स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
वर्षांत समीक्षा 2018 : स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
Posted On:
11 JAN 2019 12:05PM by PIB Delhi
आयुष्मान भारत
आयुष्मान भारत योजना केंद्रीय रूप से प्रायोजित एक कार्यक्रम है जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) के अंतर्गत आता है। इसके अंतर्गत दो प्रमुख स्वास्थ्य योजनाएं आती हैं - स्वास्थ्य एवं आरोग्य केंद्र (एचडब्ल्यूसी) और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई)। इनके बारे में संक्षेप में जानकारी इस प्रकार हैः
आयुष्मान भारत - स्वास्थ्य एवं आरोग्य केंद्र (एबी-एचडब्ल्यूसी)
स्वास्थ्य एवं आरोग्य केंद्रों के माध्यम से समग्र प्राथमिक चिकित्सा देखभाल सेवाओं की आपूर्ति नई-नई घोषित हुई आयुष्मान भारत योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये चिकित्सा सेवा आपूर्ति व्यवस्था के केंद्र में लोगों और समुदायों को रखती है और स्वास्थ्य सेवाओं को प्रतिक्रियाशील, सुलभ और न्यायसंगत बनाती है।
समानता, सार्वभौमिकता और सस्ता होने के सिद्धांतों को सुनिश्चित करते हुए 2022 तक समुदायों के करीब समग्र और अच्छी गुणवत्ता वाली प्राथमिक चिकित्सा सेवा मुहैया करवाने के लिए करीब 1.5लाख उप-केंद्रों और प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों को स्वास्थ्य एवं आरोग्य केंद्रों में तब्दील किया जाएगा।
अब तक विभिन्न राज्यों में 4503 स्वास्थ्य एवं आरोग्य केंद्र काम करने लगे हैं।
एबी-एचडब्ल्यूसी के प्रमुख घटकः
· अतिरिक्त मानव संसाधनः चिकित्सा सेवा पेशेवरों का एक नया वर्ग। इन पेशेवरों को मध्य स्तर का स्वास्थ्य प्रदाता कहा जाता है जो एक नर्स या आयुर्वेद चिकित्सक होता है जो प्राथमिक चिकित्सा सेवा और सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित दक्षताओं के एक समूह के लिए प्रशिक्षित और मान्यता प्राप्त है।
· बहु-कौशल/ प्रशिक्षण करना, मौजूदा सेवा प्रदाताओं का - सेवाओं का विस्तृत पुलिंदा प्रदान करने के लिए कुशलताओं का उन्नयन।
· कुशल रसद प्रणाली - दवाओं की विस्तृत श्रंखला और रोग निदान उपकरणों (पीओसीडी) की उपलब्धता सुनिश्चित करवाने के लिए।
· मजबूत सूचना प्रौद्योगिकी व्यवस्था - सभी व्यक्तियों के लिए देशांतरीय स्वास्थ्य रिकॉर्ड और विशेष स्वास्थ्य पहचान निर्मित करना और दूरसंचार द्वारा परामर्श सेवाओं का प्रावधान।
· आरोग्य के प्रोत्साहन के लिए स्वदेशी चिकित्सा व्यवस्था और योग आदि से संबंधित सेवाओं का प्रावधान।
· स्कूलों में स्वस्थ आदतों का निर्माण सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य एवं आरोग्य राजदूतों को प्रशिक्षित करने हेतु स्कूलों के साथ संपर्क।
एबी-एचडब्ल्यूसी में परिकल्पित सेवाओं का पैकेजः
1. गर्भावस्था और बच्चे के जन्म के समय देखभाल
2. नवजात और शिशु स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं
3. बचपन और किशोरवय के दौरान स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं
4. परिवार नियोजन, गर्भनिरोधक सेवाएं और अन्य प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं
5. राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों सहित संचारी रोगों का प्रबंधन
6. आम संचारी रोगों का प्रबंधन और तीव्र सामान्य बीमारी व छोटी बीमारियों के लिए बाह्य-रोगी देखभाल
7. गैर-संचारी रोगों की जांच, रोकथाम, नियंत्रण और प्रबंधन
8. सामान्य नेत्र और ईएनटी समस्याओं की देखभाल
9. बुनियादी ओरल स्वास्थ्य देखभाल
10. बुजुर्गों की और गंभीर रोगों (पालिएटिव) की स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं
11. आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं
12. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े रोगों की जांच और बुनियादी प्रबंधन
एबी-एचडब्ल्यूसी के तहत समुदाय के लिए प्रमुख लाभः
· प्राथमिक देखभाल सेवाओं का विस्तृत पैकेज - जिसमें मातृ एवं बाल स्वास्थ्य और संचारी रोगों से लेकर गैर-संचारी रोग तक शामिल हैं। (पांच आम संचारी रोगों की सार्वभौमिक जांच, रोकथाम, नियंत्रण और प्रबंधनः उच्च रक्तचाप, मधुमेह और तीन आम कैंसर - मुंह, स्तन और गर्भाशय ग्रीवा के; नेत्र, मौखिक स्वास्थ्य, ईएनटी, मानसिक स्वास्थ्य के रोगों के लिए प्राथमिक चिकित्सा सेवा; पालिएटिव देखभाल और बुजुर्गों की देखभाल; और आपातकालीन चिकित्सा)
· मुफ्त दवाओं की विस्तृत श्रंखला
· इन केंद्रों पर देखभाल निदान के उपकरण (पॉइंट ऑफ केयर डायग्नोस्टिक्स - पीओसीडी)
· जटिलताओं के लिए चिकित्सा अधिकारियों के साथ दूरसंचार द्वारा परामर्श
· परामर्श जुड़ावों और रिपोर्टों (आरएलपी) के माध्यम से सुनिश्चित देखभाल की निरंतरता
· विशेष स्वास्थ्य पहचान - प्रत्येक व्यक्ति के लिए देशांतरीय स्वास्थ्य रिकॉर्ड
· आरोग्य के प्रोत्साहन के लिए स्वदेशी चिकित्सा व्यवस्था और योग से संबंधित सेवाएं
आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई)
आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) का उद्देश्य द्वितीयक और तृतीयक अस्पताल में भर्ती होने के लिए प्रति वर्ष प्रत्येक परिवार को 5 लाख रुपये तक की कवरेज प्रदान करते हुए 10 करोड़ से ज्यादा गरीब और कमजोर परिवारों (करीब 50 करोड़ लाभार्थी) को दायरे में लाना है।
पीएमजेएवाई को 23 सितंबर 2018 को शुरू किया गया था। पीएमजेएवाई को शुरू करने के बाद आरएसबीवाई और एससीएचआईएस को उसमें सम्मिलित कर दिया गया।
प्रमुख विशेषताएं:
· पीएमजेएवाई एक पात्रता आधारित योजना है। इस योजना में एसईसीसी (सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना) आंकड़ों के मुताबिक अभावग्रस्तता और काम-काज के मापदंड के आधार पर गरीब और कमजोर परिवारों को मदद दी जाती है।
· 30.12.2018 तकः
- 16,112 : अस्पतालों को पैनलबद्ध किया गया
- 6,81,825 : लाभार्थियों को भर्ती किया गया
- 39,48,496 : ई-कार्ड जारी किए गए
· पीएमजेएवाई पूरे भारत में पैनलबद्ध अस्पतालों में (सरकारी और निजी दोनों) सेवा के समय लाभार्थी के लिए सेवाओं की कागजरहित और नक़दीरहित पहुंच मुहैया करवाती है। आरएसबीवाई और एससीएचआईएस के सभी लाभार्थी परिवार पीएमजेएवाई के अंतर्गत लाभ पाने के पात्र हैं।
· पीएमजेएवाई के अंतर्गत राज्य इसके कार्यान्वयन के लिए तौर-तरीके चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। वे इस योजना को बीमा कंपनी या सीधे किसी ट्रस्ट / सोसायटी के जरिए या मिश्रित मॉडल के जरिए लागू कर सकते हैं।
· इसमें परिवार के आकार पर कोई सीमा नहीं है, नामित परिवारों के सभी सदस्यों खासकर बच्चियों और वरिष्ठ नागरिकों की कवरेज इसमें सुनिश्चित है।
· इस योजना को लागू करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी (एनएचए) को एक सोसायटी के तौर पर पंजीकृत किया गया है। पीएमजेएवाई के संचालन से जुड़े सभी मसलों के लिए एनएचए जिम्मेदार है। एनएचए 11.05.2018 तारीख के प्रभाव से काम कर रही है।
· राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी, भारत सरकार और 31 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। ये राज्य / केंद्र शासित प्रदेश हैं - उत्तर प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, छत्तीसगढ़, मिजोरम, झारखंड, बिहार, पुड्डूचेरी, मध्य प्रदेश, असम, हरियाणा, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, त्रिपुरा, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, गोवा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश।
