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मैं अपनी पीढ़ी को आइटम डांस से बचाना चाहती हूं : आवर्तन की निर्देशिका दूर्बा सहाय


नृत्य मेरी आत्मा, मेरी सोल, मेरी जिंदगी है : पद्म श्री शोवना नारायण

‘आवर्तन’ गुरु-शिष्य परम्परा के सिलसिले को दिखाती है

रेणुका, कथक गुरु भावना सरस्वती की शिष्या, ने उनसे सीखे नृत्य में एक नया आयाम जोड़ना शुरू किया। इसने भावना को एक असुरक्षा और पहचान के संकट की स्थिति में ला दिया है। अपने भावनात्मक आत्मसम्मान कैसे निपटें, इसकी जानकारी न होने से, वे रेणुका को खारिज करने, इसे रेणुका के लिए कष्टकारी बनाने लगती हैं।

फिल्म आवर्तन में सुविख्यात कथक नृत्यांगना पद्म श्री शोवना नारायण ने भावना सरस्वती की भूमिका निभाई है, जिसे 51वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में, भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म श्रेणी में, चुना गया है।

 

उन्होंने कहा, मेरे लिए नृत्य मेरी आत्मा, मेरी सोल और मेरी जिंदगी है; मैं आवर्तन का हिस्सा बनकर बहुत खुश हूं। फिल्म एक गुरु और शिष्य के बीच चलने वाले दुविधाओं के शाश्वत चक्र पर प्रकाश डालती है। यह इस पर भी प्रकाश डालती है कि इस देश में एक परंपरा है, जो 2,500 साल से ज्यादा पुरानी है। वे आज, 22 जनवरी, 2021, को पणजी, गोवा में फिल्म की निर्देशिका दूर्बा सहाय के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रही थीं।

फिल्म आवर्तनगुरु-शिष्य परम्परा- एक शिक्षक और छात्र के बीच संबंध- भारत की सभी शास्त्रीय कलाओं का एक प्रतिष्ठित पक्ष, को दिखाती है। फिल्म चार पीढ़ियों को शामिल करती है और दिखाती है कि कैसे गुरु-शिष्य के सफर की शुरुआत होती है, विकसित और समाप्त होती है और कैसे दोबारा नया सिलसिला शुरू होता है।

निर्देशिका दूर्बा सहाय ने बताया कि फिल्म का विचार वर्षों पहले विकसित हुआ था। उन्होंने कहा, गायक, चित्रकार, नर्तक - कोई भी गुरु हो सकता है. लेकिन मैंने नृत्य को चुना, क्योंकि मैं हमेशा से कथक कला स्वरूप के नजदीक रही हूं। और इसलिए मैंने नृत्य, जिससे मेरा लगाव है, के माध्यम से गुरु-शिष्य परम्परा के इस पक्ष को सुनाने के लिए चुना है।

117 मिनट की फिल्म के लिए पात्रों के बारे में कैसे फैसला किया? उन्होंने बताया,जैसे मैंने इस स्क्रिप्ट को लिखना शुरू किया, शोवना जी का ख्याल आया, जिन्हें कई वर्षों से जानती हूं। उन्हें मैंने अपनी कहानी सुनाई और वे इसको करने के लिए एक बार में तैयार हो गईं।

हालांकि, सहाय ने आगे कहा, वह सुप्रसिद्ध नृत्यांगना के अभिनय को लेकर उलझन में थी। उन्होंने कहा, नृत्य और अभिनय एक जैसा नहीं होता है। शुरुआत में, मैं शोभना जी के अभिनय को लेकर आशंकित थी। लेकिन, जब हमने रिहर्सल (अभ्यास) शुरू किया, मैंने महसूस किया कि वे एक बेहतरीन अभिनेत्री हैं और इस तरह से आवर्तन पूरी हुई।

जब सभी युवाओं तक नृत्य को ले जाने और फिल्म की सफलता के बारे में पूछा गया, तो निर्देशिका ने कहा कि फिल्म को बनाने के पीछे का मकसद युवाओं का ध्यान खींचना भी था, जो अपनी जड़ों को भूलते जा रहे हैं।

उन्होंने कहा, मैंने यह फिल्म बनाई है ताकि हमारी पीढ़ी सिर्फ आइटम डांस से न उलझी रहे; मुझे डर है कि अगर हमारे युवाओं ने ध्यान नहीं दिया और इसे नहीं बचाया तो हमारे पारम्परिक नृत्य खत्म हो सकते हैं।

पद्म श्री शोवना नारायण ने बताया कि कैसे भारत की 2,500 पुरानी परम्पराएं और कला स्वरूपों ने हर दौर के दबावों और खिंचावों का सामना किया है। उन्होंने कहा, फिल्म मानवीय भावनाओं के बारे में है, जो कि सार्वभौमिक हैं। समय के विभिन्न पलों पर, हम किसी चीज को हृदय और आत्मा से बनाते हैं, लेकिन कोई व्यक्ति तब क्या करता है, जब उसमें दबे पांव असुरक्षा आ जाती है? हर किसी में मानवीय भावनाओं में टकराव अलग-अलग तरह से प्रकट होते हैं।

वे कहती हैं कि हमारे भीतर तांडव (ओजपूर्ण नृत्य जो सृष्टि के चक्र का स्रोत है) और लस्य (नृत्य जो खुशी को व्यक्त करता है और लावण्य व सुंदरता से भरा हुआ है) हमसे हमारे भीतर आंतरिक संतुलन लाने के लिए कहते हैं। आंतरिक संतुलन किसी के भी अंदर आ सकता है, लेकिन हम हमेशा अपने भीतर संतुलन बनाने, मन के एक संतुलित और शांतिपूर्ण स्थिति में होने पर जोर देते रहते हैं।

श्री शोवना नारायण ने यह भी कहा कि शास्त्रीय नृतक नृत्य को एक पूर्ण योग के रूप में लेते हैं, जो अपने भीतर आध्यात्मिक, शारीरिक और मानसिक संतुलन लाता है।

निर्देशिका के बारे में

दूर्बा सहाय ने शॉर्ट फिल्म द पेन के साथ अपनी निर्देशकीय भूमिका की शुरुआत की थी। उन्होंने पतंग फिल्म बनाई, जिसने 1994 में सिल्वर लोटस जीता। निर्देशिका के रूप में आवर्तन उनकी पहली फीचर फिल्म है।

 

 

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