विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

पश्चिमी ट्रांस हिमालय में अत्‍यधिक ऊंचाई वाली जगहों पर एरोसोल लक्षण और विकिरण संबंधी प्रभाव


इस अध्ययन से एयरोसोल ऑप्टिकल एवं माइक्रोफिजिकल गुणों को बेहतर तरीके से समझने और जलवायु पर एयरोसोल के प्रभाव के मद्देनजर एयरोसोल प्रभावों के मॉडलिंग को सुधारने में मदद मिल सकती है

Posted On: 05 JUN 2020 3:08PM by PIB Delhi

     भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्‍वायत्‍त अनुसंधान संस्‍थान आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस), नैनीताल के शोधकर्ताओं ने पाया कि ट्रांस हिमालय पर स्वच्छ वातावरण होने के बावजूद एयरोसोल विकिरण दबाव वैश्विक औसत की तुलना में अधिक है जिससे कुछ मात्रा में विकिरण का प्रभाव पड़ता है। साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट पत्रिका में प्रकाशनाधीन शोध पत्र से पता चलता है कि एरोसोल के मासिक औसत वायुमंडलीय विकिरण के कारण प्रति दिन 0.04 से 0.13 सेल्सियस की दर से गर्मी होती है। इसके अलावा, लद्दाख क्षेत्र का तापमान पिछले 3 दशकों से प्रति दशक 0.3 से 0.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है।

     वायुमंडलीय एरोसोल धरती पर आने वाली सौर विकिरण के बिखरने एवं अवशोषित करने के अलावा क्लाउड माइक्रोफिजिक्‍स को संशोधित करके क्षेत्रीय/ वैश्विक जलवायु प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विकिरणकारी बल पर विभिन्न एरोसोल के प्रभाव को निर्धारित करने में उल्‍लेखनीय प्रगति होने के बावजूद यह अभी भी जलवायु परिवर्तन के आकलन की प्रमुख अनिश्चितताओं में से एक है। इन अनिश्चितताओं को कम करने के लिए एयरोसोल गुणों के सटीक माप करने की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से समुद्रों और हिमालय में अत्‍यधिक ऊंचाई वाले दूरदराज के स्थान पर जहां वे दुर्लभ हैं।

     यह अध्‍ययन  डॉ. उमेश चंद्र दुमका (वैज्ञानिक, एआरआईईएस, नैनीताल, भारत) के नेतृत्व में किया गया। अध्‍ययन में डॉ. शांति कुमार एस. निंगोम्‍बम (वैज्ञानिक, आईआईए, बेंगलूरु, भारत), डॉ. दिमित्रीस जी. कासकौटिस (वैज्ञानिक, नेशनल ऑब्जर्वेटरी ऑफ एथेंस, ग्रीस), डॉ. बी. एल. माधवन (वैज्ञानिक, राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान प्रयोगशाला, भारत) एवं टीम के अन्य सदस्यों ने योगदान किया। उन्‍होंने जनवरी 2008 से दिसंबर 2018 तक एयरोसोल के ऑप्टिकल, भौतिक और विकिरण संबंधी गुणों की परिवर्तनशीलता का विश्‍लेषण किया। साथ ही उन्‍होंने एयरोसोल रेडिएटिव फोर्सिंग (एआरएफ) में बारीक और मोटे कणों की भूमिका का आकलन किया। एआरएफ वायुमंडल के शीर्ष और सतह पर होने वाले विकिरण प्रवाह और वायुमंडल के भीतर विकिरण के अवशोषण पर एन्थ्रोपोजेनिक एयरोसोल का प्रभाव है।

     वैज्ञानिकों के अवलोकन से पता चलता है कि एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्‍थ (एओडी) ने मई में उच्च (0.07) और सर्दियों के महीनों में निम्‍न (0.03) मान के साथ एक अलग मौसमी बदलाव का प्रदर्शन किया। वसंत में एंगस्‍ट्रम घातांक (एई) का मान कम रहा जो मोटे धूल एयरोसोल के वर्चस्‍व का संकेत देता है। एफएमएफ और एसएसए पर आधारित एयरोसोल के वर्गीकरण से हानले और मर्क पर मध्यम आकार के मिश्रित एरोसोल के वर्चस्‍व का पता चला विशेष रूप से वसंत (53 प्रतिशत) में। शुद्ध और प्रदूषित धूल ने 16 प्रतिशत और 23 प्रतिशत के बीच भिन्नता का प्रदर्शन किया जो एरोसोल को अवशोषित करने वाले 13 प्रतिशत से कम आवृत्ति के साथ ट्रांस-हिमालय के जगहों पर एंथ्रोपोजेनिक एरोसोल और ब्लैक कार्बन के कमजोर प्रभाव को दर्शाती है। इसके अलावा, वायुमंडल के शीर्ष पर एरोसोल रेडियोधर्मी फोर्जिंग एआरएफ के मान हानले और मर्क पर आमतौर पर कम (-1.3 Wm-2) थे।

