संस्‍कृति मंत्रालय

देश के खान-पान के प्राचीन इतिहास पर राष्‍ट्रीय संग्रहालय में हिस्‍टॉरिकल गैस्‍ट्रोनोमिया- द इंडस डाइनिंग एक्‍सपीरियंस के नाम से एक अनूठी प्रदर्शनी

Posted On: 19 FEB 2020 7:01PM by PIB Delhi

दिल्‍ली स्थित राष्‍ट्रीय संग्रहालय में देश के खान-पान के प्राचीन इतिहास पर ‘ हिस्‍टॉरिकल गैस्‍ट्रोनोमिया- द इंडस डाइनिंग एक्‍सपीरियंस’ के नाम से एक अनूठी प्रदर्शनी लगाई गई है। 25 फरवरी तक चलने वाली यह प्रदर्शनी 19 फरवरी को शुरु हुई। इसमें देश के 5 हजार वर्ष से भी ज्‍यादा पुराने इतिहास को दिखाया गया है।

 राष्‍ट्रीय संग्रहालय में सिंधु घाटी सभ्‍यता काल की कई बेशकीमती कलात्‍मक वस्‍तुओं का संग्रह है। यहां सिंधु घाटी सभ्यता पर बनी दीर्घा में भारतीय सभ्यता के इस गौरवकाल से जुड़े दुनिया के कुछ सबसे महत्वपूर्ण संग्रह हैं। इसमें हड़प्पा के मोहनजोदड़ो से खुदाई में मिली प्रसिद्ध कांस्य प्रतिमा भी है जिसमें एक युवती नृत्‍य मुद्रा में दिखाई गई है। राष्‍ट्रीय संग्रहालय और वन स्‍टेशन मिलियन स्‍टोरीज द्वारा संयुक्‍त रूप से आयोजित इंडस डाइनिंग एक्‍सपीरियंस पुरातात्विक शोधों , संग्रहालय की कलात्‍मक वस्‍तुओं और उनकी विशेषताओं पर आधारित है। 

प्रदर्शनी में मानव की उत्‍पत्ति के समय से लेकर सिंधु-श्रावस्‍ती काल तक के उसके खान-पान की आदतों के विस्‍तृत इतिहास, हड़प्‍पा काल के मिट्टी के बर्तनों का उपयोग और कलात्‍मक वस्‍तुएं, भोजन को उंगलियों से चखने और खाने के तरीके तथा हड़प्‍पा काल की रसोई और कुछ अन्‍य विशेष रूप से डिजाइन की गई वस्‍तुएं शामिल हैं। इन्‍हें कुछ इसतरह से प्रदर्शित किया गया है कि ये दखने वालों को हड़प्‍पा काल में होने का अहसास कराती हैं।

 प्रदर्शनी में यह भी दिखाया गया है कि खान-पान की आदतें मनुष्‍य की विकास प्रक्रिया से किस तरह से जुड़ी रहीं हैं। आदिम काल के मानव ने किस तरह से खाद्य और अखाद्य वस्‍तुओं बीच अंतर करना सीखा और कैसे उसने हड़प्‍पा काल की खाद्य प्रसंस्करण तकनीक और इससे जुड़ी कलाएं सीखीं। इसमें यह भी दिखाया गया है कि जलवायु परिवर्तन ने खाद्य सुरक्षा को किस तरह से परिभाषित किया और अभी तक करता आ रहा है। 

 मौजूदा समय के दक्षिण एशियाई मूल के लोगों के आनुवांशिक डेटा इस बात का प्रमाण हैं कि हम कहीं न कहीं अपने पूर्वजों के माध्‍यम से प्राचीन समय के ईरान के कृषि समुदाय और शिकार कर गुजर बसर करने वाले दक्षिण एशियाई समुदाय के लोंगों से जुड़े हुए हैं। भोजन बनाने की पारंपरिक विधि की समझ और तरीकों का इस्‍तेमाल आज भी राजस्‍थान,हरियाणा, पंजाब, सिंध और बलूचिस्‍तान के गांवों में किया जाता है। हमारे आज की खान-पान की आदतें हमारे मूल आहार से भिन्‍न नहीं बल्कि इसके अनुरूप हैं क्‍योंकि यह हमारे स्‍वाद से जुड़ा मामला है।   

 प्रदर्शनी का एक मुख्‍य आकर्षण – इंडस-श्रावस्‍ती सभ्‍यता के खानों को चखना है। जिसे राष्‍ट्रीय  पुरस्‍कार प्राप्‍त शेफ सब्‍यसाची गोराई-सैबी ने फिर से तैयार करने का प्रयास किया है। प्रदर्शनी के वन स्‍टेशन मिलियन स्‍टोरीज खंड को दिल्‍ली स्थित एक प्रतिभाशाली टीम ने तैयार किया है। इस टीम को तकनीक के माध्‍यम से कहानियां पेश करने में विशेज्ञता हासिल है।

राष्‍ट्रीय संग्रहालय,ओएसएमएस और शेफ सैबी के फैब्रिका के संयुक्‍त प्रयासों से आयोजित यह प्रदर्शनी सही मायने में अंतरराष्‍ट्रीय प्रभाव छोड़ने वाला मेड इन इंडिया कार्यक्रम है।

 

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हड़प्‍पाकालीन एक रसोई का दृश्‍य

 

एस शुक्‍ला/एएम/एमएस-5857
 



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