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आज हम जैसे रचनात्मक कलाकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने काम से लोगों को परिचित कराना है: आर बाल्की


खराब मार्केटिंग के कारण हम बहुत सारे रचनात्मक अभिव्यक्तियों को खो रहे हैं

रचनात्मक कलाकारों के काम से लोगों को कैसे अवगत कराया जाए, यह आज की सबसे बड़ी चुनौती है। यह भावना आर बाल्की ने 'नेगोशिएटिंग एस्थेटिक्स एंड इकोनॉमिक्स' विषय पर पणजी, गोवा में चल रहे 53वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दौरान मयंक शेखर के साथ बातचीत के दौरान साझा की।

बातचीत की शुरुआत करते हुए, चीनी कम, पा, पैड मैन, चुप जैसी कई प्रशंसनीय फिल्मों के निर्देशक आर बाल्की ने कहा कि फीचर फिल्म निर्माण अपने मौलिक भावों के बारे में है। जब आपके मौलिक भावों में बहुत से लोगों की दिलचस्‍पी होने लगती है तो वह बॉक्स ऑफिस हिट में तब्‍दील हो जाती है। उन्होंने कहा, "कुछ चीजें जो आपको आकर्षित करती हैं और फिर जब यह बड़ी संख्या में लोगों को पसंद आती हैं, तो आप भाग्यशाली हैं। आपको जो पसंद है, उसमें हेरफेर करना असंभव है"।

मामले की गहराई में जाते हुए, आर. बाल्की ने कहा कि अपने करियर की शुरुआत से ही, यदि आप जो चाहते हैं उसे ठीक से व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं तो आप एक कलाकार के रूप में संघर्ष करते रहते हैं। उन्‍होंने कहा, कई बार लोगों को आपके काम के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं होती है, और इसके परिणामस्‍वरूप फिल्‍म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो सकती है"।

विज्ञापन के बारे में बात करते हुए आर बाल्की ने कहा कि किसी उत्पाद को किसी मशहूर हस्ती से जोड़ दें तो उसकी बिक्री अच्छी होती है। उन्होंने यह भी कहा कि विज्ञापन सिनेमा से ज्यादा आसान है क्योंकि विज्ञापन में लोग आपके आइडिया पर बहुत पैसा लगाने को तैयार रहते हैं लेकिन सिनेमा के लिए आपको लोगों को उस विचार के बारे में समझाने में कड़ी मेहनत करनी होगी जिसे आप बेचना चाहते हैं।

फिल्मों के विपणन पर अपने विचार साझा करते हुए, उन्होंने कहा कि एक प्रभावी विपणन साधन विकसित करने के लिए पर्याप्त शोध नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विज्ञापन वर्षों से बदलाव के दौर से गुजर रहा है। “प्रस्तुतियों के अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे हैं। फीचर फिल्‍म की तरह, विज्ञापनदाता यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि लोगों तक कैसे पहुंचा जाए और उन्हें कैसे मनाया जाए। उन्होंने कहा, 100 फिल्मों में से 90 फिल्में अच्छी कमाई नहीं कर पाती हैं क्योंकि वे प्रभावी रूप से लोगों तक नहीं पहुंच पाती हैं। हमें फिल्मों के विपणन का विज्ञान कभी नहीं मिला।"

फिल्मों की मार्केटिंग के महत्व पर जोर देते हुए, उन्होंने कहा कि खराब मार्केटिंग के कारण हम बहुत सारी रचनात्मक अभिव्यक्तियों को खो रहे हैं। उन्होंने कहा, “इस इंडस्ट्री को चलाने वाले बहुत सारे विशेषज्ञ हैं, लेकिन उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि फिल्मों की मार्केटिंग कैसे की जाए। डेटा एनालिटिक्स और मार्केटिंग का पहलू पर्याप्त मजबूत नहीं हैं।”

आर. बाल्की ने कहा कि बड़े सितारों के बिना सिनेमा के लिए समय बेहद कठिन होगा। बहुत सारी छोटे विचारों के पास अगर बड़े सितारे हों, तो वे बहुत पैसा कमायेंगी। अगर सितारों ने बड़े विचारों में निवेश किया होता तो सिनेमा बहुत तेजी से आगे बढ़ता। उन्होंने कमल हासन का उदाहरण दिया जिन्होंने 80 के दशक में नए विचारों के साथ प्रयोग किया और बड़ी सफलता अर्जित की।

आर. बाल्की का यह भी मानना ​​है कि किसी बड़े निगमों के सीईओ के साथ बिजनेस मीटिंग और किसी मशहूर अभिनेता से मुलाकात में ज्यादा अंतर नहीं है। दोनों ही मामलों में आपको उन्हें राजी करना होगा और निगम को राजी करना आसान है।

अपनी नई फिल्म ‘चुप’ के बारे में बात करते हुए, आर. बाल्की ने कहा कि यह फिल्म बहुत ही व्यक्तिगत है और उनके दिल के बेहद करीब है। उन्होंने आगे कहा कि इस फिल्म के बारे में लोगों को जागरूक करना जरूरी है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देखें और यह सफल हो।

इस सवाल पर कि आप अपने विचार के बारे में लोगों को कैसे समझाने का प्रयास करते हैं, उन्होंने कहा कि वह दूसरों को समझाने की ज्यादा कोशिश नहीं करते हैं। उन्होंने कहा, "मैं दूसरों को समझाने की कोशिश नहीं करता, बल्कि मैं अपने विचार और इसे चित्रित करने के तरीकों के बारे में खुद को समझाने की कोशिश करता हूं।” इस बातचीत का संचालन फिल्म पत्रकार मयंक शेखर ने किया।

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