विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

ध्यान विकारों के प्रबंधन और उपचार के लिए रणनीति विकसित करने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए स्वर्णजयंती अध्येता का कार्य

Posted On: 03 FEB 2022 2:05PM by PIB Delhi

प्रो. श्रीधरन देवराजन भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु के सेंटर फॉर न्यूरोसाइंस एंड एसोसिएट फैकल्टी इन कंप्यूटर साइंस एंड ऑटोमेशन में अभी एसोसिएट प्रोफेसर हैं जिन्हें वर्ष 2021 के लिए स्वर्ण जयंती अध्येतावृत्ति (फेलोशिप) दी गई है। वह ध्यान विकारों के इलाज के लिए उपचार विकसित करने में संभावित अनुप्रयोगों के साथ मस्तिष्क के क्षेत्रों और तंत्रिका तंत्र की पहचान करना चाहते हैं जो मानव ध्यान में मध्यस्थता करते हैं।

मानव मस्तिष्क में अप्रासंगिक वस्तुओं की अनदेखी करते हुए हमारी दुनिया में महत्वपूर्ण वस्तुओं और स्थानों पर ध्यान देने की उल्लेखनीय क्षमता है। यद्यपि कई दशकों से व्यावहारिक रूप से ध्यान का अध्ययन किया गया है, फिर भी हम इस बारे में बहुत कम जानते हैं कि हमारे मस्तिष्क में ध्यान कैसे काम करता है। मस्तिष्क के कुछ वैसे क्षेत्र हैं जिनपर अब भी काम करना बाकी है जैसे उन मस्तिष्क क्षेत्रों की पहचान करना जो हमें विशेष वस्तुओं पर ध्यान बनाए रखने की अनुमति देते हैं, वे मस्तिष्क क्षेत्र जो अप्रासंगिक जानकारी को दबाते हैं, और वे मस्तिष्क प्रक्रियाएं जो ध्यान के विकारों से बाधित होती हैं।

अपने समूह के साथ अध्ययन में प्रो. श्रीधरन अत्याधुनिक, गैर-आक्रामक तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। इसके साथ ही एक लक्षित तरीके से मानव मस्तिष्क गतिविधि को रिकॉर्ड करने और उसमें उद्विग्न पैदा करने के लिए कार्यात्मक और प्रसार चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एफएमआरआई/डीएमआरआई), इलेक्ट्रो-एनसेफैलोग्राफी (ईईजी), और ट्रांस-चुंबकीय एवं विद्युत उत्तेजना (टीएमएस/टीईएस) का इस्तेमाल शामिल हैं।

अपने हाल के काम में प्रो. श्रीधरन ने पाया कि कैसे विशेष मस्तिष्क क्षेत्र - नियोकोर्टेक्स (मस्तिष्क की सबसे बाहरी परत) और साथ ही गहरे मध्य मस्तिष्क, ध्यान केंद्रित करने में योगदान करते हैं। उनके समूह ने दिखाया है कि मध्य मस्तिष्क (मिडब्रेन) और कॉर्टिकल गोलार्द्धों के बीच विषम तारों वाले मानव प्रतिभागी भी ध्यान देने के तरीके में चिह्नित विषमताएं दिखाते हैं। एक अन्य हालिया अध्ययन में उन्होंने दिखाया है कि नियोकोर्टेक्स (मस्तिष्क की सबसे बाहरी परत) के किसी विशेष क्षेत्र में परेशान करने वाली गतिविधि प्रतिभागियों की ध्यान देने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। मस्तिष्क में ध्यान कैसे काम करता है, इसका विश्लेषण और अनुकरण करने के लिए उन्होंने नियोकोर्टेक्स और मिडब्रेन के विस्तृत गणितीय और कम्प्यूटेशनल (गहन शिक्षण) मॉडल भी विकसित किए हैं। यह शोध पीएलओएस कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी सहित विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है।

