विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

वर्षांत समीक्षा 2020 : विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय

Posted On: 18 JAN 2021 9:45AM by PIB Delhi

 प्रमुख विशेषताएं: 2020 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की कामयाबी की 20 प्रमुख कहानियां:

दुनिया के सामने 2020 तक जो प्रमुख चुनौतियां थीं, उन्होंने भविष्य के लिए सुरक्षित और बेहतर समाज की दिशा में सकारात्मक बदलाव लाने में भारत को विज्ञान और प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करने के लिए एक अग्रदूत के रूप में उभरने में मदद की। भारत अब विज्ञान और प्रौद्योगिकी सूचकांकों में शीर्ष देशों में से एक है और विज्ञान प्रौद्योगिकी और नई खोजों के कई क्षेत्रों में सराहनीय स्थिति में पहुंच गया।

वर्ष 2020 विज्ञान का वर्ष रहा है जब मानवता का सर्वश्रेष्ठ उस वक्त दिखा, जब कोविड-19 महामारी के कारण हम पर गहरी निराशा छाई थी। यह उल्लेखनीय बात है कि जैसे-जैसे बीमारी फैलती गई, वैसे-वैसे इसे कम करने के लिए अनुसंधान के प्रयास शुरू हुए। -डॉ. हर्षवर्धन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री

 

विज्ञान और प्रौद्योगिकी देश के सबसे शक्तिशाली विभागों में से एक है जो कृषि, पीने योग्य पानी, ऊर्जा, स्वास्थ्य जैसी सभी प्रकार की समस्याओं को हल करने में लगा है। -डॉ. हर्षवर्धन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री

 

http://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image003Y8X1.jpgविज्ञान और प्रौद्योगिकी सबसे मजबूत नींव हैं, जिन पर भविष्य का निर्माण हो सकता है। भारत आविष्कार के माहौल और नई खोजों के माहौल में तालमेल बिठाकर आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से प्रगति कर रहा है और लोकतांत्रिक तरीके से विज्ञान विविधता के साथ विकास का सूत्रधार बन गया है। -प्रोफेसर आशुतोष, सचिव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग।

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1. प्रकाशनों, अनुसंधान एवं विकास और नई खोजों में भारत की रैंकिंग तेजी से बढ़ी

एनएसएफ डेटाबेस के अनुसार, भारत को वैज्ञानिक प्रकाशन में दुनिया में तीसरा स्थान दिया गया है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (जीआईआई) के अनुसार, भारत शीर्ष 50 नवोन्मेषी अर्थव्यवस्थाओं में वैश्विक स्तर पर 48 वें पायदान पर रहा है। वहीं, भारत उच्च शिक्षा प्रणाली के बढ़ते दायरे, पीएचडी की संख्या और नए स्टार्टअप्स के मामले में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है।

 

2. वैश्विक स्तर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयासों को बढ़ावा देने में अगुवा बना भारत

भारत प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक गठजोड़ के एक अपरिहार्य सदस्य के रूप में उभरा है। विशेष रूप से टीके के अनुसंधान, विकास और आपूर्ति में। भारत ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में वैश्विक साझेदारी भी की है। भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। यह भारत की विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रगति को मान्यता दिए जाने के साथ एक और उल्लेखनीय उपलब्धि भी है।

 

3.  5वीं राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति का मसौदा आम राय के लिए जारी

5वीं राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति के मसौदे को अंतिम रूप दे दिया गया है और अब यह सार्वजनिक तौर पर मशविरे के लिए उपलब्ध है। पिछले 6 महीनों के दौरान परामर्श की 4 ट्रैक प्रक्रिया के माध्यम से तैयार की गई नीति का उद्देश्य अल्पकालिक, मध्यम और दीर्घकालिक मिशन मोड परियोजनाओं के माध्यम से व्यापक बदलाव लाना है। यह एक ऐसे वातावरण का निर्माण कर रहा है जो व्यक्तियों और संगठनों दोनों स्तर पर अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देता है।

इसका उद्देश्य भारत में साक्ष्य और हितधारक संचालित एसटीआई योजना, सूचना, मूल्यांकन और नीति अनुसंधान के लिए एक मजबूत प्रणाली को बढ़ावा, विकसित और पोषित करना है। नीति का उद्देश्य देश को सामाजिक-आर्थिक विकास को प्रेरित करने के लिए भारतीय एसटीआई वातावरण की शक्तियों और कमजोरियों की पहचान करना और उनका पता लगाना है, ताकि भारतीय एसटीआई वातावरण को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके।

 

4. फैसले लेने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका बढ़ी, मीडिया में मिली जगह, लोगों का भरोसा बढ़ा

विज्ञान और वैज्ञानिक मशविरे अब फैसले लेने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। वैज्ञानिक और विज्ञान की जानकारी वाली बहस का हिस्सा मुख्यधारा के मीडिया में कई गुना बढ़ गया। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आम आबादी और भरोसा भी काफी बढ़ा है। 2020 में एसटीआई के अच्छे वातावरण में उद्योग और अकादमी के निरंतर सहयोग और आपसी भागीदारी ने तेजी से समाधान निकालने और उत्पादों को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई।

 

5. विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के कार्यक्रमों ने नवाचार के वातावरण को असाधारण रूप से तैयार किया

नवाचार के दोहन और विकास के लिए राष्ट्रीय पहल (निधि) ने 153 इन्क्यूबेटरों के नेटवर्क के माध्यम से 3,681 स्टार्टअप के विकास करके भारत नवाचार के वातावरण पर व्यापक प्रभाव डाला। इन इन्क्यूबेटरों का विकास विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने किया है, जिससे सीधे तौर पर कुल 65,864 रोजगार पैदा हुए, 27,262 करोड़ रुपये की संपत्ति निर्मित हुई और 1,992 बौद्धिक संपदा पैदा हुई। राष्ट्रीय आकांक्षाओं को बढ़ाने वाले लाखों दिमाग (मानक) कार्यक्रम के जरिये देशभर के मिडिल और हाईस्कूलों से 38 लाख विचार मिले, जिनमें से कुछ शानदार थे। इसे जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी और परियोजना प्रतियोगिता में प्रदर्शन के लिए चयनित किया गया।

 

6. कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में एक विजयी मार्च

कोविड-19 महामारी के संकट के दौरान निधि की सामूहिक शक्ति और मजबूती, इसके इनक्यूबेटर नेटवर्क और इसके स्टार्टअप का “सेंटर फॉर ऑगमेंटिंग वॉर विद् कोविड-19 हेल्थ क्राइसिस (कवच)” कार्यक्रम के माध्यम से सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। कवच की कोशिश रही कि कोविड-19 की चुनौतियों का समाधान करने वाले नवाचारों और स्टार्टअप्स का समर्थन, तलाश और मूल्यांकन किया जाए। इसकी कोशिशों ने प्रौद्योगिकियों, निदान और दवाओं, कीटाणुनाशकों और सैनिटाइजर, वेंटिलेटर और चिकित्सा उपकरण, पीपीई और सूचना विज्ञान को महामारी के प्रबंधन और उससे निपटने में अहम भूमिका निभाई।

 

