सूचना और प्रसारण मंत्रालय

डिजिटल माध्यमों की तरफ रुझान ने फिल्मकारों की सोच को बदल दिया हैः आईएफएफआई 51 के ‘इन कन्वर्सेशन’ सत्र के दौरान आदित्य विक्रम सेनगुप्ता


“फिल्म निर्माण काफी हद तक एक डायरी लिखने जैसा है”

ओटीटी की मदद से काफी कंटेंट का निर्माण हो रहा है, लेकिन इसे “परिपक्व होने” का समय नहीं मिला

एनालॉग से डिजिटल की तरफ बदलते रुझान ने फिल्म-निर्माण की कला को ही नहीं, बल्कि फिल्म निर्माण के बारे में फिल्मकारों की सोच को भी बदल दिया है। फिल्म निर्माण के क्षेत्र में डिजिटलीकरण एक गेम चेंजर की भूमिका निभा रहा है। पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक, सिनेमेटोग्राफर और ग्राफिक डिजाइनर आदित्य विक्रम सेनगुप्ता को ऐसा लगता है कि डिजिटल युग के आने से, रीटेक लेना काफी आसान हो गया है और विज्युअलाइज़ेशन का महत्व कम हो गया है। किसी तस्वीर को कैमरे में कैद करने की प्रक्रिया भी अब वास्तविक नहीं है51वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के अवसर पर वर्चुअल माध्यम के जरिए इन कन्वर्जेशन कार्यक्रम में पत्रकार और विजुअलाइजेशन के अतीत, वर्तमान और भविष्यविषय पर बनी डॉक्युमेंट्री के निर्माता रोहित गाँधी के साथ बातचीत में सेनगुप्ता ने कहा कि, पुराने दौर में चीज़ों की खोज करना भी एक जादू हुआ करता था, फिर चाहे वो फोटोग्राफी के माध्यम से कुछ खोजकर लाना ही क्यों न हो।

 

सैलुलॉयड पर अपनी अगली फिल्म का निर्माण करने की योजना बना रहे फिल्मकार ने कहा कि मैं तो एक फिल्म को आगे बढ़ने में मदद करने का केवल एक माध्यम हूं। जीवन में मिलने वाली प्रेरणा और प्रभाव के बारे में उन्होंने कहा कि मेरे बचपन, मेरी परवरिश और मेरे बचपन से बड़े होने तक की विभिन्न घटनाओं का प्रभाव मेरी फिल्मों पर दिखाई देता है। मेरा कोलकाता के साथ घनिष्ठ रिश्ता रहा है। मैं युवा उम्र से ही कोलकाता के काफी करीब रहा हूं। सेनगुप्ता ने कहा कि वह हमेशा एक डॉक्टर बनना चाहते थे, फिल्म निर्माण का करियर तो अचानक से उनके जीवन में आ गया। मेरा विचार ज़िंदगी से प्यार करना और लोगों के साथ इस प्यार को बांटना था। उन्होंने कहा कि फिल्म निर्माण काफी हद तक एक डायरी लिखने के जैसा है। यह मेरे लिए एक औज़ार की तरह है, जो मुझे मेरे विचारों को अभिव्यक्त करने का मंच प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि सिनेमा को अब एक कला के रूप में नहीं देखा जाता। लोग अब अधिक से अधिक सामग्री का निर्माण करने में व्यस्त हैं। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में फिल्म को बेहतर और प्रभावशाली बनाने के लिए समय नहीं दिया जा रहा।

 

सेनगुप्ता ने आगे कहा, सभी फिल्मों को एक समान श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। मेरी फिल्मों का फाइनेंसियल मॉडल राजकुमार हिरानी की फिल्मों से काफी अलग है। मेरी फिल्मों का माध्यम, आय, वितरण यहां तक कि दर्शक और बाज़ार भी बिल्कुल अलग हैं।

वर्ष 2014 में अपनी पहली फिल्म से 62वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के दौरान सर्वश्रेष्ठ फिल्म श्रेणी में इंदिरा गांधी अवार्ड जीतने वाले फिल्मकार का मानना है किबॉलिवुड अभी भी पुराने फिल्मी फॉर्मुले पर काम कर रही हैं। हालाँकि पहले फिल्म की एक ठोस और मज़बूत कहानी हुआ करती थी। लेकिन अब कहानी काफी कमज़ोर नज़र आती है, जिसमें सुधार के लिए काफी काम करने की ज़रूरत है। वह ख़ुद को बॉलिवुड में बहुत ज़्यादा दिलचस्पी रखने वाला इंसान मानते, जो मिथुन चक्रवर्ती का बहुत बड़ा फैन था, और अनिल कपूर की फिल्मों को देखना पसंद करता था।

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एमजी/एएम/पीजी




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