स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय 2020 उपलब्धियां

Posted On: 30 DEC 2020 10:59AM by PIB Delhi
  1. भारत सरकार द्वारा कोविड-19 के नियंत्रण और प्रबंधन के लिए उठाए गए कदम

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 11 मार्च को कोविड-19 को एक महामारी घोषित किया और सभी देशों से इस जन स्वास्थ्य संकट के खिलाफ तत्काल और तेज कार्रवाई करने की अपील की। 21 दिसंबर, 2020 तक, पूरे विश्व में इससे 222 देश/क्षेत्र प्रभावित हैं।

भारत के एकजुट सरकार और एकजुट समाज दृष्टिकोण के माध्यम से कोविड-19 प्रबंधन के प्रयास के साथ, भारत अपने यहां कुल मामलों और मौतों को सीमित रखने में सक्षम है। 29 दिसंबर, 2020 तक, भारत में कुल पुष्ट मामलों की संख्या 10,224,303 (2,68,581 सक्रिय मामलों के साथ जो कुल मामलों का 2.62% है) दर्ज की गई। 98,07,569 (95.92%) मामलों में लोग स्वस्थ हो चुके हैं, जबकि मौत के मामले 1.45% हैं, जो विश्व में सबसे कम दरों में से एक है.

भारत में इस प्रकोप के बढ़ते असर ने इसके संक्रमण को रोकने, जीवन को बचाने और प्रभाव को सीमित करने के लिए अग्रिम रूप से, पूर्व सक्रिय, स्थितियों के अनुसार वर्गीकृत, एकजुट सरकार-एकजुट समाज दृष्टिकोण के साथ एक व्यापक रणनीति बनाने की जरूरत पैदा कर दी।

इस बीमारी को देश में घुसने से रोकने और इसे नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार ने सिलसिलेवार ढंग से कई कदम उठाए। माननीय प्रधानमंत्री ने विषयों को समझने और प्रभावी कोविड प्रभावी प्रबंधन के लिए राज्यों के साथ सहयोग के लिए स्वयं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों व सभी हितधारकों के साथ नियमित रूप से बातचीत की। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन की अध्यक्षता में विदेश मंत्री, नागरिक उड्डयन मंत्री, गृह राज्य मंत्री, जहाजरानी मंत्री और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री से मिलकर बने मंत्री समूह ने 3 फरवरी, 2020 को अपने गठन के बाद से 22 बैठकें कीं। कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में गठित सचिवों की समिति ने सभी संबंधित स्वास्थ्य, रक्षा, विदेश मंत्रालय, नागरिक उड्डयन, गृह, कपड़ा, दवा, वाणिज्य मंत्रालयों और राज्यों के मुख्य सचिवों समेत अन्य अधिकारियों के साथ नियमित समीक्षा बैठकें कीं।

भारत सरकार ने देश में कोविड-19 प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं के आधार पर 29 मार्च 2020 को 11 अधिकार प्राप्त समूह किए, ताकि वे (i) आपातकालीन चिकित्सा योजना, (ii) अस्पतालों की उपलब्धता, आइसोलेशन और क्वारंटीन सविधाएं, रोग की निगरानी और परीक्षण (iii) आवश्यक चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने, (iv) मानव संसाधन और क्षमता निर्माण में तेजी लाने, (v) आपूर्ति श्रृंखला और साजोसामान का प्रबंधन करने, (vi) निजी क्षेत्र के साथ समन्वय, (vii) आर्थिक और कल्याणकारी उपाय करने, ( viii) सूचना, संचार और जनजागरूकता, (ix) तकनीकी और आंकडों के प्रबंधन, (x) जन शिकायत और (xi) लॉकडाउन संबंधी रणनीतिक मुद्दों जैसे तमाम विषयों के बारे में उपयुक्त फैसले कर सकें। इन समूहों को 10 सितंबर को आवश्यकता और नई परिस्थितियों के अनुसार पुनर्गठित किया गया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों के साथ नियमित रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंस की। एमओएचएफडब्ल्यू को तकनीकी मामलों में सलाह देने वाले डीजीएचएस के नेतृत्व में संयुक्त निगरानी समूह (जेएमजी) ने जोखिम का आकलन करने, तैयारियों और प्रतिक्रिया संबंधी व्यवस्थाओं की समीक्षा करने और तकनीकी दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देने के लिए अब तक कई बैठकें की हैं।

भारत सरकार ने, अतीत में महामारियों और बीमारियों के सफलतापूर्वक प्रबंधन के अपने अनुभव के आधार पर, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को अपेक्षित रणनीति, योजनाएं और प्रक्रियायों की जानकारी उपलब्ध कराई। इसमें स्वास्थ्य कर्मियों के लिए प्रेरणादायक दिशानिर्देशों समेत यात्रा, व्यवहार व मनो-सामाजिक स्वास्थ्य, निगरानी, प्रयोगशाला सहायता, अस्पताल का बुनियादी ढांचा, चिकित्कीय प्रबंधन, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई)के उचित उपयोग इत्यादि जैसे विस्तृत पर नियंत्रणकारी योजनाएं और दिशानिर्देश शामिल थे।

भारत सरकार ने कोविड के प्रसार को रोकने/दबाने के लिए कई अन्य उपायों को भी अपनाया। यात्रा संबंधी पहली सलाह 17 जून, 2008 को जारी की गई और जैसे-जैसे स्थितियां बदलीं, उसके अनुरूप यात्रा संबंधी परामर्श में क्रमिक रूप से बदलाव किए गए। सभी देशों से आने वाले यात्रियों की एक तरफ से जांच शुरू की गई और 23 मार्च, 2020 (सभी वाणिज्यिक उड़ानों के निलंबन तक), तक सभी हवाई अड्डों पर कुल 15,24,266 यात्रियों के साथ कुल 14,154 उड़ानों की जांच की गई। इन हवाई अड्डों के अलावा, लगभग 16.31 लाख लोगों की स्थलीय सीमाओं पर और 12 प्रमुख, 65 छोटे बंदरगाहों पर लगभग 86,379 व्यक्तियों की जांच की गई।

भारत सरकार ने सलाह दी कि 22 मार्च, 2020 से एक भी अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक यात्री विमान को विदेश के किसी भी हवाई अड्डे से भारत के किसी भी हवाई अड्डे के लिए उड़ान भरने की अनुमति नहीं होगी। इस सलाह से 7 मई 2020 को वन्दे भारत मिशन की उड़ानों को बाहर रखा गया, जिसका उद्देश्य कोविड-19 महामारी के कारण विभिन्न देशों में फंसे भारतीयों को वापस लाना था। मंत्रालय ने 24 मई, 2020 को भारत आने वाली अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए एक दिशानिर्देश भी जारी किया था, जिसकी 2 अगस्त, 2020 को समीक्षा की गई थी।

शुरुआती दिनों में ही समुदाय का व्यापक स्तर पर मार्गदर्शन करने के लिए एक समर्पित कॉल सेंटर/हेल्पलाइन नंबर (1075) शुरू किया गया था, जिसका नागरिकों की ओर से बहुत प्रभावी और नियमित रूप से उपयोग किया जा रहा है। शुरुआत में यात्रा संबंधी कोविड मामलों का पता लगाने के लिए सामुदायिक निगरानी शुरू की गई और बाद में एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) द्वारा समुदाय से मामलों की सूचना दी जाने लगी।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने क्लस्टर और बड़े स्तर पर प्रसार को रोकने के लिए क्रमशः 2 मार्च और 4 अप्रैल, 2020 को नियंत्रण संबंधी योजनाओं को जारी किया और इन योजनाओं में समय-समय पर सुधार किया गया था। इन नियंत्रण संबंधी योजनाओं में (i) नियंत्रित और बफर जोन को परिभाषित करना, (ii) परिक्षेत्र नियंत्रण को सख्ती से लागू करना, (iii) मामलों और संपर्कों का पता लगाने के लिए घर-घर सक्रिय सघन जांच, (iv) संदिग्ध मामलों और उच्च जोखिम वाले संपर्कों को अलग रखना और जांच करना, (v) उच्च जोखिम वाले संपर्कों को क्वारंटीन करना, (vi) बचाव के सरल उपायों और शीघ्र उपाचार की मांग करने के बारे में सामुदायिक जागरूकता बढ़ाने के लिए जोखिम को उसकी गंभीरता के साथ प्रसारित करना (vii) नियंत्रित व बफर जोन में निष्क्रिय इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारियों (आईएलआई)/सांस संबंधी गंभीर बीमारियों(एसएआरआई) की निगरानी बढ़ाते हुए संक्रमण के प्रसार की कड़ी को तोड़ने की एक रणनीति की परिकल्पना की गई है।

प्रयोगशालाओं के नेटवर्क को लगातार मजबूत किया जा रहा है। जहां जनवरी में कोविड जांच के लिए सुसज्जित एकमात्र प्रयोगशाला की स्थिति थी, वहीं दिसंबर खत्म होते-होते 2288 प्रयोगशालाएं (30 दिसंबर 2020 तक) कोविड-19 जांच का काम कर रही हैं। लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड के साथ-साथ अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों, लक्षद्वीप और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह जैसे कठिन क्षेत्रों में प्रयोगशालाओं को स्थापित किया गया है। वर्तमान में प्रतिदिन कोविड जांच 15 लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है, जो डब्ल्यूएचओ ओर से निर्धारित प्रति 10 लाख आबादी पर प्रतिदिन 140 जांच की तुलना में बहुत अधिक है। 30 दिसंबर 2020 को अब तक कुल 17,09,22,030 नमूनों को जांचा जा चुका है। पहले जहां कोविड के लिए प्रयोगशाला जांच या परीक्षण मशीनों के लिए स्वदेशी निर्माता नहीं थे, आज भारत के पास प्रतिदिन 10 लाख से अधिक किट की स्वदेशी उत्पादन क्षमता है।

कोविड-19 मामलों के उचित प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की त्रि-स्तरीय व्यवस्था बनाई गई, [(i) हल्के या रोग संबंधी शुरुआती लक्षणों वाले मामलों के लिए आइसोलेशन बेड के साथ कोविड देखभाल केंद्र; (ii) मध्यम लक्षणों वाले मामलों के लिए ऑक्सीजन युक्त आइसोलेशन बेड के साथ समर्पित कोविड हेल्थ सेंटर (डीसीएची) और (iii) गंभीर मामलों के लिए आईसीयू बेड के साथ समर्पित कोविड हॉस्पिटल (डीसीएच)] को लागू किया गया है। ईएसआईसी, रक्षा, रेलवे, अर्धसैनिक बलों और इस्पात मंत्रालय आदि के तहत काम करने वाले तृतीयक देखभाल अस्पतालों को कोविड मामलों के प्रबंधन में लगाया गया है।

29 दिसंबर 2020 तक, बिना ऑक्सीजन वाले 12,67,127 आइसोलेशन बेड के साथ कुल 15,378 कोविड उपचार सुविधाओं को बनाया गया है। इसके अलावा, कुल 2,70,710 ऑक्सीजन सहित आइसोलेशन बेड और 81,113 आईसीयू बेड (40,627 वेंटिलेटर बेड सहित) बनाए जा चुके हैं। रोग के रुझान की निरंतर निगरानी, उपलब्ध बुनियादी ढांचे के विश्लेषण और भविष्य के लिए अग्रिम तौर पर योजना निर्माण ने एक बड़े संकट को टाल दिया है, जिससे कई विकसित देशों को जूझना पड़ा था। इसके अलावा, 5,91,496 बेड वाले कुल 12,669 क्वारंटीन सेंटर भी बनाए गए हैं।

कोविड-19 के चिकित्सकीय प्रबंधन पर दिशानिर्देशों को जारी किया गया था। उनमें नियमित रूप से सुधार किया गया और उनका व्यापक तौर पर प्रचार-प्रसार भी किया गया था। इसमें संक्रमण की परिभाषा, संक्रमण को रोकने उपाय, प्रयोगशाला में जांच, शुरुआती सहायक उपचार, गंभीर मामलों और जटिलटाओं का प्रबंधन शामिल था। इसके अलावा, चिकित्सकों की सघन निगरानी में गंभीर मामलों के प्रबंधन के लिए रेमेडिसविर, कोरोना संक्रमण से मुक्त हो चुके व्यक्ति के प्लाज्मा और टोसिलिजुमब का इस्तेमाल करते हुए अन्वेषी उपचार की व्यवस्था की गई थी।

उपचार की इन मानकीकृतप्रक्रियाओं का प्रसार सुनिश्चित करने और मौतों के मामलों को अधिकतम सीमा तक घटाने के मकसद से कई कदम उठाए गए थे। कोरोना के चिकित्कीय प्रबंधन के लिए डॉक्टरों को सलाह देने के लिए एम्स कोरोना हेल्पलाइऩ 9971876591 को शुरू किया गया था। दिल्ली का एम्स कोविड-19 नेशनल टेली-कंसल्टेंशन सेंटर (सीओएनटीईसी) चलाता है, जहां तक +91-9115444155 नंबर से पहुंचा जा सकता है। यह देश में कहीं भी काम करने वाले डॉक्टरों को सेवा उपलब्ध कराता है, जो कोविड-19 मरीजों के साथ-साथ सामान्य जनता के इलाज में सलाह लेने के लिए एम्स के संकाय सदस्यों से संपर्क करना चाहते हैं। टेली-परामर्श उपलब्ध कराने के लिए टेली-मेडिसिन दिशानिर्देशों को जारी किया गया है, ताकि मरीजों को उनकी बीमारियों के बारे में उचित सलाह मिल सके और चिकित्सालयों पर भीड़ न जमा हो। यह सीमित पहुंच वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा रोगियों की देखभाल करने के लिए प्राथमिकता तय करने, उपचार और परामर्श देने में भी मदद कर सकता है।

चिकित्सीय प्रबंधन प्रक्रियाओं (प्रोटोकॉल्स) के बारे में मार्गदर्शन करने के लिए मंत्रालय ने सर्वोच्च नोडल संस्थान के रूप में दिल्ली स्थित एम्स के साथ एक चिकित्सकीय उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) और राज्यों के स्तर पर भी सीओई बनाने की पहल शुरू की थी। एम्स उपचार संबंधी गंभीर विषयों, जिन पर कोविड मामलों के प्रबंधन से जुड़े डॉक्टरों को मदद की जरूरत हो सकती है, पर राज्यस्तरीय सीओई का मार्गदर्शन करने के लिए साप्ताहिक वेबिनार आयोजित कर रहा। इन राज्यस्तरीय सीओई से इसे अपने जिलों में आगे प्रसारित करने की उम्मीद की जाती है।

कोविड और गैर-कोविड, स्वास्थ्य संबंधी दोनों ही मामलों में गुणवत्तापूर्ण उपचार तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए, दूरदराज के क्षेत्रों में, टेलीमेडिसिन के उपयोग को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया गया है। ग्रामीण और दूरदराज के समुदायों, दोनों तक विशेषज्ञ स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाने के लिए ईसंजीवनी’, एक वेब-आधारित व्यापक टेलीमेडिसिन उपाय का उपयोग (23 राज्यों में) किया जा रहा है। 29 दिसंबर 2020 तक, इस डिजिटल प्लेटफॉर्म से 11 लाख से ज्यादा लोगों को उपचार संबंधी परामर्श मिल चुका है।

आईसीएमआर, कोविड पर एक नेशनल क्लिनिकल रजिस्ट्री भी बना रहा है जो कोविड-19 के इलाज के चिकित्सकीय तौर-तरीका, इसका विस्तार और रोगियों के परिणामों के बारे में समझ को बढ़ाएगा।

कोविड वैक्सीन की खरीद और वितरण में तालमेल लाने के लिए, 7 अगस्त, 2020 को भारत सरकार ने नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) की अध्यक्षता में कोविड-19 के लिए वैक्सीन प्रबंधन पर एक राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह का गठन किया है।

भारत सरकार ने जीनोम सीक्वेंसिंग (जीन अनुक्रमण) के लिए 10 प्रयोगशालाओं (एनआईबीएमजी कोलकाता, आईएलएस भुवनेश्वर, एनआईवी पुणे, सीसीएस पुणे, सीसीएमबी हैदराबाद, सीडीएफडी हैदराबाद, आईएनएसटीईएम बेंगलुरु, निमहांस बेंगलुरू, आईजीआईबी दिल्ली, एनसीडीसी दिल्ली) को मिलाकर आईएनएसएसीओजी (इंडियन सार्स कोव-2 जिनोमिक्स कंसोर्टियम) का गठन किया है।

2. आयुष्मान भारत

  • आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स (एबी-एचडब्ल्यूसीएस) के माध्मय से व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (सीपीएचसी) - आयुष्मान भारत का लक्ष्य नियमित देखभाल के दृष्टिकोण को अपनाते हुए प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्तर पर स्वास्थ्य जरूरतों (रोकथाम, प्रोत्साहन और आपातकालीन सेवाओं सहित) को व्यापक रूप से पूरा करना है। किसी व्यक्ति के पूरे में आने वाली कुल स्वास्थ्य जरूरतों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का हिस्सा 80-90 प्रतिशत होता है। स्वास्थ्य सेवाओं के परिणामों और जनता के जीवन गुणवत्ता सुधारने के लिए रोकथाम और प्रोत्साहक स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत होती है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल टीम यह सुनिश्चित करेगी कि उनके क्षेत्र में सामुदायिक पहुंच और प्रत्येक व्यक्ति से संपर्क किया गया है और रोगों को शुररू में ही पहचान लेने और उचित इलाज के लिए भेजने के लिए संचारी व गैर-संचारी रोगों की जांच की गई है। यह टीम आगे यह सुनिश्चित करेगी कि रोगियों द्वारा उपचार को जारी रखने और उनके स्वस्थ होने के बाद की देखभाल का काम समुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में किया जाए। इन केंद्रों का उद्देश्य प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को लोगों के नजदीक पहुंचाना और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक पहुंच के मामले में प्रथम बिंदु के तौर पर काम करना और द्वितीयक व तृतीयक उपचार के लिए रेफरल (रेफर करने वाले) की भूमिका निभाना है। इस प्रकार, मजबूत और लचीली प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को तैयार करने के एक कदम के रूप में, जो जनता की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतें पूरी करे, इन केंद्रों के जरिए आवश्यक दवाओं और जांच की सुविधा के साथ आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को समुदाय के आसपास उपलब्ध कराया गया है।
    • आयुष्मान भारत दो घटकों से बना है:

ए. पहला घटक उपस्वास्थ्य केंद्रों (एसएचसी) और शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) को उन्नत बनाते हुए 1,50,000 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स (एबी-एचडब्ल्यूसी) के निर्माण से जुड़ा है, जो स्वास्थ्य देखभाल को समुदाय के नजदीक लाएगा। ये केंद्र प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य (आरसीएच) और संचारी रोग संबंधी सेवाओं को विस्तार और मजबूती देकर, गैर-संचारी रोगों से संबंधित सेवाओं (सामान्य एनसीडी जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मुंह, स्तन और गर्भाशय के तीन सामान्य कैंसर) और धीरे-धीरे मानसिक स्वास्थ्य, कान, नाक व गला, नेत्र विज्ञान, मुंह संबंधी उपचार, बुजुर्गों का इलाज और दर्द निवारक देखभाल व ट्रामा देखभाल के साथ-साथ योग जैसी स्वास्थ्य व तंदुरुस्ती बढ़ाने वाली गतिविधियों को शामिल करके व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (सीपीएचसी) उपलब्ध कराएंगे। कुछ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने इन अतिरिक्त सुविधाओं को पहले ही चरणबद्ध तरीके से अपने यहां लागू करने की शुरुआत कर दी है।

बी. दूसरा घटक आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) है। आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) के तहत, सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना के आधार पर चिन्हित लगभग 10.74 करोड़ गरीब और जोखिम वाले परिवारों को द्वितीयक और तृतीयक स्तर के अस्पतालों में इलाज के लिए प्रति वर्ष प्रति परिवार पांच लाख रुपये की स्वास्थ्य बीमा का अधिकार मिला है। 13 नवंबर, 2020 तक, 32 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश इस योजना को लागू कर रहे हैं और इस योजना के तहत लगभग 17,300 करोड़ रुपये के खर्च से अस्पतालों में 1.4 करोड़ से ज्यादा दाखिले को अधिकृति किया गया है। इसके अलावा, अंतर-राज्यीय पोर्टेबिलिटी शर्त के तहत अस्पताल में भर्ती होने के 315 करोड़ रुपये की लागत वाले 1.4 लाख से ज्यादा मामलों को अधिकृत किया गया है। इसके अलावा, योजना का लाभ लेने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए अब तक 12.66 करोड़ ई-कार्ड (राज्य सरकारों की ओर से जारी कार्ड सहित) जारी किए गए हैं।

 

2.1 . एबी-एचडब्ल्यूसी की स्थिति के बारे में जानकारी

    • राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ बातचीत और विस्तारित सेवाओं को पहले से लागू कर रहे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के अनुभवों को शामिल करते हुए सेवाओं के चार विस्तारित पैकेज के लिए दिशानिर्देश तैयार किया जा चुका है और शेष तीन दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देने का काम चल रहा है।
    • माननीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने 12 जुलाई को एबी-एचडब्ल्यूसी पोर्टल का ऐप संस्करण जारी किया था ताकि एबी-एचडब्ल्यूसी की जगहों की जियो-टैगिंग की जा सके और अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्रतिदिन उपलब्ध कराए गए स्वास्थ्य मानकों को दर्ज किया जा सके।
    • अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों में गैर-संचारी रोगों की जांच और शुरुआत में पहचान करने के लिए इन केंद्रों पर सेहतमंद स्वास्थ्यकर्मी अभियान शुरू किया गया था। इसके तहत 1 दिसंबर 2020 तक 502 जिलों में 12 लाख से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों की जांच करके उन्हें निवारक, प्रोत्साहक और उपचारात्मक उपायों को लेने में सक्षम बनाया गया है। इसके अलावा उन्हें कोविड-19 के जोखिम के प्रति सावधान भी किया गया, क्योंकि अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों (एफएलडब्ल्यू) के रूप में वे न केवल इन स्वास्थ्य केंद्रों पर अनिवार्य सेवाएं सुनिश्चित करने में शामिल, बल्कि समुदाय आधारित सतर्कता और समुदाय में महामारी के प्रकोप के प्रबंधन संबंधी गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
    • ये केंद्र योग, जुम्बा, ध्यान आदि जैसे तंदुरुस्ती से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों का संचालन करते हैं, जो समुदाय के न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक तंदुरुस्ती में सुधार को सक्षम बनाते हैं। यह परिकल्पना की गई है कि ये केंद्र न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराने वाले केंद्र बिंदु बनेंगे, बल्कि साथ-साथ समुदाय को अपनी स्वास्थ्य जिम्मेदारियों को अपने हाथों को लेने में भी सक्षम बनाएंगे। यह 39 स्वास्थ्य कैलेंडर दिवसों के अतिरिक्त हैजिसमें स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने वाली विभिन्न गतिविधियों पर ध्यान दिया जा रहा है।
    • स्कूल शिक्षा विभाग के सहयोग से स्कूल हेल्थ एंड वेलनेस एंबेस्डर पहल शुरू की गई है। इसके तहत प्रत्येक स्कूल पर दो अध्यापकों को निवारक और प्रोत्साहक स्वास्थ्य देखभाल के बारे में एंबेस्डर के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसे आगामी वर्ष में 200 से अधिक जिलों में लागू करने की योजना है।
    • इसी तरह, सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने इन एबी-एचडब्ल्यूसी पर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा टीम के लिए सही खाएं’(ईट राइट) और सुरक्षित खाएं’ (ईट सेफ) मॉड्यूल का प्रशिक्षण शुरू किया है।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान योजना को विस्तार देने में आने वाली चुनौतियों को समझने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ वर्चुअल माध्यम राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय समीक्षाएं की जा रही है। एक-दूसरे के अनुभव से सीखने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की निरंतरता बनाए रखने के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से अपनाई गई सर्वोत्तम विधियों को अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्रदर्शित किया गया है ।

2.1 बी. एबी-एचडब्ल्यूसी की उपलब्धियां और सेवाओं का वितरण:

  • अब तक, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (दिल्ली को छोड़कर) के लिए 1,04,860 से ज्यादा आयुष्मान भारत-हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स को अनुमति दी गई है और जैसा कि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने एबी-एचडब्ल्यूसी पोर्टल पर जानकारी दी है कि 01 दिसंबर, 2020 तक 50,927 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स ने काम करना शुरू कर दिया है, जिसमें 28,320 एसएचसी स्तर के एबी-एचडब्लूसी, 18,972 पीएचसी स्तर के स्तर एबी-एचडब्लूसी और 3,635 यूपीएचसी स्तर के एबी-एचडब्ल्यूसी शामिल हैं।
  • एचडब्ल्यूसी पोर्टल में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दर्ज नए आंकड़ों के अनुसार, अब तक इन एबी-एचडब्ल्यूसी पर उच्च रक्तचाप के लिए लगभग 6.5 करोड़ और डायबिटीज के लिए लगभग 5 करोड़ जांचें हो चुकी हैं। इसी तरह, कामकाज शुरू कर चुके इन एबी-एचडब्ल्यूसी ने 3.27 से ज्यादा मुंह के कैंसर, 1.21 करोड़ से ज्यादा गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर और 1.78 से ज्यादा महिलाओं के स्तन कैंसर संबंधी जांचें की हैं।
  • इसके अलावा, 01 दिसंबर 2020 तक, चालू हो चुके एचडब्ल्यूसीएस में कुल 33.07 लाख योग/वेलनेस सत्र आयोजित किए गए हैं।
  • उपस्वास्थ्य केंद्र स्तर के एबी-एचडब्ल्यूसी पर मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा टीम का नेतृत्व सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) करते हैं, जो बीएससी/जीएनएम नर्स या प्राथमिक चिकित्सा और जनस्वास्थ्य कौशल में प्रशिक्षित आयुर्वेदिक चिकित्सक और छह महीने के सामुदायिक स्वास्थ्य में प्रमाणपत्र कार्यक्रम में प्रमाणपत्र धारक या एकीकृत नर्सिंग पाठ्यक्रम में स्नातक होते हैं। टीम के अन्य सदस्यों में, बहुउद्देश्यीय कार्यकर्ता (पुरुष और महिला) और मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) होते हैं। इग्नू और राज्य विशेष की सार्वजनिक/स्वास्थ्य विश्वविद्यालयों के सहयोग से प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। अब तक 276 इग्नू कार्यक्रम अध्ययन केंद्र (पीएससी) को अधिसूचित किया गया है। इसके अलावा राज्य विशेष के प्रमाणपत्र कार्यक्रम के तहत अन्य 272 पीएससी को महाराष्ट्र (107), तमिलनाडु (07), गुजरात (59), उत्तर प्रदेश (66) और पश्चिम बंगाल (33) राज्यों के लिए अधिसूचित किया गया है। इससे देश भर में कार्यक्रम अध्ययन केंद्र (पीएससी) की कुल संख्या 548 हो गई है।
  • चूंकि एबी-एचडब्ल्यूसी में एनसीडी, टीबी और कुष्ठ रोग सहित गंभीर बीमारियों की जांच, रोकथाम और प्रबंधन को शामिल किया गया है, इसलिए सभी चालू हो चुके एबी-एचडब्ल्यूसी में प्राथमिक स्वास्थ्य टीम का एनसीडी के बारे में प्रशिक्षण और कौशल बढ़ाने और आईटी एप्लीकेशन का उपयोग सिखाने का काम शुरू किया गया है।
  • तंदुरुस्त और स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिए, जीवन शैली में बदलाव के लिए सेहतमंद बनाने वाली गतिविधियों की तरफ जनता का ध्यान खींचने के लिए इन केंद्रों पर योग सत्रों के आयोजन के अलावा शारीरिक गतिविधियों (साइक्लेथॉन और मैराथन) को बढ़ाने, सुरक्षित और सही खान-पान अपनाने, तंबाकू और नशीली दवाओं को छोड़ने, ध्यान लगाने, लाफ्टर क्लब, ओपन जिम जैसे प्रयास नियमित रूप से किए जा रहे है। वार्षिक स्वास्थ्य कैलेंडर के माध्यम से, इन केंद्रों पर प्रति दिन की स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार तय गतिविधियों के आयोजन के परिणाम जागरूकता विस्तार और जनता द्वारा निवारक उपायों को अपनाने के रूप में सामने आ रहे हैं।
  • पीएचसी से लेकर हब अस्पतालों तक विशेषज्ञ परामर्श उपलब्ध कराने के लिए राज्यों को टेलीमेडिसिन दिशानिर्देश उपलब्ध कराए गए हैं। अब तक, 23,817 एबी-एचडब्ल्यूसी ने टेली-परामर्श आयोजित किए हैं।

