प्रधानमंत्री कार्यालय

वाराणसी, उत्तर प्रदेश स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए भाषण का मूल पाठ

Posted On: 08 MAR 2019 12:00PM by PIB Delhi

बाब विश्‍वनाथ, मां अन्‍नपूर्णा, मां गंगा की जय हो। हर-हर महादेव।

यह मेरा सौभाग्‍य है कि आज काशी विश्‍वनाथ धाम जिन सपनों को लम्‍बे अरसे से मन में सौन्‍जोया हुआ था, जब मैं राजनीति में नहीं था, तब भी जब यहां आता था, कई बार आया, लेकिन लग रहा था कि यहां कुछ करना चाहिए, होना चाहिए। लेकिन पता नहीं शायद भोले बाबा ने तय किया होगा, बेटे बातें बहुत करते हो, आओ इधर करके दिखाओ। और शायद भोले बाबा का आदेश कहो, आशीर्वाद कहो कि आज वो सपना साकार होने का शुभारंभ हो रहा है। यह काशी विश्‍वनाथ धाम एक प्रकार से यह भोले बाबा की मुक्ति का पर्व है। ऐसे जकड़ा हुआ था हमारा बाबा, चारों तरफ दीवारों में फंसा हुआ था। शायद पता नहीं कितनी सदियों तक सांस लेने की दिक्‍कत रही होगी। अब पहली बार अगल-बगल की कई इमारतों को acquire किया गया। भोले बाबा को तो मुक्ति मिलेगी ही लेकिन भोले बाबा के भक्‍तों को विशालता की अनुभूति होगी।

मैं सबसे पहले सरकारी मुलाजि़म तो मैंने बहुत देखें हैं, क्‍योंकि कई वर्षों तक मुख्‍यमंत्री रहा हूं। और जब सरकार कोई काम दें तो सरकार के मुलाजिम उसको पूरा करने के लिए प्रयास भी करते हैं। लेकिन मुझे आज गर्व के साथ कहना है कि योगी जी ने यहां जिन अफसरों की टीम लगाई है, वो पूरी टीम एक प्रकार से भक्ति भाव से इस काम में लगी है, सेवा-भाव से इस काम में लगी है। दिन-रात इसको पूरा करने के लिए, क्‍योंकि इतनी सारी property acquire करना, सबको समझाना, सबको साथ लेना, लोगों को भी समझना, विरोधी और झूठ फैलाने वाले लोगों को भी काटना, उनकी बातों को काटना बड़ा कठिन काम था और किसी भी हालत में इस प्रोजेक्‍ट को राजनी‍ति का जरा सा भी जंग न लग जाए, इसकी पूरी चिंता करना। यह सारा काम अफसरों की टोली ने किया है। मैं सबसे पहले, आज एक उत्‍तम काम शुरू हो रहा है, उनको अनेक-अनेक अभिनंदन देता हूं, उनका धन्‍यवाद करता हूं।

मैं इस परिसर में जो इमारतें थी, जो इसके मालिक थे अलग-अलग लोग, कुछ लोग किराये पर रहते थे। उनसे आग्रह किया कि बाबा का काम है अगर आप जगह छोड़ने के लिए तैयार हो जाए, करीब-करीब 300 property इतने कम समय में और दो-चार लोगों की तरफ से रूकावट आने के बावजूद भी जिस प्रकार से साथ और सहयोग दिया, सरकार की हर बात पर भरोसा किया और अपनी इस बहुमूल्‍य जगह को छोड़ करके बाबा के चरणों में समर्पित कर दी, शायद मैं समझता हूं यह सबसे बड़ा दान यह परिसर में पहले रहने वाले लोगों ने किया। और इसलिए मैं उनका भी यहां के सांसद के रूप में हृदय से बहुत-बहुत आभार व्‍यक्‍त करता हूं, अभिनंदन करता हूं कि उन्‍होंने इस काम को अपना काम मान करके हमारा सहयोग किया और यह सपना पूरा हुआ।

