रक्षा मंत्रालय

हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ने मिश्र धातु निगम लिमिटेड के साथ समग्र कच्चे माल के विकास और निर्माण हेतु समझौता पत्रक पर हस्ताक्षर किए

Posted On: 04 FEB 2021 7:50PM by PIB Delhi

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और मिश्र धातु निगम लिमिटेड (मिधानी) ने दिनांक 4 फरवरी, 2021 को बेंगलुरु में एयरो इंडिया 2021 के दौरान कंपोजिट रॉ मैटेरियल के विकास और उत्पादन के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। यह पहला मौका है जब कंपोजिट रॉ मैटेरियल के लिए इस तरह के एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस एमओयू पर हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक श्री आर माधवन और मिश्र धातु निगम लिमिटेड (मिधानी) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ एस के झा ने अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए।

श्री आर माधवन ने कहा कि कंपोजिट एक ऐसा क्षेत्र है जहां हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) कंपोजिट कच्चे माल में क्षेत्र में सहयोग करेगा, यह मुख्य रूप से लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए), एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर (एएलएच), लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर (एलसीएच) और लाइट युटिलिटी हेलिकॉप्टर (एलयूएच) जैसे प्लेटफार्मों में प्री-पेग्स के रूप में इस्तेमाल होने वाले मटेरियल हैं जिन्हें वर्तमान में आयात किया जाता है।

मिधानी के मुख्य प्रबंध निदेशक (सीएमडी) श्री एस के झा ने कहा कि कंपोजिट मैटेरियल के क्षेत्र में यह बड़ा कदम है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) न सिर्फ फ्रंटलाइन एयरक्राफ्ट प्रोडक्शन का ध्यान रख रही है बल्कि रॉ मैटेरियल के क्षेत्र में भी सक्रिय है । विमान संबंधी सामग्रियों के लिए विभिन्न प्रकार के प्री-प्रेग (कार्बन, अरमिड, ग्लास टाइप्स इत्यादि) के लिए कोई समकक्ष सिद्ध भारतीय अनुमोदित/ योग्य आपूर्तिकर्ता नहीं है। इससे विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) पर निर्भरता पैदा होती है । उन्होंने कहा कि "आत्मनिर्भर भारत" पहल के अनुरूप साझेदारी के माध्यम से भारत में इस तरह के प्री-प्रेग के विकास और निर्माण के लिए प्रयास किए जाने की जरूरत है।

कंपोजिट मटेरियल का उपयोग विशेष रूप से एयरोस्पेस में, विशेषकर लड़ाकू विमान/ हेलीकाप्टर के लिये, मौजूद रहेगा और बढ़ेगा क्योंकि धातु के रॉ मटेरियल की तुलना में इसके अंतर्निहित लाभ हैं। इसके अलावा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाओं (एनएएल) समेत अन्य एयरोस्पेस और रक्षा कार्यक्रमों के लिए भी इसी तरह की ज़रूरत बनी हुई है।

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