पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
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प्रधानमंत्री ने गुजरात के एकता नगर में पर्यावरण मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया


"पर्यावरण मंत्रालय की भूमिका एक नियामक के बजाय पर्यावरण संरक्षक के रूप में अधिक",श्री मोदी

'प्रधानमंत्री ने ग्लासगो में पूरी दुनिया को मिशन लाइफ का विजनदिया': श्री भूपेन्‍द्र यादव

"हम एक टीम के रूप में काम करके आत्मनिर्भर भारत की कल्‍पना में योगदान कर सकते हैं": केन्‍द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री

दो दिवसीय सम्मेलन बेहतर नीतियां बनाने के लिए केन्‍द्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल करेगा

सम्मेलन में पर्यावरण पर छह विषयगत सत्र शामिल थे

Posted On: 24 SEP 2022 6:24PM by PIB Delhi

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रियों का राष्ट्रीय सम्मेलन गुजरात के एकता नगर में आयोजित किया गया।दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन कल प्रधानमंत्री ने वर्चुअली किया।

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सम्मेलन में देश भर के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रियों ने भाग लिया।सम्‍मेलन की शुरुआत गुजरात के मुख्‍यमंत्री श्री भूपेन्‍द्रभाई पटेल के स्‍वागत भाषण और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेन्‍द्र यादव के भाषण से हुई। सम्‍मेलन में अन्य गणमान्य व्यक्तियों के अलावा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे भी उपस्थित थे।ईएफएंडसीसी मंत्रियों के दो दिवसीय सम्‍मेलन में संबद्ध राज्‍यों के वन और पर्यावरण मंत्री,राज्‍यों के सचिवों के अलावा पीसीसीएफ के साथ राज्‍य पीसीबी/पीसीसी के अध्‍यक्ष भी शामिल हुए।

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प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि भारत न केवल अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी प्रगति कर रहा है, बल्कि दुनिया के अन्य देशों का भी मार्गदर्शन कर रहा है।प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, और यह अपनेपर्यावरण में भी लगातार वृद्धि कर रहा है।

वर्ष 2070 के शुद्ध शून्य लक्ष्य की ओर सभी का ध्यान आकर्षित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश का ध्यान हरित विकास और हरित रोजगार पर है। उन्होंने इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में राज्यों के पर्यावरण मंत्रालयों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं सभी पर्यावरण मंत्रियों से आग्रह करता हूं कि वे राज्यों में जितना संभव हो एक सर्कुलर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दें।" श्री मोदी ने यह कहते हुए अपनी बात को पूरा किया कि यह ठोस अपशिष्ट प्रबंधन अभियान को काफी मजबूत करेगा और हमें एकल उपयोग प्लास्टिक के खतरे से भी मुक्त करेगा।

पर्यावरण मंत्रालयों की भूमिका का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इस भूमिका को नियामक भूमिका में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने इस तथ्य पर खेद व्यक्त किया कि लंबे समय तक पर्यावरण मंत्रालयों ने एक नियामक के रूप में अपनी भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री ने कहा, " मैं समझता हूं कि पर्यावरण मंत्रालय की भूमिका एक नियामक के बजाय पर्यावरण के संरक्षक के रूप में अधिक है।उन्होंनेराज्योंसेवाहनस्क्रैपिंगनीति, और जैव ईंधन उपायों जैसे इथेनॉल सम्मिश्रण जैसी पहलों को अपनाने और उन्हें जमीनी स्‍तर पर मजबूत करने में मदद करने के लिए कहा। उन्होंने इन उपायों को बढ़ावा देने के लिए राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और सहयोग स्‍थापित करने को कहा।

केवड़िया, एकता नगर में सीखने के अवसरों की ओर इशारा करते हुए, प्रधानमंत्री ने पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के एक साथ विकास, पर्यावरण को मजबूत करने और रोजगार के नए अवसर सृजित करने, इको-टूरिज्‍म को बढ़ाने के लिए एक माध्‍यम जैव-विविधता पर्यटनऔर यह समाधान निकालने कि हमारे आदिवासी भाइयों और बहनों की संपत्ति से जंगल की संपत्ति कैसे बढ़ती है, जैसे मुद्दों के समाधान पर टिप्पणी की।

प्रधानमंत्री का संबोधन :

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केन्‍द्रीय मंत्री भूपेन्‍द्र यादव ने भी कल पर्यावरण मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल की प्रतिमा के सामने,एक विशेष शिल्प के साथ विकास के इस दर्शन और देश के पर्यावरण विकास की संरचना को देखकर, सभी मंत्री और अधिकारी विश्वास व्यक्त कर रहे हैं कि यह निश्चित रूप से एक श्रेष्ठ भारत है: सर्वश्रेष्ठ भारत का विजन।

