जल शक्ति मंत्रालय

वर्षांत समीक्षा: जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय


राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने 22 परियोजनाओं को पूरा किया और 557.83 करोड़ रुपये की 17 नई परियोजनाओं को मंजूरी दी

जिलास्तरीय अधिकारियों के प्रयासों को मान्यता देने के लिए नमामि गंगे को लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार योजना में शामिल किया गया

बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डीआरआईपी) चरण-II और चरण-III को 10, 211 करोड़ रुपये के बजट खर्च के साथ मंजूरी दी
राष्ट्रीय जल मिशन ने जल संरक्षण को बेहतर बनाने के लिए देश भर में विशेष अभियान – “कैच द रेन” शुरू किया

Posted On: 26 DEC 2020 2:38PM by PIB Delhi

ए. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन:

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने 2020 में 22 परियोजनाओं को पूरा किया और कुल 557.83 करोड़ रुपये की लागत से जल निकासी अवसंरचना, घाट और श्मशान स्थल, प्रदूषण नियंत्रण, वानिकीकरण, जैव विविधता इत्यादि से जुड़ी 17 नई परियोजनाओं को मंजूरी दी है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 15 सितंबर, 2020 को पटना में 43 एमएलडी बेऊर एसटीपी (78 करोड़ रुपये) और 37 एमएलडी करमलीचक एसटीपी (73 करोड़ रुपये) का उद्घाटन किया। इसके अलावा, प्रधानमंत्री ने मुजफ्फरपुर में नमामि गंगे के तहत रिवर फ्रंट डेवलपमेंट स्कीम का शिलान्यास भी किया। इस योजना के तहत मुजफ्फरपुर शहर के तीन घाटों, पूर्व अखाड़ा घाट, सिद्धि घाट और चंदवारा घाट को विकसित किया जाएगा।

प्रधानमंत्री ने 29 सितंबर, 2020 को उत्तराखंड में हरिद्वार के जगजीतपुर में 68 एमएलडी एसटीपी, जगजीतपुर में ही 27 एमएलडी एसटीपी के उन्नयन और सराय में 18 एमएलडी एसटीपी; ऋषिकेश के लक्कड़घाट में 26 एमएलडी एसटीपी, चंद्रेश्वर नगर में 7.5 एमएलडी एसटीपी और मुनि की रेती में चोरपानी में 5 एमएलडी और बद्रीनाथ में 1 एमएलडी और 0.01 एमएलडी एसटीपी जैसी विभिन्न परियोजनाओं को राष्ट्र को समर्पित किया। उत्तराखंड में सभी प्रमुख परियोजनाएं (हरिद्वार, ऋषिकेश और मुनि की रेती में बनी 120.5 एमएलडी की क्षमता) पूरी हो चुकी हैं। मुनि की रेती में प्रदूषण के लिए चर्चित चंद्रेश्वर नगर नाले को रोका जा चुका है और अब यह गंगा में नहीं जाता है।

पहली बार, जिलास्तरीय अधिकारियों के प्रयासों को मान्यता देने के लिए नमामि गंगे को लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार योजना में शामिल किया गया है। इस पुरस्कार श्रेणी में, एक पुरस्कार मिशन के तहत अधिसूचित 57 डीजीसी में से एक जिले को दिया जाएगा। एनएमसीजी ने राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूहों, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और राज्य के वन विभागों को बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं, घाटों के सौंदर्यीकरण, वानिकीकरण उपाय इत्यादि जैसे कार्यों को कराने के लिए जनवरी, 2020 से लेकर नवंबर 2020 तक 1,452.40 करोड़ रुपये जारी किए हैं।

विश्व बैंक बोर्ड ने 25 जून 2020 को द्वितीय राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना (गंगा-II) के लिए 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर (3023.10 करोड़ रुपये) मंजूर किया था। आर्थिक मामलों के विभाग, भारत सरकार और विश्व बैंक ने 7 जुलाई, 2020 को एक कर्ज समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यह कर्ज 5 साल की अवधि दिसंबर 2026 तक के लिए होगा। पर्यावरण, नदी संरक्षण और जैव-विविधता इत्यादि से जुड़े मुद्दों के बारे में युवाओं, स्कूली बच्चों और आम जनता की जानकारी और जागरूकता का मूल्यांकन करने के लिए 22 अप्रैल 2020 (विश्व पृथ्वी दिवस) से एक प्रतियोगी ज्ञान-निर्माण मंच गंगा क्वेस्ट 2020 को शुरू किया गया था। यह प्रतियोगिता 30 मई, 2020 को खत्म हुई थी और 5 जून, 2020 (विश्व पर्यावरण दिवस) को विजेताओं की घोषणा की गई थी। एक डिजिटल पहल, क्विज़ को कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन के बावजूद, देश भर से और विदेशों से भी एनआरआई व अन्य लोगों में से 11.5 लाख से ज्यादा व्यक्तियों की उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली थी। क्विज के द्विभाषी स्वरूप की वजह से इसे उन सुदूर क्षेत्रों में भी छात्रों तक पहुंचने में मदद मिली, जहां पर लोग हिंदी को लेकर ज्यादा सहज महसूस करते हैं।

एनएमसीजी ने पवित्र गंगा नदी की महिमा का उत्सव मनाने के लिए 2 से 4 नवंबर, 2020 तक गंगा उत्सव 2020, तीन दिवसीय सांस्कृतिक एवं शैक्षिक उत्सव, का आयोजन किया। इस उत्सव में कहानी पाठ, लोककथा सुनाना, गणमान्य व्यक्तियों के साथ चर्चा, प्रश्नोत्तरी, विविध पारंपरिक कलाओं की प्रदर्शनी, प्रख्यात कलाकारों का नृत्य और संगीत प्रदर्शन, फोटो गैलरी, प्रदर्शनियों और अन्य बहुत से कार्यक्रम शामिल थे।

उत्तराखंड में 7 जिलों में 50,000 हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 11 जिलों में 35,780 हेक्टेयर जमीन पर जैविक खेती शुरू की गई है। बिहार में भी गंगा के किनारे 13 जिलों में भी जैविक खेती को प्रारंभ किया गया है। 13 मार्च, 2020 को गंगा आमंत्रण अभियान के लिए फ्लैग-इन गंगा समारोह आयोजित किया गया था। 34 दिनों तक देवप्रयाग से गंगासागर तक रिवर राफ्टिंग अभियान गंगा के संरक्षण के लिए साहसिक खेलों के माध्यम से मार्ग में लाखों लोगों को जोड़ने का सबसे बड़ा सामाजिक संपर्क कार्यक्रम है।

एक प्रमुख सीएसआर पहल के तहत 24 फरवरी, 2020 को एनएमसीजी, इंडोरामा चैरिटेबल ट्रस्ट और एमएससीजी-उत्तराखंड के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए। इसके तहत इंडोरामा चैरिटेबल ट्रस्ट गंगोत्री और बद्रीनाथ में भक्तों को आनंददायक क्षण का अनुभव कराने और गंगा दर्शन की सुविधा देने के लिहाज से स्नान घाटों की मरम्मत करने और सभी मूलभूत सार्वजनिक सुविधाओं वाले श्मशान घाटों को बनाने पर लगभग 26 करोड़ रुपये खर्च करेगा।

बी. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई)त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी):

भारत सरकार ने 27 जुलाई 2016 को 77,595 करोड़ रुपये (केंद्रीय हिस्सा-31,342 करोड़ रुपये; राज्य का हिस्सा-46,253 करोड़ रुपये) की अनुमानित बकाया राशि के साथ 99 प्राथमिकता वाली सिंचाई परियोजनाओं (और 7 चरणों) में पूरा करने के लिए मंजूरी दी। इन कार्यों में एआईबीपी और कमान एरिया डेवलपमेंट (सीएडी) दोनों ही शामिल हैं। केंद्रीय सहायता (सीए) और राज्यों का हिस्सा, दोनों के लिए धनराशि की व्यवस्था नाबार्ड के माध्यम से लॉन्ग टर्म इरिगेशन फंड (एलटीआईएफ) के तहत की गई थी। इस योजना के तहत 34.63 लाख हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता तैयार होने का लक्ष्य है। संबंधित राज्य सरकारों द्वारा इन परियोजनाओं पर 2016-17 से 46,702 करोड़ रुपये खर्च किए जाने की सूचना है।

