विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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केन्‍द्रीय मंत्री डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने कोलकाता में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी (आईआईसीबी) का दौरा किया और निदेशक और वरिष्ठ वैज्ञानिकों से रोग निरोधी स्वास्थ्य सेवा अनुसंधान करने का आग्रह किया


मंत्री ने कहा, मोदी सरकार ने पिछले साढ़े आठ वर्षों में भारतीय स्‍वास्‍थ्‍य सेवा को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए अनेक उपाय किए

आईआईसीबी ने हैजे के लिए ओरल टीका, गैस्ट्रिक अल्सर को नियंत्रित करने के लिए हर्बल उत्पाद, विटिलिगो के इलाज के लिए अनुभवजन्य उपचार, घातक और हार्मोनल विकारों के लिए नैदानिक ​​किट और पार्किंसंस रोग का जल्द पता लगाने के लिए एक उपकरण विकसित किया है: डॉ. जितेन्‍द्र सिंह

Posted On: 30 DEC 2022 4:26PM by PIB Delhi

केन्‍द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी; पृथ्वी विज्ञान; प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)  डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने 1935 में स्थापित प्रमुख कोलकाता संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी (आईआईसीबी) का आज दौरा किया और निदेशक और वरिष्ठ वैज्ञानिकों से युवाओं में टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस जैसे मेटाबॉलिक डिसऑर्डर की रोकथाम पर विशेष ध्यान देने के साथ रोग निरोधी स्वास्थ्य देखभाल अनुसंधान करने का आग्रह किया ताकि भारत की युवा ऊर्जा को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण कम उपयोग होने देने के बजाय राष्ट्र निर्माण के लिए बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सके।

डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने कहा कि 2014 से स्वास्थ्य सेवा मोदी सरकार के प्रमुख फोकस क्षेत्रों में से एक रहा है, और उन्होंने भारतीय स्वास्थ्य सेवा को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए पिछले साढ़े 8 वर्षों में अनेक उपाय किए हैं।

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डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने रेखांकित किया कि जहां तक ​​स्वास्थ्य देखभाल का संबंध है, दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव है क्योंकि सरकार बीमारी के लिए जिम्मेदार कारकों को समाप्त करके और बीमारियों के उपचार को समावेशी बनाकर स्वास्थ्य के साथ-साथ कल्याण पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है।

डॉ. जितेन्‍द्र सिंह यह जानकर खुश थे कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी (आईआईसीबी) की स्थापना 1935 में जैव चिकित्सा अनुसंधान के लिए भारत में पहले गैर-आधिकारिक केन्‍द्र के रूप में की गई थी और 1956 में सीएसआईआर के संरक्षण में शामिल किया गया था। उन्होंने कहा, संस्थान विभिन्न रोगों के लिए अनूठी दवा के विकास के अलावा चिकित्सीय समाधान खोजने के उद्देश्‍य से विभिन्न रोगों को समझने के लिए रासायनिक जीव विज्ञान में अपनी अद्वितीय शक्ति का दोहन करने और प्रक्रिया रसायन विज्ञान के अलावा प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक है।

डॉ जितेन्‍द्र सिंह यह जानकर खुश थे कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी (आईआईसीबी) ने हैजे के लिए ओरल मौखिक टीका, गैस्ट्रिक अल्सर को नियंत्रित करने के लिए हर्बल उत्पाद, विटिलिगो के लिए अनुभवजन्य उपचार, घातक और हार्मोनल विकारों के लिए नैदानिक ​​किट और पार्किंसंस रोग का जल्द पता लगाने के लिए एक उपकरण विकसित किया है। उन्‍होंने कहा, हांलाकि सीएसआईआर-आईआईसीबी हमेशा बुनियादी जैव चिकित्सा अनुसंधान का केन्‍द्र रहा है, पिछले 8 वर्षों के दौरान व्यावसायिक लाभ की दिशा में लक्ष्योन्मुखी अनुसंधान पर जोर दिया जा रहा है।