7. गणितीय मॉडल ने की महामारी के उभार और गिरावट की भविष्यवाणी

इंडिया नेशनल सुपरमॉडल कमेटी ने समय के साथ महामारी के उत्थान और पतन की भविष्यवाणी की। मॉडलिंग अध्ययन को कोविड-19 इंडिया नेशनल सुपरमॉडल कहा जाता है। इसमें कहा गया है कि भारत ने सितंबर में महामारी के उच्चतम स्तर को पार कर लिया है। अगर मौजूदा रुझान जारी रहता है, तो फरवरी तक न्यूनतम मामले होंगे। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि फिलहाल अभी राहत की बात नहीं है और व्यक्तिगत सुरक्षा प्रोटोकॉल को पूरी तरह से पालन किए जाने की जरूरत है। यह अनुमान उस विशेषज्ञ समिति के विश्लेषण का परिणाम है जिसमें गणितज्ञ और महामारीविद शामिल हैं।

 

8. सुपरकंप्यूटिंग शक्तिशाली और स्वदेश निर्मित: राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटर मिशन

राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (एनएसएम) ने हाई परफार्मेंस कंप्यूटिंग (एचपीसी) को देश में तेजी से बढ़ावा दिया। इससे अकादमिक और शोधकर्ताओं की बढ़ती कम्प्यूटेशनल मांगें पूरी हुईं और तेल की खोज में लगे एमएसएमई व स्टार्टअप्स, बाढ़ अनुमान, जीनोमिक्स और दवाओं की खोज की राह आसान हुई। पहला सुपर कंप्यूटर परम शिवाय था, जिसे आईआईटी बीएचयू में स्थापित किया गया था, इसके बाद आईआईटी-खड़गपुर और आईआईएसईआर, पुणे में क्रमशः परम शक्ति और परम ब्रह्मा स्थापित किए गए थे। इसके बाद दो और संस्थानों में ये सुविधाएं स्थापित की गईं। साथ ही 13 और संस्थानों को यह सुविधा देने के लिए समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए। परम सिद्धि उच्च प्रदर्शन करने वाला कंप्यूटिंग-आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस है, जिसने शीर्ष 500 सबसे शक्तिशाली गैर-वितरित कंप्यूटर प्रणालियों में 63वीं वैश्विक रैंकिंग हासिल की।

 

9. अनुसंधानकर्ताओं के लिए परिष्कृत विश्लेषण ढांचा केंद्र

 परिष्कृत विश्लेषणात्मक और तकनीकी सहायता संस्थान (साथी) केंद्रों को आम सेवाओं का उच्च-स्तरीय विश्लेषणात्मक परीक्षण प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है। इससे प्रकार विदेशी स्रोतों पर निर्भरता कम होती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने साथी कार्यक्रम के तहत ऐसे तीन केंद्र आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी दिल्ली और बीएचयू में स्थापित किए हैं, जिनका प्रबंधन पेशेवराना तरीके से किया जाता है और अकादमिक लोगों को, स्टार्ट-अप, उद्योग और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं के लिए खुले तौर पर उपलब्ध है। अगले चार वर्षों में हर साल पांच साथी केंद्र स्थापित किए जाने की योजना है।

 

10. अनुसंधान मदद और नवाचार हब बनने से एआई, रोबोटिक्स और आईओटी को बढ़ावा

एआई, रोबोटिक्स, आईओटी जैसे साइबरफिजिकल सिस्टम के नए एसएंडटी क्षेत्रों को इंटरडिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम्स (आईसीपीएस) पर राष्ट्रीय मिशन के शुभारंभ के साथ बड़ा बढ़ावा मिलता है। 25 नवाचार हब और पार्कों की अपनी अनूठी वास्तुकला उद्योग, शिक्षाविदों और सरकार के बीच मजबूत सहयोग और सह-स्वामित्व ला रही है और उन्हें पूर्ण लचीलेपन के साथ जोड़ रही है।

 

11. हिमालयी विश्वविद्यालयों में उत्कृष्टता के केंद्र और जलवायु परिवर्तन अनुसंधान पर प्रभावपूर्ण प्रकाशन

जलवायु परिवर्तन अनुसंधान के लिए हिमालयी विश्वविद्यालयों में तीन उत्कृष्टता केंद्र बनाए गए, जो कश्मीर और उत्तर पूर्वी राज्यों में सिक्किम और असम  हैं। मानसून, एरोसोल, हिमनदी झील के प्रकोप के चलते बाढ़ पर शोध महत्वपूर्ण प्रकाशनों में छपे। जर्नल साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन में दिखाया गया है कि उत्तर अटलांटिक से ग्रहीय तरंगें भारतीय मानसून को पटरी से उतारने में सक्षम है। वातावरणीय भौतिक और रसायन विज्ञान नाम के एक जर्नल में प्रकाशित शोध से पता चला है कि एयरोसोल्स ने हिमालय के तलहटी वाले इलाकों में भारी बारिश की घटनाओं को बढ़ाया।

12. विज्ञान समारोहों ने शीर्ष अधिकारियों का ध्यान खींचा

 भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शैक्षणिक और शोध संस्थानों में लैंगिक समानता और प्रगति के लिए तीन प्रमुख पहल की घोषणा की और विज्ञान संचार व लोकप्रियता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए, जिसमें महिला उत्कृष्टता पुरस्कार भी शामिल हैं।

भारत के राष्ट्रपति ने पहली बार राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (एनएसडी) मनाया। विज्ञान दिवस 28 फरवरी को सर सी.वी. द्वारा 'रमन इफेक्ट' की खोज को मनाने के लिए मनाया जाता है। डॉ. रमन को 1930 में इस खोज के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

 

13. विविधता, समावेशी और लिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए उच्च शिक्षा और अनुसंधान संस्थान खोलने के निर्देश

डीएसटी द्वारा शुरू की गई एक अभिनव पायलट परियोजना जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस (जीएटीआई) ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में लिंग समानताको बढ़ावा देने के लिए हस्तक्षेप शुरू किया। इसने विविधता, समावेशी और प्रतिभाओं को अपनी सफलता और प्रगति के लिए निखारने की दिशा में उच्च शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों के निर्माण को बल दिया। विशेष रूप से यह परियोजना सभी स्तरों पर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और गणित (एसटीईएमएम) विषयों में महिलाओं की समान भागीदारी के लिए सक्षम वातावरण बनाना चाहती है।

 

14. श्री चित्रा की पहल ने महामारी से लडऩे में स्थानीय लोगों की मदद की

श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी (एससीटीआईएमएसटी) कई तकनीकें और उत्पाद सामने लाया है, जो बीमारियों से लडऩे के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

 

यह कोविड 19 की पुष्टि करने वाली डायग्नोस्टिक किट है जिसने तेजी से मरीजों परीक्षण के लिए भारत की तत्काल जरूरत का जवाब दिया। इस मुद्दे पर अन्य विकास और अनुसंधान के काम में पराबैंगनी आधारित फेसमास्क डिस्पोजल बिन शामिल था, जिसका उपयोग अस्पतालों में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और सार्वजनिक स्थानों पर इस्तेमाल किए जाने वाले फेस मास्क, ओवरहेड कवर और फेस शील्ड के परिशोधन के लिए किया जा सकता है, जो सांस लेने के दौरान और शरीर के तरल पदार्थ को सोखकर संक्रमण को दूर करता है।

 

15. सर्वे ऑफ इंडिया ने शुरू की हाई रिजॉल्यूशन वाली भौगोलिक माप

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन आने वाले विभाग सर्वे ऑफ इंडिया (एसओआई) ने ड्रोन तकनीक जैसी अत्यंत उन्नत तकनीकों का उपयोग करते हुए 10 सेमी के उच्च रिजॉल्यूशन वाली पैन-इंडिया जियोस्पेशियल मैपिंग पर काम शुरू किया है। इसके साथ ही भारत उन चुनिंदा राष्ट्रों के चुनिंदा क्लबों में शामिल हो गया, जिसके पास आधार डेटा के रूप में अल्ट्रा हाई-रेजोल्यूशन नेशनल टोपोग्राफिक डेटा है।

