जल शक्ति मंत्रालय

वर्षांत समीक्षा: जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय


मंत्रिमंडल द्वारा 44,605 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ स्वीकृत केन-बेतवा नदी जोड़ो कार्यक्रम राष्ट्रीय योजना के तहत अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है, जिसके तहत उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में सालाना 10.62 लाख हेक्टेयर वार्षिक सिंचाई और लगभग 62 लाख लोगों को पेयजल आपूर्ति उपलब्ध कराना है

संसद में पारित हुआ बांध सुरक्षा विधेयक (2019); विधेयक बांधों का सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करने के लिए संरचनागत और गैर संरचनागत उपायों के स्तर पर केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर एक संस्थागत तंत्र उपलब्ध कराता है

लगभग 22 लाख किसानों को लाभान्वित करने के लिए 93,068 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ 2021-26 के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) को स्वीकृति दी गई; योजना के तहत दो राष्ट्रीय योजनाएं रेणुकाजी बांध परियोजना (हिमाचल प्रदेश) और लखवाड़ बहु उद्देश्यीय परियोजना(उत्तराखंड) के लिए 90 प्रतिशत केंद्रीय वित्तपोषण का प्रावधान किया गया है

राष्ट्रीय जल मिशन ने देश भर में जल संरक्षण में सुधार के लिए विशेष अभियान "कैच द रेन" लॉन्च किया

Posted On: 31 DEC 2021 5:40PM by PIB Delhi

वर्ष 2021 के दौरान जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय की मुख्य पहल/उपलब्धियां इस प्रकार हैं :

 

केन-बेतवा नदी इंटरलिंकिंग परियोजना :

मंत्रिमंडल ने 8.12.2021 को केन-बेतवा नदी इंटरलिंकिंग परियोजना के वित्तपोषण और कार्यान्वयन को स्वीकृति दी। 2020-21 के मूल्य स्तर पर केन-बेतवा लिंक परियोजना की कुल लागत 44,605 करोड़ रुपये आंकी गई है। 22 मार्च, 2021 को माननीय प्रधानमंत्री की उपस्थिति में देश में पहली बड़ी केन्द्र संचालित नदी जोड़ो परियोजना के कार्यान्वयन के लिए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय और मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नदियों को जोड़कर ऐसे क्षेत्रों से जल निकालकर सूखा प्रभावित और जल की कमी वाले क्षेत्रों तक पहुंचाने के विजन को लागू करने के उद्देश्य से अंतर-राज्य सहयोग की शुरुआत है।

इस परियोजना में दाऊधन बांध बनाकर केन और बेतवा नदी को नहर के जरिये जोड़ना, लोअर ओर्र परियोजना, कोठा बैराज और बीना संकुल बहुउद्देश्यीय परियोजना के माध्यम से केन नदी के पानी को बेतवा नदी में पहुंचाना है। इस परियोजना से प्रति वर्ष 10.62 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में सिंचाई सुविधाएं, लगभग 62 लाख लोगों को पेयजल आपूर्ति और 103 मेगावाट जल विद्युत और 27 मेगावाट सौर बिजली का उत्पादन होगा। इस परियोजना को अत्याधुनिक तकनीक के साथ 8 वर्षों में पूरा किए जाने का प्रस्ताव है।

यह परियोजना मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों में फैले बुन्देलखंड क्षेत्र में पानी की भयंकर कमी से प्रभावित क्षेत्रों के लिए अत्यधिक लाभकारी होगी। इस परियोजना से मध्य प्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन जिले तथा उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिलों को खासा फायदा होगा।

इस परियोजना से कृषि गतिविधियों में बढ़ोतरी और रोजगार सृजन के चलते पिछड़े बुंदेलखंड क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक संपन्नता को बढ़ावा मिलने का अनुमान है। इससे इस क्षेत्र से भारी पलायन को रोकने में भी मदद मिलेगी।

यह परियोजना समग्र रूप से पर्यावरण प्रबंधन और सुरक्षा उपलब्ध कराती है। इस उद्देश्य से भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा एक समग्र परिदृश्य प्रबंधन योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

 

बांध सुरक्षा विधेयक (अब अधिनियम), 2021

चीन और अमेरिका के बाद, भारत दुनिया में तीसरा बड़ा बांध वाला देश है। भले ही भारत का बांध सुरक्षा का रिकॉर्ड विकसित देशों के अनुरूप है, लेकिन अनपेक्षित रूप से यहां पर बांधों की नाकामियों और खराब रखरखाव की समस्याएं सामने आई हैं।