· इन 31 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में से 25 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों यानी अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, मिजोरम, मणिपुर, गुजरात, नागालैंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, दादरा और नगर हवेली, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, दमन और दीव, हरियाणा, झारखंड, असम, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, गोवा, बिहार, लक्षद्वीप, मध्य प्रदेश, अंडमान और निकोबार ने 23.09.2018को पीएमजेएवाई शुरू कर दिया है।
· इस योजना को नीति निर्देश प्रदान करने के लिए शीर्ष निकाय के रूप में 'आयुष्मान भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन परिषद' को स्थापित किया गया है।
· स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक की अध्यक्षता वाली एक विशेषज्ञ समिति द्वारा 1350 से अधिक पैकेजों को अंतिम रूप दिया गया है और नीति आयोग द्वारा समीक्षा की गई है।
· पीएमजेएवाई के विभिन्न परिचालन संबंधी मसलों जैसे मॉडल निविदा दस्तावेजों आदि पर परिचालन दिशा-निर्देश अपने स्थान पर लागू हैं। आधिकारिक वेबसाइट www.abnhpm.gov.in पर संबंधित जानकारियां उपलब्ध हैं।
आशा लाभों में बढ़ोतरीः
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने अक्टूबर 2018 (नवंबर 2018 से भुगतान किया जाना) के प्रभाव से एक आशा लाभ पैकेज शुरू करने के प्रस्ताव को 19 सितंबर 2018 को मंजूरी दे दी। इसके दो घटक रहे - पहला, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के अंतर्गत सब पात्रताएं पूरी करने वाले आशा कर्मियों और आशा सहायिकाओं को नामित करना और दूसरा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत आशा कर्मियों को मिलने वाली नियमित राशि और प्रोत्साहन राशि को 1000 रुपये प्रति माह से बढ़ाकर 2000 रुपये प्रति माह करना। 2018-19 और 2019-20 इन दो वर्षों की अवधि के लिए इस योजना की कुल अनुमानित लागत 1905.46 करोड़ रुपये है जिसमें केंद्र सरकार का हिस्सा 1224.97 करोड़ रुपये है।
आशा लाभ पैकेज के हिस्से के तौर पर 24 अक्टूबर 2018 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी जिसके अंतर्गत अक्टूबर 2018 (नवंबर 2018 से भुगतान किया जाना) के प्रभाव से 2018-19से 2019-20 के लिए आशा सहायिकाओं के निरीक्षण दौरा शुल्क को प्रति दौरा 250 रुपये से बढ़ाकर 300 रुपये कर दिया गया है। आशा सहायिकाएं प्रति माह करीब 20 निरीक्षण दौरे करेंगी। आशा सहायिकाओं को पहले 5000 रुपये प्रति माह मिलते थे और इस मंजूरी के बाद 1000 रुपये की वृद्धि के साथ वे प्रति माह 6000 रुपये प्राप्त करेंगी। इससे 2018-19 और 2019-20 में 74.53 करोड़ रुपये का अनुमानित अतिरिक्त खर्च वहन करना होगा। इसमें केंद्र सरकार का हिस्सा 46.95 करोड़ रुपये होगा जिसमें 15.65 करोड़ रुपये 2018-19 (छह महीने के लिए) के और 31.30 करोड़ रुपये 2019-20 के दौरान के शामिल हैं।
प्रमुख विशेषताएं:
· अनुमानतः 10,63,670 आशा कर्मियों और आशा सहायिकाओं को 'प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना' के अंतर्गत लाया जाएगा।
· अनुमानतः 95,73,032 आशा कर्मियों और आशा सहायिकाओं को प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के अंतर्गत लाया जाएगा।
· अनुमानतः 10,22,265 आशा कर्मियों को नियमित और बार-बार होने वाली गतिविधियों के लिए वर्तमान के 1000 रुपये प्रति माह के बजाय कम से कम 2000 रुपये प्रति माह मिलेंगे।
· 41,405 आशा सहायिकाओं को निरीक्षण शुल्क में वृद्धि का लाभ मिलेगा।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017
भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को 15 वर्षों के अंतराल के बाद शुरू किया गया। मंत्रिमंडल ने 15 मार्च 2017 को हुई अपनी बैठक में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) 2017 को मंजूर किया। एनएचपी 2017 सामाजिक-आर्थिक, तकनीकी और महामारी विज्ञान के बदलते परिदृश्य की वजह से आवश्यक हो गई उभरती और मौजूदा चुनौतियों को संबोधित करती है। नई नीति के निर्माण की प्रक्रिया में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण परिषद् और मंत्रियों के समूह की मंजूरी से पहले कई हितधारकों और क्षेत्रीय परामर्शों के साथ व्यापक परामर्श करना शामिल है।
एनएचपी 2017 की ये प्रमुख प्रतिबद्धता सार्वजनिक स्वास्थ्य के व्यय को प्रगतिशील ढंग से 2025 तक बढ़ाकर जीडीपी का 2.5 प्रतिशत कर रही है। इस नीति में स्वास्थ्य और आरोग्य केंद्रों के माध्यम से सुनिश्चित समग्र प्राथमिक चिकित्सा सेवा का बड़ा विस्तृत पैकेज मुहैया करने की संकल्पना की गई है। इस नीति का उद्देश्य किसी को वित्तीय मुश्किल की वजह से परिणाम भुगतने पड़ें इस स्थिति को टालते हुए निवारक व प्रचारक चिकित्सा सेवा और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच के जरिए सभी आयु वर्ग के सभी लोगों के लिए सबसे ऊंचे संभव स्तर के स्वास्थ्य और आरोग्यता को प्राप्त करना है। चिकित्सा सेवाओं की आपूर्ति की लागत को कम करके, गुणवत्ता सुधारकर और पहुंच बढ़ाने के जरिए इसे हासिल किया जा सकेगा। एनएचपी 2017 संसाधनों के प्रमुख हिस्से (दो तिहाई या अधिक) को प्राथमिक चिकित्सा के लिए आवंटित करने की वकालत करती है और इसका उद्देश्य प्रति 1000 की आबादी पर दो बेड की उपलब्धता इस प्रकार वितरित करके सुनिश्चित करना है कि गंभीर चोट या आपात स्थिति के पहले एक घंटे (गोल्डन आवर) के अंदर इस तक पहुंच सक्षम की जा सके। ये नीति निजी क्षेत्र से रणनीतिक खरीदारी करने और उनकी मजबूतियों का लाभ राष्ट्रीय स्वास्थ्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करने को एक ताजा नजरिए से देखती है और निजी क्षेत्र के साथ एक मजबूत भागीदारी चाहती है।
इसके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की प्रमुख बातें इस प्रकार हैँ:
1. आश्वस्ति आधारित रवैया - निवारक और प्रचारक चिकित्सा सेवा पर ध्यान के साथ ये नीति उत्तरोत्तर वृद्धिशील आश्वस्ति आधारित दृष्टिकोण का समर्थन करती है।
2. चिकित्सा सुविधाओं से हेल्थ कार्ड को जोड़ना - देश में कहीं भी सेवाओं के नियत पैकेज के लिए ये नीति प्राथमिक चिकित्सा सेवा सुविधा से हेल्थ कार्ड को जोड़ने की सलाह देती है।
3. मरीज केंद्रित रवैया - ये नीति देखभाल के मानकों, सेवाओं की कीमतों, लापरवाही और गलत तौर-तरीकों से जुड़ी शिकायतों / विवादों, विशेषीकृत उभरती सेवाओं और प्रयोगशालाओं व इमेजिंग केंद्रों के लिए मानक नियामक ढांचे आदि विषयों को संबोधित करने के लिए एक अलग सशक्त चिकित्सा अधिकरण बनाने की सिफारिश करती है।
4. सूक्ष्म पोषक तत्वों (माइक्रोन्यूट्रिएंट) की कमी - सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी वाले कुपोषण को घटाने और पूरे क्षेत्र में सूक्ष्म पोषक तत्वों की पर्याप्तता में विविधता को संबोधित करने में व्यवस्थागत रवैया अपनाने पर इसमें ध्यान दिया गया है।
5. देखभाल की गुणवत्ता - सरकारी अस्पतालों और सुविधाओं की समय समय पर पैमाइश और गुणवत्ता के स्तर का प्रमाणीकरण किया जाएगा। निदान और उपचार के पर्याप्त मानकों को बनाए रखते हुए अनुपयुक्त चिकित्सा सेवा के जोखिमों को खत्म करने के लिए मानक नियामक ढांचे पर ध्यान दिया जाएगा।