यह पहल तीन राज्यों - हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और गंगा बेसिन के लिए शुरू की गई है। एसओआई ने महाराष्ट्र के आबादी क्षेत्रों की मैपिंग की है, जिसमें 40,000 से अधिक गांव शामिल हैं। इसके अलावा राजस्व विभाग के लिए कर्नाटक राज्य के पांच जिलों का ड्रोन से मानचित्र बनाया गया जिसमें गांव, अर्ध-शहरी और शहरी क्षेत्र शामिल हैं और पूरे हरियाणा का एलएसएम मानचित्रण भी किया गया है।

ड्रोन सर्वे से इन गांवों में सड़कों, नहरों, कृषि क्षेत्र और गांव की सीमाओं को निर्णायक बनाने में मदद मिलेगी।

एसओआई ने देश के प्रत्येक नागरिक तक डिजिटल मानचित्र या डेटा की पहुंच को आसान बनाने और केंद्र व राज्य संगठनों को निर्णय लेने, योजना बनाने, निगरानी और शासन में मदद करने के लिए वेब पोर्टल भी लॉन्च किया है। एसओआई ने एक मोबाइल ऐप सहयोग भी निशुल्क उपलब्ध कराया है।

 

16.  महिला शोधकर्ताओं को सशक्त करने के लिए एसईआरबी ने की शुरू की योजना

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सांविधिक निकाय विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) ने भारतीय शैक्षणिक संस्थानों और आर एंड डी प्रयोगशालाओं में विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान के वित्तपोषण में लैंगिक असमानता को कम करने के लिए योजना शुरू की। एसईआरबी-पावर (खोजपूर्ण अनुसंधानों में महिलाओं के लिए अवसरों को बढ़ावा देना) नाम कीइस योजना को विशेष रूप से महिला वैज्ञानिकों के लिए 29 अक्टूबर 2020 को लॉन्च किया गया था। एसईआरबी-पावर महिला शोधकर्ताओं को शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों में नियमित सेवा में बढ़ावा देता है। महिलाओं को अनुसंधान एवं विकास में उच्चतम स्तर पर ले जाने के लिए दो श्रेणियों - एसईआरबी पावर फैलोशिप और एसईआरबी पावर रिसर्च ग्रांट में मदद दी जाती है।

एसईआरबी-पावर फैलोशिप तीन वर्षों की अवधि के लिए शीर्ष प्रदर्शन करने वाली महिला शोधकर्ताओं को व्यक्तिगत फैलोशिप और एक शोध अनुदान प्रदान करता है, जबकि एसईआरबी-पावर रिसर्च ग्रांट एसएंडटी के सभी विषयों में अत्यधिक प्रभावशाली अनुसंधान करने के लिए वित्तीय मदद सुनिश्चित करता है। इस कार्यक्रम के लिए परियोजनाओं की घोषणा पहले ही की जा चुकी है।

 

17. टीआईएफएसी ने कोविड महामारी के बाद मेक इन इंडिया के लिए जारी किया अनुशंसा संबंधी अद्भुत श्वेत पत्र

प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद (टीआईएफएसी) ने कोविड महामारी के बाद एक श्वेत पत्र मेक इन इंडिया : पोस्ट कोविड 19 तैयार किया। इसमें भारत को “आत्मनिर्भर” बनाने के लिए तत्काल प्रौद्योगिकी और नीतिगत प्रोत्साहन देने की सिफारिशें दी गईं। इसमें क्षेत्र की विशिष्ट शक्तियों, बाजार के रुझानों और आपूर्ति और मांग के संदर्भ में पांच महत्वपूर्ण क्षेत्रों -स्वास्थ्य सेवा, मशीनरी, आईसीटी, कृषि, विनिर्माण और इलेक्ट्रॉनिक्स को शामिल किया गया। इसका लक्ष्य बड़े पैमाने पर उत्पादन क्षमता बढ़ाकर आत्मनिर्भरता बढ़ाना है। इसने मुख्य रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, एमएसएमई क्षेत्र, वैश्विक संबंधों : प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, नए युग की प्रौद्योगिकी आदि में नीतिगत विकल्पों की पहचान की है।

18. आईआईए और एरीज के वैज्ञानिकों ने नोबेल पुरस्कार विजेता के साथ किया काम

भारतीय खगोलविदों ने 2020 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो एंड्रिया गेज के साथ बैकेंड उपकरणों के डिजाइन और तीस मीटर टेलीस्कॉप (टीएमटी) परियोजना की संभावित विज्ञान संभावनाओं पर काम किया है। टीएमटी हवाई के मौनाकिया में स्थापित है, जो ब्रह्मांड की समझ बढ़ाने में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) और आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस) के वैज्ञानिकों ने टीएमटी परियोजना के लिए चल रहे अनुसंधानों और विकासात्मक गतिविधियों में प्रो. गेज का सहयोग किया।

19. कोविड परीक्षण के लिए बीएसआईपी बना देश का शीर्ष संस्थान

बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियो साइंस (बीएसआईपी ) ने उत्तर प्रदेश में कोविड-19 का मुकाबला करने के लिए राज्य सरकार से हाथ मिलाया, जो लखनऊ के पांच केंद्रीय सरकारी अनुसंधान संस्थानों में से एक बन गया है। बीएसआईपी ने कोविड-19 के प्रयोगशाला परीक्षण शुरू करने के लिए प्रारंभिक कदम उठाए। प्रतिदिन 1000 से 1200 नमूनों का परीक्षण करने के साथ बीएसआईपी न केवल राज्य में बल्कि पूरे देश में नमूनों के औसत प्रसंस्करण समय के मामले में शीर्ष संस्थान बन गया है।

20. आरआरआई को मिला अति सुरक्षित व दक्ष क्वांटम क्रिप्टोग्राफिक स्कीम का सफल कार्यान्वयन

आरआरआई में क्विक लैब ने भारत में पहली बार एक सफल कार्यान्वयन प्राप्त किया। इसे आरआरआई-इसरो परियोजना के अंतर्गत मुक्त उपग्रह क्यूकेडी के लिएसैटेलाइट प्रौद्योगिकी का उपयोग करके क्वांटम एक्सपेरिमेंट के तहत भारत में एक अत्यधिक सुरक्षित व कुशल क्वांटम क्रिप्टोग्राफिक योजना प्राप्त की। प्रयोगशाला सिमुलेशन टूलकिट लेकर आया है, जिसे क्यूकेडीसिम नाम दिया गया है, जो सुरक्षित क्वांटम संचार प्लेटफार्मों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। यह अपनी तरह का पहला क्वांटम कुंजी वितरण प्रोटोकॉल (क्यूकेडी) है, जो  प्रयोगकर्ताओं को एक प्रयोगात्मक सेटअप से परिणामों का सटीक अनुमान लगाने में सक्षम बनाता है। प्रयोगात्मक सेटअप से परिणाम का मतलब क्यूकेडी प्रोटोकॉल के प्रदर्शन से है। उन्होंने एचआरआई इलाहाबाद के सहयोग से एक प्रयोग भी किया है, जो क्वांटम अवस्था के आकलन में एक नया प्रतिमान बनाने वाले उपकरण को प्रदर्शित करता है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों के वैज्ञानिकों ने कई अन्य अनुसंधान/ नवाचार भी किए। इनमें से कुछ गिने चुने नीचे दिए गए हैं।