राज्य सभा ने 2 दिसंबर, 2021 को ऐतिहासिक बांध सुरक्षा विधेयक पारित कर दिया, जिससे देश में बांध सुरक्षा अधिनियम लागू करने का रास्ता साफ गया। बांध सुरक्षा विधेयक (2019) को लोकसभा में 2 अगस्त 2019 को पारित किया गया था।

विधेयक देश के सभी बड़े बांधों की पर्याप्त निगरानी, निरीक्षण, परिचालन और रखरखाव संबंधी सुविधा प्रदान करेगा, ताकि बांध संबंधी आपदाओं को रोका जा सके। बांधों का सुरक्षित परिचालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपायों की दिशा में यह विधेयक केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर एक संस्थागत तंत्र की व्यवस्था प्रदान करेगा।

विधेयक के प्रावधान के अनुसार, एकसमान बांध सुरक्षा नीतियां, प्रोटोकॉल और प्रक्रियाओं को विकसित करने में मदद करने के लिए बांध सुरक्षा पर एक राष्ट्रीय समिति (एनसीडीएस) का गठन किया जाएगा। यह विधेयक बांध सुरक्षा नीतियां और मानकों का राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने की दिशा में एक नियामक संस्था के तौर पर राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एनडीएसए) स्थापित करने की सुविधा भी प्रदान करता है। वहीं इस विधेयक में राज्य स्तर पर बांध सुरक्षा पर राज्य समिति (एससीडीएस) का गठन करने और राज्य बांध सुरक्षा संगठन (एसडीएसओ) स्थापित करने की व्यवस्था की गई है।

बांध सुरक्षा विधेयक से जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हुई चुनौतियों के चलते बांध सुरक्षा से जुड़ी गंभीर समस्याओं का व्यापक स्तर पर समाधान निकालने में मदद मिलेगी। यह विधेयक बांधों के नियमित निरीक्षण और जोखिम संबंधी वर्गीकरण की व्यवस्था करता है।इस विधेयक में विशेषज्ञों के एक स्वतंत्र पैनल द्वारा आपातकालीन कार्य योजना बनाने और बांध सुरक्षा की व्यापक स्तर पर समीक्षा करने का प्रावधान किया गया है। इस विधेयक में नदी के प्रवाह की दिशा में रहने वाले निवासियों की सुरक्षा संबंधी चिंताको दूर करने के लिए एक आपातकालीन बाढ़ चेतावनी प्रणाली का प्रावधान किया गया है।

इस विधेयक के अंतर्गत अब बांध मालिकों को जरूरी मशीनरी प्रदान करने के अलावा निर्धारित समय पर बांध की मरम्मत और रखरखाव के लिए ज़रूरी संसाधन भी प्रदान करने होंगे।

यह विधेयक बांध सुरक्षा को समग्र रूप में देखता है और न केवल बांधों के संरचनात्मक पहलुओं की बात करता है, बल्कि सख्त परिचालन एवं रखरखाव (ओ एंड एम)प्रोटोकॉल के माध्यम से परिचालन और रखरखाव संबंधी प्रभावशीलता को बढ़ाने पर भी जोर देता है।

इस विधेयक में शामिल प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए दंडात्मक प्रावधान किए गए हैं, जिनमें अपराध और उसकी सजा शामिल हैं।

इस विधेयक में केन्द्र और राज्य दोनों के सहयोग से एक मजबूत संस्थागत ढांचा स्थापित करने के लिए निश्चित समय सीमा बताई गई है। यह विधेयक एक निश्चित समय सीमा में बांध मालिकों द्वारा अनिवार्य बांध सुरक्षा उपायों को लागू करने पर भी जोर देता है। इस विधेयक का पारित होना भारत में बांध सुरक्षा और जल संसाधन प्रबंधन के एक नए युग की शुरुआत है।इस विधेयक के पारित होने से भारत में बांध सुरक्षा और जल संसाधन प्रबंधन के एक नए युग की शुरुआत हुई है।

 

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) -

  • त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी)- सीएडीडब्ल्यूएम सहित:

यह सरकार हर खेत को जल; हर घर को जल सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) और अटल भूजल योजना जैसी योजनाएं लक्षित डिलिवरी सुनिश्चित कर रही हैं। पीएमकेएसवाई के अंतर्गत, 31.03.2021 तक 76.03 लाख हेक्टेयर अंतिम सिंचाई क्षमता की तुलना में 63.85 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता तैयार की गई। अभी तक 99 परियोजनाओं में से 44 पूरी की जा चुकी हैं।