2.2 मानव संसाधन:

एनएचएम ने राज्यों को लगभग 2.65 लाख अतिरिक्त स्वास्थ्य मानव संसाधन देकर मानव संसाधन की कमी को भरने की कोशिश है, जिसमें संविदा के आधार पर 11,921 जीडीएमओ, 3,789 विशेषज्ञ, 73,619 स्टाफ नर्स, 81,978 एएनएम, 441414 पैरामेडिक्स, 460 जनस्वास्थ्य प्रबंधक और 17,222 कार्यक्रम प्रबंधन कर्मचारियं की नियुक्ति शामिल है। मानव संसाधन को नियुक्त करने के लिए वित्तीय सहायता देने के अलावा, एनएचएम ने मानव संसाधनों के बहुपक्षीय कौशल विकास और तकनीकी मार्गदर्शन व प्रशिक्षण के रूप में स्वास्थ्य क्षेत्र में मानव संसाधनों को तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया है। एनएचएम पीएचसी, सीएचसी और डीएचएस जैसी स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ में आयुष सेवाओं को स्थापित करने में सहायता दी है। एनएचएम की वित्तीय मदद से राज्यों में कुल 27,495 आयुष डॉक्टर और 4626 तैनात किये गए है।

2.3 आयुष को मुख्यधारा में लाना:

आयुष को मुख्य धारा में लाने के लिए 7,785 पीएचसी, 2,748 सीएचसी, 496 डीएचएस, एससी से ऊपर व ब्लॉक से नीचे 4,022 स्वास्थ्य सुविधाओं और सीएचसीएस के अतिरिक्त ब्लॉक से ऊपर और जिलास्तर के नीचे 371 स्वास्थ्य सुविधाओं में आयुष सुविधाओं को शुरू किया गया है।

 

2.4 बुनियादी ढांचा:

अत्यधिक ध्यान वाले राज्यों में एनएचएम की 33 प्रतिशत राशि को बुनियादी ढांचे के विकास में लगाया जा सकता है। एनएचएम के तहत जून, 2020 तक देश भर में हुए निर्माण/मरम्मत का ब्यौरा निम्न प्रकार है:

 

सुविधाएं

नए निर्माण

मरम्मत/सुधार

आवंटित

कार्य पूरा

आवंटित

कार्य पूरा

एससी

28150

21249

23225

16548

पीएचसी

2941

2371

15858

13428

सीएचसी

620

499

7339

6379

एसडीएच

242

159

1238

1011

डीएच

175

148

3227

2407

अन्य*

1328

803

1673

847

कुल

33456

25229

52560

40620

 

 

 

 

 

 

* यह सुविधाएं एससी से ऊपर और ब्लॉक स्तर से नीचे हैं

 

2.5 नेशनल एंबुलेंस सर्विस (एनएएस):

आज की तारीख तक 35 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में यह सुविधा हैं, जहां लोग एंबुलेंस बुलाने के लिए 108 और 102 टेलिफोन नंबर डायल कर सकते हैं। डायल 108 मुख्य रूप से एक आपातकालीन प्रतिक्रिया व्यवस्था है, जिसे मूल रूप से गंभीर देखभाल की जरूरत वाले मरीजों, ट्रॉमा और दुर्घटना पीड़ितों के लिए बनाया गया है। डायल 102 सेवा मरीजों के लिए बुनियादी परिवहन है, जिसका उद्देश्य गर्भवती महिलाओं और बच्चों की जरूरतों को पूरा करना है, भले ही अन्य वर्ग भी इसका लाभ ले रहे हैं और वे बाहर नहीं हैं। जेएसएसके के तहत मिलने वाले घर से अस्पताल तक निशुल्क परिवहन, रेफर किए जाने पर दो अस्पतालों के बीच परिवहन और मां-बच्चे को वापस घर पर छोड़ने की सुविधा देना डायल 102 का मुख्य काम है। कॉल सेंटर के टोल फ्री कॉल पर कॉल करके इस सेवा तक पहुंचा जा सकता है। वर्तमान में, मरीजों, खास तौर पर गर्भवती महिलाओं, बीमार बच्चों को घर से जनस्वास्थ्य सुविधाओं तक लाने और वापस घर छोड़ने के लिए सूचीबद्ध 5,412 वाहनों के अतिरिक्त 10,599 डायल 108 और 10,480 (डायल 102/104) आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवा वाहनों को एनएचएम के तहत आर्थिक सहायता मिली हुई है।

2.6 राष्ट्रीय मोबाइल चिकित्सा इकाइयां (एनएमएमयू):

देश में एनएचएम के तहत 716 जिलों में से 504 में 1677 एमएमयू के लिए मदद दी गई है। दृश्यता, जागरूकता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए, सभी मोबाइल चिकित्सा इकाइयों को एक समान रंग और डिजाइन के साथ राष्ट्रीय मोबाइल चिकित्सा इकाई सेवाके रूप में तैनात किया गया है।

2.7 नि:शुल्क औषधि सेवा पहल:

इस पहल के तहत, राज्यों को मुफ्त दवाओं की व्यवस्था करने और दवाओं को खरीदने के लिए व्यवस्थाएं बनाने, गुणवत्ता सुनिश्चित करने, आईटी आधारित आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रणाली, प्रशिक्षण और शिकायत निवारण इत्यादि के लिए पर्याप्त धनराशि दी जा रही है। एनएचएम-मुफ्त औषधि सेवा पहल के लिए 02 जुलाई, 2015 को विस्तृत परिचालनात्मक दिशानिर्देशों बनाया और राज्यों को जारी किया गया था।

सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने स्वास्थ्य सुविधाओं में आवश्यक दवाएं नि:शुल्क देने की नीति को अधिसूचित किया है। 30 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में आईटी आधारित दवा वितरण प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से दवाओं की खरीद, गुणवत्ता प्रणाली और वितरण को सुव्यवस्थित किया गया है, 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में निगम/खरीद संस्था के माध्यम से केंद्रीकृत खरीद की व्यवस्था है, 29 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एनएबीएल मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएं हैं, 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सुविधाओं के अनुसार ईडीएल हैं, 14 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में परामर्श लेखांकन की व्यवस्था है और 22 राज्यों ने समर्पित टोल फ्री नंबर के साथ कॉल सेंटर आधारित शिकायत निवारण व्यवस्था को शुरू किया है।

2.8 निशुल्क जांच सेवा पहल:

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में रोगों की सुलभ और गुणवत्तापूर्ण जांच की आवश्यकता पूरी करने के लिए, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) ने विशेषज्ञों और राज्यों के अधिकारियों के परामर्श से तैयार नि:शुल्क जांच सेवा पहल के संचालनात्मक दिशानिर्देशों को जुलाई 2015 में जारी किया और राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के बीच प्रसारित किया था।

सरकार ने परिकल्पना की थी कि स्वास्थ्य संबंधी इस कदम से उपचार की प्रत्यक्ष लागत और लोगों की जेब पर पड़ने वाले भार दोनों में कमी आएगी। यह दिशानिर्देश राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को उनकी जनस्वास्थ्य सुविधाओं पर आवश्यक जांच-प्रयोगशाला सेवाएं और रेडियोलॉजी सेवाएं (टेली रेडियोलॉजी और सीटी स्कैन सेवाएं) देने में मदद करता है। 1 नवंबर 2020 तक 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में रोगों की नि:शुल्क जांच प्रयोगशाला सेवाएं लागू की जा चुका हैं। (11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में इसे लोक-निजी भागीदारी(पीपीपी) आधार पर और 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में इसे स्वास्थ्य विभाग की अपनी योजना के तौर पर लागू किया गया है)। मुफ्त डायग्नोस्टिक्स सीटी स्कैन सेवाओं को 23 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लोक-निजी भागीदारी (पीपीपी मोड) में लागू किया गया है और 10 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में इसे स्वास्थ्य विभाग की सेवा के रूप में लागू किया गया है)। 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में निशुल्क टेली रेडियोलॉजी सेवाओं को पीपीपी मोड में लागू किया गया है।

मुफ्त जांच पहल का दूसरा संस्करण भी जारी किया गया है, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत परिकल्पित प्रयोगशाला सेवाओं के विस्तारित विकल्पों के साथ व्यापक दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है। दिशानिर्देशों को लागू करने के बारे में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मार्गदर्शन के लिए एनएचएसआरसी की ओर से एक प्रसार कार्यशाला भी आयोजित की गई थी। पीआईपी 2020-21 में, एनएचएम ने निशुल्क जांच पहल के संशोधित दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए 11 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिए सहायता को मंजूरी दी है।

2.9 बायोमेडिकल उपकरण रखरखाव और प्रबंधन कार्यक्रम:

सभी जन स्वास्थ्य सुविधाओं में काम न करने वाले उपकरणों की समस्या से निपटने के लिए, बायोमेडिकल उपकरण प्रबंधन एवं रखरखाव कार्यक्रम (बीएमएमपी) को लेकर व्यापक दिशानिर्देशों को बनाया और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के बीच प्रसारित किया गया था। 1 नवंबर 2020 तक, बीएमएमपी को 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में पीपीपी मोड में और 7 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में स्वास्थ्य विभाग की सेवा के रूप में) में लागू किया जा चुका है। बीएमएमपी के लागू होने से 95 प्रतिशत समय तक चालू रहने वाले उपकरणों की उपलब्धता के जरिए स्वास्थ्य सुविधाओं में जांच सेवाओं को बेहतर बनाने में मदद मिली है, जिससे मरीजों के देखभाल की लागत घटी है और जनस्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता में भी सुधार आया है। बायोमेडिकल उपकरण प्रबंधन एवं देखभाल कार्यक्रम तकनीकी दिशानिर्देश दस्तावेज को विभाग के भीतर सहायता और लोक-निजी भागीदारी की निगरानी के लिए राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के बीच प्रसारित किया गया है। इन दिशानिर्देशों को लागू करने में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का मार्गदर्शन करने के लिए सितंबर 2020 में वर्चुअल आधार पर दो दिवसीय प्रसार कार्यशाला आयोजित की गई थी।

2.10 सामुदायिक भागीदारी:

ए. मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) : देश भर में एनएचएम के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कुल 10.61 लाख आशा हैं, जो समुदाय और जनस्वास्थ्य प्रणाली के बीच एक कड़ी का काम करते हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आशाओं के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत नियमित और आवर्ती प्रोत्साहनों की मात्रा में बढ़ोतरी को मंजूरी दी है, जिससे अब आशा कम से कम 2000/रुपये प्रति माह पाने में समक्ष हुई हैं, जो पहले 1000 रुपये था। कैबिनेट ने प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत पात्रता शर्तों को पूरा करने वाले सभी आशा और आशा सहायकों को शामिल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जिसकी सारी वित्तीय जिम्मेदारी भारत सरकार की होगी।

प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना (पीएम-एसवाईएम) के तहत, पीएम-एसवाईएम, जिसे 15 फरवरी, 2019 को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया था, एक स्वैच्छिक योगदान पेंशन योजना है, जो हर महीने 15 हजार या इससे कम आय वाले असंगठित क्षेत्र के 18 से 40 वर्ष की आयु के श्रमिकों के लिए वृद्धावस्था सुरक्षा को सुनिश्चित करती है, एक निश्चित आयु वर्ग में सभी आशा और आशा सहायक इस योजना के पात्र हैं। इस योजना के लिए स्व-प्रमाणीकरण की जरूरत होती है, पेंशन योजना के लिए तय मासिक किस्त का 50 प्रतिशत केंद्र सरकार देगी, जबकि शेष 50 प्रतिशत राशि लाभार्थी को जमा करना होगा। यह राशि लाभार्थी की आयु के अनुसार अलग-अलग होती है और इसे लाभार्थी के बैंक खाते से नियमित रूप से काट लिया जाएगा। श्रम और रोजगार मंत्रालय ने सीएससी-एसपीवी के माध्यम से थोक नामांकन सुविधा के लिए प्रावधान बनाए हैं। इस योजना के तहत लाभार्थियों को 60 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद कम से कम 3000 रुपये प्रति माह पेंशन मिलेगी।

 

बी. वीएचएसएनसी: ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सेवा संबंधी योजना निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिए देश भर में ग्रामीण स्तर पर 5.53 लाख ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता और पोषण समितियों (वीएचएसएनसी) का गठन किया गया है। अब तक 12.55 करोड़ से अधिक ग्राम स्वास्थ्य और पोषण दिवसों (वीएचएनडीएस) का आयोजन हुआ है।

सी. उप-केंद्रों (एससी) के लिए एकीकृत अनुदान : ग्रामीण स्तर पर, ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण समिति (वीएचएसएनसी), आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा और उप-केंद्र द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं की निगरानी करती है। महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के साथ इन समितियों के पंचायती राज संस्थान के दायरे में काम करने की परिकल्पना की गई है। वीएचएसएनसी ग्राम पंचायत की एक उपसमिति या वैधानिक निकाय के रूप में काम करती है। शहरी क्षेत्रों में भी इसी तरह की संस्थागत व्यवस्था बनाने के लिए कहा गया है। वीएचएसएनसीएस को सालाना 10,000 रुपये का अनटाइड फंड (खर्च करने की शर्तों से मुक्त) दिया है, जिसे पिछले वर्ष खर्च हुई राशि के आधार पर अगले साल पूरा कर दिया जाता है। जून, 2020 तक देश भर में 5.53 लाख से अधिक वीएचएसएनसी बनाए गए है। गांव की स्वास्थ्य स्थिति की देखभाल करने में वीएचएसएनसी सदस्यों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के बारे में उनकी क्षमता विकसित करने का काम कई राज्यों में किया जा रहा है।

 

2.11 24 X 7 सेवाएं और प्रथम रेफरल सुविधाएं:

मातृ और शिशु स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, पीएचसी में 24x7 सेवाएं उपलब्ध कराई गई हैं। एनएचएम के तहत 10,430 पीएचसी को 24x7 पीएचसी बनाया गया है और 2953 स्वास्थ्य सुविधाओं (698 डीएच, 712 एसडीएच और 1543 सीएचसी और अन्य स्तर सहित) का फर्स्ट रेफरल यूनिट (एफआरयू) के रूप में संचालन शुरू किया गया है।

 

2.12 मेरा अस्पताल:

मेरा अस्पताल, मरीजों से फीडबैक लेने की व्यवस्था है, जिसे केंद्र सरकार के अस्पतालों (सीजीएच) और जिला अस्पतालों (डीएचएस) को फीडबैक पोर्टल पर एकीकृत करने आदेश के साथ सितंबर 2016 में शुरू किया गया था। अब इसे सीएचसी, ग्रामीण और शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और निजी मेडिकल कॉलेजों तक विस्तार दिया गया है। वर्तमान में यह 34 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में काम कर रहा है। 31 मार्च 2020 तक, ‘मेरा अस्पतालपोर्टल से 4695 स्वास्थ्य सुविधाएं जुड़ी हैं, जिनमें से 2061 सुविधाएं वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान जुड़ी हैं।

2.13 कायाकल्प:

2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान में सहयोग के रूप में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने जन स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कयाकल्पपुरस्कार को शुरू किया था। 11 नवंबर 2020 तक, 12 केंद्र सरकार (80% से अधिक), 352 डीएचएस, 1459 एसडीएच/सीएचसी, 3675 पीएचसी, 808 यूपीएचसी, 7 यूसीएचसी, 307 एचडब्ल्यूसी ने 70 प्रतिशत से ज्यादा अंक हासिल किए हैं। वित्त वर्ष 2019-20 में इस योजना के तहत कुल 6620* स्वास्थ्य सुविधाओं को सम्मानित किया गया है।

2.13 स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र :

स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय की एक संयुक्त पहल है, जिसे साफ-सफाई में सुधार और स्वस्थ जीवनशैली के प्रति जागरुकता बढ़ाकर स्वास्थ्य के बेहतर नतीजे पाने के लिए दिसंबर 2016 में शुरू किया गया था। इस पहल के तहत, कायाकल्प मूल्यांकन के दौरान मिली कमियों को दूर करने के लिए ओडीएफ ब्लॉक में स्थित गैर-कायाकल्प पुरस्कृत सीएचसी को संसाधन के रूप में एकमुश्त 10 लाख रुपये अनुदान दिया जाता है ताकि वे कम से कम अगले मूल्यांकन में कायाकल्प सम्मान जीतने में सक्षम बन सकें।

2.14 प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम:

पीएमएनडीपी (हेमो-डायलिसिस) को कुल 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 503 जिलों के 882 डायलिसिस केंद्रों पर 5490 मशीनें लगाते हुए लागू किया गया है। 30 सितंबर 2020 तक कुल 8.52 लाख मरीजों ने डायलिसिस सेवाओं का लाभ लिया और 86.37 लाख हेमो-डायलिसिस सत्र आयोजित किए गए। अकेले 2020 में, जनवरी से नवंबर के बीच कुल 2.76 लाख रोगियों को 27.9 लाख हेमो-डायलिसिस सत्र मिले।

पीएमएनडीपी के तहत, पेरिटोनियल डायलिसिस (पीडी) की शुरुआत की गई है और पेरिटोनियल डायलिसिस के लिए 10 अक्टूबर 2019 को दिशानिर्देशों को जारी किया गया है। पेरिटोनियल डायलिसिस की शुरुआत के साथ, न्यूनतम निगरानी और सामान्य जीवनशैली में कम से कम व्यवधान के साथ घरों में डायलिसिस उपचार संभव हुआ है, जो मौजूदू स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे पर अतिरिक्त दबाव नहीं डालता है। पीडी उपचार के लिए डायलिसिस केंद्रों तक सफर के समय को भी घटाता है और उपचार के लिए तय कार्यक्रम में अधिक लचीलापन और आजादी लाता है। पीआईपी 2020-21 में, एनएचएम ने 20 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 4000 मरीजों के लिए पीडी कार्यक्रम के तहत मदद को मंजूरी दी है।

2.15 राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन कार्यक्रम:

आबादी की सेहत की स्थिति सुधारने के लिए वितरित स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में गुणवत्ता सबसे महत्वपूर्ण है। यह पहुंच को बढ़ाता है, दक्षता लाता है, चिकित्सकीय प्रभावशीलता को मजबूत करता है और उपयोगकर्ता के संतोष में सुधार लाता है। स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 2013 में जिला अस्पतालों के लिए और उसके बाद अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानकों (एनक्यूएएस) को शुरू किया था। इन मानकों को आईएसक्यूयूए (इंटरनेशनल सोसायटी फॉर क्वालिटी इन हेल्थकेयर) द्वारा आंतरिक रूप पर मान्यता प्राप्त है। ये मानक आईआरडीए और एनएचए से भी मान्यता प्राप्त हैं। वर्तमान में, कुल 667 जनस्वास्थ्य सुविधाओं ने राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाणपत्र हासिल किया है।

साफ-सफाई और स्वच्छता के अभ्यास को बढ़ावा देने और अस्पताल में होने वाले संक्रमण को रोकने के लिए, केंद्र सरकार के स्वास्थ्य संस्थानों और राज्यों की जनस्वास्थ्य सुविधाओं के लिए 2015 में कायाकल्प पुरस्कार योजना को शुरू किया गया था। कायाकल्प को अब सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स के लिए विस्तार दे दिया गया है। मातृ और नवजात शिशु स्वास्थ्य देश के लिए प्राथमिकता बना हुआ है। जन्म के आसपास की देखभालमें गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, एलएक्यूएसएचवाईए पहल को 2017 में शुरू किया गया था। एलएक्यूएसएचवाईए प्रमाणित विभागों में उन्नतशील वृद्धि के कारण 264 लेबर रूम और 229 मैटरनिटी ऑपरेशन थियेटर्स के राष्ट्रीय स्तर के प्रमाणन को बढ़ावा मिला है।

इसके अलावा, भारत ने मरीजों के अनुभवों को बेहतर बनाने के लिए उनकी आवाज को सुनने की आवश्यकता को मान्यता देने और लगातार सीखने के लिए 2018 में अपना आईटी प्लेटफॉर्म मेरा अस्पताल’/‘माय हॉस्पिटलशुरू किया था। अब तक, 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 5300 से अधिक स्वास्थ्य सुविधाएं और लगभग 722 गैर-सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं मेरा अस्पताल के साथ जुड़ चुकी हैं। निशुल्क दवा सेवा पहल के तहत, राज्यों को निशुल्क दवाओं की व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त धनराशि दी गई है। सभी राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों ने अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं में आवश्यक दवाएं निशुल्क देने की नीति को अधिसूचित किया है। दवा वितरण प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से 29 राज्यों में दवा खरीद, गुणवत्ता व्यवस्था और वितरण को सुव्यवस्थित किया गया है।

हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स (एबी-एचडब्ल्यूसी) के माध्यम से व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (सीपीएचसी) देने के लिए, एसएचसी और पीएचसी के लिए आवश्यक दवाएं सूची (ईएमएल) को अंतिम रूप दिया गया है। निशुल्क दवा सेवा पहल (एफडीएसआई) को मजबूत करने के लिए, उप-केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी), उप जिला अस्पतालों (एसडीएच), जिला अस्पतालों के लिए भारतीय जन स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) दिशानिर्देशों की समीक्षा की जा रही है और इसे शहरी स्वास्थ्य (यू-पीएचसी) के लिए भी तैयार किया जा रहा है। स्थायी विकास लक्ष्य को पाने के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की मदद करने के लिए आवश्यक दवाएं आईपीएचएस दिशानिर्देशों का अभिन्न अंग हैं।

2.16 राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन :

राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) को 1 मई, 2013 को व्यापक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम), एक उप-मिशन के रूप में मंजूरी मिली थी। इसके तहत एनआरएचएम एक अन्य उप-मिशन है। एनयूएचएम के जरिए शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल वितरण व्यवस्थाओं को मजबूत बनाने और शहरी आबादी, खास तौर पर मलिन बस्तियों में रहने वालों पर विशेष ध्यान देने के साथ न्यायसंगत और गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं उपलब्ध कराने की परिकल्पना की गई है। यह शहरी क्षेत्रों में मजबूत व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं देते हुए द्वितीय और तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं (जिला अस्पतालों/उप-जिला अस्पतालों/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) पर दबाव को घटाना चाहता है।

एनयूएचएम में 50,000 से अधिक आबादी वाले सभी शहरों और कस्बों और 30,000 से अधिक आबादी वाले जिला मुख्यालय और राज्य मुख्यालय शामिल होते हैं। शेष शहरों/कस्बों को राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के दायरे में आते हैं। आयुष्मान भारत के हिस्से के रूप में, मौजूदा यूपीएचसी को समुदायों के नजदीकी शहरों में निवारक, प्रोत्साहक और उपचारात्मक सेवाएं देने के लिए हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (एचडब्ल्यूसी) के रूप में मजबूत किया जा रहा है।

यू. एनयूएचएम, वित्त वर्ष 2015-16 से, सभी राज्यों के लिए वित्त पोषण अनुपात 60-40 है, वहीं पूर्वोत्तर राज्यों और अन्य पहाड़ी राज्यों जैसे-जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए वित्त पोषण 90:10 है। केंद्र शासित प्रदेशों के मामले में वित्त वर्ष 2017-18 से, दिल्ली और पुडुचेरी केंद्र शासित प्रदेशों के लिए वित्त पोषण को बदल कर 60:40 के अनुपात में कर दिया गया है और शेष बिना विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों के लिए सारा खर्च केंद्र सरकार उठाती है।

एनयूएचएम को राज्यों के स्वास्थ्य विभाग या शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के माध्यम से लागू है। इसे सात महानगरीय शहरों में, मुंबई, नई दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु और अहमदाबाद में यूएलबीएस के माध्यम से लागू है। अन्य शहरों के लिए, राज्य का स्वास्थ्य विभाग तय करता है कि एनयूएचएम को उनके माध्यम से या किसी अन्य शहरी स्थानीय निकायों के माध्यम से लागू किया जाएगा। अब तक, 35 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 1068 शहरों को एनयूएचएम में शामिल किया गया है।

  1. एनयूएचएम की उपलब्धियां:

ए. चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति:

इस कार्यक्रम को राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 6 वर्ष से ज्यादा समय से लागू किया जा रहा है और शहरी क्षेत्रों के लिए समर्पित बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। राज्यों की ओर से चौथी तिमाही, जनवरी-मार्च 2020 के लिए, के जारी प्रगति रिपोर्ट (क्यूपीआर) के अनुसार, एनयूएचएम के तहत अनुमोदित गतिविधियों की प्रगति के बारे में जानकारी निम्न प्रकार है : -