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डॉ जितेन्‍द्र  सिंह ने यह भी बताया कि हालांकि सीएसआईआर-आईआईसीबी की स्थापना संक्रामक रोगों जैसे कालाजार, हैजा, मलेरिया आदि में अनुसंधान करने के लिए की गई थी, लेकिन यह धीरे-धीरे जैव चिकित्सा अनुसंधान में अत्याधुनिक अनुसंधान संस्थान में बदल गया है, जिसमें संक्रामक रोगों, प्रतिरक्षा प्रणाली, कैंसर, हृदय मधुमेह और यकृत रोगों सहित चयापचय संबंधी रोगों और कार्डियोवसकुलर डायबीटीज और लीवर संबंधी बीमारियों की बुनियादी समझ पर जोर दिया जा रहा है।

डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने कोरोना महामारी के संकट की शुरुआत से ही इससे लड़ने के मिशन में शामिल होने में आईआईसीबी की भूमिका की सराहना की क्योंकि इसने से कोविड जांच, जीनोम सीक्वेंसिंग से लेकर कनवलसेंट प्लाज्मा थेरेपी परीक्षण तक में मदद की। उन्‍होंने कहा, आईआईसीबी के वैज्ञानिक सीएसआईआर की मिशन मोड परियोजनाओं में भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, जो दवा के विकास, दवा के पुनर्उद्देश्य से लेकर एंटीवायरल मिशन तक हैं।

डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने कहा, सीएसआईआर-आईआईसीबी ने पिछले 50 वर्षों में विश्‍व स्‍तर पर अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की मदद से जीव विज्ञान अनुसंधान की जिस तेज और अभूतपूर्व गति को प्राप्त किया है, संस्‍थान उसके साथ राष्ट्रीय महत्व के रोगों और वैश्विक हित की जैविक समस्याओं पर शोध में  लगा हुआ है। वैज्ञानिक स्टाफ के पास रसायन विज्ञान, जैव रसायन, कोशिका जीव विज्ञान, आणविक जीव विज्ञान, तंत्रिका जीव विज्ञान और इम्यूनोलॉजी सहित विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता है जो लाभदायक अंतःविषय बातचीत को बढ़ावा देती है।

आईआईसीबी ने 1935 में मध्‍य कलकत्ता (41, धर्मतला स्ट्रीट) के एक छोटे से घर से भारतीय चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर) के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी। इसकी स्थापना डॉ. जे. सी. रे और एच.एन. घोष, ए.सी.उकिल और नबजीवन बनर्जी जैसे उनके युवा चिकित्सक सहयोगियों ने की थी। संस्थान का उद्देश्य बुनियादी और व्यावहारिक दोनों पहलुओं में जैव चिकित्सा विज्ञान पर शोध करना था। देश की स्वास्थ्य समस्याओं की जांच करने की आवश्यकता थी।

यह भारत का पहला गैर-सरकारी चिकित्सा अनुसंधान संस्थान था जिसका बहुत कम बजट निजी दान से आता था। संस्थान को रवींद्रनाथ टैगोर, मदन मोहन मालवीय, सर सी.वी. रमन, आचार्य पी.सी. रॉय, डॉ. नीलरतन सरकार और डॉ बिधान चंद्र रॉय जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों का मजबूत समर्थन मिला।

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रवींद्रनाथ टैगोर ने लोगों से अपील की "चिकित्सा अनुसंधान के लिए इस तरह के एक सुविचारित केन्‍द्र की स्थापना जनता से प्राप्त पर्याप्त दान चंदे पर निर्भर करती है। मैं अपने देशवासियों से इस संस्था के लिए सहायता की अपील करता हूं कि उनके समर्थन के माध्यम से वे इसे वास्तविक रूप से सफल बना सकते हैं।" आचार्य पी सी रॉय ने धनी लोगों से अनुरोध किया कि वे उदारतापूर्वक प्रतिक्रिया दें और संस्थान की मदद करें।

वर्तमान में, सीएसआईआर-आईआईसीबी के 2 परिसर हैं। मुख्य परिसर जादवपुर में है और दूसरा परिसर साल्ट लेक में स्थित है। साल्ट लेक परिसर का फरवरी 2016 में उद्घाटन किया गया था।

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एमजी/एएम/केपी


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