कितने सदियों से यह स्‍थान दुश्‍मनों के निशाने पर रहा। कितनी बार ध्‍वस्त हुआ, कितनी बार अपने अस्तित्‍व के बिना जिया, लेकिन यहां की आस्‍था ने उसको पुनर्जन्‍म दिया, पुनर्जीवित किया, पुनर्चेत्‍ना दी। और यह कर्म सदियों से चलता आ रहा है। जब महात्‍मा गांधी यहां आए थे तो उनके मन में भी एक पीड़ा थी कि भोले बाबा का स्‍थान ऐसा क्‍यों है? वे भी बीएचयू में अपनी बात बताते समय इस पीड़ा को व्‍यक्‍त करने से रोक नहीं पाए थे। उसको भी कुछ समय के बाद शायद सौ साल हो जाएंगे, उनकी बात को।

आहिल्‍या देवी ने सदियों के बाद इसका पुनरुत्‍थान का बीड़ा उठाया था। करीब-करीब सवा दो सौ, ढ़ाई सौ साल पहले और तब जा करके उस स्‍थान को एक रूप मिला, परिस्थिति मिली। आहिल्‍या बाई का बहुत बड़ा रोल रहा इसको, अगर आप सोमनाथ जाएंगे तो सोमनाथ में भी आहिल्‍या देवी ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। शिव भक्ति में लीन आहिल्‍या बाई राज्‍य की धरा संभालते-संभालते इस काम को भी करती थी। लेकिन उसको भी करीब-करीब सवा दो सौ, ढ़ाई सौ साल बीत गए। बीच के कालखंड में भोले बाबा की चिंता किसी ने की? नहीं की। सबने अपनी-अपनी की। मैं हैरान हूं जब इतनी सारी इमारतों को तोड़ना शुरू किया तो प‍ता नहीं था कि 40 से ज्‍यादा इतने मूल्‍यवान मंदिरों को लोगों ने अपने घरों में दबा-दबा करके, किसी ने उसमें किचन बना दिया था, पता नहीं क्‍या-क्‍या कर दिया था। यह तो अच्‍छा हुआ कि भोले बाबा ने हमारे भीतर एक चेतना जगाई और यह सपना सज गया और उसके कारण सिर्फ भोले बाबा नहीं 40 के करीब ज्‍यादा ऐसे ऐतिहासिक पुरातत्‍वीय मंदिर अंदर से मिले, इस पूरे धाम में जब देश और दुनिया के यात्री आएंगे तो उनको अजूबा लगेगा कि कैसा काम हमारे कुछ लोगों ने कर दिया। और शासन व्‍यवस्‍था भी 70 साल तक चुप रही। लोग सब चीजें दबाते गए, दबाते गए, दबाते गए, लेकिन आज उन 40 मंदिरों की मुक्ति का भी अवसर आ गया है। और मुझे बताया कि शायद बहुत दशकों के बाद ऐसी शिवरात्रि यहां मनाई होगी जो इस बार मनाई है। इतना खुला परिसर था, शिव भक्‍तों का जमावड़ा था, हजारों की तादाद में लोग अपने मोबाइल फोन से सेल्‍फी ले रहे थे। आप सोशल मीडिया में देखिए इस परिसर की तस्‍वीरें लाखों की तादाद में आज दिख रही हैं। एक सपना था और आप देख रहे हैं यहां जो मॉडल रखा है, यह फिल्‍म में जो आप देख रहे हैं, अब मां गंगा के साथ भोले बाबा का सीधा संबंध जोड़ दिया है। गंगा से हम सीधे स्‍थान करके भोले बाबा के चरणों में आ करके सिर झुका सकते हैं।

