सूचना और प्रसारण मंत्रालय

पूर्वोत्‍तर फिल्म पैकेज @ # MIFF2022 में लघु फिल्मों की तुलना में वृत्तचित्रों को वरीयता दी गई : क्यूरेटर चंदन सरमा

Posted On: 31 MAY 2022 8:24PM by PIB Delhi

लघु फिल्मों की तुलना में पूर्वोत्तर के राज्यों में वृत्तचित्रों की कम मांग है। यह कहना है # MIFF2022 में पूर्वोत्तर फिल्म पैकेज में क्यूरेटर चंदन सरमा का। उन्होंने कहा, ‘‘पूर्वोत्तर क्षेत्र में ऐसे कई लोग हैं जो छोटी फिक्शन का निर्माण करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि लघु फिल्मों के लिए बाजार है। इसी वजह से एमआईएफएफ 2022 में पूर्वोत्तर पैकेज के लिए फिल्मों का चयन करते समय वृत्तचित्रों को अधिक वरीयता दी गई। पैकेज की 14 फिल्मों से 11 वृत्तचित्र हैं तथा केवल तीन छोटी फिक्शन हैं। चंदन सरमा 17वें मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के सिलसिले में आयोजित #MIFFDialogues में मीडिया तथा शिष्टमंडलों के साथ परस्पर बातचीत कर रहे थे।

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पैकेज में फिल्मों के चयन के लिए अपनाए गए मापदंड के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि फिल्मों की गुणवत्ता तथा कंटेंट में विविधता के साथ समझौता नहीं किया गया। असम की फिल्म ए लिटल सनशइन' के निदेशक सुमन दुवारा तथा निर्माता डॉ. हितेश बरुआ ने भी संवाद में भाग लिया। सुमन दुवारा ने कहा कि ए लिटल सनशाइन' संबंध, प्रेम तथा बुजुर्गों के एकांत की कहानी है। इसकी कहानी एक वृद्ध दंपत्ति के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपने पालतू कुत्ते के साथ रहते हैं और उस समय मुश्किल स्थिति में पड़ जाते हैं जब उनका बेटा उन्हें कुत्ते से छुटकारा पाने का आदेश देता है।

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आइये, पूर्वोत्तर पैकेज की फिल्मों की रूपरेखा पर एक दृष्टि डालते हैं।

अरुणाचल प्रदेश  

द गालोस

अपाक गडी द्वारा निर्देशित यह फिल्म एक मध्य हिमालयी जनजाति गालोस के नृवंशविज्ञान अध्ययन पर आधारित है जो अरुणाचल प्रदेश की कई प्राचीन जनजातियों में से एक है। यह फिल्म जनजातियों की ज्ञान परंपरा समेत जिनमें प्राचीन चिकित्सा तथा आहार आदतें शामिल हैं, सहित उनके समाज तथा संस्कृति की खोज करती है।  

द सौंग्स वी सिंग, द ड्रम्स वी बीट

क्या होता है जब किसी समुदाय को अपनी सबसे महत्वपूर्ण परंपराओं में से एक का पालन करना होता है लेकिन उनमें से सबसे बुजुर्ग को भी इसकी जानकारी नहीं होती कि इसे कैसे किया जाए ? इस दुविधा में फंस कर, उत्तर पूर्व भारत में रिप जिले की नोक्ट जनजाति का एक उपसमूह कासिक समुदाय एक विशिष्ट संस्कृति के रूप में अपने भविष्य को दर्शाते हुए अपने अतीत को फिर से जीने की यात्रा पर निकल पड़ता है। इस फिल्म का निर्देशन कोम्बोंग दरंग ने किया है।

असम

 सैंक्चुअरी

एक नाटक के लिए अपने छात्रों के साथ पूर्वाभ्यास करते समय, नाटककार से एक प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन के नेता द्वारा उसके नाटक में प्रस्तुत की जा रही उसकी विचारधारा के बारे में पूछताछ की जाती है। सूरज कुमार दुवारा द्वारा निर्देशित यह फिल्म बताती है कि किस प्रकार वह इस व्यवधान को दूर करता है तथा अपने नाटक का मंचन करता है।

द असमीज सिख 

द असमीज सिख, सिख समुदाय के सदस्य हैं जो लगभग दो शताब्दी पहले असम चले गए थे। हालांकि वे संख्या में बहुत कम हैं, लेकिन उन्होंने असमिया साहित्य तथा संस्कृति के ध्येय को आगे बढ़ाने में बहुत योगदान दिया है। इस फिल्म का निर्देशन जगजीत सिंह ने किया है। 

