सूचना और प्रसारण मंत्रालय
आईएफएफआई53 मणिपुरी सिनेमा के 50 साल मना रहा है
"आईएफएफआई में मणिपुरी सिनेमा पर एक अनुभाग के रूप में हम वर्षों से संजोये अपने सपने को साकार होते देख रहे हैं": सुंजु बाचस्पतिमायुम
"हमारी फिल्में हमारी पहचान, संस्कृति, राजनीतिक मुद्दों और विशिष्ट जीवन शैली को दिखातीं हैं": अलेक्जेंडर एल पोउ
#आईएफएफआईवुड, 24 नवंबर 2022
आईएफएफआई 53 का शोपीस अनुभाग 'मणिपुरी सिनेमा के 50 साल' का उत्सव मना रहा है, जिसकी शुरुआत कल हुई है। मणिपुर फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी के सचिव, सुंजु बाचस्पतिमायुम ने कहा कि यह लंबे समय से संजोया हुआ सपना था, जो अब साकार हुआ है। उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और एनएफडीसी को समर्थन और स्वस्थ संबंध के लिए धन्यवाद दिया, जिसकी परिणति आईएफएफआई में मणिपुरी सिनेमा पर एक शोपीस अनुभाग के इस गौरवपूर्ण क्षण के रूप में हुई है।
फिल्म फोरम-मणिपुर के अध्यक्ष एल सुरजाकांत सरमा, निर्देशक अशोक वेइलो और रचनात्मक निर्माता अलेक्जेंडर एल पोउ के साथ श्री बाचस्पतिमायुम आईएफएफआई 53, गोवा में आयोजित आईएफएफआई "टेबल टॉक्स" के दौरान मीडिया और प्रतिनिधियों के साथ बातचीत कर रहे थे।
मणिपुरी सिनेमा के स्वर्ण जयंती उत्सव को मनाने के क्रम में इस वर्ष आईएफएफआई में फीचर और गैर-फीचर खंड की 5-5 फिल्मों के साथ कुल 10 फिल्में दिखायी जायेंगी। अनुभाग के तहत कल की उद्घाटन फिल्में थीं - गैर-फीचर फिल्म रतन थियम: द मैन ऑफ थिएटर और फीचर फिल्म ईशानौ।

श्री बाचस्पतिमायुम ने जब 1972 में मातामगी मणिपुर फिल्म रिलीज की थी, तो उसी समय मणिपुर सिनेमा का उदय हो गया था; और उसके बाद ब्रोजेंद्रागी लुहोंगबा फिल्म रिलीज की गई। मणिपुर में फिल्म निर्माताओं के सामने जो मुद्दे हैं, उन्होंने उनकी चर्चा की। इन मुद्दों में कम बजट से लेकर राजनीतिक हलचल तक के विषय शामिल हैं। इसके बावजूद हर वर्ष लगभग 45-50 फीचर फिल्में तैयार हो जाती हैं। इनमें से कुछ नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज होती हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि मणिपुर में फिल्म उद्योग परिपक्व हो रहा है।

फिल्म निर्माता अशोक वेलू और उनके भाई एलेक्जेंडर एल पो, दोनों कोलकाता स्थित सत्यजित रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट के पूर्व छात्र हैं। उन्होंने बताया कि उनकी फिल्मों में निजी प्रसंग भी होते हैं। उनके फीचर फिल्म राजनीतिक उथल-पुथल पर आधारित है, जिसका नाम लुक एट दी स्काई है। इसमें मतदान के अधिकार और अन्य संवैधानिक अधिकारों की बात की गई है। इस फिल्म पर उनके परिवार और उनके गांव से जुड़ी घटनाओं का बड़ा गहरा असर है।
उन्होंने गैर-पेशेवर, लेकिन अत्यंत प्रतिभाशाली अभिनेताओं की बहुत प्रशंसा की, जिन्होंने लुक एट दी स्काई में काम किया है। यहां इफ्फी में फिल्म दिखाये जाने के समय भी उनके काम को सराहा गया। निर्माता एलेक्जेंडर एल पो और अन्य लोगों ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि उनकी फिल्मों में उनके राज्य के अनोखे सांस्कृतिक जीवन और राजनीति की छाया नजर आती है। श्री सुनजू बाचस्पतिमायुम ने भी मणिपुर थियेटर की समृद्ध परंपरा के गहरे असर को रेखांकित किया, जिसके क्रम में उनकी पहली फीचर फिल्म मातामगी मणिपुर दरअसल तीर्थयात्रा नाटक पर आधारित है।

श्री सुनजू बाचस्पतिमायुम ने भी कहा कि मणिपुर में कई महीनों से सिनेमा हॉलों के बंद होने के बावजूद, हाल में दो पीवीआर थियेटर खुले हैं, जिनकी क्षमता 200 लोगों के बैठने की है। इसके साथ-साथ मणिपुर सिने जगत में ओटीटी प्लेटफार्म के प्रति भी आकर्षण पैदा हो रहा है, जिसके आधार पर स्थानीय फिल्म निर्माताओं को यह अवसर मिलने की संभावना है कि वे अपने काम को स्थानीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेश कर सकें।
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