यह काशी विश्‍वनाथ महादेव यह भोले बाबा का स्‍थान, करोड़ों-करोड़ों देशवासियों की आस्‍था का स्‍थान है। लोग काशी आते हैं, उसका मूल कारण काशी विश्‍वनाथ महादेव के प्रति अपार श्रद्धा है। उस आस्‍था को बल मिलेगा, हमारे मंदिरों की रक्षा कैसे हो, व्‍यवस्‍था कैसे हो, उसको एक मॉडल तैयार होगा। पुरातत्‍वीय चीजों को बचाए रखते हुए, उसकी आत्‍मा को वैसे ही बरकरार रखते हुए, आधुनिकता कैसे लाई जा सकती है, व्‍यवस्‍थाएं आधुनिक कैसे बनाई जा सकती है इसका एक बहुत ही अच्‍छा मिलन इस परिसर के निर्माण कार्य में दिखाया गया था। यह काशी विश्‍वनाथ धाम काशी विश्‍वनाथ मंदिर के आसपास के परिसर के रूप में जाना जाएगा और गंगा मां तक हमें यह परिसर ले जाएगा। यह धाम हमें मां गंगा से जोड़ेगा। इससे पूरे विश्‍व में काशी की एक नई पहचान बनने वाली है। सवा दो सौ, ढ़ाई सौ साल के बाद शायद इस प‍रमात्‍मा ने मेरे ही नसीब में लिखा था, इस कार्य के लिए और इसीलिए शायद जब हम 2014 में चुनाव के लिए आये थे, तो ऐसे ही मेरे भीतर से आवाज़ निकली थी, मैं आया नहीं हूं, मुझे बुलाया गया है। और आज मुझे लगता है कि जो बुलावा था, वो ऐसे ही कामों के लिए था और इन कामों को पूरा करने का संकल्‍प फिर एक बार बहुत प्रबल हुआ है, बहुत मजबूत हुआ है कि जितना ज्‍यादा और यह सिर्फ काशीवासियों के जीवन से जुड़ा नहीं है, देशवासियों से जुड़ा हुआ है। मैं तो बनारस हिन्‍दू यूनिवर्सिटी से भी आग्रह करूंगा कि इस पूरे काशी विश्‍वनाथ धाम के निर्माण का जो concept है, किस प्रकार से इसको आगे बढ़ाया गया, property कैसे acquire की गई, लोगों ने कैसे सहयोग दिया। एक test study के रूप में यूनिवर्सिटी में काम करना चाहिए। और एक तरफ यह धाम का निर्माण होता चले और काशी विश्‍व हिन्‍दू यूनिवर्सिटी हमारी इस रिसर्च काम को भी साथ-साथ करे, ताकि जब यह काम पूरा होगा, तो ऐसा volume हम दुनिया के सामने दे पाएंगे कि एक परिसर को कैसे बनाया गया, धाम का निर्माण कैसे किया गया, कैसे- कैसे लोगों का इसमें involvement रहा और एक बहुत अच्‍छा documentation इससे बन सकता है। शास्‍त्रों के रूप से जिन-जिन बातों का ध्‍यान रखना, इसमें रत्‍तीभर भी compromise नहीं किया। शास्‍त्रों का जो बंधन है उसको पालन करते हुए इसको किया गया है, ताकि आस्‍था को कहीं पर भी खरोंच न आए।

आज यह काशी विश्‍वनाथ धाम अपने आप में समग्र काशी की नवचेतना का केंद्र बनने वाला है, सामाजिक चेतना का केंद्र बनने वाला है। यह आस्‍था सामाजिक चेतना का केंद्र बन जाती है, तब सामाजिक क्रांति का अवसर पैदा करती है ऐसा पवित्र कार्य आज इस धरती पर हो रहा है। मैं फिर एक बार योगी जी की सरकार को, क्‍योंकि अगर शुरू के मेरे तीन साल मुझे राज्‍य सरकार का सहयोग मिला होता तो शायद यह काम आज हम उद्घाटन करते होते, लेकिन पहले तीन साल मेरे एक प्रकार से असहयोग का वातावरण रहा था इसके कारण मैं कर नहीं पाता था लेकिन जब से आपने योगी जी को उत्‍तर प्रदेश का काम दिया है, तब से काशी के कामों में भी सुविधा बनी है और उन सुविधाओं को पूरा करने का मुझे अवसर मिला है। मुझे विश्‍वास है कि काशीवासियों की आशा-अपेक्षाओं को हम पूर्ण करेंगे और यह जो 40 मंदिर प्राप्‍त हुए उसको भी उसी प्रकार से संभालेंगे। उसका भी महात्‍मय बढ़े, इसकी व्‍यवस्‍था करेंगे। उसकी भी चीजें पुरातत्‍व में खोज करके मिलती है तो बीएचयू के लोग इसको भी खोजे कि कितने साल पुराना है, कितने दशक, कितनी सदियों पुराना है, कब बना था, तो अपने आप में यह काशी की आत्‍मा और हमारी व्‍यवस्‍थाएं दोनों मिल करके आगे बढ़ेगी। मैं फिर एक बार मां बाबा के धाम में, मां बाबा के चरणों में अपना सिर झुका करके काशीवासियों के आशीर्वाद के साथ इस पवित्र कार्य का आज आरंभ हो रहा है। मेरे साथ बोलिये -

हर हर महादेव...!

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AKT/ VJ/ TK

 



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