श्री यादव ने उल्लेख किया कि माननीय प्रधानमंत्री ने ग्लासगो में पूरी दुनिया को मिशन लाइफ का विजन दिया था। मिशन लाइफ के सत्र पर नीति आयोग के कार्यकारी अधिकारियों के साथ राष्ट्रीय कार्य योजना और राज्य कार्य योजना के साथ एक चर्चा की योजना बनाई गई थी।

श्री यादव ने कहा कि विश्व के पर्यावरण एसएमपी में प्लास्टिक प्रतिबंध का विषय उठाया गया था और भारत ने इस संबंध में पर्याप्त कदम उठाए हैं।

श्री यादव ने साझा किया कि माननीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व और परिकल्‍पना के तहत हम देश में चीतों को दोबारा लाकर देश को पारिस्थितिक सद्भाव की ओर ले गए हैं। इस दृष्टिकोण से वन्‍य जंतु का विषय, जैव विविधता और आर्द्र प्रदेश के संरक्षण के विषय पर भी सम्‍मेलन में चर्चा की गई।

केन्‍द्रीय मंत्री ने बताया कि भारत को 75 आर्द्रप्रदेशों के लिए रामसर साइट का दर्जा मिला है।उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण की चिंता के साथ-साथ कृषि वानिकी विषय को सम्मेलन में चर्चा के विषयों में शामिल किया गया।

श्री यादव ने जोर देकर कहा कि दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन इस उम्मीद के साथ किया गया कि हम एक टीम के रूप में काम करके एक आत्मनिर्भर भारत की कल्‍पना में योगदान दे सकते हैं।

दो दिवसीय सम्मेलन 23 और 24 सितम्‍बर को आयोजित की गई जिसमें छह विषयगत सत्र थे। इनमें जीवन पर ध्यान केन्‍द्रित करने वाले विषय थे, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला (उत्सर्जन के शमन और जलवायु प्रभावों के अनुकूलन के लिए जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजनाओं को अद्यतन करना); परिवेश (सिंगल विंडो सिस्टम फॉर इंटीग्रेटेड ग्रीन क्‍लीयरेंसेस), वानिकी प्रबंधन, प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण, वन्यजीव प्रबंधन;प्‍लास्टिक और कचरा प्रबंधन।

पहला विषयगत सत्र परिवेश (प्रो-एक्टिव एंड रेसपोंसिव फेसीलिटेशन बाय इंटरेक्टिव एंड वर्चुअस एनवायरमेंट सिंगल-विंडो हब) पर कल आयोजित किया गया। परिवेश को अगस्त 2018 में मंजूरी देने में लगने वाले समय को कम करने के माननीय प्रधानमंत्री के विजन को प्राप्त करने के लिए शुरू किया गया था। एक ट्रेंड अनेलसिस के माध्यम से 2014 के बाद से, यह समझाया गया था कि कैसे कई नीति सुधारों के साथ मिलकर परिवेश नेपर्यावरण मंजूरी (ईसी) और वन मंजूरी (एफसी) मिलने में लगने वाले समय को कम करने में मदद की है।

कोविड-19 महामारी के दौरान, नए नियम ने हमारे समाज को सेवाओं को प्राप्त करने के लिए भौतिक स्पर्श बिंदुओं को कम करने के लिए और अधिक प्रौद्योगिकी संचालित समाधानों की तलाश करने के लिए प्रेरित किया। तेजी से हरित मंजूरी और अनुपालन के लिए उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने पर परिवेशपर उपयोगकर्ताओं के अनुभव को बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की गई और तदनुसारमंत्रालय ने कुल 16 मॉड्यूल और 140 से अधिक प्रमुख कार्यात्मकताओं के साथ मौजूदा परिवेश का दायरा बढ़ाने का कार्य लिया है। परिवेशमें परिकल्पित कुछ प्रमुख मॉड्यूल हैं विन्यास योग्य व्यवस्थापक मॉड्यूल, निर्णय समर्थन प्रणाली (डीएसएस), अपने अनुमोदन को जानें (केवाईए), सीएएमपीएएमजीएमटी, हेल्पडेस्क एमजीएमटी, लीगल रिपॉजिटरी, ऑडिटर एमजीएमटी, एंटिटी लेजर, पेमेंट गेटवे। लगभग 10000 से अधिक नियामक हितधारकों को परिवेशके वर्कफ़्लो ऑटोमेशन के माध्यम से जोड़ा जाएगा।

