विधि एवं न्याय मंत्रालय
वर्षांत समीक्षा: न्याय विभाग
उच्च न्यायालयों में 120 न्यायाधीश और 63 अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किये गए
टेली-लॉ सेवाएं 699 जिलों के 75,000 सीएससी/ग्राम पंचायतों में उपलब्ध हैं; कुल 12,70,135 मामले दर्ज किए गए, 12,50,911 लाभार्थियों को सलाह दी गयी
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करते हुए, जिला और उच्च न्यायालय ने लगभग 1.65 करोड़ मामलों की सुनवाई की और सर्वोच्च न्यायालय ने लगभग 1.5 लाख सुनवाई की, जिससे यह विश्व में अग्रणी संस्था बन गयी
वकीलों / वादियों को मामलों की स्थिति, वाद सूचियों, निर्णयों आदि पर वास्तविक समय में जानकारी प्रदान करने के लिए 7 प्लेटफार्मों या सेवा प्रदाता चैनलों के माध्यम से नागरिक-केंद्रित सेवाएं प्रदान की जाती हैं
383 विशेष पॉक्सो (ई-पॉक्सो) न्यायालयों सहित 683 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (एफटीएससी) के द्वारा 2021 में 68120 मामलों को निपटाया गया
न्यायपालिका की अवसंरचना सुविधाओं के विकास के लिए केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) का 2025-26 तक विस्तार किया गया है
Posted On:
30 DEC 2021 12:40PM by PIB Delhi
1 न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण:
उच्च न्यायालयों में 120 नए न्यायाधीश नियुक्त किए गए - बॉम्बे हाई कोर्ट (6), इलाहाबाद (17), गुजरात (7), कर्नाटक (6), आंध्र प्रदेश (2), जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख (2), केरल (12), राजस्थान (8), पंजाब और हरियाणा (6), कलकत्ता (8), उड़ीसा (4), तेलंगाना (7), मद्रास (5), छत्तीसगढ़ (3), हिमाचल प्रदेश (1), झारखंड (4), गौहाटी (6), दिल्ली (2), पटना (6) और मध्य प्रदेश (8)।
उच्च न्यायालयों में 63 अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति स्थायी की गयी - इलाहाबाद उच्च न्यायालय (10), कर्नाटक (20), कलकत्ता (1), छत्तीसगढ़ (1), पंजाब और हरियाणा (10), बॉम्बे (10), केरल (7), उत्तराखंड (1) और गौहाटी (3)।
02 अतिरिक्त न्यायाधीशों का कार्यकाल बढ़ाया गया - बॉम्बे उच्च न्यायालय (1) और गौहाटी (1)
11 मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए - इलाहाबाद उच्च न्यायालय (2), आंध्र प्रदेश (1), कलकत्ता (1), गौहाटी (1), गुजरात (1), कर्नाटक (1), मध्य प्रदेश (1), मद्रास (1), मणिपुर (1) और तेलंगाना (1)।
06 मुख्य न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानान्तरण किया गया।
उच्च न्यायालयों के 27 न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानान्तरण किया गया।
त्रिपुरा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या में 01 पद और तेलंगाना उच्च न्यायालय में 18 पदों की वृद्धि की गयी, इस प्रकार स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या, त्रिपुरा उच्च न्यायालय में 05 न्यायाधीश और तेलंगाना उच्च न्यायालय में 42 न्यायाधीश तक बढ़ गई।
2 टेली-लॉ:
· आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत, न्याय विभाग ने आवंटित सप्ताह 8 -14 नवंबर, 2021 के दौरान कई कार्यक्रमों का आयोजन किया। विभाग ने अपने टेली-लॉ के तहत ‘लॉगिन वीक’ अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य वंचितों तक पहुंचना और मामला दर्ज करने से पहले उन्हें सलाह देना है, ताकि वे अपने अधिकारों और अपनी कठिनाइयों का समय पर समाधान के लिए दावा पेश कर सकें। 4200 जागरूकता सत्रों के माध्यम से 52000 से अधिक लाभार्थियों से संपर्क किया गया और टेली-लॉ के तहत वीडियो / टेलीकॉन्फरेंसिंग सुविधाओं के माध्यम से पैनल वकीलों के समर्पित समूह द्वारा लगभग 17000 लोगों को कानूनी सलाह और परामर्श प्रदान किये गए। जरूरतमंदों तक पहुँच को अधिक प्रभावी बनाने के लिए ‘टेली-लॉ ऑन व्हील’ अभियान भी शुरू किया गया, जहां देश के विभिन्न भागों में विशेष टेली-लॉ ब्रांड वाले मोबाइल वैन ने टेली-लॉ संदेश को लोगों तक पहुँचाया। जागरूकता के लिए वैन के जरिये वीडियो दिखाये गए, रेडियो जिंगल प्रसारित किये गए और टेली-लॉ की जानकारी से सम्बंधित पर्चे वितरण किये गए ।
