संस्‍कृति मंत्रालय

प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक कार्यक्रम 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथा' में हिस्सा लिया


प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों को उनके बलिदान के लिए नमन किया

"मानगढ़ राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के लोगों की साझी विरासत है": प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण है कि गुमनाम नायकों को उनका उचित सम्मान और हमारे इतिहास में स्थान मिले: श्री अर्जुन राम मेघवाल

Posted On: 01 NOV 2022 5:16PM by PIB Delhi

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज एक सार्वजनिक कार्यक्रम 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथा' में हिस्सा लिया तथा स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों को उनके बलिदान के लिए नमन किया। कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री ने धूनी दर्शन किए और गोविंद गुरु की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।

सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि मानगढ़ की पवित्र भूमि में आना हमेशा प्रेरक होता है जो हमारे जनजातीय वीरों की तपस्या, त्याग, बहादुरी और बलिदान का प्रतीक है। उन्होंने कहा, "मानगढ़ राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के लोगों की साझी विरासत है।" प्रधानमंत्री ने गोविंद गुरु को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनकी पुण्यतिथि 30 अक्टूबर को थी।


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गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, प्रधानमंत्री ने मानगढ़ के क्षेत्र के प्रति अपनी सेवा को याद किया जो गुजरात का हिस्सा है और बताया कि गोविंद गुरु ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष यहां बिताए, और उनकी ऊर्जा व उनकी शिक्षाएं अभी भी इस भूमि की मिट्टी में महसूस की जा सकती हैं। प्रधानमंत्री ने याद किया कि वन महोत्सव के मंच के माध्यम से सभी से आग्रह करने के बाद पूरा क्षेत्र हरा-भरा हो गया, जो पहले वीरान भूमि था। प्रधानमंत्री ने अभियान के लिए निःस्वार्थ भाव से काम करने के लिए जनजातीय समुदाय को धन्यवाद दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि विकास से न केवल स्थानीय लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है, बल्कि गोविंद गुरु की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार भी हुआ है। प्रधानमंत्री ने कहा, "गोविंद गुरु जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी भारत की परंपरा और आदर्शों के प्रतिनिधि थे।उन्होंने कहा, “गोविंद गुरु ने अपना परिवार खो दिया लेकिन कभी अपना हौसल नहीं खोया और हर आदिवासी को अपना परिवार बनाया।" प्रधानमंत्री ने कहा कि एक ओर यदि गोविंद गुरु ने जनजातीय समुदाय के अधिकारों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, तो दूसरी ओर, उन्होंने अपने समुदाय की बुराइयों के खिलाफ भी अभियान चलाया, क्योंकि वे एक समाज सुधारक, आध्यात्मिक गुरु, एक संत और एक लोक-नेता थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका बौद्धिक व दार्शनिक पहलू उनके साहस और सामाजिक सक्रियता की तरह ही जीवंत था।

मानगढ़ में 17 नवंबर, 1913 के नरसंहार को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा अत्यधिक क्रूरता का एक उदाहरण था। श्री मोदी ने कहा, "एक तरफ हमारे पास निर्दोष आदिवासी थे जो आजादी की मांग कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने मानगढ़ की पहाड़ियों को घेरकर दिन-दहाड़े एक हजार पांच सौ से अधिक निर्दोष युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों का नरसंहार किया।प्रधानमंत्री ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के कारण स्वतंत्रता संग्राम की इतनी महत्वपूर्ण और प्रभावशाली घटना को इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिल पाई। प्रधानमंत्री ने कहा, "इस आजादी का अमृत महोत्सव में, भारत उस कमी को पूरा कर रहा है और दशकों पहले की गई गलतियों को सुधार रहा है।"

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इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल, केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल उपस्थित थे।

इस अवसर पर अपने स्वागत भाषण में श्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि यह वास्तव में एक ऐतिहासिक क्षण है कि श्री नरेन्द्र मोदी इस बलिदान की भूमि पर आए हैं। उन्होंने कहा, "आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने संस्कृति मंत्रालय को भारत के गुमनाम नायकों को याद करने और सम्मान देने का महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा, और मैं यहां 13 अगस्त को आजादी का अमृत महोत्सव के लिए इस प्रतिष्ठित स्थान पर आया था और तब लोगों ने प्रधानमंत्री के यहां आने की इच्छा व्यक्त की थी, जो आज पूरी हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण है कि गुमनाम नायकों को उनका उचित सम्मान और हमारे इतिहास में स्थान मिलना चाहिए।

इस अवसर पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति देकर मानगढ़ और भारत की भूमि को अपने खून से सींचा है, जिसके बाद हमें आजादी मिली है। उन्होंने कहा कि ऐसे कई गुमनाम नायक है जिन्होंने बलिदान दिया लेकिन उन्हें वह सम्मान नहीं मिला और यह हमारे प्रधानमंत्री मोदी ही हैं जिन्होंने पूरे भारत में हर साल 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की पहल की है।

उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि इस अमृत काल में हमारी प्रतिबद्धताओं में से एक प्रतिबद्धता है कि हम अपनी विरासत पर गर्व करें और हम सभी को स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने कहा, "आज मैं उन सभी जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देना चाहता हूं जिन्होंने हमारी आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।"

राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने कहा कि मानगढ़ की भूमि का अपना इतिहास है। 17 नवंबर, 1913 को गोविंद गुरु के नेतृत्व में आदिवासियों ने हमारी आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, जहां 1500 से अधिक आदिवासियों को अंग्रेजों ने गोली मार दी थी। मानगढ़ की धरती पर जो बलिदान हुआ वह अब इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया है।

इस अवसर पर केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते, सांसद, विधायक भी उपस्थित थे।

पृष्ठभूमि

आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में, सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों को याद करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें 15 नवंबर (जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती) को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में घोषित करना, समाज में जनजातीय लोगों के योगदान को मान्यता देने और स्वतंत्रता संग्राम में उनके बलिदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए देश भर में जनजातीय संग्रहालयों की स्थापना करना आदि शामिल हैं। इस दिशा में एक और कदम उठाते हुए, प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों के बलिदान के लिए उन्हें नमन करने के लिए राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ हिल में एक सार्वजनिक कार्यक्रम- 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथामें भाग लिया। इस कार्यक्रम के दौरान, प्रधानमंत्री ने भील स्वतंत्रता सेनानी श्री गोविंद गुरु को नमन किया तथा भील आदिवासियों और क्षेत्र के अन्य जनजातीय आबादी की एक सभा को भी संबोधित किया।

मानगढ़ पहाड़ी भील समुदाय और राजस्थान, गुजरात व मध्य प्रदेश की अन्य जनजातियों के लिए विशेष महत्व रखती है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जहां भील और अन्य जनजातियों ने अंग्रेजों के साथ लंबे समय तक संघर्ष किया, 17 नवंबर, 1913 को श्री गोविंद गुरु के नेतृत्व में 1.5 लाख से अधिक भीलों ने मानगढ़ हिल पर रैली की। इस सभा पर अंग्रेजों ने गोलियां चलाईं, जिससे मानगढ़ नरसंहार हुआ जहां लगभग 1500 आदिवासी शहीद हुए।

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