यह भी जिक्र किया गया कि परिकल्पित परिवेशएक प्रौद्योगिकी संचालित, पेशेवर रूप से प्रबंधित संस्थागत तंत्र होगा, जो सभी ग्रीन क्लीयरेंस के प्रबंधन और बाद में अनुपालन प्रबंधन के लिए एक ''सिंगल विंडो'' प्लेटफॉर्म के रूप में काम करेगा।प्रमुख ड्राइवर प्रक्रिया परिवर्तन, तकनीकी परिवर्तन और डोमेन ज्ञान हस्तक्षेप हैं।

परिकल्पित परिवेश का उद्देश्य वास्‍तविकता के एक स्रोत, प्रक्रिया और डेटा सिंक्रनाइज़ेशन के माध्यम से प्रभावशीलता, पारदर्शी और सूचित निर्णय लेने और "न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन" को मजबूत करना है।वर्तमान में परिकल्पित परिवेशविकास कार्य प्रगति पर है और 2022 के अंत तक इसे शुरू करने की योजना है।

 

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परिवेश के बाद, पर्यावरण के लिए जीवन शैली पर एक प्रेरक सत्र आयोजित किया गया था। सत्र श्री श्री रविशंकर द्वारा लिया गया। उन्होंने ग्लासगो में प्रधानमंत्री श्री  मोदी द्वारा निर्धारित एलआईएफई के विषय पर बात की और उल्लेख किया कि भारत को इन प्रयासों के लिए पहचाना जा रहा है। उन्‍होंने छत्तीसगढ़ कीआदिवासी जीवन शैली का उदाहरण दिया जहां उन्होंने हवा और पानी दोनों में कोई प्रदूषण नहीं देखा। उन्होंने महसूस किया कि इसे शहरी जीवन शैली में भी अपनाया जाना चाहिए। पर्यावरण के पंचतत्व को संरक्षित किया जाना चाहिए।उन्होंने प्राकृतिक खेती की अवधारणा की भी सराहना की जिसमें कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्राकृतिक रोगाणुओं और अन्य प्रजातियों का उपयोग किया जाता है।

उन्होंने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि पर्यावरण और मानसिकता कैसे जुड़े हुए हैं। श्री श्री रविशंकर ने कहा कि जब कोई व्यक्ति तनावग्रस्त होता है, तो वह सामाजिक या भौतिक वातावरण दोनों में जिम्मेदारी से प्रतिक्रिया नहीं करता है और रोपण और खेती जैसे कार्यों के माध्यम से पर्यावरण के लिए काम करते समय, यह मानसिक तनाव दूर करता है।उन्होंने पर्यावरण और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य दोनों के लिए ऐसे कार्यों की वकालत की। उन्‍होंने सभी से संकट में लोगों की मदद करने का आग्रह किया, ऐसा करने का एक अच्छा तरीका अतीत की उपलब्धियों को प्रतिबिंबित करना है। मुस्कान फैलाएं और एक स्वस्थ जीवन जिएं, जिस पर उन्होंने ध्यान केंद्रित किया। एकत्रित लोगों में ऊर्जा का संचार करने और आध्यात्मिक जागृति लाने के लिए 20 मिनट का ध्यान कराया।

कल आयोजित दूसरा विषयगत सत्र जलवायु परिवर्तन का मुकाबला और एलआईएफई के सारांश पर था। नीति आयोग के सीईओ श्री परमेश्वरन अय्यरने पर्यावरण के लिए जीवन शैली (एलआईएफई) आंदोलन पर एक प्रस्तुति दी। प्रस्तुति में मिशन लाइफ, इसके लक्ष्यों, उद्देश्यों और भावी प्रभावोंके बारे में बताया गया और यह भी बताया गया कि मिशन लाइफ जन आंदोलन कैसे बन सकता है। नीति आयोग के सीईओ ने मिशन लाइफ के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने में केन्‍द्रीय और राज्य मंत्रालयों और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभागों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कियूएनएफसीसीसी रजिस्ट्री पर एनडीसी को अपडेट करना मिस्र में आगामी सीओपी 27 के आलोक में एक महत्वपूर्ण कदम है।