नाओका (टू बी इल्यूजंस। डाइंग एंड लाइज)

अरिंदम बरुआ द्वारा निर्देशित यह फिल्म तीन अध्यायों के माध्यम से वास्तविकता और भ्रम की पड़ताल करती है। एक लड़का खुद को तीन महान कलाकारों के रूप में कल्पना करता है। पहला अध्याय लेखक फ्रांज काफ्का पर दृष्टि डालता है, दूसरा अध्याय संगीतकार बीथोवेन (संगीत) की खोज करता है तथा तीसरा अध्याय चित्रकार सल्वाडोर डाली ( (पेंटिंग) से संबंधित है। 

ए लिटल सनशाइन

इसकी कहानी एक वृद्ध दंपत्ति के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपने पालतू कुत्ते के साथ रहते हैं। उनका बेटा विदेश में रहता है और पिछले कुछ समय से घर नहीं आया है। एक दिन उनका कुत्ता बीमार पड़ जाता है, फिर उनका बेटा उन्हें उस बीमार कुत्ते से छुटकारा पाने को कहता है। अपने पालतू कुत्ते को छोड़ देने के बाद, उसे कुत्ते की वापसी के बारे में मतिभ्रम होना आरंभ हो जाता है। इस फिल्म का निर्देशन सुमन बरुआ द्वारा किया गया है।

फोर्जिंग फ्यूचर

फोर्जिंग मानव इतिहास जितना पुराना एक शिल्प है। यह फिल्म ग्रामीण असम में उक लोहार के गांव में आए पीढ़ीगत परिवर्तन को दर्शाती है। पिता नहीं चाहते कि उनके बेटे फोर्जिंग के रास्ते पर चलते रहें और न ही उनके बेटे ही ऐसा करना चाहते हैं। एक बेहतर जीवन के लिए इस संघर्ष में, विरासत अनिश्चितता में झूलती रहती है। इस फिल्म का निर्देशन दीप चैधरी ने किया है।

मणिपुर

मणिपुरी सिनेमा के 50 वर्ष : ए ग्लिंप्स इंडिया

हाओबैम पबन कुमार की यह फिल्म मणिपुरी सिनेमा के 50 वर्ष के इतिहास को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत करती है। यह इस क्षेत्र की कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण फिल्मों तथा फिल्म निर्माताओं और सिनेमाई इतिहास में उनके योगदान पर दृष्टि डालती है।

मणिपुर माइंडस्केप्स

मणिपुर माइंडस्केप्स मणिपुर के लोगों की अनुकूलता को समाहित करने का एक प्रयास है जो उनके इर्द-गिर्द व्याप्त विशाल वायुमंडलीय प्रतिकूलताओं से संघर्ष करने के लिए एक स्पष्ट वायुमंडलीय संकोच के भीतर अपनी मारक वृत्ति को छुपाते हैं। फिल्म में छवियां मणिपुर के साथ दो दशक लंबे जुड़ाव के कारण स्पष्ट रूप से निखर कर आई हैं। इस फिल्म का निर्देशन जोशी जोसेफ द्वारा किया गया है।

मेघालय

बिकौज वी डिड नौट चूज

प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हुए सौ वर्ष गुजर चुके है। यह फिल्म पूर्वोत्तर भारत से युद्ध के मोर्चे तक श्रमिकों द्वारा की गई यात्रा का एक सूक्ष्म दस्तावेज है। शिलंग, गुवाहाटी, कोलकाता, चेन्नई तथा यूरोप में चार वर्षों में फिल्माई गई यह फिल्म युद्ध में देश के मजदूरों की अनजान तथा भूली हुई उपस्थिति पर रोशनी डालती है। इस फिल्म का निर्देशन वानफ्रांग के डिएंगदोह ने किया है।

मिजोरम

दिस इज मिजोरम

टी सी वनलालजौवा द्वारा निर्देशित यह फिल्म मिजोरम राज्य की सुंदरता की खोज करती है। यह खड़ी पहाड़ियों और नदियों वाला एक पर्वतीय क्षेत्र है तथा भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में हरित आच्छादन का यहां सबसे अधिक प्रतिशत है। इस क्षेत्र के लोग सुंदर पहाड़ों को वनस्पतियों तथा जीवों की प्रजातियों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ साझा करते हैं। दिस इज मिजोरम- एक यात्री के लिए स्वर्ग है।