विभाग द्वारा 13 नवम्बर, 2021 को एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें 65,000 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया थी। इसकी अध्यक्षता माननीय कानून और न्याय मंत्री तथा माननीय कानून और न्याय राज्य मंत्री द्वारा की गयी थी। इस अवसर पर 126 सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले अग्रिम पंक्ति के कर्मियों को सम्मानित किया गया। देश के दूरदराज के इलाकों में इनके निरंतर प्रयासों से टेली-लॉ को शानदार ऊंचाइयों तक पहुंचने में मदद मिली है। पैनल वकीलों के साथ लाभार्थियों के निर्बाध संपर्क को सक्षम करने के लिए एक टेली-लॉ मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया गया है। प्रिंट और डिजिटल के विभिन्न ज्ञान आधारित उत्पादों को जारी किया गया। नागरिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए इन उत्पादों में टेली-लॉ ब्रोशर, टेली-लॉ फिल्म्स, टेली-लॉ लोगो, टेली-लॉ मास्कॉट आदि को शामिल किया गया था। देश के 36 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में स्थित 669 जिलों (112 महत्वाकांक्षी जिलों सहित, नीति आयोग डेटा के अनुसार) के 75,000 सीएससीएस / ग्राम पंचायतों में विस्तृत कानूनी-सेवाएं उपलब्ध हैं। 30 नवम्बर, 2021 तक, कुल 12,70,135 मामले पंजीकृत किये गए हैं, जिनमें 12,50,911 लाभार्थियों को परामर्श दिए गए।
3 राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए):
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने एक कानूनी सेवा मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया, जिसे एंड्रॉइड मोबाइल फोन पर डाउनलोड किया जा सकता है। विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रदान की गई सभी सेवाओं का लाभ मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। इस एप्लिकेशन की मुख्य विशेषताएं हैं
कोई भी नागरिक मोबाइल ऐप के माध्यम से कानूनी सहायता, कानूनी सलाह और अन्य शिकायतों के निवारण के लिए आवेदन कर सकता है।
कोई भी नागरिक कानूनी सहायता और सलाह तथा अन्य शिकायतों के लिए दिए गए अपने आवेदन की वर्त्तमान स्थिति की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
मोबाइल ऐप के माध्यम से अनुस्मारक भेजा जा सकता है और स्पष्टीकरण मांगे जा सकते हैं।
अपराध का कोई पीड़ित या आवेदक मोबाइल ऐप के माध्यम से मुआवजे के लिए आवेदन कर सकता है।
इस मोबाइल ऐप के माध्यम से वाणिज्यिक मामलों में वाद दाखिल करने से पहले की मध्यस्थता या मध्यस्थता के लिए आवेदन किये जा सकते हैं।
· 17 सितंबर, 2021 को अपने देशव्यापी संगठनात्मक ढांचे के माध्यम से एनएएलएसए द्वारा कानूनी जागरूकता पैदा करने के लिए देश भर में एक विशेष अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं – ‘न्याय तक पहुँच’ कार्यक्रम के लिए 185 मोबाइल वैन और अन्य वाहनों की तैनाती की गयी, ताकि फिल्मों और वृत्तचित्रों का प्रदर्शन किया जा सके; 4100 कानूनी सहायता क्लीनिकों में 37,000 पैनल वकीलों और पैरा-कानूनी स्वयंसेवकों की सहायता से आम नागरिकों को मुकदमा-पूर्व / कानूनी सलाह दी गयी तथा 672 जिलों के लगभग 1500 गांवों में कानूनी सहायता पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये गए।
· राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत 2 अक्टूबर, 2021 से छह सप्ताह की अवधि के लिए "अखिल भारतीय कानूनी जागरूकता और संपर्क अभियान" का भी आयोजन किया। इस अभियान के एक हिस्से के रूप में, घर-घर जाकर लगभग 86 करोड़ नागरिकों से संपर्क बनाया गया। लगभग 6 लाख जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनसे 26 करोड़ नागरिक लाभान्वित हुए। 39,000 से अधिक कानूनी सहायता क्लीनिक आयोजित किए गए, जिनसे लगभग 1.50 करोड़ नागरिकों की सहायता मिली। 3.21 लाख गांवों में 26,460 मोबाइल वैन तैनात किए गए थे, जिनके जरिये 19 करोड़ नागरिकों को कानूनी सहायता सेवाओं के बारे में जानकारी प्राप्त हुई।
4 ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना:
ई-कोर्ट एकीकृत मिशन मोड परियोजना को प्रौद्योगिकी का उपयोग करके न्याय तक पहुंच में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। परियोजना का दूसरा चरण 2015 में 1,670 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ शुरू हुआ, जिसमें से सरकार द्वारा 1611.19 करोड़ रुपये की धनराशि जारी कर दी गयी है। दूसरे चरण के तहत, अब तक 18,735 जिला और अधीनस्थ न्यायालयों को कम्प्यूटरीकृत किया जा चुका है।
डब्ल्यूएएन परियोजना के हिस्से के रूप में, ओएफसी, आरएफ, वीसैट आदि विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हुए 2992 कोर्ट परिसरों में से 2957 (98.7 प्रतिशत) को 10 एमबीपीएस से 100 एमबीपीएस तक बैंडविड्थ के साथ कनेक्टिविटी दी गई है। टीएनएफ स्थलों को 58 से घटाकर 11 कर दिया गया है।
फ्री और ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर (एफओएसएस) पर आधारित वाद सूचना सॉफ्टवेयर (केस इंफॉर्मेशन सॉफ्टवेयर) (सीआईएस) विकसित किया गया है। मामलों की सूची तैयार करने में मदद के लिए सीआईएस में एक कोविड-19 प्रबंधन पैच विकसित किया गया है।