पीएमकेएसवाई-एआईबीपी के तहत वित्तीय प्रगति इस प्रकार है:

(करोड़ रुपये में)

जारी किया गया फंड

2016-17 से 2019-20

2020-21 (अब तक)

कुल

2020 में जारी फंड

केंद्रीय सहायता

11,489

1,083

12,572

1,083

राज्य का हिस्सा

22,710

1,053

23,763

1,736

कुल

34,199

2,136

36,335

2,819

 

सिंचाई के क्षेत्र में प्रगति : 2016-17 से 2019-20 के दौरान प्राथमिकता वाली परियोजनाओं के एआईबीपी कार्यों के जरिए 34.63 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य के मुकाबले, लगभग 21.33 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता सृजित की जा चुकी है। 2020-21 के दौरान सृजित सिंचाई क्षमता की जानकारी फसली मौसम पूरा होने के बाद मिल पाएगी।

पीएमकेएसवाई-एआईबीपी के तहत पूरी हुई परियोजना : 99 चिन्हित परियोजनाओं (और 7 चरणों) में से 44 प्राथमिकता वाली परियोजनाओं के एआईबीपी कार्य अब तक पूरे हो जाने की सूचना है। इनमें से 10 परियोजनाओं का काम 2020 के दौरान पूरा होने की सूचना है।

योजनाओं को लागू करने की स्थिति को बेहतर बनाने और लाभों को अधिकतम करने के लिए नए उपायों को अपनाया गया है:

· केंद्रीय हिस्सेदारी/सहायता (सीए) के लिए वार्षिक जरूरत के हिसाब से नाबार्ड के माध्यम से धनराशि की व्यवस्था की गई है, जिसे 15 वर्षों में चुकता करना होगा। इसके अलावा, राज्य सरकारें जरूरत पड़ने पर अपने हिस्से के लिए भी नाबार्ड से धनराशि ले सकती हैं।

 

· राज्य के हिस्से के बारे में, केंद्र सरकार ब्याज में छूट देगी, ताकि राज्य के हिस्से के लिए औसत ब्याज दर लगभग 6 प्रतिशत हो जाए, जिससे इसे राज्यों के लिए आकर्षक बनाया जा सके और परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए उन्हें राज्य का हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

 

· केंद्रीय जल आयोग की क्षेत्र इकाइयों के माध्यम से परियोजनाओं की भौतिक प्रगति के साथ ही वित्तीय स्थिति में सुधार की भी निगरानी की जाती है। पीएमयू-पीएमकेएसवाई के जरिए तीसरे पक्ष से भी निगरानी भी कराई जा रही है।

· परियोजनाओं की निगरानी के लिए ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) को विकसित किया गया है। प्राथमिकता वाली 99 परियोजनाओं में से प्रत्येक के लिए एक नोडल अधिकारी की पहचान की गई है जो एमआईएस में नियमित रूप से परियोजना की भौतिक और वित्तीय प्रगति की जानकारी को दर्ज करता है।

 

· परियोजना के घटकों की जियो-टैगिंग करने के लिए जीआईएस आधारित एप्लीकेशन तैयार किया गया है। नहर नेटवर्क की परियोजनाओं के डिजिटलीकरण के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीकी का उपयोग किया गया है। इसके अलावा, हर साल रिमोट सेंसिंग के जरिए प्राथमिकता वाली 99 परियोजनाओं के कमान क्षेत्र में फसली क्षेत्र का भी अनुमान लगाया जा रहा है।

· भूमि अधिग्रहण (एलए) के विवादों को सुलझाने और जल प्रवाह क्षमता को बढ़ाने के लिए, अंडरग्राउंड पाइपलाइन (यूजीपीएल) के उपयोग को सक्रियता से बढ़ावा दिया गया है। इस मंत्रालय ने जुलाई 2017 में पाइप्ड इरिगेशन नेटवर्क की योजना और प्रारूप के लिए दिशा-निर्देशों को जारी किया था। यूजीपीएल को अपनाने से ओडिशा और महाराष्ट्र क्रमश: 6200 हेक्टेयर और 4920 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण टालने में सफल रहे। इससे लगभग 1500 करोड़ रुपये की बचत हुई है।

· इन परियोजनाओं के कमान क्षेत्रों में कमान क्षेत्र विकास कार्यों का समान रूप से कार्यान्वयन (परि-पासु इंप्लीमेंटेशन) यह सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है कि सृजित होने वाली सिंचाई क्षमता का किसान उपयोग कर सके। सहभागी सिंचाई प्रबंधन (पीआईएम) पर ध्यान केंद्रित करने वाले नए दिशा-निर्देशों को भी लाया गया है। इसके अलावा, जल उपयोगकर्ता संघों (डब्ल्यूयूए) को सिंचाई व्यवस्था के नियंत्रण और प्रबंधन के हस्तांतरण को सीएडीडब्ल्यूएम के पूरा होने की स्वीकृति के लिए आवश्यक शर्त बनाया गया है।

महाराष्ट्र के लिए विशेष पैकेज: 18 जुलाई 2018 को एक विशेष पैकेज को मंजूरी दी गई, जो विदर्भ और मराठवाड़ा में सूखा प्रभावित जिलों और शेष महाराष्ट्र में 83 सतह लघु सिंचाई (एसएमआई) परियोजनाओं और 8 प्रमुख/मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को 2023-24 तक चरणबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए केंद्रीय सहायता उपलब्ध कराता है। 1 अप्रैल, 2018 को उक्त परियोजनाओं की कुल शेष लागत 13,615.61 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया। 2017-18 के दौरान हुए व्यय की भरपाई समेत कुल केंद्रीय सहायता (सीए) 3,831.41 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। इन योजनाओं के पूरा होने पर 3.77 लाख हेक्टेयर की अतिरिक्त सिंचाई क्षमता सृजित होने की उम्मीद है। इस योजना के तहत 1,163 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की जा चुकी है, जिसमें से 363 करोड़ रुपये जनवरी-2020 के बाद जारी किए गए हैं। इस योजना के तहत, महाराष्ट्र सरकार द्वारा अब तक 18 एसएमआई परियोजनाओं के पूरा होने की सूचना दी गई है, जिनमें से 9 परियोजनाएं जनवरी 2020 के बाद पूरी होने की सूचना है। इन 18 परियोजनाओं से सृजित होने वाली अंतिम सिंचाई क्षमता 11,693 हेक्टेयर है। इन सभी परियोजनाओं से 2018-19 और 2019-20 के दौरान कुल 86,160 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता सृजित होने की सूचना है। 2020-21 के दौरान सृजित होने वाली सिंचाई क्षमता की जानकारी फसली मौसम खत्म बाद मिल सकेगी।

पोलावरम सिंचाई परियोजना: पोलावरम सिंचाई परियोजना को आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा-90 के तहत राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था, जो 1 मार्च 2014 को प्रभाव में आई। अन्य लाभों के अलावा 2454 मीटर मिट्टी-पत्थर से बने बांध और 1128.4 मीटर लंबे स्पिलवे के साथ इस परियोजना का लक्ष्य पूर्वी गोदावरी, विशाखापत्तनम, पश्चिम गोदावरी और कृष्णा जिलों में 2.91 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा विकसित करना है। केंद्र सरकार परियोजना के सिंचाई घटक की 01 अप्रैल, 2014 को बकाया लागत की 100 फीसदी राशि का भुगतान कर रही है। आंध्र प्रदेश सरकार भारत सरकार की ओर से परियोजना के सिंचाई घटक को लागू कर रही है। परियोजना की अनुमोदित लागत 55,548.87 करोड़ रुपये (2017-18 मूल्य स्तर पर) है। राष्ट्रीय परियोजना घोषित होने के बाद से अब तक, पोलावरम सिंचाई परियोजना को लागू करने के लिए 8,614.16 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं, जिनमें से 1,850 करोड़ रुपये जनवरी 2020 के बाद जारी किए गए हैं। इसके अलावा, 2020-21 के दौरान परियोजना के लिए 2,234 करोड़ रुपये को मंजूरी दी जा चुकी है, जिसे नाबार्ड बहुत जल्द जारी कर देगा। इस परियोजना के लिए 31 मार्च 2020 तक 17,327 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं।

