विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

वैज्ञानिक ने रासायनिक उत्तेजन पर आंतों के बैक्टीरिया के व्यवहार को ट्रैक किया

Posted On: 14 JUL 2021 6:16PM by PIB Delhi

मानव आंत में मौजूद बैक्टीरिया -कोलाई का रसायनों के प्रति आकर्षित अथवा दूर होने की घटना लंबे समय से वैज्ञानिकों के लिए कोतूहल का विषय रहा है। इसे केमोटैक्सिस कहा जाता है। -कोलाई बैक्टीरिया मानव के गैस्ट्रोइन्टेस्टाइनल ट्रैक्ट यानी जठरांत्र संबंधी मार्ग में मौजूद विभिन्न रसायनों के प्रति केमोटैक्सिस दर्शाते हैं।

वैज्ञानिकों ने अब उस स्थिति का पता लगा लिया है जो बेहतरीन केमोटैक्टिक प्रदर्शन के लिए सबसे उपयुक्त है। यह नई खोज रासायनिक संकेतों के प्रति -कोलाई बैक्टीरिया के व्यवहार को ट्रैक करने में मदद करेगी। आंतों के बैक्टीरिया में -कोलाई की रसायनों के प्रति इस प्रकार की प्रतिक्रिया मानव आंत के क्रियाकलाप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रकृति में कई जीव अपने पर्यावरण से प्राप्त रासायनिक संकेत को शारीरिक गति या केमोटैक्सिस के रूप में दिखा कर प्रतिक्रिया करते हैं। शुक्राणु कोशिका केमोटैक्सिस का उपयोग करके डिंब का पता लगाती है। चोटों को ठीक करने के लिए आवश्यक श्वेत रक्त कोशिकाएं कीमोटैक्सिस द्वारा चोट या सूजन की जगह ढूंढती हैं। तितलियां फूलों का पता लगाती हैं और नर कीट केमोटैक्सिस का उपयोग करके अपने लक्ष्य तक पहुंचते हैं। केमोटैक्सिस को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि कोशिका के अंदर या पर्यावरण में मौजूद विभिन्न परिस्थितियों से यह किस प्रकार प्रभावित होता है।

-कोलाई अधिक पोषक तत्वों वाले क्षेत्र की ओर पलायन करने के लिए अपनी रन-एंड-टम्बल गति का उपयोग करता है। पोषक अणु कोशिका झिल्ली पर मौजूद कीमो-रिसेप्टर्स से जुड़ जाते हैं और इस इनपुट सिग्नल की प्रॉसेसिंग सिग्नलिंग नेटवर्क के सेंसिंग मॉड्यूल द्वारा होती है इस प्रकार अंतत: कोशिका के रन-एंड-टम्बल गति का संचालन होता है। सिग्नलिंग नेटवर्क का अनुकूलन मॉड्यूल यह सुनिश्चित करता है कि इंट्रासेल्युलर वेरिएबल्स अपने औसत मूल्यों से अधिक दूर जा सके।

केमोटैक्सिस के सिग्नलिंग नेटवर्क का एक महत्वपूर्ण पहलू कीमो-रिसेप्टर्स की सहकारिता अथवा समूह बनाने की उसकी प्रवृत्ति है यह इनपुट सिग्नल को बढ़ाने में मदद करती है परिणामस्वरूप, -कोलाई बहुत कम सांद्रता वाले रसायन के प्रति भी अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं इस प्रकार रिसेप्टर क्लस्टरिंग कोशिका की संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए जानी जाती है हालांकि, हाल के कुछ प्रयोगों से पता चला है कि रिसेप्टर क्लस्टरिंग भी सिग्नलिंग नेटवर्क में उतार-चढ़ाव का कारण बनता है इसने वैज्ञानिकों को उन स्थितियों का पता लगाने के लिए प्रेरित किया जो सर्वोत्तम केमोटैक्टिक प्रदर्शन को सक्रिय करते हैं।

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत स्थापित एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान के एसएन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज के वैज्ञानिकों ने एक हालिया अध्ययन में सैद्धांतिक तौर पर दर्शाया है कि रिसेप्टर समूहों का एक इष्टतम आकार होता है जहां -कोलाई कोशिका अपने परिवेश से प्राप्त रासायनिक संकेतों द्वारा निर्देशित होकर सर्वोत्तम निर्देशित गति दर्शाते हैं

शकुंतला चटर्जी के नेतृत्व में एक टीम ने यह समझने की दिशा में पहला कदम उठाया है रिसेप्टर सहकारिता के तालमेल के जरिये प्रतिक्रिया को सबसे अधिक कुशल कैसे बनाया जा सकता है। यह अध्ययन फिजिकल रिव्यू (लेटर्स) में प्रकाशित हुआ है।

प्रदर्शन को मापने के लिए उन्होंने मापा कि कोशिका कितनी तेजी से सांद्रता की ओर आकर्षित होता है या पोषक तत्व से समृद्ध क्षेत्र को कोशिका कितनी मजबूती से अनुकूलित करने में समर्थ होता है। टीम के अनुसार, अच्छे प्रदर्शन का मतलब पोषक तत्वों से भरपूर और पोषक तत्वों की कमी वाले क्षेत्रों के बीच अंतर करने के लिए कोशिका की मजबूत क्षमता भी है। टीम ने पाया कि रिसेप्टर समूहों के एक विशिष्ट आकार में ये सभी उपाय अपने चरम पर पहुंच जाते हैं।

वैज्ञानिकों ने दर्शाया है कि यह इष्टतम प्रदर्शन नेटवर्क के संवेदन और अनुकूलन अणुओं के बीच प्रतिस्पर्धा का परिणाम है। वर्तमान शोध के अनुसार, क्लस्टर का आकार बढ़ते ही संवेदन में भी बढोतरी होती है जिससे कीमोटैक्टिक प्रदर्शन में सुधार होता है। लेकिन बड़े समूहों के लिए उतार-चढ़ाव भी बढ़ता है और अनुकूलन की शुरुआत होती है। सिग्नलिंग नेटवर्क अब अनुकूलन मॉड्यूल द्वारा नियंत्रित होता है और सेंसिंग की भूमिका कम महत्वपूर्ण होती है जिससे प्रदर्शन में कमी आती है। इस अध्ययन से केमोटैक्टिक व्यवहार की समझ बेहतर हो सकती है, विशेषकर उन जीवाणुओं के संदर्भ में जो प्रयोगों के लिए बैक्टीरिया के नमूनों में व्यापक तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं और जो तेजी से अपनी प्रतिकृति बनाने और पर्यावरण में बदलाव के लिए आसानी से अनुकूलित होने क्षमता रखते हैं

 

प्रकाशन विवरण:

डीओआईhttps://doi.org/10.1103/PhysRevE.103.L030401 

 

अधिक जानकारी के लिए शकुंतला चटर्जी (sakuntala.chatterjee@bose.res.in) से संपर्क किया जा सकता है।  

 

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