पीएमईएसी

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अध्‍यक्ष ने पूर्व मुख्‍य आर्थिक सलाहकार के जीडीपी अनुमान संबंधी दावे का खंडन किया


 जीडीपी के आकलन के लिए ‘क्रॉस-कंट्री रिग्रेशन’ का उपयोग करना एक सबसे असामान्‍य प्रक्रिया है : अध्‍यक्ष

आर्थिक सलाहकार परिषद डॉ. सुब्रमण्‍यन के शोध पत्र में व्‍यक्‍त किए गए अनुमानों पर गौर करेगी

Posted On: 12 JUN 2019 3:42PM by PIB Delhi

पूर्व मुख्‍य आर्थिक सलाहकार (सीईए) डॉ. अरविंद सुब्रमण्‍यन ने जून, 2019 में ‘भारत में जीडीपी का गलत आकलन: संभावना, आकार, व्‍यवस्‍थाएं और निहितार्थ’ शीर्षक से एक प्रपत्र (पेपर) प्रकाशित किया है। इसके आधार पर उन्‍होंने भारत के मीडिया में एक लेख भी प्रकाशित किया है जिसमें वर्ष 2011-12 से लेकर वर्ष 2016-17 तक की अवधि में भारत की वास्‍तविक जीडीपी वृद्धि दर के बारे में मजबूत दावे किए गए हैं। उल्‍लेखनीय है कि भारत में आय गणना के आधार वर्ष को ऐसी कई समितियों की सिफारिशों के आधार पर संशोधित कर 2011-12 कर दिया गया है जिनमें राष्‍ट्रीय आय लेखांकन के विशेषज्ञ शामिल हैं। इन सिफारिशों, जिनकी शुरुआत वर्ष 2008 में हुई थी, के आधार पर सरकार ने जनवरी 2015 से संबंधित बदलाव को अमल में लाया। अत: यह कहना गलत है कि आधार वर्ष अथवा भारांक (वेटेज) को बदलते समय या उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) के बजाय कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) 21 को अपनाते समय विशेषज्ञों के विचारों को ध्‍यान में नहीं रखा गया। डॉ. सुब्रमण्‍यन ने अपने प्रपत्र में भारत की जीडीपी के आकलन के लिए ‘क्रॉस-कंट्री रिग्रेशन’ का उपयोग किया है। जीडीपी के आकलन के लिए क्रॉस-कंट्री रिग्रेशन का उपयोग करना एक सबसे असामान्‍य प्रक्रिया है क्‍योंकि जैसा कि सुझाव है कि रिग्रेशन लाइन से इतर किसी भी देश की जीडीपी पर अवश्‍य ही सवालिया निशान लगाया जाना चाहिए। उन्‍होंने जिन परोक्षी (प्रॉक्‍सी) संकेतकों का उपयोग किया है उन पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं। यही नहीं, इस प्रक्रिया में उत्‍पादकता में बढ़ोतरी के आधार पर जीडीपी में वृद्धि करने की व्‍यवस्‍था नहीं है। किसी भी देश की जीडीपी सांकेतिक रूप में होती है और कोई भी प्रक्रिया सांकेतिक आंकड़ों के आधार पर ही होनी चाहिए न ही वास्‍तविक वृद्धि दरों के आधार पर। आर्थिक सलाहकार परिषद डॉ. अरविंद सुब्रमण्‍यन के प्रपत्र (पेपर) में व्‍यक्‍त किए गए अनुमानों का विस्‍तार से आकलन करेगी और समय आने पर इसका बिंदुवार खंडन पेश करेगी। फिलहाल यही महसूस किया जाता है कि ऐसा कोई भी विषय जिस पर उचित अकादमिक बहस होनी चाहिए उसे सनसनीखेज बनाने का प्रयास भारत की सांख्यिकीय प्रणालियों की स्वतंत्रता और गुणवत्ता के संरक्षण के दृष्टिकोण से अपेक्षित नहीं है। इन सभी से पूर्व मुख्‍य आर्थिक सलाहकार वाकिफ हैं। ये निश्चित तौर पर ऐसे मुद्दे हैं जिन्‍हें डॉ. सुब्रमण्‍यन ने मुख्‍य आर्थिक सलाहकार के पद पर काम करते हुए अवश्‍य ही उठाए होंगे। हालांकि, डॉ. सुब्रमण्‍यन ने स्‍वयं यह स्‍वीकार किया था कि उन्‍होंने भारत के विकास आंकड़ों को समझने में काफी समय लिया है और वह अब भी इसको लेकर पूरी तरह से आश्‍वस्‍त नहीं हैं।

 

***

आर.के.मीणा/आरएनएम/एएम/आरआरएस/वीके – 1544

 

 

 



(Release ID: 1574127) Visitor Counter : 169


Read this release in: English , Marathi , Gujarati