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60 वर्षों के बाद सत्यजीत रे का अपू बड़े पर्दे पर कर रहा वापसी: अविजात्रिक के निर्देशक सुभ्रजीत मित्रा


'अविजात्रिक एक यात्रा के बारे में है - बाहर और अपने भीतर की यात्रा'

एक ओर जहां भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) अपने संस्करण में दिग्गज फिल्म निर्माता सत्यजीत रे को श्रद्धांजलि दे रहा है। ऐसे में हमारे पास महोत्सव के भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म अनुभाग में एक उपयुक्त प्रविष्टि आई है, जो उनके समृद्ध सिनेमाई योगदान पर आधारित है। अविजात्रिक, रे के अपू की तीन फिल्मों की आगे की कहानी है, जिसे अक्सर भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे बड़ी फिल्मों के रूप में जाना जाता है। इन तीन फिल्मों में सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित तीन बंगाली फिल्में पाथेर पांचाली (1955), अपराजितो (1956) और द वल्र्ड ऑफ अपू (1959) शामिल हैं।

निर्देशक सुभ्रजीत मित्रा ने कहा कि 60 साल बाद अपू बड़े पर्दे पर लौट रही है। मित्रा 21 जनवरी, 2021 को गोवा में 51वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे।

अवाजत्रिक अपुर संसार से आगे की कहानी है, जहां इस सीरीज की तीनों कहानियां खत्म हो जाती है। यह फिल्म बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय के उपन्यास अपराजिता के अंतिम एक-तिहाई हिस्से पर आधारित है। यह एक पिता और उसके बेटे की कहानी है कि कैसे पिता अपने पूरे बचपन को अपने बेटे की नजर से देखता है। यह कहानी एक पिता अपू और उसके 6 साल के बेटे काजोल के बीच एक अनोखे बंधन के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने दुर्भाग्य से अपने जन्म के समय ही अपनी मां को खो दिया था। आखिरकार अपू अपने गांव, शहर और मातृभूमि को छोड़कर काजोल और मित्र शंकर के साथ एक साहसी यात्रा पर निकल जाता है। एक नई शुरुआत की तलाश में वे अपनी जमीन से बहुत दूर निकल जाते हैं।

निर्देशक ने कहा कि यह फिल्म अपने अंदर और बाहर की यात्रा के बारे में है।

80 साल पीछे के समय को दोबारा दिखाने में आने वाली परेशानियों के बारे में उन्होंने प्रकाश डाला कि कैसे उस समय को कैमरे में कैद किया गया। निर्देशक ने बताया कि प्रोडक्शन डिजाइन टीम ने आज के शहर में लिए गए शॉट्स के आधार पर 1940 के बनारस को फिर से तैयार किया। इसके लिए हावड़ा ब्रिज को भी निर्माणाधीन दिखाया गया।

फिल्म को विशेष रूप से श्वेत-श्याम में बनाया गया है। इसे समझाते हुए फिल्म निर्माता ने बताया कि यह फिल्म 1940 के दशक पर आधारित है। जब भी हम आजादी से पहले के समय की तस्वीर के बारे में विचार करते हैं तो दिमाग में काले और सफेद रंग की छवि बन जाती है। यह हमारे मन में है, यह हमारे मानस में है। इसके अलावा अपू सीरीज का सीक्वल होने के कारण हम ठीक उसी तरह कल्पना कर दृश्य फिल्माना चाहते थे।

उन्होंने कहा कि उन्होंने खुद और छायाकार सुप्रतीम भोल ने अपू की यात्रा और उसके सफर को श्वेत श्याम में कैद करने का फैसला किया।

सुभ्रजीत मित्रा ने कहा कि एक सीमित बजट की फिल्म बनाने में निर्देशक और उनकी टीम को कुछ अड़चनों का सामना करना पड़ता है। फिर भी, अगर हम दर्शकों को अच्छी कंटेट देते हैं तो वे सिनेमाघरों में लौट आएंगे।

51वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में दिग्गज फिल्मकार सत्यजीत रे को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी निम्नलिखित फिल्मों कोप्रदर्शित किया जा रहा है।

1. चारु लता (1964)

2. घरे बाइरे (1984)

3. पाथेर पांचाली (1955)

4. शतरंज के खिलाड़ी (1977)

5. सोनार केला (1974)

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