर) की स्थापना।
  4. परीक्षण और प्रशिक्षण के उद्देश्य से रिफरेंस भूमिगत वाटर स्टेशन और फील्ड कैलिब्रेटर की स्थापना।
  5. पीएच जैसे विभिन्न मापदंडों, इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी, टर्बिडिटी, डीओ, पानी का तापमान और पानी की गहराई आदि के लिए जल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना।
  6. आईए के प्रशिक्षण के उद्देश्य से रिफरेंस टेलीमेट्री- जीएसएम/ जीपीआरएस सेटअप की स्थापना।
  7. आईए के प्रशिक्षण के उद्देश्य से रिफरेंस रिफरेंस डेटा लॉगर सेटअप की स्थापना।
  8. आईए के प्रशिक्षण के उद्देश्य से रिफरेंस सरफेस वाटर लेवल स्टेशन की स्थापना।
  9. पूर्वोत्तर में तीन बांधों सिंगदा जलाशयस खुगा जलाशय, खोउपुम जलाशय के बाथीमीट्री सर्वेक्षण का काम पूरा कर लिया गया है।

तकनीक सहायता :

  1. झारखंड बांध यानी ध्रुव, तेनुघाट, गेतालुसांडिस के बाथीमेट्री सर्वेक्षण का काम प्रगति पर है।
  2. सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग के उपयोग से झारखंड बांध यानी सूर्योदी, तेनुघाट, गेतालुसांड के बाथीमेट्री सर्वेक्षण का काम प्रगति पर है।
  3. सीडब्ल्यूपीआरएस के वैज्ञानिकों ने हाइड्रो-मेट-डब्ल्यूक्यू उपकरणों के विनिर्देशों को अंतिम रूप देने और जरूरत पड़ने पर विस्तारित तकनीकी मार्गदर्शन के लिए विभिन्न केंद्रीय और राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों की सहायता की है।
  4. सीडब्ल्यूपीआरएस ने राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा विभिन्न स्थानों पर स्थापित विभिन्न हाइड्रो-मेट-डब्ल्यूक्यू उपकरणों का निरीक्षण किया है।
  5. CWPRS ने हाइड्रो-मेट आरटीडीएएस इंस्ट्रूमेंटेशन के लिए विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम कराए हैं।

इन गतिविधियों पर काम जारी है; एडब्ल्यूएस सेंसर के परीक्षण/कैलिब्रेशन के लिए लैब टेस्टिंग सुविधा की स्थापना, जीडब्ल्यू लेवल सेंसर के लिए लैब टेस्टिंग/कैलिब्रेशन सेटअप की स्थापना, टेलीमेट्री- जीएसएम/जीपीआरएस के लिए लैब टेस्टिंग/कैलिब्रेशन सेटअप की स्थापना, डेटा लॉगर के लिए लैब टेस्टिंग/कैलिब्रेशन सेटअप की स्थापना

ङ. अटल भूजल योजना (अटल जल)

अटल भू-जल योजना (अटल जल) 6,000 करोड़ रुपये की लागत वाली भारत सरकार की एक केंद्रीय योजना है। इसके तहत देश में पानी की कमी का सामना करने वाले सात राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 80 जिलों में 229 प्रशासनिक ब्लॉकों / तालुकों की 8221 पानी की कमी वाली ग्राम पंचायतों में पानी के संकट वाले क्षेत्रों में टिकाऊ भूजल प्रबंधन के लिए सामुदायिक भागीदारी और मांग आधारित उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। विश्व बैंक से आंशिक रूप से वित्त पोषित इस योजना का माननीय प्रधानमंत्री ने 25 दिसंबर 2019 को उद्घाटन किया था और इसे 1 अप्रैल 2020 से अगले 5 वर्ष की अवधि के लिए लागू किया गया है।

इस अनूठी योजना का उद्देश्य जल संसाधनों के प्रबंधन में राज्यों की क्षमता को बढ़ाना और उनकी दीर्घकालिक स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए नीति निर्माण के ऊपर से नीचे (टॉप-डाउन) और नीचे-ऊपर (बॉटम-अप) दृष्टिकोणों को मिलाते हुए स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ाना है। यह मांग प्रबंधन पर जोर देने के साथ-साथ भूजल उपलब्धता को बेहतर बनाने संबंधी उपायों को लागू करने के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के एकीकरण पर भी विचार करता है। इसमें उपलब्ध जल संसाधनों के उचित उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए समुदाय के व्यवहार में बदलावों को भी शामिल किया जाता है।

अटल भूजल योजना शुरू होने से भूजल प्रबंधन के लिए सरकार की नीति में बदलाव आया है। इसमें योजना निर्माण, क्रियान्वयन और योजना के कार्यों की निगरानी में सामुदायिक भागीदारी लाने; भूजल उपलब्धता को बेहतर बनाने संबंधी उपायों को लागू करने के लिए चल रही योजनाओं के एकीकरण; पानी के इस्तेमाल की कुशलता में सुधार करके मांग आधारित प्रबंधन पर ध्यान देने और भूजल के महत्व पर जनता के बीच जागरूकता फैलाने के लिए सहभागी राज्यों को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया जा रहा है।

अटल भूजल योजना में भूजल प्रबंधन से जुड़े संस्थानों की मजबूती, भूजल निगरानी नेटवर्क में सुधार, भू-जल संसाधनों के महत्व और गंभीरता पर जन-जागरूकता पैदा करने और उपलब्ध जल स्रोतों के नियोजन व उचित इस्तेमाल के लिए जमीनी स्तर पर भागीदारों की क्षमता विकसित करके भूजल प्रबंधन के लिए राज्यों की क्षमता को बढ़ाने की कल्पना की गई है। इसमें लैंगिक परिप्रेक्ष्य को पूरा करने के लिए योजना से जुड़ी सभी गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी अनिवार्य बनाई गई है।

अटल भूजल योजना से लक्षित क्षेत्रों में भूजल की स्थिति में सुधार आने और जल जीवन मिशन (जेजेएम) के तहत निर्धारित प्रयासों के लिए भूजल स्थिरता सुनिश्चित करने में प्रमुख योगदान देने की उम्मीद है। इसके अलावा किसानों की आय को दोगुना करने के माननीय प्रधानमंत्री के लक्ष्य में भी मदद करने और लंबे समय में हितधारकों द्वारा भूजल के उचित उपयोग के रूप में नतीजे देने की भी उम्मीद है।

योजना के तहत किए गए कार्य इस प्रकार हैं :

i. राष्ट्रीय अंतर-विभागीय संचालन समिति का गठन और राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रबंधन इकाई (एनपीएमयू) की भी स्थापना की गई है।

ii. कार्यक्रम दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं

iii. थर्ड पार्टी गवर्नमेंट वेरिफिकेशन एजेंसी (टीपीजीवीए) के तीन चरणों के आधार पर संवितरण संबद्ध संकेतक #1 भूजल से संबंधित जानकारी और रिपोर्ट का सार्वजनिक खुलासा और संवितरण से जुड़े संकेतक #2 समुदाय की अगुआई वाली जल सुरक्षा योजनाओं की तैयारी, की उपलब्धि हासिल करने के लिए राज्यों के लिए 621.39 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन जारी किए जा चुके हैं।

iv. डेटा एंट्री के लिए योजना में प्रगति की निगरानी के उद्देश्य से वेब आधारित एमआईएस मौजूद है।

v. जल सुरक्षा योजनाओं का 99% काम पूर्ण और प्रस्तुत कर दिया गया है। डब्ल्यूएसपी के तहत प्रस्तावित हस्तक्षेपों का कार्यान्वयन जारी है।

vi. सभी सात राज्यों की राज्य कार्यक्रम प्रबंधन इकाइयों के लिए ओरिएंटेशन ट्रेनिंग पूरी कर ली गई है।

vii. क्षमता विकास गतिविधियों में समर्थन के लिए अर्घ्यम के साथ एक एमओए पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

viii. क्षमता निर्माण रूपरेखा दस्तावेज तैयार कर लिया गया है और इसे राज्यों के साथ साझा कर दिया गया है।

ix. भागीदार राज्यों द्वारा आईईसी कार्यक्रम शुरू कर दिए गए हैं।

x. सभी सात राज्यों के लिए मास्टर ट्रेनर्स प्रशिक्षण पूरे हो गए हैं।

xi. 28 जून 2022 को आयोजित अटल भूजल योजना (अटल जल) के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय अंतर-निर्भर संचालन समिति (एनआईएससी) की दूसरी बैठक हुई।

xii. विभिन्न उपकरणों की खरीद और पीजोमीटर का निर्माण उन्नत चरण में है।

xiii. योजना की प्रगति का मूल्यांकन करने के साथ-साथ शेष अवधि के लिए किसी भी सुधार का सुझाव देने के लिए, मध्यावधि रिपोर्ट सह विश्व बैंक मिशन 19 दिसंबर 2022 से शुरू हो चुका है।

. केंद्रीय भूजल बोर्ड :

राष्ट्रीय भू-जल स्तर मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम : भू-जल प्रबंधन और विनियमन योजना के तहत सीजीडब्ल्यूबी द्वारा जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन योजना तैयार करने के लिए एनएक्यूयूआईएम अध्ययन कराया जाता है। 2022 के दौरान  (1 जनवरी से 30 नवंबर 2022) के दौरान, देश के विभिन्न हिस्सों को शामिल करते हुए 5.7 लाख वर्ग किमी के लिए भू-जल स्तर मानचित्रीकरण और प्रबंधन योजना को बनाया गया है। अब तक, भू-जल स्तर मानचित्रीकरण कार्यक्रम के तहत, देश में मानचित्रीकरण के लिए चिन्हित कुल 25 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में से 24.4 लाख वर्ग किमी क्षेत्र शामिल किया जा चुका है।