श्री अय्यर ने आगे कहा कि हमें अपने पर्यावरण को बचाने और संरक्षित करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर या समुदाय के स्तर पर किए जा सकने वाले कार्यों के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि रोजमर्रा की साधारण गतिविधियां पर्यावरण को संरक्षित करने में मदद कर सकती हैं। उन्होंने आगे कहा कि स्थिरता हमारी संस्कृति और परंपरा का मूल है और भारत दुनिया को स्थिरता की ओर ले जा रहा है। उन्होंने कहा कि मिशन लाइफ के तहत और लोगों को पृथ्‍वी का हितैषी बनने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है, नासमझ और विनाशकारी होना बंद करें और इसके बजाय दिमागी और संसाधनों के रचनात्मक उपयोग की ओर बढ़ें। मिशन लाइफ भारत के नेतृत्व वाला एक वैश्विक जन आंदोलन है जिसके अंतर्गत पर्यावरण की रक्षा के लिए दुनिया भर में सरल जोड़ने वाले कार्य किए जा सकते हैं। इन कार्यों से अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न नहीं होना चाहिए और वास्तव में नौकरियों और विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए।

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श्री अय्यर ने कहा, मिशन लाइफ राज्य सरकार और केन्‍द्र सरकार के मौजूदा संस्थानों, संसाधनों और कार्यक्रमों का लाभ उठाएगा।प्रस्तुति देते समय उन्होंने साधारण जीवन क्रियाओं की एक सूची भी साझा की जिसमें खरीदारी के दौरान कपड़े के बैग ले जाना, ब्रश करते समय पानी के नल को बंद रखना, बिजली के उपकरणों को बंद करना; डबल साइड प्रिंटिंग, आदिशामिल है। 2022-28 से मिशन लाइफ की महत्वाकांक्षा भारत की आबादी के दो तिहाई हिस्‍से को पृथ्‍वी का हितैषी बनने और कम से कम 80 देशों के साथ साझेदारी करने के लिए इसे वैश्विक जन-आंदोलन बनाने की है। उन्होंने कहा कि मिशन लाइफ शुरू में 6 प्राथमिकता वाली श्रेणियों जैसे ई-कचरा, प्लास्टिक अपशिष्ट, ऊर्जा की बचत, पानी की बचत, पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग, और खाद्य अपशिष्ट से बचने के लिए 75 लाइफ कार्यों पर ध्यान केन्‍द्रित करेगा।

कुछ कार्यों का सुझाव देते हुए, उन्होंने सम्मेलन में प्रतिभागियों से सीढ़ियों का उपयोग करने का आग्रह किया, जब संभव हो, कम से कम प्रिंट करें और एयर कंडीशनर का कम से कम उपयोग करें। उन्होंने मंत्रियों से अन्य मंचों के माध्यम से घटनाओं, अभियानों और प्रशिक्षण के माध्यम से निर्वाचन क्षेत्र में लाइफ को बढ़ावा देने का अनुरोध किया, जिससे नागरिकों को सोशल मीडिया सहित ऑनलाइन और ऑफलाइन संचार के माध्यम से पृथ्‍वी का हितैषी बनने के लिए प्रेरित किया जा सके।

समापन करते हुए, नीति आयोग के सीईओ श्री अय्यर ने कहा कि वैश्विक जन आंदोलन का नेतृत्व भारत के लोग करेंगे, जहां व्यक्ति मायगवपोर्टल पर अपने दैनिक जीवन के कार्यों के वीडियो अपलोड करेंगे। लाइफ के विजन विश्‍व के लिए स्थिरता का एक प्रतिकृति वैश्विक मॉडल बनने की आवश्यकता है।

सम्मेलन के दौरान "उत्सर्जन के शमन और जलवायु प्रभावों के अनुकूलन के लिए जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजनाओं (एसएपीसीसी) को अद्यतन करने" पर भी चर्चा की गई।

जलवायु परिवर्तन के लिए भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) अपने राष्ट्रीय मिशनों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन के लिए व्यापक नीतिगत ढांचा प्रदान करती है और एनएपीसीसी के अनुरूपजलवायु परिवर्तन के संदर्भ में प्रमुख लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बहुआयामी, दीर्घकालिक और एकीकृत रणनीतियों का प्रतिनिधित्व करती है। इन कार्य योजनाओं को जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना (एसएपीसीसी) के रूप में जाना जाता है।

भारत के माननीय प्रधानमंत्री द्वारा सीओपी 26 में पंचामृत की घोषणा और लाइफ, 'लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट' परआंदोलन के आह्वानके बाद भारत ने अगस्त 2022 में 2021-2030 के लिए अपने राष्ट्रीय निर्धारित योगदान में सुधार किया। जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, (एनएपीसीसी)की तर्ज पर, सभी एसएपीसीसीमें नवीनतम वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि के साथ-साथ पेरिस समझौते के तहत भारत के एनडीसीके साथ श्रेणीबद्ध करने के लिए संशोधित किया जा रहा है। भारत के जीएचजीउत्सर्जन प्रोफ़ाइल का हवाला देते हुए, इस बात पर भी गौर किया गया कि प्रमुख उत्सर्जन ऊर्जा क्षेत्र के माध्यम सेहै, अन्य उद्योग, कृषि और अपशिष्ट क्षेत्र हैं, जिन पर एसएपीसीसीको डिजाइन करते समय ध्यान देने की आवश्यकता है।