सुविधाजनक खोज प्रौद्योगिकी के साथ विकसित राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) का उपयोग करते हुए, वकील और वादी 19.76 करोड़ मामलों की वर्त्तमान स्थिति की जानकारी और 15.99 करोड़ से अधिक आदेशों / निर्णयों तक पहुंच सकते हैं। ओपन एपीआई की शुरुआत की गई है, जो सरकारी विभागों को अनुसंधान और विश्लेषण के लिए एनजेडीजी डेटा का उपयोग करने की अनुमति देता है। भूमि विवादों से संबंधित मामलों की वर्त्तमान स्थिति की जानकारी के लिए, 26 राज्यों के भूमि रिकॉर्ड डेटा को एनजेडीजी से जोड़ा गया है।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करते हुए, जिला और उच्च न्यायालयों ने लगभग 1.65 करोड़ मामलों की तथा सर्वोच्च न्यायालय ने लगभग 1.5 लाख मामलों की सुनवाई की। इस मामले में देश की न्याय व्यवस्था ने विश्व की अग्रणी संस्था बन गयी। 3240 न्यायालयों और संबंधित 1272 जेलों के बीच वीसी सुविधाएं भी परिचालित की गई हैं। 2506 वीसी केबिन स्थापित करने के लिए धनराशि उपलब्ध करायी गयी है। अतिरिक्त 1500 वीसी लाइसेंस प्राप्त किए गए हैं। गुजरात, कर्नाटक और उड़ीसा उच्च न्यायालय में कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू हो गई है, जिससे इच्छुक व्यक्तियों को कार्यवाही में शामिल होने का विकल्प मिल गया है। उत्तराखंड और तेलंगाना ने मामलों के त्वरित निपटान को ध्यान में रखते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए वाई-फाई और कंप्यूटर से लैस मोबाइल ई-कोर्ट वैन की शुरूआत की गयी है।
यातायात अपराधों की सुनवाई के लिए 11 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में 15 वर्चुअल कोर्ट स्थापित किए गए हैं। इन अदालतों ने 1.07 करोड़ से अधिक मामलों की सुनवाई की और जुर्माने के रूप में 201.96 करोड़ रुपये प्राप्त किये। दिल्ली हाई कोर्ट ने एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस के मामलों की सुनवाई के लिए 34 डिजिटल कोर्ट शुरू किए हैं।
कानूनी दस्तावेजों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से जमा करने के लिए अप्रैल, 2021 में एक ई-फाइलिंग सिस्टम (संस्करण 3.0) शुरू किया गया है, जिसमें वकालतनामा ऑनलाइन जमा करने, ई-हस्ताक्षर करने, शपथ की ऑनलाइन वीडियो रिकॉर्डिंग, ऑनलाइन भुगतान, कई आईए/ आवेदन जमा करने, पोर्टफोलियो प्रबंधन और द्विभाषी मोड जैसी उन्नत सुविधायें मौजूद हैं। अदालत शुल्क, जुर्माना और आर्थिक दंड का ऑनलाइन भुगतान https://pay.ecourts.gov.in के माध्यम से शुरू किया गया है। 31 अक्टूबर, 2021 तक, 22 राज्य न्यायालय शुल्क अधिनियम में संशोधन कर चुके हैं। न्याय व्यवस्था को समावेशी बनाने और डिजिटल सुविधा को सुलभ बनाने को ध्यान में रखते हुए, वकीलों और वादियों को ई-फाइलिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए 235 ई-सेवा केंद्र शुरू किए जा रहे हैं।
वकीलों/वादियों को मामले की वर्त्तमान स्थिति, वाद सूची, फैसला आदि के बारे में वास्तविक समय पर जानकारी प्रदान करने के लिए 7 प्लेटफार्मों या सेवा प्रदाता चैनलों के माध्यम से नागरिक केंद्रित सेवाएं प्रदान की जाती हैं। प्रमुख सेवाएं हैं - एसएमएस पुश एंड पुल (प्रतिदिन 2,00,000 एसएमएस भेजे जाते हैं), ईमेल (प्रतिदिन 2,50,000 भेजे जाते हैं), बहुभाषी और स्पर्श योग्य ई-कोर्ट सेवा पोर्टल (35 लाख हिट रोजाना), न्यायिक सेवा केंद्र (जेएससी), इंफो कियोस्क, वकीलों / वादियों के लिए ई-कोर्ट मोबाइल ऐप (01.11.2021 तक 68.04 लाख डाउनलोड) और न्यायाधीशों के लिए जस्ट आईएस ऐप (02.12.2021 तक 16,751 डाउनलोड)।
राष्ट्रीय सेवा और इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियाओं की वर्त्तमान स्थिति की जानकारी (एनएसटीईपी) को प्रक्रिया का संचालन करने और सम्मन जारी करने के लिए विकसित किया गया है और वर्तमान में यह 26 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में कार्य कर रहा है।
उच्च न्यायालयों के निर्णयों और अंतिम आदेशों का संग्रह प्रदान करने के लिए एक नए 'जजमेंट एंड ऑर्डर सर्च' पोर्टल का उद्घाटन किया गया है और इसे https://judgments.ecourts.gov.in. पर देखा जा सकता है।
अधीनस्थ न्यायालयों को उच्च न्यायालय के आदेशों और निर्णयों के सुरक्षित और तात्कालिक रूप से उपलब्ध कराने की सुविधा के लिए उड़ीसा उच्च न्यायालय द्वारा ऑर्डर कम्युनिकेशन पोर्टल (ओसीपी) नाम से एक सॉफ्टवेयर मॉड्यूल शुरू किया गया है।
न्याय क्षेत्र के बारे में जनता में जागरूकता लाने, विभाग की विभिन्न योजनाओं का विज्ञापन करने और लोगों को विभिन्न उपक्षेत्रों की स्थिति का जानकारी देने के लिए 19 उच्च न्यायालयों में 29 न्याय घड़ियां (जस्टिस क्लॉक) लगाई गई हैं।