आईआईटी बॉम्बे इंस्पायर के शोधार्थी विकिरण चिकित्सा में उपयोगी क्वांटम रसायन पर आधारित सॉफ्टवेयर कर रहे विकसित

आईआईटी बॉम्बे के डॉ. अचिन्त्य कुमार दत्ता अपने शोध समूह के साथ क्वांटम रसायन विज्ञान के लिए नए तरीकों को विकसित करने और उन्हें जलीय डीएनए से इलेक्ट्रॉन लगाव का अध्ययन करने में प्रभावी और मुफ्त सॉफ्टवेयर में लागू करने के लिए काम कर रहे हैं, जिसका कैंसर के विकिरण चिकित्सा आधारित उपचार में बड़ा प्रभाव है। यह अध्ययन रेडियो संवेदी के एक नए वर्ग के विकास में मदद कर सकता है, जो ट्यूमर कोशिकाओं को विकिरण चिकित्सा के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है और जिससे सामान्य कोशिकाओं की रक्षा होती है। कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग पैसे और समय दोनों ही लिहाज से नए रेडियो-संवेदी को विकसित किए जाने की लागत को काफी कम कर सकता है।

हिमालय के अन्य हिस्सों की तुलना में सिक्किम में ग्लेशियर बड़े पैमाने पर तेजी से लुप्त रहे हैं

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत हिमालयी भूविज्ञान के अध्ययन के लिए  देहरादून स्थित एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) के वैज्ञानिकों ने पाया है कि अन्य हिमालयी क्षेत्रों की तुलना में सिक्किम में अधिक ऊंचाई पर स्थित ग्लेशियर पिघल रहे हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित एक अध्ययन में 1991-2015 के दौरान जलवायु परिवर्तन का सिक्किम के 23 ग्लेशियरों पर असर का आकलन किया और यह खुलासा किया कि सिक्किम के ग्लेशियर 1991 से लेकर 2015 तक पीछे हट गए हैं और काफी हद तक कम हो गए हैं। सिक्किम में छोटे आकार के ग्लेशियर हैं, जो जलवायु परिवर्तन के कारण बड़े ग्लेशियरों के पतले होने से बन गए। वर्तमान अध्ययन में ग्लेशियर के परिमाण के साथ-साथ उनके दिशा परिवर्तन के सटीक ज्ञान पर प्रकाश डाला गया है। यह जल आपूर्ति और संभावित ग्लेशियर खतरों के बारे में आम लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है, विशेष रूप से उन समुदायों के लिए जो ग्लेशियर क्षेत्र के आसपास रह रहे हैं।

 

एआरसीआई ने आंतरिक दहन इंजनों की ईंधन दक्षता में सुधार करने के लिए प्रौद्योगिकी विकसित की।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त अनुसंधान और विकास केंद्र इंटरनेशनल एडवांस्ड सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स (एआरसीआई) ने अतितीव्र लेजर सतह बनावट वाली एक तकनीक विकसित की है। यह तकनीक आंतरिक दहन इंजनों की ईंधन दक्षता में सुधार कर सकती है।

एआरआई पुणे के वैज्ञानिकों ने उच्च प्रोटीन युक्त गेहूं की किस्म बायोफोर्टिफाइड विकसित की

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत पुणे स्थित एक स्वायत्त संस्थान अगरकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) के वैज्ञानिकों ने एक बायोफोर्टिफाइड ड्यूरम गेहूं की किस्म एमएसीएस 4028 विकसित की है, जिसमें प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है।

 

दुर्घटनाओं के दौरान तेजी से हो रहे रक्त स्राव को रोकने के लिए स्टार्च आधारित सामग्री विकसित हुई

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान नैनो साइंस और टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (आईएनएसटी) के वैज्ञानिकों ने एक स्टार्च आधारित हेमोस्टेट सामग्री विकसित की है, जो शारीरिक रूप से अतिरिक्तद्रव को अवशोषित कर रक्त में प्राकृतिक थक्कों को गाढ़ा करने पर केंद्रित होती है। इस उत्पाद से अवशोषण क्षमता बढ़ गई है। यह सस्ता और जैव अनुकूल होने के साथ ही प्राकृतिक तरीके से नष्ट भी हो जाता है।

 

भूजल हिमालयी स्लिप और जलवायु को प्रभावित करता है जब पहाड़ अपनी धुरी से खिसकते हैं

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त संस्थान भारतीय भूचुम्बकत्व संस्थान (आईआईजी) के शोधकर्ताओं ने भूजल में मौसमी बदलावों के आधार पर शक्तिशाली हिमालय को कम होते और आगे बढ़ते पाया। चूंकि हिमालय भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु को प्रभावित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए डीएसटी द्वारा वित्त पोषित अध्ययन से यह समझने में मदद मिलेगी कि जल विज्ञान जलवायु को कैसे प्रभावित करता है।

 

सौर ऊर्जा को औद्योगिक प्रक्रिया ताप में परिवर्तित कर सकती है एआरसीआई की लागत प्रभावी तकनीक

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत हैदराबाद स्थित स्वायत्त संस्थान इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी और न्यू मेटेरियल्स (एआरसीआई) के वैज्ञानिकों ने औद्योगिक प्रक्रिया तापअनुप्रयोगों के लिए एक लागत प्रभावी सौर ऊर्जा ग्राही ट्यूब तकनीक विकसित की है। एआरसीआई की टीम द्वारा विकसित यह तकनीक सौर विकिरण को कुशलतापूर्वक अवशोषित करती है और इसे विशेष रूप से उद्योगों में लक्षित अनुप्रयोगों के लिए ताप में परिवर्तित करती है। यह भारतीय मौसम की स्थिति के लिए उपयुक्त उच्च संक्षारण प्रतिरोध को प्रदर्शित करती है। इस तकनीक के लिए दो पेटेंट आवेदन किए गए हैं और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए ग्रीनेरा एनर्जी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जिसकी योजना बाजार में खपत के आधार पर बड़े पैमाने पर सौर रिसीवर ट्यूब का उत्पादन करने की है।

 

कृषि अवशेषों के जलने और जंगल की आग से उत्पन्न ब्लैक कार्बन गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने पर असर डाल सकता है।

एक अध्ययन के अनुसार गर्मी के मौसम में गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की सांद्रता 400 गुना बढ़ जाती है। इस मौसमी वृद्धि के पीछे का कारण कृषि अवशेषों के जलना और जंगल की आग है। ब्लैक कार्बन की प्रकाश अवशोषी प्रकृति ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ा सकता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) के वैज्ञानिकों ने 2016 में गंगोत्री ग्लेशियर के पास स्थित चिरबासा स्टेशन में किए एक अध्ययन में पाया था कि पाया कि इस क्षेत्र में गर्मी के दौरान ब्लैक कार्बन की मात्रा जबर्दस्त तरीके से बदली। डब्ल्यूआईएचजी के डॉ. पीएस नेगी के नेतृत्व में किया गया यह शोध एक वैज्ञानिक पत्रिका एटमॉस्फेरिक इनवायरमेंट में प्रकाशित किया गया।

एससीटीआईएमएसटी ने मस्तिष्क के बीमारी एन्यूरिज्म के उपचार के लिए फ्लो डायवर्टर स्टेंट्स टेक्नोलॉजी विकसित की