3463 स्वीकृत पदों की तुलना में 2331 चिकित्सा अधिकारी की नियुक्ति

409 स्वीकृत पदों की तुलना में 178 विशेषज्ञों की नियुक्ति

9146 स्वीकृत पदों की तुलना में 6122 स्टाफ नर्स की नियुक्ति

16321 स्वीकृत पदों की तुलना में 13151 एएनएम की नियुक्ति

3577 स्वीकृत पदों की तुलना में 2755 फार्मासिस्ट की नियुक्ति

3924 स्वीकृत पदों की तुलना में 2923 लैब टेक्नीशियन की नियुक्ति

681 स्वीकृत पदों की तुलना में 406 सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधकों की नियुक्ति

1523 स्वीकृत पदों की तुलना में राज्य/जिला/शहर के स्तर पर 1197 कार्यक्रम प्रबंधन कर्मचारियों की नियुक्ति

अब तक, 1068 शहर/कस्बे एनयूएचएम के दायरे में

4870 मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं को शहरी पीएचसी के रूप में मजबूत करने के लिए मंजूरी

782 नए शहरी-पीएचसी निर्माण को मंजूरी

81 नए शहरी-सीएचसी निर्माण को मंजूरी

83 मोबाइल हेल्थ यूनिट्स को मंजूरी

602 हेल्थ कियोस्क को अनुमति

मलिन बस्ती पुनर्वास के लिए

i. 74468 स्वीकृत पदों के मुकाबले 63025 आशा काम करती हैं। (एक आशा के दायरे में 200 से 500 घर आते हैं।)

ii. 92993 स्वीकृत महिला आरोग्य समिति (एमएएस) की तुलना में 81169 समितियों का गठन है। (एक एमएएस के पास 50-100 घरों की जिम्मेदारी)

कायाकल्प और स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र (एसएसएस) को सभी शहरी क्षेत्रों को शामिल करने के लिए विस्तार दिया गया है और शहरी-पीएचसी को कायाकल्प पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए कायाकल्प पुरस्कारों की घोषणा की, जिनमें से 439 शहरी स्वास्थ्य सुविधाएं कायाकल्प पुरस्कार जीतने में सफल रही।

आयुष्मान भारत के हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर घटक के तहत व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (सीपीएचसी) की सुविधाओं का वितरण सुनिश्चित करने के लिए, मौजूदा यूपीएचसी को हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स के रूप में मजबूत किया जा रहा है। राज्यों को पीएचसी स्टाफ (स्वास्थ्य अधिकारी, स्टाफ नर्सेज, फॉर्मासिस्ट, और लैब टैक्नीशियन) के प्रशिक्षण में मदद, सेवाओं की विस्तारित श्रेणी के लिए प्रयोगशालाओं और जांच शालाओं को उन्नत बनाने के लिए आवश्यक आईटी ढांचा और संसाधन उपलब्ध कराया जा रहा है। मार्च 2020 तक शहरी क्षेत्रों में 3339 एचडब्ल्यूसी का संचालन शुरू किया जा चुका है। एनएचएसआरसी के सहयोग से शहरी क्षेत्रों में सीपीएचसी-एचडब्ल्यूसी को लागू करने के लिए प्रशिक्षण और समीक्षा कार्यशालाओं का आयोजन किया गया था।

बी. वित्तीय प्रगति

वित्त वर्ष 2013-14 में नएयूएचएम की शुरुआत से लेकर 10 नवंबर, 2020 तक, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में कार्यक्रम गतिविधियों को लागू करने के लिए लगभग 7788.48 करोड़ रुपये और 6205.36 करोड़ रुपये की धनराशि क्रमशः आवंटित और जारी की गई है।

3. प्रजनन, मातृत्व, नवजात, बच्चे, किशोर स्वास्थ्य के साथ पोषण (आरएमएससीएएच+एन)

3.1 इम्यूनाइजेशन (टीकाकरण)

ए.इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (ईवीआईएन): वित्त वर्ष 2019-20 तक, ईवीआईएन सिस्टम 24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में काम कर रहा था। वित्त वर्ष 2020-21 में पूरे देश को शामिल करने के लिए ईवीआईएन को शेष राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विस्तार दिया गया है।

बी. उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) का विस्तार: वित्त वर्ष 2019-20 तक, पीसीवी बिहार, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 19 जिलों और हरियाणा (राज्य की पहल) में उपलब्ध थी। वित्त वर्ष 2020-21 में, पीसीवी को यूपी के सभी जिलों में विस्तार दिया गया है, इस प्रकार से यह पूरे राज्य को शामिल करता है।

सी. कोविड-19 महामारी के दौरान नियमित टीकाकरण को बनाए रखना : कोविड-19 महामारी के दौरान नियमित टीकाकरण जारी रखने के लिए स्पष्ट रणनीति व दिशानिर्देश बनाए गए और इसके लिए विशेष प्रयास भी किए गए हैं, पोलियो के लिए उप-राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस और वैक्सीन से रुकने वाले रोगों (वीपीडी) के लिए सतर्कता अभियान चलाए गए हैं।

3.2 मातृत्व स्वास्थ्य

ए. जुलाई 2020 में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की ओर से जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मातृत्व मृत्यु दर (एमएमआर) 2015-17 में प्रति 1,00,000 जीवित जन्म पर 122 से घटकर 2016-18 में प्रति 1,00,000 जीवित जन्म पर 113 हो गई है।

बी. सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन) : स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) ने 10 अक्टूबर, 2019 को सुमन पहल की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य टाली जा सकने वाली मातृ और नवजात मृत्यु और बीमारियों को खत्म करने और प्रजनन का सकारात्मक अनुभव दिलाने के क्रम में जनस्वास्थ्य सुविधाओं में आने वाली सभी महिला और नवजातों के लिए, बिना खर्च और सेवाएं देने से इनकार करने के प्रति जीरो टॉलरेंस के साथ सुनिश्चित, गरिमापूर्ण, सम्मानजनक और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराना है। सुमन के तहत, एक व्यापक और सामंजस्यपूर्ण पहल तैयार करने के लिए मातृत्व और नवजात के स्वास्थ्य से जुड़ी सभी मौजूदा योजनाओं को एक साथ जोड़ा गया है, जो पात्रता से परे चला जाता है और पात्रों के लिए सेवा की गारंटी उपलब्ध कराता है।

सी. मिडवाइफरी एजुकेटर ट्रेनिंग: भारत सरकार ने गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की गुणवत्तापूर्ण और सम्मानजनक देखभाल सुनिश्चित करने के लिए देश में मिडवाइफरी सेवाओं को शुरू करने का नीतिगत फैसला लिया है। गाइडलाइंस ऑन मिडवाइफरी सर्विसेज इन इंडिया-2018को नई दिल्ली में दिसंबर 2018 में आयोजित पार्टनर्स फोरम के दौरान जारी किया गया था। छह महीने की मिडवाइफरी एजुकेटर ट्रेनिंग के पहले बैच का प्रशिक्षण 6 नवंबर, 2019 को नेशनल मिडवाइफरी ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, तेलंगाना में शुरू किया गया है।

डी. प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए):

  • अपनी शुरूआत के बाद से, 2.60 करोड़ से ज्यादा प्रसव पूर्व देखभाल (एनएससी) संबंधी जांच की, इसमें 19.61 लाख से ज्यादा उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान की गई और पीएमएसएमए के तहत 6,000 से ज्यादा वॉलन्टियर्स रजिस्टर्ड हुए।
  • वित्त वर्ष 2020-21 (9 दिसंबर 20 तक) में, पीएमएसएमए के तहत 16.78 लाख एएनसी जांच की गई, जबकि 2.36 लाख से अधिक अत्यधिक जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान की गई और पीएमएसएमए के तहत 274 वालंटियर्स ने पंजीकरण कराया।

इ. लक्ष्य (एलएक्यूएसएचवाईए):

  • लक्ष्य की स्थापना (दिसंबर 2017) के बाद से (9 नवंबर 2020 तक), 263 लेबर रूम और 229 मैटरनिटी ओटी को लक्ष्य के तहत राष्ट्रीय प्रमाणपत्र मिल चुका है।
  • वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान, 08 लेबर रूम और 08 मैटरनिटी ओटी को लक्ष्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित किया गया है।

एफ. जेएसवाई : अप्रैल-सितंबर 2020 (अनंतिम आंकड़ा, 2020-21) के दौरान 40.04 लाख लाभार्थियों को जेएसवाई का लाभ मिला।

जी. व्यापक गर्भपात देखभाल (सीएसी): जून 2020 तक 14,500 से ज्यादा एमओ को सीएसी प्रशिक्षण में प्रशिक्षित किया गया है। नवंबर 2020 में लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के लिए सीएसी के बारे प्रशिक्षकों के वर्चुअल प्रशिक्षण (टीओटी) का आयोजन किया गया।

3.3 शिशु स्वास्थ्य

ए. सुविधा आधारित नवजात शिशु देखभाल कार्यक्रम (एफबीएनसी): बीमार और नवजात छोटे शिशुओं को सेवाएं देने के लिए जिला/मेडिकल कॉलेजों के स्तर पर नवजात शिशुओं की देखभाल की 894 विशेष इकाइयां (एसएनसीयू) और एफआरयू/सीएचसी के स्तर पर 2,579 न्यूबॉर्न स्टैबलाइजेशन यूनिट्स (एनबीएसयू) काम कर रही हैं। जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में स्थापित विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाइयों (एसएनसीयू) में (अप्रैल-नवंबर, 2020 के बीच) कुल 6.73 लाख नवजात बीमार शिशुओं को इलाज मिला।

बी. देश ने हाल ही में सभी जगह और सभी स्वास्थ्य सुविधाओं पर नवजात शिशु की देखभाल में गुणवत्ता, समानता और गरिमा सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता के साथराष्ट्रीय नवजात सप्ताह-2020” मनाया है। माननीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण (एचएंडएफडब्ल्यू) मंत्री ने 20 नवंबर 2020 को नवजात शिशुओं की स्वास्थ्य देखभाल करने वालों की क्षमता विकसित करने के लिए सुविधा आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम के तहत दो सामंजस्यपूर्ण प्रशिक्षण पैकेज – “नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (एनएसएसके)और नवजात स्थिरीकरण इकाइयां (एनबीएसयू) जारी किए थे।

सी. घर पर नवजात शिशु देखभाल (एचबीएनसी) कार्यक्रम : आशा कार्यकर्ताओं के जरिए कुल 25.38 लाख नवजात शिशुओं की उनके घर पर देखभाल करने के लिए पूरी समय-सारणी सौंपी गई, जिसमें अप्रैल-जून 2020 के बीच आशा कार्यकर्ताओं ने 80,774 बीमार नवजात शिशुओं की पहचान की और उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भेजा।

डी. छोटे बच्चों की घर पर देखभाल (एचबीवाईसी) कार्यक्रम : छोटे बच्चों की घर पर देखभाल (एचबीवाई) कार्यक्रम को वित्त वर्ष 2020-21 में मौजूदा 242 जिलों (2019-20) के अलावा 275 जिलों तक विस्तार दिया गया है यानी यह कुल 517 जिलों में लागू हो गया है। अप्रैल-सितंबर, 2020 के बीच 29.5 लाख से ज्यादा छोटे बच्चों (3 माह-15 माह) को आशा ने उनके घरों पर जाकर जाकर देखा है।

ई. सघन डायरिया नियंत्रण पखवाड़ा (आईडीसीएफ) के तहत, 2019 में, पांच वर्ष तक के 13.37 करोड़ बच्चों को ओआरएस और जिंक देने के लक्ष्य के मुकाबले 10.01 करोड़ बच्चों को ओरआरएस और जिंक उपलब्ध कराया गया। आईडीसीएफ/डायरिया की रोकथाम गतिविधियों के तहत 2020 में चलाए गए अभियान का आंकड़ा अभी जुटाया जा रहा है।

एफ. राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (एनडीडी) : फरवरी 2020 में आयोजित हुए एनडीडी के 10वें राउंड में, 1-19 वर्ष के आयु वर्ग के 11.66 करोड़ बच्चों के लक्ष्य के मुकाबले लगभग 11.02 करोड़ बच्चों को एल्बेंडाजॉल की गोलियां दी गईं। अगस्त-नवंबर, 2020 के दौरान 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एनडीडी का 11वां राउंड चलया गया है।

जी. पोषण पुनर्वास केंद्र : 2019-20 के दौरान 1,072 पोषण पुनर्वास केंद्रों पर चिकित्सा संबंधी जटिलताओं के साथ गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) लगभग 2.25 लाख बच्चों को उपचार मिला। 2020-21 (अप्रैल-सितंबर,2020) के दौरान, 1,077 पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में चिकित्सा संबंधी जटिलताओं के साथ गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) 32,129 बच्चों को इलाज मिला।

एच. लैक्टेशन मैनेजमेंट सेंटर्स (एलएमसी): वित्त वर्ष 2020-2021 के अनुसार, जून 2020 तक (पहली तिमाही की प्रगति रिपोर्ट), 7 राज्यों (महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गोवा, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश) में 15 सीएलएमसी और 2 एलएमयू काम कर रहे हैं।

आई. एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) कार्यक्रम (अप्रैल-सितंबर, 2020)

  • हर महीने 6-59 माह आयु वर्ग के 1-11 करोड़ बच्चों को आयरन फोलिक एसिड (आईएफए) सिरप की 8-10 खुराक दी गई
  • हर महीने 5-9 वर्ष आयु वर्ग के 50.7 लाख बच्चों को 4-5 आईएफए पिंक टैबलेट दी गई
  • हर महीने 10-19 वर्ष (स्कूल में) आयु वर्ग के 62.4 लाख बच्चों को 4-5 आईएफए ब्लू टैबलेट दी गई
  • हर महीने 10-19 वर्ष (स्कूली लड़कियों से अलग) आयु वर्ग के 16.7 लाख बच्चों को 4-5 आईएफए नीली टैबलेट दी गई
  • 1.04 करोड़ गर्भवती महिलाओं और 9.74 लाख स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 180 आईएफए रेड टैबलेट दी गई

जे. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यकम (आरबीएसके): वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान, कोविड महामारी के कारण आरबीएसके कार्यक्रम की मोबाइल हेल्थ टीमों की फील्ड गतिविधियों पर असर पड़ा। अप्रैल-सितंबर, 2020 के दौरान आरबीएसके कार्यक्रम के तहत 19.31 लाख नवजात शिशुओं की प्रजनन केंद्रों पर जांच की गई।

के. निमोनिया को सफलतापूर्वक निष्प्रभावी करने के लिए सामाजिक जागरूकता एवं गतिविधियां (एसएएएनएस):  राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एसएएएनएस अभियान को 12 नवंबर, 2020 से 28 फरवरी, 2021 को लागू किया गया है। इसका उद्देश्य बचपन में होने वाली निमोनिया के खिलाफ सुरक्षा, रोकथाम और उपचार के पहलुओं के बारे में जागरूकता पैदा करते हुए गतिविधियों में तेजी लाना और माता-पिता व देखभाल करने वालों के बीच रोग को जल्द पहचानने और देखभाल की मांग करने संबंधी व्यवहार में सुधार करना है।

3.4 परिवार नियोजन

ए. कुल नसबंदी: 2020-21 में (नवंबर 2020 तक) 6.46 लाख नसबंदी दर्ज की गई

बी. प्रसव के तुरंत बाद (पोस्ट-पार्टुम) आईयूसीडी (पीपीआईयूसीडी): वित्त वर्ष 2020-21 (नवंबर 2020 तक) में कुल 13.41 लाख पीपीआईयूसीडी लगाए गए, जिसकी स्वीकृति दर 16.5% रही।

सी. कंट्रासेप्टिव इंजेक्टेबल एमपीए (अंतरा कार्यक्रम): देभर में वित्त वर्ष 2020-21 में (नवंबर 2020 तक) कुल 8.10 लाख खुराक दी गई

डी. नॉन-हार्मोनल पिल सेंटक्रोमैन (छाया) - वित्त वर्ष 2020-21 (नवंबर 2020 तक) में सेंट्रोक्रोमन की कुल 25.90 लाख पत्ते वितरित करने की सूचना दी गई है

ई) मिशन परिवार विकास (एमपीवी) तीन या तीन से अधिक टोटल फर्टिलिटी रेट (कुल प्रजनन दर) (टीएफआर) के साथ सात सबसे अधिक निगरानी वाले राज्यों के 146 उच्च प्रजनन जिलों में गर्भ निरोधक और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए नवंबर 2016 में एमपीवी की शुरुआत की गई थी। ये सभी जिले उत्तर प्रदेश (57), बिहार (37), राजस्थान (14), मध्य प्रदेश (25), छत्तीसगढ़ (2), झारखंड (9) और असम (2) राज्यों में हैं, जो देश की कुल आबादी का 44 प्रतिशत हिस्सा है। वित्त वर्ष 2020-21 में (नवंबर 2020 तक) प्रदर्शन इस प्रकार है:

  • नसबंदी की संख्या 34,633
  • लगाए गए पीपीआईयूसीडी की संख्या - 1.38 लाख

3.5. राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके)

किशोरों के अनुकूल स्वास्थ्य क्लीनिक (एएफएचसी) में 12.85 लाख किशोरों ने परामर्श और उपचारात्मक सेवाएं प्राप्त कीं। एएफएचसी की संख्या 7,980 (मार्च 2020 में) से बढ़कर सितंबर 2020 में 8,020 हो गई।

47.73 लाख किशोरों को अक्टूबर 2020 तक पोषण स्वास्थ्य शिक्षा के अलावा हर महीने वीकली आयरन फोलिक एसिड सप्लीमेंट (डब्ल्यूआईएफएस) दिया गया था

वित्त वर्ष 2020-21 में (सितंबर 2020 तक) 78,098 पीयर एजुकेटर्स (साथी शिक्षकों) के चयन के साथ पीयर एजुकेशन प्रोग्राम को लागू करने में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

10,934 किशोर स्वास्थ्य दिवसों (एएचडी), किशोरों की सेहत के मुद्दों और उपलब्ध सेवाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रत्येक तिमाही में ग्रामस्तरीय गतिविधियों का सितंबर 2020 तक आयोजन किया गया था।

आयुष्मान भारत के तहत स्कूल हेल्थ एंड वेलनेस एंबेस्डर पहल :

भारत सरकार ने हाल ही में छात्रों के बीच एक स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिए आयुष्मान भारत के तहत स्कूल हेल्थ एंड वेलनेस एंबेस्डर पहल शुरू की है। यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय की एक साझा पहल है।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को बढ़ावा देकर उनकी वृद्धि, विकास और शैक्षिक उपलब्धि को बढ़ाना है। इसके लिए कुल 11 विषयों की पहचान की गई है।

3.6 गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व जांच तकनीक :

  • राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से पेश जून 2020 की तिमाही प्रगति रिपोर्ट (क्यूपीआर) के अनुसार, पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के तहत कुल 68,818 जांच सुविधाएं पंजीकृत की गई हैं। अब तक, कानून के उल्लंघन के मामले में कुल 2,220 मशीनों को सील और जब्त किया गया है। जिले के उपयुक्त अधिकारियों द्वारा कानून के तहत अदालत में कुल 3,116 मामले दायर किए गए और अब तक 6017 दोषियों को सजा दिलाई गई है, जिसके आधार पर 145 डॉक्टरों के मेडिकल लाइसेंस निलंबित/रद्द किए गए हैं।

पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट-1994 के तहत केंद्रीय निगरानी बोर्ड (सीएसबी) की 28वीं बैठक 2 दिसंबर, 2020 को आयोजित की गई। कोविड-19 महामारी के कारण इस बैठक को वर्चुअली यानी ऑनलाइन माध्यम से आयोजित किया गया था।

  • अल्ट्रासाउंड उपकरण को आदेश संख्या एस.ओ. 3721 (ई) दिनांक 16 अक्टूबर, 2019 के जरिए, ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट-1945 के तहत एक औषधि के रूप में अधिसूचित किया गया है। इसके अनुसार अब अल्टासाउंड मशीनों की बिक्री/आयात/शोध-विकास के लिए ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया से लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा। यह 1 नवंबर, 2020 से लागू हो गया है।
  • अधिसूचना सं. जी.एस.आर. 419 (ई) दिनांक 26/06/2020 के जरिए छह महीने के प्रशिक्षण नियम-2014 में बदलाव किया गया है। अधिसूचना को संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखा गया है। संशोधनों ने प्रशिक्षण नियमों का दायरा बढ़ा दिया है : शिक्षक-छात्र अनुपात 1:1 से 1:4 तक बढ़ गया है और एमसीआई/एनएचसी के लिए मान्यता प्राप्त करने की शर्तें और और मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ी है।
  • चार राज्यों (कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र) में समीक्षा बैठकें की गईं थी।
  • दिल्ली प्रदेश में जिले के उपयुक्त अधिकारियों और पीएनडीटी नोडल अधिकारियों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाया गया ।
  • दिल्ली न्यायिक अकादमी की मदद से दिल्ली प्रदेश के लिए सरकारी वकीलों को प्रशिक्षण दिया गया।
  • राज्यों और अन्य साझेदारों के सहयोग के साथ केंद्र के निरंतर और समान रूप से किए गए प्रयासों से जन्म के समय लिंगानुपात में वृद्धि दिखाई देने शुरू हो गई है। राष्ट्रीय स्तर पर जन्म के समय लिंगानुपात में 3 अंकों का सुधार हुआ है, जो 2015-17 में 896 से बढ़कर 2016-18 में 899 हो गया है। इसके अलावा, सर्वे में शामिल 22 राज्यों में से 15 राज्यों ने भी सुधार दिखाया है, जिसमें राजस्थान ने सबसे ज्यादा 15 अंकों का सुधार प्रदर्शित किया है, इसके बाद हिमाचल प्रदेश (12 अंक) और गुजरात (11 अंक) का नंबर है, जबकि हरियाणा, असम और जम्मू-कश्मीर में 10-10 अंकों का सुधार हुआ है।
  • नवीनतम नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण (एसआरएस) रिपोर्ट-2018 के अनुसार, पांच वर्ष से कम आयु की लड़कियों में मृत्यु दर (यू5एमआर), लिंग आधारित भेदभाव का एक मजबूत संकेतक, में 2015 में 45 से 2018 में 36 तक एक निरंतर गिरावट दर्ज की गई है। इसके अलावा, पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर में लिंग आधारित अंतर (जेंडर गैप) 2015 में 5 अंक से गिरकर 2018 मे 1 अंक हो गया है।

4. राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी):

क्षय रोग (टीबी) खत्म करने के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) को 2025 तक पूरा करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य, वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले, को देखते हुए, इस साल कार्यक्रम के नाम और लोगो को बदलाव करते हुए इसे राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) से बदलकर राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईफी) कर दिया गया था, ताकि अंतिम लक्ष्य को साकार किया जा सके।

कार्यक्रम के तहत जनवरी से अक्टूबर 2020 तक कुल 14.75 लाख टीबी रोगियों को दर्ज किया गया था, जो 2019 में इसी अवधि के मुकाबले 27% (20.28 लाख मामले) कम है। टीबी के दर्ज होने वाले मामलों में यह गिरावट कोविड के प्रभाव की से आई है, क्योंकि महामारी को रोकने के लिए विभिन्न तरह की पाबंदियां लगाने के साथ-साथ उपलब्ध संसाधनों और मानव शक्ति को दूसरे क्षेत्रों में लगाना पड़ा था। इस अवधि में 36,514 दवा प्रतिरोधी टीबी रोगियों की पहुचान हुई थी। जनवरी और अगस्त 2020 के बीच, आदिवासी आबादी से लगभग 1, 27,816 व्यक्तियों में टीबी संक्रमण पाया गया है।

अप्रैल 2018 से सितंबर 2020 तक, 36.8 लाख टीबी रोगियों को निक्षय पोशन योजना के तहत पोषण सहायता के रूप में 928.8 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था।

कोविड-19 के प्रभाव को घटाने और टीबी सेवाओं की निर्बाध आपूर्ति के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए :

टीबी सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए अग्रिम तौर पर निर्देश जारी किए गए और सेवाएं देने की निगरानी के लिए राज्यों/जिलों के साथ समीक्षा बैठकें की गईं।

टीबी-कोविड की द्विदिशात्मक जांच का कार्यान्वयन : टीबी संक्रमण मिलने पर सभी रोगियों की कोविड जांच और सभी कोविड पॉजिटिव मरीजों की टीबी जांच।

•  कोविड के सभी जोन (लाल, नारंगी और हरा) में सभी अनुमानित आईएलआई/एसएआरआई/कोविड मामलों के लिए टीबी की जांच और परीक्षण

टीबी जांच से जुड़ी प्रयोगशालाओं को चालू रखने और प्रयोगशाला कर्मचारियों द्वारा व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण के उपयोग के बारे में दिशानिर्देश जारी किए गए थे

प्लेटफॉर्म प्रौद्योगिकी के अधिकतम उपयोग के लिए डीआर-टीबी और डीएस-टीबी के लिए उपचार-पूर्व मूल्यांकन सहित एकीकृत टीबी-कोविड प्रयोगशाला सेवाओं को तैयार किया गया था।

टीबी और कोविड की जांच के लिए ब्लॉक स्तर पर विकेंद्रीकृत मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक - सभी संभावित टीबी मामलों के लिए स्मीयर माइक्रोस्कोपी की जगह पर एनएएटी जांच

प्रभावी नमूना संग्रह और उपकेंद्र से पीएचसी, पीएचसी से सीएचसी और सीएचसी से जिला/सीडीएसटी/आईआरएल तक पहुंचाने के लिए परिवहन की व्यवस्था

रेड जोन/नियंत्रित क्षेत्रों (कंटेनमेंट जोन) में घर से नमूने लेने की सेवाएं

ग्रीन जोन और बिना कोविड या न्यूनतम कोविड मामलों वाले क्षेत्रों में टीबी मामलों का पता लगाने के लिए सक्रिय अभियान का संचालन

टीबी के सभी संक्रामक मामलों के लिए घर और कार्यस्थल पर नजदीकी संपर्कों का पता लगाना

घरों से नमूने लेने और नजदीकी जांच केंद्रों तक पहुंचाने के लिए परिवहन व्यवस्था को मजबूत करना।

मरीजों के घर पर कम से कम एक महीने की दवाओं की आपूर्ति करने के उपाय करना।

5. राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी)