एस 3 डब्लूएएस प्लेटफॉर्म पर एक नई ई-समिति वेबसाइट लॉन्च की गई है। डीओजे ने एस 3 डब्लूएएस प्लेटफॉर्म पर जिला न्यायालय की वेबसाइटों को स्थानांतरित करने के लिए धनराशि जारी की है।
वकीलों के उपयोग के लिए अंग्रेजी, हिंदी और 12 क्षेत्रीय भाषाओं में ई-फाइलिंग पर एक मैनुअल और "ई फाइलिंग के लिए पंजीकरण कैसे करें" पर एक ब्रोशर उपलब्ध कराया गया है। ई-कोर्ट सर्विसेज नाम से एक यू-ट्यूब चैनल बनाया गया है, जिससे अधिवक्ताओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म के आसान संचालन के लिए आवश्यक कौशल हासिल करने में मदद मिली है। सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति ने आईसीटी सेवाओं पर प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनके द्वारा 3,02,614 हितधारकों को कवर किया गया।
5 फास्ट ट्रैक विशेष कोर्ट (एफटीएससी) की योजना:
भारत सरकार ने 389 विशेष पॉक्सो (ई-पीओसीएसओ) अदालतों समेत 1023 फास्ट ट्रैक विशेष कोर्ट (एफटीएससी) की स्थापना के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना को अक्टूबर, 2019 में शुरू किया था, ताकि बलात्कार और पॉक्सो अधिनियम के पीड़ितों को संबंधित मामलों के शीघ्र निपटान के जरिये त्वरित न्याय प्रदान किया जा सके। यह योजना शुरू में कुल 767.25 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ एक वर्ष की अवधि के लिए थी, जिसमें केंद्रीय हिस्सा 474 करोड़ रुपये का था, जिसे निर्भया कोष के तहत वित्त पोषित किया जाना था। 2019-20 और 2020-21 के लिए क्रमशः 140 करोड़ रुपये और 160 करोड़ रुपये का केंद्रीय हिस्सा राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को जारी किये जा चुके हैं।
पिछले वर्ष में योजना की उपलब्धियां
विभाग ने इस योजना की जारी रखने का प्रस्ताव दिया। राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद और निर्भया कोष की अधिकार प्राप्त समिति द्वारा इस योजना का मूल्यांकन किया गया और इसे 2 साल के लिए जारी रखने की सिफारिश की गयी। महिलाओं और बच्चों की संरक्षा और सुरक्षा के सर्वोपरि महत्व को ध्यान में रखते हुए, कैबिनेट ने कुल 1572.86 करोड़ रुपये के बजटीय व्यय के साथ योजना को 31 मार्च 2023 तक (2 और वित्तीय वर्षों के लिए) जारी रखने की मंजूरी दे दी है, जिसमें केन्द्रीय हिस्सा 971.70 करोड़ रुपये का है।
30.11.2021 तक, 27 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों ने 383 ई- पॉक्सो कोर्ट सहित 683 एफटीएससी का संचालन शुरू कर दिया है, जबकि दिसंबर, 2020 में 24 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में 331 ई- पॉक्सो कोर्ट सहित 609 एफटीएससी कार्यरत थे।
30.11.2021 तक एफटीएससी ने 2020 के लगभग 35000 मामलों की तुलना में 68120 मामलों का निपटाया है।
एफटीएससी महिलाओं और बालिकाओं की संरक्षा और सुरक्षा पर विशेष ध्यान के लिए राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
एफटीएससी समर्पित अदालतें हैं, जिन्होंने यौन अपराधों के असहाय पीड़ितों को अविलम्ब न्याय दिलाने; यौन अपराधियों के खिलाफ एक निवारण ढांचा बनाने, न्याय प्रणाली में नागरिक विश्वास को मजबूत करने और महिलाओं तथा बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने में मदद की है।
6 ग्राम न्यायालय ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च:
एक ग्राम न्यायालय ऑनलाइन पोर्टल भी बनाया गया है, जिसमें राज्य / उच्च न्यायालय मासिक आधार पर मामलों के निपटाये जाने सहित ग्राम न्यायालय से संबंधित डेटा अपलोड करते हैं।
7 न्याय प्रदान करने और कानूनी सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन:
न्याय प्रदान करने और कानूनी सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन का गठन अगस्त, 2011 में किया गया था। न्याय प्रदान करने और कानूनी सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन पूरे देश में न्याय प्रशासन और न्याय प्रक्रिया तथा कानूनी सुधार एवं सभी वर्गों के हितधारकों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने पर केंद्रित है। इसके उद्देश्य दो प्रकार के हैं:
i) प्रणाली में विलम्ब और पहले के बकाया को कम करके पहुंच बढ़ाना, और
ii) संरचनात्मक परिवर्तनों तथा प्रदर्शन मानकों और क्षमताओं को निर्धारित करने के माध्यम से जवाबदेही बढ़ाना
राष्ट्रीय मिशन के तहत पहल
- न्यायपालिका के लिए अवसंरचना सुविधाओं के विकास से जुड़ी केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) का कार्यान्वयन:
राष्ट्रीय मिशन की प्रमुख पहलों में से एक है - i) न्यायपालिका के लिए अवसंरचना सुविधाओं के विकास से जुड़ी केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस)। i) न्यायपालिका के लिए अवसंरचना सुविधाओं के विकास से जुड़ी सीएसएस का उद्देश्य पूरे देश में जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों / न्यायिक अधिकारियों के लिए उपयुक्त संख्या में कोर्ट हॉल और आवासीय सुविधाओं की उपलब्धता में वृद्धि करना है, जिनमें शामिल हैं - जिला, उप-जिला, तालुका, तहसील, ग्राम पंचायत और गाँव। इससे देश भर में हर नागरिक तक पहुंच बनाने से सम्बंधित न्यायपालिका के कामकाज और प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
सरकार ने सीएसएस को 5 साल की अवधि के लिए यानी 2021-22 से 2025-26 तक 9000 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय (5307 करोड़ रुपये के केंद्रीय हिस्से सहित) के साथ जारी रखने की मंजूरी दी है तथा कोर्ट हॉल और आवासीय इकाइयों के अलावा वकीलों और वादियों की सुविधा के लिए वकीलों के हॉल, शौचालय परिसर और डिजिटल कंप्यूटर कमरे जैसी कुछ नई सुविधाओं के प्रावधान को भी पेश किया है।
योजना की शुरुआत से लेकर अब तक (21.12.21) 8710 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। 2014-15 से अब तक 5265 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं, जो इस योजना के तहत कुल राशि का लगभग 60.45 प्रतिशत है। चालू वित्त वर्ष 2021-2022 के दौरान 776 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है, जिसमें से 384.53 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। वित्त वर्ष 2020-21 में राज्यों को 593 करोड़ रुपये जारी किए गए।
उच्च न्यायालयों द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, 20,595 कोर्ट हॉल उपलब्ध हैं, जो 2014 में उपलब्ध 15,818 कोर्ट हॉल की तुलना में हुई वृद्धि को दर्शाते हैं। जहां तक आवासीय इकाइयों का संबंध है, 18,087 आवासीय इकाइयां उपलब्ध हैं, जबकि न्यायाधीशों/न्यायिक अधिकारियों की संख्या 19,292 है। 2014 में 10,211 आवासीय इकाइयाँ उपलब्ध थीं। इसके अलावा, 2846 कोर्ट हॉल और 1775 आवासीय इकाइयाँ वर्तमान में निर्माणाधीन हैं।
न्याय विकास 2.0 का शुभारंभ
कानून और न्याय मंत्री ने 11 जून, 2018 को निर्माण परियोजनाओं की निगरानी के लिए एक ऑनलाइन उपकरण के रूप में न्याय विकास को लॉन्च किया था। न्याय विकास वेब पोर्टल और मोबाइल ऐप का उन्नयन किया गया है और संस्करण 2.0 को आम लोगों के लिए 1 अप्रैल, 2020 से ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया है। यह संस्करण बढ़ी हुई क्षमताओं और कार्यात्मकताओं से लैस है, जिसे एनआरएससी, इसरो की सहायता से विभिन्न राज्यों के उपयोगकर्ताओं की प्रतिक्रिया के आधार पर विकसित किया गया है। 01.12.2021 तक, 6089 कोर्ट हॉल (पूर्ण और निर्माणाधीन) और 4813 आवासीय इकाइयों (पूर्ण और निर्माणाधीन) को भू-स्थानिक टैग (जियोटैग) किया गया है।
ii) जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्तियों को भरना
संवैधानिक ढांचे के अनुसार, अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति की जिम्मेदारी उच्च न्यायालयों और संबंधित राज्य सरकारों की होती है। सुप्रीम कोर्ट ने मलिक मजहर मामले में न्यायिक आदेश के माध्यम से अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्त पदों को भरने के लिए एक प्रक्रिया और समय सीमा तैयार की है। न्याय विभाग जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्त पदों को भरने के लिए इस विषय पर राज्यों और उच्च न्यायालयों के साथ विचार-विमर्श कर रहा है। न्याय विभाग ने मासिक आधार पर जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों की स्वीकृत और वर्त्तमान संख्या तथा रिक्तियों की रिपोर्टिंग और निगरानी के लिए अपनी वेबसाइट पर एक एमआईएस वेब-पोर्टल की शुरुआत की है। इससे नीति निर्माताओं को मासिक न्यायिक डेटा प्राप्त करने में सुविधा होती है। मलिक मजहर सुल्तान मामले के निर्देशों के अनुपालन के तहत अप्रैल, 2021 से "रिक्तियों से संबंधित डेटा" की रिपोर्टिंग के लिए पोर्टल, न्याय विभाग की वेबसाइट पर लाइव है।
- न्यायालयों में लंबित मामले