संशोधित एसएपीसीसी राज्यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों के प्रमुख क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन पर ध्यान केन्‍द्रित करने वाली रणनीतियों और नीतियों को प्रतिबिंबित करने के लिए राज्य का एक नीति दस्तावेज है। उम्‍मीद की जा रही है कि एसएपीसीसी वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रमुख इकोसिस्‍टम की अतिसंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के अनुमानित प्रभावों की रिपोर्ट पर आधारित होगा।

राज्य/संघ राज्य क्षेत्र अपने एसएपीसीसी दस्तावेजों में अनेक शमन और अनुकूलन उपायों,जैसे कुशल और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों का उपयोग, नवीकरणीय ऊर्जा, ई-गतिशीलता, अपशिष्ट प्रबंधन, लचीलेपन के साथ जलवायु का बुनियादी ढांचा, वनीकरण, टिकाऊ शहरीकरण और जल संरक्षणको शामिल कर रहे हैं। एसएपीसीसी जलवायु जोखिमों और अतिसंवेदनशीलता की एक अच्छी वैज्ञानिक समझ पर आधारित होने चाहिए। इसके अलावा, एसएपीसीसी को उपयुक्त उपायों और नीतियों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए राज्य/केन्‍द्रशासित प्रदेश की सर्वोच्‍च संभावित महत्वाकांक्षा को प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है। एसएपीसीसी व्यापक विकास प्रक्रिया में जलवायु संबंधी चिंताओं को मुख्य धारा में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और पेरिस समझौते के तहत भारत के एनडीसी की उपलब्धि में मदद करेगा। एसएपीसीसी को राज्य के लिए क्षेत्र-विशिष्ट और क्रॉस-सेक्टोरल, समयबद्ध प्राथमिकता कार्यों को निर्धारित करना चाहिए, बजटीय आवश्यकताओं की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए, और योजना प्रक्रियाओं सहित आवश्यक संस्थागत और नीतिगत बुनियादी ढांचे की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए।

तीसरा विषयगत सत्र प्लास्टिक और अपशिष्ट प्रबंधन पर आयोजित किया गया था। सत्र की शुरुआत प्लास्टिक और अपशिष्ट प्रबंधन पर एक प्रस्तुति के साथ हुई। प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016, जो देश में प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए नियामक ढांचा प्रदान करता है, उस पर प्रकाश डाला गया। प्रधानमंत्री की भारत को सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त बनाने और मिशन सर्कुलर इकोनॉमी की ओर बढ़ने पर प्रकाश डाला गया।

यह भी बताया गया कि सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धांतों का पालन करते हुए देश में कचरे के प्रबंधन के लिए नियामक ढांचे को 2016 में व्यापक रूप से संशोधित किया गया है। कचरे के प्रसंस्करण की क्षमता जैसे ठोस कचरा, खतरनाक अपशिष्ट, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट, ई-कचरा प्‍लास्टिक कचरा, निर्माण और इमारत गिरने से फैला मलबा पिछले 8 वर्षों में बहुत बढ़ा है।अप्रबंधित और कूड़ा-कर्कट फैलाने वाले प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए सरकार द्वारा अपनाई गई रणनीति के दो स्तंभ हैं (i) एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध जो बहुत अधिक कूड़ा-कर्कट फैलाते हैं और जिनकी कम उपयोगिता है, और (ii) कार्यान्वयन ने प्लास्टिक पैकेजिंग पर निर्माता की जिम्मेदारी बढ़ा दी है।

प्लास्टिक पैकेजिंग पर ईपीआर के कार्यान्वयन से (i) देश में कूड़ा-कर्कट फैलाने वाले और अप्रबंधित प्लास्टिक कचरे में कमी आएगी, (ii) प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे की सर्कुलर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, (iii) प्लास्टिक के नए विकल्पों के विकास और नए व्यापार मॉडल के विकास को बढ़ावा मिलेगा और (iv) टिकाऊ प्लास्टिक पैकेजिंग की ओर बढ़ा जा सकेगा। ईपीआर ढांचा एक केन्‍द्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से लागू किया गया है जो व्यापार करने में आसानी सुनिश्चित करता है।