फ्लो डायवर्टर के लचीले और नसों के अनुकूल होने के फायदे हैं।

वे रक्त प्रवाह के निरंतर तनाव को हटाकर नसों के उपचार को बढ़ावा देते हैं।

एससीटीआईएमएसटी ने स्टेंट और डिलीवरी सिस्टम के लिए अलग-अलग पेटेंट फाइल किए हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत तिरुवंतपुरम स्थित एक राष्ट्रीय महत्व के संस्थान श्री चित्रा थिरुनाल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एससीटीआईएमएसटी) की शोध टीम ने दिमाग की नसों की बीमारी एन्यूरिज्म के उपचार के लिए एक अंतरकपालीय फ्लो डायवर्टर स्टेंट विकसित किया है। यह जानवरों में प्रयोग के लिए तैयार है। इसके बाद इसका मानव परीक्षण किया जाएगा।

डब्ल्यूआईएचजी ने लद्दाख हिमालय में नदी कटाव के 35 हजार साल के इतिहास का खुलासा किया

डब्ल्यूआईएचजी की टीम द्वारा किए गए अध्ययन से नदी के कटाव और अवसादन को समझने में मदद मिलेगी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) के वैज्ञानिक और छात्रों ने लद्दाख हिमालय में नदियों पर अध्ययन किया। उन्होंने नदी के कटाव के 35 हजार साल के इतिहास को खंगाला और उसके क्षरण और चौड़ी घाटियों वाले हॉटस्पॉट की पहचान की, जो कि बफर जोन का कार्य करते हैं। अध्ययन से पता चला है कि कैसे सूखे पड़े लद्दाख हिमालय में नदियां लंबे समय तक प्रवाहित होती रहीं और कैसे उन्होंने अलग-अलग जलवायु, पानी और तलछट मार्ग पर प्रतिक्रिया दी। यह उतना ही महत्वपूर्ण है जैसे कि देश अपने बुनियादी ढांचे को तैयार करता है और स्मार्ट शहरों का विकास करता है।

जेएनसीएएसआर के वैज्ञानिकों ने अल्जाइमर अवरोधक प्राकृतिक उत्पाद विकसित किया

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) के वैज्ञानिकों ने अल्जाइमर अवरोधक के रूप में उपयोग करने के लिए प्राकृतिक और सस्ते उत्पाद बर्बरीन की संरचना में बदलाव किया है। यह वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध करक्यूमिन के समान है। उनका यह शोध आई साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

केरल की महिला द्वारा विकसित एन्थ्यूरियम पुष्प की नई किस्मों को एनआईएफ ने दिया बढ़ावा

केरल के तिरुवनंतपुरम की एक महिला डी वासिनी बाई ने बाजार में ऊंचे दामों पर मिलने वाले एंथुरियम पुष्प की पार परागण द्वारा दस किस्में विकसित की हैं। एन्थ्यूरियम (एन्थ्यूरियम एसपीपी) रंगों की एक विस्तृत श्रृंखला में उपलब्ध सुंदर खिलने वाले पौधों का एक विशाल समूह है। इनडोर सजावटी पौधों के रूप में इसके उपयोग के कारण इन पौधों की मांग बहुत ज्यादा होती है। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन इंडिया नेबंगलुरुके भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर) में टिशू कल्चर तकनीक के माध्यम से सबसे अधिक मांग वाली चार किस्मों का बड़े पैमाने पर प्रसार और उत्पादन के लिए सुविधा प्रदान की है। एन्थ्यूरियम दुनिया में सबसे अच्छे घरेलू फूलों के पौधों में से एक है। ये सुंदर होने के साथ ही आसपास की हवा को भी शुद्ध करते हैं और हवा में मौजूद हानिकारक रसायन जैसे फॉर्मेल्डीहाइड, अमोनिया, टोल्यून, जाइलीन और एलर्जी को दूर करते हैं। हवा से जहरीले पदार्थों को हटाने के अपने गुणों को देखते हुए नासा ने वायु शोधक पौधों की सूची में रखा है। अपनी आकर्षक बनावट और आर्थिक महत्व के कारण इस फूल के बाजार में अच्छे दाम मिलते हैं।

 

संचार/ नौपरिवहन में मदद कर सकता है आयनमंडलीय इलेक्ट्रॉन घनत्व की भविष्यवाणी करने वाला नया मॉडल 

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान नवी मुंबई स्थित भारतीय भू-विज्ञान संस्थान (आईआईजी) के शोधकर्ताओं ने एक बड़े डेटा कवरेज के साथ आयनमंडलीय इलेक्ट्रॉन घनत्व की भविष्यवाणी करने वाला वैश्विक मॉडल विकसित किया है। यह संचार और नौपरिवहन के लिए महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

 

कार्बनिक आभासी संधारित्र के लिए स्थायी वस्तु कर सकती है कम लागत में ऊर्जा भंडारण समाधान

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान मोहाली स्थित नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) के वैज्ञानिकों ने आभासी संधारित्र (सूडोकैपेसिटर) या सुपर कैपेसिटर के लिए एक स्थायी वस्तु ईजाद की है, जो इलेक्ट्रॉन चार्ज ट्रांसफर द्वारा विद्युत ऊर्जा को एकत्र करते हैं। कम लागत में ऊर्जा भंडारण समाधान वाली यह वस्तु बैटरी के विकल्प के रूप में काम कर सकती है।

 

पानी से जहरीले पदार्थों को हटाने के लिए आईएएसएसटी के शोधकर्ता बना रहे प्लास्मोनिक सेमीकंडक्टर नैनोमीटर

असम स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी में बतौर सहायक प्रोफेसर काम करने वाले बिस्वजीत चौधरी सौर प्रकाश की मदद से पानी में मौजूद विषेले कार्बनिक यौगिकों को हटाने के लिए प्लास्मोनिक सेमीकंडक्टर नैनोमीटर (जो कि सतह पर मुक्त इलेक्ट्रॉनों के साथ धातु जैसी सामग्री होती है, जो प्रकाश पडऩे पर सामूहिक रूप से दोलन करती है) विकसित करने के तरीके तलाश रहे हैं। वे नैनोमैटेरियल्स की फोटोकैटलिटिक दक्षता को बढ़ाकर प्रदूषकों को कम करने के साथ ही पुन: उत्पन्न होने वाली हाइड्रोजन के लिए सौर प्रकाश का उपयोग कर रहे हैं। इसी क्रम में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा शुरू किए गए नवाचार कार्यक्रम इंस्पायर से जुड़े लोग फोटॉन संचय और इसी उद्देश्य के लिए प्लास्मोनिक सामग्री द्वारा प्रकाश प्रवर्धन के पीछे के विज्ञान को समझने की कोशश कर रहे हैं। भौतिकी, रसायन विज्ञान और नैनो टेक्नोलॉजी से जुड़े डॉ चौधरी ने सौर ऊर्जा सामग्री और सौर सेल पर अपने वर्तमान काम पर दो पत्र (2019, 201, 110053) ttps://doi.org/10.1016/j.solmat.2019.110053 और एसीएस सस्टेनेबल केमिस्ट्री एंड इंजीनियरिंग (2019, 7, 23, 19295-19302) https://doi.org/10.1021/acssuschemeng.9b05823प्रकाशित किए हैं, जो सौर प्रकाश द्वारा पानी से जहरीले कार्बनिक यौगिकों को निकालने के लिए प्लोमोनिक सेमीकंडक्टर नैनोमीटर सामग्री के उपयोग पर केंद्रित हैं। वह जो चीज विकसित कर रहा है, वह पूर्वोत्तर भारत के पानी में पाए जाने वाले आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसे विषैले आयनों को आसानी से सोख सकती है और सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर इसे विषैले रूपों में परिवर्तित नहीं करते हैं।