तम्बाकू का उपयोग और कोविड-19 : कोविड-19 महामारी के बढ़ते खतरे के मद्देनजर, राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को सार्वजनिक रूप से चबाने वाले तंबाकू के उत्पादों के इस्तेमाल और थूकने पर रोक लगाने के लिए उचित कानून के तहत आवश्यक उपाय करने की सलाह/निर्देश जारी किए गए थे। धूम्रपान फेफड़ों और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचाता है, जो कोविड-19 के कारण धूम्रपान करने वालों को जटिलताओं के उच्च जोखिम के दायरे में ला देता है। इसे देखते हुए राज्यों से कोविड-19 के दौरान धूम्रपान करने से जुड़े जोखिमों के बारे में जनजागरूकता के लिए अभियान चलाने का अनुरोध किया गया था। एमओएचएफडब्ल्यू ने भी तंबाकू के उपयोग और सार्वजनिक जगहों पर थूकने से जुड़े जोखिम, खास तौर पर इस कोविड-19 महामारी के दौरान, के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया है।

इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट पर रोक : भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन) निषेध अध्यादेश-2019 के माध्यम से 18 सितंबर, 2019 को इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट और ऐसे दूसरे उपकरणों पर रोक लगा दी थी, जिसकी जगह पर 5 दिसंबर, 2019 को इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन) निषेध अधिनियम-2019 लागू हुआ। ई-सिगरेट के कारण नशे की लत फैलने के खतरे का अनुमान करते हुए इस समस्या को बढ़ने से पहले रोकने के उद्देश्य के साथ यह प्रतिबंध लगाया गया है। ऐसी पूर्व सक्रिय निर्णयनकारी कार्रवाई समस्या के विकराल होने पर उसे रोकने की कोशिश करने की जगह पर उसे शुरुआत में ही रोक देने के लिए थी।

6. प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई)

प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) के तहत देश के अनछुए हिस्सों में चिकित्सा शिक्षा, अनुसंधान और चिकित्कीय देखभाल में तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य देखभाल क्षमता निर्माण की परिकल्पना की गई है। इसका उद्देश्य तृतीयक स्तर की कम खर्चीली/विश्वसनीय स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में मौजूद क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना और देश में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा के लिए सुविधाओं में बढ़ोतरी करना है। इस योजना के दो बड़े घटक थे:

  • एम्स जैसे संस्थानों की स्थापना करना;
  • पुराने सरकारी मेडिकल कॉलेजों (जीएमसी) को उन्नत बनाना।

इस योजना के तहत बीते पंद्रह वर्षों में 22 नए एम्स के निर्माण और 75 सरकारी मेडिकल कॉलेजों को उन्नत बनाने की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।

 

6.1 चरण-I के तहत छह एम्स:

चरण-I के तहत अनुमति पाने वाली सभी छह एम्स (एम्स-भोपाल, एम्स-भुवनेश्वर, एम्स-जोधपुर, एम्स-पटना, एम्स-रायपुर और एम्स-ऋषिकेश) पहले से पूरी तरह से चालू हैं। अस्पताल की सभी प्रमुख सुविधाएं और सेवाएं जैसे कि इमरजेंसी, ट्रामा, ब्लड बैंक, आईसीयू, डायग्नोस्टिक और पैथोलॉजी काम कर रही हैं।

इस साल 1000 से ज्यादा हॉस्पिटल बिस्तर बढ़े हैं।

इस साल 100 पीजी सीटें और 150 एमबीबीएस सीटें बढ़ गई हैं।

इस साल इन एम्म में कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए समर्पित अस्पताल और कोविड जांच की प्रयोगशालाएं बनाई गई।

6.2 चरण-II, III, IV, V, VI और VII के तहत बने अन्य नए एम्स :

कैबिनेट ने बाद के चरणों में 16 एम्स को आवंटित/अनुमोदित किया है। बिहार में दूसरे नए एम्स के लिए दरभंगा में जगह को अंतिम रूप दिया गया है और इस साल कैबिनेट की मंजूरी ली गई है।

पांच एम्स जैसे नागपुर, रायबरेली, मंगलागिरी, गोरखपुर और भठिंडा में सीमित ओपीडी सेवाएं पहले ही शुरू हो गई थीं। इस साल बीबीनगर में सीमित ओपीडी सुविधाएं और एम्स मंगलागिरीएम्स नागपुर व एम्स भठिंडा में कोविड-19 मरीजों के लिए सीमित आईपीडी सुविधाएं भी चल रही हैं। एम्स मंगलागिरि और एम्स नागपुर में कोविड टेस्ट लैब भी संचालित है।

आठ नए एम्स यानी मंगलागिरी, नागपुर, रायबरेली, कल्याणी, गोरखपुर, बठिंडा, देवघर और बीबीनगर में प्रति वर्ष में 100 सीटों के साथ स्नातक एमबीबीएस पाठ्यक्रम पहले से चल रहा था। मौजूदा सत्र (2020-21) से चार नए एम्स यानी गुवाहाटी, जम्मू, राजकोट और बिलासपुर में 50 सीटों के साथ स्नातक एमबीबीएस पाठ्यक्रम का पहला सत्र शुरू हुआ।

9 एम्स यानी एम्स रायबरेली, नागपुर, मंगलागिरी, कल्याणी, गोरखपुर, बठिंडा, बिलासपुर, गुवाहाटी और देवघर में निर्माण कार्य पहले से जारी है। अवंतिपुरा (कश्मीर में), सांभा (जम्मू में) और राजकोट (गुजरात में) में एम्स का निर्माण इसी वर्ष शुरू हुआ है।

6.3. मौजूदा जीएमजी को उन्नत बनाना:

अपग्रेडेशन कार्यक्रम के तहत मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेज/संस्थानों (जीएमसीआई) में सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक्स/ ट्रॉमा केयर सेंटर इत्यादि को बनाते हुए तृतीयक स्वास्थ्य ढांचे में सुधार करने की परिकल्पना की गई है।

योजना लागू होने के बाद से, मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों में सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल्स/ट्रॉमा सेंटर की 46 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जिससे 2000 आईसीयू बेड सहित 10000 से ज्यादा सुपर-स्पेशलिटी बेड बढ़े हैं। इस वर्ष 3 परियोजनाएं पूरी हुई हैं।

क्रम संख्या

जीएमसी/संस्था का नाम

राज्य

चरण

सुविधा के प्रकार

कुल विस्तर

आईसीयू बेड्स

सुपर स्पेशिलिटी की संख्या

1.

जीएमसी यवतमाल

महाराष्ट्र

III

एसएसएच

231

36

6

2.

जीएमसी इंदौर

मध्य प्रदेश

II

एसएसएच

218

54

10

3.

एमएलएन मेडिकल कॉलेज, इलाहाबाद

उत्तर प्रदेश

III

एसएसएच

233

52

8

 

उपरोक्त के अलावा, नीचे की इन पांच जीएमसी में सुपर स्पेशिलिटी ब्लॉक्स को बनाने का काम पूरा हो चुका है

 

क्रम संख्या

जीएमसी/संस्था का नाम

राज्य

चरण

सुविधा के प्रकार

कुल विस्तर

आईसीयू बेड्स

सुपर स्पेशिलिटी की संख्या

1.

गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज, अनंतपुर

आंध्र प्रदेश

III

एसएसएच

208

40

8

2.

काकतीय मेडिकल कॉलेज, वारंगल

तेलंगाना

III

एसएसएच

249

39

10

3.

राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, आदिलाबाद

तेलंगाना

III

एसएसएच

210

42

8

4.

असम मेडिकल कॉलेज, डिब्रूगढ़

असम

III

एसएसएच

266

62

6

5.

पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज, धनबाद

झारखंड

III

एसएसएच

200

40

8

 

इस समय 22 जीएमसी में चलने वाले एसएसबी और ट्रॉमा सेंटर्स कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए समर्पित हॉस्पिटल ब्लॉक्स के रूप में उपयोग किए जा रहे हैं।

7. चिकित्सा शिक्षा

  1. संसद द्वारा अगस्त, 2019 में ऐतिहासिक राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम को पारित किया गया था। अब, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का गठन किया गया है, 25 सितंबर, 2020 से प्रभावी बना है। वर्षों पुराने एमसीआई को भंग और भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 को रद्द कर दिया गया है। इससे नियामक तंत्र में मुख्य बदलाव यह हुआ है कि अब नियामक मुख्य रूप से निर्वाचित होने की जगह चयनितहोंगे। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग चिकित्सा शिक्षा में सुधारों को आगे ले जाएगा। इन सुधारों में गुणवत्तापूर्ण और सस्ती चिकित्सा शिक्षा तक आसान पहुंच सुनिश्चित करने और चिकित्सा व्यवसाय में उच्च नैतिक मानदंडों को बनाए रखने के साथ यूजी और पीजी सीटों में बढ़ोतरी शामिल होगा। एनएमसी के कामकाज में शामिल कुछ प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार हैं - मेडिकल ग्रेजुएट्स के लिए नेशनल एग्जिट टेस्ट (नेक्स्ट) लागू करना, निजी मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में 50% सीटों के लिए फीस तय करने के दिशानिर्देश बनाना, सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाएं देने वालों के लिए विनियम बनाना और मेडिकल कॉलेज की रेटिंग करना।
  2. बीते छह वर्षों के दौरान, 2014 (54,348 सीटों) से 2020 (84,649 सीटों) तक, एमबीबीएस की 30,301 (यानी 55.75 फीसदी) और पीजी की 24,084 (यानी 79.77%) सीटें बढ़ी हैं।
  3. आगे, इसी अवधि के दौरान, 179 नए मेडिकल कॉलेज स्थापित हुए हैं और अब देश में 562 (सरकारी : 286, निजी : 276) मेडिकल कॉलेज हो गए हैं।
  4. नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिए केंद्र प्रायोजित योजना के तहत, तीन चरणों में 157 मेडिकल कॉलेजों की स्थापना को मंजूरी दी गई है, जिनमें से 47 काम कर रहे हैं और शेष मेडिकल कॉलेज कुछ वर्षों में काम करने लगेंगे। इन 157 कॉलेजों में से 39 मेडिकल कॉलेज देश के एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स (आकांक्षी जिलों) में बन रहे हैं, जिसके जरिए चिकित्सा शिक्षा में असमानता की समस्या को दूर किया जा रहा है
  5. न्यूनतम मानक संबंधी आवश्यकताओं (एमएसआर) को तार्किक बनाना: मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए एमएसआर को सुव्यवस्थित किया गया है। इससे नए मेडिकल कॉलेज बनाने की लागत घटेगी और प्रवेश लेने की क्षमता बढ़ेगी.
  6. नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशंस द्वारा दो वर्ष का एमबीबीएस डिप्लोमा: स्नातकोत्तर छात्रों और देश के दूरदराज के इलाकों में पूरक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी पूरी करने में डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के महत्व को ध्यान में रखते हुए, नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशंस (एनबीई) ने आठ विषयों जैसे - एनेस्थीसिया, गायनोकॉलोजी और ऑब्सटेट्रिक्स, पीडियाट्रिक्स, ईएनटी, ऑप्थल्मोलॉजी, फैमिली मेडिसिन, ट्यूबरक्लोसिस एंड चेस्ट डिजीज और मेडिकल रेडियो डायग्नोसिस, में डिप्लोमा शुरू किया है।
  7. पोस्ट-ग्रेजुएशन के लिए डिस्ट्रिक्ट रेजिडेंसी स्कीम: एमसीआई ने स्नातकोत्तर चिकित्सा प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के एक आवश्यक घटक के रूप में पीजी मेडिकल छात्रों के जिला अस्पतालों में तीन महीने के अनिवार्य प्रशिक्षण के लिए एक योजना लागू की थी, जिसे डिस्ट्रिक्ट रेजिडेंसी स्कीम के रूप में जाना जाता है। इस योजना के तहत, मेडिकल कॉलेजों के दूसरे/तीसरे वर्ष के पीजी छात्रों को तीन महीने की अवधि के लिए जिला अस्पतालों में तैनात होंगे।

8. राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के गठन ने चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक सुधार की शुरुआत की है। इसी तर्ज पर, सरकार भारतीय नर्सिंग परिषद अधिनियम-1947 और दंत चिकित्सक अधिनियम-1948 की जगह पर संशोधित कानूनों को लाकर नर्सिंग और दंत चिकित्सा शिक्षा में संस्थागत सुधार लाने का प्रयास कर रही है। सहायक और स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र समेत विभिन्न व्यवसायों के लिए नियामकीय संस्था की लंबे समय से खाली जगह को भरने के लिए सरकार एक नेशनल कमीशन फॉर अलायड एंड हेल्थकेय प्रोफेशंस लाने का भी प्रयास कर रही है और इसके लिए एक विधेयक को राज्य सभा में पहले ही पेश किया जा चुका है। इन सभी व्यावसायिक शिक्षा क्षेत्रों में जो मूलभूत और सैद्धांतिक बदलाव हो रहा है, वह यह है कि निर्वाचितनियामकों के विपरीत अब योग्यता के आधार पर चयनित नियामक आ रहे हैं।

8. केंद्र सरकार के अस्पताल

8.1 अटल बिहारी वाजपेयी आयुर्विज्ञान संस्थान एवं डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल (एबीवीआईएमएस और डॉ. आरएमएल अस्पताल)

ए. एमबीबीएस कोर्स की शुरुआत: स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय/ मंत्रालय ने पीजीआईएमईआर और डॉ. आरएमएल अस्पताल को शैक्षणिक सत्र 2019-20 से 100 छात्रों के प्रवेश के साथ एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू करने की अनुमति दी। संस्थान का नाम बदलकर अटल बिहारी वाजपेयी आयुर्विज्ञान संस्थान एवं डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पतालकर दिया गया है। अब संस्थान में अत्याधुनिक प्रयोगशाला, डिसेक्शन हॉल, परीक्षा हॉल,लेक्चर थिएटर और संग्रहालय आदि मौजूद हैं।

बी. सुपर स्पेशिएलिटी ब्लॉक: अस्पताल ने जी-पॉइंट पर उपलब्ध जमीन पर 600 से ज्यादा बिस्तरों वाले सुपर स्पेशिलिटी ब्लॉक (एसएसबी) के निर्माण की योजना बनाई गई है, जिसमें 3 बेसमेंट + भूतल +11 ऊपरी तल शामिल हैं। ईएफसी ने अपनी 18 फरवरी, 2019 की बैठक में कुल 572.61 करोड़ रुपये की लागत से परियोजना को मंजूरी दी है। सीपीडबल्यूडी को परियोजना प्रबंधन सलाहकार के रूप में नामित किया गया है। सीपीडब्ल्यूडी की ओर से निविदा जारी की गई है और परियोजना के पूरा होने की संभावित अवधि 24 महीने है।

सी. न्यू हॉस्टल ब्लॉक: संस्थान ने परिसर में उपलब्ध खाली जमीन पर 824 कमरों वाले नए हॉस्टल ब्लॉक के निर्माण की योजना बनाई गई है। इस परियोजना की कुल लागत 178 करोड़ रुपये है। एचएससीसी, परियोजना प्रबंधन सलाहकार है। इसकी 5वीं मंजिल तक का काम पूरा हो चुका है।

डी. डॉ. आरएमएलएच को पहले ही बाल चिकित्सा कैथ लैब मिल चुकी है और जल्द ही यहां पर बाल हृदय रोग विभाग शुरू किया जाएगा और यह देश में अपनी तरह का पहला सरकारी अस्पताल होगा।

ई. डॉ. आरएमएलएच रोबोटिक सिस्टम को खरीदने की प्रक्रिया में है। इसका विभिन्न शल्य विशेषज्ञों द्वारा जटिल ऑपरेशन करने के लिए उपयोग किया जाएगा। इससे उन रोगियों को बहुत लाभ होता है, जिन्हें कठिन और जटिल सर्जरी से गुजरना पड़ता है।

एफ. डॉ. आरएमएलएच के डॉक्टरों को पहले ही लिवर प्रत्यारोपण के लिए प्रशिक्षित किया जा चुका है और सभी आवश्यक अनुमतियों को मिलने के बाद इसे निकट भविष्य में शुरू कर दिया जाएगा।

जी. डॉ. आरएमएलएच में ई-ऑफिस की शुरुआत की गई है

एच. डॉ. आरएमएलएच को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने देश का पहला कोरोना नोडल सेंटर बनाया था। कोरोना मरीजों का प्रबंधन ओपीडी में किया गया है। यहां पर मरीजों को भर्ती करने की समर्पित सुविधा और आईसीयू भी बनाया गया था। यहां पर सभी संदिग्ध रोगियों के लिए आरटीपीसीआर टेस्ट नियमित रूप से किए गए थे। उपरोक्त के अलावा, डॉ एमएमएलएच ने विश्व युवा केंद्र, चाणक्यपुरी में 150 बेड वाले कोविड केयर सेंटर का प्रबंधन किया था।

8.2 लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और संबद्ध अस्पताल

1. एलएचएमसी अपने संबद्ध अस्पतालों के साथ 2020 में शुरू हुई कोविड-19 महामारी में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने में सक्रिय रूप से भागीदार रहा

निम्नलिखित सुविधाएं तैयार की गई थीं:-

  1. रेड जोन

I. वॉर्ड – 24 + 22 = 46 वॉर्ड

II. कोविड आईसीयू बेड्स = 30

III. ऑरेंज जोन बेड्स = 103 (संदिग्ध मामलों के लिए)

  1. कोविड मरीजों का इलाज करने के लिए विभिन्न तरह के ढांचे को जोड़ा गया है

I. वेंटिलेटर युक्त 30 बिस्तरों की क्षमता बढ़ाई गई

II. बीआईपीएपी मशीनों की संख्या-32

III. एचएचएफओ की सुविधा जोड़ी गई

IV. पल्स ऑक्सीमीटर्स, पीपीई किट्स, एन-95 मास्क और अन्य साजोसामान को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराया गया

V. 50 से ज्यादा ऑक्सीजन आपूर्ति वाले बिस्तरों की संख्या को बढ़ाया गया

VI. कोविड मरीजों की जांच के लिए फ्लू क्लीनिक बनाई गई

  1. कोविड-19 जांच सुविधा

I.लएचएमसी उन पहले संस्थानों में से एक था, जिन्होंने कम से कम संभावित समय में निम्नलिखित विधियों से कोविड जांच की सुविधा शुरू की थी:

ए. आरटीपीसीआर

बी. सीबी एनएएटी

सी. टीआरयूएनएटी

शुरुआत में उन सभी बड़े अस्पतालों को सेवाएं उपलब्ध कराई गई, जहां पर जांच की सुविधा उपलब्ध नहीं थी. लगभग 40,000 मामलों से ज्यादा की जांच की गई।

II. नमूने लेने के लिए अत्याधुनिक टेस्ट सेंटर बनाए गए

  1. एलएचएमसी के डॉक्टरों और पैरामेडिकल टीम ने वाईएमसीए कोविड केयर सेंटर का संचालन किया
  2. एलएचएमसी के डॉक्टर विभिन्न राज्यों में सुविधाओं की जांच और प्रशिक्षण के लिए गठित केंद्रीय टीम में शामिल थे।
  3. एलएचएमसी कोविड और गैर-कोविड मरीजों के लिए अपने सभी विभागों में इलाज की सुविधाएं चला रहा है। प्रजनन और बच्चों की देखभाल संबंधी सेवाओं को बहुत ही सावधानी के साथ चलाया जा रहा है।
  4. समस्याओं को सुलझाने के लिए रचनात्मक पहल:

I.  टेलीमेडिसिन सुविधा

II. मिश्रित शिक्षण

III. परामर्श संबंधी सुविधाएं देते हुए स्वसहायता समूहों सहित छात्र केंद्रित युवा तंदुरुस्ती की पहल

2. एलएचएमसी की व्यापक पुनर्विकास योजना (सीआरपी):-

(a) आंकोलॉजी ब्लॉक और एकेडमिक ब्लॉक पूरी तरह से तैयार है और एचएससीसी द्वारा 31 दिसंबर 2020 के पहले इसे एलएचएमसी को सौंप दिए जाने की संभावना है

(b) दुर्घटना आपातकालीन और ओपीडी ब्लॉक के 31 मार्च 2020 तक तैयार हो जाने की संभावना है

3. पोस्ट ग्रेजुएट सीट्स: ईडब्ल्यूएस कोटा के मुकाबले 24 पोस्ट-ग्रेजुएट सीटें बढ़ाई गई हैं

4. शैक्षणिक गतिविधियां : अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और पोस्ट-डॉक्टरल पाठ्यक्रमों के लिए

(ए) कोविड-स्थिति में, कोविड-19 प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक प्रशिक्षण के साथ ऑनलाइन शिक्षण के संयोजन को लागू किया जा रहा है।

(बी) ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर नियमित रूप से चिकित्सकीय बैठकें की जाती हैं।

(सी) व्यावहारिक कौशल और सैद्धांतिक ज्ञान की परख करने के लिए वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पोस्ट-ग्रेजुएट परीक्षा का आयोजन किया गया

5. मुख्य अतिथि के रूप में माननीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री की मौजूदगी में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 12-12-2020 को वार्षिक दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया।

6. कंप्यूटर जनित लैब रिपोर्ट देने के लिए एलएचएमसी में अस्पताल प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) के एक हिस्से के रूप में प्रयोगशाला प्रबंधन प्रणाली (एलआईएस) की शुरुआत की गई है। इससे डॉक्टर रिपोर्ट को ऑनलाइन देखकर रोगियों के उपचार के बारे में तेजी से फैसले तक सकते हैं।

7. पीएमजेएवाई के लिए एमएचएमसी और संबंध अस्पताल सुपर-स्पेशलिटी अस्पतालों की श्रेणी में शामिल हैं।

8.3 सफदरजंग अस्पताल

1. कोविड-19 महामारी प्रबंधन :-

आईसीएमआर के दिशानिर्देशों और कोविड-19 पॉजिटिव मरीजों में हेमोग्राम, कोएग्युलेशन प्रोफ़ाइल (जमाव की रूपरेखा) और बायोमार्कर्स आदि के बारे में डीटीई.जीएचएस और एमओएचएफडब्ल्यू के निर्देशों के अनुसार, सफदरजंग अस्पताल कोविड-19 मरीजों के प्रबंधन में पूरी सक्रियता से शामिल हैं।

ए) पूरे सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक (एसएसबी) को कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए समर्पित ब्लॉक में बदल दिया गया है।

बी) सफदरजंग अस्पताल में चौबीसों घंटे काम करने वाला एक समर्पित कंट्रोल रूम स्थापित किया गया है।

सी) सफदरजंग अस्पताल में आरटीपीसीआर के लिए अलग से एक अत्याधुनिक कोविड-19 लैब बनाने, और ट्रूनेट, कोविड-19 रैपिड एंटीजन टेस्ट, कोविड 19 एलिसा टेस्ट के लिए एनईबी व अन्य विभागों में सुविधाएं शुरू की गई ।

डी) सांस संबंधी अपेक्षाकृत कम, लेकिन गंभीर बीमारियों के अलग-अलग प्रबंधन के लिए नए इमरजेंसी ब्लॉक, सफदरजंग अस्पताल में जिला मजिस्ट्रेट की सहमति से एसएआरआई वार्ड की शुरुआत की गई थी।

ई) कोविड-19 प्रबंधन के लिए एक समर्पित कोर टीम बनाई गई, जिसमें एनेस्थीसिया, मेडिसिन, रेस्पिरेटरी आदि विभागों से डॉक्टरों को शामिल किया गया था। एसएसबी में गायनोलॉजी एवं ऑब्सटेट्रिक्स और पीडियाट्रिक्स के मरीजों के लिए अलग सेक्शन बनाया गया था।

एफ) कोविड-19 से निपटने के लिए साप्ताहिक आधार पर जेआर /एसआर/ नर्सिंग स्टाफ और इंटर्न के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा था।

जी) एसजेएच अस्पताल/वीएमएससी में अलग-अलग जगहों पर काम करने वाले कर्मचारियों के अलावा अस्पताल में आने वाले मरीजों और उनके परिजनों के बीच हाथ धोने के तरीके, शारीरिक दूरी के पालन, मास्क पहनने के महत्व और अस्पताल में कोविड-19 संक्रमण से बचाव के लिए सैनिटाइजर के इस्तेमाल के बारे जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया था।

के) ओल्ड कैजुअल्टी ब्लॉक,सफदरजंग अस्पताल में कोविड-19 रोगियों के लिए अलग से फीवर क्लिनिक और सैंपल कलेक्शन सेंटर (आरटीपीसीआर) शुरू किया गया।

आई) सफदरजंग अस्पताल के अधिकांश विभागों में रोगियों की देखभाल सेवाओं को बिना किसी रुकावट के जारी रखा गया था और गैर-कोविड-19 रोगियों के लिए नियमित डायलिसिस लगातार चल रही है।

जे) कोविड-19 मरीजों और शवों को लाने और ले जाने के लिए अलग से एंबुलेंस की व्यवस्था की गई थी

के) कोविड-19 टीकाकरण अभियान के लिए संभावित वैक्सीन लगाने वालों के लिए टीम तैयार की जा रही है

आई) सफदरजंग अस्पताल में आग लगने की किसी घटना से निपटने के लिए आग से सुरक्षा का अभ्यास, प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया था

2. बीते तीन महीनों में 40 एलडीसी और 8 पीडब्ल्यूडी उम्मीदवारों ने नौकरी शुरू की है

3. मरीजों और उनके परिजनों को जरूरी सहायता देने के लिए आओ साथ चलें कार्यक्रम शुरू किया गया है

4. भर्तियां/ऑपरेशन की स्थिति: -  

 

2020 में अस्पताल में मरीजों (भर्ती) और किए गए ऑपरेशन की कुल संख्या: -

भर्ती

जनवरी-नवंबर

2020

 

बड़े ऑपरेशन

जनवरी-सितंबर

2020

छोटे ऑपरेशन

जनवरी-सितंबर

2020

कुल ऑपरेशन

जनवरी-सितंबर

2020

101906

6828

4937

11765

 

5. आंकड़े (एक्स-रे जांचें)

 

वर्ष

एक्स-रे जांचों की संख्या

जनवरी से अक्टूबर

1,51,387

 

6. स्त्री रोग और प्रसूति विभाग में प्रसव संबंधी आंकड़े:-

वर्ष

प्रसव की संख्या

जनवरी से नवंबर 2020

16961

 

7. ओपीडी में उपस्थिति :-

वर्ष

ओपीडी मरीजों की संख्या

जनवरी से सितंबर 2020

894815

 

8. स्पोर्ट्स इंजरी सेंटर: - मरीजों की हाजिरी/सर्जरी

क्रम संख्या

वर्ष

ऑर्थो ओपीडी

फिजियोथैरिपी ओपीडी

आईपीडी

ओटी

1

जनवरी से नवंबर 2020

23916

10124

852

692

 

8.4 एनईआईजीआरआईएचएमएस, शिलॉन्ग

: जमीन

ईस्ट खासी हिल्स राजस्व के जिला कलेक्टर ने 23 नवंबर 2020 को समूह ए, बी और सी वर्ग के शिक्षकों के लिए आवासीय सुविधा बनाने के लिए एनईआईजीआरआईएचएमएस को औपचारिक रूप से 20 एकड़ अतिरिक्त जमीन सौंप दी है