प्रो. श्रीधरन ने कहा कि, "हालांकि हमारे समूह और अन्य लोगों के इन अध्ययनों ने ध्यान में कई मस्तिष्क क्षेत्रों की भूमिका पर संकेत दिया है लेकिन, बहुत कम ने इन संबंध को सीधे प्रयोगात्मक रूप से स्थापित किया है। स्वर्णजयंती अध्येतावृत्ति के हिस्से के रूप में हमारी प्रयोगशाला मस्तिष्क में ध्यान के "कारण" तंत्र को समझने की कोशिश करेगी। हम त्रि-आयामी दृष्टिकोण का पालन करेंगे।

सबसे पहले, जब प्रतिभागी ध्यान देना सीख रहे हों तब वे विशिष्ट मस्तिष्क क्षेत्रों ("न्यूरोप्लास्टीसिटी") के बीच संरचना, गतिविधि और कनेक्टिविटी में हो रहे बदलाव को पकड़ेंगे। मस्तिष्क में इस तरह के न्यूरोप्लास्टिक परिवर्तनों को मापने से बच्चों और वयस्कों दोनों में ध्यान विकारों के प्रबंधन के लिए हस्तक्षेप की प्रभावशीलता का परीक्षण करने के अहम निहितार्थ हो सकते हैं।

दूसरा, वे मस्तिष्क मशीन इंटरफ़ेस प्रौद्योगिकियों का विकास करेंगे जिनका उपयोग प्रतिभागियों को ध्यान से संबंधित मस्तिष्क क्षेत्रों ("न्यूरोफीडबैक") में गतिविधि को स्वेच्छा से नियंत्रित करने के लिए प्रशिक्षित करने में किया जा सकता है। फिर वे यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि क्या इस तरह के न्यूरोफीडबैक नियंत्रण को प्राप्त करने से प्रतिभागियों की ध्यान क्षमता में सुधार होता है। इस प्रकार के इंटरफ़ेस को स्वस्थ लोगों के साथ-साथ ध्यान विकारों से ग्रस्त रोगियों में ध्यान क्षमताओं के प्रशिक्षण के लिए एक गैर-आक्रामक उपकरण के रूप में विकसित किया जा सकता है।

तीसरा, वे ध्यान में विशेष मस्तिष्क क्षेत्रों की भूमिका की पहचान करने के लिए मिली सेकंड परिशुद्धता ("न्यूरोस्टिम्यूलेशन") के साथ मस्तिष्क को उद्विग्न करेंगे और उसी वक्त इसकी गतिविधि की छवि (इमेज) लेंगे। ध्यान में कमी के विकार (एडीडी) जैसे ध्यान विकारों वाले मस्तिष्क क्षेत्रों को लक्षित करने के लिए इस तकनीक को नैदानिक उपायों के रूप में अपनाया जा सकता है।

ये सभी प्रयोग भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) में अत्याधुनिक जेएन टाटा नेशनल एमआरआई सुविधा में किए जाएंगे, जिसमें एकीकृत एमआर-ईईजी और एमआर- टीएमएस सेटअप के साथ 3टी (सीमेंस प्रिज्मा) एमआरआई स्कैनर है।

प्रो. श्रीधरन ने कहा कि, "मोटे तौर पर, इस प्रस्ताव के शोध निष्कर्ष उन प्रमुख सिद्धांतों की हमारी मूलभूत समझ को आगे बढ़ाएंगे जिनके द्वारा मानव मस्तिष्क में ध्यान काम करता है और ये ध्यान विकारों के प्रबंधन और उपचार के लिए तर्कसंगत रणनीति विकसित करने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।"

 

प्रकाशन लिंक: https://journals.plos.org/ploscompbiol/article/authors?id=10.1371/journal.pcbi.1009322

अधिक जानकारी के लिए श्रीधरन देवराजन से (coglabcns.iisc[at]gmail[dot]com) पर संपर्क किया जा सकता है।

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