किसान वैज्ञानिक द्वारा विकसित बायोफोर्टिफाइड गाजर से स्थानीय किसानों को लाभ

गुजरात में जूनागढ़ जिले के एक किसान वैज्ञानिक वल्लभभाई वासराभाई मारवानिया ने उच्च बीटा कैरोटिन और आयरन युक्त गाजर की जैव विविधता वाली किस्म मधुबन गाजर विकसित की है। इससे इस क्षेत्र के 150 से अधिक स्थानीय किसानों को लाभ हो रहा है। यह गाजर जूनागढ़ में 200 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में उगाई जा रही है। इसका औसत उत्पादन 40-50 टन प्रति हेक्टेयर है। यह गाजर स्थानीय किसानों के लिए आय का मुख्य स्रोत बन गई है। पिछले तीन वर्षों से गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश में 1000 हेक्टेयर से अधिक भूमि में इस गाजर की खेती की जा रही है।

सतत ऊर्जा के लिए भौतिक विज्ञान और विद्युत रसायन के सम्मिलन पर काम कर रहे एनआईटी श्रीनगर के शिक्षक

श्रीनगर स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) के डॉ मलिक अब्दुल वाहिद को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा स्थापित इंस्पायर संकाय पुरस्कार मिल चुका है। ऊर्जा अनुसंधान के क्षेत्र में वे सतत ऊर्जा और किफायती ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने के लिए भौतिक विज्ञान और विद्युत रसायन के सम्मिलन की दिशा में काम कर रहे हैं। उनका ध्यान मुख्य रूप से इलेक्ट्रोड और इलेक्ट्रोलाइट मैटेरियल इलेक्ट्रोकैमिस्ट्री पर है। आईआईएसईआर पुणे में अपने सहयोगियों के साथ डॉ. मलिक ने ली-आयन बैटरी में एनोड के रूप में कुशल सी स्थिरीकरण के लिए एक सी-फॉस्फोरिन नैनो-कंपोजिट मैटेरियल विकसित किया। यह शोध सस्टेनेबल एनर्जी फ्यूल्स जर्नल में प्रकाशित हुई थी। यह मैटेरियल कार्बन-आधारित इलेक्ट्रोड की तुलना में पांच गुना अधिक क्षमता प्रदान करता है और लगभग 15 मिनट में पूरी तरह से चार्ज हो सकता है।

आईएएसएसटी ने भोजन में कैंसर कारी और उसे बढ़ाने वाले यौगिकों का पता लगाने के लिए विद्युत रसायन सेंसिंग प्लेटफॉर्म विकसित किया

इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी), गुवाहाटी ने कैंसर उत्पन्न करने और उसे बढ़ाने वाले यौगिकों -एन-नाइट्रोसोडिमिथाइलैमाइन (एनडीएमए) और एन-नाइट्रोसोडाइथेटामाइन (एनडीईए) का पता लगाने के लिए एक इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसिंग प्लेटफार्म विकसित किया है। ये यौगिक कभी-कभी उपचारित मांस, बेकन, चीज जैसे खाद्य पदार्थों और कम वसा वाले दूध में पाए जाते हैं। यह डीएनए में कार्बन नैनोमैटेरियल्स (कार्बन डॉट्स) को स्थिर करके एक संशोधित इलेक्ट्रोड विकसित करके हासिल किया गया था।

 

आईआईटी गुवाहाटी ने अल्जाइमर के कारण याददाश्त खोने से रोकने का नया तरीका ईजाद किया

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी ) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी अलग सोच पर जाकर काम किया है, जो अल्जाइमर रोग से जुड़ी शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस (अल्पकालिक स्मृति हानि) को रोकने या कम करने में मदद कर सकती है। आईआईटी गुवाहाटी की टीम ने कम वोल्टेज वाले विद्युत क्षेत्र के अनुप्रयोग और मस्तिष्क में न्यूरोटॉक्सिक अणुओं को एकत्र होने से रोकने के लिए ट्रोजन पेप्टाइड्स के उपयोग जैसे दिलचस्प तरीकों की एक रिपोर्ट तैयार की। अनुसंधान विद्वान डॉ. गौरव पांडे और जानूसैंकिया द्वारा वैज्ञानिकों को उनके कार्यों में मदद की जाती है। उनके अध्ययन के परिणाम प्रतिष्ठित पत्रिकाओं जैसे एसीएस केमिकल न्यूरोसाइंस, आरएससी एडवांस ऑफ रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री, बीबीए और न्यूरोपैप्टाइड्स में प्रकाशित हुए हैं। अल्जाइमर रोग के इलाज का तरीका विकसित करने के मामले में भारत के महत्व को भी मान लिया गया है, क्योंकि चीन और अमेरिका के बाद दुनिया में तीसरे नंबर पर यहां अल्जाइमर के रोगियों की संख्या सबसे अधिक है। 40 लाख से अधिक लोग अल्जाइमर से जुड़ी स्मृति हानि के शिकार हैं।

 

जेएनसीएएसआर के प्रोफेसर अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज में अंतर्राष्ट्रीय मानद सदस्य के रूप में चुने गए

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त संस्थान जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) में सैद्धांतिक विज्ञान इकाई (टीएसयू) से जुड़ी प्रोफेसर शोभना नरसिम्हन को अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज में अंतर्राष्ट्रीय मानद सदस्य के रूप में चुनी गई हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज उन विद्वानों और नेताओं को सम्मानित करता है जिन्होंने विज्ञान, कला, मानविकी और सार्वजनिक जीवन के क्षेत्र में मुकाम हासिल किया है। पूर्व में दी गई अंतर्राष्ट्रीय मानद सदस्यों की सूची में चाल्र्स डार्विन, अल्बर्ट आइंस्टीन और नेल्सन मंडेला शामिल हैं। प्रो नरसिम्हन जेएनसीएएसआर में कम्प्यूटेशनल नैनो साइंस ग्रुप की प्रमुख हैं। उन्होंने नैनोमैटिरियल्स कीतर्कसंगत डिजाइन पर महत्वपूर्ण काम किया है। यह जांचने के लिए कि कैसे आयामी स्वरूप का कम होनाऔर आकार की कमी भौतिक गुणों को प्रभावित करती है।

सुरक्षित क्वांटम संचार प्लेटफार्मों  की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आरआरआई सिमुलेशन टूल किट लाया

गृह मंत्रालय ने हाल ही में सुरक्षित प्लेटफार्मों के माध्यम से ऑनलाइन संचार सुनिश्चित करने के लिए सलाह दी थी। इसमें वर्चुअल वल्र्ड (आभासी दुनिया) में सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपायों की बढ़ती जरूरत पर प्रकाश डाला गया है, क्योंकि दिन प्रतिदिन की अधिकांश डिजिटल गतिविधियां कोविड-19 के कारण सीमित हो गई हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत आने वाले स्वायत्त संस्थान रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) के शोधकर्ताओं ने अपनी तरह का सिमुलेशन टूलकिट बनाया। क्यूकेडी सिमुलेशन को 'क्यूकेडी सिम नाम दिया गया है। यह मॉड्यूलर सिद्धांतों पर आधारित है, जो इसे विभिन्न मजबूत प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके प्रोटोकॉल के विभिन्न वर्गों में विकसित करने की अनुमति देता है।

 

वैज्ञानिकों ने प्रमुख अंतरिक्ष मौसमी घटनाओं के दौरान संचार और नौपरिवहन को प्रभावित करने वाली आयनमंडलीय अनियमितताओं का पता लगाया