6. मेक इन इंडिया पहल - दीर्घकाल में भारतीय जनसंख्या के लिए अनुकूलित स्वदेशी उत्पादों को प्रदान करने के लिए स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित करने की जरूरत का यह नीति समर्थन करती है।
7. डिजिटल स्वास्थ्य लागू करना - ये नीति हमारी चिकित्सा सेवा व्यवस्था की कुशलता और परिणामों को सुधारने के लिए डिजिटल उपकरणों को व्यापक तौर पर लागू करने का समर्थन करती है और इसका लक्ष्य एक एकीकृत स्वास्थ्य सूचना व्यवस्था की ओर है जो सभी हितधारकों की जरूरतों को पूरा करती है और कुशलता, पारदर्शिता और नागरिकों के अनुभव को बेहतर करती है।
8. निजी क्षेत्र के साथ जुड़ाव - ताकि स्वास्थ्य लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके और जरूरी कमी को पूरा करने के लिए रणनीतिक खरीद की जा सके।
2017-18 के केंद्रीय बजट के अंतर्गत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को 47,352.51 करोड़ रुपये के प्रावधान के जरिए केंद्र सरकार द्वारा एनएचपी 2017 को यथोचित रूप से समर्थन दिया गया है। पिछले साल के आवंटन के मुकाबले ये राशि इस आवंटन में 27.7 प्रतिशत की वृद्धि है। इसके अलावा 2018-19 में भी 52,800 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ स्वास्थ्य व्यय में 2017-18 के मुकाबले 11.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। साथ ही 2018-19 में एनएचएम के लिए भी 24,908.62 करोड़ रुपये प्रदान करवाए गए हैं जो पिछले साल के मुकाबले 2967.91 करोड़ रुपये ज्यादा है।
सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा पेशा विधेयक, 2018
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 नवंबर 2018 को सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा पेशा विधेयक, 2018 को मंजूरी दे दी ताकि संबद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं और शिक्षा का नियमन व मानकीकरण किया जा सके। ये विधेयक भारतीय संबद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा परिषद् और संबंधित राज्य संबद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा परिषदों की स्थापना का प्रावधान करता है जो सहयोगी और स्वास्थ्य सेवा के पेशों के लिए सहयोगी और मानक तय करने वाले की भूमिका निभाएंगे।
प्रमुख विशेषताएं:
· एक केंद्रीय और संबंधित राज्य संबद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा परिषदों की स्थापना; संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में 53 पेशों समेत 15 प्रमुख पेशेवर श्रेणियां।
· इस विधेयक में केंद्रीय परिषद् और राज्य परिषदों के ढांचे, संविधान, संरचना और कार्यों का प्रावधान है जिसमें नीतियां व मानक बनाना, पेशेवर आचरण का नियमन, लाइव रजिस्टरों का निर्माण व रख-रखाव, सामान्य प्रवेश और निकास परीक्षाओं के लिए प्रावधान आदि शामिल हैं।
· केंद्रीय परिषद् में 47 सदस्य होंगे जिनमें से 14 सदस्य पदेन रूप से विविध व संबंधित भूमिकाओं और कार्यों का प्रतिनिधित्व करेंगे और बाकी बचे 33 गैर-पदेन सदस्य होंगे जो मुख्य रूप से 15पेशेवर श्रेणियों का प्रतिनिधित्व करेंगे।
· राज्य परिषदों की कल्पना ऐसे की गई है कि वे केंद्रीय परिषद् को प्रतिबिंबित करेंगे और इनमें 7 पदेन और 21 गैर-पदेन सदस्य होंगे और अध्यक्ष का चुनाव गैर-पदेन सदस्यों के बीच में से किया जाएगा।
· केंद्रीय और राज्य परिषदों के अंतर्गत आने वाले पेशेवर परामर्श निकाय स्वतंत्र रूप से मसलों की जांच करेंगे और विशेष रूप से पहचानी गई श्रेणी से संबंधित सिफारिशें देंगे।
· इस विधेयक का अपने दायरे में आने वाले पेशों के लिए पहले से मौजूद किसी अन्य कानून पर अधिभावी प्रभाव होगा।
· राज्य परिषद् ही संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा संस्थानों को मान्यता देने का काम करेगी।