भारत के शुष्क क्षेत्रों में हाई रिजॉल्यूशन जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन : केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी), जल शक्ति मंत्रालय ने राजस्थान, गुजरात और हरियाणा राज्यों में फैले शुष्क क्षेत्रों के विभिन्न हिस्सों में हेली बोर्न जिओफिजिशकल सर्वे का उपयोग करते हुए जलभृतोंका हाई रिजॉल्युशन मानचित्रण भी शुरू किया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ परामर्श में अध्ययन कराया गया है। राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम के तहत पहले चरण में 54 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ 3.88 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को शामिल करते हुए राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश राज्यों के विभिन्न हिस्सों में आधुनिक हेली-बोर्न जिओफिजिकल सर्वेक्षण का इस्तेमाल करते हुए उत्तर पश्चिम भारत के शुष्क क्षेत्रों में हाई रिजॉल्युशन जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन के लिए सीजीडब्ल्यूबी और सीएसआईआर-एनजीआरआई, हैदराबाद ने एक समझौता ज्ञापन (एमओए) पर हस्ताक्षर किए।

प्रथम चरण के दौरान, 2020-22 में 1.01 लाख वर्ग किमी क्षेत्र प्रस्तावित किया गया था, जिसमें से 19,020 वर्ग किमी क्षेत्र राजस्थान के सीकर, जैसलमेर और जोधपुर जिलों और हरियाणा के कुरुक्षेत्र और यमुनानगर जिलों के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में है। यह क्षेत्र राजस्थान के 46 विकासखंडों, गुजरात के 36 विकासखंडों और हरियाणा राज्य के 9 विकासखंडों सहित 91 प्रशासनिक विकासखंडों में फैला हुआ है।

भारत के गतिशील भूजल संसाधनों का आकलन : केंद्रीय भूजल बोर्ड और राज्य नोडल/भूगर्भ जल विभाग द्वारा संयुक्त रूप से समय-समय पर प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के गतिशील भूजल संसाधनों का मूल्यांकन भूजल आकलन समिति 2015 (जीईसी-2015) पद्धति के अनुसार संबंधित संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश स्तर की समितियों (एसएलसी) के मार्गदर्शन में और केंद्रीय स्तर के विशेषज्ञ समूह (सीएलईजी) के समग्र पर्यवेक्षण के तहत किया गया है। 2022 में हुए ताजा आकलन के तहत, देश में कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण 437.60 बीसीएम आंका गया है। वहीं, वार्षिक भूजल निकासी 239.16 बीसीएम है। पूरे देश में भूजल निष्कर्षण का औसत चरण लगभग 60.08% है। पूरे देश में भूजल निष्कर्षण का औसत चरण कुल लगभग 60.08 प्रतिशत होता है। देश में मूल्यांकन में शामिल कुल 7089 मूल्यांकन इकाइयों (विकासखंड/मंडल/तालुका/फिरका) में से 1006 (14 प्रतिशत) इकाइयों को अति-शोषित’, 260 (4 प्रतिशत) इकाइयों को गंभीर’, 885 (12 प्रतिशत) अर्ध गंभीरऔर 4780 (67 प्रतिशत) इकाइयां सुरक्षितऔर 158 (2%) खाराके रूप में वर्गीकृत की गई हैं।

गतिशील भूजल संसाधनों के स्वचालित आकलन के लिए आईआईटी-हैदराबाद के सहयोग से सीजीडब्ल्यूबी द्वारा विकसित वेब-आधारित एप्लिकेशन भारत-भूजल संसाधन आकलन प्रणाली (आईएन-जीआरईएस) पूरे देश के लिए जीडब्ल्यू रिसोर्स एसेसमेंट के लिए एक सामान्य और मानकीकृत मंच प्रदान करता है।

माननीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने 9 नवंबर, 2022 को भारत के गतिशील भूजल संसाधनों का राष्ट्रीय संकलन 2022 की रिपोर्ट जारी की है।

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राजीव गांधी नेशनल ग्राउंड वॉटर ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरजीएनजीडब्ल्यूटीआरआई) : जैसा कि राजीव गांधी नेशनल ग्राउंड वॉटर ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरजीएनजीडब्ल्यूटीआरआई) द्वारा लागू त्रि-स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों के एक हिस्से के तहत जनवरी से नवंबर 2022 के बीच विभिन्न प्रकार के कुल 84 प्रशिक्षण (श्रेणी I - 62, श्रेणी II- 28 और श्रेणी III- 57) आयोजित किए गए। इस कार्यक्रमों में भाग लेने वाले लगभग 10,677 प्रतिभागियों में भू-जल पेशेवरों के साथ-साथ जमीनी स्तर पर उपयोगकर्ता भी शामिल थे।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- हर खेत को पानी- भूजल (पीएमकेएसवाई- एचकेकेपी- जीडब्ल्यू) : हर खेत को जल के तहत सिंचाई क्षेत्र के विस्तार के विजन के साथ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) तैयार की गई थी। पीएमकेएसवाई योजना को 2015-16 में अनुमोदित किया गया था, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ भूजल संसाधनों से अतिरिक्त सिंचाई के लिए भूजल एक घटक है। भूजल घटक का उद्देश्य ऐसे क्षेत्रों में सिंचाई के उद्देश्य से भूजल का उपयोग करना है, जहां पर्याप्त जल उपलब्ध है। इसके अलावा, योजना के तहत सुनिश्चित सिंचाई सुविधा प्रदान करके ऐसे क्षेत्रों में छोटे और सीमांत किसानों की आय में वृद्धि करना लक्ष्य है। जुलाई 2016 में जल संसाधन, आरडी और जीआर मंत्रालय द्वारा भूजल घटक के लिए परिचालन दिशानिर्देश जारी किए गए थे। हालांकि, योजना को लागू करने के लिए विभिन्न आवश्यकताओं और राज्य सरकारों से प्राप्त फीडबैक को ध्यान में रखते हुए, दिशानिर्देशों को 8.11.2018 और 28.05.2019 को संशोधित किया गया है।

इस योजना के तहत लाभार्थी केवल अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और महिला किसानों को प्राथमिकता के साथ छोटे और सीमांत किसान हैं। सुरक्षित रूप में वर्गीकृत क्षेत्रों और निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करने वाली योजनाओं के लिए डग वेल्स, डग सह बोरवेल, नलकूपों और बोरवेल आदि के माध्यम से भूजल सिंचाई सुविधा को वित्तपोषित किया जा सकता है :

  1. 60 प्रतिशत से भी कम वार्षिक पुन:पूर्ति योग्य भूजल संसाधनों विकसित किया गया है।
  2. रिचार्ज के लिए पर्याप्त पानी की उपलब्धता को 750 मिमी या उससे अधिक औसत वार्षिक वर्षा;
  3. पूरव-मानसून अवधि के दौरान भूजल स्तर जमीन से 15 मीटर नीचे या उससे कम की सीमा के भीतर।

सिंचाई के लिए भू-जल विकास की योजना इस प्रकार बनाई गई है कि परियोजना के क्रियान्वयन के बाद किसी भी समय भू-जल निकासी का स्तर 70% से अधिक नहीं होना चाहिए। दिशानिर्देशों में अति-दोहन को रोकने और भूजल के पुनर्भरण को सुविधाजनक बनाने के उपायों की रूपरेखा तैयार की गई है। भूजल में स्थिरता लाने के लिए वर्तमान योजना के लक्षित क्षेत्र में एमजीएनआरईजीएस के एनआरए घटक या किसी अन्य रिचार्ज योजना के तहत उपयुक्त पुनर्भरण उपाय किए जाने हैं। राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की सरकार से यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि केंद्र/ राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों की संबंधित योजनाओं को शामिल करते हुए प्रस्तावित सिंचित क्षेत्र के कम से कम 30 प्रतिशत हिस्से में सूक्ष्म सिंचाई विधियों को लागू किया जाए।

 

लगभग 50,000 कुओं के निर्माण के द्वारा लगभग 1.50 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त कमान क्षेत्र के लक्ष्य के साथ दिशानिर्देशों में संशोधन के बाद 2019-20 में प्रभावी रूप से योजना का शुभारम्भ किया गया है और 12 राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में 1.96 लाख से ज्यादा छोटे और सीमांत किसानों को लाभान्वित करने का लक्ष्य है।

अभी तक 12 राज्यों में 1,719 करोड़ रुपये की 15 परियोजनाओं को 1,270 रुपये की केंद्रीय सहायता के साथ मंजूरी दे दी गई है। वहीं, 27 नवंबर 2022 तक 10 राज्यों को केंद्रीय सहायता के रूप में 700.33 करोड़ रुपये जारी कर दिए गए हैं। हालांकि, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल राज्यों ने अभी तक डीओडब्ल्यूआर, जल शक्ति मंत्रालय के साथ योजना के कार्यान्वयन के लिए एमओए पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

नवंबर 2022 तक, 29,229 से अधिक सिंचाई कुओं का निर्माण किया गया है और 77,123 हेक्टेयर से अधिक का कमान क्षेत्र बनाया गया है। इससे लगभग 66,440 छोटे और सीमांत किसान लाभान्वित हुए हैं।

. राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केंद्र :

जल सूचना प्रबंधन प्रणाली (डब्ल्यूआईएमएस): यह आंकड़ों को एकत्रित करने वाला वेब सक्षम एक केंद्रीकृत मंच है, जिसमें टेलीमेट्रिक सेंसर और मैनुअली आंकड़ों को दर्ज करने की सुविधा है जिसे स्वचालित आधार पर सतही जल और भू-जल दोनों संसाधनों के आकंड़ों को जुटाने के लिए बनाया गया है। इस पोर्टल पर लगभग सभी केंद्रीय और राज्य एजेंसियां पोर्टल पर नदी के स्तर, प्रवाह की मात्रा, जलाशय के स्तर, भू-जल स्तर, सतह और भूजल गुणवत्ता इत्यादि पर अपने समय आधारित आंकड़ों (टाइम सीरीज डेटा) को साझा कर रही हैं।

उपयोगकर्ताओं की सुविधा के लिए भूजल डेटा रिपोर्ट जनरेशन, ऐतिहासिक डेटा माइग्रेशन आदि के लिए नए मॉड्यूल इस वर्ष में पूरे कर लिए गए हैं। सीजीडब्ल्यूबी द्वारा प्रदान किए गए इनपुट के अनुसार जल गुणवत्ता डेटा एंट्री और रिपोर्ट तैयार करने से जुड़े मॉड्यूल के लिए विभिन्न सुधार लागू किए गए थे।

भारत-जल संसाधन सूचना प्रणाली (इंडिया-डब्लूआरआईएस) : यह जल संसाधनों से जुड़ी सूचनाओं को प्रदर्शित करने और उसे प्रसारित करने के लिए बनाया गया एक वेब पोर्टल है। पूरे वर्ष के दौरान, पिछली प्रणालियों पर संयोजन व उन्नयन और कई नए मॉड्यूल को जोड़कर प्रणाली को नया रूप दिया गया है। अब इस प्रणाली में उपयोगकर्ताओं के उपयोग करने के लिए एक मानकीकृत राष्ट्रीय जीआईएस ढांचे के आधार पर बारिश, नदी जल स्तर और प्रवाह, भू-जल स्तर, जल की गुणवत्ता, मिट्टी में नमी, जलवायु, भू-वैज्ञानिक जैसे स्थानिक, गैर-स्थानिक, जल-मौसम विज्ञान संबंधी डेटा और अन्य भू-आकृति संबंधी (टाइम सीरीज) डेटा उपलब्ध हैं। यहां पर उपयोगकर्ताओं की पहुंच के लिए, डाउनलोड और सूचनाओं को देखने के उद्देश्य से 8 डायनैमिक मॉड्यूल, 12 सेमी डायनैमिक मॉड्यूल, 13 स्टैटिक मॉड्यूल और 10 उपयोगी सेवाएं उपलब्ध हैं। वर्ष के दौरान, जलाशय, मिट्टी की नमी, वाष्पीकरण-वाष्पोत्सर्जन, जल संसाधन परियोजना जैसे मॉड्यूल्स को नया रूप दिया गया है और एक नया फॉरेस्ट/ ट्री कवर मॉड्यूल विकसित किया गया है। इसके अलावा, हाइड्रो-स्ट्रक्चर्स, जल स्रोतों, भूजल संसाधनों और बर्फ की हिमनद झीलों से संबंधित डेटा को नवीनतम डेटा के साथ बदला जाता है। नियमित डेटा सुधार के माध्यम से और पोर्टल्स को और अधिक मजबूत और गतिशील बनाने के लिए नई लेयर्स को जोड़कर दोनों पोर्टल्स / सिस्टम को लगातार समृद्ध किया जा रहा है।

आंकड़ों का प्रसार : जल संसाधन विभाग आरडी एवं जीआर के तहत विभिन्न तरह की संस्थाएं जैसे केंद्रीय जल आयोग, केंद्रीय भू-जल बोर्ड इत्यादि के साथ मिलकर बनाई गई नियमित व्यवस्थाओं के अलावा भारत के सर्वेक्षण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य सरकारों के अन्य विभागों के साथ नियमित आधार पर आंकड़ों को साझा करने और उन्हें आगे जनता तक प्रसारित करने की व्यवस्थाएं विकसित की गई हैं।

डब्ल्यूआईएमएस में, मेटा-डेटा के साथ-साथ विभिन्न जलीय-मौसम संबंधी मापदंडों पर डेटा को एफटीपी, एपीआई, डीबी निर्यात के माध्यम से विभिन्न उपयोगकर्ता एजेंसियों और अन्य हितधारकों के साथ साझा किया जाता है। इंडिया डब्ल्यूआरआईएस में उपलब्ध डेटा को बाढ़ पूर्वानुमान एप्लीकेशन के विकास के लिए एक मुक्त सरकारी डेटा प्लेटफॉर्म API withdata.gov.in और एनआरएससी के माध्यम से साझा किया गया है।

राज्य जल सूचना विज्ञान केंद्रों (एसडब्ल्यूआईसी) का विकास : एनडब्ल्यूआईसी आवश्यक तकनीक मार्गदर्शन और आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर समर्थन उपलब्ध कराकर राज्यों को राज्य जल संसाधन डेटा रिपॉजिटरी के रूप में राज्य जल सूचना विज्ञान केंद्रों (एसडब्ल्यूआईसी) की स्थापना और राज्य जल संसाधन सूचना प्रणाली (स्टेट-डब्ल्यूआरआईएस) के विकास के लिए प्रोत्साहित कर रहा है और समर्थन दे रहा है। एसडब्ल्यूआईसी विभिन्न राज्य विभागों/संगठनों से डेटा के संग्रह, इसकी पुष्टि करने और इसे राज्य जल संसाधन सूचना प्रणाली (राज्य-डब्ल्यूआरआईएस) के माध्यम से प्रसारित करने और बेसिन के लिए केंद्रीय प्रणाली को भेजने के लिए राज्य केंद्रित टूल्स और एप्लिकेशन के विकास और प्रामाणिक डेटा विश्लेषण के आधार पर क्षेत्रीय स्तर की नीति नियोजन और रणनीतिक निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार होगा।

एनडब्ल्यूआईसी द्वारा राज्यों को सहायता प्रदान करने के लिए नीतिगत रूपरेखा राज्यों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेशों को भेजी गई है। अभी तक, 11 राज्यों ने एनडब्ल्यूआईसी के साथ एसडब्ल्यूआईसी की स्थापना के लिए एमओए पर हस्ताक्षर किए हैं। एमओए पर हस्ताक्षर करने के बाद, एनडब्ल्यूआईसी ने राज्यों के विशेषज्ञों/पेशेवरों को राज्य-डब्ल्यूआरआईएस की स्थापना पर प्रशिक्षण प्रदान किया।

जल एवं संबद्ध सूचना संसाधन और प्रबंधन प्रणाली (डब्ल्यूएआरआईएमएस) (पूर्व नाम आईडब्ल्यूसीआईएमएस) : एकीकृत जल एवं फसल सूचना प्रबंधन प्रणाली (आईडब्ल्यूसीआईएमएस) का नाम अब बदल कर जल एवं संबद्ध सूचना संसाधन और प्रबंधन प्रणाली (डब्ल्यूएआरआईएमएस) हो गया है। इसे अब एक समग्र और व्यापक मंच के रूप में विकसित किया जा रहा है जो सिंचाई प्रबंधन, जलाशय प्रबंधन, जल उपयोग दक्षता, जल मांग प्रबंधन, मांग पूर्वानुमान, बाढ़ पूर्वानुमान, जल संसाधनों से संबंधित पहचाने गए उपयोग के मामलों के लिए डेटाबेस, एप्लिकेशन, मॉडल और सूचना को एकीकृत करेगा। इससे जल संसाधनों और संबद्ध क्षेत्रों की योजना, डिजाइन, निर्माण और प्रबंधन के संबंध में नौ (09) विषयों के माध्यम से भूजल गुणवत्ता और प्रबंधन आदि में सहायता मिलेगी। अभी तक, 10 राज्यों ने डब्ल्यूएआरआईएमएस के तहत राज्य केंद्रित एप्लीकेशन के विकास से जुड़ने के लिए एमओए पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।

एक व्यवहार्यता अध्ययन कर लिया गया है और प्रौद्योगिकी, डेटाबेस, क्लाउड और हितधारक विभागों और एजेंसियों की पहचान और एमओजेएस की सभी आंतरिक एजेंसियों की संबंधित आईटी / गैर-आईटी प्रणालियों के गहन अध्ययन और कार्यान्वयन रणनीतियों पर सुझाव दे दिए गए हैं।

. सिंचाई गणनायोजना के तहत प्रगति :

देश में भू-जल और सतही जल लघु सिंचाई योजनाओं पर एक ठोस और विश्वसनीय आंकड़ों का आधार बनाने के लिए प्रत्येक पांच साल पर लघु सिंचाई गणना की जाती है। लघु सिंचाई गणना को केंद्र प्रायोजित योजना सिंचाई गणनाके तहत 100 प्रतिशत केंद्रीय वित्त पोषण के साथ किया जाता है, जिसके माध्यम से विभिन्न राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों के तहत गठित राज्य सांख्यिकीय प्रकोष्ठों की मदद की जाती है। वर्तमान में 2017-18 के संदर्भ वर्ष के साथ छठी लघु सिंचाई गणना का काम चल रहा है, जिसमें मंत्रालय ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में देश के सभी जल निकायों को शामिल करके जल निकायों की पहली गणना को शुरू किया है।