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत भारतीय भू-विज्ञान संस्थान (आईआईजी) के वैज्ञानिकों ने भारत पर अंतरिक्ष में होने वाली हलचलों का पडऩे वाले बहु-साधन आधारित आयनमंडलीय अध्ययन में पाया गया है कि भूमध्यरेखीय प्रसार अनियमितताओं की घटना और जीपीएस की जगमगाहट भूचुंबकीय तूफान से काफी प्रभावित होती हैं, जो भू-चुंबकीय तूफान की शुरुआत के समय पर निर्भर करता है। आईआईजी के डॉ. एस श्रीपति के मार्गदर्शन में डॉ. राम सिंह द्वारा किए गए इस वर्तमान अध्ययन में 17 मार्च, 23 जून और 20 दिसंबर 2015 को हुई तीन प्रमुख अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं के दौरान भूमध्य रेखा और कम अक्षांश वाले आयनमंडल पर उच्च अक्षांश वाले विद्युत क्षेत्रों, हवाओं और यात्राशील आयनमंडलीय गड़बड़ी हलचल के जुड़ाव की जांच की गई।

 

हिमालय क्षेत्र के वायुमंडलीय हलचलों पर नई जानकारी कर सकती है मौसम की भविष्यवाणी में मदद

हवाई मार्ग खासकर हिमालय क्षेत्र में होने वाली आपदाओं को रोकना और मौसम की सटीक भविष्यवाणी करना अब आसान हो सकता है। इसके लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस) के वैज्ञानिकों ने हिमालय क्षेत्र में विशिष्ट वायुमंडलीय हलचलों की गणना की है। भारत में पहली बार मध्य हिमालयी क्षेत्र में निचले क्षोभमंडल में हलचलों का अनुमान लगाया गया है।

https://dst.gov.in/new-information-atmospheric-turbulence-parameters-himalaya-region-can-help-weather-prediction

 

वयस्क की तुलना में अपनी सूंड के व्यवहार में गंभीरता दिखाते हैं एशियाई हाथी के बच्चे

एशियाई हाथी के बच्चों में व्यवहार विकास का अध्ययन करने के लिए एक दिलचस्प प्रणाली होती है। वे एक अच्छी तरह से विकसित संवेदी प्रणाली के साथ पैदा हुए हैं जिन्हें तकनीकी रूप से पूर्वगामी कहा जाता है और जन्म के बाद के घंटों में सक्षम होते हैं। हालांकि वे एक लंबी अवधि के लिए पोषण, शारीरिक सुरक्षा और सामाजिक समर्थन के लिए अपनी माताओं पर निर्भर हैं, जिससे उन्हें स्वतंत्र अस्तित्व के लिए जरूरी आवश्यक कौशल सीखने का पर्याप्त समय और अवसर मिलता है। बच्चे जन्म के तुरंत बाद चल तो सकते हैं, लेकिन वस्तुओं को उठाने और घास खींचने के लिए अपनी सूंड का उपयोग करने में असमर्थ होते हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) के शोधकर्ता अन्य कई प्रचलित प्रजातियों के हाथियों के व्यवहार की खासियतें जानने की कोशिश कर रहे हैं। अध्ययन में उन्होंने पाया कि हालांकि एशियाई हाथियों के बच्चों की सूंड को वयस्क हाथियों की तरह विकसित होने में थोड़ा समय लगता है, लेकिन दाएं या बाएं हिलाकर उपयोग के लिए वे इसे आसानी से विकसित कर लेते हैं। इस अध्ययन को हाल ही में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डेवलपमेंटल बायोलॉजी में प्रकाशित किया गया था।

 

https://dst.gov.in/asian-elephant-cubs-show-handedness-trunk-behaviour-earlier-adult-usage-trunks

 

ऊर्जा भंडारण में मदद कर सकते हैं औद्योगिक अपशिष्ट कपास और प्राकृतिक समुद्री जल इलेक्ट्रोलाइट से बने कम लागत वाले सुपरकैपेसिटर

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स (एआरसीआई) के वैज्ञानिकों ने औद्योगिक अपशिष्ट कपास से प्राप्त एक सरल, कम लागत वाली, पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ सुपरकैपेसिटर इलेक्ट्रोड विकसित किया है जिसे ऊर्जा भंडारण यंत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। पहली बार प्राकृतिक समुद्री जल को पर्यावरण के अनुकूल, लागत प्रभावी, मापने योग्य और वैकल्पिक जलीय इलेक्ट्रोलाइट के रूप में खोजा गया है, जो सुपरकैपेसिटर के आर्थिक निर्माण के लिए मौजूदा जलीय-आधारित इलेक्ट्रोलाइट्स की जगह ले सकता है। सुपरकैपेसिटर एक अगली पीढ़ी का ऊर्जा भंडारण उपकरण है, जिसमें पारंपरिक कैपेसिटर और लिथियम-आयन बैटरी (एलआईबी) की तुलना में उच्च शक्ति घनत्व, लंबे समय तक प्रभावी और बहुत तेजी से चार्ज होने वाली विशेषताओं पर व्यापक शोध किया गया है।

https://dst.gov.in/low-cost-supercapacitor-industrial-waste-cotton-natural-seawater-electrolyte-can-help-energy-storage

 

बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने स्मार्ट स्विचेबल विंडो फॉग ऑन डिमांड विकसित की

सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) बेंगलुरु विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान है। इसके वैज्ञानिकों ने विद्युत से चलने वाला एक उपकरण विकसित किया है, जिसे पारदर्शी से पारभासी मोड में लाया जा सकता है। डॉ. एस कृष्णा प्रसाद और उनकी टीम द्वारा विकसित किए गए इस उपकरण को फॉग ऑन डिमांड नाम दिया गया है। बिजली से चलने वाला यह उपकरण रोशनी बिखरने और कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह घरों, स्वास्थ्य सेवाओं, निजता बनाए रखने, स्मार्ट डिस्प्ले और ऊर्जा बचत के उद्देश्य से खिड़कियों पर लगाने के लिए कारगर होगा। वर्तमान में वैज्ञानिक इस उपकरण के परीक्षण के लिए बेंगलुरु के एक उद्योग से बातचीत कर रहे हैं।

https://dst.gov.in/sites/default/files/Bengaluru%20Scientists%20develop%20smart%20switchable%20window%20that%20can%20%E2%80%98fog%E2%80%99%20on%20demand.pdf

 

एआरसीआई द्वारा विकसित पहला स्वदेशी पेटकोक आधारित उच्च ऊर्जा सुपरकैपेसिटर से इलेक्ट्रिकल व्हीकल उद्योग को होगा लाभ

पहला स्वदेशी पेटकोक आधारित 1200 एफ सुपरकैपेसिटर डिवाइस को उच्च क्षमता वाले सक्रिय कार्बन इलेक्ट्रोड की मदद से विकसित किया गया है। इससे इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) उद्योग को व्यावसायिक तौर पर लाभ होगा। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल (एआरसीआई) के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) के पेट्रोलियम कोक (पेटकोक) के साथ इसे विकसित किया है, जो प्रदर्शन के मामले में एक विश्वस्तरीय वाणिज्यिक सुपरकैपेसिटर की तरह है।

https://dst.gov.in/first-indigenous-petcoke-based-high-energy-supercapacitor-developed-arci-would-benefit-ev-industry

 

ट्यूमर के इलाज के लिए चुंबकीय अतिताप वाली कैंसर चिकित्सा पद्धति विकसित करने का आईएनएसटी ने किया प्रयास