· कदाचार पर नियंत्रण रखने के लिए इस विधेयक में अपराध और दंड की धाराएं जोड़ी गई हैं।
· ये विधेयक केंद्र और राज्य सरकारों को नियम बनाने के लिए भी सशक्त करता है।
· केंद्र सरकार के पास भी शक्ति है कि वो अनुसूची जोड़ने या संशोधन करने और नियम बनाने के लिए परिषद् को निर्देश जारी कर सकती है।
अनुमानित लाभः
· परिषद् की स्थापना की तारीख से लेकर पहले कुछ वर्षों के दौरान सभी मौजूदा संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को साथ लाया जा सकेगा।
· संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा श्रमशक्ति में पेशेवराना अंदाज विकसित करते हुए स्वास्थ्य सेवा में योग्य, ऊंची कुशलता वाली और सक्षम नौकरियों के निर्माण का अवसर।
· 'डॉक्टर के नेतृत्व' मॉडल से दूर हटकर 'देखभाल सुलभ और टीम आधारित' मॉडल की ओर जाते हुए आयुष्मान भारत के दृष्टिकोण के अनुकूल ऊंची गुणवत्ता वाली और बहु-अनुशासनात्मक देखभाल।
· स्वास्थ्य सेवा श्रमशक्ति की वैश्विक मांग (कमी) को भुनाने का अवसर जो डब्ल्यूएचओ ग्लोबल वर्कफोर्स 2030 रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक करीब 1.50 करोड़ हो जाने का अनुमान है।
चिकित्सा उपकरण नियम 2017 के लिए अधिसूचना
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) ने आयात, क्लीनिकल जांच, निर्माण, बिक्री और वितरण समेत औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचित चिकित्सा उपकरणों के समग्र नियमन के लिए चिकित्सा उपकरण नियम 2017 को अधिसूचित किया है। इन नए नियमों का अंतर्राष्ट्रीय नियामक प्रथाओं के साथ सामंजस्य बैठाया गया है। ये 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देते हैं और भारत विशिष्ट नवाचारों को प्रोत्साहित करने के लिए चिकित्सा उपकरणों के नियमन के लिए व्यापक कानून प्रदान करते हैं। 1.1.2018 के प्रभाव से नए चिकित्सा उपकरण नियम 2017 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए भारतीय औषधि महानियंत्रक के अंतर्गत एक अलग और समर्पित विंग बनाई गई है। वर्तमान में चिकित्सा उपकरणों की 15 अधिसूचित श्रेणियों का नियमन औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 एवं नियम 1945 के प्रावधानों के अंतर्गत किया गया है।
निर्धारित खुराक संयोजन (एफडीसी) का नियमन
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 12 सितंबर 2018 के तत्काल प्रभाव से कुछ चुनिंदा निर्धारित खुराक संयोजन (एफडीसी) दवाओं के मानव उपयोग के लिए बिक्री, वितरण करने या बिक्री के लिए निर्माण करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। मंत्रालय ने कुछ परिस्थितियों में चुनिंदा एफडीसी दवाओं के निर्माण, बिक्री और वितरण को भी प्रतिबंधित कर दिया है। मंत्रालय ने औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 की धारा 26ए के द्वारा मिली शक्तियों का उपयोग करते हुए 7 सितंबर 2018 की तारीख की अपनी राजपत्र अधिसूचना के जरिए 328 एफडीसी का मानव इस्तेमाल के लिए बिक्री या वितरण करने, या बिक्री के लिए निर्माण करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। कुछ तय परिस्थितियों में छह एफडीसी के निर्माण, बिक्री या वितरण पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2017
· मंत्रिमंडल ने 15 दिसंबर 2017 को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2017 को मंजूरी दे दी।
· इस विधेयक का इरादाः
o चिकित्सा परिषद् 1956 अधिनियम की जगह लेना है।
o चिकित्सा शिक्षा सुधार के क्षेत्र में एक प्रगतिशील आंदोलन सक्षम करना है।
o चिकित्सा शिक्षा के प्रक्रिया-उन्मुख नियमन के बजाय परिणाम-आधारित नियमन की दिशा में जाना है।
o स्वायत्त बोर्ड रखते हुए नियामक के अंदर कार्यों का उचित पृथकत्व सुनिश्चित करना है।
