सूचना और प्रसारण मंत्रालय

"हम अपने प्रियजनों की सुरक्षा के लिए सोशल मीडिया का उपयोग क्यों नहीं करते?" : टीम सेफ


हमनेअपने मोबाइल फोन में ही एक समानांतर ब्रह्मांड बनाया हुआ है; हमें अपनी औरपरिजनों की सुरक्षा के लिए भी इसका उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए: सेफके निर्देशक प्रदीप कलिपुरयाथ

"अगर कोई आगे बढ़ कर सामने आता है और सेफ के विचार को लागू करता है, तो इससे बहुत बड़ा बदलाव आएगा": निर्माता डॉ के. शाजी

Posted On: 19 JAN 2021 7:41PM by PIB Delhi

हम अपने प्रियजनों की सुरक्षा के लिए सोशल मीडिया का उपयोग क्यों नहीं करते? यह सवाल भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव -आईएफएफआई के 51वें संस्करण में भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म में सेफ (SAFE) के निर्माताओं- डेब्यू डायरेक्टर प्रदीप कलिपुरयाथ और प्रोड्यूसर डॉ के. शाजी द्वारा द्वारा उठाया गया है। वे भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के 51वें संस्करण में आज आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। 

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श्री प्रदीप कलिपुरयाथ नेकहा कि, "फिल्म के माध्यम से हमारी कोशिश यही है कि, किसी प्रतिकूल घटना कोहोने से पहले उसे रोकने के लिए एक बहुत ही सरल सिद्धांत पर चलने की कोशिशकी जाए। इसलिए हमने एक ऐसी फिल्म चुनी है, जो इसे चित्रित करेगी। यह फिल्मनारीत्व की बड़ी अवधारणा को विस्तारित करती है, नारीवाद को सीमित नहीं करतीहै। इस फिल्म के सभी पात्र एक-दूसरे के साथ खड़े हैं।”

'सेफ’ फिल्म महिलाओं की सुरक्षा के महत्वपूर्ण और प्रासंगिक मुद्दे तथा महिलाओंके मन - मस्तिष्क में रहने वाले नियमित भय पर रोशनी डालती है। इस मुद्दे कोउठाने के साथ ही यह फिल्म प्रौद्योगिकी एवं सोशल मीडिया के माध्यम सेसमाधान प्रदान करके एक कदम और आगे भी बढ़ जाती है।

फिल्म कीसंकल्पना के बारे में बताते हुए प्रदीप ने कहा कि: “इस फिल्म का कॉन्सेप्टनिर्माता ने स्वयं लिखा था। उनकी तीन बेटियां हैं और वह देखना चाहते थे कि, कैसे वे उन्हें सुरक्षित महसूस करा सकते हैं। वह इसी विचार के साथ आगे आयेथे ताकि यह प्रभावी रूप से उन लोगों तक पहुंचाया जा सके जो कुछ समाधानोंके साथ बढ़कर सामने आ सकते हैं। हमने इस काम को करने के लिए फिल्म को अपनेमाध्यम के रूप में चुना था।”

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प्रदीप ने कहा कि, “इनदिनों, सोशल मीडिया हमारे जीवन में बहुत सारी चीजें तय कर रहा है। तकनीकीरूप से अगर देखें तो हमने अपने मोबाइल फोन में एक समानांतर ब्रह्मांड बनायाहुआ है और इसलिए हमें अपनी सुरक्षा के लिए भी इसका उपयोग करने में सक्षमहोना चाहिए।”

निर्देशक प्रदीप ने कहा कि "आईएफएफआई पहला ऐसा मंचहै, जहां हमें अंतरराष्ट्रीय दर्शक मिले हैं। यह एक चिंगारी है जो अगलीफिल्म की लौ पैदा कर सकती है।"

निर्माता डॉ के. शाजी ने फिल्म कीउत्पत्ति के बारे में बताते हुए उल्लेख किया कि, "हम हर दिन महिलाओं केखिलाफ होने वाले अपराध की कहानियों के बारे में समाचार पढ़ते हुए जागतेहैं। हमारे आस-पास इतने सारे तंत्र होने के बावजूद ऐसी घटनाएं होती ही रहतीहै। इस सोच को एक फिल्म के रूप में विकसित किया गया था। सेफ वास्तव में एकविचार है, जिसे कहीं पर भी लागू किया जा सकता है।”

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फिल्मकी टीम ने यह भी बताया था कि, इस फिल्म के निर्माण के दौरान, एक आईटी टीमने एक एप्लिकेशन भी विकसित किया था, जिसे प्रयोग में लाने के लिए वे किसीभी एजेंसी से संपर्क करने की उम्मीद में थे। फिल्म निर्माता ने आशा व्यक्तकी कि, यदि कोई इस विचार को आगे बढ़ाने के लिए सामने आता है और जब यहअनुप्रयोग एक वास्तविकता बन जाता है तो एक महान परिवर्तन आ सकता है।



निर्देशकप्रदीप ने यह भी बताया कि, उनकी प्रेरणा फेसबुक जैसे सोशल मीडियाप्लेटफॉर्म की सफलता है जो किसी कॉलेज से निकलकर हमारे पास अब तक के सबसेबड़े कनेक्टर्स में से एक बन चुका है।


सेफ के बारे में

अपनीपत्नी की मृत्यु के बाद श्रीधरन की दुनिया उसकी दो बेटियों श्वेता औरश्रेया के इर्द-गिर्द ही घूमती है। अचानक एक दिन श्वेता गायब हो जाती है।पिता उसकी खोज में 10 साल लगाता है लेकिन वह असफल रहता है। इस बीच, श्रेयाभारतीय पुलिस सेवा के लिए अर्हता प्राप्त कर लेती है और सिटी पुलिस कमिश्नरका पद-भार लेती है। चूंकि वह अपनी बहन के मामले की गुप्त रूप से जांच करतीरहती है, इसलिए वह एक सेलिब्रिटी के खिलाफ यौन शोषण के मामलों का पिटाराखोलती है। इसी दौरान एक सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति सेफ नाम का एक महिलासुरक्षा आंदोलन भी शुरू करती है। लेकिन श्रेया वहम का शिकार हो जाती है औरवह अपने अतीत में बहक जाती है। इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ सामाजिक रूप सेप्रासंगिक फिल्म के लिए कलाभवन मणि मेमोरियल पुरस्कार जीता है।


एमजी/ एएम/ एन/केजे



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