सी. बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डीआरआईपी) चरण II और चरण III:

भारत 5334 बड़े बांधों के साथ विश्व में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है। लगभग 411 बांध निर्माणाधीन हैं। इसके अलावा, कई हजार छोटे बांध हैं। देश की जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यह बांध बहुत महत्वपूर्ण हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 अक्टूबर, 2020 को आयोजित अपनी बैठक में बाहर से सहायता प्राप्त डीआरआईपी चरण-II और चरण-III को मंजूरी दी थी। इसमें उन्नीस (19) राज्य और तीन (3) केंद्रीय एजेंसियां शामिल हैं। कुल बजट खर्च 10, 211 करोड़ रुपये है। इसे दो वर्ष के अनुमानित अतिरिक्त समय (ओवरलैपिंग) के साथ दो चरणों में लागू किया जायेगा, प्रत्येक चरण की अवधि छह वर्ष की होगी।

डी. केंद्रीय जल आयोग:

369 जलाशयों के आंकड़ों के साथ जलाशयों में जमा गाद पर भारत 2020 (चौथा संस्करण) बनाया जा चुका है। महाराष्ट्र इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (एमईआरआई), नासिक के माध्यम से अप्रैल 2019 में सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग तकनीकी के जरिए 23 जलाशयों में जमा गाद के आकलन का अध्ययन कार्य शुरू किया गया था। यह अध्ययन सितंबर, 2020 में पूरा हो चुका है। सीडब्ल्यूसी ने भी अपने स्तर पर रिमोट सेंसिंग तकनीकी का इस्तेमाल करके 8 जलाशयों में गाद जमा होने का आकलन अध्ययन कराया है।

इस घरेलू अध्ययन में (ऑप्टिकल डेटा की जगह पर) माइक्रोवेव डेटा का उपयोग किया गया है। माइक्रोवेव डेटा उपयोग करने का लाभ यह है कि इसमें बादलों की वजह से तस्वीरों पर कोई असर नहीं पड़ता है, और हमें मानसून के मौसम के दौरान एफआरएल के नजदीक जलाशयों की तस्वीरें मिल पाती हैं, (जिसे ऑप्टिकल इमेजरी के जरिए पाना अपेक्षाकृत मुश्किल होता है, जब जलाशय पूरी तरह से भरे होते हैं, तब ज्यादातर समय मानसून का मौसम होता है और ज्यादातर समय बादल छाए रहते हैं)। रिमोट सेंसिंग तकनीकी के जरिए 4 नदियों ब्रह्मपुत्र, सुबनसिरी, पगलाडिया और यमुना के संरचना अध्ययन का काम पूरा हो चुका है।

डीओडब्ल्यूआर, आरडी एवं जीआर की सलाहकार समिति ने मध्यम और बड़ी सिंचाई, बहुउद्देशीय और बाढ़ नियंत्रण परियोजना प्रस्तावों की तकनीक-आर्थिक व्यवहार्यता पर विचार किया है। वर्ष 2020 के दौरान 16 मध्यम/बड़ी सिंचाई, बहुउद्देशीय और बाढ़ नियंत्रण परियोजना प्रस्तावों को मंजूरी मिली है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र में सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग का इस्तेमाल करके वर्ष 2020 के लिए 50 हेक्टेयर से बड़े आकार वाले 477 हिमनदीय झीलों और जल निकायों की निगरानी पूरी की जा चुकी है। यह काम हर साल जून से अक्टूबर तक हर महीने होता है।

वर्ष 2020 में, राजस्थान, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों में 3 नए बाढ़ पूर्वानुमान स्टेशन (1 स्तर और 2 प्रवाह) जोड़े गए हैं। 1 मई से 30 नवंबर 2020 की अवधि के दौरान, 11691 बाढ़ पूर्वानुमान (8243 स्तर और 3448 प्रवाह) जारी किए गए, जिनमें से 11178 (8132 स्तर और 3046 प्रवाह) पूर्वानुमान 95.61 प्रतिशत के साथ सटीक होने की सीमा में थे। यह आधिकारिक रूप से जारी किए गए पूर्वानुमानों की सर्वाधिक संख्या है।

भीषण बाढ़ जैसे हालात में दैनिक आधार पर बाढ़ स्थिति रिपोर्ट और विशेष परामर्श भी जारी किए गए। प्रति घंटे के आधार पर 757 रेड और 1,121 ऑरेंज बुलेटिन और 3-घंटे के आधार पर अपडेट जारी किए गए। सीडब्ल्यूसी की बाढ़ पूर्वानुमान के लिए बनाई गई एफएफ वेबसाइट, ट्विटर और फेसबुक पेजों के माध्यम से बाढ़ संबंधी सभी जानकारियां लोगों तक पहुंचाई गई।

नए प्रयासों में 2021 से भारतीय मौसम विभाग के बारिश के पूर्वानुमान और जल विज्ञान के आंकड़ों का इस्तेमाल करके तीन दिवसीय सलाहकारी पूर्वानुमान को बढ़ाकर सात दिन करना; उचित जलाशय विनियमन के लिए 10 चिन्हित जलाशयों के लिए एक सप्ताह पहले पूर्वानुमान जारी करने और धारा की दिशा में बाढ़ से बचाव करना शामिल है।

6. राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना (एनएचपी) के तहत सीडब्ल्यूसी की गतिविधियां

उपलब्धियों में विभिन्न राज्यों के जल और मौसम विज्ञान संबंधी नेटवर्क को अंतिम रूप देना; जल-मौसम विज्ञान और सर्वेक्षण के उपकरणों की विशिष्टताओं को अंतिम रूप से तैयार करना; दुनिया भर में उपलब्ध विभिन्न मॉडलिंग सॉफ्टवेयर पर रिपोर्ट तैयार करना; डब्ल्यूआईएमएस में पुराने ईएसडब्ल्यूआईएस का विकास करना और उसे उन्नत बनाना; असम को छोड़कर सभी पूर्वोत्तर राज्यों के लिए रियल टाइम डेटा एक्वीजीशन सिस्टम (आरटीडीएएस) के लिए निविदा को अंतिम रूप देना; एनसीए के लिए आरटीडीएएस निविदा को अंतिम रूप देना; तीन नदी घाटियों-यमुना, नर्मदा और कावेरी के लिए विस्तारित जल विज्ञान पूर्वानुमान (कई हफ्ते का पूर्वानुमान) के लिए परामर्श की जिम्मेदारी सौंपना; 7 नदी घाटियों में जमा गाद का अध्ययन करने के लिए परामर्श की जिम्मेदारी सौंपना; जल प्रवाह की निगरानी व्यवस्था के आधुनिकीकरण के प्रयास के तहत 14 एडीसीपी की खरीद करना; एनडब्ल्यूए पुणे में प्रशिक्षण सुविधाओं का आधुनिकीकरण करना और अत्याधुनिक उपकरणों की सुविधा देते हुए जल गुणवत्ता निगरानी गतिविधि का आधुनिकीकरण शामिल है।

प्रयासों में गंगा नदी घाटी में बाढ़ पूर्वानुमान समेत धारा प्रवाह का पूर्वानुमान करना; विशेष रूप से गंगा नदी घाटी में बाढ़ नियंत्रण के लिए एकीकृत जलाशय संचालन और समूह आधारित दृष्टिकोण का उपयोग करना; 32 जलाशयों के लिए जल विज्ञान संबंधी सर्वेक्षण का इस्तेमाल करके जलाशयों में जमा गाद का अध्ययन करना; बिहार राज्य में फरक्का बैराज की वजह से गंगा नदी में बाढ़ और गाद जमा होने के विषय का अध्ययन करना शामिल है।

तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (सीएमआईएस):

तमिलनाडु, केरल और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (सीएमआईएस) को लागू करने की जिम्मेदारी आईआईटी मद्रास, चेन्नई को सौंपी गई है और सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में एक तटीय डेटा संग्रह स्थल बनाने के लिए सीडब्ल्यूसी, आईआईटी मद्रास और संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी) के बीच एक त्रिपक्षीय एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस परियोजना के तहत तीन अदद तटीय डेटा संग्रह स्थलों को बनाने काम पूरा हो चुका है। इस परियोजना के लिए पहले हुए दो वर्ष के एमओयू को अब और एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है और संबंधित राज्यों व विशेषज्ञ एजेंसी ने जनवरी/फरवरी 2020 में एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।