चुंबकीय अतिताप से जुड़ी कैंसर चिकित्सा (एमएचसीटी) एक गैर-आक्रामक कैंसर उपचार तकनीक है। इसमें कैंसर के लक्षित ट्यूमर साइट के भीतर चुंबकीय सामग्री की डिलीवरी और स्थानीयकरण शामिल है। वैकल्पिक चुंबकीय क्षेत्र (एएमएफ) उत्पन्न करने से ट्यूमर वाली जगह पर गर्मी पैदा होती है। यह ग्लियोब्लास्टोमा जैसे गहराई में स्थित ठोस ट्यूमर का बड़ी कुशलता से इलाज कर सकता है और स्वस्थ कोशिकाओं से इतर न्यूनतम विषाक्तता के साथ सामान्य कोशिकाओं के प्रति अत्यधिक ताप संवेदनशील है। वैज्ञानिक इससे जुड़ी नए मैटेरियन की तलाश में हैं, जो इस उपचार को और अधिक कारगर बना सकते हैं।

डीएसटी के अंतर्गत नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों ने स्टेविओसाइड युक्त मैग्नेटाइट नैनोपार्टिकल्स जैसे विभिन्न चुंबकीय नैनो-ट्रांसड्यूसर को संश्लेषित किया है। कैंसर के इलाज के लिए वैज्ञानिकों ने सिट्रिक एसिड युक्त चुंबकीय नैनोक्लस्टर, मैगनीज और जस्ते को चुंबकीय अतिताप एजेंटों के रूप में प्रयोग के लिए मैग्नेटाइट नैनोकणों में मिलाया।

https://dst.gov.in/inst-efforts-make-magnetic-hyperthermia-mediated-cancer-therapy-desired-therapy-inoperable-tumours

 

आईएनएसटी वैज्ञानिकों ने मोतियाबिंद के इलाज का सरल तरीका विकसित किया

मोतियाबिंद अंधेपन का एक प्रमुख रूप है, जो तब होता है जब हमारी आंखों में लेंस बनाने वाले क्रिस्टलीय प्रोटीन की संरचना बिगड़ती है। इसमें क्षतिग्रस्त या अव्यवस्थित प्रोटीन एकत्र होकर नीली या भूरे रंग की परत बनाते हैं, जो अंतत: लेंस की पारदर्शिता को प्रभावित करता है। इसलिए इन प्रोटीन को एकत्र होने से रोकना मोतियाबिंद के इलाज केलिए एक प्रमुख उपचार है और इस कार्य को अंजाम देने वाली सामग्री मोतियाबिंद की रोकथाम को सस्ता और सुलभ बना सकती है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक प्रचलित नॉनस्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग (एनएसएआईडी) एस्पिरिन से नैनोरोड विकसित किए। इसे मोतियाबिंद के इलाज में एक प्रभावी और नुकसान रहित छोटे अणु-आधारित नैनोथेरेप्यूटिक्स के खिलाफ पाया गया।

https://dst.gov.in/inst-scientists-develop-simple-economical-nonsurgical-prevention-cataract

 

इमारतों को ठंडा रखने के लिए ऊर्जा बचत वाले शेडस्मार्ट और रेडिएंट कूलिंग तकनीक को बढ़ावा

भारतीय निर्माण क्षेत्र ने ऊर्जा दक्षता के महत्व को महसूस किया है। बस इसे निर्माण उद्योग में प्रभावी रूप से अपनाया जाना बाकी है। भारत के जलवायु क्षेत्रों और अक्षांशों में कमरों को ठंडा रखने के लिए स्मार्ट, गतिशील छाया उपकरण और एयर कंडीशनिंग के लिए कम ऊर्जा प्रौद्योगिकियां देश में ऊर्जा दक्षता की दिशा में प्रगति करने में मदद कर सकती हैं, जिसका एक बड़े हिस्से में उच्च तापमान की स्थिति रहती है।

द इनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के साथ मिलकर प्रोजेक्ट हैबिटेट मॉडल के तहत आवासीय और वाणिज्यिक भवनों में गर्मी को रोकने के लिए खिड़कियों पर बाहर की ओर लगाए जाने वाला एक नया और लागत प्रभावी समाधान निकाला है। बिजली की कम खपत वाले शेडस्मार्ट घरों को आरामदायक बनाता है।

https://dst.gov.in/shadesmart-radiant-cooling-technologies-supported-dst-promotes-energy-efficient-cooling-buildings

 

एसएनबीएनसीबीएस ने बिना छुए नवजातों में बिलीरुबिन स्तर की जांच के लिए दर्द रहित डिवाइस विकसित की

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (2004) के अनुसार एक प्रकार की मस्तिष्क क्षति कर्निकटेरस को कम करने के लिए नवजात शिशुओं में बिलीरूबिन के स्तर की सावधानीपूर्वक जांच अनिवार्य है। कर्निकटेरस के परिणामस्वरूप बच्चे के रक्त में बिलीरुबिन का स्तर बढ़ सकता है। हालांकि तेजी से फैलने वाली रक्त वाहिकाओं के संग्रह और उसके बाद के जैव रासायनिक परीक्षण को नवजात शिशुओं में पीलिया का पता लगाने के लिए एक स्वर्ण मानक माना जाता है, फिर भी गैर आक्रामक उपकरणों का उपयोग करके नवजातों में ट्रांसक्यूटेनियस बिलीरुबिन मापने का स्पष्ट रूप से अतिरिक्त फायदा है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत कोलकाता स्थित एस.एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज (एसएनबीएनसीबीएस) के प्रोफेसर समीर के. पाल और उनकी टीम ने एजेओ नियो नाम का एक उपकरण विकसित किया है। एसएनबीएनसीबीएस डीएसटी द्वारा वित्त पोषित तकनीकी अनुसंधान केंद्रों (टीआरएस) में से एक है और नील रतन सिरकर (एनआरएस) मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के साथ वैज्ञानिक अनुसंधानों की मेजबानी भी कर रहा है। बाजार में मौजूद अन्य बिलीरुबिन मापकों की सीमाओं से परे इस डिवाइस का संचालन गैर-संपर्क और गैर इनवेसिव स्पेक्ट्रोमेट्री पर आधारित तकनीकों से होता है।

https://dst.gov.in/snbncbs-develops-no-touch-painless-device-non-invasive-screening-bilirubin-level-new-borns

 

आईआईए वैज्ञानिकों ने ब्लैक होल, आकाशगंगा और क्षुद्र ग्रहों की घटनाओं के सह-विकास को फिर से विकसित करने के लिए मॉडल बनाया

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) के शोधकर्ताओं ने एक मॉडल तैयार किया है, जो ब्लैक होल, मंदाकिनी और  क्षुद्र ग्रहों की घटनाओं से जुड़े परिदृश्यों के निर्माण में मदद कर सकता है।

ब्रह्मांडीय स्पिन और ब्लैक होल के बड़े पैमाने पर विकास संबंधी यह अध्ययन आईआईए के डी. भट्टाचार्य और ए. मंगलम ने किया। यह शोध एस्ट्रोफिजिकल जर्नल, 2020 में प्रकाशित किया गया है। यह ब्लैक होल के इतिहास की रूपरेखा प्रस्तुत करने में मदद कर सकता है। इसकी मदद से वर्तमान में कोई भी तारकीय घटनाओं के माध्यम से ब्लैक होल बनने के अतीत को फिर से देख सकता है और उसकी उत्पत्ति के गुणों का अनुमान भी लगा सकता है।

https://dst.gov.in/iia-scientists-model-redraw-co-evolution-black-hole-and-galaxy-and-stellar-capture-scenarios

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