मामलों का फैसला देना न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। हालांकि, केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 39 ए के अनुरूप न्याय तक पहुंच में सुधार, मामलों के त्वरित निपटान और लंबित मामलों में कमी लाने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्र सरकार द्वारा गठित ‘न्याय प्रदान करने और कानूनी सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन’ ने कई रणनीतिक पहलों को अपनाया है, जिसमें जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों के लिए अवसंरचना सुविधा [कोर्ट हॉल और आवासीय इकाइयों] में सुधार, बेहतर तरीके से न्याय प्रदान करने के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरना, जिला, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय स्तर पर लंबित मामलों पर गठित समितियों द्वारा अनुवर्ती कार्रवाई के माध्यम से लंबित मामलों में कमी करना, वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) पर जोर और विशेष प्रकार के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक की पहल आदि शामिल हैं। 6 दिसंबर, 2021 तक सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या 69,855 थी। 17 दिसंबर 2021 तक उच्च न्यायालयों और जिला व अधीनस्थ न्यायालयों के सन्दर्भ में लंबित मामलों की संख्या क्रमशः 56,39,702 और 4,006,61,393 थी।
क ) मामलों के निपटान में लगने वाले समय पर ऑनलाइन रिपोर्टिंग:
विभाग ने आपराधिक और दीवानी ‘मामलों के निपटान में लगे औसत समय’ पोर्टल को वेबसाइट पर लाइव कर दिया है, ताकि संबंधित सभी उच्च न्यायालय प्रतिक्रियाओं को दर्ज कर सकें। यह विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति द्वारा अदालतों में मामलों के निपटान में लगने वाले समय को रिकॉर्ड करने की सिफारिश के अनुपालन के अनुरूप है।
ख ) शेष मामलों पर गठित समितियों के माध्यम से लंबित मामलों में कमी:
अप्रैल, 2015 में आयोजित मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में पारित प्रस्ताव के अनुरूप, पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों को निपटाने के लिए उच्च न्यायालयों में बकाया समितियों का गठन किया गया है। जिला न्यायाधीशों के अधीन भी बकाया समितियों का गठन किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय में बकाया समिति का गठन किया गया है, ताकि समिति उच्च न्यायालयों और जिला न्यायालयों में लंबित मामलों को कम करने के लिए आवश्यक कदमों का सुझाव दिया जा सके। न्याय विभाग ने मलीमठ समिति रिपोर्ट के बकाया समिति दिशानिर्देशों के अनुपालन के संबंध में सभी उच्च न्यायालयों द्वारा रिपोर्टिंग के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल विकसित किया है।
- कारोबार करने में आसानी
कारोबार करने में आसानी (ईओडीबी) सूचकांक विश्व बैंक समूह द्वारा स्थापित श्रेणी देने की प्रणाली है, जिसमें 'उच्च श्रेणी' (कम संख्यात्मक मूल्य) व्यवसायों के लिए बेहतर नियमों, आमतौर पर सरल, और संपत्ति के अधिकारों की मजबूत सुरक्षा का संकेत देती है। अनुबंधों को लागू करना एक ऐसा संकेतक है, जो एक मानक वाणिज्यिक विवाद को हल करने में लगने वाले समय और लागत के साथ न्यायपालिका में अच्छी प्रथाओं की एक श्रृंखला को मापता है। न्याय विभाग (डीओजे) अनुबंध संकेतक को लागू करने के लिए नोडल विभाग है। निवेश और व्यवसाय के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए, अनुबंधों के शीघ्र लागू करने को सक्षम बनाने के लिए सुधारों को लागू करते हुए निरंतर प्रयास किए गए हैं। न्याय विभाग द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति तथा और दिल्ली और मुंबई के उच्च न्यायालय के समन्वय से कारोबार करने में आसानी के लिए विभिन्न सुधार किए गए हैं।
· वाणिज्यिक मामलों की सुनवाई के लिए दिल्ली में 22, मुंबई में 6, बेंगलुरु में 9 और कोलकाता में 2 समर्पित वाणिज्यिक न्यायालय संचालित किये जा रहे हैं। वर्ष 2021 में, 4 मौजूदा समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों के अलावा, मुंबई में दो और की शुरुआत की गई थी। अन्य सुधारों में, 500 करोड़ रुपये से अधिक के उच्च मूल्य वाले वाणिज्यिक विवादों से निपटने के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों में विशेष बेंच का गठन, विशिष्ट राहत (संशोधन) अधिनियम, 2018 की धारा 20 बी के अनुसार अवसंरचना परियोजना अनुबंध विवादों के लिए विशेष न्यायालय, तीन स्थगन नियमों का कार्यान्वयन ( रंग बैंडिंग सुविधा के माध्यम से), आईसीटी का उपयोग, ई-फाइलिंग, मामलों का यादृच्छिक और स्वचालित आवंटन, न्यायाधीशों और वकीलों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक केस प्रबंधन उपकरणों का उपयोग, ई-समन आदि शामिल हैं।
· प्रमुख पहलों में एक, संपत्ति पंजीकरण को अदालती कार्यवाही से जोड़ने से संबंधित है। 26 राज्य (यूटी) सरकारों को एनजेडीजी के साथ भूमि रिकॉर्ड और पंजीकरण डेटाबेस को जोड़ने के लिए अपने संबंधित उच्च न्यायालयों से मंजूरी मिल गई है। इससे भूमि विवादों को तेजी से निपटाने में मदद मिलेगी और न्यायपालिका पर काम का बोझ कम होगा।
· न्याय विभाग ने ‘अनुबंधों का प्रवर्तन पोर्टल’ भी शुरू किया है, जो "अनुबंधों को लागू करने" के मानकों पर किए जा रहे सुधारों के बारे में जानकारी का एक व्यापक स्रोत है।