2022 के दौरान, “सिंचाई गणनायोजना के तहत निम्नलिखित प्रगति हासिल की गई है:

2022 के दौरान सिंचाई गणना के अंतर्गत निम्नलिखित प्रगति हासिल हुई :

  1. सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने छठी लघु सिंचाई जनगणना और जल निकायों की पहली गणना का क्षेत्रीय कार्य और डेटा एंट्री/ सत्यापन कार्य पूरा कर लिया है।
  2. निधियां जारी करने के लिए सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को उनके द्वारा जमा किए प्रस्तावों के पूर्ण परीक्षण के बाद स्वीकृत धनराशि जारी कर दी गई है।
  3. वेतन, भत्तों आदि पर व्यय करने के लिए राज्य सांख्यिकी प्रकोष्ठों को भी धनराशि जारी की गई थी।

 

. उत्तर कोयल जलाशय परियोजना के शेष कार्यों को पूरा करना

विभाग ने झारखंड के पलामू और गढ़वा जिलों के अतिपिछड़े आदिवासी इलाके में बिहार और झारखंड की उत्तर कोयल नदी पर बनी उत्तर कोयल जलाशय परियोजना के लंबे समय से लंबित कार्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी ली है। केंद्रीय मंत्रिमंडल उत्तर कोयल जलाशय परियोजना के लंबित कार्यों को पूरा करने के प्रस्ताव को परियोजना की शुरुआत से तीन वित्तीय वर्षों के दौरान 1,622.27 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ मंजूरी दे चुका है। इस परियोजना से बिहार के औरंगाबाद और गया जिलों और झारखंड के पलामू और गढ़वा जिलों के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में हर साल 1,11,521 हेक्टेयर जमीन के लिए सिंचाई का लाभ मिल पाएगा। इस परियोजना में पेयजल और औद्योगिक इस्तेमाल के लिए 44 एमसीएम जलापूर्ति का भी प्रावधान है। बांध और सहायक कार्यों पर 10 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है, मोहम्मदगंज बैराज में 95% प्रगति हासिल कर ली गई है जबकि बायीं मुख्य नहर (एलएमसी) में 75 प्रतिशत प्रगति हासिल की गई है।

 

. बाढ़ प्रबंधन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम (एफएमबीएपी)

12वीं पंच वर्षीय योजना के तहत मौजूदा बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम (एफएमपी) और नदी प्रबंधन गतिविधियां व सीमावर्ती क्षेत्रों से संबंधित कार्य (आरएमबीए) योजनाओं को अब 2017-18 से 2019-20 तक तीन साल के लिए बाढ़ प्रबंधन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम”(एफएमबीएपी) नाम की एकल योजना में शामिल कर दिया गया है और इसे मार्च, 2021 तक आगे बढ़ाया जा चुका है। मंत्रिमंडल ने सितंबर, 2022 को इस योजना को स्वीकृति दे दी है। मार्च 2026 तक मंत्रिमंडल से ईपीसी स्वीकृति की प्रक्रिया अभी जारी है। एफएमपी/ आरएमबीए की शुरुआत से मार्च 2022 तक केंद्र शासित प्रदेशों/ राज्यों को एफएमबीएपी योजना के एफएमपी घटक के तहत 6,686.79 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता और एफएमबीएपी योजना के आरएमबीए घटक के तहत केंद्र शासित प्रदेशों/ राज्यों को 1,095.16 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की जा चुकी है।

. भारत और बांग्लादेश के मामले

भारत-बांग्लादेश जल संसाधन सचिव स्तर की बैठक और 38वें मंत्रिस्तरीय संयुक्त नदी आयोग की बैठक अगस्त 2022 में हुई।

संयुक्त नदी आयोग के फ्रेमवर्क के तहत भारत-बांग्लादेश जल संसाधन सचिव स्तरीय बैठक नई दिल्ली में 23 अगस्त, 2022 को हुई। भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग की 38वीं बैठक 25 अगस्त, 2022 को नई दिल्ली में हुई। माननीय जल शक्ति मंत्री और भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग के चेयरमैन श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बैठक की अध्यक्षता की और भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। बांग्लादेश के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व बांग्लादेश सरकार में जल संसाधन मंत्री, सांसद और भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग के को-चेयरमैन श्री जाहिद फारुकी ने किया।

साझा सीमावर्ती नदी कुशियारा से जल निकासी पर 6 सितंबर, 2022 को समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।

जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार और जल संसाधन मंत्रालय, बांग्लादेश सरकार के बीच शुष्क मौसम के दौरान हर देश की जल उपभोग जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से सीमावर्ती नदी कुशियारा 153 क्यूसेक जल निकालने के लिए 6 सितंबर, 2022 को एक सहमति ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौता ज्ञापन से साझा नदियों के जल संसाधन प्रबंधन पर भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग को और मजबूत मिलेगी। भारत और बांग्लादेश दोनों शुष्क मौसम (1 नवंबर से 31 मई) के दौरान कुशियारा नदी के साझा खंड से समान मात्रा में पानी निकालेंगे। इस समझौता ज्ञापन से भारतीय राज्य असम को लाभ होगा, क्योंकि इससे इस क्षेत्र में विशेष रूप से करीमगंज जिले में उपभोग संबंधी आवश्यकताओं के लिए सुनिश्चित पानी की उपलब्धता होगी। साथ ही कृषि और अन्य संबद्ध गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।

1996 की संधि के तहत भारत और बांग्लादेश के बीच फरक्का में गंगा/ गंगेज जल बंटवारे के लिए भारत-बांग्लादेश 77वीं, 78वीं और 79वीं संयुक्त समिति की बैठक

  1. 12 अप्रैल, 2022 को फरक्का में संयुक्त अवलोकन स्थलों के दौरे के बाद फरक्का में गंगा/गंगेज जल के बंटवारे पर संयुक्त समिति की 77वीं बैठक 14 अप्रैल, 2022 को कोलकाता में आयोजित की गई थी।
  2. फरक्का में गंगा/गंगेज जल के बंटवारे पर संयुक्त समिति की 78वीं बैठक 18 मई, 2022 को हार्डिंग ब्रिज, पाक्षे में संयुक्त अवलोकन स्थल के दौरे के बाद 19 मई, 2022 को ढाका में आयोजित की गई थी।
  3. नरम/ शुष्क मौसम की वार्षिक रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए फरक्का में गंगा/गंगेज जल के बंटवारे पर संयुक्त समिति की 79वीं बैठक 13 दिसंबर, 2022 को वर्ष 2022 के वर्चुअल माध्यम से आयोजित की गई थी।

बैठकों के दौरान भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व श्री अतुल जैन, आयुक्त (एफएम), जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार और सदस्य, भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग ने किया। बांग्लादेश प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व श्री मोहम्मद महमूदुर रहमान, सदस्य, भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग, जल संसाधन मंत्रालय, बांग्लादेश सरकार ने किया था।

ठ. तलछट प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय रूपरेखा

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय ने राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के साथ व्यापक चर्चा और परामर्श के बाद तलछट प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय रूपरेखाको अंतिम रूप दिया है।

यह राष्ट्रीय रूपरेखा दस्तावेज देश में कुशल और टिकाऊ तलछट प्रबंधन के लिए मार्गदर्शन दस्तावेज के रूप में काम करेगा।

. राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय

नदी की सफाई एक नियमित प्रक्रिया है और भारत सरकार वित्तीय और तकनीकी सहायता देकर नदियों के प्रदूषण की चुनौतियों से निपटने के लिए राज्य सरकारों के प्रयासों में मदद करती है। केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के तहत विभिन्न नदियों (गंगा और उसकी सहायक नदियों को छोड़कर) के चिन्हित हिस्सों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच लागत के बंटवारे के आधार पर सीवेज को नदी में मिलने से रोकने, सीवरेज सिस्टम बनाने, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने, किफायती शौचालय निर्माण, रिवर फ्रंट/स्नान घाटों के विकास इत्यादि से जुड़े प्रदूषण रोकने संबंधी विभिन्न कार्यों के लिए राज्य सरकारों को मदद दी जाती है।

एनआरसीपी के तहत मिली उपलब्धियां और पहल:

  • माननीय प्रधानमंत्री ने 11 दिसंबर, 2022 को 1926 करोड़ रुपये की लागत से बाहरी सहायता प्राप्त परियोजना नाग नदी के प्रदूषण में कमी लानेके लिए नागपुर में आधारशिला रखी है।
  • 91.93 करोड़ रुपये की लागत से मंगन टाउन, सिक्किम में तीस्ता नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए परियोजना को मंजूरी दी गई।
  • 17.24 करोड़ रुपये की लागत से चुंगथांग टाउन, सिक्किम में तीस्ता नदी के प्रदूषण में कमी लाने के लिए परियोजना को मंजूरी दी गई।
  • 88.80 करोड़ रुपये की लागत से गीजिंग टाउन, सिक्किम में रंगित नदी के प्रदूषण में कमी लाने के लिए परियोजना को मंजूरी दी गई।
  • भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई), देहरादून द्वारा राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के तहत 24.56 करोड़ रुपये की लागत वाली चुनिंदा 6 भारतीय नदियों (अर्थात् कावेरी, गोदावरी, पेरियार, महानदी, नर्मदा और बराक नदी) की पारिस्थितिकी स्थिति के आकलन की परियोजना को मंजूरी।
  • एनआरसीपी के तहत गतिविधियों को व्यापक आधार देने और नदी संरक्षण प्रक्रिया में जैव विविधता संरक्षण और हितधारकों की भागीदारी को समाहित करने के उद्देश्य से, डब्ल्यूआईआई (भारतीय वन्यजीव संस्थान) को छह नदियों, महानदी, नर्मदा, गोदावरी, पेरियार, कावेरी और बराक के लिए जैव विविधता अध्ययन करने का काम सौंपा गया है।
  • एनआरसीपी के तहत 68.00 एमएलडी क्षमता का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया गया है।
  • एनआरसीपी के तहत 230.00 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए विभिन्न राज्य सरकारों/एजेंसियों को जारी की गई है।
  • नागरिकों के बीच जागरूकता पैदा करने और इस उद्देश्य के लिए सार्वजनिक भागीदारी बढ़ाने के लिए संबंधित राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के सभी हितधारकों के सहयोग से आजादी का अमृत महोत्सव 2022 मनाया गया है।