द अनसर्टेन इयर्स (हुन किरह)

जब कोविड-19 महामारी का प्रकोप हुआ तो देश भर में लॉकडाउन लगा दिया गया। मिजोरम में भी, जनजीवन ठप्‍प पड़ गया। अपने कैमरे के साथ फिल्म निर्माता ने लॉकडाउन के पहले दिन से ही अपने आसपास घटने वाली घटनाओं का अवलोकन करना आरंभ कर दिया। यह फिल्म हमें महामारी के दौरान जीवन और समाज अर्थात सामान्य आदमी तथा अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ता दोनों ही द्वारा इससे निपटने की एक आंतरिक झलक प्रदान करती है। इस फिल्म का निर्देशन नेपोलियन आर जेड थंगा ने किया है। 

नगालैंड 

अंडर द लोंगफुरु स्काई  

मिमी गांव के लोंगफुरु लोग विभाजित नगालैंड की भारत-बर्मा सीमा पर रहते हैं। वे अपनी आत्म निर्भर जीवन शैली और विश्व दृष्टि बनाये रखने के लिए जंगल की भावना तथा पैतृक ज्ञान की खोज करना जारी रखते हैं। भूमि के साथ उनका रिश्ता गहरा है, पारिस्थितिकी को परंपरा में बुना गया है। इस फिल्म का निदेशन किवनी शोहे द्वारा किया गया है। 

सिक्किम

द एंडलेस नोट इंडिया

यह वृत्तचित्र अंतहीन बंधन यानी एंडलेस नाट, जो बौद्ध धर्म के आठ पवित्र प्रतीकों में से एक है, द्वारा प्रेरित है। यह फिल्म लोक वाद्य यंत्रों के निर्माण तथा इंस्ट्रूमेंट द्वारा निर्मित्त नोट तथा उनसे बने वातावरण के बीच शाश्वत संबंध की खोज करती है। इस फिल्म का निर्देशन कर्मा पैजोर भूटिया ने किया है।

क्यूरेटर के बारे में

चंदन सरमा एक पत्रकार और एंथ्रोपोलॉजी में प्रशिक्षित पटकथा लेखक हैं जो लगभग तीन दशकों से अंग्रेजी तथा असमिया भाषा में सिनेमा पर लिखते रहे हैं। गुवाहाटी स्थित अंग्रेजी दैनिक द नौर्थ ईस्ट टाइम्स के लिए 13 वर्षों तक समाचार संपादक के रूप में काम करने के बाद, उन्होंने 2003 में फ्रीलांसिंग आरंभ की और लगभग एक दशक तक द टेलीग्राफ में कला तथा संस्कृति पर नियमित रूप से लेखन करते रहे। एक पटकथा लेखक के रूप में उन्होंने दो असमिया फीचर फिल्मों की पटकथाएं लिखी हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने डीडीके गुवाहाटी तथा आकाशवाणी गुवाहाटी के लिए भी क्रमशः कई टेलीविजन सीरियल तथा रेडियो फीचर की पटकथाएं लिखी हैं। सर्वश्रेष्ठ फिल्म समीक्षक प्राग सिने अवार्ड से सम्मानित सरमा ने 2014 तथा 2019 में असम राज्य फिल्म पुरस्कार के जूरी सदस्य के रूप में काम किया। उन्होंने दो-चार साल के लिए क्षेत्रीय बोर्ड के सदस्य के रूप में काम किया है। वह वर्तमान में गुवाहाटी स्थित डॉ. भूपेन हजारिका क्षेत्रीय सरकारी फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान में अतिथि व्याख्याता हैं। श्री सरमा 2008 से एमआईएफएफ के साथ पूर्वोत्तर फिल्म पैकेज क्यूरेटर तथा फिल्म चयन जूरी सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं। वह वर्तमान में असम साहित्य सभा के सचिव के रूप में कार्यरत हैं।  

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महामारी के बाद महोत्सव के प्रथम आयोजन के लिए, फिल्म प्रेमी उत्सव में ऑनलाइन भी भाग ले सकते हैं। https://miff.in/delegate2022/hybrid.php?cat=aHlicmlk पर एक ऑनलाइन आवेदक (अर्थात हाइब्रिड मोड के लिए) के रूप में मुफ्त में पंजीकरण करें। प्रतियोगिता की फिल्में जैसे ही यहां उपलब्ध होंगी, उन्हें देखा जा सकता है।

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