V) विधि का शासन सूचकांक
· विधि का शासन सूचकांक (आरओएलआई, रोली) को विश्व न्याय परियोजना (डब्ल्यूजेपी) द्वारा विकसित और प्रकाशित किया गया है। रोली 2021; 139 देशों को कवर करता है और देश विशेष से प्राप्त डेटा एवं 8 कारकों और 44 उप-कारकों के आधार पर उन्हें रैंक करता है। रोली मात्रात्मक रूप में आम जनता और क्षेत्र के विशेषज्ञों के सर्वेक्षण/मतदान के माध्यम से ‘व्यवहार में विधि का शासन’ को मापता है। नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, डब्ल्यूजेपी द्वारा मूल्यांकन किए गए 139 देशों में, रोली में भारत की वर्तमान रैंक 79 है। इस उद्देश्य के लिए न्याय विभाग 08 प्रमुख संकेतकों/कारकों और 44 उप-कारकों में भारत के प्रदर्शन में सुधार के लिए 29 हितधारक मंत्रालय/विभागों के साथ काम कर रहा है। इन मंत्रालयों/विभागों से मिलकर एक समन्वय समिति का गठन किया गया है, जिसकी अब तक पांच बैठकें हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त, धारणा आधारित मानकों में सुधार के संबंध में कानूनी विशेषज्ञों और उद्योग जगत से भी इनपुट आमंत्रित किये गए थे।
· इसके बाद, 08.07.2021 को एक परियोजना प्रबंधन इकाई (पीएमयू), डीओजे की स्थापना की गई, जिसमें सदस्य के रूप में विशेषज्ञ एजेंसी (मैसर्स मार्केट एक्ससेल डेटा मैट्रिक्स प्राइवेट लिमिटेड, स्थानीय एजेंसी जो पहले डब्ल्यूजेपी द्वारा भारत में उनके मतदान सर्वेक्षण का कार्य करती थी) शामिल थी। संयुक्त सचिव इस इकाई के अध्यक्ष थे। यह इकाई निर्धारित टेम्पलेट में जानकारी भरने व लाइन एम/डी की सहायता करने के साथ रोली में भारत के प्रदर्शन में सुधार के लिए कार्य योजना तैयार कर रही थी। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के प्रतिनिधियों से भी स्थानीय डेटा स्रोतों के साथ भारत सूचकांक के निर्माण पर सुझाव लिया गया गया है। पीएमयू ने मानकों / उप-मानकों का विस्तार किया ताकि लाइन एम/डी द्वारा एकत्र की गई जानकारी अधिक बारीक और सटीक हो। इसके लिए पहले से पहचान किये गए 19 एम/डी में 10 अतिरिक्त लाइन एम/डी को जोड़ा गया। पीएमयू द्वारा रोली के लिए एक संशोधित टेम्पलेट भी तैयार किया गया था, ताकि मीडिया योजना के निर्माण में सहायता के लिए सुधार कार्यों से संबंधित अधिक जानकारी जोड़ी जा सके।
· प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए तैयार की गई कार्य योजना में शामिल हैं, आसान मानकों की पहचान, जो अंक-तालिका में सुधार के लिए महत्वपूर्ण हैं; प्रत्येक लाइन एम/डी से आवंटित मानकों के अनुसार विवरण का संग्रह, लोगों के बीच धारणा और प्रासंगिकता को बदलने और इसमें सुधार करने के क्रम में “संचार आउटरीच योजना" बनाने के लिए अतिरिक्त जानकारी, प्रगति को प्रदर्शित करने के लिए डीओजे वेबसाइट पर एक विशेष रोली (आरओएलआई) वेबपेज विकसित करना, नीति आयोग द्वारा विकसित रोली डैशबोर्ड की जानकारी को पूरा करना और द्वि-वार्षिक रोली न्यूज़लेटर जारी करना। चुनौतियों में शामिल हैं - विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के डेटा के साथ वैचारिक व गुणवत्ता आधारित सूचकांक को मात्रा आधारित सूचकांक में परिवर्तित करना, डेटा स्रोतों की पहचान, वैकल्पिक डेटा स्रोत, जहां डेटा उपलब्ध नहीं है आदि। रोली सभी देशों के लिए समग्र रूप से एक धारणा आधारित सूचकांक है। ऐसे में राज्य/जिला-स्तरीय डेटा के साथ भारत सूचकांक को तैयार करना और मापना चुनौतीपूर्ण है।
डेटा प्रबंधन गुणवत्ता सूचकांक
विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के डेटा प्रबंधन का आकलन करने के लिए नीति आयोग द्वारा डीजीक्यूआई मूल्यांकन किया गया था। यह अध्ययन विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा "डेटा निर्माण, प्रबंधन और इसके उपयोग की सुचारू प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिए डेटा प्रणाली" विषय पर किया गया था। इसके अब तक दो संस्करण हो चुके हैं। न्याय विभाग ( 24 विभागों में से 8वें स्थान पर) ने डीजीक्यूआई 1.0 के तहत 5 में से 2.98 अंक हासिल किया। डीजीक्यूआई 2.0 के लिए रैंकिंग अभी तक आधिकारिक तौर पर जारी नहीं की गई है। डीजीक्यूआई रिपोर्ट के अनुसार, सांकेतिक रूपरेखा का उपयोग करके दूसरे डीजीक्यूआई के लिए 5.0 का सीमान्त स्कोर प्राप्त करना है। दूसरे डीजीक्यूआई में क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दायरे का विस्तार होगा और यह सीएसएस व सीएस योजना के साथ-साथ गैर-योजनाओं/अन्य पहलों को भी कवर करेगा। सभी मंत्रालयों/विभागों को दिसंबर 2022 तक डीजीक्यूआई 5.0 स्कोर प्राप्त करने के लिए कार्य योजना/रणनीति तैयार करनी थी।