o चिकित्सा शिक्षा में मानक बनाए रखने के लिए जवाबदेह और पारदर्शी प्रक्रियाएं बनाना है।
o भारत में पर्याप्त स्वास्थ्य श्रमशक्ति सुनिश्चित करने की दिशा में एक अग्रगामी दृष्टिकोण बनाना है।
· इस नए कानून के अनुमानित लाभः
o चिकित्सा शिक्षा संस्थानों पर निरंकुश नियामक नियंत्रण का अंत और परिणाम आधारित निगरानी की दिशा में बदलाव।
o राष्ट्रीय लाइसेंशिएट परीक्षा की शुरुआत। जैसे पहले नीट (एनईईटी) और सामान्य काउंसलिंग की शुरुआत थी, ये उसी तरह का पहला मौका होगा जब देश में उच्च शिक्षा के किसी भी क्षेत्र में ऐसा प्रावधान लाया गया है।
o चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र को इस तरह खोलने से पूर्व-स्नातक (यूजी) और स्नातकोत्तर (पीजी) सीटों की संख्या में बहुत महत्वपूर्ण बढ़ोतरी होगी और इस बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में अच्छी मात्रा में नया निवेश आएगा।
o इलाज की आयुष व्यवस्थाओं के साथ बेहतर समन्वय।
o मेडिकल कॉलेजों में 40 प्रतिशत तक सीटों का नियमन ताकि आर्थिक स्तर की परवाह किए बगैर मेरिट में आने वाले सभी छात्रों की मेडिकल सीटों तक पहुंच सुनिश्चित की जा सके।
राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम)
· मंत्रिमंडल ने हाल ही में राष्ट्रीय पोषण मिशन को मंजूरी दी है जो कुपोषण के पीढ़ीगत चक्र में दखल देने के लिए जीवन चक्र दृष्टिकोण की दिशा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का एक संयुक्त प्रयास है।
· इस मिशन के प्रभाव के तहत शिशुओं में जन्म के समय कम वजन, ख़ून की कमी, पोषण की कमी और विकास में अवरोध को दूर करने की कल्पना की गई है। इससे सहक्रियता पैदा होगी, बेहतर निगरानी सुनिश्चित होगी, समयपूर्वक कार्रवाई के लिए अलर्ट जारी किए जाएंगे और अपने नियत लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लाइन मंत्रालयों और राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों का निरीक्षण, मार्गदर्शन और प्रदर्शन करने के लिए राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
· इस मिशन का उद्देश्य 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को लाभ पहुंचाना है।
· इसे दिसंबर 2017 से शुरू किया जाएगा 9046.17 करोड़ रुपये के तीन साल के बजट के साथ जो 2017-18 से शुरू होगा। 2017-18 में इसमें 315 जिलों को कवर किया जाएगा, 2018-19 में 235 जिलों का और बाकी बचे जिलों का दायरा 2019-20 में तय किया जाएगा।
इस मिशन के प्रमुख घटक / विशेषताएं:
· कुपोषण को संबोधित करने की दिशा में योगदान देने वाली विभिन्न योजनाओं का मानचित्रण करना।
· एक बहुत मजबूत अभिसारिता तंत्र की शुरुआत।
· सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी आधारित वास्तविक समय की निगरानी व्यवस्था।
· लक्ष्य पूरे करने के लिए राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को प्रोत्साहन।
· आईटी आधारित उपकरण इस्तेमाल करने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन।
· आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रजिस्टर हटाना।
· आंगनवाड़ी केंद्रों पर बच्चों की लंबाई का माप शुरू करना।
· सामाजिक लेखा जांच।
· पोषण संसाधन केंद्रों की स्थापना जिसमें विभिन्न गतिविधियों और अन्य चीजों के जरिए पोषण पर लोगों की भागीदारी के लिए जनआंदोलन के माध्यम से उन्हें शामिल करना।
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017