दो स्थलों, महाराष्ट्र (उत्तरी क्षेत्र) और गुजरात (दक्षिणी क्षेत्र) में प्रत्येक जगह पर एक-एक, पर तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (सीएमआईएस) के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सीडब्ल्यूपीआरएस, पुणे को सौंपी गई है और सीडब्ल्यूसी, सीडब्ल्यूपीआरएस और संबंधित राज्यों (गुजरात और महाराष्ट्र) ने एक त्रिपक्षीय एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। इस परियोजना के तहत दो अदद तटीय डेटा संग्रह स्थलों (सतपति-महाराष्ट्र, नानी दंती मोती दंती-गुजरात) को बनाने का काम चल रहा है।

तीन जगहों पर, गोवा में 2 और दक्षिणी महाराष्ट्र में 1, सीएमआईएस का कार्यान्वयन एनआईओ, गोवा को सौंपा गया है और सीडब्ल्यूसी, एनआईओ व संबंधित राज्यों (गोवा और महाराष्ट्र) के बीच एक त्रिपक्षीय एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। इस परियोजना के तहत तीन अदद तटीय डेटा संग्रह स्थलों (तारखली-महाराष्ट्र, बेनौलियम-गोवा, बागा-गोवा) को बनाने का काम जारी है।

जलाशयों की निगरानी : केंद्रीय जल आयोग की निगरानी वाले जलाशयों की संख्या जनवरी 2020 में 120 से बढ़कर 123 हो गई और नवंबर 2020 में 123 से बढ़कर 128 हो गई। देश में जल संग्रहण की स्थिति के साप्ताहिक बुलेटिन को, यहां तक कि कोविड-19 महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान बिना विफलता के जारी रखा गया। इसके साथ ही, कोविड 19 महामारी की स्थिति के दौरान भी कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की फसल मौसम निगरानी समूह की बैठक के लिए प्रत्येक शुक्रवार को देश की जल संग्रहण स्थिति का साप्ताहिक बुलेटिन जारी किया गया।

अंतर-राज्यीय मामले:

पेन्नियार/पोन्नियार नदी जल विवाद: अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (आईएसआरडब्ल्यूडी) अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत तमिलनाडु सरकार की शिकायत पर अंतर-राज्यीय नदी पोन्नियार और इसकी सहायक नदियों के उपयोग, वितरण और नियंत्रण संबंधी विवाद को सुलझाने के लिए सीडब्ल्यूसी के अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक समझौता समिति का गठन किया गया, जिसने 30 नवंबर, 2020 को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी। इस मामले में समिति ने 24 फरवरी 2020 और 07 जुलाई 2020 को दो बैठकें की थीं।

तिलैया-ढादर वार्ता समिति: अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (आईएसआरडब्ल्यूडी) अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत बिहार सरकार की शिकायत पर तिलैया-ढाढर डायवर्जन स्कीम का विवाद सुलझाने के लिए सीडब्ल्यूसी के अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक समझौता समिति का गठन किया गया, जिसने अपनी अंतिम रिपोर्ट अक्टूबर 2020 में सौंप दी। इस बारे में समिति ने 13 फरवरी 2020, 23 जून 2020 और 1 अक्टूबर 2020 को तीन बैठकें की थी।

. अटल भू-जल योजना (अटल जल)

अटल भू-जल योजना (अटल जल) 6,000 करोड़ रुपये की लागत वाली भारत सरकार की एक केंद्रीय योजना है। इसके तहत देश में पानी की कमी का सामना करने वाले सात राज्यों जैसे गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में टिकाऊ भूजल प्रबंधन के लिए सामुदायिक भागीदारी और मांग आधारित उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। विश्व बैंक से आंशिक रूप से वित्त पोषित इस योजना का माननीय प्रधानमंत्री ने 25 दिसंबर 2019 को उद्घाटन किया था और इसे 1 अप्रैल 2020 से अगले 5 वर्ष की अवधि के लिए लागू किया जा रहा है।

इस अनूठी योजना का उद्देश्य जल संसाधनों के प्रबंधन में राज्यों की क्षमता को विस्तार देना और उनकी दीर्घकालिक स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए नीति निर्माण के ऊपर से नीचे (टॉप-डाउन) और नीचे-ऊपर (बॉटम-अप) दृष्टिकोणों को मिलाते हुए स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ाना है। यह मांग प्रबंधन पर जोर देने के साथ-साथ भूजल उपलब्धता को बेहतर बनाने संबंधी उपायों को लागू करने के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के एकीकरण पर भी विचार करता है। इसमें उपलब्ध जल संसाधनों के उचित उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए समुदाय के व्यवहार में बदलावों को भी शामिल किया जाता है।

अटल भूजल योजना शुरू होने से भूजल प्रबंधन के लिए सरकार की नीति में बदलाव आया है। इसमें योजना निर्माण, क्रियान्वयन और योजना के कार्यों की निगरानी में सामुदायिक भागीदारी लाने; भूजल उपलब्धता को बेहतर बनाने संबंधी उपायों को लागू करने के लिए चल रही योजनाओं के एकीकरण; पानी के इस्तेमाल की कुशलता में सुधार करके मांग आधारित प्रबंधन पर ध्यान देने और भूजल के महत्व पर जनता के बीच जागरूकता फैलाने के लिए सहभागी राज्यों को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया जा रहा है।

अटल भूजल योजना में भूजल प्रबंधन से जुड़े संस्थानों की मजबूती, भूजल निगरानी नेटवर्क में सुधार, भू-जल संसाधनों के महत्व और गंभीरता पर जन-जागरूकता पैदा करने और उपलब्ध जल स्रोतों के नियोजन व उचित इस्तेमाल के लिए जमीनी स्तर पर भागीदारों की क्षमता विकसित करके भूजल प्रबंधन के लिए राज्यों की क्षमता को बढ़ाने की कल्पना की गई है। इसमें लैंगिक परिप्रेक्ष्य को पूरा करने के लिए योजना से जुड़ी सभी गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी अनिवार्य बनाई गई है।

अटल भूजल योजना से लक्षित क्षेत्रों में भूजल की स्थिति में सुधार आने और जल जीवन मिशन (जेजेएम) के तहत निर्धारित प्रयासों के लिए भूजल स्थिरता सुनिश्चित करने में प्रमुख योगदान देने की उम्मीद है। इसके अलावा किसानों की आय को दोगुना करने के माननीय प्रधानमंत्री के लक्ष्य में भी मदद करने और लंबे समय में हितधारकों द्वारा भूजल के उचित उपयोग के रूप में नतीजे देने की भी उम्मीद है।

योजना के तहत किए गए कार्य इस प्रकार हैं :

i. राष्ट्रीय अंतर-विभागीय संचालन समिति का गठन और राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रबंधन इकाई (एनपीएमयू) की भी स्थापना की गई है।

ii. कार्यक्रम दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं

iii. थर्ड पार्टी गवर्नमेंट वेरिफिकेशन एजेंसी (टीपीजीवीए) को स्थापित किया गया है, जो प्रोत्साहन के वितरण के लिए डीएलआई#1 (भूजल संबंधित जानकारी देना और उसका प्रसार) के संबंध में राज्यों की उपलब्धियों के पहले चरण के सत्यापन के लिए अपनी तैयारियों के साथ आगे बढ़ रही है।

iv. योजना में प्रगति की निगरानी के लिए वेब आधारित एमआईएस बनाने का काम आगे बढ़ा है।

v. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर विश्वास संबंधी नियमावली की तैयारी को अंतिम रूप देने/अनुमोदन अंतिम दौर में है।

vi. सहभागी राज्यों में योजना को लागू करने के लिए संस्थागत व्यवस्था बनाने का काम जारी है।

vii. सभी सात राज्यों के साथ एमओए पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

viii. चार राज्यों जैसे गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश की संस्थागत क्षमता मजबूत करने और क्षमता निर्माण घटक के तहत लगभग 24.05 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के लिए धनराशि जारी करने का प्रस्ताव अनुमोदन की प्रक्रिया में है, जबकि राजस्थान से प्रस्ताव मिलने का इंतजार किया जा रहा है।

ix. राज्य सरकारें तैयारी संबंधी गतिविधियों के साथ योजना को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए आगे बढ़ रही हैं।