सर्कुलर इकोनॉमी सिद्धांतों को क्रियाशील बनाने के लिए विभिन्न अपशिष्ट धाराओं जैसे ई-वेस्ट, वेस्ट टायर, वेस्ट बैटरी में विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी को अनिवार्य करने वाले नियमों को अधिसूचित किया गया है। सर्कुलर इकोनॉमी दृष्टिकोण से न केवल पर्यावरणीय लाभ होते हैं, बल्कि संसाधन संरक्षण और प्राकृतिक सामग्री पर निर्भरता कम होती है।

राज्यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों ने एसयूपी प्रतिबंध के कार्यान्वयन और प्रवर्तन गतिविधियों के बारे में सूचित किया। राज्यों और केन्‍द्रशासित प्रदेशों ने गांवों में महिला स्वयं सहायता समूहों की मदद से बर्तन भंडारों की स्थापना जैसे प्रतिबंधित एसयूपी वस्तुओं से हटने के लिए अपनी सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों को साझा किया। प्रतिबंध की सफलता में लोगों की भागीदारी के महत्व पर प्रकाश डाला गया। कुछ राज्यों ने रीसाइक्लिंग बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए केन्‍द्रीय सहायता प्राप्त करने की आवश्यकता का भी उल्लेख किया। गांवों में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन समस्या के मुद्दे पर भी चर्चा की गई।

सम्मेलन के दूसरे दिन आज जैव विविधता और आर्द्र प्रदेश जैव विविधता के संरक्षण सहित वन्यजीव प्रबंधन पर एक विषयगत सत्र आयोजित किया गया।

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भारत की प्रचुर जैव विविधता समृद्धि इसके जैव विविध हॉटस्पॉट, जैव-भौगोलिक क्षेत्रों, 16 वन प्रकारों, 54733 पुष्पों और 103258 जीवों की प्रजातियों से स्‍पष्‍ट है और इस पर सत्र के दौरान प्रकाश डाला गया। यह उल्लेख किया गया कि आवश्यक कानून और संस्थागत ढांचा यानीजैविक विविधता कानून, 2002, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण(एनबीए), राज्य जैव विविधता बोर्ड (एसबीबी), केन्‍द्र शासित प्रदेश जैव विविधता परिषद (यूटीबीसी) और जैव विविधता प्रबंधन समितियां (बीएमसी) इस समृद्ध जैव विविधता के आलोक में गठित की गई हैं। वर्तमान में, 28 एसबीबी, 8 यूटीबीसी, 2,76,895 बीएमसी और 2,67,345 पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (पीबीआर) हैं।इस बात पर जोर दिया गया कि जैव विविधता संरक्षण में समुदायों की भागीदारी समग्र रूप से आजीविका पैदा करने और जैव विविधता के संरक्षण के दोहरे उद्देश्य की पूर्ति करेगी।

भारत की जैव विविधता समृद्धि और संरक्षण उपायों का हल निकालने की तत्काल आवश्यकता को देखते हुए, यह उल्लेख किया गया था कि राज्य एसबीबी और यूटीबीसी को मजबूत करने, पीबीआर को पूरा करने और ई-पीबीआर में बदलाव का समर्थन करने के लिए सहायक उपाय करके एक सक्रिय दृष्टिकोण अपना सकते हैं। इस बात पर भी विचार किया गया कि केवल 14 राज्यों ने जैव विविधता विरासत स्थल (बीएचएस) घोषित किया है, शेष 22 राज्य ऐसे और स्थलों को घोषित करने के लिए आवश्यक कदम उठा सकते हैं।राज्यों से अन्य संरक्षण उपायों जैसे संभावित अन्य प्रभावी-क्षेत्र आधारित संरक्षण उपाय (ओईसीएम) साइटों की पहचान करने में सहायता करने का भी आग्रह किया गया।

देश में आर्द्र प्रदेशों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए, एमओईएफएण्‍डसीसीने चार सूत्रीय दृष्टिकोण अपनाया जिसमें नियामक ढांचा कार्य, क्षमता निर्माण और पहुंच, जलीय इकोसिस्‍टम के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय योजना (एनपीसीए) का कार्यान्वयन और बाद में रामसर सम्मेलन के साथ जुड़ना शामिल है। भारत में रामसर स्थलों के रूप में नामित आर्द्र प्रदेशों की संख्‍या 2013 में 26 थी जो वर्ष 2022 में बढ़कर 75 हो गई।