भारत सरकार ने 27.07.2016 को चरणबद्ध तरीके से पूरी करने के लिए 77,595 करोड़ रुपये (केन्द्र का हिस्सा- 31,342 करोड़ रुपये, राज्य का हिस्सा- 46,253 करोड़ रुपये) की अनुमानित शेष लागत से 99 प्राथमिकता वाली सिंचाई परियोजनाओं (और 7 चरण) के लिए वित्तपोषण को स्वीकृति दी थी। कार्यों में एआईबीपी और सीएडी दोनों कार्य शामिल हैं। केंद्रीय सहायता (सीए) और राज्य के हिस्से के लिए वित्त की व्यवस्था दीर्घकालिक सिंचाई कोष (एलटीआईएफ) के तहत नाबार्ड के माध्यम से की जाएगी। योजना के तहत लक्षित सिंचाई क्षमता 34.63 लाख हेक्टेयर है। 2016-17 से इन परियोजनाओं पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा 50,437 करोड़ रुपये (मार्च 2021 तक) खर्च किए जाने की सूचना है।

भारत सरकार प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के तहत कमांड एरिया डेवलपमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट (सीएडीडब्ल्यूएम) नाम की एक योजना कार्यान्वित कर रही है। इस योजना को सुनिश्चित सिंचाई के अंतर्गत खेत पर पानी की पहुंच बढ़ाने और कृषि योग्य क्षेत्र के विस्तार के उद्देश्य से शुरू किया गया था। 2016-17 से 2020-21 (मार्च, 2021) के दौरान, 76 परियोजनाओं के लिए सीए के रूप में 2,747.35 करोड़ रुपये जारी किए गए, वहीं राज्यों द्वारा सूचित सीसीए प्रगति 14.96 लाख करोड़ रुपये है। 2021-22 (28 दिसंबर, 2021 तक) के दौरान, 1 परियोजना के लिए सीए के रूप में 33.71 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की गई है।

 

 

2021-26 के दौरान पीएमकेएसवाई एआईबीपी (सीएडीडब्ल्यूएम सहित) का कार्यान्वयन:

भारत सरकार ने 22 लाख किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए 15 दिसंबर, 2021 को 93,068 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ 2021-26 के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के कार्यान्वयन को स्वीकृति दी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पीएमकेएसवाई 2016-21 के दौरान सिंचाई विकास के लिए राज्यों को 37,454 करोड़ रुपये के केंद्रीय सहयोग और भारत सरकार द्वारा लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए 20,434.56 करोड़ रुपये को स्वीकृति दी है।

कार्यान्वयन में सुधार और अधिकतम लाभ के लिए कई नए उपाय और संशोधन किए गए हैं।

 

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- हर खेत को पानी- भूजल (पीएमकेएसवाई-एचकेकेपी-जीडब्ल्यू)

हर खेत को पानी पर जोर के साथ सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के विजन के साथ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) बनाई गई थी। भूजल घटक का उद्देश्य भूजल का इस्तेमाल ऐसे क्षेत्रों में सिंचाई के उद्देश्य से करने का लक्ष्य है, जहां भूजल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।

इस योजना के अंतर्गत लाभार्थी सिर्फ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिला किसानों को प्राथमिकता के साथ छोटे एवं सीमांत किसान हैं। खोदे गए कुएं, खोदे गए सह बोर वेल्स, ट्यूबवेल और बोरवेल आदि के माध्यम से भूजल सिंचाई सुविधाओं के लिए उन क्षेत्रों में योजनाओं के तहत वित्तपोषण किया जा सकता है, जो एसएएफई के रूप में वर्गीकृत हैं और निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करते हैं :

अभी तक 1,270 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता के साथ 12 राज्यों में 1,719 करोड़ रुपये की 15 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई थी। 27 दिसंबर, 2021 तक 10 राज्यों को केंद्रीय सहायता के रूप में 458.41 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। हालांकि, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल ने अभी तक योजना के कार्यान्वयन के लिए डीओडब्ल्यूआर, जल शक्ति मंत्रालय के साथ एमओए पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

नवंबर, 2021 तक सिंचाई के लिए 22,500 कुएं बनाए जा चुके हैं और 37,700 हेक्टेयर से ज्यादा कमांड एरिया तैयार किया जा चुका है, जिससे लगभग 36,000 छोटे और सीमांत किसानों को फायदा हो रहा है।

 

 

बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (ड्रिप) का चरण-2 और चरण-3:

चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है, जहां पर 5,334 बड़े बांध संचालित किए जा रहे हैं। वर्तमान समय में लगभग 411 बांध निर्माणाधीन हैं। इसके अलावा, कई हजार छोटे-छोटे बांध भी मौजूद हैं।ये बांध देश की जलीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। मंत्रिमंडल ने 29 अक्टूबर, 2020 को हई बैठक में बाह्य सहायता प्राप्त डीआरआईपी के चरण-2 और चरण-3 को स्वीकृति दी थी। इसमें 19 राज्य और 3 केंद्रीय एजेंसियां शामिल हैं। बजट परिव्यय 10,211 करोड़ रुपये है। योजना की अवधि 10 वर्ष है, जिसे दो चरणों में कार्यान्वित किया जाना है। इसमें हर चरण दो साल के ओवरलैप के लिए छह साल की अवधि का है। दूसरे चरण को दो बहु-पक्षीय वित्तपोषण एजेंसियों- विश्व बैंक (डब्ल्यूबी) और एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) द्वारा सह-वित्तपोषित किया जा रहा है। 10 राज्यों और सीडब्ल्यूसी के मामले में विश्व बैंक के साथ कर्ज समझौता और परियोजना समझौते 12 अक्टूबर, 2021 से प्रभावी घोषित कर दिए गए हैं।

 

केंद्रीय जल आयोग :

सीडब्ल्यूसी ने सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए 12 जलाशयों का आंतरिक सेडिमेंटेशन एसेसमेंट स्टडीज कराई है। ये आंतरिक अध्ययन माइक्रोवेव डाटा (ऑप्टिकल डाटा के बजाय) के इस्तेमाल से किए गए हैं। माइक्रोवेव डाटा के उपयोग का फायदा यह है कि इमेज बादलों से प्रभावित नहीं होते हैं और हमें मानसून के दौरान भी एफआरएल जैसी ही जलाशयों की इमेज प्राप्त होती हैं। (जो जलाशयों के भरे होने के दौरान ऑप्टिकल इमेजरी से तुलनात्मक रूप से खासा मुश्किल होता है और ऐसा ज्यादातर मानसून के दौरान होता है और उस समय बादल ज्यादा होते हैं)

भारत की 4 ऐतिहासिक सिंचाई परियोजनाओं को आईसीआईडी की वर्ल्ड हेरिटेज इरीगेशन स्ट्रक्चर अवार्ड (डब्ल्यूएचआईएल) के लिए भेज दिया गया था। 2021 में, भारत को सबसे ज्यादा डब्ल्यूएचआईएस पुरस्कार मिले। 2021 में चार जलाशय जिन्होंने डब्ल्यूएचआईएस जीते हैं : 1)धुकवान वायर, यूपी, 2)ग्रांड एनीकट, टीएन, 3) वीरानम टैंक, टीएन, और 4) कलिंगारायन एनीकट, टीएन।

वर्ष 2021 में उपग्रह रिमोट सेंसिंग के इस्तेमाल से भारतीय हिमालय में 50 हेक्टेयर से बड़े आकार की हिमनद झीलें और जल स्रोतों की जांच पूरी कर ली गई है। इस गतिविधि को हर साल जून से अक्टूबर तक हर महीने कराया जाता है।

2021 के दौरान, राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों में 3 नए बाढ़ पूर्वानुमान केंद्रों (1 लेवल और 2 इनफ्लो) की स्थापना की गई। 1 मई से 14 दिसंबर, 2021 के दौरान, 10,571 बाढ़ पूर्वानुमान (6,456 लेवल और 3,479 इनफ्लो) जारी किए गए थे, जिनमें से 9,935 (6,456 लेवल और 3,479 इनफ्लो) सटीकता की सीमा के भीतर थे। भीषण बाढ़ की स्थितियों के दौरान दैनिक बाढ़ स्थिति रिपोर्ट और विशेष परामर्श भी जारी किए गए थे। 314 रेड और 784 ऑरेंज बुलेटिन भी जारी किए गए थे और उन्हें क्रमशः हर घंटे और 3 घंटे के आधार पर अपडेट किया गया। सभी बाढ़ सूचना को एफएफ वेबसाइट, सीडब्ल्यूसी के ट्विटर और फेसबुक के बाढ़ पूर्वानुमान पेजों पर अपडेट किया गया था।

जलाशयों की निगरानी: केंद्रीय जल आयोग की निगरानी में रहने वाले जलाशयों की संख्या बढ़कर 133 हो गई है। देश के लाइव स्टोरेज स्टेटस के साप्ताहिक बुलेटिन कोविड 19 महामारी के चलते लागू लॉकडाउन के दौरान भी जारी किए गए थे। इस क्रम में देश के लाइव स्टोरेज स्टेटस के वीकली बुलेटिन कोविड 19 महामारी के हालात के दौरान कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के क्रॉप वेदर वाच ग्रुप की मीटिंग के लिए भी जारी किए गए थे।