डीजीक्यूआई रिपोर्ट में 5.0 के सीमान्त स्कोर को प्राप्त करने की दृष्टि से कार्य योजना / रोडमैप के विकास और कार्यान्वयन के लिए, संयुक्त सचिव (राष्ट्रीय मिशन) की अध्यक्षता में न्याय विभाग में एक डेटा और रणनीति इकाई (डीएसयू) का गठन किया गया है, जो साप्ताहिक बैठक आयोजित करता है तथा सचिव (न्याय विभाग) को पाक्षिक तौर पर बैठकों और प्रगति की जानकारी देता है। एनएएलएसए, सीएससी सहित आंतरिक रूप से डीजीक्यूआई की प्रगति पर नज़र रखने के लिए अब तक 13 बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं। विभाग ने डेटा तैयारियों में सुधार और डीजीक्यूआई स्कोर में सुधार के लिए रोडमैप की एक सांकेतिक रूपरेखा पेश की है। इसके अलावा नीतियों, कार्यक्रमों और तौर-तरीकों को विकसित करने के उद्देश्य से डीओजे के लिए डेटा प्रबंधन दिशानिर्देश जारी किए गए हैं, जो न्याय विभाग द्वारा रिपोर्ट किए गए/एकत्र किए गए डेटा और जानकारी के मूल्य को नियंत्रित व संरक्षित करेंगे और इनमें वृद्धि करेंगे।
डीजीक्यूआई पहल के तहत निम्नलिखित प्रगति हासिल की गई है:
|
डीएसयू के पहले की स्थिति
|
डीएसयू के बाद की स्थिति
|
1
|
न्याय विकास 2.0 पोर्टल और सीएसएस से संबंधित डेटा का श्रेणीकरण
|
- सभी सीएसएस-संबंधित डेटा को एकल पोर्टल पर एकीकृत किये गए और देखने योग्य बनाए गए
- सार्वजनिक तौर पर देखे जाने के लिए खुला
|
2
|
ग्राम न्यायालय एमआईएस पोर्टल; चयनित उपयोगकर्ताओं के साथ सुरक्षित लॉगिन
|
- सार्वजनिक तौर पर देखे जाने के लिए खुला
|
3
|
ई-कोर्ट से संबंधित कोई डेटा नहीं एमएमपी चरण I और II
|
- ई-न्यायालय एमएमपी चरण I और II डेटा की परिकल्पना की गई
- चरण III के लिए विजन दस्तावेज़ वेबसाइट पर होस्ट किया गया
|
4
|
फास्ट ट्रैक कोर्ट (एफटीसी) एमआईएस पोर्टल; चयनित उपयोगकर्ताओं के साथ सुरक्षित लॉगिन
|
- संबंधित डेटा के लिए भारत-मानचित्र पर चित्रण और डैशबोर्ड
- सार्वजनिक तौर पर देखे जाने के लिए खुला
|
5
|
विशेष न्यायालय (फैमिली कोर्ट / फास्ट ट्रैक कोर्ट / एमपी एमएलए कोर्ट / एससी एसटी कोर्ट आदि) एमआईएस पोर्टल; चयनित उपयोगकर्ताओं के साथ सुरक्षित लॉगिन
|
- संबंधित डेटा के लिए भारत-मानचित्र पर चित्रण और डैशबोर्ड
- सार्वजनिक तौर पर देखे जाने के लिए खुला
|
6
|
जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों की रिक्ति की ऑनलाइन रिपोर्टिंग एमआईएस पोर्टल; चयनित उपयोगकर्ताओं के साथ सुरक्षित लॉगिन
|
- रिक्ति से संबंधित, श्रेणी-वार डेटा के लिए डैशबोर्ड
- अधीनस्थ न्यायपालिका में राज्यवार रिक्ति की स्थिति का भारत-मानचित्र पर चित्रण
- सार्वजनिक तौर पर देखे जाने के लिए खुला
|
7
|
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायपालिका की रिक्ति से संबंधित डेटा की स्थिति, पीडीएफ प्रारूप में
|
- उच्च न्यायपालिका में उच्च न्यायालय-वार रिक्ति की स्थिति का भारत-मानचित्र पर चित्रण
- सार्वजनिक तौर पर देखे जाने के लिए खुला
|
8. अन्य पहल:
(i) मंथन:
माननीय कानून और न्याय मंत्री तथा माननीय कानून और न्याय राज्य मंत्री ने 12.10.2021 को गरवी गुजरात भवन, नई दिल्ली में न्याय विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ विचार-मंथन सत्र में भाग लिया। बैठक के दौरान, विचारों का स्पष्टता के साथ आदान-प्रदान हुआ और नीतियों व प्रक्रियाओं दोनों के संदर्भ में न्याय विभाग के कामकाज में सुधार के लिए कई उपयोगी सुझाव दिए गए। यह भी निर्णय लिया गया कि विभाग में एकजुट टीम वर्क के निर्माण के लिए विचारों के आदान-प्रदान के सत्र बाद में भी आयोजित किये जायेंगे।
ii) संविधान दिवस, 26 नवंबर, 2021 का आयोजन
दिनांक 26.11.2021 को संविधान दिवस के उपलक्ष्य में माननीय राष्ट्रपति के साथ 'लाइव' समारोह में भारतीय संविधान की प्रस्तावना के वाचन और शपथ ग्रहण कार्यक्रम में शामिल होने के लिए न्याय विभाग के कर्मचारियों और सदस्यों की जैसलमेर हाउस में व्यवस्था की गई थी। लोगों में संविधान के महत्व को लोकप्रिय बनाने के लिए 'मौलिक कर्तव्य' विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली तथा नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, मुंबई के वाइस चांसलर और नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु के रजिस्ट्रार ने प्रतिभागियों को मौलिक कर्तव्यों की दार्शनिक पृष्ठभूमि, मौलिक कर्तव्यों के संवैधानिक प्रावधानों और कोविड के समय में कर्तव्य पालन की आवश्यकता के बारे में जानकारी दी। वेबिनार में टेली-लॉ कार्यक्रम के अग्रिम पंक्ति के पदाधिकारियों (पैरा कानूनी स्वयंसेवकों, ग्राम स्तर के उद्यमियों और पैनल वकीलों) सहित 24,000⁺ प्रतिभागियों ने भाग लिया।
****
एमजी/एएम/जेके/एसएस
(Release ID: 1788910)
Visitor Counter : 696