 

. कमांड एरिया विकास और जल प्रबंधन (सीएडीडब्ल्यूएम) :

भारत सरकार, प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के तहत कमांड एरिया विकास और जल प्रबंधन (सीएडीडब्ल्यूएम) नाम से एक योजना लागू कर रही है। यह योजना खेत में पानी की भौतिक रूप से पहुंच बढ़ाने और निश्चित सिंचाई वाले कृषि क्षेत्र को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। नाबार्ड के तहत लॉन्ग टर्म इरीगेशन फंड’ (दीर्घकालिक सिंचाई कोष) बना कर वित्तपोषण की नई व्यवस्था अपनाते हुए कार्यों को जल्दी पूरा करने के लिए प्राथमिकता आधारित 99 परियोजनाओं की पहचान गई है। अभी इसमें शामिल 88 परियोजनाओं का लक्षित कृषि योग्य कमान क्षेत्र (सीसीए) 45.08 लाख हेक्टेयर है और अनुमानित केंद्रीय सहायता (सीए) 8,235 करोड़ रुपये है। 2016-17 से 2021-22 के दौरान (मार्च, 2022 तक), 79 परियोजनाओं के लिए 2,855.63 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता राशि जारी की गई थी, जबकि राज्यों ने 16.41 लाख हेक्टेयर सीसीए प्रगति होने की सूचना दी है। 2022-23 के दौरान, (23 दिसंबर, 2022 तक) 3 परियोजनाओं के लिए 25.28 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की गई है।

  • केंद्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधान केंद्र (सीएसएमआरएस):

सीएसएमआरएस एक 9001:2015 प्रमाणित संगठन है। यह भू-तकनीकी इंजीनियरिंग, ठोस प्रौद्योगिकी, निर्माण सामग्री और संबंधित पर्यावरणीय मुद्दों में क्षेत्रीय और प्रयोगशाला जांच, अनुसंधान और समस्याओं से संबंधित है, जिसका देश में सिंचाई और बिजली के विकास पर सीधा असर पड़ता है और भारत और विदेशों में विभिन्न परियोजनाओं और संगठनों के लिए उपरोक्त क्षेत्रों में परामर्शक और सलाहकार के रूप में कार्य करता है। अनुसंधान केंद्र विभिन्न नदी घाटी परियोजनाओं के लिए मौजूदा हाइड्रोलिक संरचनाओं के सुरक्षा मूल्यांकन और निर्माण के गुणवत्ता नियंत्रण में शामिल है। सीएसएमआरएस का कार्य तीन मुख्य विषयों जैसे मृदा अनुशासन, रॉक अनुशासन और कंक्रीट अनुशासन में शामिल है। सीएसएमआरएस की गतिविधि के क्षेत्र को निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों द्वारा कवर किया गया है।

  • मृदा अनुशासन मिट्टी के लक्षणों के वर्णन, रॉकफिल सामग्री के लक्षणों के वर्णन और भू-संश्लेषण सामग्री लक्षण के वर्णन से संबंधित है। इसके तहत  संरचनाओं के निर्माण के लिए उपयोग किए जाने आधार परतों की क्षमता के आकलन के लिए बुनियादी जांच और संरचनाओं के निर्माण के लिए उपयोग किए जाने वाले क्षेत्र से एकत्र की गई मिट्टी की उपयुक्तता का पता लगाने के लिए बॉरो एरिया की जांच की जाती है। यह विस्तृत और फैली हुई मिट्टी, मुख्य सामग्रियों के हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग, गुणवत्ता नियंत्रण, गुणवत्ता आश्वासन, मिट्टी के गतिशील लक्षण वर्णन और इस क्षेत्र में संख्यात्मक मॉडलिंग-आधारित अनुसंधान पर अध्ययन भी करता है।
  • रॉक अनुशासन के तहत चट्टान के लक्षणों का वर्णन, चट्टानों के प्रयोगशाला मूल्यांकन, भूभौतिकीय जांच और भू-तकनीकी उपकरण आते हैं। इसके तहत अखंड चट्टान की प्रयोगशाला जांच, शक्ति संबंधी गुणों के निर्धारण के लिए जांच, चट्टान की विकृत विशेषताओं, तनाव का आकलन, चट्टान और रॉक बोल्ट/ एकंर की जांच में दरार भरने की क्षमता का परीक्षण किया जाता है। यह उप-सतही जमीन की स्थिति, बेड रॉक के चित्रण, अधिभार की मोटाई, भूवैज्ञानिक विसंगतियों का पता लगाने, विस्फोट कंपन निगरानी अध्ययन आदि को समझने के लिए भूभौतिकीय तरीकों का उपयोग करके जांच करता है। यह इंस्ट्रूमेंटेशन, भूभौतिकीय अध्ययन और संख्यात्मक मॉडलिंग के माध्यम से संरचनाओं की स्वास्थ्य निगरानी से भी जुड़ा हुआ है।
  • कंक्रीट अनुशासन के साथ निर्माण सामग्री के लक्षणों का वर्णन, कंक्रीट मिक्स डिजाइन, कंक्रीट पर विशेष अध्ययन और ठोस संरचनाओं का गैर-विनाशकारी निदान जुड़ा हुआ है। यह ठोस स्थायित्व मूल्यांकन, पानी के भीतर घर्षण परीक्षण, कंक्रीट पारगम्यता परीक्षण, एपॉक्सी सामग्री का परीक्षण, क्षार समुच्चय प्रतिक्रियाशीलता अध्ययन आदि के लिए विशेष परीक्षण करता है। यह मिश्रण सहित सभी निर्माण सामग्री के रासायनिक लक्षण वर्णन भी करता है। यह कंक्रीट संरचनाओं के लिए गुणवत्ता नियंत्रण और गुणवत्ता आश्वासन सेवाओं के लिए परामर्श प्रदान करता है। यह नैदानिक स्वास्थ्य निगरानी, ​​संरचनाओं की मरम्मत और पुनर्वास, कंक्रीट के स्थायित्व आदि में भी शामिल है।

नदी घाटी परियोजनाओं की भू-तकनीकी जांच के क्षेत्र में सीएसएमआरएस का योगदान इस प्रकार है:

  • 33 जल संसाधन परियोजनाओं के लिए भू-तकनीकी जांच कराना।
  • भू-तकनीकी और निर्माण सामग्रियों की जांच के आधार पर 63 परियोजना रिपोर्टों को तैयार किया गया।
  • राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं/सम्मेलनों में 48 शोधपत्रों का प्रकाशन।
  • 36 विस्तृत परियोजना रिपोर्ट और उन्हें लागू करने पर सलाह देना।
  • आठ वर्चुअल प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का संचालन किया गया, जिसमें 164 इंजीनियरों/ प्रशिक्षुओं/ विभिन्न संगठनों/संस्थानों/कॉलेजों के छात्रों ने भाग लिया।
  • सीएसएमआरएस नदी घाटी परियोजनाओं के भू-तकनीकी जांच के क्षेत्र में विकास और ज्ञान साझा करने/ प्राप्त करने के लिए संगठनों के साथ संस्थागत सहयोग कर रहा है -
    • भूतकनीकी इंजीनियरिंग और सामग्री विज्ञान के क्षेत्र में नॉर्वेजियन जिओटेक्निकल इंस्टीट्यूट ओस्लो, नॉर्वे के साथ सहयोग।
    • पनबिजली परियोजनाओं की भूतकनीक जां और निर्माण सामग्री सर्वेक्षण में सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड, हिमाचल प्रदेश के साथ सहयोग।
    • एनईएचएआरआई के अधिकारियों को प्रशिक्षण सहित भूतकनीक इंजीनियरिंग और निर्माण सामग्री के क्षेत्र में एनईएचएआरआई, ब्रह्मपुत्र बोर्ड, असम के साथ सहयोग।
  • सीएसएमआरएस ने गुणवत्ता सुधार, उचित भू-तकनीकी जांच और परियोजना के लिए व्यवहार्य सामग्री उपलब्ध कराने के उद्देश्य से संगठनों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • पोलावरम प्रोजेक्ट अथॉरिटी, टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड, उत्तराखंड; उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड, सिंचाई निर्माण खण्ड- द्वितीय, उत्तर प्रदेश, जल संसाधन विभाग, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश के साथ क्यूए/क्यूसी।
  • नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी, उत्तर पूर्वी जांच प्रभाग-I, सीडब्ल्यूसी, सिलचर, खोलोंगछू हाइड्रोइलेक्ट्रिक लिमिटेड, सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएनएल), शिमला और टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड के साथ भू-तकनीकी जांच और निर्माण सामग्री सर्वेक्षण।
  • सिविल इंजीनियरिंग डिवीजन, जल संसाधन डिवीजन और जियोसिंथेटिक्स डिवीजन में नदी घाटी परियोजनाओं के लिए भू-तकनीकी, सामग्री जांच, डिजाइन पैरामीटर आदि को देखने वाली बीआईएस समितियों में प्रतिनिधित्व करना। सीईडीसी, सीईडी-2, सीईडी2:1, सीईडी-2:2, सीईडी-4, सीईडी-6, सीईडी-30, सीईडी-39, सीईडी-43, सीईडी-48, सीईडी-53, सीईडी-55, सीईडी-56, डब्ल्यूआरडीसी, डब्ल्यूआरडी-5, डब्ल्यूआरडी-6, डब्ल्यूआरडी-8, डब्ल्यूआरडी-9, डब्ल्यूआरडी-13, डब्ल्यूआरडी-14, डब्ल्यूआरडी-15, डब्ल्यूआरडी-16, डब्ल्यूआरडी-22 और टीएक्सडी-30  की समितियों में सीएसएमआरएस की उपस्थिति, और नए कोड तैयार करने और प्रासंगिक क्षेत्र में सुधार करने में सक्रिय  रूप से भागीदारी की।
  • नदी घाटी परियोजनाओं की भू-तकनीकी जांच के दौरान सामने आने वाले मुद्दों पर पर अनुसंधान कार्य किए गए और उसके आधार पर:
  • स्व-प्रायोजित शोध के अंतर्गत पांच शोध कार्य प्रगति पर हैं।
  • एक शोध समीक्षा रिपोर्ट प्रकाशित की।
  • जल संसाधन परियोजनाओं के लिए मिट्टी के रासायनिक विश्लेषण पर एक मोनोग्राफ प्रकाशित किया गया।