बी: ढांचागत विकास

संस्थान ने पूरे क्षेत्र के कोविड मरीजों के लिए 10 बिस्तरों वाले कोविड-19 आईसीयू, 40 बिस्तरों वाले आइसोलेशन वार्ड्स और जांच क्षेत्र को बनाया है

  • संस्थान ने सीएमएएवाई योजना के तहत (स्वास्थ्य बीमा योजना) अरुणाचल प्रदेश के लोगों का एनईआईजीआरआईएचएमएस में कैशलेस इलाज करने के लिए अरुणाचल प्रदेश सरकार के साथ एक समझौता किया है
  • संस्थान ने आईसीयू कोविड देखभाल के बारे में राज्य सरकार के डॉक्टरों को आईसीयू प्रशिक्षण दिया था।
  • संस्थान ने मरीजों के लाभ के लिए सभी ओपीडी में कोविड टेलीकांफ्रेंसिंग की स्थापना की है
  • संस्थान ने राजस्व जुटाने के लिए रियायती दरों पर अस्पताल उपयोगकर्ता शुल्क के लिए विभागों की संख्या में बढ़ोतरी की है।
  • संस्थान ने कोविड क्वारंटीन सेंटर्स में बदलने के लिए नई परियोजनाओं की निम्नलिखित इमारतों को ले लिया है

48 कमरों का गेस्ट हाउस

नर्सिंग हॉस्टल-1 88 बिस्तरों की क्षमता

नर्सिंग हॉस्टल-2 110 बिस्तरों की क्षमता

एमबीपीएस के नए बैच के रहने के लिए बने अंडर ग्रेजुएट हॉस्टल्स I & II को भी ले लिया है

नर्सिंग कॉलेज की नई इमारत को हॉस्टल के साथ 31 दिसंबर 2020 को सौंप दिया जाएगा।

C: खरीद

संस्थान ने वित्त वर्ष 2019-20 के इस महीने में अपने रोगियों की देखभाल के लिए पुरानी इस्तेमाल न होने योग्य अल्फा मैट्रेस की 48 इकाइयों को वापस खरीदने के मुकाबले कुल 24.64 लाख रुपये की लागत से 40 अल्फा मैट्रेस (निर्माण: अरजोहंटले हेल्थकेयर लिमिटेड, यूके; मॉडल: अल्फा एक्टिव 3) को खरीदा है।  इसमें पांच साल की संपूर्ण वारंटी अवधि और उसके बाद पांच साल अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।

संस्थान ने वित्त वर्ष 2019-20 के इस महीने में बायोकेमिस्ट्री विभाग के लिए अपनी प्रयोगशाला के लिए ऑटोमेटेड कैपिलरी इलेक्ट्रोफोरेसिस सिस्टम (निर्माण: सेबिया; मॉडल: कैपिलरी 2 फ्लेक्स पियरसिंग) की एक यूनिट की आपूर्ति और लगाने के लिए अनुबंध दिया है, जिसका कुल खर्च 48.38 लाख रुपये (लगभग) है। इसके साथ पांच साल तक संपूर्ण वारंटी अवधि है, जिसके बाद कलपुर्जों और सर्विसिंग समेत पांच साल की अतिरिक्त सीएमएस अवधि शामिल है।

संस्थान ने वित्त वर्ष 2019-20 के इस महीने में एनेस्थीसियोलॉजी विभाग के लिए, थ्रोम्बोल्स्टोग्राफी सिस्टम के एक सेट (निर्माण: इंस्टूमेंटेशन लेबोरेटरी; मॉडल: रोटेम डेल्टा 4) की आपूर्ति और स्थापना के लिए 14.54 लाख रुपये की लागत से अनुबंध दिया है, जिसके साथ पांच साल संपूर्ण वारंटी अवधि और उसके बाद पांच साल की सीएमसी अवधि है।

संस्थान ने वित्त वर्ष 2019-20 के इस महीने में रेडियोलॉजी और इमेजिंग विभाग के लिए पूरी तरह से खराब पुराने अल्ट्रासाउंड सिस्टम को वापस खरीदने के मुकाबले लगभग 24.10 लाख रुपये की लागत से एक अल्ट्रासाउंड सिस्टम सेट (निर्माण: माइंडरे, पी.आर. चीन; मॉडल: डीसी-80) को आपूर्ति और स्थापना के लिए अनुबंध दिया है। इसके साथ पांच साल की संपूर्ण वारंटी अवधि और उसके बाद कलपुर्जे और सर्विसिंग समेत पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि भी शामिल है।

संस्थान ने वित्त वर्ष 2019-20 के इस महीने में ऑर्थोपेडिक्स विभाग में आवश्यक उपकरणों और स्मोक इवेकुएटर के साथ इलेक्ट्रो सर्जिकल यूनिट (निर्माण: जॉनसन एंड जॉनसन प्राइवेट लिमिटेड; मॉडल: मेगा 1000 & 2200 जे) के एक सेट, रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन सिस्टम की एक यूनिट (निर्माण: स्ट्राइकर; मॉडल: क्रॉस फायर 2), और एक हाई स्पीड बर सिस्टम (निर्माण: स्ट्राइकर; मॉडल: रेम बी) की आपूर्ति और स्थापना के लिए अनुबंध दिया है, जिसकी कुल लागत 11.93 लाख रुपये (लगभग) है। इसके साथ पांच साल तक संपूर्ण वारंटी अवधि और उसके बाद पुर्जों और सर्विसिंग समेत पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।

  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में जनरल सर्जरी विभाग में मरीजों की देखभाल की सुविधा के लिए लगभग 30.64 लाख रुपये की लागत से थॉम्पसन रिट्रैक्टर सिस्टम (निर्माण: थॉम्पसन सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स इंक, यूएसए) की एक यूनिट खरीदी है। इसमें पांच साल की समग्र वारंटी अवधि और उसके बाद पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।
  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में, कोविड-19 के प्रकोप के मद्देनजर अस्पताल के आईसीयू और आइसोलेशन क्षेत्रों के लिए 94.40 लाख रुपये की लागत से दो एयर डिकन्टैमनेशन यूनिट (निर्माण: एयरइनस्पेस; मॉडल: प्लाज्मेयर गार्जियन टी-2006) की आपूर्ति और स्थापना के लिए अनुबंध दिया है। इसमें मशीन में लगने वाली सभी सामग्रियों और कल-पुर्जों की आपूर्ति सहित पांच साल की समग्र वारंटी अवधि और उसके बाद पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।
  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में, अस्पताल में विभिन्न ओटी को वापस खरीद के मुकाबले कुल 77.50 लाख रुपये की लागत से स्मोक इवैकुएटर और अन्य जरूरी उपकरणों के साथ आठ इलेक्ट्रो सर्जिकल यूनिट (निर्माण: जॉनसन एंड जॉनसन मॉडल: मेगा 1000 और 2200जे) की आपूर्ति और स्थापना के लिए अनुबंध प्रदान किया है। इसमें पांच साल की समग्र वारंटी अवधि और पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।
  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में, अपने नर्सिंग हॉस्टल और क्वारंटीन सेंटर के लिए कुल 46.78 लाख रुपये की लागत से पांच साल की वारंटी के साथ 50 मेटालिक बेड (निर्माण: एम/एस गोदरेज इंटरिओ; मॉडल : ईक्यू बेड विथ हेड बोर्ड) की आपूर्ति के लिए अनुबंध प्रदान किया है। इसमें कोविड-19 के प्रकोप को देखते हुए 8500 प्रोटेक्टिव पर्सनल इक्विपमेंट (पीपीई) किट (निर्माण: पद्म श्री इंप्लेक्स; मॉडल: पीपीई) की आपूर्ति भी शामिल है।
  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में, ऑपरेशन थियेटर को वापस खरीदने के मुकाबले लगभग 36.70 लाख रुपये की लागत से ओटी टेबल की एक यूनिट (निर्माण: माइंडरे/पी.आर. चीन; मॉडल: हाईबेस 8300) को खरीदा है, जिसमें मेफील्ड व अन्य अनिवार्य उपकरण शामिल हैं। इसके साथ पांच साल की समग्र वारंटी अवधि और पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।
  • संस्थान के हड्डी रोग विभाग में वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में 11.12 लाख रुपये की लागत एक हाई स्पीड बर सिस्टम (निर्माण: स्ट्राइकर; मॉडल: रेम बी) जोड़ा गया है। इसके साथ पांच साल की समग्र वारंटी अवधि और पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।
  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में, एनेस्थिसियोलॉजी विभाग के लिए चार ऑटोमेटेड कफ प्रेशर मॉनिटरिंग एंड मेजरमेंट (निर्माण: हैमिल्टन; मॉडल: इन्टेलिकफ), हॉमिल्टन सी3एस पर हाई फ्लो आक्सीजन थेरेपी (एचएफओ) के लिए चार सॉफ्टवेयर (निर्माण: हैमिल्टन; मॉडल:एचएफओ) और एक थ्रोम्बोएलास्टोग्राफी सिस्टम (निर्माण: इंस्ट्रूमेंटेशन लैब; मॉडल: रोटेम डेल्टा 4) को कुल 37.31 लाख रुपये की लागत से खरीदा है। इसके साथ पांच साल की समग्र वारंटी अवधि और पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।
  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में, आईसीयू और आइसोलेशन क्षेत्रों के लिए 01.76 करोड़ रुपये की कुल लागत से दो एयर डिकंटैमिनेशन यूनिट (निर्माण: एयरइनस्पेस; मॉडल: प्लाज्मेयर गार्जियन टी-2006), (सीसीयू/ आसीसीयू/पीआईसीयू के लिए )आवश्यक उपकरणों के साथ सात आईसीयू वेंटिलेटर्स खरीदे हैं। इसमें इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्रियों और कल-पुर्जों के सहित पांच साल की समग्र वारंटी अवधि और पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।
  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में, कुल 09.76 लाख रुपये की लागत (लगभग) से पांच साल की समग्र वारंटी अवधि के साथ एनेस्थिसियोलॉजी विभाग के वेंटीलेटर (हैमिल्टन एच900) के लिए छह ह्यूमिडिफायर खरीदा है।
  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में, एनेस्थिसियोलॉजी विभाग के लिए 38.25 लाख रुपये की लागत से एमआरआई कम्पैटिबल एनेस्थीसिया वर्क स्टेशन (निर्माण: ड्रेगर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड; मॉडल: फेबियस एमआरआई) की एक यूनिट की आपूर्ति और स्थापना के लिए अनुबंध प्रदान किया है। इसमें इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्री और कल-पुर्जों के साथ पांच साल की समग्र वारंटी अवधि और पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।
  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में, वापस खरीद के मुकाबले कुल 98.90 लाख रुपये लागत (लगभग) से 4-बॉडी मॉर्चरी चैंबर (निर्माण: ड्रेगर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड; मॉडल: फैबियस एमआरआई) की तीन यूनिट की आपूर्ति और स्थापना के लिए अनुबंध प्रदान किया है। इसमें पांच साल की समग्र वारंटी अवधि और पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।
  • संस्थान ने वित्त वर्ष 2020-21 के इस महीने में, कुल 25.54 लाख रुपये की लागत से छह यूवीसी डिसइंफेक्शन सिस्टम (निर्माण: इबिस मेडिकल इक्विपमेंट एंड सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड; मॉडल: रेज कोव) की आपूर्ति और स्थापना के लिए अनुबंध दिया है। इसमें पांच साल की समग्र वारंटी अवधि और पांच साल की अतिरिक्त सीएमसी अवधि शामिल है।

8.5 नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, इंफाल

  • रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आरआईएमएस), इम्फाल, पूरे उत्तर पूर्व से भारत के शीर्ष 40 मेडिकल संस्थानों में शामिल एकमात्र मेडिकल कॉलेज है।
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी एनआईआरएफ रैंकिंग-2019 में रिम्म 28वें स्थान पर है।
  • रिम्स, इम्फाल में एमबीबीएस सीटों की संख्या वार्षिक आधार पर 100 से बढ़कर 125 हो गई। बढ़ी हुई 25 सीटों में 11, 10 और 4 सीटें क्रमशः आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यू), पूरे उत्तर पूर्व और ऑल इंडिया कोटा (एआई क्यू) के लिए आरक्षित हैं।
  • शैक्षणिक सत्र 2019-20 से सालाना 2 सीटों के साथ डीएम (नेफ्रोलॉजी) कोर्स शुरू किया गया ।
  • शैक्षणिक सत्र 2019-20 से सालाना 8 सीटों के साथ एमएससी नर्सिंग पाठ्यक्रम, नर्सिंग कॉलेज, रिम्स, इम्फाल में शुरू किया गया।
  • रेडियोथेरेपी वार्ड में 51 बिस्तरों को बढ़ाया गया है।

8.6 रीजनल इंसस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल एंड नर्सिंग साइंसेज (आरआईपीएएनएस), आइजोल, मिजोरम

रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल एंड नर्सिंग साइंसेज (आरआईपीएएनएस), आइजोल को गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने 1995-96 में सिक्किम समेत उत्तर पूर्व के लोगों को नर्सिंग, फॉर्मेसी और पैरामेडिकल शिक्षा उपलब्ध कराने और अन्य मेडिकल व टेक्नोलॉजिकल सेवाओं के विकास के साथ नर्सिग शिक्षा व नर्सिंग सेवाओं की रफ्तार को बनाए रखने के लिए स्थापित किया था। संस्थान को 01.01.2007 को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को हस्तांतरित कर दिया गया था।

वर्तमान में संस्थान निम्नलिखित पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहा है:

 

क्रम संख्या

पाठ्यक्रम का नाम

अवधि

1.

बीएससी नर्सिंग

4 वर्ष

2.

बीएससी एमएलटी (मेडिकल लेबरोटरी टेक्नोलॉजी)

4 वर्ष

3.

बी. फॉर्मा

4 वर्ष

4.

बीएससी. आरआईटी (रेडियो इमेजिंग टेक्नोलॉजी)

4 वर्ष

5.

बी. ऑप्टम (ऑप्टोमेट्री)

4 वर्ष

6.

एम.फॉर्मा

2 वर्ष

 

वर्ष 2019-20 के दौरान मिली सफलताएं:

 

  1. विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने वाले नए छात्रों की संख्या - 194
  2. विभिन्न पाठ्यक्रमों में छात्रों की कुल क्षमता - 683
  3. उत्तीर्ण छात्रों की कुल संख्या - 172
  4. आरआईपीएएनएस में अतिरिक्त सुविधाओं जैसे, शैक्षणिक ब्लॉक-III, पुस्तकालय सह परीक्षा कक्ष, लड़के और लड़कियों के लिए छात्रावास का निर्माण कार्य पूरा हो गया था और इमारतों को 5.7.2019 को आरआईपीएएनएस को सौंप दिया गया था।
  5. 27 नए पदों (प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर, ट्यूटर, अनुभाग अधिकारी, लेखा अधिकारी इत्यादि पदों के सहित) के भर्ती नियमों को मंत्रालय से 22.01.2020 को स्वीकृति मिली थी।
  6. आरआईपीएएनएस की विकास परियोजना के सिविल कार्यों के लिए ई-टेंडर को 01.09.2019 (229.46 करोड़ रुपये) को प्रकाशित किया गया था। तकनीकी निविदा और वित्तीय बोली को खोला गया और 217.97 करोड़ रुपये की सबसे कम बोली लगाने वाले काम देने की सिफारिश 5.2.2020 को मंत्रालय को सौंप दी गई थी। परियोजना की अनुमानित लागत 480.12 करोड़ रुपये है।

वर्ष 2019-20 के दौरान वित्तीय स्थिति (लाख रुपये में)

 

क्रम संख्या

विवरण

बीई

(करोड़ में)

पिछले वर्ष खर्च न पाने वाली शेष राशि

मंत्रालय द्वारा जारी राशि

आंतरिक रूप से सृजित संसाधन

31.3.2019 तक व्यय

31.3.2019 तक खर्च न हो सकी राशि

1.

जीआईएजनरल

15.00

104.80

1500.00

-

1,336.96

267.84

2.

पूंजीगत संपत्ति सृजित करने के लिए अनुदान

 

9.18

 

1,125.98

 

1,468.00

 

-

 

2,593.34

 

0.64

3.

जीआईए वेतन

11.00

140.41

1,080.00

83.81

1,038.53

265.69

कुल

35.18

1,371.19

4,048.00

83.81

4968.83

534.17

 

9. राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनएलईपी)

 

  • नए मामलों में ग्रेड-II दिव्यांगता (जी2डी)/देखने में समस्या का प्रतिशत 2019-20 में 2.41% से घटकर 30 सितंबर, 2020 तक 2.21% हो गया है।
  • प्रति 10 लाख आबादी पर नए मामलों में जी2डी 31 मार्च, 2020 को 1.96/दस लाख आबादी से घटकर 30 सितंबर, 2020 को 0.81/दस लाख आबादी (वार्षिक आधार पर) हो गया है।
  • बच्चों में रोगों के मामलों का प्रतिशत 31 मार्च, 2020 को 6.87% से घटकर 30 सितंबर, 2020 को 5.30% हो गया है।
  • केंद्रीय कुष्ठ प्रभाग ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सक्रिय मामलों का पता लगाने और नियमित निगरानी के लिए नई परिचालन रणनीति पेश की है, ताकि कुष्ठ रोग के मामलों की नियमित रूप से पहचान सुनिश्चित की जा सके और ग्रेड-II की दिव्यांगता को रोकने के लिए उसका शुरुआती अवस्था में इलाज किया जा सके।
  • 34 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के जिलास्तरीय प्रतिनिधियों को वेब आधारित रिपोर्टिंग सिस्टम निकुष्ठ में कुष्ठ रोगों के मामलों के आंकड़े दर्ज करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। कुल 1422 प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया है।
  • एकीकृत दृष्टिकोण को मजबूत करने के क्रम में, कुष्ठ रोग की जांच को बच्चों (0-18 वर्ष) की स्क्रीनिंग के लिए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्षेत्र (आरबीएसके) व राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यकम (आरकेएसके) में और 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए आयुष्मान भारत में शामिल कर दिया गया है। आरबीएसके, आरकेएसके और एनएलईपी के राज्य नोडल अधिकारियों के साथ स्क्रीनिंग उपकरणों, रेफर करने की प्रक्रियाओं और मामलों को दर्ज करने के बारे में 20 और 21 अक्टूबर, 2020 को वर्चुअल प्लेटफॉर्म के जरिए सहयोगात्मक प्रशिक्षण पूरा किया गया है।
  • कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए, स्वस्थ हो चुके कुष्ठ रोगियों के बयानों के साथ तीन लघु फिल्में तैयार की गई हैं, जिन्हें मीडिया योजना के अनुसार 18 राज्यों में दूरदर्शन चैनलों के माध्यम से प्रसारित किया जा रहा है।
  • उपरोक्त गतिविधियों के अलावा, कोविड-19 महामारी के दौरान एनएलईपी के तहत विभिन्न गतिविधियां संचालित करने के लिए सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को अलग-अलग रणनीति वाले दिशानिर्देश जारी किए गए, ताकि निम्नलिखित बातों को सुनिश्चित किया जा सके:-
  • कोविड-19 के कारण किए गए लॉकडाउन के दौरान कुष्ठ रोगियों तक एमडीटी की निर्बाध आपूर्ति
  • शारीरिक दिव्यांगता से पीड़ित कुष्ठ रोगियों के लिए निर्बाद डीपीएमआर सेवाएं
  • कोविड-19 महामारी के दौरान घर वापस लौटने वाले प्रवासियों के बीच इलाज कराने वाले कुष्ठ रोगियों की पहचान करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए थे और सुनिश्चित किया गया कि उनका इलाज पहले वाली जगह तरह ही निर्बाध रूप से चलता रहे। विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने ऐसे कई रोगियों की सफलतापूर्वक पहचान की है और इलाज उपलब्ध कराया है।

10. कैंसर, मधुमेह, हृदय रोगों और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस)

कैंसर, मधुमेह, हृदय रोगों और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत जनवरी से नवंबर 2020 तक की अवधि में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मुंह के कैंसर, स्तन कैंसर और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लिए 3,89,10,383 लोगों की जांच की गई। (स्रोत: आयुष्मान भारत, एनएचएसआरसी)।

11. राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी)

11.1 मलेरिया

  • विश्व मलेरिया रिपोर्ट ने लगातार 3 वर्षों से मलेरिया कार्यक्रम में भारत की प्रगति की सराहना की है, और भारत को इस मामले में विश्व में सबसे तेजी से आगे बढ़ने/सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले देश के रूप में स्वीकार किया गया है।
  • 2018 में 429928 मामलों की तुलना में 2019 में मलेरिया के 338494 मामले दर्ज किए गए, जो एक साल के अंतर पर 2019 में 21.26% गिरावट का संकेत है। इसी तरह, 31 अक्टूबर 2020 तक बीते साल की इसी अवधि की तुलना में मलेरिया के मामलों में 47.77% Qj पीएम मामलों में 25.15% की गिरावट आई है।
  • मलेरिया को 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा-नगर हवेली और लक्षद्वीप)) में अधिसूचित की जाने वाली बीमारी घोषित किया गया है।
  • 2020 तक, 24 राज्यों ने मलेरिया उन्मूलन के लिए प्रदेश टास्क फोर्स और जिला टास्क फोर्स गठित किया है। शेष राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश, प्रदेश टास्क फोर्स और जिला टास्क फोर्स बनाने की प्रक्रिया में हैं।
  • मलेरिया मामलों के उच्च दबाव वाले क्षेत्रों में वर्ष 2019-20 के दौरान 2.24 करोड़ टिकाऊ कीटरोधी मच्छरदानी (एलएलआईएन) की आपूर्ति/वितरण किया गया है। इसके अलावा 2.52 करोड़ एलएलआईएन की खरीद प्रक्रिया चल रही है, और 31 दिसंबर, 2020 तक पूरी हो जाने की संभावना है। समुदाय के स्तर पर एलएलआईएन के उपयोग को बड़े पैमाने पर स्वीकार किया गया है और यह मलेरिया में तेजी से गिरावट के लिए जिम्मेदार प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक है।
  • एनवीबीडीसीपी के डीटीई. ने आरओएचएफडब्ल्यू, भुवनेश्वर, ओडिशा में 3-13 जनवरी, 2020 के बीच नेशनल मलेरिया माइक्रोस्कोपी रिफ्रेशर ट्रेनिंग के दूसरे बैच की ट्रेनिंग का आयोजन किया था
  • एनवीबीडीसीपी के डीटीई. ने डब्ल्यूएचओ और राष्ट्रीय मलेरिया शोध संस्थान के सहयोग से एनआईएमआर, दिल्ली में डब्ल्यूएचओ ईसीएएमएम सुविधादाता द्वारा मलेरिया माइक्रोस्कोपी पर विभिन्न राज्यों के लैब टेक्नीशनियन के प्रमाणन के लिए 20-24 जनवरी, 2020 (प्रथम बैच) और 27-31 जनवरी, 2020 (दूसरा बैच) को वाह्य सक्षमता मूल्यांकन (ईसीए) का आयोजन किया गया था।
  • विभिन्न राज्यों के प्रयोगशाला तकनीशियनों के एक प्रमुख समूह की नेशनल रिफ्रेशर ट्रेनिंग और प्रमाणीकरण के जरिए मलेरिया माइक्रोस्कोपी, मलेरिया उन्मूलन के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड को मजबूत किया गया है। माइक्रोस्कोपिक गतिविधियों और प्रयोगशाला क्षमता निर्माण को मजबूत करने के लिए अब तक 11 एल-1 और 13 एल-2 डब्ल्यूएचओ प्रमाणित तकनीशियनों को प्रशिक्षित और प्रमाणित किया गया है।

11.2 काला-जार

  • 2020 में अक्टूबर तक 1735 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2019 में इसी अवधि के दौरान 2863 मामले दर्ज किए गए थे। अक्टूबर, 2020 तक बगैर किसी मौत के कुल मामलों में 39.4% की गिरावट दर्ज की गई।
  • अक्टूबर 2020 तक 98% काला-जार प्रभावित ब्लॉक ने ब्लॉक स्तर पर प्रति 10,000 आबादी पर काला-जार के एक से भी कम मामले के उन्मूलन लक्ष्य को हासिल कर लिया है। अभी 13 ब्लॉक (बिहार-3 और झारखंड-10 ब्लॉक) लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए हैं।
  • काला-जार के स्वतंत्र मूल्यांकन के निष्कर्षों के आधार पर, काला-जार की रोकथाम गतिविधियों के कार्यान्वयन को मजबूत किया गया है। सघन कार्ययोजना के लिए उच्च प्राथमिकता वाले गांवों की पहचान की गई है। सक्रिय मामलों का पता लगाने और प्रकोप के प्रबंधन के लिए मानकीकृत प्रक्रिया (एसओपी) को तैयार किया गया है और क्षेत्रीय कार्यालयों में अच्छी तरह से प्रसारित किया गया है।

11.3 डेंगू और चिकनगुनिया

  • चिन्हित सेन्टनल सर्विलांस हॉस्पिटल्स (एसएसएच) की संख्या 2019 में 680 से बढ़कर 2020 में 695 हो गई है।
  • डेंगू मामलों में मृत्युदर (सीएफआर) (प्रति 100 मामलों में मौत) एक प्रतिशत से नीचे बनी हुई थी
  • मच्छर और अन्य लार्वा नियंत्रण प्रतिक्रिया (एमवीसीआर) पर दिशानिर्देश को बनाया गया था और एनवीबीडीसीपी और डब्ल्यूएचओ की ओर से संयुक्त रूप से 23 और 24 जुलाई को आयोजित एक वेबिनार के माध्यम से जारी किया गया था।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान डेंगू और कोविड-19 सह-संक्रमण के मामलों का प्रबंधन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर दिशानिर्देशों को बनाया और सभी राज्यों व साझेदारों के साथ साझा किया गया था।

