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फुलवा खामकर की पहली लघु फिल्म, ‘मासा’ (मछली), 17वें मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता श्रेणी में प्रदर्शित की जाएगी


 ‘मासा’ सास और बहू के बीच के नाजुक रिश्ते को दर्शाती है: निर्देशक फुलवा खामकर

यह फिल्म इस सवाल का जवाब देती है कि क्या एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को पीड़ा के हस्तांतरण का दुष्चक्र कभी टूट सकता है: अभिनेत्री अमृता सुभाष

Posted On: 31 MAY 2022 6:35PM by PIB Delhi

लघु फिल्म ‘मासा’ की निर्देशक और प्रसिद्ध नृत्यांगना एवं नृत्य निर्देशक फुलवा खामकर ने कहा कि यह फिल्म अलग–अलग आयु वर्ग की दो महिलाओं के बीच के संबंधों की कहानी है और दो महिलाओं के व्यक्तिगत जीवन को प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। मुंबई में आयोजित 17वें मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) के तीसरे दिन, फुलवा ने आज ‘एमआईएफएफ डायलॉग्स (जिसमें फिल्म निर्माता प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते हैं) के माध्यम से प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की। इस अवसर पर, इस फिल्म में ‘केतकी’ की भूमिका निभाने वाली प्रसिद्ध अभिनेत्री अमृता सुभाष भी मौजूद थीं।

'मासा' की कहानी अभिनेता और लेखक संदेश कुलकर्णी ने लिखी है। यह फिल्म सास और बहू  के रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमती है तथा इस रिश्ते में एक ‘महिला’ की अव्यक्त भावनाओं को सामने लाती है। इस फिल्म की नायिका रखमाबाई, एक बुजुर्ग विधवा है। वह एक सख्त और आत्मनिर्भर महिला है। एक सड़क दुर्घटना में अपने बेटे की असामयिक मृत्यु के बाद, वह अपने दोनों वक्त की रोटी जुटाने के लिए बहू केतकी की मदद से लंच बॉक्स परोसना शुरू कर देती है। दोनों महिलाएं अपने दुख को काम में दबा लेती हैं, लेकिन वह दुख भूत की तरह उनके इर्द-गिर्द मंडराता रहता है। एक नए ग्राहक सुमेध के आगमन से उनके नीरस जीवन में उथल - पुथल मच जाती है। सुमेध केतकी और उसके बेटे अनिकेत को पसंद करता है। एक गांव की 75 वर्ष की विधवा, जिसकी विधवा बहू और एक पोता है, ऐसी स्थिति का सामना कैसे करती है? इसका जवाब जानने के लिए यह फिल्म देखनी चाहिए। बुजुर्ग अभिनेत्री ज्योति सुभाष ने जहां रखमा की भूमिका निभाई, वहीं संदेश कुलकर्णी की भी इस फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका है।

अमृता सुभाष ने कहा कि ‘मासा’ इस बात पर भी टिप्पणी करती है कि अपनी युवावस्था में कष्ट से गुजरने वाले बुजुर्ग कैसे अनजाने में अपने से छोटों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। “सास जब बहू थी, तब उसने बहुत कष्ट सहा। लेकिन जब वह सास बनती है, तो बहू के साथ वैसा ही व्यवहार करती है। ऐसा हर रिश्ते में देखने को मिलता है। यह मानसिकता एक दुष्चक्र को जन्म देती है जिससे रिश्तों में समस्याएं आने लगती हैं। यह फिल्म इसी तनाव को दर्शाती है। अमृता सुभाष ने कहा, “यह तनाव खत्म होता है या नहीं, इसे जानने के लिए आपको यह फिल्म देखनी होगी।”

इस फिल्म की शूटिंग रायगढ़ जिले के नगांव में हुई है। इसकी कहानी कोंकणी पृष्ठभूमि पर आधारित है। एक नृत्य निर्देशक के रूप में एक गहरा अनुभव होने के बाद, एक फिल्म, वो भी एक लघु फिल्म का निर्देशन करना फुलवा खामकर के लिए बिल्कुल अलग अनुभव था। फुलवा खामकर ने कहा, “नृत्य और विशेष रूप से लय से परिचित होने के कारण इस फिल्म के निर्देशन में बहुत मदद मिली।” उन्होंने कहा, “उत्कृष्ट अभिनेताओं के अलावा, छायाकार अमोल गोले, संपादक क्षिति खंडगले, संगीतकार नीलेश मोहरीर ने हमारी टीम को मजबूती दी।”

खामकर ने कहा कि लघु फिल्मों को बढ़ावा देने की दृष्टि से एमआईएफएफ एक उत्कृष्ट मंच है और यह उन्हें एक वैश्विक मंच प्रदान करता है। 17वें एमआईएफएफ में दिखाई जा रही विभिन्न विषयों से संबंधित लघु फिल्में, वृत्तचित्र और एनिमेशन फिल्में फिल्म प्रेमियों को आकर्षित कर रही हैं। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों रूपों में चलने वाला यह महोत्सव 4 जून तक चलेेगा।   


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महामारी के बाद हो रहे इस पहले फिल्म महोत्सव के लिए, फिल्म प्रेमी इसमें ऑनलाइन भी भाग ले सकते हैं। https://miff.in/delegate2022/hybrid.php?cat=aHlicmlk  पर एक ऑनलाइन प्रतिनिधि के रूप में (यानी, हाइब्रिड मोड के लिए) मुफ्त में पंजीकरण करें। जब और जैसे ही यहां उपलब्ध होने पर, प्रतियोगिता की फिल्में यहां देखी जा सकती हैं ।

 

एमजी/एमए/आर/एसएस


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