शिक्षा मंत्रालय
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सफल कार्यान्वयन की प्रतिबद्धता के साथ विजिटर्स कॉन्फ्रेंस संपन्न
कॉन्फ्रेंस में एनईपी 2020 के विभिन्न पक्षों और प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अगले चरण की रणनीतियों पर चर्चा हुई
Posted On:
19 SEP 2020 3:04PM by PIB Delhi
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सफल कार्यान्वयन की प्रतिबद्धता के साथ विजिटर्स सम्मेलन समापन हो गया। आज भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने “उच्चशिक्षामेंएनईपी-2020 के कार्यान्वयन पर विजिटर्स सम्मेलन”केवर्चुअल उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।
इस अवसर पर शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, शिक्षा राज्यमंत्री श्री संजय धोत्रे, उच्च शिक्षा सचिव श्री अमित खरे, एनईपी की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. के. कस्तूरीरंगन, यूजीसी के अध्यक्ष श्री डी.पी. सिंह, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति, आईआईटी, एनआईटी, आईआईआईटी, एनआईडी, आईआईएसईआर, एसपीए और राष्ट्रीय महत्व के अन्य संस्थानों के निदेशक मौजूद रहे।
अपने समापन भाषण में श्री पोखरियाल ने कहा कि सरकार द्वारा वित्त पोषित उच्च शिक्षा संस्थान ज्ञान के सृजन और प्रसार के महत्वपूर्ण मंच हैं और इसलिए एनईपी 2020 के सिद्धांतों को जीवंत (प्रभावकारी) बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि 'विजिटर्स सम्मेलन' ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों के प्रमुखों को एनईपी को लागू करने के विभिन्न पक्षों पर चर्चा करने का अवसर दिया है।
उन्होंने कहा कि सम्मेलन में एनईपी के विभिन्न पक्षों और उच्च शिक्षा में तत्काल सुधारों की जरूरत वाले प्रमुख क्षेत्रों में प्राथमिकता के साथ प्रभावी कार्यान्यवन की रणनीतियों और कार्ययोजनाओं को चरणबद्ध तरीके से लागू करने पर विचार-विमर्श हुआ।
शिक्षा राज्यमंत्री श्री संजय धोत्रे ने विजिटर्स सम्मेलन में हुई समृद्ध चर्चा को मूल्यवान बताया और उन्होंने उम्मीद जताई कि इसमें सामने आई जानकारी निश्चित रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रभावी तौर पर लागू करने में मदद मिलेगी। श्री धोत्रे ने सम्मेलन में शामिल सभी सहभागियों को भी धन्यवाद दिया।
एनईपी के प्रारूप समिति के अध्यक्ष प्रो. के. कस्तूरीरंगन ने विशेष भाषण दिया और इस नीति को बनाने की श्रमसाध्य प्रक्रिया का भी उल्लेख किया। प्रो. कस्तूरीरंगन ने 21वीं सदी के कौशल के साथ तालमेल बनाने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करने की जरूरत पर प्रकाश डाला। उन्होंने शैक्षणिक सुधार, चार साल के डिग्री कार्यक्रम, बहु-विषयी और समग्र शिक्षा व शुद्ध और व्यवहारिक परिवर्तनकारी अनुसंधान पर नीति के झुकाव का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि भारत में समग्र शिक्षा की समृद्ध विरासत है, लेकिन हमारे मौजूदा स्नातक व्यवस्था को संकुचित या अंतर्मुखी होने में महारत हासिल है और यह एक ऐसी दुनिया के साथ कदम मिलाकर न चलना है जो तेजी से बदल रही है। प्रो. कस्तूरीरंगन ने व्यावसायिक शिक्षा की संकीर्ण अवधारणा से दूर हटने के महत्व पर भी जोर दिया। प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर जोर देते हुए प्रो. कस्तूरीरंगन ने कहा कि प्रौद्योगिकी न केवल हमारे सकल नामांकन अनुपात (ग्रॉस इनरोलमेंट रेशो) को बढ़ाने, बल्कि हमारे सामने आने वाली अड़चनों पर हमारी प्रतिक्रिया को भी सुधारने में मदद करेगी।
प्रो. कस्तूरीरंगन ने संस्थानों के क्लस्टरिंग (समूह) के जरिए संसाधनों को साझा करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारे इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर, हमारे विश्वविद्यालयों के बीच संसाधनों की साझेदारी के अच्छे उदाहरण हैं।