11.4 जापानी इंसेफेलाइटिस

  • 60 पीआईसीयू में से, 38 पीआईसीयू (असम-6, बिहार-7, तमिलनाडु-5, उत्तर प्रदेश-10 और पश्चिम बंगाल-10) का संचालन शुरू किया गया है।
  • सभी 10 भौतिक चिकित्सा एवं पुनर्वास (पीएमआर) विभागों के लिए धनराशि दी गई है। 8 पीएमआर काम कर रहे हैं। (असम-2, तमिलनाडु-1, उत्तर प्रदेश-3 और पश्चिम बंगाल-2)
  • जेई से सबसे ज्यादा प्रभावित 243* जिलों में बच्चों (1-15वर्ष) में जेई टीकाकरण के अभियान पूरा कर लिया गया है। जेई टीकाकरण अभियान में शामिल करने के लिए 60 अन्य जिलों की पहचान की गई है। (*टीकाकरण डिवीजन ने वर्षों में जिलों के बंटवारे के आधार पर जिलों की संख्या को बढ़ाकर 276 कर दिया है)
  • वयस्क जेई टीकाकरण में 31 जिलों (असम (9), उत्तर प्रदेश (7) और पश्चिम बंगाल (15) को शामिल किया गया है।
  • जेई की जांच के लिए 143 प्रहरी स्थलों (सेन्टनल साइट्स) और 15 एपेक्स रेफरल लैबरोटरी (उच्च रेफरल प्रयोगशालाएं) की पहचान की गई है। 2019 में 932 किट की और 2020 में 372 किट (31.10.2020 तक) की आपूर्ति की गई है।

11.5 लिंफैटिक फाइलेरिया

  • विशेष रूप से प्रभावित जिलों 272 (257+15 नए) में से, 98 जिले प्रसार मूल्यांकन सर्वेक्षण (टीएएस)-1 में सफल पाए गए हैं और इसके चलते व्यापक स्तर पर दवाएं देने का काम (एमडीए) रोक दिया गया है। अक्टूबर 2020 तक, 98 में से 87 जिले टीएएस-2 और 42 जिले टीएएस-3 में सफल हो चुके हैं। 2020 के दौरान (अक्टूबर तक) 5 जिले टीएएस-2 और 11 जिले टीएएस-3 में सफल रहे हैं।

2020 के दौरान (अक्टूबर तक), 84 जिलों में व्यापक स्तर पर दवा देने का अभियान एमडीए चलाया गया, जिसमें वे 7 जिले भी शामिल रहे, जिनमें एमडीओ को ट्रिपल ड्रग थेरेपी (आईडीए) यानी आइवरमेक्टिन+ डीईसी + अल्बेंडाजॉल के साथ चलाया गया था।

  • 13-16 जुलाई, 2020 को वर्चुअल माध्यम से क्षेत्रीय कार्यक्रम समीक्षा समूह (आरपीआरजी) डब्ल्यूएचओ की बैठक आयोजित की गई थी।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान एमडीए राउंड के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया के लिए जरूरी साधनों को बनाया और सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया।

12. भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई)

1. पैकेजिंग और अल्कोहलिक पेय पर दो नए वैज्ञानिक पैनलों को बनाया गया है। इससे कुल वैज्ञानिक पैनलों की संख्या 21 हो गई है, जिसमें 11 वर्टिकल (विशेष वस्तुओं जैसे कि तेल और वसा से संबंधित) और 10 हॉरिजॉन्टल पैनल (विभिन्न उत्पादों के सभी पहलुओं जैसे कि कीटनाशक अवशेष) शामिल हैं।

2. 2020 के दौरान कुल 19 अंतिम अधिसूचनाएं और 16 मसौदा संशोधन विनियम जारी किए गए। अंतिम अधिसूचनाओं में, अन्य बातों के साथ शामिल है-

(i) खाद्य सुरक्षा और मानक (स्कूली बच्चों के लिए सुरक्षित भोजन और संतुलित आहार) विनियम, 2020। इस विनियम का उद्देश्य स्कूलों को राष्ट्रीय पोषण संस्थान से जारी दिशानिर्देशों के अनुसार स्कूली बच्चों के बीच सुरक्षित भोजन और संतुलित आहार को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। इसके अलावा, जिन खाद्य पदार्थों को संतृप्त वसा (सेचुरेटेड फैट) या ट्रांस-फैट या चीनी या सोडियम की अधिक मात्रा (एचएफएसएस) वाला बताया गया है, उनकी स्कूल की कैंटीन/मेस परिसर/छात्रावास की रसोई या स्कूल गेट से किसी भी दिशा में पचास मीटर के दायरे में बिक्री नहीं की जा सकती है।

 

(ii) खान-पान की सेवाएं देने वाले संस्थानों में सूचनाएं प्रदर्शित करने के बारे में खाद्य सुरक्षा और मानक (पैकेजिंग एवं लेबलिंग) संशोधन विनियम-2020 : खान-पान की सेवाएं देने वाले संस्थानों, जिनके पास केंद्रीय लाइसेंस है या 10 या इससे ज्यादा जगहों पर आउटलेट्स हैं, को मेनू कार्ड, बुकलेट या बोर्ड पर खाद्य पदार्थों की प्रति सेवा और आकार के हिसाब से किलो कैलोरी में कैलोरी मान देना जरूरी होगा। यहां तक कि ई-कॉमर्स खाद्य व्यवसाय संचालकों को भी अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर खाद्य उत्पादों की कैलोरी जानकारी प्रदर्शित करनी होगी।

(iii) खाद्य सुरक्षा और मानक (बिक्री पर प्रतिबंध और प्रतिबंध) तीसरा संशोधन विनियम, 2020 अप्रयुक्त/ताजे वनस्पति तेल/वसा में कुल पोलर कंपाउंड की सीमा से संबंधित है।

3. खाद्य व्यवसायों पर नियमों के अनुपालन के बोझ को घटाने, लाइसेंस/पंजीकरण को तार्किक बनाने, कागजी कार्रवाई इत्यादि को कम करने के लिए, मसौदा संशोधन एफएसएस (लाइसेंसिंग और पंजीकरण) विनियम, 2011 को अंतिम रूप दिया गया है और अधिसूचित किया जा रहा है।

4. खाद्य व्यवसाय संचालकों की चिंताओं को दूर करने, व्यवसाय करने में सरलता को बढ़ाने, उपभोक्ता की सुरक्षा सुनिश्चित करने और साथ ही साथ में गलत काम करने वालों को रोकने के लिए सजा को बढ़ाने के लिए, एफएसएसएआई ने खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम- 2006 में कई संशोधनों का प्रस्ताव किया है। मौजूदा अधिनियम में प्रस्तावित प्रमुख संशोधनों में निर्यातऔर पशु आहारको एफएसएसएआई के दायरे में लाना; कोडेक्स और अन्य अधिनियमों इत्यादि की परिभाषाओं में तालमेल लाना; अध्यक्ष की भूमिका और कर्तव्यों को परिभाषित करना; विनियमों को अंतिम रूप देने में गतिशीलता सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियाओं की समीक्षा करना; कुछ मौजूदा प्रावधानों में और अधिक स्पष्टता लाना; संदर्भ प्रयोगशालाओं के लिए प्रावधान करना; बिना खुले पैकेज्ड फूड के मामले में रिटेलर और डिस्ट्रीब्यूटर को जवाबदेही से बचाना; दंड प्रावधानों को तार्किक बनाना; कुछ मामलों में मजबूत करने सहित; कोष गठित करने के प्रावधान इत्यादि शामिल हैं। इस पर मंत्रालय ने एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया था और एफएसएसएआई जनता से मिली प्रतिक्रियाओं की जांच जारी है।

5. सभी खाद्य व्यवसाय संचालकों को खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा-31 के तहत पंजीकरण कराने या लाइसेंस लेने की जरूरत होती है। लाइसेंस और पंजीकरण के काम में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। 30.11.2020 तक 70,589 केंद्रीय लाइसेंस, 15,09,846 राज्य लाइसेंस और 67,32,447 पंजीकरण जारी किए गए हैं।

एफएसएसएआई ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फूड लाइसेंसिंग और पंजीकरण की मौजूदा प्रणाली की जगह फूड सेफ्टी कंप्लायंस सिस्टम (एफओएससीओएस) नाम से क्लाउड आधारित नया उन्नत ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया है। एफओएससीओएस को किसी भी नियामक अनुपालन संबंधी लेनदेन के लिए एफबीओ की एफएसएसएआई संबंधी सभी जरूरतों को एक ही स्थान पर पूरा करने की संकल्पना के साथ बनाया गया है। शुरुआत में 01 जून 2020 से इसे 9 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू किया गया था और 1 नवंबर, 2020 से सभी शेष राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लागू कर दिया गया है। शुरू में एफओएससीओएस लाइसेंस, पंजीकरण, निरीक्षण और वार्षिक रिटर्न मॉड्यूल ही उपलब्ध कराएगा। हालांकि, चरणबद्ध तरीके से इसमें अन्य गतिविधियों/ मॉड्यूलों को लागू किया जाएगा और यह विनियमों के अनुपालन के लिए किसी एफबीओ की एफएसएसएआई संबंधी सभी जरूरतों को एक ही जगह पर पूरा करने का काम करेगा।

उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए, दुकानों पर डिब्बों में/ ट्रे में/ बिना पैक की हुई भारतीय मिठाइयों पर बेस्ट बिफोर यूज’ (इस्तेमाल के लिए उपयुक्ति अवधि) की जानकारी देने को अनिवार्य बनाने के लिए निर्देश जारी किए गए हैं। इसके अलावा, एफबीओ भी विनिर्माण की तारीख लिख सकते हैं. लेकिन यह पूरी तरह से स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी होगा। यह आदेश 1 अक्टूबर 2020 से प्रभावी हो गया है।

7. सरकार से मिले निर्देश के अनुसार, जनहित में घरेलू उपयोग के लिए शुद्ध सरसों तेल के निर्माण और बिक्री को सुविधाजनक बनाने के दृष्टिकोण के साथ सरसों के तेल में अन्य तेलों के मिश्रण पर रोक लगाने के लिए प्रस्तावित मसौदा एफएसएस (बिक्री पर निषेध और प्रतिबंध) संशोधन विनियम, 2020 को प्रभावी बनाने के लिए 23 सितंबर, 2020 को धारा-16(5) के तहत जारी निर्देश जारी किए गए। इसे 1.10.2020 से प्रभावी बनाया गया है। हालांकि, माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने फिलहाल इस आदेश पर रोक लगा दी है।

8. आईएमएस अधिनियम की धारा-3,4,9 आदि के उल्लंघन के लिए उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ अदालतों में शिकायत दर्ज कराने के लिए सभी खाद्य सुरक्षा आयुक्तों/केंद्रीय लाइसेंसिंग अधिकारियों को 8 सितंबर, 2020 को एक सलाह जारी की गई है। आईएमएस एक्ट की ये धाराएं शिशुओं के दूध के विकल्पों पर किसी संगोष्ठी, बैठक, सम्मेलन शैक्षिक पाठ्यक्रम, प्रतियोगिता, फेलोशिप, शोध कार्य और स्पांसरशिप के लिए वित्तपोषण करने सहित शिशुओं के लिए दूध के विकल्पों के विज्ञापन, प्रचार और शिशुओं के लिए दूध के विकल्पों के इस्तेमाल या बिक्री पर किसी तरह के आर्थिक प्रोत्साहन या बोतल से दूध पिलाने या शिशु आहार खिलाने को बढ़ावा देने या स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को शिशुओं के लिए दूध के विकल्पों का समर्थन करने के लिए प्रलोभन देने जैसी विभिन्न बातों पर रोक लगाती हैं।

9. एफबीओ को राहत देने के लिए, लेबल लगाने के दौरान होने वाली गलतियों को अपवादों (लेबल लगाने में मामूली प्रकृति की गलतियां, जिनसे खाद्य सुरक्षा का कोई जोखिम नहीं है) और अनिवार्य मामलों (जिनके खिलाफ अदालत में कार्रवाई की जा सकती है) के रूप में वर्गीकृत करने वाली एक सूची तैयार और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा किया गया है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशो को धारा-32 के तहत सुधार नोटिस जारी करते हुए खाद्य सुरक्षा जोखिम न पैदा करने वाले मामूली लेबल संबंधी दोषों से जुड़े मामलों से निपटने के लिए राज्य डीओ और एफएसओ को आवश्यक निर्देश देने की सलाह दी गई है।

10. खाद्य सुरक्षा के विभिन्न मानकों पर राज्यों के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए एफएसएसएआई ने राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक विकसित किया है। यह सूचकांक पांच महत्वपूर्ण मापदंडों पर राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदर्शन पर आधारित है। इन मापदंडों में मानव संसाधन और संस्थागत आंकड़े (भारांक-20%), अनुपालन (30%), खाद्य परीक्षण का ढांचा और निगरानी (20%), प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण (10%) और उपभोक्ता सशक्तीकरण (20%) शामिल है। 2019-20 के लिए, राज्यों की रैंकिंग को 7 जून, 2020 को जारी की गई थी। बड़े राज्यों में, गुजरात शीर्ष स्थान पर था थाजिसके बाद तमिलनाडु और महाराष्ट्र थे। छोटे राज्यों में, गोवा पहले स्थानरहा, जिसके बाद मणिपुर और मेघालय थे। केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़, दिल्ली और अंडमान द्वीप समूह ने शीर्ष रैंक हासिल की। सूचकांक रैंकिंग जारी होने के साथ, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ज्यादा सतर्क हुए हैं और सूचकांक में शामिल विभिन्न मापदंडों के लिए अपनी स्थिति को सुधारने की दिशा में काम कर रहे हैं।

11. प्रोपराइटरी फूड्स के दायरे से खाद्य श्रेणी (13) (विशेष पोषक उपयोग के लिए खाद्य पदार्थ) को बाहर करने के लिए 06.11.2020 को एक आदेश जारी किया गया है।

12. राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के खाद्य सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में मौजूद अंतर को भरने और तकनीकी ज्ञान व बेहतर व्यवहार को साझा करते हुए सुरक्षित और पोषणयुक्त भोजन की संस्कृति को बढ़ावा देने के क्रम में, एक साझा जवाबदेही के रूप में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तकनीकी और वित्तीय मदद को देने का प्रस्ताव है। इसके अनुसार, देश में खाद्य सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए एफएसएसएआई और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के बीच एक समझौता पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर प्रस्तावित है। अब तक 23 राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों से प्रस्ताव मिल चुके हैं। 18 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए कार्य योजनाओं को अंतिम रूप दिया जा चुका है और एमओयू पर हस्ताक्षर होने के बाद राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को सहायता दी जाएगी।

13. कोविड-19 महामारी के दौरान, एफएसएसएआई ने सुरक्षित भोजन की निर्बाध आपूर्ति को सुविधाजनक बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। खाद्य पदार्थों की आयात मंजूरी और राष्ट्रीय खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं को आवश्यक सेवा घोषित किया गया था। कुछ खाद्य पदार्थों के अनंतिम अनुमति के माध्यम से खाद्य आयात में तेजी लाई गई। महामारी अवधि के दौरान पैदा हुए हालात से उत्पन्न जरूरत को देखते हुए खाद्य व्यवसायों के लिए कुछ विनियामकों के अनुपालन में छूट दी गई है/टाला गया है। एक विस्तृत निर्देश कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी के दौरान खाद्य कारोबार के लिए खाद्य स्वच्छता और सुरक्षा दिशानिर्देशको जारी किया गया है। एफएसएसएआई ने नागरिकों के लिए कोविड-19 के दौरान सही खान-पानपर एक ई-हैंडबुक जारी की, जो सुरक्षित खाद्य प्रथाओं का सही के पालन करने और स्वास्थ्य व पोषण संबंधी सुझावों को अपनाने के महत्व पर जोर देती है। एफएसएसएआई जनजागरूकता के लिए खान-पान में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दूर करने और गैर-संक्रामक रोगों (एनसीडी) को घटाने के लिए नमक, चीनी और फैट में कमी लाने के लिए फोर्टीफाइड खाद्य पदार्थों, आहार विविधता और स्वस्थ व्यंजनों के बारे में डू यू एट राइट’ (क्या आपने सही खाना खाया है?) जैसी पुस्तकों और सोशल मीडिया के माध्यम से सूचनाएं प्रसारित कर रहा है।

14. एफएसएसएआई द्वारा खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम-2006 की धारा-43 (1) के तहत 5 अन्य खाद्य प्रयोगशालाओं को मान्यता दी गई है और अधिसूचित किया गया है। इसने अधिसूचित खाद्य प्रयोगशालाओं की कुल संख्या को 183 से बढ़ाकर 188 कर दी है। इसके अलावा, एफएसएस अधिनियम की धारा-98 के अस्थायी प्रावधानों के तहत 58 राज्य खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाएं भी काम कर रही हैं।

 

15. राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में खाद्य परीक्षण के ढांचे को उन्नत बनाने की केंद्रीय योजना के तहत, इस साल 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 29 राज्य खाद्य प्रयोगशालाओं को उन्नत बनाने के लिए बेसिक/अत्याधुनिक उपकरण खरीदने और माइक्रोबायोलॉजी जांच सुविधा (सीएएमसी और मानवशक्ति के साथ) स्थापित करने के लिए 43.88 करोड़ रुपये का अनुदान जारी किया गया है। इसके साथ, 24 एसएफटीएल में माइक्रोबायोलॉजिकल प्रयोगशालाएं स्थापित करने सहित 39 राज्य खाद्य प्रयोगशालाओं को उन्नत बनाने के लिए 29 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 312.98 करोड़ रुपये का कुल अनुदान मंजूर/जारी किया गया है।

16. अत्याधुनिक उपकरणों को खरीदने के लिए आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन मीट, हैदराबाद और आईआईएफपीटी, तंजापुर नाम के दो रेफरल लैब को 1.21 करोड़ रुपये (लगभग) अनुदान जारी किया गया है। अत्याधुनिक उपकरणों की खरीद के लिए पीबीटीआई, मोहाली, पंजाब को 50 लाख रुपये का बकाया अनुदान जारी किए जाने की संभावना है।

17. 15 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को ईंधन और उपभोग्य सामग्री के लिए पांच लाख रुपये प्रति फूड सेफ्टी ऑन व्हील्स (एफएसडब्ल्यू) अनुदान के साथ 36 अन्य फूड सेफ्टी ऑन व्हील्स को मंजूरी दी गई है। इससे देश भर में एफएसडब्ल्यू की संख्या 54 से बढ़कर 90 हो गई है, जिसमें 33 राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं।

18. एफएसएसएआई ने 3 बुनियादी उपकरणों जैसे फोटोडायोड एरे (पीडीए) के साथ एचपीएलसी सिस्टम, फ्लोरेसेंस और रिफ्रैक्शन इंडेक्स (आरआई) इंडिकेटर, एफआईडी, एनपीडी और ईसीडी के साथ जीसी और यूवी-विजिबल स्पेक्ट्रोफोटोमीटर को जीईएम के माध्यम से खरीदने की प्राथमिकता के साथ 21 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों को 19.92 करोड़ का अनुदान जारी किया है। एफएसएसएआई, राज्यों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर करने की प्रक्रिया में है और इस एमओयू का एक प्रमुख घटक खाद्य परीक्षण प्रणाली को मजबूत बनाना है, जिसके तहत कुछ और अनुदान जारी होने की उम्मीद है।

19. एफएसएसएआई ने देश भर के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को हाथ से संभालने योग्य किट/उपकरण दिए हैं, जो परीक्षण को आसान, तेज और प्रभावी बनाएंगे। इसमें 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तेल में टोटल पोलर कंपाउंड व एसिड वैल्यू की जांच करने के लिए 363 फ्राइंग ऑयल मॉनिटर और विभिन्न खाद्य नमूनों में एंटीबायोटिक दवाओं की पहचान करने के लिए 69 रैप्टर डायग्नोस्टिक रीडर दिया जाना शामिल है। इसी तरह, विभिन्न खाद्य पदार्थों में रोग पैदा करने वाले 9 सूक्ष्मजीवों का पता लगाने के लिए 30 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों को 210 माइक्रोबियल आइडेंटिफिकेशन किट दिए गए हैं।

20. एफएसएसएआई पूरे देश में सैंपल मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस) लागू कर रहा है, जिसके तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को खाद्य नमूनों के भंडारण और परिवहन के लिए कोल्ड चेन सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। एफएसएसएआई ने 21 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 548 कॉम्पैक्ट केबिन, 539 वाहनों पर लगे मोबाइल फ्रीजर बॉक्स, 2328 पोर्टेबल चिल बॉक्स और 2328 बैकपैक स्टाइल बैग्स उपलब्ध कराए हैं। शेष राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को भी एसएमएस दिया जाएगा, लेकिन यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तैयारियों पर निर्भर करेगा। यह बेहतर अनुपालन और निगरानी व्यवस्था बनाने के लिए भारत के सभी जिलों में संपूर्ण कोल्ड चेन को आपस में जोड़ेगा।

21.एफएसएसएआई ने अगस्त, 2020 महीने में पूरे देश में खाद्य तेल गुणवत्ता सर्वेक्षण किया है। इस सर्वेक्षण के परिणामों को एकत्रित किया जा रहा है। एफएसएसएआई ने मिलावट वाले प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करने के लिए दिवाली त्योहार की अवधि के दौरान दूध से तैयार उत्पादों (खोआ, पनीर, छेना, खोआ व पनीर से बनी मिठाइयों) के पूरे देश में जांच नमूने एकत्रित किए हैं। इस कार्रवाई के दौरान नवंबर, 2020 में सभी महानगरों से 50-50 नमूने, अन्य शहरों व जिलों से पांच-पांच नमूने लिए गए हैं। इसका उद्देश्य देश में त्यौहारों के दौरान बिकने वाले दूध से बने उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा का मूल्यांकन करना और अगर कोई है तो, मिलावटी और असुरक्षित दूध उत्पादों से जुड़ी प्रमुख जगहों की पहचान करना, और देश में बिकने वाले दूध से बने उत्पादों के गुणवत्ता आकलन के लिए निरंतर निगरानी वाला ढांचा बनाना है। इन नमूनों के परिणाम बहुत जल्द उपलब्ध हो जाएंगे।

एफएसएसएआई मुख्य खाद्य सामग्री के फोर्टिफिकेशन जैसे खाद्य तेल और दूध (विटामिन ए और डी), गेहूं का आटा और चावल (आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी 12 के साथ) और आयरन के साथ नमक (आयोडीन के अलावा) के लिए मानकों को अधिसूचित करते हुए सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने का काम रहा है। इसके लिए उसने 02.08.2018 को खाद्य सुरक्षा एवं मानक (खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन) विनियम-2018 अधिसूचित किया है। मानकों में फोर्टिफिकेशन की अधिकतम और न्यूततम मात्रा निर्धारित की गई है। एफएसएसएआई ने तेल और दूध के लिए इन मानकों को अनिवार्य करने का प्रस्ताव रखा है।

खाद्य आयात को 150 प्रवेश बिंदुओं पर विनियमित किया जा रहा है। एफएसएसएआई की 6 स्थानों जैसे कि चेन्नई, कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, कोचीन और तूतीकोरिन पर बने 22 प्रवेश बिंदुओं पर अपनी उपस्थिति है और शेष 128 प्रवेश बिंदुओं पर एफएसएसएआई ओर से तय मानदंडों के आधार पर आयातित खाद्य सामग्री को विनियमित करने के लिए सीमा शुल्क अधिकारियों को प्राधिकृत अधिकारियों के तौर पर अधिसूचित किया गया है। इस काम के लिए उन्हें जरूरी प्रशिक्षण भी दिया गया है।

आयात को विनियमित करने के लिए, वर्ष भर में जारी हुए कुछ महत्वपूर्ण निर्देशों में शामिल है:

शहद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और शहद उत्पादन में आयातित गोल्डन सिरप/इनवर्ट शुगर सिरप/राइस सिरप का दुरुपयोग रोकने के लिए 20 मई, 2020 को जारी आदेश के जरिए सभी आयातकों/खाद्य व्यवसाय संचालकों, जो भारत में गोल्डन सिरप/इनवर्ट शुगर सिरप/राइस सिरप का आयात कर रहे हैं, को निर्देश दिया गया है कि वे अनुमति पाने पहले सत्यापन के चरण में अंतिम उपयोग के साथ निर्माताओं, जिन्हें उपरोक्त आयातित खाद्य पदार्थों की आपूर्ति की जाएगी, के ब्यौरे के बारे में सभी जरूरी दस्तावेजों को प्राधिकृत अधिकारियों के पास जमा कराएं।

एफएसएसएआई ने 07.07.2020 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि बिना एग्मार्क प्रमाणन के मिश्रित खाद्य वनस्पति तेलों (बीईवीओ) को भारत में आयात करने की अनुमति नहीं है और आगे बीईवीओ को भी एफएसएस अधिनियम-2006 के तहत बनाए गए नियमों और विनियमों का पालन करना होगा।

iii) भारत में सिर्फ गैर-जीएम फसलों का आयात सुनिश्चित करने के लिए, एफएसएस अधिनियम, 2006 की धारा-22 में जीएम से संबंधित विनियमों के निर्धारण में देरी को देखते हुए, एफएसएसएआई ने 21.08.2020 को एक आदेश जारी किया है, जो निर्यात करने वाले देशों के सक्षम राष्ट्रीय प्राधिकरण की ओर से गैर-जीएम सह जीएम मुक्त प्रमाण पत्र देने की जरूरत को निर्धारित करता है। यह 24 खाद्य फसलों की प्रत्येक आयातित खेप, जैसा कि यहां पर उल्लिखित है, के लिए है। यह आदेश 01.01.2021 से प्रभावी होगा।

22. खाद्य सुरक्षा और स्वत: अनुपालन को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की पहल के तहत, इस वर्ष 241 प्रशिक्षण साझेदार और 2000 से ज्यादा प्रशिक्षकों के जरिए 1.30 लाख से ज्यादा खान-पान वस्तुओं को संभालने से जुड़े व्यक्तियों को पहले ही प्रशिक्षित किया जा चुका है। इसके अलावा, एफएसएसएआई ने खाद्य व्यवसाय ऑपरेटरों के लिए 2 घंटे का ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम, विशेष रूप से कोविड-19 रोकथाम संबंधी दिशानिर्देशों पर, शुरू किया था। यह प्रशिक्षण प्रशिक्षित और प्रमाणित प्रशिक्षकों द्वारा ऑनलाइन दिया जा रहा है। खान-पान वस्तुओं को संभालने से जुड़े 1.07 लाख से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित किया गया है। इसके अलावा, इस अवधि में 170 से ज्यादा नियामक कर्मचारियों के लिए इंडक्शन/रिफ्रेशर पाठ्यक्रम भी चलाए गए हैं। एफएसएसएआई ने प्रयोगशाला कर्मचारियों के लिए 6 ऑफ लाइन और 306 ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिसमें सजीव प्रशिक्षण सत्र (प्रयोगात्मक सत्र सहित) भी शामिल हैं।