एफ. केंद्रीय भूजल बोर्ड

राष्ट्रीय भू-जल स्तर मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम: एनएक्यूयूआईएम सीजीडब्ल्यूबी द्वारा ली जाने वाली भू-जल स्तर मैपिंग और प्रबंधन योजना के लिए अध्ययन करता है। 2020 (1 जनवरी से 30 नवंबर 2020) के दौरान, देश के विभिन्न हिस्सों को शामिल करते हुए 1.67 लाख वर्ग किमी के लिए भू-जल स्तर मानचित्रीकरण और प्रबंधन योजना को बनाया गया है। अब तक, भू-जल स्तर मानचित्रीकरण कार्यक्रम के तहत, देश में मानचित्रीकरण के लिए चिन्हित कुल 24.8 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में से 13.50 लाख वर्ग किमी क्षेत्र शामिल किया जा चुका है।

वर्षा जल संचयन पर जन संवाद कार्यक्रम (पीआईपी) और जन जागरूकता कार्यक्रम सहित प्रशिक्षण और प्रसार कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। जैसा कि राजीव गांधी नेशनल ग्राउंड वॉटर ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरजीएनजीडब्ल्यूटीआरआई) द्वारा लागू त्रि-स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों के एक हिस्से के तहत जनवरी से नवंबर 2020 के बीच विभिन्न प्रकार के कुल 63 प्रशिक्षण (श्रेणी I - 25, श्रेणी II- 22 और श्रेणी III- 16) आयोजित किए गए। इस कार्यक्रमों में भाग लेने वाले लगभग 4641 प्रतिभागियों में भू-जल पेशेवरों के साथ-साथ जमीनी स्तर पर उपयोगकर्ता भी शामिल थे।

आरजीएनजीडब्ल्यूटीआरआई के नए भवन का उद्घाटनकेंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने 25 फरवरी, 2020 को रायपुर में राजीव गांधी राष्ट्रीय भूजल प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (आरजीएनजीडब्ल्यूटीआरआई) के नए भवन का उद्घाटन किया।

 

आकांक्षी जिलों में कृत्रिम पुनर्भरण : सीजीडब्ल्यूबी की ओर से भू-जल स्तर को सुधारने की एक नवाचारयुक्त योजना शुरू की गई है, जिसके तहत महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के आकांक्षी (एस्पिरेशनल) जिलों में भू-जल स्तर को सुधारने के लिए नवाचारयुक्त भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण तकनीकी को लागू किया गया है। इसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र राज्य के एक-एक ब्लॉकों में लागू किया गया है। इन प्रयासों से क्षेत्र में भू-जल स्तर की स्थिति में सुधार आया है।

पुल सह भंडारा: पुल-सह-भंडारा, जल संरक्षित करने का एक ढांचा है जो नदी के ऊपर प्रवाह के हिस्से में जल आपूर्ति और उसके संग्रहण के दोहरे उद्देश्य को साधता है। महाराष्ट्र के पांच स्थानों पर ऐसे ढांचे बनाये गये हैं।

 

खमगांवओस्मानाबाद

पुल सह भंडारा

पीएमकेएसवाई-एचकेकेपी-जीडब्ल्यू

पीएमकेएसवाई-एचकेकेपी-जीडब्ल्यू योजना का लक्ष्य लघु और सीमांत किसानों के लिए भू-जल से अतिरिक्त सिंचाई क्षेत्र सृजित करना है। जनवरी से नवंबर 2020 के दौरान जल शक्ति मंत्रालय की ओर से 1078.60 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इन परियोजनाओं के पूरा होने पर तमिलनाडु, मणिपुर, मिजोरम, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और असम राज्यों में 83,665 हेक्टेयर अतिरिक्त कमान क्षेत्र सृजित हो जाएगा और इससे लगभग 1.48 लाख लघु और सीमांत किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा, जनवरी से दिसंबर 2020 के दौरान अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश को केंद्रीय सहायता के रूप में 103.38 करोड़ रुपये भी जारी किए गए हैं।

जी. राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केंद्र:

जल सूचना प्रबंधन प्रणाली (डब्ल्यूआईएमएस): यह आंकड़ों को एकत्रित करने वाला वेब सक्षम एक केंद्रीकृत मंच है, जिसमें टेलीमेट्रिक सेंसर और हाथों से आंकड़ों को दर्ज करने की सुविधा है, जिसे स्वचालित आधार पर सतही जल और भू-जल दोनों संसाधनों के आकंड़ों को जुटाने के लिए बनाया गया है। इस पोर्टल पर लगभग सभी केंद्रीय और राज्य एजेंसियां पोर्टल पर नदी के स्तर, प्रवाह की मात्रा, जलाशय के स्तर, भू-जल स्तर, सतह और भूजल गुणवत्ता इत्यादि पर अपने समय आधारित आंकड़ों (टाइम सीरीज डेटा) को साझा कर रही हैं।

भारत-जल संसाधन सूचना प्रणाली (इंडिया-डब्लूआरआईएस) : यह जल संसाधनों से जुड़ी सूचनाओं को प्रदर्शित करने और उसे प्रसारित करने के लिए बनाया गया एक वेब पोर्टल है। पूरे वर्ष के दौरान, पिछली प्रणालियों पर संयोजन व उन्नयन और कई नए मॉड्यूल को जोड़कर प्रणाली को नया रूप दिया गया है। अब इस प्रणाली में उपयोगकर्ताओं के उपयोग करने के लिए एक मानकीकृत राष्ट्रीय जीआईएस ढांचे के आधार पर स्थानिक, गैर-स्थानिक, जल-मौसम विज्ञान संबंधी जैसे बारिश, नदी जल स्तर और प्रवाह, भू-जल स्तर, जल की गुणवत्ता, मिट्टी में नमी, जलवायु, भू-वैज्ञानिक और अन्य भू-आकृति संबंधी समय के साथ दर्ज (टाइम सीरीज) आंकड़े और स्थिर आंकड़े उपलब्ध हैं। यहां पर उपयोगकर्ताओं की पहुंच, डाउनलोड और सूचनाओं को देखने के लिए 9 डायनेमिक मॉड्यूल, 12 सेमी डायनेमिक मॉड्यूल, 13 स्टैटिक (स्थिर) मॉड्यूल और 11 उपयोगी सेवाएं उपलब्ध हैं।

 

दोनों पोर्टल्स/सिस्टम को अधिक मजबूत, गतिशील और समृद्ध बनाने के लिए उसमें नए स्तरों को जोड़ते हुए लगातार उन्नत बनाया जा रहा है।

आंकड़ों का प्रसार : जल संसाधन विभाग आरडी एवं जीआर के तहत विभिन्न तरह की संस्थाएं जैसे केंद्रीय जल आयोग, केंद्रीय भू-जल बोर्ड इत्यादि के साथ मिलकर बनाई गई नियमित व्यवस्थाओं के अलावा भारत के सर्वेक्षण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य सरकारों के अन्य विभागों के साथ नियमित आधार पर आंकड़ों को साझा करने और उन्हें आगे जनता तक प्रसारित करने की व्यवस्थाएं विकसित की गई हैं।

इंडिया-डब्ल्यूआरआईएस में उपलब्ध आंकड़ों को एपीआई के माध्यम से किसान मित्र परियोजना के हिस्से के तौर पर किसानों के लिए मोबाइल एप्लीकेशन बनाने के लिए भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय और राष्ट्रीय डेटा व विश्लेषिकी मंच बनाने के लिए नीति आयोग के साथ साझा किया जाता है।

एच. सिंचाई गणना योजना के तहत प्रगति:

देश में भू-जल और सतही जल लघु सिंचाई योजनाओं पर एक ठोस और विश्वसनीय आंकड़ों का आधार बनाने के लिए प्रत्येक पांच साल पर लघु सिंचाई गणना की जाती है। लघु सिंचाई गणना को केंद्र प्रायोजित योजना सिंचाई गणनाके तहत 100% केंद्रीय वित्त पोषण के साथ किया जाता है, जिसके माध्यम से विभिन्न राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों के तहत गठित राज्य सांख्यिकीय प्रकोष्ठों की मदद की जाती है। वर्तमान में 2017-18 के संदर्भ वर्ष के साथ छठी लघु सिंचाई गणना का काम चल रहा है, जिसमें मंत्रालय ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में देश के सभी जल निकायों को शामिल करके जल निकायों की पहली गणना को शुरू किया है। 2020 के दौरान, “सिंचाई गणनायोजना के तहत निम्नलिखित प्रगति हासिल की गई है:

 

i. कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने, निर्देश पुस्तिका तैयार करने, संचालन के दिशा-निर्देश बनाने, आंकड़ों को दर्ज करने और सत्यापन करने के सॉफ्टवेयर विकसित करने, जल निकायों के अक्षांश, देशांतर और फोटोग्राफी को दर्ज करने के लिए मोबाइल एप्लीकेशन तैयार करने, क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के प्रशिक्षण जैसी तैयारियां पूरी करने के बाद, छठी लघु सिंचाई गणना और जल निकायों की पहली गणना राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में चल रही है। 2020 के दौरान, सोलह राज्यों ने फील्ड वर्क पूरा कर लिया है। शेष राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फील्ड वर्क तेजी से आगे बढ़ रहा है।

ii. सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सिंचाई गणना के लिए योजना निर्माण, क्षेत्र कर्मचारियों के प्रशिक्षण, मोबाइल फोन खरीदने, मानदेय के भुगतान, समय-सारणी की छपाई इत्यादि के लिए सिंचाई गणना की कुल लागत की 40 प्रतिशत धनराशि पहली किस्त के रूप में जारी कर दी गई थी। राज्य सरकारों से मिले अनुरोधों के अनुसार खर्च न होने पर राशि को दोबारा उपयोग करने की अनुमति देने का काम किया गया था।

iii. वेतन, भत्ते आदि के खर्च को पूरा करने के लिए राज्य सांख्यिकी प्रकोष्ठों को भी धनराशि जारी की गई ।

आई. उत्तर कोयल जलाशय परियोजना का बकाया काम पूरा करना

विभाग ने झारखंड के पलामू और गढ़वा जिलों के अतिपिछड़े आदिवासी इलाके में बिहार और झारखंड की उत्तर कोयल नदी पर बनी उत्तर कोयल जलाशय परियोजना के लंबे समय से लंबित कार्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी ली है। केंद्रीय मंत्रिमंडल उत्तर कोयल जलाशय परियोजना के लंबित कार्यों को पूरा करने के प्रस्ताव को परियोजना की शुरुआत से तीन वित्तीय वर्षों के दौरान 1622.27 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ मंजूरी दे चुका है। इस परियोजना से बिहार के औरंगाबाद और गया जिलों और झारखंड के पलामू और गढ़वा जिलों के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में हर साल 111,521 हेक्टेयर जमीन के लिए सिंचाई का लाभ मिल पाएगा। इस परियोजना में पेयजल और औद्योगिक इस्तेमाल के लिए 44 एमसीएम जलापूर्ति का भी प्रावधान है।

जनवरी, 2020 से काम में तेजी आई है और मंडल बांध के दस गेटों के निर्माण और निरीक्षण का काम हो चुका है, 10 प्रतिशत बांध और सहायक कार्यों को पूरा किया जा चुका है, मोहम्मदगंज बैराज में 80 प्रतिशत प्रगति और बांयी तरफ की मुख्य नहर (एलएमसी) में 70 प्रतिशत प्रगति हुई है। दांयी तरफ की मुख्य नहर (झारखंड का हिस्सा) पर 5 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है।

जे. बाढ़ प्रबंधन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम (एफएमबीएपी)

इस मंत्रालय के मौजूदा बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम (एफएमपी) और नदी प्रबंधन गतिविधियां व सीमावर्ती क्षेत्रों से संबंधित कार्य (आरएमबीए) योजनाओं को अब 2017-18 से 2019-20 तक तीन साल के लिए बाढ़ प्रबंधन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम”(एफएमबीएपी) नाम की एकल योजना में शामिल कर दिया गया है और इसे मार्च, 2021 तक आगे बढ़ाया जा चुका है। इस योजना के तहत मौजूदा कैलेंडर वर्ष में जनवरी, 2020 से अब तक राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों को 171.1834 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की गई है।

के. भारत और बांग्लादेश के मामले

फरक्का में गंगा जल बंटवारे को लेकर भारत-बांग्लादेश संयुक्त समिति की बैठक

गंगा/गंगा जल साझेदारी संधि 1996 के प्रावधानों के अनुसार भारत-बांग्लादेश संयुक्त समिति की फरक्का/कोलकाता में 24 से 28 फरवरी के दौरान 73वीं और 74वीं बैठक हुई और गंगा नदी पर बने संयुक्त जलीय निगरानी स्थल का भी निरीक्षण किया गया ।

एल. राष्ट्रीय जल नीति की समीक्षा (2012)

जल क्षेत्र में मौजूदा चुनौतियों का सामना करने के लिए विभाग ने राष्ट्रीय जल नीति 2012 में संशोधन करने की योजना बनाई है। राष्ट्रीय जल नीति की समीक्षा करने के लिए 5 नवंबर, 2019 को एक मसौदा समिति का गठन किया गया है।

एम. राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय

नदी की सफाई एक नियमित प्रक्रिया है और भारत सरकार वित्तीय और तकनीकी सहायता देकर नदियों के प्रदूषण की चुनौतियों से निपटने के लिए राज्य सरकारों के प्रयासों में मदद करती है। केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के तहत विभिन्न नदियों (गंगा और उसकी सहायक नदियों को छोड़कर) के चिन्हित हिस्सों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच लागत के बंटवारे के आधार पर सीवेज को नदी में मिलने से रोकने, सीवरेज सिस्टम बनाने, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने, किफायती शौचालय निर्माण, रिवर फ्रंट/स्नान घाटों के विकास इत्यादि से जुड़े प्रदूषण रोकने संबंधी विभिन्न कार्यों के लिए राज्य सरकारों को मदद दी जाती है।

एनआरसीपी के तहत मिली उपलब्धियां और पहल:

सिक्किम, गंगटोक, जोन-1 में रानी चू नदी के उन्नयन और पुनर्वास कार्य के लिए 95.36 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी

भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई), देहरादून द्वारा राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के तहत 24.56 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ 6 भारतीय नदियों (जैसे कावेरी, गोदावरी, पेरियार, महानदी, नर्मदा और बराक नदी) की पारिस्थितिक स्थिति के मूल्यांकन की योजना को मंजूरी

एनआरसीपी के तहत परियोजनाओं को लागू करने के लिए परियोजना प्रबंधन सलाहकार को भुगतान करने सहित विभिन्न राज्य सरकारों को 89.15 करोड़ रुपये की केंद्रीय फंड जारी करना।

एनआरसीपी के तहत गतिविधियों को विस्तार देने और नदी संरक्षण प्रक्रिया में जैव विविधता संरक्षण व हितधारकों की भागीदारी के एकीकरण के लिए, डब्ल्यूआईआई (भारतीय वन्यजीव संस्थान) को छह नदियों- महानदी, नर्मदा, गोदावरी, पेरियार, कावेरी और बराक के लिए जैव विविधता अध्ययन की जिम्मेदारी सौंपना।

एन. सीएडीडब्ल्यूएम विंग:

भारत सरकार, प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के तहत कमांड एरिया डेवलपमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट (सीएडीडब्ल्यूएम) नाम से एक योजना लागू कर रही है। यह योजना खेत में पानी की भौतिक रूप से पहुंच बढ़ाने और निश्चित सिंचाई वाले कृषि क्षेत्र को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। नाबार्ड के तहत लॉन्ग टर्म इरिगेशन फंड’ (दीर्घकालिक सिंचाई कोष) बना करके वित्तपोषण की नई व्यवस्था अपनाते हुए कार्यों को जल्दी पूरा करने के लिए प्राथमिकता आधारित 99 परियोजनाओं की पहचान गई है। अभी इसमें शामिल 88 परियोजनाओं का लक्षित कृषि योग्य कमान क्षेत्र (सीसीए) 45.08 लाख हेक्टेयर है और अनुमानित केंद्रीय सहायता (सीए) 8300 करोड़ रुपये है। 2016-17 से 2020-21 के दौरान (नवंबर, 2020 तक), 74 परियोजनाओं के लिए 2677.702 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता राशि जारी की गई थी, जबकि राज्यों ने 14.18 लाख हेक्टेयर सीसीए प्रगति होने की सूचना दी है। 2020-21 के दौरान, 27 परियोजनाओं के लिए 133.45 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की गई है।