देश के विकास के लिए पानी की हर एक बूंद का उपयोग करने के लिए नदियों को जोड़ने की दिशा में सीएसएमआरएस का योगदान अत्यधिक उपयोगी रहा है। यह न केवल डिजाइन पैरामीटर प्रदान करने में, बल्कि जांच आधारित लिंक के संरेखण में बदलाव का सुझाव देकर परियोजना लागत को कम करने में भी अहम रहा है।

. तुंगभद्रा बोर्ड :

  • तुंगभद्रा राइट बैंक लो लेवल नहर के आधुनिकीकरण का काम 2019-20 के दौरान किया गया और 2022-23 के दौरान 115 किमी तक काम पूरा कर दिया गया और 2022-23 में 115 किमी से 205 किमी तक का काम शुरू किया गया और यह काम 40 प्रतिशत पूरा कर दिया गया है।
  • टीबी जलाशय की कुल प्राप्ति पिछले 60 वर्षों में पहली बार 600 टीएमसी के निशान को पार कर गई है और टीबी जलाशय की स्थापना के बाद से केवल दूसरी बार (यानी, 1953 से) ऐसा हुआ है।
  • तुंगभद्रा बोर्ड द्वारा 72 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता वाले दो बिजली घरों का रखरखाव किया जा रहा है। जल वर्ष 2022-23 के दौरान 16 करोड़ यूनिट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसकी तुलना में, दिसंबर-2022 के अंत तक 13.7 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन हो चुका है। जनवरी 2023 से मार्च 2023 तक अनुमानित बिजली उत्पादन 6.8 करोड़ यूनिट होगा, जिससे वर्ष 2022-23 के दौरान बिजली उत्पादन 20.5 करोड़ यूनिट तक पहुंच जाएगा। इस प्रकार, 2021-22 के बाद लगातार दूसरे वर्ष 2022-23 में बिजली उत्पादन 20 करोड़ यूनिट को पार कर जाएगा। मूल्य की बात करें 12 साल बाद 61.50 करोड़ रुपये की बिजली पैदा हुई है।
  • 01.06.2022 से 5 साल की अवधि के लिए टीबी बोर्ड के फिश फार्म, आइस प्लांट और टीबी जलाशय मत्स्य अधिकार लीज-डेवलप-ऑपरेट-ट्रांसफर बेसिस के माध्यम से आउटसोर्स किए जाते हैं। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए इस पट्टे से सकल आय 2.42 करोड़ रुपये रही है जो टीबी बोर्ड के मत्स्य क्षेत्र में शुरू किया गया एक बड़ा सुधार है।
  • टीबी बोर्ड में आधुनिक एकॉस्टिक डॉपलर करेंट प्रोफाइलर (एडीसीपी) के साथ नहर प्रवाह माप शुरू किया गया है, जिससे किसान समुदाय के बीच नहर के पानी के अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग के बारे में जागरूकता फैल रही है। चूंकि एडीसीपी के प्रयोग के सकारात्मक परिणाम मिले हैं, इसलिए इसका प्रयोग वर्ष 2022 में भी जारी है।
  • टेलीमेट्री प्रणाली के उपयोग के द्वारा टीबी परियोजना नहरों के डेली लाइव प्रवाह डेटा को www.tbbliveflow.com वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जा रहा है और टीबी जलाशय और अन्य विवरण सदस्य राज्यों, आम जनता और किसान समुदाय के लिए वेबसाइट www.tbboard.gov.in पर प्रदर्शित किया जा रहा है। नियमित गतिविधि के रूप में यह वर्ष 2022 में भी जारी रही है। 
  • टीबी बोर्ड का एक ट्विटर अकाउंट https://twitter.com/TB_Board शुरू किया गया है और इस वर्ष 2022 में भी आजादी का अमृत महोत्सव सहित टीबी बोर्ड की गतिविधियों को प्रदर्शित करने के लिए जारी रखा गया है।
  • 57,000 से अधिक फॉलोअर्स के साथ तुंगभद्रा बांध का एक फेसबुक अकाउंट ( https://www.facebook.com/profile.php?id=100066667547900) इस वर्ष 2022 में भी जारी रहा।
  • इससे पहले कम्युनिटी हॉल (एमएसटी हॉल), परनाजा एक्वेरियम जैसी टीबी बोर्ड की ज्यादातर यूनिट्स, बगीचों में मनोरंजक गतिविधियां आदि सरकार/टीबी बोर्ड के अधिक खर्च और कम राजस्व के साथ चल रही थीं। पर्याप्त निगरानी, परीक्षण और मुद्दों के विश्लेषण के बाद, इन यूनिट्स को सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी मॉडल) पर पट्टे पर देने का फैसला किया गया, जहां सफल बोलीदाता/एजेंसी को नई यूनिट स्थापित करनी होगी या मौजूदा इकाई पर प्रारंभिक पूंजी का निवेश करना होगा, कुछ निश्चित अवधि के लिए विशिष्ट गतिविधि का नवीनीकरण/संशोधन करना होगा और बोर्ड को पट्टा किराया विधिवत जमा करना होगा। इससे टीबी बोर्ड को कोई व्यय किए बिना सरकार/ टीबी बोर्ड को अच्छा राजस्व मिलेगा। इस पद्धति को अपनाने से, टीबी बोर्ड के पुराने भवन एमएस तिरुमाला अयंगर हॉल (सामुदायिक हॉल) को 5 साल के लिए लीज पर किराए पर लिया गया था, इस प्रकार 25 लाख रुपये के सामान्य व्यय भार के मुकाबले 84 लाख रुपये का अच्छा राजस्व सृजित हुआ।
  • टीबी बोर्ड के राजस्व सृजित करने के लिए निम्नलिखित नई अवधारणाएं पेश की गईं;
  1. टीबी बोर्ड के गार्डन एरिया के खाली स्थान पर डैशिंग कार्स को 7 साल के लिए लीज पर स्थापित किया गया, जिससे 127 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ।
  2. टीबी बोर्ड के उद्यान क्षेत्र के खाली स्थानों पर बच्चों के एम्यूजमेंट पार्क को 7 वर्षों के लिए लीज पर स्थापित किया गया, जिससे 130 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ है।
  3. टीबी बोर्ड के उद्यान क्षेत्र के खाली स्थानों पर बच्चों के लिए वाटर पार्क 7 वर्षों के लिए लीज आधार पर स्थापित किया गया है, जिससे 76 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त होता है।
  4. पीपीपी मॉडल पर आगंतुकों के लिए डैम गार्डन से वैकुंटा गेस्ट हाउस को जोड़ने वाले रोपवे तैयार करने का काम सौंपा गया, जिससे पर्यटकों को मनोरंजन के अलावा टीबी बोर्ड को अच्छा राजस्व प्राप्त होगा।
  5. बीटीपीएस पाइप लाइन को आरबीएचएलसी और आरबीएलएलसी की नहर की सीमा से लगी भूमि को 52.11 लाख रुपये में पट्टे पर देने की अनुमति दी गई थी जिससे टीबी बोर्ड के लिए एक अच्छा राजस्व है। कुछ राजस्व प्राप्त करने के अलावा, सीमा पर पत्थरों वाली यह बीटीपीएस पाइप लाइन अनधिकृत अतिक्रमणों से टीबी बोर्ड की भूमि की सुरक्षा के रूप में भी काम कर रही है।

. कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (केआरएमबी) और गोदावरी नदी प्रबंधन बोर्ड (जीआरएमबी) का सीमा क्षेत्र