एमओईएफऔरसीसी ने 2010 के नियमों का स्थान लेते हुए आर्द्र प्रदेशों (संरक्षण और प्रबंधन) के लिए नियम 2017 को अधिसूचित किया। इसमें सभी राज्यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों में एक राष्ट्रीय आर्द्र प्रदेश प्राधिकरण का गठन शामिल था। नियमों को लागू करने के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों की सुविधा के लिए, दिशानिर्देश भी जारी किए गए।

एनपीसीए के कार्यान्वयन में चार आयामी दृष्टिकोण शामिल है जिसमें आर्द्र प्रदेशों का संक्षिप्त दस्तावेज तैयार करना, वेटलैंड मित्र के रूप में स्वयंसेवकों के एक समर्पित वर्ग का होना, आर्द्र प्रदेश के स्वास्थ्य कार्ड तैयार करना और एक एकीकृत प्रबंधन योजना विकसित करना शामिल है। दिशानिर्देश मार्च 2020 में जारी किए गए थे जिनका उद्देश्‍य आर्द्र प्रदेशों का समग्र संरक्षण और पुनर्नवीनीकरण करना है। यह योजना केन्‍द्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों के बीच लागत बंटवारे के आधार पर लागू की गई है।एनपीसीए के तहत, 31 मार्च 2022 तक देश भर में 164 आर्द्र प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की गई है।

आर्द्र प्रदेशों से संबंधित प्रमुख मुद्दों और चिंताओं को दूर करने के लिए, स्‍थान की विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर व्यापक और दीर्घकालिक योजना विकसित करना आवश्यक है। व्यापक प्रबंधन योजनाओं को एक प्रबंधन दृष्टिकोण के माध्यम से पेश करने की आवश्यकता है। एकीकृत प्रबंधन योजना (आईएमपी) तैयार करने की दिशा में 2020 में नीति में बदलाव के परिणामस्वरूप 60 से अधिक आर्द्र प्रदेश के लिए आईएमपी हो गई हैं। इसके अलावा, सभी रामसर स्‍थलों और महत्वपूर्ण आर्द्र प्रदेश के लिए आईएमपी की परिकल्पना की गई है। समावेशी संरक्षण प्रबंधन के लिए सहभागिता कार्यशाला की हालिया सिफारिशों को भी लागू किया गया है।

इसके अलावा प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण पर समानांतर सत्र (राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम पर ध्यान देने के साथ) और एमओईएफसीसीसंस्थानों के प्रमुखों के साथ बैठकें हुईं।

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दूसरे दिन दूसरा विषयगत सत्र कृषि वानिकी पर था।कृषि वानिकी, कृषि भूमि वानिकी और वनों के बाहर के पेड़ सामान्य रूप से देश की लकड़ी की बड़ी मांग को पूरा करने और किसानों को जलवायु लचीली आय प्रदान करते हुए वृक्षों के आवरण,प्राकृतिक दृश्य और इकोसिस्‍टममें वृद्धि में योगदान करते हैं। वन भूमि के बाहर कृषि वानिकी और वाणिज्यिक वृक्षारोपण से किसानों की आय बढ़ाने और रोजगार पैदा करने के जबरदस्त अवसर हैं। स्थायी रूप से प्रबंधित वुडलॉट्स (ईंधन के रूप में इस्‍तेमाल किए जा सकने वाले वृक्षों का छोटा सा क्षेत्र) से प्राप्त लकड़ी के उपयोग को बढ़ावा देनाप्राकृतिक वनों और वृक्षों के आवरण के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और लकड़ी के आयात पर बोझ कम करेगा। कृषि वानिकी किसानों के लिए कई तरह से फायदेमंद है क्योंकि यह न केवल मिट्टी को समृद्ध करता है बल्कि यह किसानों को आय का वैकल्पिक स्रोत प्रदान करने में भी मदद करता है।