खाद्य सुरक्षा और पोषण से संबंधित अनुसंधान क्षेत्रों में नवाचार और सहयोग को बढ़ाने के लिए, एफएसएसएआई ने नेटवर्क फॉर साइंटिफिक कोऑपरेशन फॉर फूड सेफ्टी एंड एप्लायड न्यूट्रीशंस (नेटएससीओएफएएन) बनाया है। इस नेटवर्क में खाद्य और पोषण के क्षेत्र में काम करने वाले शोध और शैक्षणिक संस्थान शामिल हैं। यह वैज्ञानिक सहयोग, सूचना विकास को साझा करना और संयुक्त परियोजनाओं को लागू करना, विशेषज्ञता व सर्वोत्तम कार्यव्यवहार का आदान-प्रदान सुनिश्चित करेगा।

एफएसएसएआई ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा आपातकालीन प्रतिक्रिया (एफएसईआर) प्रणाली का ढांचा तैयार किया था, जो खाद्य सुरक्षा की आपातकालीन स्थिति के दौरान बहु-क्षेत्रीय तालमेल, उनकी भूमिकाओं, जिम्मेदारियों और प्रबंधन गतिविधियों का खाका पेश करता है, जैसा कि एफएसएस एक्ट की धारा 16 (3) (v) (& (vi) के तहत परिकल्पना की गई है। इस ढांचे के तहत, जोखिम का आकलन करने वाली संस्था के रूप में खाद्य सुरक्षा जोखिम मूल्यांकन समिति (एफएसआरएसी) गठित की गई है और यह सामान्य या आपातकालीन दोनों ही स्थितियों में तकनीकी और वैज्ञानिक सहायता देने के लिए जिम्मेदार होगी।

एफएसएसएआई ने 7.8.2020 को सीएसआईआर के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। इस एमओयू का उद्देश्य खाद्य और पोषण के क्षेत्र में साझेदारीपूर्ण शोध और सूचनाओं का प्रचार-प्रसार करना है।

24. एफएसएसएआई ने खाद्य सुरक्षा शिक्षा और एकीकरण के लिए व्यावसायिक व अकादमिक क्षेत्रों के बीच सहयोग पर राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान के साथ भी एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।

25. एफएसएसएआई समय-समय पर खाद्य व्यवसायों, उपभोक्ताओं और अन्य हितधारकों का खाद्य सुरक्षा संबंधी विषयों के बारे में मार्गदर्शन करने और मिथकों को दूर करने के लिए मार्गदर्शी लेख जारी कर रहा है। इस वर्ष जारी किए गए मार्गदर्शी लेखों में शामिल हैं:

विशेष चिकित्सा उद्देश्यों के लिए खान-पान पर मार्गदर्शी लेख

स्वच्छ व ताजे फल और सब्जी बाजार पर मार्गदर्शी लेख

कोरोना महामारी के दौरान खाद्य व्यवसायों के लिए खाद्य स्वच्छता और सुरक्षा दिशानिर्देशों पर मार्गदर्शी लेख

खाद्य पदार्थों में धातु संक्रमण : संभावित जोखिम और उसे दूर करने के उपाय

दूध से बने पारंपरिक उत्पादों की सुरक्षा और गुणवत्ता

कीटनाशक : सुरक्षित सुरक्षा की चिंता - सावधानियों और बचाव के उपाय

25. एफएसएसएआई महीने भर की अपनी सारी महत्वपूर्ण गतिविधियों से जुड़ी जानकारियों को सभी हितधारकों और व्यापक जनता तक पहुंचाने के लिए एक मासिक समाचार पत्र प्रकाशित कर रहा है। इसका महामारी के दौरान भी प्रकाशन जारी रहा है।

27. एफएसएसएआई सभी स्तरों पर बेहतर कामकाज को सुविधाजनक बनाने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। वर्ष 2018 में एफएसएसएआई की कर्मचारियों की क्षमता 356 से बढ़कर 824 हो गई है। नई क्षमता के तहत, पूरे देश में प्राधिकरण के 11 नए कार्यालय और दो खाद्य प्रयोगशालाओं को स्थापित करने का काम जारी है। ये कार्यालय खाद्य लाइसेंसिंग, आयात, निगरानी और लागू करने को सुविधाजनक बनाएंगे, जिससे खाद्य व्यापार ऑपरेटरों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होगा।

28. एफएसएसएआई की ईट राइट टूलकिटको देश में जमीनी स्तर पर खान-पान की सही आदतों को बढ़ावा देने के लिए आसान संदेशों और रुचिकर सामग्री (गेम, एवी, पोस्टर आदि) के साथ आसानी से उपयोग करने लायक एक व्यापक पैकेज के रूप में विकसित किया गया है। यह टूलकिट आयुष्मान भारत के तहत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में शामिल है और इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) की ओर से राज्य पीआईपी (कार्यक्रम कार्यान्वयन योजना) में शामिल किया गया है। टूलकिट का क्षेत्रीय भाषाओं में भी अनुवाद किया जा रहा है, ताकि पूरे भारत में इस्तेमाल हो सके।

29. प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण: आशा प्रशिक्षण को सुचारू रूप से चलाने के लिए राष्ट्रीय और प्रदेश स्तरीय प्रशिक्षकों का एक समूह की बनाने की एक योजना का प्रस्ताव रखा गया है। कोविड-19 महामारी को देखते हुए, आभासी प्रशिक्षण सत्रों की योजना बनाई गई थी।

राष्ट्रीय प्रशिक्षक: राष्ट्रीय प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण दो बैच में आयोजित किया गया था। राष्ट्रीय स्तर के कुल छह संसाधन कार्मिकों (एफएसएसएआई, एनएचएसआरसी और वीएचएआई से) ने अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल से राष्ट्रीय प्रशिक्षकों (38) को प्रशिक्षित किया। यह प्रशिक्षण जून और जुलाई, 2020 में दो बैचों में, वर्चुअल प्लेटफॉर्म के माध्यम से आयोजित की गई थी।

राज्य प्रशिक्षक: राष्ट्रीय प्रशिक्षकों द्वारा एफएसएसएआई, एनएचएसआरसी और वीएचएआई के संसाधन कार्मिकों के सहयोग से राज्य प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण आयोजित किया गया था। संदेशों को प्रभावी ढंग से प्रसारित करने के लिए तीन दिवसीय प्रशिक्षण को एनएचएसआरसी द्वारा राज्यों के सहयोग से आयोजित किया गया था। अब तक 252 राज्य प्रशिक्षकों और 45 राज्य पर्यवेक्षकों को मिलाकर राज्य प्रशिक्षकों की ऑनलाइन ट्रेनिंग के 9 बैच चलाए गए हैं।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की निगरानी में एफएसएसएआई द्वारा शुरू किए गए ईट राइट इंडियाअभियान लोगों में सुरक्षित, सेहतमंद और नियमित दर से खान-पान के बारे में जागरूकता पैदा करने में एक लंबा सफर तय कर चुका है। हाल ही में, फूड सिस्टम विज़न पुरस्कार के लिए रॉकफेलर फाउंडेशन, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा 110 देशों के 1,300 से अधिक आवेदकों में से एफएसएसएआई को इसके ईट राइट इंडियाअभियान और विजन 2050 के लिए शीर्ष दस अंतिम दावेदारों में चुना गया है।

31. एफएसएसएआई ने ईट राइट इंडिया पहल को व्यापक बनाने के लिए कई गतिविधियों की शुरूआत की है:

नई शुरुआत:

  • ईट राइट इंडिया के तहत जिलों और शहरों की ओर से होने वाले विभिन्न प्रयासों को स्वीकार करने और उसे बढ़ावा देने के लिए एक वार्षिक प्रतियोगिता क आयोजन, जिसे द ईट राइट चैलेंजके नाम से जाना जाता है। इस प्रतियोगिता में देश भर से राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से 179 शहरों और जिलों ने भागीदारी की है।
  • स्कूलों के लिए ईट राइट क्रिएटिविटी चैलेंज’, एक पोस्टर और फोटोग्राफी प्रतियोगिता का आयोजन, जिसका उद्देश्य मेल-मिलाप वाली गतिविधियों के माध्यम से बच्चों के बीच सेहतमंद खान-पान की आदतों को बढ़ावा देना है।
  • आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय के स्मार्ट सिटी मिशन के साथ साझेदारी में एफएसएसएआई द्वारा ईट स्मार्ट सिटी’(चैलेंज) शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य भारत के स्मार्ट शहरों में खान-पान संबंधी सही व्यवहार और आदतों का वातावरण विकसित करना है और जो कि अन्य शहरों के लिए एक उदाहरण बन सके।

विमोचन:

  • ईट राइट हैंडबुक’, ईट राइट इंडिया (ईआरआई) पहल को अपनाने और बढ़ावा देने के लिए खाद्य सुरक्षा आयुक्तों और जिलास्तरीय अधिकारियों के लिए एक व्यापक निर्देशिका है। यह हैंडबुक विभिन्न ईआरआई पहलों के बारे में विस्तृत ब्यौरा, एसओपी, संसाधन और सफल कहानियों की जानकारी देती है।
  • कोविड-19 के दौरान सही खान-पानपर नागरिकों के लिए ई-हैंडबुक, जो स्वास्थ्य और पोषण पर सरल सुझावों के साथ सहजता से अपनाने योग्य सुरक्षित खाद्य व्यवहारों को रेखांकित करती है।
  • स्कूल कैंटीन/मेस को सुरक्षित तरीके के दोबारा खोलने के लिए खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता दिशानिर्देश दस्तावेज सभी साझेदारों द्वारा कोविड-19 के साथ बने नए माहौलमें अपनाने लायक बेहतर आदतों को रेखांकित करता है। इसमें व्यक्तिगत व पर्यावरणीय स्वच्छता पर सलाह और आम मिथकों पर स्पष्टीकरण भी शामिल है।
  • क्या आप सही खाते हैं?’, एक ई-बुक है, जो खाद्य और पोषण व सही खान-पान पहल से जुड़ी तकनीकी अवधारणाओं को साधारण पारंपरिक शैली में आम लोगों के लिए पेश करती है।
  • ईट राइट कैंपस के लिए ऑरेंज बुक कैंपस कैंटीन में अनिवार्य खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता जरूरतों को लागू करने के लिए मार्गदर्शिका (रिसोर्स गाइड) का काम करती है, सेहतमंद और पर्यावरण अनुकूल टिकाऊ भोजन के उपायों को सुनिश्चित करती है और देश भर में कार्यस्थलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, अस्पतालों आदि में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करती है।
  • डेली रिकमेंडेशंस और फूड फोर्टिफिकेशन - राज्यों के लिए एक हैंडबुक, जो राज्य सरकार के अधिकारियों को फूड फोर्टिफिकेशन संबंधी प्रमुख चिंताओं के जवाब उपलब्ध कराएगी। जब दैनिक खान-पान में फोर्टिफाइड भोजन को शामिल किया जाएगा, तब यह दैनिक भोजन में विटामिन ए, विटामिन डी, आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी12 जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की औसत खपत में अंतर की जानकारी उपलब्ध कराएगा।

13. नाको (एनएसीओ)

  1. माननीय मंत्री (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण) डॉ. हर्ष वर्धन ने 18-11-2020 को विचारविमर्श और भविष्य की योजना बनाने के लिए यूएनएआईडीएस और यूएनएफपीए की ओर से आयोजित ग्लोबल प्रिवेंशन कोएलिशन (जीपीसी)-एचआईवी प्रिवेंशन 2021-25 की मंत्रिस्तरीय वर्चुअल बैठक में हिस्सा लिया था। यह बैठक एचआईवी रोकथाम और इससे जुड़ी योजना को मजबूत करने पर केंद्रित थी। भारत ने अगले पांच वर्षों में एचआईवी की रोकथाम के प्रयासों को विस्तार देने और प्रभावकारी बनाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी।
  2. एनएसीपी फास्ट ट्रैक लक्ष्यों को पाने के लिए, नाको ने परिणाम संबंधी गतिविधियों के नौ संकेतकों और तीन परिणाम संकेतकों की परिकल्पना की है। बीते पांच वर्षों में एचआईवी की जांच गर्भवती महिलाओं में 1.25 करोड़ से बढ़कर 2.65 करोड़ और जोखिम वाली आबादी में 1.6 करोड़ से बढ़कर 2.89 करोड़ हो गई है। देश में सुरक्षित रक्त की उपलब्ध कराने के लिए नाको की सहायता से संचालित ब्लड बैंकों में लगभग 73 लाख यूनिट ब्लड एकत्रित किया जा रहा है। इसके अलावा, इसी अवधि में आजीवन निशुल्क एआरटी लेने वाले पीएलएचआईवी की संख्या लगभग 9.4 लाख से बढ़कर 14.86 लाख हो गई है।
  3. राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको), भारत में एचआईवी बीमारी की स्थिति के बारे में अद्यतन जानकारी देने के लिए समय-समय पर एचआईवी सेन्टनल सर्विलांस एंड एस्टीमेशन प्रॉसेस (एचआईवी प्रहरी निगरानी और आकलन प्रक्रिया) अपनाता है। राष्ट्रीय स्तर पर एचआईवी सेन्टनल सर्विलांस (एचएसएस) भारत में दूसरी पीढ़ी की एचआईवी निगरानी का प्रमुख आधार है। यह दुनिया की सबसे बड़ी एचआईवी सर्वेक्षण प्रणालियों में से एक है, जो जनसंख्या के विभिन्न समूहों और भौगोलिक क्षेत्रों में एचआईवी महामारी के प्रसार और दिशा-दशा के बारे में साक्ष्य मुहैया कराता है। और इस प्रकार, यह एचआईवी रोकथाम और नियंत्रण संबंधी गतिविधियों को मजबूत करने का कार्यक्रम बनाने के लिए जरूरी सूचनाएं उपलब्ध कराता है। एचएसएस के साथ भारत में पहला एचआईवी आकलन 1998 में, जबकि अंतिम दौर का आकलन 2019 में किया गया था। नाको ने भारत एचआईवी अनुमान 2019: रिपोर्ट जारी की है; जो इस बात का सबूत देती है कि 2020 के फास्ट-ट्रैक लक्ष्यों में से कम से कम तीन में कितनी प्रगति हुई है।
  4. नाको ने व्यवहार संबंधी निगरानी सर्वेक्षण-2020 के राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख संकेतकों के शीर्ष निष्कर्षों को जारी किया है।
  5. नाको ने नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और मेघालय राज्यों के लिए जिला विशेष के लिए एकीकृत कार्य योजनाएं बनाई हैं। इसमें नियमित गतिविधियों में अतिरिक्त तौर पर जरूरत पड़ने वाले आकलन योग्य संकेतकों के साथ विस्तृत ब्यौरे और बारीकियां शामिल हैं।
  6. नाको ने मुख्य आबादी, एचआईवी के उच्च जोखिम व बिना जोखिम वाली आबादी के बीच पुल का काम वाली आबादी (ब्रिज आबादी) और सेवाएं देने वालों के लिए एसबीसीसी पैकेज तैयार किया है। इसका उद्देश्य भारत में एचआईवी सेवाओं के आदर के साथ प्रमुख आबादी और ब्रिज आबादी/उच्च जोखिम वाली आबादी के बीच व्यवहार परिवर्तन को प्रभावित करना        और सहायता देना और पारस्परिक संचार सत्रों को बेहतर बनाने के लिए सेवा प्रदाताओं के कौशल को बढ़ाना है। इस पैकेज में विभिन्न प्रकार की सामग्री जैसे टीवीसी, छोटे एनिमेटेड वीडियो, जीआईएफ, रेडियो जिंगल, कॉमिक स्ट्रिप्स, पोस्टर और फ्लिप बुक आदि शामिल हैं। इस सामग्री को एचआरजी और ब्रिज आबादी के बीच सूचनाओं को तलाशने संबंधी व्यवहार को सुधारने, उचित तरीके से और नियमित रूप से कंडोम के इस्तेमाल को बढ़ावा देने, समुदाय आधारित जांच समेत नियमित परीक्षण की तलाश करने, एआरटी के अनुपालन को सुविधाजनक बनाने, सामाजिक कलंक और भेदभाव को घटाने व एचआईवी एवं एड्स (रोकथाम व नियंत्रण) अधिनियम- 2017 को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। इस एसबीसीसी पैकेज का उद्देश्य इस प्रकार है :
  1. एआरटी, एचआईवी संबंधित रोगों और मौतों की दर घटाती है; वायरल लोड को कम करके एचआईवी प्रसार को रोकती है, एचआईवी के साथ जीवन जीने वाले लोगों (पीएलएचआईवी) लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाती है। एआरटी, जीवन भर का उपचार होने के नाते, वायरल को दबाने के लिए मरीजों को उपचार से जोड़कर रखना आवश्यक घटक है। इसे ध्यान में रखते हुए, नाको ने उपचार की निरंतरता को प्रोत्साहित करने और उपचार संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए उपचार संबंधी साक्षरता बढ़ाने के लिए आईईसी सामग्री तैयार की है। इस सामग्री को एचआईवी उपचार के बारे में सही जानकारी देने और दुष्प्रभावों का प्रबंधन कैसे करें, एआरटी को बढ़ावा देने, सकारात्मक रहन-सहन को प्रोत्साहित करने, समय पर वायरल लोड टेस्ट के लिए प्रेरित करने और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बारे में जानकारी देने के लिए बनाया गया है।
  1. एआरटी टेक्निकल रिसोर्स ग्रुप की सिफारिशों के अनुसार और डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों के अनुरूप, डॉल्यूटेग्रेवर आधारित उपचार को पूरे देश में लागू किया गया है और वर्तमान में 1 लाख से अधिक पीएलएचआईवी को डीटीजी आधारित उपचार मिल रहा है। वर्तमान में एचआईवी संक्रमण के सभी नए मामलों में डॉल्यूटेग्रेवर आधारित एआरटी उपचार दिया जाता है।
  2. नाको ने एचआईवी देखभाल सेवाओं को उपलब्ध कराने में शामिल स्वास्थ्य कर्मचारियों की क्षमता विकसित करने के लिए मिश्रित चिकित्कीय प्रशिक्षण परियोजना शुरू की है। यह वर्चुअल और क्लास रूम ट्रेनिंग के मिश्रम का उपयोग करके स्वास्थ्य कार्मिकों को प्रशिक्षित करने का एक अनूठा मॉडल है।
  1. 24 मार्च, 2020 से पूरे देश में एचआईवी-1 वायरल लोड परीक्षण बाधित हो गया था, क्योंकि कोविड महामारी के कारण पूर्ण लॉकडाउन घोषित हो गया था। इसकी वजह से एआरटी केंद्रों में जांच के लिए एक भी मरीज नहीं आ रहे थे और फ्लेबोटोमिस्ट जांच नमूनों को लेने के लिए एआरटी केन्द्रों तक नहीं पहुंच पा रहे थे। इसके बाद नाको की तरफ से पहल की गई और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय और गृह मंत्रालय को एचआईवी मरीजों के ब्लड सैंपल्स को सरकारी/निजी कार्गो उड़ानों से लाने और पीएलएचआईवी की एआरटी केंद्रों तक व नमूने लेने वाले कर्मचारियों की बेरोकटोक आवाजाही को मंजूरी देने के लिए पत्राचार किया था।
  1. आईसीएमआर के अनुरोध पर, नाको ने 64 एचआईवी-1 वायरल लोड प्रयोगशालाओं में से 30 को कोविड-19 की जांच के लिए अलग कर दिया है.

14. ई-हेल्थ

राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन सेवाएं

राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन सेवा ईसंजीवनीमंत्रालय की डिजिटल स्वास्थ्य पहल है जो दो प्रकार की टेली-परामर्श सेवाओं - डॉक्टर-से-डॉक्टर (ईसंजीवनी) और रोगी-से-डॉक्टर (ईसंजीवनीओपीडी) का समर्थन करती है। ईसंजीवनी को नवंबर 2019 में आयुष्मान भारत के हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (एबी-एचडब्ल्यूसी) कार्यक्रम के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य दिसंबर 2022 तक हब एंड स्पोक मॉडलमें सभी 1.5 लाख हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों में टेली-परामर्श लागू करना है। राज्यों में एनएचएम ने एचएससी और पीएचसी में स्थापित स्पोकके लिए टेली-परामर्श को सक्षम बनाने के लिए मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में समर्पित हबको चिन्हित और स्थापित किया है।

कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान जब देश भर में ओपीडी बंद थी, एमओएचएफडब्ल्यू ने 13 अप्रैल 2020 को, ‘ईसंजीवनी ओपीडी- रोगी की डॉक्टर से टेली-परामर्श सेवा, की शुरुआत की थी।

ईसंजीवनी ने 20 नवंबर 2020 को 8 लाख टेलि-परामर्श पूरे कर लिए हैं। 27 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में प्रतिदिन 11,000 से अधिक मरीज स्वास्थ्य सेवाओं की मांग कर रहे हैं। ईसंजीवनी और ईसंजीवनीओपीडी के जरिए परामर्श के लिए दर्ज सबसे ज्यादा मामलों के आधार पर शीर्ष दस राज्यों में तमिलनाडु (259904), उत्तर प्रदेश (219715), केरल (58000), हिमाचल प्रदेश (46647), मध्य प्रदेश (43045), गुजरात (41765), आंध्र प्रदेश (35217), उत्तराखंड (26819), कर्नाटक (23008), महाराष्ट्र (9741) शामिल हैं।

राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (एनडीएचएम): 15 अगस्त 2020 को, माननीय प्रधानमंत्री ने एनडीएचबी में प्रस्तावित राष्ट्रीय डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के विजन के साथ पूरे देश में राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन को लागू करने की घोषणा की थी।

एनडीएचएम को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की परिकल्पना की गई है।

  • चरण 1 प्रायोगिक आधार पर 6 केन्द्र शासित प्रदेशों को शामिल करता है।
  • चरण 2 सेवाओं के विस्तार के साथ अन्य राज्यों को शामिल करेगा।
  • चरण 3 एनडीएचएम के प्रोत्साहन, विस्तार और पूरे देश में स्वीकरण के साथ राष्ट्रीय स्तर शुरुआत करने, सभी स्वास्थ्य योजनाओं के साथ संचालन और तालमेल को लक्षित करेगा।

वर्तमान में, 6 केंद्र शासित प्रदेशों (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा-नगर हवेली और दमन-दीव, लक्षद्वीप, लद्दाख और पुडुचेरी) में एनडीएचएम को चरण:I में प्रायोगिक आधार पर लागू किया जा रहा है। स्वास्थ्य आईडी जारी करने, डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवाओं की सूची तैयार करना और व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड तैयार करने जैसी सेवाएं शुरू की गई हैं।

नेशनल मेडिकल कॉलेज नेटवर्क (एनएमसीएन) को ई-एजुकेशन और ई-हेल्थकेयर के उद्देश्य से स्थापित किए गए है, जिसमें एनकेएन (नेशनल नॉलेज नेटवर्क-हाई स्पीड बैंडविड्थ कनेक्टिविटी) के जरिए 50 सरकारी मेडिकल कॉलेजों को आपस में जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय संसाधन केंद्र (एनआरसी) को आवश्यक केंद्रीकृत ढांचे और 7 क्षेत्रीय संसाधन केंद्रों (आरआरसी) के साथ बनाया गया है, जो निम्नलिखित है:

एनआरसी सह केंद्रीय आरएसी -एसजीपीजीआईएमएस, लखनऊ

15. राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी)


राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) देश का प्रमुख संस्थान है। इसे अपने दस प्रभागों (दिल्ली में मुख्यालय) के साथ निगरानी, प्रतिक्रिया, महामारी विज्ञान पर आधारित जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसकी 8 शाखाएं (अलवर (राजस्थान), बेंगलुरु (कर्नाटक), कोझीकोड (केरल), कुन्नूर (तमिलनाडु), जगदलपुर (छत्तीसगढ़), पटना (बिहार), राजमुंदरी (आंध्र प्रदेश) और वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में स्थापित) हैं।

मुख्यालय में तकनीकी केंद्र/प्रभाग:

  1. एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईएसडीपी)
  2. महामारी विज्ञान प्रभाग
  3. माइक्रोबायोलॉजी प्रभाग (एड्स व संबंधित रोगों एवं जैव प्रौद्योगिकी केंद्र सहित)
  4. वायरल हेपेटाइटिस की निगरानी के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम
  5. परजीवी रोग प्रभाग
  6. चिकित्सा कीटविज्ञान और लार्वा प्रबंधन केंद्र
  7. जूनोसिस प्रभाग
  8. जूनोटिक रोग कार्यक्रम प्रभाग,
  9. मलेरिया विज्ञान और समन्वय (एमएंडसी) प्रभाग
  10. पर्यावरण एवं व्यावसायिक स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य केंद्र
  11. गैर-संचारी रोग केंद्र

जनवरी से 2020 के दौरान एनसीडीसी कोविड-19 महामारी की निगरानी और प्रतिक्रिया के केंद्र में है। जैसे कि महामारी धीरे-धीरे विभिन्न राज्यों में एक जिले से बढ़कर 700 से अधिक जिलों में फैल गई, इसमें लगभग-लगभग सभी प्रभाग और अधिकारी शामिल हो गए थे। एनसीडीसी जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों ने मुख्य निगरानी और प्रतिक्रिया गतिविधियों को बनाने में सहायता की थी। एनसीडीसी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट और बायोटेक्नोलॉजिस्ट ने परीक्षण और जीनोमिक सिक्वेंस तैयार करने में मदद की।

  1. शुरुआती चरण में:

ए. आईडीएसपी कार्यक्रम ने पीएच (आईएच) प्रभाग के साथ तालमेल करके अंतरराष्ट्रीय यात्रियों (जिनका कोविड प्रभावित देशों की यात्रा करने या संपर्क में आने का इतिहास था) की निगरानी में मदद की थी।

बी. सभी संदिग्धों को क्वारंटीन किया गया।

सी. सभी संदिग्धों और संपर्कों के नमूनों की जांचने का काम 3 प्रयोगशालाओं में किया गया। शुरुआत में उत्तरी और मध्य क्षेत्र के लगभग सभी राज्यों से लाए गए नमूनों की जांच की गई।

डी. एनसीडीसी ने आईटीबीपी/सेना के क्वारंटीन सुविधाओं में वुहान और ईरान से लौटे लोगों के क्वारंटीन प्रबंधन में रक्षा और अर्धसैनिक बलों के साथ समन्वय किया।

इ. लगभग 39 लाख व्यक्तियों को सामुदायिक निगरानी में रखा गया (14 दिन होम क्वारंटीन और 14 दिनों तक स्व-स्वास्थ्य निगरानी)

एफ. समुदाय में 1 करोड़ से अधिक संपर्कों का पता लगाया गया और नमूनों की जांच की गई

जी. गैर-प्रभावित क्षेत्रों में छिपे हुए संक्रमण का पता लगाने के लिए क्षेत्रीय टीम द्वारा घर-घर चलाए गए सक्रिय तलाशी अभियान के जरिए आईएलआई एवं एसएआरआई मामले पता चले थे