  • केआरएमबी और जीआरएमबी का सीमा क्षेत्र 15 जुलाई, 2021 को राजपत्र अधिसूचना क्र. सं. 2842 (ई) के द्वारा अधिसूचित कर दिया गया था।
  • राजपत्र अधिसूचना के खंड 2(एफ) और 2(जी) के कार्यान्वयन में धीमी प्रगति को देखते हुए, खंड 2(एफ) और 2(जी) के परिचालन को अतिरिक्त छह महीने यानी 15.01.2022 से 14.07.2022 तक के लिए संशोधित कर दिया गया है।
  • एपीआरए 2014 की ग्यारहवीं अनुसूची के पैरा 10 के तहत उल्लिखित 6 परियोजनाओं को राजपत्र अधिसूचना के खंड 2(एफ) और 2(जी) के दायरे से छूट देने के लिए केआरएमबी की अधिसूचना में दिनांक 28.07.2022 की अधिसूचना के जरिये संशोधन किया गया है।

. पीएमकेएसवाई-एचकेकेपी की सतह लघु सिंचाई (एसएमआई) और जल निकायों की मरम्मत, नवीनीकरण और पुनर्स्थापना (आरआरआर) योजनाएं

सतह लघु सिंचाई (एसएमआई) योजना के तहत, 12वीं पंचवर्षीय योजना के बाद से, 15,204 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ 7,359 योजनाएं चल रही हैं। केंद्रीय सहायता (सीए) के तहत मार्च, 2021 तक राज्यों को 8,696 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। इसके अलावा, मार्च, 2022 तक 4,326 योजनाओं के पूरा होने की जानकारी दी गई है। इन योजनाओं से 11.5 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता सृजित करने का लक्ष्य है और इसमें से 7.12 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता मार्च, 2022 तक पूरी होने की सूचना है। वर्तमान वित्त वर्ष 2022-23 में अभी तक 39.07 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की जा चुकी है।

जल निकायों की मरम्मत, नवीनीकरण और पुनर्स्थापना (आरआरआर) योजना के तहत, 12वीं योजना के बाद से, 2,881 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली 3,155 योजनाएं चल रही हैं। राज्यों को मार्च, 2022 तक 495.738  करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता (सीए) जारी की जा चुकी है। मार्च, 2022 तक 1,712 जल स्रोतों का काम पूरा करने की सूचना दी गई है। इन योजनाओं से 1.89 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता सृजित होने का लक्ष्य है और इसमें से मार्च, 2022 तक 1.32 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता बहाल होने की सूचना दी गई है। वर्तमान वित्त वर्ष 2022-23 में, अभी तक 11.85 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की जा चुकी है।

. राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना

एक केंद्रीय योजना राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना को जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग द्वारा विश्व बैंक के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वित किया जा रहा है। परियोजना का उद्देश्य जल संसाधनों की जानकारी की सीमा, गुणवत्ता और पहुंच में सुधार करना और भारत में लक्षित जल संसाधन पेशेवरों और प्रबंधन संस्थानों की क्षमता को मजबूत करना है।

वर्णित उद्देश्य के अनुरूप, एनएचपी समग्र रूप से जल संसाधन क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिए भरपूर प्रयास कर रहा है। अनुभव और निर्णय के आधार पर निर्णय लेने की वर्तमान व्यवस्था से हटकर,  आधुनिक एनालिटिकल टूल्स और रियल टाइम या लगभग रियल टाइम में जल चक्र के हर घटक पर स्वचालित सेंसरों से मिले पर्याप्ट डेटा पर निर्भर रहते हुए सूचित निर्णय लेने की प्रक्रिया की पेशकश के जरिये बेहतर जल प्रबंधन को लागू करने का प्रयास किया जा रहा है। उचित क्षमता निर्माण सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के संगठनों की भागीदारी से एक भागीदारी पूर्ण तरीके से यह काम किया जा रहा है और एनएचपी की कार्यान्वयन एजेंसियों (आईए) के रूप में संदर्भित संगठनों के बीच स्वामित्व की भावना मजबूत बनी हुई है। ऐसे 48 आईए हैं, जो 8 वर्ष (2016-17 से 2023-24) की अविधि के दौरान यह पहल लागू कर रहे हैं।

परियोजना अवधारणा :

  • जल संसाधन निगरानी नेटवर्क का आधुनिकीकरण
  • जानकारियों तक पहुंच में बदलाव
  • एनालिटिकल टूल्स का विकास
  • संस्थानों का आधुनिकीकरण और क्षमता विकास

लाभार्थी :

  • नदी बेसिन संगठनों (आरबीओ) सहित सतही जल और/या भूजल योजना और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार केंद्रीय और राज्य एजेंसियां
  • आम जनता और किसानों सहित अन्य हितधारक

इस परियोजना के तहत पहल :

  1. जल संसाधनों से संबंधित जानकारी, एनालिटिकल टूल्स और ज्ञान संबंधी उत्पादों तक पहुंच के लिए जल संसाधन डेटा-एकल खिड़की प्रणाली की एक राष्ट्रव्यापी डिपॉजिटरी के रूप में राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केंद्र की स्थापना की गई। केंद्र को 2018 में स्थापित किया गया था और सार्वजनिक डोमेन में वेब सक्षम प्रणाली के माध्यम से विभिन्न हितधारकों को जल संसाधन जानकारी प्राप्त करने और प्रसारित करने के लिए सक्षम बनाया किया गया था। एनडब्ल्यूआईसी ने जल और संबद्ध संसाधन सूचना और प्रबंधन प्रणाली (डब्ल्यूएआरआईएमएस) के विकास की एक महत्वाकांक्षी पहल की है, जिससे संसाधनों को अच्छी तरह से जानने और जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिए सोच-समझ कर निर्णय लेने में विभिन्न हितधारकों को सहायता मिलेगी। इसके लिए व्यवहार्यता रिपोर्ट नवंबर 2022 में पूरी कर ली गई है।
  2. रियल टाइम डेटा एक्विजिशन सिस्टम (आरटीडीएएस) पर जोर देने के साथ जलीय-मौसम संबंधी डेटा अधिग्रहण प्रणाली का आधुनिकीकरण। अभी तक दूरस्थ सतह और भूजल निगरानी स्थानों से रियल टाइम डेटा प्राप्त करने के लिए लगभग 10,000 हाइड्रो-मेट स्टेशन स्थापित किए गए हैं।
  • III. राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना की सभी केंद्रीय और राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों के बीच जलीय-मौसम संबंधी डेटा का निर्बाध साझाकरण, ताकि सोच-समझकर निर्णय लेने के लिए एनालिटिकल टूल्स के विकास में विभिन्न संगठनों द्वारा डेटा का उपयोग किया जा सके।
  • IV. जल संसाधनों की योजना और प्रबंधन और बाढ़ और सूखे जैसे चरम घटना प्रबंधन से निपटने के लिए गणितीय मॉडल, रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीक सहित विभिन्न एनालिटिकल टूल्स का उपयोग करने में भारत के राज्यों के जल संसाधन पेशेवरों की क्षमता का विकास आवश्यक है। नवंबर 2021 में, ऑस्ट्रेलिया वाटर पार्टनरशिप और ऑस्ट्रेलिया इंडिया वाटर सेंटर के सहयोग से एक अनूठा यंग वाटर प्रोफेशनल प्रोग्राम शुरू किया गया और इसे नवंबर 2022 में सफलतापूर्वक पूरा किया गया है।
  1. राष्ट्रीय/बेसिन स्तर पर जल संसाधनों की बेसिन स्तर की योजना बनाने के साथ-साथ चरम घटनाओं से निपटने के लिए कई आवश्यक एनालिटिकल टूल्स विकसित किए जा रहे हैं।

 

. राष्ट्रीय जल मिशन :

कैच द रेन अभियान : लोगों की सक्रिय भागीदारी के साथ बारिश को पकड़ने के लिए जलवायु परिस्थितियों और उप-मृदा स्तर के लिए उपयुक्त वर्षा जल संचयन संरचनाएं (आरडब्ल्यूएचएस) बनाने के लिए सभी हितधारकों को प्रेरित करने के लिए कैच द रेन टैगलाइन के साथ वर्षा जल संचयन- जब यह गिरे, जहां यह गिरे की शुरुआत की गई है। इस अभियान के तहत जल संचयन गड्ढे, रूफटॉप आरडब्ल्यूएचएस, रोक बंध बनाए जाते हैं; साथ ही तालाबों की भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए अतिक्रमण हटाना और टैंकों से गाद निकालना; जलग्रहण क्षेत्रों से उन तक पानी लाने वाले चैनलों में अवरोधों को हटाना आदि; बावड़ियों की मरम्मत और जलभृतों में पानी वापस डालने के लिए निष्क्रिय बोरवेलों का उपयोग करना आदि गतिविधियों को करने का सुझाव दिया गया है।

जल शक्ति अभियान : कैच द रेन - 2022” अभियान : देश के नागरिकों के बीच जागरूकता के प्रसार में 2019 और 2021 में जल शक्ति अभियानों की सफलता के बाद माननीय राष्ट्रपति द्वारा शुरू किए गए जहां यह गिरे, जब यह गिरे की विषय वस्तु पर शुरू किए गएजल शक्ति अभियान : कैच द रेन- 2022 को 29 मार्च, 2022 से 30 नवंबर, 2022 तक के लिए कार्यान्वित किया गया। यह तीसरा वर्ष है जब देश मिशन मोड में वर्षा जल के संरक्षण और भूजल पुनर्भरण के लिए जल आंदोलन का आयोजन कर रहा है।

