विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
जैव प्रौद्योगिकी विभाग- डीबीटी द्वारा अब तक कोविड-19 के लिए एक लाख जीनोम डीएनए सीक्वेंसिंग की गई और अनुसंधान एवं विकास तथा उत्पाद विकास के लिए शिक्षा जगत व उद्योगों को 57,000 नमूनों के साथ 5 कोविड-19 बायोरिपॉजिटरी उपलब्ध कराए गए: डॉ जितेंद्र सिंह
केंद्रीय मंत्री ने नई दिल्ली में कोविड-19 महामारी से लड़ने और टीकों के विकास तथा अन्य प्रोटोकॉल बनाने के लिए अनुसंधान की दिशा में डीबीटी के स्वायत्त संस्थानों द्वारा किए गए योगदान की समीक्षा की
दक्षिण भारत में अपनी तरह की पहली एक वैक्सीन परीक्षण एवं अनुसंधान सुविधा राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आरजीसीबी) में जल्द उपलब्ध होगी जो कोविड -19 जैसे एयरबोर्न वायरस का प्रबंधन करने में सक्षम है: डॉ जितेंद्र सिंह
Posted On:
12 NOV 2021 5:55PM by PIB Delhi
केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान; राज्य मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा तथा अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने बताया कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग- डीबीटी द्वारा अब तक कोविड-19 के लिए एक लाख जीनोम डीएनए सीक्वेंसिंग की जा चुकी है और अनुसंधान एवं विकास तथा उत्पाद विकास के लिए शिक्षा जगत व उद्योगों को 57,000 नमूनों के साथ 5 कोविड-19 बायोरिपॉजिटरी उपलब्ध कराए गए हैं।
केंद्रीय मंत्री कोविड -19 अनुसंधान की वर्तमान स्थिति, टीकों के विकास और अन्य प्रोटोकॉल के साथ-साथ देश के विभिन्न भागों में स्थित जैव प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थानों में से प्रत्येक द्वारा इस दिशा में किए गए योगदान की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे।
ओडिशा सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग में मंत्री अशोक चंद्र पांडा ने इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस) भुवनेश्वर और दिल्ली सरकार में उपमुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर) नई दिल्ली की ओर से इस बैठक में भाग लिया।
डॉ जितेंद्र सिंह ने घोषणा की कि “राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आरजीसीबी) के दूसरे परिसर में एक वैक्सीन परीक्षण व अनुसंधान सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी और इस केंद्र में एक बीएसएल 3 सहूलियत भी होगी जो कोविड -19 जैसे एयरबोर्न वायरस का प्रबंधन करने में सक्षम है। दक्षिण भारत में यह अपनी तरह की पहली सुविधा होगी। केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि आरजीसीबी को कई टीकों जैसे कि कैंसर के टीके और कोविड -19 सहित संक्रामक रोगों के लिए अनुसंधान एवं परीक्षण हेतु एक केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। यह टीके के अनुसंधान और विकास के विशिष्ट क्षेत्र में आरजीसीबी के लिए बड़ी कामयाबी लेकर आएगा। डॉ सिंह ने अभिनव अनुसंधान और जैव प्रौद्योगिकी रोगोद्भवन जैसी दोनों सुविधाओं में सहायता करने के आरजीसीबी के मॉडल की भी सराहना की।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ राजेश गोखले ने बताया कि कोविड 19 महामारी के अभूतपूर्व परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए डीबीटी ने निदान, उपचार और सबसे महत्वपूर्ण रोकथाम पर ध्यान देने के साथ एक रोडमैप तैयार किया है। इसने टीके, नैदानिकी और उपचारात्मक विषयगत क्षेत्रों में 100 परियोजनाओं का सहयोग किया है, इसके अलावा 7 वैक्सीन उम्मीदवारों को उद्योग द्वारा तथा 8 उम्मीदवारों को शिक्षाविदों द्वारा सक्षम बनाया गया है। मिशन कोविड सुरक्षा के तहत डीबीटी ने 5 वैक्सीन उम्मीदवारों, 19 नैदानिक परीक्षण स्थलों, 6 प्रतिरक्षाजनत्व जांच और जैव चुनौती मॉडल के लिए सुविधाओं तथा कोवैक्सिन उत्पादन के लिए सुविधा वृद्धि का भी समर्थन किया है।
इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस) भुवनेश्वर ने जानकारी दी कि यह देश के उन तीन संस्थानों में से एक है, जिसने डेल्टा और डेल्टा प्लस सहित 22 वायरस समूहों को प्रमाणित एवं चिह्नित किया है। आईएलएस ने शैक्षणिक और स्टार्ट-अप द्वारा व्यावसायिक विकास कार्यों के लिए राष्ट्रीय संसाधन केंद्र के रूप में सीरम, प्लाज्मा, लार, रक्त, मूत्र एवं मल सहित 3000 कोविड -19 नैदानिक नमूनों के लिए एक बायोरिपोजिटरी भी स्थापित की है। आईएलएस ने कोविड जांच (3 लाख से अधिक आरटी-पीसीआर जांच), ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार और महाराष्ट्र से एकत्र किए गए नमूनों की 9000 जीनोम सीक्वेंसिंग एवं सिम्प्टमैटिक तथा एसिम्प्टमैटिक कोविड रोगियों की प्रतिरक्षा-प्रोफाइलिंग पर महत्वपूर्ण कार्य किया है।
इसके अलावा, आईएलएस ने कोविड -19 के लिए वायरस समूहों को भी चिह्नित किया है और कोविड अनुसंधान में सहायता के लिए एक जीव जैव सुरक्षा स्तर तृतीयक प्लेटफॉर्म, एक दवा खोज मंच तथा एक प्रतिरक्षाजनत्व प्लेटफॉर्म की स्थापना की है। डॉ जितेंद्र सिंह ने शैक्षणिक संस्थानों, निजी उद्योगों और स्टार्ट-अप्स द्वारा इन प्लेटफार्मों के उपयोग का सुझाव दिया।
सेंटर फॉर डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी) हैदराबाद के प्रमुख ने कहा कि इंसाकॉग (इंडियन सार्स कोव-2 जीनोमिक्स) कंसोर्टियम, 38 प्रयोगशालाओं की एक श्रृंखला के साथ सार्स कोव-2 की जीनोमिक निगरानी के लिए मुस्तैद है।
सीडीएफडी, हैदराबाद इंसाकॉग नेटवर्क का एक प्रमुख संस्थान है और इसने 5,000 से अधिक जीनोम सीक्वेंसिंग की है। यह डेल्टा और डेल्टा प्लस वेरिएंट पर शोध करने वाले देश के पहले संस्थानों में से एक था।
डॉ जितेंद्र सिंह ने न केवल मणिपुर राज्य में बल्कि सिक्किम, मेघालय और मिजोरम सहित अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में किए गए सभी कोविड -19 संबंधित गतिविधियों के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ बायोरिसोर्स एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईबीएसडी) इंफाल की सराहना की। उन्होंने यह भी कहा कि आईबीएसडी महामारी के प्रकोप के बाद से राज्य सरकार के साथ सहयोग करने में काफी सहायक रहा है। मणिपुर में कोविड जांच केंद्र स्थापित करने के अलावा इस संस्थान ने जांच सुविधाओं तथा जीनोम सीक्वेंसिंग परियोजनाओं में मिजोरम और मेघालय की भी सहायता की है। इस केंद्र ने बांसलोचन (बांस का अर्क उत्पाद) विकसित किया और इसके प्रतिरक्षा बूस्टर गुणों के कारण कोविड के दौरान इसका उपयोग 30 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया।
नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर) नई दिल्ली ने देश में 4 ट्रांसलेशनल सेंटर स्थापित करने और कोविड से संबंधित प्लांट जीनोम प्रोजेक्ट का पता लगाने की योजना बनाई है।
तिरुवनंतपुरम के राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी (आरजीसीबी), हैदराबाद के सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी), भुवनेश्वर में इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस) और नई दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर) तथा इंफाल में जैव संसाधन एवं सतत विकास संस्थान (आईबीएसडी) के प्रमुखों और निदेशकों ने आज की बैठक में भाग लिया।
एमजी/एएम/एनके
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