एच. सबसे ज्यादा संक्रमण फैलाने वाले कार्यक्रम में महामारी विज्ञान संबंधी जांच। ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं थीं :

आई. राजस्थान के 7 जिलों में इतालवी पर्यटक समूह से जुड़े संदिग्ध

जे. लखनऊ और अन्य शहरों में प्रसिद्ध कलाकार से जुड़े संपर्क

के. तब्लीगी जमात से जुड़े 18 राज्यों में फैले संपर्क

एल. चेन्नई और 8 अन्य जिलों में सब्जी बाजार से फैला संक्रमण

  1. संपर्क की तलाश करने, घर और स्वास्थ्य सुविधाओं में क्वारंटीन करने, नियंत्रण क्षेत्रों में निगरानी, घर-घर जाकर मामलों का पता लगाना, देश की स्थलीय सीमाओं पर जांच के लिए प्रशिक्षण, जिला नियंत्रण कक्ष, मृत शरीर के प्रबंधन, स्वास्थ्य सुविधाओं और क्वारंटीन सेंटर्स को संक्रमणमुक्त बनाने के लिए दिशानिर्देश तैयार करना।
  2. नए सीओबीएएस-6800, ऑटोमेटिक आरएनए एक्स्ट्रैक्टर (स्वचालित आरएनए निष्कासक) और नेक्स्ट जेनरेशन सिक्वेंसर (अगली पीढ़ी के अनुक्रमक) द्वारा प्रयोगशाला परीक्षण क्षमता में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई ।
  3. क्लस्टर नियंत्रण के लिए विभिन्न राज्यों में केंद्रीय दलों को तैनात किया गया था। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं: -आगरा क्लस्टर, भीलवाड़ा क्लस्टर, पंजाब के ग्रामीण इलाकों में एसएएस नगर क्लस्टर, मुंबई में धारावी क्लस्टर
  4. नेपाल और बांग्लादेश के सीमावर्ती जिलों में अंतरराष्ट्रीय चेक पोस्ट पर जांच करने और संदिग्धों को क्वारंटीन करने के लिए केंद्रीय दलों को तैनात किया गया था
  5. अत्यधिक मामलों के दबाव वाले जिलों में निगरानी और रोकथाम उपायों की तय समय पर समीक्षा करने के लिए केंद्रीय दलों की तैनाती। दिल्ली, गुजरात, एमपी, महाराष्ट्र,तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर पूर्व राज्यों, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, यूपी और अन्य राज्यों को विशेष समीक्षा और संशोधित नियंत्रण रणनीति के साथ विभिन्न स्तरों पर मदद दी गई थी।
  6. आईडीएसपी द्वारा प्रबंधित रणनीतिक स्वास्थ्य संचालन केंद्र (एसएचओसी), एनसीडीसी को 8 फरवरी 2020 से कोविड-19 प्रतिक्रिया गतिविधियों की सतर्कता और निगरानी संबंधी तालमेल के लिए चालू किया गया है और यह पूरी सक्रियता से स्थिति की निगरानी कर रहा है। संक्रमण के जोखिम का आकलन करने के लिए दिल्ली, इंदौर (एमपी), भोपाल और गुजरात में सीरो-सर्विलांस।
  7. दिल्ली, पंजाब, श्रीनगर, महाराष्ट्र आदि राज्यों में आईटी उपकरणों जैसे आरोग्य सेतु और आईटीआईएचएएएस का उपयोग करने के लिए सक्षमता निर्माण के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण।
  8. स्थिति के नियमित आकलन और प्रभावी नियंत्रण रणनीतियों की योजना बनाने के लिए आईटी पोर्टल पर नियमित रूप से आंकड़ों को अपलोड करने के लिए समन्वय करना।
  9. आईईसी: सामुदायिक जागरूकता के लिए आईईसी सामग्री की तकनीकी समीक्षा करना। महामारी के विभिन्न चरणों में राज्यों की मदद करने के लिए आईईसी सामग्री और विभिन्न दिशानिर्देश तैयार करना।
  10. विभिन्न संस्थानों और संगठनों, जैसे बीएसएफ,आईटीबीपी,आईएनएमएएस,डीआरडीओ, आईसीएमआर, एमएएमसी, एनएचएमसी, दिल्ली सरकार, भारत के सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग आदि से आए 500 से अधिक प्रतिभागियों को आरटी-पीसीआर परीक्षण, रैपिड कार्ड टेस्टिंग, बीएमडब्ल्यू प्रबंधन, नमूना संग्रह और परिवहन, पीपीई को पहनने और उतारने, हाथ और सांस संबंधी स्वच्छता सहित कोविड-19 की जांच और प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित किया गया।

राज्य स्तर पर जन स्वास्थ्य क्षमता और बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने और प्रभावी ढंग से पूरे देश को शामिल करने के लिए एनसीडीसी विशेषज्ञता को सक्षम बनाना एनसीडीसी की जिम्मेदारी है। पीएम-एएसबीवाई के तहत निगरानी और प्रयोगशाला जांच क्षमता को मजबूत बनाने पर एक प्रस्ताव (अवधारणा नोट) बनाया और प्रस्तुत किया गया था। मुख्य घटक क्षेत्रीय एनसीडीसी, मेट्रोपॉलिटन सर्विलांस यूनिट, एसएचओसी, एएमआर, बायो-सिक्योरिटी, वन हेल्थ, जूनोटिक प्रयोगशाला क्षमता इत्यादि थे।

एनसीडीसी, राष्ट्रीय एएमआर रोकथाम कार्यक्रम के लिए नोडल प्रभाग है। स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों के लिए संक्रमण रोकथाम और नियंत्रण के बारे में राष्ट्रीय दिशानिर्देश तैयार किए गए। वैश्विक एएमआर निगरानी प्रणाली (ग्लास) के लिए वार्षिक एएमआर निगरानी आंकड़ों को समय पर दिया गया। इसके अलावा, प्रयोगशाला तकनीकी के मानकीकरण के लिए 24 राज्यों में 29 राजकीय मेडिकल कॉलेजों के लिए ईसीएचओ प्लेटफॉर्म पर वार्षिक त्रिपक्षीय एएमआर देश स्व-मूल्यांकन सर्वेक्षण (टीआरएसीएसएस) और वर्चुअल ट्रेनिंग दी गई। जागरूकता के लिए आईईसी, मीडिया सामग्री को तैयार किया गया। राष्ट्रीय संदर्भ प्रयोगशाला ने नेटवर्क प्रयोगशालाओं के लिए ईक्यूएएस का संचालन किया और नेटवर्क साइट्स द्वारा प्रस्तुत किए गए उभरते एएमआर उपभेदों (स्ट्रेन्स) का सत्यापन और लक्षणों की पहचान की गई।

एर्बोवाइरल और जूनोटिक रोगों के लिए केंद्र : दिल्ली एनसीआर से संस्थानों के माइक्रोबायोलॉजिस्ट, डायग्नोस्टिक रिकेट्सिऑलॉजी और प्रयोगशाला कर्मचारियों के लिए आरटी-पीसीआर द्वारा कोविड-19 जांच और जूनोटिक रोगजनकों के लिए रेफर किए गए नमूनों की जांच और व्यावहारिक कार्यशाला का आयोजन। वर्ष भर में पांच वैज्ञानिक प्रकाशन।

आईडीएसपी महामारी के जोखिम वाली बीमारियों के लिए विकेन्द्रीकृत प्रयोगशाला आधारित आईटी सक्षम रोग सतर्कता प्रणाली को मजबूत करने/बनाए रखने और बीमारियों के रुझान की निगरानी करते हुए प्रकोपों को पहचानने और शुरुआती चरण में ही प्रशिक्षित त्वरित प्रतिक्रिया दल (आरआरटी) के जरिए कार्रवाई करने के उद्देश्य के साथ सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल करता है। आईडीएसपी इस वर्ष कोविड-19 महामारी के बारे में भारत में समग्र निगरानी गतिविधियों में समन्वय कर रहा है। क्यासनूर फॉरेस्ट डिजीज, क्रीमियन-कांगो हैमोरेजिक फीवर, मौसमी इन्फ्लुएंजा ए (एच1एन1), एंथ्रेक्स, लेप्टोस्पाइरोसिस, स्क्रब टाइफस जैसी महामारी के जोखिम वाले बीमारियों के कुल 474 प्रकोपों का सफलतापूर्वक पता लगाया गया, महामारी विज्ञान विभाग ने राज्य और जिला इकाइयों द्वारा महामारी विज्ञान संबंधी जांच और नियंत्रण में सहायता की। वास्तविक समय के निकट, वेब सक्षम इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य सूचना प्रणाली, जिसे एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (आईएचआईपी) कहा जाता हैको 7 राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, केरल और कर्नाटक में शुरू किया गया था। अब तक, आईएसआईपी औपचारिक रूप से 9 राज्यों में शुरू हो चुका है।

परजीवी रोग विभाग (डीपीडी): ओडिशा (6 जिले) और आंध्र प्रदेश (6 जिले) में मिट्टी से फैलने वाले कृमि (एसटीएच) की व्यापकता का आकलन करने के लिए दोबारा सर्वेक्षण। केरल, मेघालय, महाराष्ट्र, सिक्किम, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और दादरा नगर हवेली में एसटीएच की व्यापकता के लिए एसटीएच सर्वेक्षण के लिए फील्ड डेटा जुटाने में मदद की। एमओएचएफडब्ल्यू के बाल स्वास्थ्य प्रभाग को रिपोर्ट सौंप दी गई है।

वाराणसी और अन्य जिलों में कोविड-19 की जांच और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के संपर्कों की तलाश करने में राज्य सरकारों की मदद करने में 8 एनसीडीसी शाखाएं भी शामिल थीं। इसके अलावा, प्रत्येक सप्ताह नियमित रूप से फाइलेरिया क्लीनिक, प्रशिक्षण, एंटोमोलॉजिकल सर्वेक्षण भी किए गए थे। पीएचसी, द्वारपुड़ी, पूर्वी गोदावरी जिले में फाइलेरिया के मरीजों के लिए लिम्फेटिक फाइलेरिया पर आईईसी और रुग्णता प्रबंधन एवं दिव्यांगता नियंत्रण (एमएमडीपी) कार्यक्रम को लागू किया गया था। कालीकट शाखा ने केरल और भारत में कोविड-19 के पहले तीन मामलों की पड़ताल में मदद की थी।

एनसीडीसी शाखाओं को उन्नत बनाना: बार-बार उभरने वाली बीमारियों का पता लगाने में राज्य सरकारों की मदद करने के लिए एनसीडीसी की शाखाओं को उन्नत उपकरणों के साथ अत्याधुनिक प्रयोगशाला उपलब्ध कराई जाएगी। एनसीडीसी की ओर से जनस्वास्थ्य, माइक्रोबायोलॉजी, एन्टोमोलॉजी में विशेषज्ञों की मानवशक्ति सहायता और अन्य पैरामेडिक्स/टेक्नोक्रेट्स उपलब्ध कराया जाएगा। यह राज्यों में रोगों की निगरानी, प्रकोपों की जांच और प्रकोप से निपटने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता और सक्षमता को विस्तार देगा।

एनसीडीसी की नई शाखाओं को स्थापित करने की स्थिति: 13 राज्यों में भूमि को चिन्हित और राज्यों द्वारा उपलब्ध कराया जा चुका है। एमओयू पर हस्ताक्षर हो चुके हैं। झारखंड में एनसीडीसी शाखा की इमारत का निर्माण कार्य लगभग पूरा होने वाला है।

जैव प्रौद्योगिकी प्रभाग: यह प्रभाग मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक सेवाएं, मॉलिक्यूलर एपिडिमियोलॉजी, जन स्वास्थ्य से जुड़ी महामारियों की जोखिम वाली विभिन्न बीमारियों पर व्यवहारिक शोधों और विशेषीकृत प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है। इस प्रभाग ने कोविड-19 के लिए पूरी तरह से स्वचालित डायग्नोस्टिक मशीन सीओबीएस 6800 को खरीदा और लगाया था। इसने पिछले 7 महीनों के दौरान लगभग 175000 नमूनों की जांच की है।

संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण (होल जीनोम सिक्वेंसिंग): सार्स-कोव-2 का मानकीकृत संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण। इसके अलावा 352 कोविड-19 पॉजिटिव नमूनों का संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण को बनाया और आईजीआईबी के साथ सहयोग में जीआईएसएआईडी को भेजा गया था। फ्लोजिनेटिक विश्लेषण से जीनोम ए4, 2 और ए3 के स्थानीय प्रसार और प्रबलता की जानकारी सामने आई थी। परिवर्तनशीलता के सुव्यवस्थित क्रम (पैटर्न) (एक क्लस्टर में सीमित) के साथ सबसे प्रबल जीनोम अवर्गीकृत हैं, और ए-क्लस्टर के भीतर अपने विस्तार पर आधारित ए4-क्लैड के रूप में यहां प्रस्तावित है।(चित्र.1)

 

चित्र 1. एनसीडीसी-आईजीआईबी द्वारा अनुक्रमित एसएआरएस-सीओवी-2 जीनोम का फ्लोजेनेटिक विश्लेषण

डेंगू, हेपेटाइटिस और माइक्रोबियल नमूनों के विभिन्न वायरल जीनोटाइप और सेरोटाइप की पहचान करने और उनमें अंतर का पता लगाने के लिए न्यूक्लियोटाइड सिक्वेंसिंग (अनुक्रमण) किया गया था। बायोटेक्नोलॉजी प्रभाग दिल्ली में साल दर साल (2015-2020) डेंगू वायरस के प्रबल सीरोटाइप में होने वाले वार्षिक परिवर्तनों की पहचान करने में सक्षम था। एएमआर प्रोफाइल का अध्ययन करने के लिए बैक्टीरियल आइसोलेट्स में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन की पहचान भी की गई थी। प्रभाग में भठिंडा, पंजाब के हेपेटाइटिस प्रकोप के नमूनों की भी सिक्वेंसिंग की गई थी।

व्यावहारिक शोध: कोविड-19 जांच के लिए मिले नमूनों में नेस्टेड मल्टीप्लेक्स पीसीआर का उपयोग करके शवसन संबंधी रोगजनकों का पता लगाना: नेस्टेड मल्टीप्लेक्स पीसीआर तकनीक द्वारा अन्य श्वसन संबंधी रोगजनकों की मौजूदगी का पता लगाने के लिए 600 कोविड-19 निगेटिव और 400 कोविड-19 पॉजिटिव नमूनों की जांच की गई थी। पॉजिटिव नमूनों के लिए जीन सिक्वेंसिंग (अनुक्रमण) का काम अभी चल रहा है।

वायरल हेपेटाइटिस की निगरानी के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम: राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र, डीजीएचएस के तहत वायरल हेपेटाइटिस की निगरानी के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम केंद्र सरकार की एक योजना है, जिसका कुल बजट परिव्यय 38.34 करोड़ रुपये है। इस कार्यक्रम को 31 मार्च 2021 तक के लिए एक वर्ष का विस्तार मिला है। इस कार्यक्रम को एक्यूट वायरल हेपेटाइटिस की निगरानी के लिए सभी पंद्रह क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं में विस्तार दिया गया है। जनवरी 2021 के पहले सप्ताह से एक्यूट वायरल हेपेटाइटिस की निगरानी की शुरुआत करने के लिए दिशानिर्देश, परीक्षण किट और उपकरणों की खरीद पूरी हो गई। एंटी एचएवी आईजीएम, एंटी एचईवी आईजीएम, एचबीएसएजी, एंटी एचबीसी, एचबीईएजी, एंटी एचसीवी के लिए वायरल हेपेटाइटिस मार्कर्स को जांचा जा चुका है।

सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल ऑक्यूपेशनल हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज एंड हेल्थ डिवीजन (सीईओएच-सीसीएच) - जलवायु और पर्यावरणीय कारकों से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान करने के लिए गैर-स्वास्थ्य क्षेत्र समेत सभी अन्य क्षेत्रों के साथ गतिविधियों का संचालन करता है और तालमेल बनाता है। प्रधानमंत्री जलवायु परिवर्तन परिषद (पीएमसीसी) के तहत वर्ष 2015 में मिशन ऑन हेल्थकी शुरुआत के बाद, जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना (एनएपीसीसीएचएच) बनाई गई थी और फरवरी 2019 में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान (नेशनल हेल्थ मिशन-एनएचएम) के तहत जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीसीएचए) को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा मंजूरी दी गई थी। इसके तहत मुख्य गतिविधियां वायु प्रदूषण (के लिए सेन्टनल सर्विलांस के विकास, एचएपी, आईईसी के विकासना और सीओई के साथ समन्वय), गर्मी से जुड़ी बीमारियों और लार्वा जनित बीमारियों इत्यादि पर केंद्रित हैं।

व्यावहारिक शोध: कोविड-19 जांच के लिए आए नमूने (600 कोविड-19 निगेटिव और 400 कोविड-19 पॉजिटिव नमूनों में) में नेस्टेड मल्टीप्लेक्स पीसीआर का उपयोग कर अन्य श्वसन रोगजनकों का पता लगाना। इन रोगजनकों को 5 समूहों में विभाजित किया गया है और उनके संबंधित प्राइमर्स को उस विशेष लक्षित रोगजनकों/समूहों को विस्तार देने के लिए इस्तेमाल किया गया था। सेरोटाइप का पता लगाने के लिए डेंगू वायरस के कुल 55 पीसीआर उत्पादों, जिन्हें 2015 से 2020 के बीच न्यूक्लियोटाइड सीक्वेंसिंग के लिए जूनोसिस डिवीजन से लिया गया था, को जैवसूचना विज्ञान उपकरणों का उपयोग करके सुलझा लिया गया था। जैव सूचना आधारित विश्लेषण से पता चला कि सेरोटाइप डीईएनवी1, डीईएनवी2, डीईएनवी3 और डीईएनवी4 से जुड़े सीक्वेंसेज (अनुक्रमण) मौजूद हैं।

राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीएचसीपी)

एसडीजी 3.3 लक्ष्य के अनुरूप राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत संचालित राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम का उद्देश्य संक्रमण की संभावना वाले 5 करोड़ लोगों का प्रबंधन करना है। इस कार्यक्रम के तहत, सभी जरूरतमंदों को मुफ्त जांच और दवाएं उपलब्ध कराई जा रही है, जो न केवल हेपेटाइटिस सी के उपचार के लिए, बल्कि हेपेटाइटिस बी के जीवन पर्यंत प्रबंधन के लिए भी है। कार्यक्रम के तहत अपनाई गई प्रमुख रणनीतियों में वायरल हेपिटाइटिस के लिए जागरूकता पैदा करने, पहुंच बढ़ाने, जांच को बढ़ावा देने और इजाज मुहैया कराने पर ध्यान देने के साथ निवारक, प्रोत्साहक और उपचारात्मक प्रयास शामिल है।

उपलब्धियां (सितंबर 2020 तक):

  • वायरल हेपिटाइटिस सी की जांच के लिए किए गए सेरोलॉजिकल टेस्ट की संख्या– 11,99,524
  • हेपिटाइटिस सी का इलाज शुरू करने वाले नए मरीजों की संख्या – 49,590
  • एचसीवी इलाज को पूरा करने वाले नए मरीजों की संख्या  (इलाज की समाप्ति)– 12,086
  • वायरल हेपिटाइटिस बी का पता लगाने के लिए किए गए सेरोलॉजिकल टेस्ट की संख्या – 21,11,238
  • सभी 362 जिलों में वायरल हेपिटाइटिस प्रबंधन के लिए 456 उपचार स्थलों की स्थापना

 

कोविड-19 महामारी के बीच, वायरल हेपेटाइटिस प्रबंधन के लिए वायरल हेपेटाइटिस सेवाओं को गैर-कोविड आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में शामिल किया गया था और दवाओं की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एक साथ कई महीने की दवाएं देने के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए थे। निर्बाध उपचार मुहैया कराने के लिए राज्यों के बीच समन्वय सुनिश्चित किया गया था। लॉकडाउन अवधि में सभी रोगियों की जरूरतें पूरी करने के लिए राज्यों के बीच एक अच्छा तालमेल देखा गया था। वास्तविक समय में सभी से जुड़ी चिंताओं पर त्वरित प्रतिक्रिया को सक्षम बनाने में इलेक्ट्रॉनिक संचार ने जीवंत भूमिका निभाई। लॉकडाउन के दौरान राज्यों की ओर से राज्य नोडल अधिकारियों द्वारा व्हाट्सएप, एसएमएस जैसे विभिन्न संचार माध्यमों से मरीजों का पता लगाने का प्रयास किया गया था और इसमें कार्यक्रम प्रभाग ने मदद की थी। विभिन्न राज्यों में अन्य स्वास्थ्य योजनाओं का उपयोग करते हुए दवाओं का घर-घर वितरण किया गया था। पंजाब जैसे कुछ राज्यों में जिला प्रशासन की मदद से मरीजों को इलाज कराने के लिए आने-जाने के पास जारी किए गए थे। कुछ राज्यों ने वायरल हेपेटाइटिस रोगियों को टेली-परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई थीं।

अभी जारी कोविड-19 महामारी के साथ, सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को स्वास्थ्य सुविधाओं के सभी स्तरों पर क्षमता निर्माण में मदद की जा रही है जिससे कि हेल्थ और वेलनेस सेंटर के चरणबद्ध तरीके से रहने तक मरीजों की जांच और इलाज तक पहुंच हो सके।

एमएंडई फ्रेमवर्क के तहत एनवीएचसीपी- प्रबंधन सूचना प्रणाली को मजबूत बनाने के क्रम में, हेपेटाइटिस बी के लिए एक वेब पोर्टल 28 जुलाई 2020 को विश्व हेपेटाइटिस दिवस के मौके पर शुरू किया गया है।

17. केंद्र सरकार की स्वास्थ्य सेवाएं (सीजीएचएस)

सीजीएचएस देश भर के 74 शहरों में 331 एलोपैथिक वेलनेस सेंटर और 88 आयुष केंद्रों के नेटवर्क के जरिए 12.92 लाख प्राथमिक कार्ड धारकों (और 37.71 लाख कुल लाभार्थियों) को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कर रहा है।

17.1 नए एलोपैथिक वेलनेस सेंटर्स खोलना

वर्ष भर में खोले गए नए एलोपैथिक वेलनेस सेंटर

  • कन्नूर
  • कोझिकोड

17.2 अन्य उपलब्धियां:

  1. एयरपोर्ट और क्वारंटीन सेंटर्स पर अपने कर्तव्यों को निभाते हुए सीजीएचएस के चिकित्सा अधिकारी और कर्मचारी कोविड-19 संक्रमण के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा हैं
  2. कोविड-19 संक्रमण के मद्देनजर सीजीएचएस लाभार्थियों के लिए विशेष प्रावधान:

• 31 दिसंबर 2020 तक गंभीर बीमारियों के लिए ओपीडी दवाएं खरीदने का विकल्प और अदायगी लिए दावा करना

पेंशनभोगियों के मामले में कार्ड की वैधता को अस्थायी विस्तार, सीजीएचएस लाभार्थी वार्षिक आधार पर कार्ड लेते हैं और 31 मार्च और उसके बाद उनकी वैधता खत्म हो जाती है।

31 मार्च 2020 के बाद सेवानिवृत्त होने वाले केंद्रीय कर्मचारियों के लिए 31 जुलाई 2020 तक सीजीएचएस सुविधाओं का अस्थायी प्रावधान

बुखार और अन्य संकेतिक लक्षणों वाले लाभार्थियों की जांच करने के लिए वेलनेस सेंटरों में अलग से फीवर क्लिनिकखोलने और नोडल केंद्रों को रेफर करने के लिए निर्देश ।

सीजीएचएस वेलनेस सेंटर्स को कोविड 19 पॉजिटिव सीजीएचएच लाभार्थियों को होम क्वारंटाइन के तहत मदद करने और ऐसे सीजीएचएस लाभार्थियों को एक पल्स ऑक्सीमीटर (@ Rs1200/-) प्रति परिवार खरीदने की अनुमति देने के निर्देश

ई-संजीवनी के माध्यम से सरकार के विशेषज्ञों के साथ टेली-परामर्श की सुविधा

• ‘भारतकोशके माध्यम से सदस्यता शुल्क का ऑनलाइन भुगतान

17.3 अस्पताल के बिलों का निपटान:

सीजीएचएस के तहत सूचीबद्ध निजी अस्पतालों के पास नगदी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अस्पताल के बिलों के भुगतान पर विशेष ध्यान दिया गया ताकि वे सीजीएचएस लाभार्थियों, विशेष रूप से वेतनभोगियों को सुविधाएं दे सकें।

चालू वित्त वर्ष में अब तक अस्पतालों के लगभग 952 करोड़ रुपये के बिलों का भुगतान किया गया है।

 

18. औषदि विनियमन

  • ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा-26 बी के तहत उपभोक्ताओं के घरों तक दवाओं की आपूर्ति, गजट नोटिफिकेशन जीएसआर नंबर 220(ई) दिनांक 26.03.03 के जरिए ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स-1945 के तहत सिर्फ फॉर्म-20 या फॉर्म-21 में खुदरा बिक्री लाइसेंस रखने वाले रिटेल केमिस्ट के लिए लागू,
  • कसौली स्थित सेंट्रल ड्रग लेबरोटरी के अलावा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल, नोएडा को गजट अधिसूचना नंबर एसओ 4206 (ई) दिनांक 24.11.2020 के जरिए ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट-1940 की धारा-26बी के तहत अस्थायी अवधि (12 महीने) के लिए कोविड-19 टीकों के परीक्षण के लिए अधिसूचित किया गया है
  • सौंदर्य प्रसाधन नियम, 2018 को गजट नोटिफिकेशन सीएसआर नंबर 763 (ई) दिनांक 15.12.2020 के जरिए प्रकाशित किया गया है।

19. दंत चिकित्सा शिक्षा

एमडीएस सीटों में वृद्धि:

शैक्षणिक सत्र 2020-21 के लिए 461 अतिरिक्त एमडीएस सीटों को बढ़ाने की अनुमति दी गई थी। इससे देश में एमडीएस सीटों की कुल संख्या 6,689 पहुंच गई।

19.2 बीडीएस सीटों में बढ़ोतरी:

शैक्षणिक सत्र 2020-21 के लिए 575 अतिरिक्त बीडीएस सीट बढ़ाने की अनुमति दी गई थी। इसके साथ देश में कुल बीडीएस सीटों की संख्या 27,595 तक पहुंच गई। वर्तमान शैक्षणिक सत्र में दो डेंटल कॉलेजों की स्थापना के साथ देश में कुल डेंटल कॉलेजों की संख्या 315 हो गई ।

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