30.11.2022 तक, अभियान के तहत कुल 10.58 लाख जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण किया गया है, 2.34 लाख पारंपरिक जल स्रोतों का नवीनीकरण किया गया है, 7.19 लाख पुन: उपयोग और पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण किया गया है, 13.33 लाख वाटरशेड विकास गतिविधियां शुरू की गई हैं और 78.26 करोड़ पौधे रोपे गए हैं। जेएसए अभियान : कैच द रेन के अंतर्गत सीडब्ल्यूपीआरएस के लगभग 125 अधिकारियों देश भर में विभिन्न स्थलों का भ्रमण किया।

जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (बीडब्ल्यूयूई) : सिंचाई, उद्योग और घरेलू क्षेत्र में जल के कुशल उपयोग को प्रोत्साहन, विनियमन और नियंत्रण के लिए जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में 20.10.2022 को जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (बीडब्ल्यूयूई) की स्थापना की गई है। ब्यूरो देश में सिंचाई, पेयजल आपूर्ति, बिजली उत्पादन, उद्योगों आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता में सुधार को बढ़ावा देने के लिए एक सुविधाप्रदाता के रूप में काम करेगा। ब्यूरो को अतिरिक्त सचिव और मिशन निदेशक, राष्ट्रीय जल मिशन की समग्र देखरेख में एक प्रभाग के रूप में स्थापित किया गया है।

. राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) : केन बेतवा लिंक परियोजना

भारत सरकार द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) के तहत व्यवहार्यता रिपोर्ट (एफआर) तैयार करने के लिए राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी ने 30 अंतर-बेसिन जल अंतरण लिंक (16 प्रायद्वीपीय और 14 हिमालयी घटक) की पहचान की है।

एनडब्ल्यूडीए केन-बेतवा लिंक परियोजना सहित छह प्राथमिकता लिंक परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए संबंधित राज्यों के बीच आम सहमति बनाने के लिए ठोस प्रयास कर रहा है। 7 लिंक की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर), 24 लिंक की व्यवहार्यता रिपोर्ट और सभी 30 लिंक की पूर्व-व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार कर ली गई हैं।

केन-बेतवा लिंक परियोजना (केबीएलपी) नदियों को आपस में जोड़ने (आईएलआर) की पहली परियोजना है, जिसके लिए एक स्पेशल परपज व्हीकल यानी केन बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण (केबीएलपीए) के माध्यम से 39,314 करोड़ रुपये के केंद्रीय समर्थन के साथ कुल 44,605 करोड़ रुपये (वर्ष 2020-21 के मूल्य स्तर) की अनुमानित लागत से कार्यान्वयन शुरू किया गया है। यह परियोजना मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों में फैले बुंदेलखंड क्षेत्र के पानी की कमी वाले इलाकों के लिए अत्यधिक लाभकारी होगी, जिसमें पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुर और रायसेन और बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिले शामिल हैं।

भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा पर्यावरण प्रबंधन और सुरक्षा उपायों के लिए एक व्यापक परिदृश्य प्रबंधन योजना तैयार की गई है और इसकी अंतिम रिपोर्ट 2 जून, 2022 को जारी कर दी गई। विभिन्न हितधारकों के माध्यम से लैंडस्केप प्रबंधन योजना का कार्यान्वयन शुरू करने के लिए ग्रेटर पन्ना लैंडस्केप काउंसिल (जीपीएलसी) के गठन की प्रक्रिया का कार्य प्रगति पर है।

परियोजना के कार्यान्वयन में केबीएलपीए की सहायता के लिए एक परियोजना प्रबंधन सलाहकार (पीएमसी) को नियुक्त करने का प्रस्ताव है और इसके लिए गठित एक परामर्श मूल्यांकन समिति (सीईसी) द्वारा पीएमसी की नियुक्ति के लिए आवश्यक तौर-तरीके शुरू कर दिए गए हैं। परियोजना को मार्च, 2030 तक 8 वर्षों में पूरा करने की योजना है।

7वां भारत जल सप्ताह 2022 : -

समानता के साथ सतत् विकास के लिए जल सुरक्षा की विषय वस्तु के साथ इंडिया एक्सपो सेंटर ग्रेटर नोएडा में 1-5 नवंबर 2022 के दौरान विभाग ने 7वें भारत जल सप्ताह- 2022 का आयोजन किया। यह आयोजन 1 नवंबर, 2022 को भारत के माननीय राष्ट्रपति द्वारा उद्घाटन के साथ शुरू हुआ, जिसमें माननीय राज्यपाल और उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री उपस्थित रहे थे। यह कार्यक्रम माननीय कृषि और किसान कल्याण और जल शक्ति मंत्रियों की उपस्थिति में भारत के माननीय उपराष्ट्रपति के समापन भाषण के साथ समाप्त हुआ। इस कार्यक्रम के व्यापक मीडिया कवरेज के साथ अच्छी भागीदारी देखने को मिली। जल क्षेत्र में काम कर रहे लगभग सभी हितधारकों यानी एमओजेएस के विभागों/संगठनों, केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, कई देशों के प्रतिनिधियों, उद्योग, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, नागरिक समाज, गैर सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थान, शोधकर्ता, छात्र, स्कूली बच्चों आदि को शामिल करते हुए इस कार्यक्रम में काफी समावेशी भागीदारी देखने को मिली। उद्घाटन समारोह में लगभग 2,000 प्रतिभागियों ने भाग लिया। अत्याधुनिक प्रदर्शनी में लगभग 100 उद्योगों, राज्य सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भाग लिया। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (आईसीआईडी, आईडब्ल्यूएमआई, विश्व बैंक) ने सम्मेलन और आयोजित सत्रों में भाग लिया। भागीदार देश यानी डेनमार्क ने मुख्य आयोजन से इतर एक कार्यक्रम का आयोजन किया। एमओजेएस के तहत विभिन्न विभागों ने जल शक्ति मंत्रालय के कार्यक्रमों/योजनाओं को प्रदर्शित करने और कवर करने के लिए नौ तकनीकी सत्रों का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में 10 सेमिनार और 10 पैनल चर्चा भी शामिल थीं। आयोजन के दौरान 200 सारांश/पत्र प्राप्त हुए और लगभग 100 प्रस्तुतियां/पोस्टर प्रस्तुतियां तैयार की गईं।

. बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021

चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है, जहां बांधों की संख्या सबसे ज़्यादा है। हमारे देश में करीब 5,700 बड़े बांध हैं, जिनमें से करीब 80 प्रतिशत बांध 25 वर्ष से भी ज़्यादा पुराने हैं। देश में करीब 227 ऐसे बांध हैं, जो 100 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं और आज भी कार्यरत हैं। वैसे तो भारत में बांध सुरक्षा का ट्रैक रिकॉर्ड विकसित देशों के समकक्ष रहा है, लेकिन कई ऐसे उदाहरण हैं, जब देश ने असमय बांध के फेल हो जाने और बांध के रखरखाव की दयनीय स्थिति जैसी समस्याओं का सामना किया है।

बांध सुरक्षा के मुद्दों का समग्र रूप से समाधान निकालने के लिए, केंद्र सरकार ने दिसंबर 2021 में बांध सुरक्षा अधिनियम लागू किया है और भारत के राजपत्र एस. ओ. 5422(ई) दिनांक 28.12.2021 के माध्यम से इसे अधिसूचित किया गया जो 30.12.2021 से प्रभावी होगा।

अधिनियम संस्थागत ढांचे के चार स्तरों का प्रावधान करता है : बांध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति (एनसीडीएस), राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एनडीएसए), बांध सुरक्षा पर राज्य समिति (एससीडीएस) और राज्य बांध सुरक्षा संगठन (एसडीएसओ) की स्थापना। बांध सुरक्षा अधिनियम के पारित होने के बाद केंद्र सरकार ने क्रमशः राजपत्र अधिसूचना एस. ओ. 757(ई) और जी. एस. आर. 134(ई) दिनांक 17 फरवरी, 2022 एवं एस. ओ. 758(ई) और जी. एस. आर. 135(ई) दिनांक 17 फरवरी 2022 के जरिये राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति (एनसीडीएस) का गठन किया है और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एनडीएसए) की स्थापना की है।

बांध सुरक्षा अधिनियम की धारा 52 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, केंद्र सरकार ने 17 फरवरी 2022 की राजपत्रित अधिसूचना के तहत राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति (प्रक्रिया, भत्ता और अन्य व्यय) नियम, 2022 और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (कार्य और शक्ति नियम, 2022) का प्रकाशन किया।

इसके अलावा, अधिनियम 2021 की धारा 31(1) के अनुसार, एक निर्दिष्ट बांध के प्रत्येक स्वामी को अपनी बांध सुरक्षा इकाई के माध्यम से हर साल मानसून से पहले और मानसून के बाद निरीक्षण करना होगा। अब तक, सभी राज्यों ने अधिनियम की धारा 11 और धारा 14 के प्रावधानों के अनुसार एससीडीएस और एसडीएसओ का गठन कर लिया है। इसके अलावा, बांध सुरक्षा अधिनियम 2021 के कार्यान्वयन के हिस्से के रूप में बांध मालिकों ने लगभग 5,364 निर्दिष्ट बांधों का निरीक्षण किया है।

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