 

अटल भूजल योजना (अटल जल)

भारत जैसे देश में, यदि हम किसी योजना को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करना चाहते हैं तो जन भागीदारी का होना एक आवश्यक शर्त है। इसीलिए, अटल भूजल योजना को सामुदायिक भागीदारी और जल की कमी वाले चिह्नित क्षेत्रों में स्थायी भूजल प्रबंधन के लिए मांग से जुड़े हस्तक्षेपों पर जोर के साथ डिजाइन किया गया है। अटल भूजल योजना जल जीवन मिशन के लिए स्रोत स्थिरता में सुधार, सरकार के किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य में सकारात्मक योगदान और पानी का उपयुक्त इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए समुदाय में व्यवहारगत बदलाव लाने की कल्पना की गई है। अटल भूजल योजना के अंतर्गत, 2020-21 में राज्यों को 109 रुपये की धनराशि जारी की गई है।

अटल भूजल योजना (अटल जल) 6,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ भारत सरकार की केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जिसमें देश के सात राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के चिह्नित जल की कमी वाले क्षेत्रों में स्थायी भूजल प्रबंधन के लिए मांग से जुड़े हस्तक्षेपों पर जोर दिया गया है। आंशिक रूप से विश्व बैंक से वित्तपोषित योजना को माननीय प्रधानमंत्री ने 25.12.2019 को लॉन्च किया था और इसे 1.04.2020 से पांच साल की अवधि के लिए कार्यान्वित किया जा रहा है।

 

केंद्रीय भूजल बोर्ड:

1. राष्ट्रीय भू-जल स्तर मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम: एनएक्यूयूआईएम भूजल प्रबंधन एवं नियमन योजना के तहत सीजीडब्ल्यूबी द्वारा ली जाने वाली भू-जल स्तर मैपिंग और प्रबंधन योजना के लिए अध्ययन करता है। 2021 (1 जनवरी से 30नवंबर 2021) के दौरान, देश के विभिन्न हिस्सों को शामिल करते हुए 3.7 लाख वर्ग किमी के लिए भू-जल स्तर मानचित्रीकरण और प्रबंधन योजना बनाई गई है।अभी तक, भू-जल स्तर मानचित्रीकरण कार्यक्रम के तहत, देश में मानचित्रीकरण के लिए चिन्हित कुल 25 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में से 18.40 लाख वर्ग किमी क्षेत्र शामिल किया जा चुका है।

 

भारत के शुष्क क्षेत्रों में उच्च संकल्प जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन:

केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी), जल शक्ति मंत्रालय ने राजस्थान, गुजरात और हरियाणा राज्यों में फैले शुष्क क्षेत्रों के हिस्सों में हेली बोर्न भूभौतिकीय मानचित्रण सर्वेक्षण के इस्तेमाल से जलभृतों का हाई रिजॉल्युशन मानचित्रण शुरू किया है। यह अध्ययन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ मिलकर किया गया है। परियोजना के चरण-1 के तहत लगभग 1 लाख वर्ग किमी में काम शुरू हो गया है। माननीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत और माननीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने 5 अक्टूबर, 2021 को जोधपुर, राजस्थान में इस परियोजना के तहत हेली-बोर्न सर्वेक्षण का शुभारम्भ किया था।

 

 

राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केंद्र:

देश में जल संसाधनों के कुशल प्रबंधन के लिए विश्वसनीय और नवीनतम वाटर डाटा की उपलब्धता की जरूरत को महसूस करते हुए, सरकार ने हाल में राष्ट्रव्यापी जल संसाधन डाटा के रूप में और जल संसाधन डाटा स्टोरेज, संयोजन, प्रबंधन एवं प्रसार के लिए एक विश्वसनीय प्रणाली के रूप में राष्ट्रीय जल विज्ञान सूचना केंद्र की स्थापना की है। बारिश, नदी जल स्तर एवं प्रवाह, जलाशय के स्तर, भू-जल स्तर, पानी की गुणवत्ता, मिट्टी की नमी आदि जल संसाधन और संबंधित विषयों पर डाटा का जीआईएस युक्त सार्वजनिक प्लेटफॉर्म “india.wris.gov.in” के माध्यम से सभी हितधारकों और आम जनता को साझा किया जा रहा है।

 

सिंचाई गणनायोजना के तहत प्रगति:

देश में भू-जल और सतही जल लघु सिंचाई योजनाओं पर एक ठोस और विश्वसनीय आंकड़ों का आधार बनाने के लिए प्रत्येक पांच साल पर लघु सिंचाई गणना की जाती है। लघु सिंचाई गणना को केंद्र प्रायोजित योजना सिंचाई गणनाके तहत 100% केंद्रीय वित्त पोषण के साथ किया जाता है, जिसके माध्यम से विभिन्न राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों के तहत गठित राज्य सांख्यिकीय प्रकोष्ठों की मदद की जाती है। वर्तमान में 2017-18 के संदर्भ वर्ष के साथ छठी लघु सिंचाई गणना का काम चल रहा है, जिसमें मंत्रालय ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में देश के सभी जल निकायों को शामिल करके जल निकायों की पहली गणना भी शुरू की है।

 

बाढ़ प्रबंधन एवं सीमावर्ती क्षेत्र कार्यक्रम (एफएमबीएपी)

12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत चल रहे बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम (एफएमपी) और नदी प्रबंधन गतिविधियां व सीमावर्ती क्षेत्रों से संबंधित कार्यों (आरएमबीए) को अब 2017-18 से 2019-20 तक तीन साल के लिए बाढ़ प्रबंधन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम”(एफएमबीएपी) नाम की एकल योजना में शामिल कर दिया गया है और इसे मार्च, 2021 तक आगे बढ़ा दिया गया था। एफएमपी की शुरुआत से अब तक इस कार्यक्रम के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को 6,447.76 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की जा चुकी है। इस कार्यक्रम के तहत पूरी हुईं 415 परियोजनाओं से लगभग 4.994 एमएचए क्षेत्र को सुरक्षा दी जा चुकी है और 5.221 करोड़ लोगों को सुरक्षित किया गया है।

 

भारत और बांग्लादेश के मामले

 

1. संयुक्त नदी आयोग के प्रारूप के अंतर्गत भारत-बांग्लादेश जल संसाधन सचिव स्तर की बैठक का आयोजन 16 मार्च, 2021 को नई दिल्ली में हुआ

संयुक्त नदी आयोग प्रारूप के अंतर्गत भारत-बांग्लादेश जल संसाधन सचिव स्तर की बैठक का आयोजन 16 मार्च, 2021 को नई दिल्ली में किया गया। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व श्री पंकज कुमार, सचिव (जल संसाधन, आरडी एंड जीआर) ने किया। बांग्लादेश के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जल संसाधन मंत्रालय के वरिष्ठ सचिव श्री कबीर बिन अनवर ने किया।

 

2. भारत-बांग्लादेश 75वीं संयुक्त समिति बैठक और तकनीक स्तर की बैठक 5 और 6 जनवरी, 2021 को वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर हुई एवं 76वीं संयुक्त समिति बैठक 25 नवंबर, 2021 को ढाका में हुई

वर्ष 2020/21 के सुस्त सीजन के लिए फरक्का पर गंगा/ गंगा के पानी की साझेदारी पर वार्षिक रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए बैठक हुई।

 

राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय

नदी की सफाई एक नियमित प्रक्रिया है और भारत सरकार वित्तीय एवं तकनीकी सहायता देकर नदियों के प्रदूषण की चुनौतियों से निपटने के लिए राज्य सरकारों के प्रयासों में वित्तीय और तकनीक सहायता उपलब्ध कराती है। केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के तहत विभिन्न नदियों (गंगा और उसकी सहायक नदियों को छोड़कर) के चिह्नित हिस्सों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच लागत के बंटवारे के आधार पर सीवेज को नदी में मिलने से रोकने, सीवरेज सिस्टम बनाने, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना, किफायती शौचालय निर्माण, रिवर फ्रंट/स्नान घाटों के विकास इत्यादि प्रदूषण रोकने संबंधी विभिन्न कार्यों के लिए राज्य सरकारों को मदद दी जाती है।

 

कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (केआरएमबी) और गोदावली नदी प्रबंधन बोर्ड (जीआरएमपी) का अधिकार क्षेत्र

  • डीओडब्ल्यूआर, आरडीएंडजीआर, जल शक्ति मंत्रालय ने 15.07.2021 को केआरएमबी/जीआरएमबी के अधिकार  क्षेत्रों के लिए अधिसूचना जारी कर दी।

 

पीएमकेएसवाई-एचकेकेपी की सतह लघु सिंचाई (एसएमआई) औरजलस्रोतों का उद्धार, सुधार और बहाली (आरआरआर) की योजनाएं

 

