वित्‍त मंत्रालय

आईसीडी पटपड़गंज और अन्य आईसीडी आयुक्त कार्यालय ने सोनीपत, पानीपत, फरीदाबाद, पलवल और गुरुग्राम जिले में चिन्हित किए गए 20 सरकारी स्कूलों में स्वच्छ पेयजल की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रोजेक्ट सजल के तहत पहल की

Posted On: 26 APR 2022 4:42PM by PIB Delhi

पेयजल की घोर कमी को देखते हुए, आईसीडी पटपड़गंज और अन्य आईसीडी आयुक्त कार्यालय ने स्वच्छता परियोजना के तहत स्कूली छात्रों को स्वच्छ पेयजल की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से प्रोजेक्ट सजल, जिसका अर्थ पानी से भरा हुआ होता है, के तहत एक पहल की। इस पहल का उद्देश्य स्कूली छात्रों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है ताकि स्कूलों द्वारा छात्रों की पढ़ाई तथा अन्य गतिविधियों के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करना संभव हो सके।

इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सोनीपत, पानीपत, फरीदाबाद, पलवल और गुरुग्राम जिले के 20 सरकारी स्कूलों को चिन्हित किया गया है। ये स्कूल ग्रामीण इलाकों में औद्योगिक क्षेत्रों के इर्द-गिर्द स्थित हैं। केन्द्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार औद्योगिक अपशिष्ट के कारण इन इलाकों का भूजल प्रदूषित होता है।  

दिल्ली सीमा शुल्क परिक्षेत्र (जोन) के तहत आईसीडी पटपड़गंज और अन्य आईसीडी आयुक्त कार्यालय का अधिकार क्षेत्र हरियाणा राज्य तक फैला हुआ है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड, जल संसाधन विभाग, जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार ने हरियाणा में भूजल की स्थिति के बारे में अक्टूबर 2021 की अपनी रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला है कि हरियाणा के विभिन्न जिलों में भूजल के स्रोत ज्यादातर खारे हैं और पीने के लिए उपयुक्त नहीं है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस पानी की पीने योग्य रेटिंग कम है क्योंकि इसके रासायनिक मानदंड मान्य सीमा से बहुत अधिक हैं।

बीआईएस 10500 (2012) मानक के अनुसार पीने के पानी की मान्य पीएच सीमा 6.5 से लेकर 8.5 तक है। हालांकि, अधिकांश जिलों में पीएच सीमा 8.5 से अधिक हो गई है और 9.0 तक पहुंच रही है। बीआईएस मानक के अनुसार कैल्शियम की मान्य सीमा 200 है, जोकि बढ़कर 650 तक पहुंच गई है। बीआईएस मानक के अनुसार मैग्नीशियम की मान्य सीमा 100 है, जोकि बढ़कर 700 तक जा पहुंची है। बीआईएस मानक के अनुसार क्लोराइड की मान्य सीमा 1000 है, जोकि बढ़कर 5000 तक पहुंच गई है। इसलिए लवणता एवं घुलित ठोस और रसायनों की मान्य सीमा से अधिकता को देखते हुए, भूजल पीने के लिए सुरक्षित नहीं है।

इस पानी को पीने योग्य बनाने के लिए, दो प्रौद्योगिकियों की पहचान की गई है - मान्य सीमा के भीतर अपेक्षाकृत कम घुलित ठोस पदार्थों के लिए रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) और गर्मी के महीनों में जब हरियाणा में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, तो पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए वाटर कूलर। आरओ प्रक्रिया में, पानी एक निश्चित दबाव पर आरओ झिल्ली में प्रवेश करता है। फिर, पानी के अणु अर्ध-पारगम्य झिल्ली से गुजरते हैं।  लवण और अन्य दूषित पदार्थों को इस झिल्ली में गुजरने की अनुमति नहीं होती है और आमतौर पर इसमें से 95 प्रतिशत से अधिक घुलित लवण हटा दिए जाते हैं। आरओ पानी से नाइट्रेट, सीसायुक्त कीटनाशक, सल्फेट, फ्लोराइड, बैक्टीरिया, फार्मास्यूटिकल्स, आर्सेनिक, क्लोरीन और क्लोरैमाइन सहित आम प्रदूषकों को हटा देता है। आरओ की निस्यंदन की प्रक्रिया दूषित पदार्थों को हटाकर पानी के स्वाद, गंध और रूप - रंग में सुधार करता है।  “स्वच्छ जल - पूर्ण विकास” की ओर ले जाता है।

चिलचिलाती गर्मी के महीनों में गर्म पानी पीने की दृष्टि से अनुकूल नहीं होता है। छात्रों की प्यास बुझाने के लिए वाटर कूलर की तकनीक तापमान की दृष्टि से पानी को सामान्य स्तर पर बनाए रखती है।  

दिनांक 26.04.2022 को वाटर कूलर के साथ आरओ वाटर प्यूरीफायर को छात्रों को समर्पित किया गया है, जिससे उन्हें पूरे वर्ष स्वच्छ पीने योग्य पानी की सुविधा मिलेगी। यह सुविधा छात्रों को स्वस्थ रखेगी और एक  स्वच्छ वातावरण में उनके पूर्ण विकास में मददगार साबित होगी।

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एमजी / एएम / आर/ केजे



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