मंत्रालय ने कृषि वानिकी के दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव करने की योजना बनाई है ताकि अनेक पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक लाभ लाने और वनों और वृक्षों के कवर के तहत एक तिहाई क्षेत्र लाने के राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। एमओईएफसीसीने कृषि वानिकी के प्रचार और विस्तार के लिए एक कार्य बल और संयुक्त कार्य दलका गठन किया है। इन समितियों की रिपोर्टों में गुणवत्तापूर्ण पौधा रोपण सामग्री के लिए नर्सरियों को मान्यता, अखिल भारतीय पारगमन परमिट प्रणाली को अपनाने, अधिक वृक्ष प्रजातियों को छूट देने, लकड़ी आधारित उद्योग स्थापित करने के लिए दिशानिर्देशों में और छूट जैसे उपायों का सुझाव दिया है ताकि तालुका स्तरों पर छोटे प्रसंस्करण केन्‍द्रबनाने, लकड़ी के प्रमाणन की स्वदेशी प्रणाली का विकास, लठ्ठों और उसके उत्पादों का गुणवत्ता नियंत्रण, घरेलू बाजार के लिए बीआईएस जैसी राष्ट्रीय प्रमाणन एजेंसी के माध्यम से, वृक्ष उत्पादकों को ऋण और वित्त का प्रावधान, केन्‍द्र में एक राष्ट्रीय लकड़ी परिषद की स्थापनाआदि जैसे उपाय करने का सुझाव दिया गया है। एमओईएफएंडसीसीने वन (संरक्षण) नियम, 2022 के प्रावधानों के तहत मान्यता प्राप्त पूरक वनरोपण तंत्र बनाया है ताकि लोगों को अपनी भूमि पर वनस्पति उगाने और उन लोगों को बेचने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके जो पूरक वनीकरण लक्ष्यों को पूरा करने की आवश्यकता महसूस करते हैं। यह वृक्षारोपण करने और कृषि वानिकी के लिए किसानों और वृक्ष लगाने वालों के लिए एक प्रोत्‍साहन के रूप में कार्य करेगा। एमओईएफसीसीने सभी राज्‍यों से अनुरोध किया है कि वे एक राष्ट्र-एक पास के उद्देश्य से लकड़ी और वन उपज को राज्‍य के भीतर और एक राज्‍य से दूसरे राज्‍य में ले जाने के लिए राष्ट्रीय पारगमन पास प्रणाली (एनटीपीएस) को अपनाएं। इस बात पर भी जोर दिया गया कि टीपी के बदले में राज्य पारगमन नियमों/कानूनों में आवश्यक संशोधन किया जाए और एनटीपीएस को अपनाया जाए।

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पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रियों के साथ-साथ विभिन्न राज्यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों के सचिवों और प्रधान मुख्य वन संरक्षकों ने मिशन मोड पर कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए अपनाए जाने वाले दृष्टिकोणों के बारे में अपने विचार और सुझाव साझा किए। वनों के बाहर उत्पन्न होने वाली लकड़ी की कटाई और पारगमन, गुणवत्तापूर्ण पौधा रोपण सामग्री की उपलब्धता, लकड़ी के उत्पादों का पता लगाने और प्रमाणन विकसित करने, गुणवत्तापूर्ण मानकीकरण और लकड़ी आधारित उद्योगों और मूल्य श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने पर मौजूदा नियमों में ढील देने की आवश्यकता परविस्तृत चर्चा की गई।

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समापन सत्र को संबोधित करते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेन्‍द्र यादव ने कहा कि व्यक्ति समुद्र में एक बूंद के समान होता है और टीम स्वयं एक महासागर की तरह होती है जिसमें अपार शक्ति और बल होता है। उन्‍होंने कहा कि टीम इंडिया की भावना हमें आगे ले जाएगी। केन्‍द्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि पर्यावरण मंत्रालय न केवल पर्यावरण की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, बल्कि देश के विकास में भी बराबर का भागीदार है और इसे इको टूरिज्म और कृषि वानिकी के माध्यम से हमारे सकल घरेलू उत्पाद में जोड़ने की जरूरत है। गुजरात के एकता नगर में दो दिवसीय सम्मेलन के समापन सत्र में यह शपथें ली गई:

  1. प्रधानमंत्री के सक्षम नेतृत्व में जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौती से निपटने के लिए, हम पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली लाइफ को बढ़ावा देने का संकल्प लेते हैं।
  2. हम वन जीवन, वन संरक्षण और हरित क्षेत्रों को बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।
  3. अपने देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हम लकड़ी और संबंधित उत्पादों को संरक्षित करने, कृषि-वाणिज्य के अवसरों की पहचान करने, वैज्ञानिक बुनियादी ढांचे से संबंधित नीतिगत ढांचे को सक्षम करने और किसानों, आदिवासी समूहों और स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार और आय के अवसरों को बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।

समापन सत्र को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्‍य मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे, मंत्रायल में सचिव श्रीमती लीना नंदनऔर वन महानिरीक्षक श्री सी पी गोयल ने संबोधित किया। अंत में केन्‍द्रीय मंत्री ने गुजरात के मंत्रियों के अलावा सम्‍मेलन में भाग लेने वाले सचिवों और अन्‍य अधिकारियों को तहे दिल से धन्‍यवाद दिया।

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