12वीं योजना से अभी तक जल स्रोत का उद्धार, सुधार और बहाली (आरआरआर) योजना के तहत 1,910 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ 2,218 योजनाएं चल रही हैं। मार्च, 2021 तक राज्यों को 470 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता (सीए) जारी की जा चुकी है। इसके अलावा, मार्च, 2021 तक 1,591 जल स्रोत पूरे हो गए हैं। इन योजनाओं की लक्षित सिंचाई क्षमता बहाली 1.888 लाख हेक्टेयर है और मार्च, 2021 तक इसमें से 1.319 लाख हेक्टेयर की बहाली हो चुकी है। वर्तमान वित्त वर्ष में, अभी तक तमिलनाडु की जल स्रोत योजनाओं के एक आरआरआर को 6.654 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।

 

राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना

केंद्रीय क्षेत्र की एक योजना राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना (एनएचपी) विश्व बैंक के सहयोग से देश भर में डीओडब्ल्यूआर, आरडी और जीआर द्वारा लागू किया जा रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य जल संसाधनों की जानकारी की सीमा, गुणवत्ता और पहुंच में सुधार एवं भारत में लक्षित जल संसाधन पेशेवरों और प्रबंधन संस्थानों की क्षमता को बढ़ाना है।

उल्लिखित उद्देश्य के क्रम में, एनएचपी जल संसाधन क्षेत्र में बदलाव के लिए खासे प्रयास कर रहा है। अनुभव और विवेक के आधार पर फैसले लेने की मौजूदा व्यवस्था से हटते हुए, सोच समझ कर फैसले लेने की शुरुआत के माध्यम से जल प्रबंधन में सुधार का प्रयास किया जा रहा है जो आधुनिक विश्लेषणात्म टूल्स और रियल टाइम या लगभग रियल टाइम में जल चक्र के प्रत्येक घटक पर स्वचालित सेंसर से मिले डाटा पर निर्भर करता है। एनएचपी ने जिनका उल्लेख कार्यान्वयन एजेंसियों के रूप में किया है, उन संगठनों की पर्याप्त क्षमता और उनमें स्वामित्व भावना सुनिश्चित करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार के  संगठनों के द्वारा सहयोगपूर्ण तरीके से ऐसा किया जा रहा है। इसमें 48 आईए शामिल हैं, जो 8 साल (2016-17 से 2023-24) की अवधि से इस पहल को आगे बढ़ा रहे हैं।

 

 

राष्ट्रीय जल मिशन:

कैच द रेन कैंपेन

बारिश के पानी का संरक्षण, जहां भी संभव हो, जैसे भी संभव होटैगलाइन के साथ कैच द रेनसभी हितधारकों को जन भागीदारी के साथ जलवायु के अनुकूल बारिश का पानी जमा करने वाले ढांचे (आरडब्ल्यूएचएस) और बारिश के पानी को रोकने के अनुकूल अधोभूमि तैयार करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस अभियान के तहत वर्षा जल को एकत्रित करने वाले गड्ढे, छत पर आरडब्ल्यूएचएस, चेक डैम आदि बनाने; जलाशयों की संग्रहण क्षमता बढ़ाने के लिए उनमें अतिक्रमण दूर करने और उनमें जमा गाद हटाने; बारिश के पानी को जलाशयों तक लाने वाले मार्गों को साफ करने जैसे अभियान चलाये गये हैं। इसके अलावा सीढ़ीदार कुओं की मरम्मत और बंद पड़े नलकूपों का वर्षा जल को दोबारा जमीन में डालने के लिए इस्तेमाल करने जैसी गतिविधियों को अपनाने की भी सलाह दी गई है।

 

 

जल शक्ति अभियान: कैच द रेनअभियान

जल शक्ति मंत्रालय ने मानसून पूर्व और मानसून के दौरान 22 मार्च, 2021 से 30 नवंबर, 2021 तक देश भर के सभी जिलों (ग्रामीण के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों) के सभी विकासखंडों को कवर करते हुए बारिश के पानी का संरक्षण, जहां भी संभव हो, जैसे भी संभव हो की थीम के साथ जल शक्ति अभियान: कैच द रेन (जेएसए: सीटीआर) को आगे बढ़ाया है।

माननीय प्रधानमंत्री ने विश्व जल दिवस के अवसर पर 22 मार्च, 2021 को एक वर्चुअल कार्यक्रम में जल शक्ति अभियान : कैच द रेन अभियान लॉन्च किया था, जिसमें प्रधानमंत्री ने संभावित के केंद्रीय और राज्य सरकार के अधिकारियों, जिलाधिकारियों/ जिलों के उप आयुक्तों और ग्राम पंचायतों के सरपंचों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया था। माननीय प्रधानमंत्री पांच सरपंचों के साथ उनके गांवों में जल संरक्षण से जुड़ी समस्याओं पर संवाद भी किया। इनमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात और उत्तराखंड के एक-एक सरपंच शामिल थे। उसी दिन ग्राम सभाओं ने इन ग्राम पंचायतों में जल शपथ का भी आयोजन किया था और जल संरक्षण से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा की थी।