     डीएसटी के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा, 'एयरोसोल की उत्‍पत्ति, परिवहन और इसके गुणों का गहराई से किया गया वैज्ञानिक अध्ययन का वायुमंडलीय गर्मी के जरिये जलवायु परिवर्तन की हमारी समझ और उपाय में महत्वपूर्ण निहितार्थ हैयह अन्‍य तमाम चीजों के अलावा हिमालय क्षेत्र में हिम और हिमनद की गतिशीलता को प्रभावित करता है'

     इस अध्ययन से एयरोसोल ऑप्टिकल और माइक्रोफिजिकल गुणों को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिल सकती है। साथ ही यह वायुमंडलीय गर्मी में बदलाव और ट्रांस हिमालय क्षेत्र में हिम/ हिमनद की सफेदी में बदलाव के माध्यम से एयरोसोल जलवायु प्रभाव के मद्देनजर एयरोसोल प्रभावों के मॉडलिंग को बेहतर करने में मदद कर सकते है।

     ट्रांस हिमायल क्षेत्र में हानले और मर्क के अत्‍यधिक ऊंचाई वाली जगहों पर एयरोसोल के ऑप्टिकल और माइक्रोफिजिकल गुणों की माप पिछले दशक के दौरान इंडियन एस्‍ट्रोनॉमिकल ऑब्‍जर्वेटरी (आईएओ) द्वारा शुरू की गई थी। इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए), बेंगलूरु के एस्‍ट्रोनॉमिकल साइट सर्वे कार्यक्रम और एयरोसोल रेडिएटिव फोर्सिंग ओवर इंडिया (एआरएफआई) के ढांचे के तहत किया गया। इसके अलावा पश्चिमी हिमालय में हिमांश ऑब्‍जर्वेटरी (स्पीति घाटी) में भी कार्बोनेसियस एरोसोल और आयनिक प्रजातियों के कुछ इन-सीटू मापन किए गए हैं।

     हिमालय के दूर-दराज के क्षेत्रों और इंडो-गैंगेटिक मैदानी इलाकों से प्रकाश द्वारा अवशोषित कार्बोनेसियस एरोसोल और धूल का परिवहन एक प्रमुख जलवायु समस्‍या है जो वायुमंडलीय गर्मी और हिमनद के प्रवाह पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।

हिमालय पर यह गर्मी 'एलिवे‍टेड-हैट पंप' की स्थिति बनाती है जो भूमि और महासागर के बीच तापमान ढाल को मजबूत करता है और वायुमंडलीय परिसंचरण और मॉनसूनी वर्षा में बदलाव लाता है। इस अध्ययन के जरिये एयरोसोल ऑप्टिकल और माइक्रोफिजिकल गुणों की बेहतर समझ एयरोसोल जलवायु प्रभाव के मद्देनजर वायुमंडलीय गर्मी और ट्रांस हिमालय क्षेत्र में हिम/ हिमनद की सफेदी में बदलाव के जरिये एयरोसोल प्रभाव के मॉडलिंग में सुधार कर सकती है।

 

 

 

चित्र 1: अध्ययन स्थलों (हानले और मर्क) [दुमका एट ऑल, 2020, एसटीओटीईएन] पर विभिन्न एयरोसोल प्रकारों का वर्गीकरण और औसत अंश।

 

चित्र 2: हानले और मर्क में 2008-2018 के दौरान डेटा, प्रति घंटा एओडी 500 बनाम एई 400-870 का स्कैटर प्लॉट (दुमका एट ऑल, 2020, एसटीओटीईएन)

 

(प्रकाशन: साइंस ऑफ द टोटल एन्‍वार्यनमेंट, (प्रकाशनाधीन), मई 2020

https://doi.org/10.1016/j.scitotenv.2020.139354

अधिक जानकारी के लिए डॉ. उमेश चंद्र दुमका (dumka@aries.res.in; 09897559451) और डॉ. शांति कुमार एस निंगोबम (ईमेल: shanti@iiap.res.in; 097410 01220) से संपर्क किया जा सकता है।)

 

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