केंद्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधान केंद्र (सीएसएमआरएस):

नदी घाटी परियोजनाओं की भू-तकनीकी जांच के क्षेत्र में सीएसएमआरएस का योगदान इस प्रकार है:

34 जल संसाधन परियोजनाओं के लिए भू-तकनीकी जांच कराना।

भू-तकनीकी जांच के आधार पर 24 परियोजना रिपोर्टों को तैयार किया गया।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं/सम्मेलनों में 12 शोधपत्रों का प्रकाशन।

29 विस्तृत परियोजना रिपोर्ट और उन्हें लागू करने पर सलाह देना।

•  तीन वर्चुअल प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों को चलाया गया, जिसमें 230 इंजीनियरों/प्रशिक्षुओं/ विभिन्न संगठनों/संस्थानों/कॉलेजों के छात्रों ने भाग लिया।

डीआरआईपी के तहत 12 बांध पुनर्वास परियोजना में भागीदारी

सीएसएमआरएस ने नॉर्वेजियन जियोटेक्निकल इंस्टीट्यूट, ओस्लो, नॉर्वे के साथ जियोटेक्निकल इंजीनियरिंग और मटेरियल साइंसेज के क्षेत्र में सहयोग के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए।

सीएसएमआरएस ने टीएचडीसी के साथ पीएसपी टिहरी परियोजना (4×250 मेगावाट) उत्तराखंड, वीपीएचईपी (4×111 मेगावाट) उत्तराखंड के लिए टीएचडीसी; उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड के साथ व्यासी जल विद्युत परियोजना (2×60 मेगावाट) उत्तराखंड के लिए; पोलावरम परियोजना, आंध्र प्रदेश के लिए पोलावरम परियोजना प्राधिकरण के साथ; भौंरट बांध परियोजना, उत्तर प्रदेश; कन्हार सिंचाई परियोजना, उत्तर प्रदेश; गरदा बांध परियोजना, राजस्थान और कोलंगछू जल विद्युत परियोजना, भूटान के साथ क्यूए/क्यूसी एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।

नदियों को जोड़ने (इंटरलिंकिंग) की परियोजनाओं के लिए भू-तकनीकी और निर्माण सामग्री सर्वेक्षण का परीक्षण किया गया। कुछ परियोजनाओं में दमनगंगा (एकडारे)-गोदावरी घाटी लिंक नहर, नासिक, महाराष्ट्र; दमनगंगा (वैतरणा)-गोदावरी लिंक नहर परियोजना, नासिक; महानदी-गोदावरी लिंक नहर परियोजना, ओडिशा का हिस्सा; वैनगंगा-नालगंगा इंटरलिंकिंग परियोजना, एनडब्ल्यूडीए, महाराष्ट्र (चरण- II) और सोन बांध एसटीजी लिंक नहर परियोजना, बिहार में भी शामिल है।

देश के विकास के लिए पानी की हर एक बूंद का उपयोग करने के लिए नदियों को आपस में जोड़ने के लक्ष्य को हकीकत बनाने की दिशा में सीएसएमआरएस का योगदान अत्यधिक लाभकारी रहा है, न सिर्फ डिजाइन मापदंडों को मुहैया कराने में, बल्कि जांच के आधार पर नदियों को जोड़ने वाली नहरों (लिंक्स) के मार्गों में बदलाव करने के सुझाव देकर परियोजना की लागत घटाने में मदद की है।

पी. तुंगभद्रा बोर्ड:

तुंगभद्रा राइट बैंक लो लेवल नहर के, 0.000 किमी. से 70.000 कि.मी. तक, आधुनिकीकरण का काम 2018-19 के दौरान लिया गया, जिसे पूरा करने का काम वर्ष 2020 के दौरान 30 प्रतिशत से बढ़कर 83 प्रतिशत हो गया है। इसके 70.00 किलोमीटर से 115.000 किलोमीटर तक का अप्रैल, 2020 में लिया गया है और इस पर काम चल रहा है (वर्ष 2020 के दौरान 30 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है)। तुंगभद्रा बोर्ड में आधुनिक अकॉस्टिक डॉप्लर क्यूरेन प्रोफिलर (एडीसीपी) के साथ नहर प्रवाह को जांचने की व्यवस्था की गई है। यह नहर के पानी के अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग के बारे में कृषक समुदाय के बीच जागरूकता फैलाने का काम कर रहा है। चूंकि यह एक सतत प्रक्रिया है, इसलिए यह वर्ष 2020 के दौरान भी लगातार जारी रही है।

टेलीमेट्री सिस्टम को लगाने का काम पूरा हो चुका है और सदस्य राज्यों, आम जनता और किसानों को जानकारी देने के लिए तुंगभद्रा नहर परियोजनाओं के दैनिक प्रवाह के आंकड़ों को वेबसाइट tbbliveflow.com पर और तुंगभद्र जलाशय व अन्य ब्यौरे को वेबसाइट www.tbboard.gov.in पर दिखाया जा रहा है। एक नियमित गतिविधि होने के नाते, यह वर्ष 2020 में भी जारी है।

क्यू. कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड : बोर्ड की दो बैठकें बुलाई गईं और दोनों राज्यों द्वारा शुरू की गई नई परियोजनाओं और श्रीशैलम व नागार्जुन सागर की साझी परियोजनाओं से कृष्णा जल आपूर्ति के विनियमन से जुड़े विभिन्न मुद्दों को सुलझाया गया। चेन्नई शहर को पेयजल आपूर्ति बढ़ाने के लिए कृष्णा जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एमओडब्ल्यूआर, आरडी एवं जीआर द्वारा आदेश संख्या-12011/7/2016-पेन.रिव. दिनांक 05.10.2018 के तहत गठित समिति की तीसरी और चौथी बैठक 05 फरवरी 2020 और 22 जुलाई 2020 को आयोजित हुई थी। जल वर्ष 2019-20 के दौरान, श्रीशैलम जलाशय से 10.0725 टीएमसी पानी छोड़ा गया और आंध्र प्रदेश-तमिलनाडु सीमा पर अंतिम रूप से 8.058 टीएमसी पानी की आपूर्ति हुई।

इस जल वर्ष 2020-21 में 07 दिसंबर 2020 तक, श्रीशैलम जलाशय 4.885 टीएमसी पानी छोड़ा गया और आंध्र प्रदेश-तमिलनाडु सीमा पर अंतिम तौर पर 3.884 टीएमसी पानी पहुंचा। कृष्णा नदी घाटी में स्थापित विभिन्न टेलीमेट्री स्टेशनों की क्षमता को सुधारा गया है। केआरएमबी द्वारा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों राज्यों के अधिकारियों के साथ सुलह बैठकें बुलाई गई थीं, ताकि जल उपयोग के आंकड़ों में अंतर की समस्या को दूर किया जा सके।

आर. पीएमकेएसवाई-एचकेकेपी की सतह लघु सिंचाई (एसएमआई) और जल निकायों की मरम्मत, नवीनीकरण  और पुनर्स्थापना (आरआरआर) की योजनाएं

सतह लघु सिंचाई (एसएमआई) योजना के तहत, 12वीं पंचवर्षीय योजना के बाद से, 13,449 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ 6,213 योजनाएं चल रही हैं। केंद्रीय सहायता (सीए) के तहत मार्च, 2020 तक राज्यों को 7,299 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। इसके अलावा, मार्च, 2020 तक 3,397 योजनाओं के पूरा होने की जानकारी दी गई है। इन योजनाओं से 10.529 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता सृजित करने का लक्ष्य है और इसमें से 6.852 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता मार्च, 2020 तक पूरी होने की सूचना है। चालू वित्त वर्ष में, आज की तारीख में 7 राज्यों की 13 एसएमआई योजनाओं के लिए 214.69 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।

जल निकायों की मरम्मत, नवीनीकरण और पुनर्स्थापना (आरआरआर) योजना के तहत, 12वीं योजना के बाद से, 1910 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली 2219 योजनाएं चल रही हैं। राज्यों को मार्च, 2020 तक 433 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता (सीए) जारी की जा चुकी है। मार्च 2020 तक 1465 जल निकायों का काम पूरा करने की सूचना दी गई है। इन योजनाओं से 1.888 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता सृजित होने का लक्ष्य है और मार्च, 2020 तक इसमें से 1.319 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता बहाल होने की सूचना दी गई है। चालू वित्त वर्ष में, ओडिशा की एक जल निकायों की आरआरआर योजना के लिए अब तक 34.53 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।