उन्होंने इस नीति को जमीन स्तर की गतिविधियों की ओर ले जाते हुए हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) के आंतरिक पुनर्गठन, संस्थानों के पुनर्गठन, शिक्षा में प्रख्यात सेवानिवृत्त शिक्षाविदों की मदद से राष्ट्रीय परामर्शमंडल बनाने और एचईआई के सांस्कृतिक परिवर्तन और दृष्टिकोण में बदलाव लाने जरूरत पर भी जोर दिया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के विभिन्न पक्षों पर संस्थानों के प्रमुखों के अलग-अलग उपसमूहों ने अपनी प्रस्तुतियां (प्रेज़ेन्टेशन) सामने रखी। "बहुविषयक और समग्र शिक्षा" पर ईएफएलयू के कुलपति प्रो. ई. सुरेश कुमार की प्रस्तुति में एसटीईएम के साथ मानविकी और कला के एकीकरण और 21वीं के लिए पूर्वनिर्धारित शर्त उच्च-क्रम की विचार कुशलता, समस्याओं को सुलझाने की क्षमता, टीम वर्क और संचार कौशल के विकास पर परिलक्षित हुई।
वहीं, ‘नेटवर्किंग ऑफ इंस्टीट्यूट्स’ का चित्रण करते हुए प्रस्तुतिकरण में जरूरत के हिसाब से ढाले गए पाठ्यक्रमों (कस्टम डिजाइंड कोर्सेज) को शामिल किया गया, जिसमें ज्यादा वृहद अकादमिक विकास के लिए आईआईटी जैसे प्रमुख संस्थानों के अधिक व्यापक और बहु-विषयी शिक्षा की तरफ जाने की जरूरत है। प्रो. कुमार ने पाठ्यक्रमों के कई नए संयोजनों के बारे में सुझाव दिया। यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. डी.पी. सिंह ने जोर देकर कहा कि शिक्षा अपने मूल में समग्र और बहु-विषयी है और इसका उद्देश्य मूल्यों से मजबूत, सक्षम और जिम्मेदार इंसान बनाना है। प्रो. सिंह ने सभी विषयों में मौजूद संकुचित या अंतर्मुखी स्वभाव को दूर करने, अनुभवात्मक शिक्षा के एकीकरण, सामुदायिक गतिविधियों और धरातल पर जाकर सीखने पर जोर दिया। प्रो. सिंह ने एनईपी को सच्ची भावना से लागू करने के लिए पुनर्कल्पित, पुन:स्थापित, पुनर्व्यवस्थित और पुनर्जीवित उच्च शिक्षा लाने की अपील की।
एनआईटी त्रिची के निदेशक प्रो. मिनी शाजी थॉमस ने "उच्च शिक्षा में अनुसंधान, नवाचार और डिजिटल परिवर्तन" के मुद्दे पर प्रस्तुति दी. इसमें उन्होंने प्रकाश डाला कि सभी संस्थानों में अंदरूनी संसाधनों की पूलिंग करके उत्कृष्टता केंद्र और केंद्रीकृत यंत्रीकरण सुविधाओं (सेंट्रलाइज्ड इंट्रूमेंटेशन फैसिलिटी) को विकसित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सभी के लिए इंटर्नशिप को अनिवार्य बनाकर छात्रों को ग्राहकों की जरूरतों को समझने की छूट देकर विचार सृजन (आइडिएशन) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
उन्होंने सकल नामांकन अनुपात (ग्रॉस इनरोलमेंट रेशो) को बढ़ाने में उच्च शिक्षा में डिजिटल बदलावों की भूमिका को भी रेखांकित किया। अपने प्रस्तुतिकरण में उन्होंने कहा कि डिजिटल तकनीक के प्रभावी पारगमन (ट्रांजिशन) के लिए संस्थागत तत्परता या उत्साह, संकाय की तत्परता, छात्रों की तत्परता और पुस्तकालय की तत्परता बहुत महत्वपूर्ण होती है। आईआईटी काउंसिल की स्थायी समिति के अध्यक्ष प्रो. के. राधाकृष्णन ने अपने प्रस्तुतिकरण में इस बात पर जोर दिया कि हमारी प्राथमिकता भारत के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार बनाने पर होना चाहिए। प्रो. राधाकृष्णन ने वैश्विक नवाचार सूचकांक (ग्लोबल इनोवनेशन इंडेक्स) और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक (ग्लोबल कंपटीटिवनेस इंडेक्स) में आगे बढ़ने की जरूरत पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इसमें उच्च शिक्षण संस्थानों (एचईआई) की बड़ी भूमिका है। उन्होंने एचईआई के नेतृत्व से इसकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जवाबदेही और स्वायत्तता के साथ नवाचार युक्त वित्त पोषण प्रक्रिया को लाने की अपील की।
विजिटर्स सम्मेलन का तीसरा सत्र “विस्तार (आउटरीच) औरउत्कृष्टताकेलिएसमानता, समावेश और क्षमता निर्माण" पर आधारित था। अपने प्रस्तुतिकरण में जामिया मिलिया की कुलपति प्रो. नजमा अख्तर ने जोर देकर कहा कि समानता, समावेश और क्षमता विकास के माध्यम से संस्थागत विस्तार और उत्कृष्टता को हासिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा युवाओं के लिए शिक्षा के अवसरों, रोजगार की संभावनाओं और सहायता करने वाली प्रणाली से जुड़ी सूचनाओं का प्रचार-प्रसार किया जाना आज के वक्त की जरूरत है।
