जनजातीय कार्य मंत्रालय

‘ट्राइफेड’ ने जनजातीय विकास के लिए ‘द लिंक फंड’ के साथ हाथ मिलाया


“भारतीय जनजातीय परिवारों की टिकाऊ आजीविका” परियोजना के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए

Posted On: 30 APR 2021 1:17PM by PIB Delhi

जनजातीय लोगों के सशक्तिकरण में मुख्य संस्था के रूप में काम कर रही ट्राइफेड का ध्यान भारत में जनजातीय लोगों की आजीविका और उनके जीवन को बेहतर करने के लिए नए विकल्पों और उपायों की तलाश पर है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ट्राइफेड ने "जनजातीय परिवारों की टिकाऊ आजीविका" संबंधी एक परियोजना पर जनहित में कार्यरत संस्था ‘द लिंक फंड’ के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। इसका उद्देश्य जनजातीय समूहों में अति गरीबी को दूर करना और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करना है।

ट्राइफेड और द लिंक फंड ने 29 अप्रैल, 2021 को एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। इसके अंतर्गत दोनों संगठन साथ मिलकर जनजातीय समूहों के विकास और उनके द्वारा निर्मित किए जा रहे उत्पादों में गुण संवर्धन हेतु मदद उपलब्ध कराकर रोजगार सृजन, टिकाऊ आजीविका के लिए कार्य करने के साथ-साथ उनकी आय बढ़ाने हेतु मूल्य संवर्धन, कौशल प्रशिक्षण और सूक्ष्म वन उत्पादों के लिए गुण संवर्धन, उनके द्वारा तैयार किए जा रहे वन उत्पादों में विविधिकरण के लिए तकनीकि हस्तक्षेप से सहायता उपलब्ध कराएंगे।

एमओयू पर ट्राइफेड के प्रबंध निदेशक श्री प्रवीर कृष्ण और द लिंक फाउंडेशन के सह संस्थापक तथा सीईओ टोनी काम द्वारा हस्ताक्षर किए गए। इस अवसर पर ट्राइफेड और द लिंक फाउंडेशन के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहे।

इस सहयोग के अंतर्गत दोनों संगठन महिला केंद्रित बुनियादी ढांचा विकसित करने और नवाचार तथा नव उद्यमिता के लिए मिलकर काम करेंगे। द लिंक फंड संस्था का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा में स्थित है, जो अत्यंत पिछड़े समुदायों में गरीबी उन्मूलन तथा जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से उनको बचाने के लिए काम करती है।

 

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वर्चुअल माध्यम से आयोजित इस कार्यक्रम के अवसर पर अपने संबोधन में श्री कृष्णा ने ट्राइफेड द्वारा शुरू की गई विभिन्न पहलों के बारे में बात की। विशेषकर वन धन स्टार्टअप अभियान के बारे में उन्होंने विस्तार से चर्चा की जो जनजातीय हस्तशिल्पियों और वनों में रहने वाले लोगों के लिए रोजगार अवसर सृजन में बड़ी भूमिका अदा कर रहा है। ट्राइफेड का मुख्य उद्देश्य जनजातीय लोगों का सशक्तिकरण करना है। उन्होंने कहा कि उनके उत्पादों के लिए बेहतर कीमत दिलाने, उनके मूल उत्पादों में गुण संवर्धन, बड़े बाज़ारों तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करने, या उनके बेहतर जीवन के लिए साझेदारी के लिए हमारे प्रयास जारी हैं। हमें इस बात की प्रसन्नता है कि हम द लिंक फंड के साथ साझेदारी से भारत के जनजातीय समूहों को बेहतर और आधुनिकतम मदद मुहैया कराएंगे।

ट्राइफेड के प्रबंध निदेशक श्री प्रवीर कृष्ण ने कहा कि ट्राइफेड जनजातीय लोगों के जीवन और उनकी आजीविका को बेहतर करने के लिए प्रतिबद्ध है।

द लिंक के सीईओ टोनी काम ने कहा कि द लिंक, ट्राइफेड के नेतृत्व में इस साझेदारी के तहत काम करने को लेकर उत्साहित है। उन्होंने कहा कि हम ट्राइफेड के साथ मिलकर विस्तृत परियोजना क्रियान्वयन योजना और प्रभावी कार्यान्वयन तथा धन के खर्च इत्यादि के लिए बजट का अनुमान तैयार करेंगे। द लिंक फंड इस कार्यक्रम में अपनी तकनीकि विशेषज्ञता को लागू करने को प्रतिबद्ध है। उन्होंने इस परियोजना के लिए अपने संगठन की प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत करते हुए सीखने की व्यवस्था पर काम किया जाएगा और कच्चे माल तथा तैयार उत्पादों के रूप में एनटीएफ़पी उत्पादों के लिए बाज़ार विकसित करना एक महत्वपूर्ण आयाम होगा।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के माध्यम से सूक्ष्म वन उत्पादों के विपणन का तंत्र विकसित करने और एमएफ़पी योजना के लिए मूल्य शृंखला विकसित करने संबंधी इस महत्वाकांक्षी योजना ने जनजातीय लोगों की परिस्थितिकी को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है। 21 राज्यों की सरकारी एजेंसियों के सहयोग से ट्राइफेड द्वारा क्रियान्वित की गई इस योजना के अंतर्गत जनजातीय परिस्थितिकी में अप्रैल 2020 से 3000 करोड़ रुपये का प्रवाह हुआ है। मई 2020 में सरकार की सहायता से इस योजना के अंतर्गत सूक्ष्म वन उत्पादों (एमएफ़पी) की कीमतों में 90% की वृद्धि दर्ज की गई और इस एमएफ़पी की सूची में 23 नए उत्पादों को शामिल किया गया। जनजातीय कार्य मंत्रालय की इस महत्वाकांक्षी योजना को वन अधिकार अधिनियम 2005 से संबल मिलता है, जिसका लक्ष्य देश के वनों में रहने वाले लोगों को उनके उत्पादों के लिए अच्छी कीमतें उपलब्ध कराना है।

वन धन विकास केंद्र और जनजातीय स्टार्टअप्स इस योजना के एक महत्वपूर्ण घटक है जिसने एमएसपी की कमी को बखूबी पूरा किया है और यह जनजातियों और वनवासी लोगों तथा वनों में रहने वाले हस्तशिल्पियों के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण श्रोत बनकर उभरा है। इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इससे यह सुनिश्चित होता है कि मूल्य संवर्धित उत्पादों की बिक्री का लाभ सीधे जनजातिय लोगों को मिलता है।

इसी के अगले चरण के क्रम में ट्राइफेड जनजातीय लोगों के सशक्तिकरण हेतु संगठनों, सरकारों, गैर सरकारी संगठनों और अकादमिक जगत के साथ मिलकर सभी संभावनाएं तलाश रहा है। इसका उद्देश्य सक्षम उपायों-विकल्पों को एकजुट कर आदिवासी समूहों की आय को बढ़ाने के लिए मदद करना है।

दोनों टीमें ट्राइफेड और द लिंक फंड तत्काल विस्तृत कार्य योजना तैयार करेंगी जिसकी साप्ताहिक आधार पर समीक्षा की जाएगी। दोनों संगठनों के सदस्यों की एक परियोजना परिचालन समिति का गठन भी किया जा रहा है। भारत सरकार के संबन्धित नियामक प्राधिकरण से स्वीकृति मिलते ही वित्तीय समावेशन शुरू हो जाएगा।

इस साझेदारी के सफल क्रियान्वयन के साथ ही ट्राइफेड का लक्ष्य आदिवासी लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने में योगदान करना होगा।

 

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