एस. राष्ट्रीय जल मिशन:

राष्ट्रीय जल मिशन ने आम जनता की भागीदारी के साथ सभी साझेदारों को बारिश का पानी जमा करने वाले ढांचे (आरडब्ल्यूएचएस), जो जलवायु परिस्थितियां और मिट्टी की ऊपरी परत के अनुकूल हो, को बनाने के लिए प्रेरित करने के लिए बारिश के पानी का संरक्षण, जहां भी संभव हो, जैसे भी संभव होटैगलाइन के साथ कैच द रेनअभियान शुरू किया। इसके तहत वर्षा जल को एकत्रित करने वाले गड्ढे, छत पर आरडब्ल्यूएचएस, चेक डैम आदि बनाने; जलाशयों की संग्रहण क्षमता बढ़ाने के लिए उनमें अतिक्रमण दूर करने और उनमें जमा गाद हटाने; बारिश के पानी को जलाशयों तक लाने वाले मार्गों को साफ करने जैसे अभियान चलाये गये हैं। इसके अलावा सीढ़ीदार कुओं की मरम्मत करने और बंद पड़े नलकूपों का वर्षा जल को दोबारा जमीन में डालने के लिए इस्तेमाल करने जैसी गतिविधियों को अपनाने की भी सलाह दी गई है।

इसमें मदद करने के लिए, एनडब्ल्यूएम यह लगातार यह प्रचारित कर रहा है कि वर्षा जल संचयन के ढांचे पर लोगों का तकनीकी मार्गदर्शन देने के लिए, हर जिले या मुख्यालय में वर्षा केंद्रों को स्थापित किया जाए। एनडब्ल्यूएम ने राज्यों और जिला मजिस्ट्रेटों (डीएम) से अनुरोध किया है कि वे हर जिला मुख्यालय में वर्षा केंद्रों को स्थापित करें। इन वर्षा केंद्रों को भविष्य में जल शक्ति केंद्रोंके रूप में विकसित किया जा सकता है जो जल संबंधी मामलों जैसे आरडब्ल्यूएचएस, पुनर्स्थापना, जल निकायों से गाद की सफाई, भू-जल संचयन, कृषि, उद्योग और पेयजल में पानी को बचाने के तरीकों इत्यादि के बारे में ज्ञान केंद्रों का काम करेंगे। राज्य सरकारों ने जिलों में वर्षा केंद्रों की स्थापना करना शुरू कर दिया है। देश के कई जिलों ने हमारे अनुरोध का जवाब दिया है, जिनमें दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़; चांगलांग, अरुणाचल प्रदेश; बलिया, उत्तर प्रदेश और दक्षिण अंडमान, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं, जो अपने यहां पहले ही वर्षों केंद्र की शुरूआत कर चुके हैं।

एनएमडब्ल्यू ने राज्य सरकारों, केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई), रेलवे बोर्ड, सेना, वायु सेना, नौसेना, विश्वविद्यालयों, आईआईटी, आईआईएम, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड, भारतीय खेल प्राधिकरण, सैन्य इंजीनियरिंग सेवाओं, सीपीएसई, एनवाईकेएस से अनुरोध किया था कि वे एनडब्ल्यूएम की इसके कैच द रेनअभियान में मदद करने के लिए अपने यहां वर्षा जल संचयन और कृत्रिम तरीके से भूजल को बढ़ाने वाले ढांचे का निर्माण करें।

एएआई ने पुष्टि की है कि उन्होंने पहले ही अधिकांश हवाई अड्डों पर वर्षा जल संचयन/ भूजल स्तर को सुधारने के विभिन्न उपायों को अपना रखा है, इस प्रकार राष्ट्रीय जल मिशनके कैच द रेनअभियान में अपना योगदान दे रहा है। इसके अलावा, एएआई के सभी प्रमुख हवाई अड्डा परियोजनाओं में वर्षा जल संचयन प्रणाली को लागू किया जा रहा है। कैच द रेनअभियान का समर्थन करने के हमारे अनुरोध पर कई संगठनों ने भी प्रतिक्रिया दी है और अभियान के तहत अपनी विभिन्न गतिविधियों के बारे में हमें बताया है। इस अभियान को भारत के उपराष्ट्रपतिनीति आयोग के उपाध्यक्ष; नीति आयोग के सीईओ; जल विशेषज्ञ श्री सोनम वांगचुक; डॉ. अनिल जोशी जैसे गणमान्य व्यक्तियों और श्री रविशंकर जी, श्री गोपी चंद जी जैसे प्रभावित करने वाले लोगों का समर्थन मिला है।

अभियान की शुरुआत इस साल फरवरी में, मानसून की शुरुआत से काफी पहले, की गई थी और इसे बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। फिक्की जैसी कॉरपोरेट संगठन औद्योगिक क्षेत्र के भीतर इस अभियान को बढ़ावा देने के लिए कैच द रेनपर 4 वेबिनार की एक सीरीज आयोजित कर चुके हैं। कैच द रेनपर एक साप्ताहिक संवाद श्रृंखला की भी शुरुआत की गई है, जिसमें कलेक्टर/जिलाधिकारियों/आयुक्तों और जल संरक्षण के लिए सक्रिय कार्यकर्ता को जल सबंधी चुनौतियों को दूर करने के लिए अपने जिलों में किए गए सराहनीय कार्यों को साझा करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। एनडब्ल्यूएम ने 623 जिलों के 31,150 गांवों तक कैच द रेनजागरूकता अभियान पहुंचाने के लिए इसमें नेहरू युवा केंद्र संगठन (एनवाईकेएस) को भी शामिल किया है।

सही फसल अभियान

भारत में, 85-89 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल कृषि कार्यों में और लगभग 5 प्रतिशत पानी की खपत पेयजल और घरेलू कार्यों के लिए होती है। इसलिए, अगर कृषि उपयोग में कुछ प्रतिशत की पानी की बचत से पेयजल और घरेलू कामकाज के जल उपलब्धता में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ जाएगा। राष्ट्रीय जल मिशन ने सही फसलअभियान 14 नवंबर, 2019 को शुरू किया था ताकि पानी की कमी वाले इलाकों में किसानों को उन फसलों को उगाने के लिए प्रेरित करना है, जो पानी का ज्यादा नहीं, बल्कि कुशल उपयोग करती हैं; और आर्थिक रूप से लाभकारी हैं; सेहतमंद और पौष्टिक हैं; क्षेत्र की कृषि-जलवायु-जलीय विशेषताओं के अनुरूप हैं; और पर्यावरण हितैषी हैं। उपयुक्त फसलों, सूक्ष्म सिंचाई, मिट्टी की नमी को बचाने; धान, गन्ना इत्यादि जैसी ज्यादा पानी की खपत वाली फसलों की जगह मक्का जैसी फसलों को उगाने, जिसमें कम पानी की जरूरत होती है, के लिए जागरूकता पैदा करना; लागत (पानी और बिजली) के लिए प्रभावी मूल्यों का निर्धारण करने वाली नीतियां बनाने में नीति निर्माताओं की मदद करना; इन वैकल्पिक फसलों के लिए खरीद और बाजार में सुधार करना; उनके लिए उचित भंडारण इत्यादि का निर्माण करके किसानों की आय को बढ़ाना सही फसलके प्रमुख तत्व हैं। सही फसल के तहत, देश भर में जल की समस्या वाले क्षेत्रों में कार्यशालाओं की श्रृंखला आयोजित की गई है। इनमें से चार कार्यशालाएं अमृतसर (पंजाब) में 14 नवंबर 2019, 26-27 नवंबर 2019 नई दिल्ली, 13 जनवरी 2020 औरंगाबाद (महाराष्ट्र) और 14 फरवरी 2020 कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में आयोजित की गईं। पंजाब/हरियाणा ने फसल विविधीकरण के लिए कदम उठाए हैं।

*****

एमजी/एएम/आरकेएस/एसके



(Release ID: 1684531) Visitor Counter : 1217


Read this release in: English , Manipuri , Tamil