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बांग्लादेश की मुक्ति की 50वीं वर्षगांठ पर मुख्य देश के रूप में चयन बांग्लादेश के लिए सच्चा सम्मान : फिल्म निर्देशक तनवीर मुकम्मल

Posted On: 17 JAN 2021 7:24PM by PIB Delhi

बांग्लादेश के अनुभवी फिल्म निर्देशक और लेखक श्री तन्वीर मुकम्मल ने कहा, हमें खुशी है कि इस साल आईएफएफआई में बांग्लादेश को मुख्य देश के रूप में चुना गया है और हम इसके लिए आयोजकों को बहुत बहुत धन्यवाद देते हैं। वह अपनी फिल्म रूपसा नोदिर बांके (रूपसा नदी का शांत प्रवाह) की स्क्रीनिंग के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में बोल रहे थे। यह फिल्म एक वामपंथी नेता के जीवन पर आधारित एक काल्पनिक बायोपिक है।

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आईएफएफआई में भाग लेने के लिए आमंत्रण देने पर भारत सरकार और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के प्रति आभार प्रकट करते हुए श्री तनवीर ने कहा कि यह एक यादगार वर्ष है, क्योंकि इस साल बांग्लादेश की मुक्ति के साथ-साथ भारत और बांग्लादेश के बीच राजनयिक संबंधों की 50वीं वर्षगांठ है। आईएफएफआई के 51वें संस्करण में फोकस देश के रूप में रूपसा नोदिर बांके के अलावा श्री तनवीर द्वारा निर्देशित एक अन्य फिल्म जिबोनधूलि का प्रदर्शन भी किया जा रहा है।

इसमें फोकस देश एक विशेष खंड है, जो उस देश के सिनेमाई उत्कृष्टता और अंशदानों को मान्यता देता है। इस भाग के उद्घाटन समारोह के रूप में, आज पणजी गोवा में आइनॉक्स में आज रूपसा नोदिर बांके रूपसा नदी का शांत प्रवाह का प्रदर्शन किया गया था।

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फिल्म के बारे में विस्तार से बताते हुए, श्री तनवीर ने कहा कि रूपसा नोदिर बांके एक वामपंथी नेता की कहानी है, जो पूर्ण रूप से समर्पित और गुणवत्ता वाला था लेकिन वक्त उसके खिलाफ था। वह हवा के  खिलाफ भागता रहा। वह काफी हद दक ग्रीस के उस दुखद पात्र की तरह है जिसका अंत निश्चित है, हालांकि उसकी अपनी कोई गलती नहीं होती है। फिल्म के नायक ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया था; उसने 1943 में पड़े सूखे के दौरान भी गरीबों की सेवा की थी और 1947 में दंगों का विरोध करने की कोशिश की थी। इन कष्टकारी अनुभवों से गुजरने के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों ने वर्ष 1971 में उसकी हत्या कर दी थी।

इस ऐतिहासिक फिल्म के निर्माण के दौरान सामने आई चुनौतियों का वर्णन करते हुए, निर्देशक ने न सिर्फ किताबों बल्कि घटनाओं, रंगमंच की सामग्री और परिधानों आदि पर किए गए शोध पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ऐसी फिल्म बनाने वालों को इसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि वह बनावटीपन के खिलाफ हैं, इसलिए उन्होंने सेट्स बनाने से परहेज किया।

उन्होंने प्रतिष्ठित अभिनेता सौमित्र चटर्जी पर अपने विचार साझा किए, जिनका बीते साल निधन हो गया था। श्री तनवीर ने अभिनेता को याद करते हुए कहा कि सौमित्र चटर्जी एक महान कलाकार थे और बंगाली सिनेमा ने एक वास्तविक आइकॉन को खो दिया है।

इस साल आईएफएफआई महान फिल्म निर्माता सत्यजीत रे को श्रद्धांजलि दे रहा है और यहां पर उनकी चुनिंदा फिल्में चारुलता, घरे बाइरे, पाथेर पांचाली, शतरंज के खिलाड़ी और सोनार केल्ला का प्रदर्शन किया जाएगा।

रे की फिल्मों के लिए व्यापक प्यार प्रदर्शित करते हुए, श्री तनवीर मुकम्मल ने कहा कि वह सत्यजीत रे की सभी रचनाओं के बारे में बता सकते हैं, क्योंकि हम सभी रे की फिल्में देखते हुए ही बड़े हुए हैं। उन्होंने कहा, वह एक युग प्रवर्तक, एक प्रतिभाशाली फिल्म निर्माता और स्पष्टवादी शख्स थे, जिनके विचार खासे स्पष्ट थे। उनकी अभिव्यक्ति शानदार थी। उन्होंने कहा, उन्हें दा विंची ऑफ बंगाल कहा जा सकता है।

श्री तनवीर ने दुख जाहिर करते हुए कहा, रे जैसे लोग एक दौर में अकेले होते हैं और हमें दूसरा सत्यजीत रे नहीं मिला। यदि कोई उनके काम के तरीके पर अमल करता है तो हर शॉट सुव्यस्थित होगा और कोई गलती नहीं होगी। लेकिन, बदकिस्मती से इन दिनों रे की तरह फिल्म निर्माण का चलन नहीं है।

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संवाददाता सम्मेलन में फिल्म के सम्पादक श्री महादेब शी ने वर्षों तक तनवीर मुकम्मल के साथ काम कनरे का अनुभव साझा किया। सम्पादक ने कहा, यह फिल्म महोत्सव के लिए खासी उपयुक्त है, क्योंकि इसकी विषयवस्तु बहुत आम है। मैं पिछले 20 साल से तनवीर के साथ काम कर रहा हूं। हम समान विचारों और मूल्यों में विश्वास करते हैं। तनवीर आम लोगों और मानवता के लिए फिल्म बनाते हैं।

महोत्सव के निर्देशक श्री चैतन्य प्रसाद भी इस अवसर पर उपस्थित रहे। श्री चैतन्य प्रसाद ने इसे महामारी के बाद सिनेमा के माध्यम से उत्कृष्टता के एक सेतु के निर्माण का प्रयास बताते हुए कहा, आईएफएफआई बांग्लादेश के लिए देश केन्द्रित खंड को जगह देखकर बेहद सम्मानित और खास महसूस कर रहा है। भारत और बांग्लादेश के राजनियक संबंधों के 50 साल पूरे होने के कारण यह हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।

फिल्म के कला निर्देशक उत्तम गुहा और परिधान डिजाइनर व कास्टिंग निर्देशक चित्रलेखा गुहा भी इस अवसर पर मौजूद रहीं।

पृष्ठभूमि :

रूपसा नोदिर बांके एक वामपंथी नेता पर बनी फिल्म है, जो ग्रीस के दुखद पात्र की तरह जीवन भर अपनी किस्मत के खिलाफ लड़ाई लड़ता रहा। नायक के संघर्ष के साथ ही फिल्म में अंग्रेज विरोधी स्वदेशी आंदोलन, 1947 का भारत विभाजन, बंगाल के किसानों का तेभागा आंदोलन,  पाकिस्तान का निर्माण, राजशाही में जेल के भीतर राजनीतिक कैदियों की हत्या और आखिर 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश का मुक्ति युद्ध भी दिखाया गया है।

श्री तनवीर मुकम्मल बांग्लादेश के एक जाने माने फिल्म निर्माता हैं, जिन्हें अपनी फिल्मों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। अभी तक, वह सात फीचर फिल्म और 14 वृत्तचित्र बना चुके हैं।

 

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