उन्होंने जोर दिया कि ज्ञान के सभी क्षेत्रों में क्षमता निर्माण का काम होना चाहिए और व्यावहारिक कौशल (सॉफ्ट-स्किल्स) के विकास पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम निर्माण और शैक्षणिक दृष्टिकोण की आजादी के साथ-साथ संस्थागत प्रोत्साहन के जरिए शिक्षकों को सशक्त करके उत्कृष्टता को वास्तविक बनाने के लिए एक लंबा सफर करना पड़ेगा।
एनईपी की प्रारूप समिति समिति की सदस्य प्रो. वसुधा कामत ने अपने प्रस्तुतिकरण में चार अवलोकन पेश किए। उन्होंने सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े समूहों (एसईडीजी) की शिक्षा और उन्हें शिक्षा की मुख्यधारा में लाने, सामुदायिक पहुंच और उत्कृष्टता के महत्व, शिक्षकों की क्षमता के विकास और प्रख्यात व सेवानिवृत्त शिक्षकों के बड़े पूल द्वारा परामर्श के राष्ट्रीय मिशन के महत्व पर जोर दिया।
इसके बाद अगला सत्र ‘भारतीय ज्ञान प्रणाली, भाषा, संस्कृति और मूल्यों’ पर था। अपने प्रस्तुतीकरण में राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति के कुलपति प्रो. बी. मुरलीधर शर्मा ने कहा कि 21वीं सदी की वैश्विक जरूरत को पूरा करने के लिए कॉलेज की शिक्षा से लेकर अनुसंधान स्तर के कार्यक्रमों तक सभी जगहों पर भारतीय वैज्ञानिक विरासत और धरोहरों की प्रासंगकिता को उजागर करना जरूरी है और सक्रिय भागीदारी के साथ इसे हासिल किया जा सकता है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि यह ज्ञान व्यवस्था गांवों और शहरों को जोड़ने वाले इको-प्रोटेक्टिंग सैटेलाइट टाउनशिप, पर्यावरण संतुलन को संरक्षण, नदी तंत्र की शुद्धता जैसे शोध पक्षों का वादा कर सकती है और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को आगे बढ़ाया जा सकता है और उच्च मूल्यों को सुरक्षित किया जा सकता है। उन्होंने00कहा कि देश के बहुभाषायी वातावरण का संरक्षण "वन नेशन-वन पीपुल" का मार्ग प्रशस्त करेगा। अपने अवलोकनों का उल्लेख करते हुए एनईपी की प्रारूप समिति के सदस्य मंजुल भार्गव ने उच्च शिक्षा संस्थानों से तत्काल भारतीय कला, संस्कृति और उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने वाली भाषा के प्रोत्साहन में मदद करने का अनुरोध किया। इसके लिए उन्होंने चार उपायों का सुझाव भी दिया। इसमें सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में मानविकी, भाषा और संस्कृतियों से जुड़े विभाग बनाना; द्विभाषी कार्यक्रमों का विकास; स्थानीय कला, शिल्प और कारीगरों को बढ़ावा देना और भारतीय ज्ञान प्रणाली का सटीक और उपयुक्त एकीकरण शामिल हैं।
विजिटर्स सम्मेलन में अंतिम प्रस्तुतिकरण आईआईआईटी गुवाहाटी के निदेशक प्रो. गौतम बरुआ ने "अंतर्राष्ट्रीयकरण और वैश्विक रैंकिंग" विषय पर दिया। प्रो. बरुआ ने भारत में विदेशी छात्रों की बढ़ती संख्या की चुनौतियों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि विदेशों से स्नातकोत्तर और पीएचडी छात्रों को प्रवेश दिलाने पर अधिक जोर देना होगा।
उन्होंने अंतर्राष्ट्रीयकरण के साथ-साथ कई सुझाव दिये और विदेशी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति, प्रायोजित परियोजनाओं में विदेशी छात्रों को अनुसंधान स्टाफ की छूट देने, अंतर्राष्ट्रीय छात्रावास बनाने की अपील की और विदेशी शिक्षकों की नियुक्ति को आसान बनाने की भी जरूरत बताई।
एआईसीटीई के अध्यक्ष प्रो. अनिल सहस्रबुद्धे ने कहा कि विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए इंडोलॉजी जैसे पारंपरिक विषयों को विस्तार देने के साथ-साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे आधुनिक विषयों पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि हमें विदेशों से शिक्षकों की भर्ती पर ध्यान देना चाहिए, परीक्षा व्यवस्था के पैटर्न में बदलाव करना चाहिए, विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए एक संयुक्त पोर्टल बनाना चाहिए और विदेश में एजुकेशन फेयर भी लगाना चाहिए। प्रो. सहस्रबुद्धे ने अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग के मानकों के भारत के अनुकूल न होने का उल्लेख करते हुए रैंकिंग पहलुओं पर काम करने की भी जरूरत बताई।
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