माननीय प्रधानमंत्री ने 24.03.2021 को देश के सभी सरपंचों को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा, जिसमें उनसे जल संरक्षण के लिए कदम उठाने और जीएसए: सीटीआर में सक्रिय भूमिका निभाने एवं सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करने का अनुरोध किया। माननीय प्रधानमंत्री ने 25.03.2021 को माननीय मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर उनसे सहयोग की मांग की।

 

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी):

सरकार ने ईपी अधिनियम, 1986 के तहत एक प्राधिकरण के रूप में एनएमसीजी को अधिसूचित किया था और सशक्त संस्थानों का निर्माण किया, साथ ही गंगा बेसिन की नदियों के कायाकल्प के लिए एक समग्र रूपरेखा के सात मूलभूत सिद्धांत निर्धारित किए थे। इस दृष्टिकोण को अब देश में दूसरी नदियों के कायाकल्प के उद्देश्य से उपयोग के लिए एक मॉडल के रूप में देखा जाता है। यह नदियों, सहायक नदियों, आर्द्र भूमि, बाढ़ के मैदानों, झरनों और छोटी नदियों के एक एकल व्यवस्था के रूप में एकीकृत करता है। सीवरेज परियोजनाएं, औद्योगिक प्रदूषण में कमी, रिवर फ्रंट घाट और शवदाह गृह, वनीकरण एवं जैव विविधता संरक्षण, ग्रामीण स्वच्छता और अन्य संबंधित परियोजनाओं के लिए 29,990 करोड़ रुपये की लागत से नमामि गंगे के अंतर्गत 344 परियोजनाओं को स्वीकृति दी है। इनमें से 147 परियोजनाओं को पूरा किया जा चुका है और बाकी निर्माणाधीन हैं। 2014 से मार्च, 2021 के बीच 10,100 करोड़ रुपये के कुल खर्च से कार्यान्वयन की गति में कई गुना बढ़ोतरी जाहिर होती है। यह 1985-86 से 2014 के बीच की तुलना में दोगुना से ज्यादा है।

वर्ष 2021 में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने कुल 1,208.77 करोड़ रुपये की लागत से 24 परियोजनाओं को स्वीकृति दी है, जिससे कुल स्वीकृत परियोजनाओं की संख्या 357 हो गई है और इनकी कुल लागत 30,780.18 करोड़ रुपये है। इसी अवधि में, एनएमसीजी ने 37 परियोजनाएं पूरी की हैं। इस प्रकार कुल 177 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं।

सीवरेज इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात करें तो इस साल 18 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। अभी तक, 5,024 एमएलडी ट्रीटमेंट क्षमता और 5,227 किमी सीवर नेटवर्क तैयार करने के लिए गंगा बेसिन में 160 सीवरेज इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को स्वीकृति मिल चुकी है। 25 अक्टूबर, 2021 को माननीय प्रधानमंत्री ने रामनगर वाराणसी में 10 एमएलडी एसटीपी के साथ ही वाराणसी में 8 कुंडों का उद्घाटन किया था।

एनएमसीजी द्वारा कई जन संपर्क कार्यक्रम भी आयोजित किए गए, जिनमें गंगा क्वेस्ट, गंगा उत्सव, गंगा मशाल अभियान आदि शामिल हैं। इन सभी को शानदार समर्थन हासिल हुआ। गंगा क्वेस्ट 2021 में भारत सहित 113 देशों के लगभग 11 लाख लोगों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। आजादी का अमृत महोत्सव अभियान के तहत आयोजित गंगा उत्सव, 2021 न सिर्फ गंगा नदी पर बल्कि देश की सभी नदियों पर आयोजित किया गया। माननीय प्रधानमंत्री के आह्वान पर अमल किया गया और नदी उत्सव की शुरुआत हुई, जिसमें संस्कृति मंत्रालय और पर्यटन मंत्रालय के सहयोग से देश भर में उत्सव आयोजित किए गए। गंगा उत्सव के दौरान, एनएमसीजी ने एक घंटे के बीतर फेसबुक पर हाथ से लिखे नोट्स के अधिकांश फोटो के लिए विश्व रिकॉर्ड भी बनाया, जिसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी जगह मिली।

 

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