विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
वैज्ञानिकों ने आणविक सेंसर विकसित किया है जो चिकित्सीय मूल्य की नई दवाओं की पहचान करने में सहायक होगा
Posted On:
16 MAR 2021 1:59PM by PIB Delhi
शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक आणविक सेंसर विकसित किया है, जो कैंसर की दवाओं की पहचान करके पता लगा सकता है कि इस तरह के रसायन जीवित कोशिकाओं के अंदर सूक्ष्म नलिकाएं कैसे बदलाव करते हैं।
सूक्ष्म नलिकाएं कोशिका के कोशिका द्रव्य के भीतर एक संरचनात्मक नेटवर्क साइटोस्केलेटन का हिस्सा हैं, और वे कई रसायनों की प्रतिक्रिया में बदल जाते हैं।
ट्यूबलिन संशोधनों को समझना आज तक एक चुनौती बना हुआ है क्योंकि ऐसे उपकरणों की अनुपलब्धता है जो उन्हें जीवित कोशिकाओं में चिह्नित कर सकते हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा समर्थित एक द्विपक्षीय संगठन, इंडो-फ्रेंच सेंटर फॉर द प्रमोशन ऑफ एडवांस्ड रिसर्च यानी, भारत-फ्रांस उन्नत अनुसंधान विकास केंद्र (आईएफसीपीएआर / सीईएएफआईपीआरए) द्वारा वित्त पोषित क्युरी इंस्टीट्यूट, ऑर्से, फ्रांस के सहयोग से इनस्टेम, बैंगलोर, भारत के शोधकर्ताओं के साथ भारत सरकार और फ्रांस की सरकार ने इस कमी को दूर करने का निर्णय लिया। इन शोधकर्ताओं ने जीवित कोशिकाओं में सूक्ष्मनलिका संशोधनों की गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए पहला ट्यूबुलिन नैनोबॉडी-या सेंसर विकसित किया और इसका उपयोग नई कैंसर उपचार की दवाओं की पहचान के लिए किया। यह काम हाल ही में जर्नल ऑफ सेल बायोलॉजी में हाल ही में प्रकाशित हुआ है।
बैंगलोर और ऑर्से के शोधकर्ताओं ने सिंथेटिक प्रोटीन को डिजाइन करने के लिए एक विधि तैयार की, जिसे नैनोबॉडी के रूप में जाना जाता है, जो विशेष रूप से संशोधित माइक्रोट्युबल्स से बांध सकता है। ये नैनोबॉडी रोगाणुओं के खिलाफ रक्षा तंत्र के रूप में हमारे शरीर में बनी एंटीबॉडी के समान हैं। हालांकि, एंटीबॉडी के विपरीत, नैनोबॉडी आकार में छोटे होते हैं और प्रोटीन इंजीनियरिंग के लिए आसानी से उपलब्ध हैं। इसके बाद नैनोबॉडी को एक फ्लोरोसेंट अणु के साथ जोड दिया जाता है, जिसे पता लगाने वाले उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है और इसे सेंसर कहते हैं। उन्होंने एक अद्वितीय सूक्ष्मनलिका संशोधन के खिलाफ एक जीवित सेल सेंसर को विकसित किया और मान्यता प्रदान की, जिसे सूक्ष्मनलिकाएं का टायोसीनेटेड रूप कहा जाता है जो पहले से ही कोशिका विभाजन और इंट्रासेल्युलर संगठन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
टायरोसिनेशन सेंसर पहला ट्यूबुलिन नैनो-बॉडी या सेंसर है - जिसका उपयोग जीवित कोशिकाओं में सूक्ष्मनलिका परिवर्तन की गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है। सीईएफआईपीआरए शोधकर्ताओं ने सूक्ष्म सेंसर को लक्षित करने वाले छोटे-अणु यौगिकों के प्रभाव का अध्ययन करने में इस सेंसर के उपयोग को दिखाया है। इन रसायनों को अक्सर कैंसर-रोधी दवाओं के रूप में उपयोग किया जाता है। इस प्रकार, टाइरोसिनेशन सेंसर कई शोधकर्ताओं के लिए सूक्ष्मनलिका कार्यों का अध्ययन करने की सुविधा प्रदान करेगा और चिकित्सीय मूल्य की नई दवाओं की पहचान करने में सहायता करेगा।
[प्रकाशन लिंक: https://doi.org/10.1083/jcb.201912107]
मिनहाज सिराजुद्दीन (इनस्टेम) बैंगलोर, भारत कार्स्टन जान्के (इंस्टीट्यूट क्यूरी) ओरसे, फ्रांस
[[संसाधन: सेंसर प्लास्मिड गैर-वाणिज्यिक अनुसंधान उपयोग के लिए एड्डेगेने से उपलब्ध हैं। https://www.addgene.org/search/catalog/plasmids/?q=a1ay1
वाणिज्यिक अनुप्रयोगों के लिए, कृपया minhaj@instem.res.in पर संपर्क करें।]
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