· ये अधिनियम भारत में मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक अधिकार आधारित वैधानिक ढांचा अपनाता है और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधान में समानता और निष्पक्षता को मजबूत करता है ताकि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या वाले लोगों के अधिकारों को सुरक्षित किया जा सके जिससे ये सुनिश्चित किया जा सके कि वे सर्वोत्तम देखभाल प्राप्त कर पा रहे हैं और गरिमा व सम्मान के साथ अपनी जिंदगी जी रहे हैं।
· गुणवत्तापूर्ण और उचित मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच को सुधारने के लिए ये अधिनियम संस्थागत तंत्रों को मजबूत करता है।
· ये अधिनियम मानसिक स्वास्थ्य की समस्या वाले इंसानों और केंद्र और राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण जैसे वैधानिक प्राधिकरणों में उनकी देखभाल करने वालों के प्रतिनिधित्व के साथ मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आपूर्ति में सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों की जवाबदेही बढ़ाता है।
· इस अधिनियम की सबसे प्रगतिशील विशेषताएं अग्रिम निर्देश का प्रावधान, नामित प्रतिनिधि, दाखिले के संबंध में महिलाओं एवं बच्चों के लिए विशेष खंड, स्वच्छता व निजी स्वच्छता और इलेक्ट्रो-कनवल्ज़िव थैरेपी व साइकोसर्जरी के इस्तेमाल पर प्रतिबंध आदि हैं।
· आत्महत्या का वैधीकरण करना भी इस अधिनियम का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है जो ये सुनिश्चित करेगा कि आत्महत्या के प्रयासों के लिए गंभीर तनाव को पूर्व लक्षण मानते हुए उचित प्रबंधन किया जाए।
एचआईवी और एड्स (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017
· इसका उद्देश्य इस महामारी को संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित किए गए सतत विकास लक्ष्यों के अनुसार 2030 तक खत्म करना है।
· एड्स के साथ जी रहे किसी व्यक्ति के साथ नौकरी में, शैक्षिक संस्थानों में, संपत्ति किराए पर लेते हुए, सरकारी या निजी कार्यालय में नियुक्ति के दौरान या चिकित्सा सेवा और बीमा सेवाएं प्रदान करते हुए अनुचित ढंग से बर्ताव नहीं किया जा सकता।
· इस अधिनियम का उद्देश्य एचआईवी से संबंधित परीक्षण, उपचार और क्लिनिकल अनुसंधान के लिए सूचित सहमति और गोपनीयता सुनिश्चित करते हुए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को बढ़ाना है।
· एचआईवी से संक्रमित या प्रभावित 18 साल से कम उम्र के हर व्यक्ति का अधिकार है कि वो एक घर में साझा रूप से रह सकता है और एक घर की सब सुविधाओं का आनंद उठा सकता है।
· ये अधिनियम एचआईवी पॉजिटिव व्यक्तियों या उनके साथ रहने वाले लोगों के खिलाफ नफरत की भावनाएं फैलाने या सूचना प्रकाशित करने से किसी भी व्यक्ति को प्रतिबंधित करता है।
· किसी भी स्त्री या पुरुष को उसकी एचआईवी स्थिति का खुलासा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, ऐसा तभी हो सकता है जब संबंधित व्यक्तियों की सूचित सहमति हो या फिर अदालत के आदेश के द्वारा उसकी आवश्यकता हो।
· राज्य की देखभाल और संरक्षण में हर व्यक्ति को एचआईवी की रोकथाम, परीक्षण, उपचार और परामर्श सेवाओं का अधिकार प्राप्त होगा।
· ये अधिनियम सुझाता है कि एचआईवी पॉजिटिव व्यक्तियों से जुड़े मामलों का अदालत द्वारा यथोचित गोपनीयता सुनिश्चित करते हुए वरीयता देते हुए निपटारा किया जाना चाहिए।
सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम (यूआईपी)
भारत का यूनिवर्सल प्रतिरक्षण कार्यक्रम (यूआईपी) दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है। इसमें सालाना 3 करोड़ गर्भवती महिलाओं और 2.7 करोड़ नए नवजात शिशुओं को लक्ष्य किया जाता है। हर वर्ष 90 लाख से ज्यादा प्रतिरक्षण सत्र आयोजित किए जाते हैं। यह सबसे बढ़िया लागत प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप है और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की टीकाकरण से रोकी जा सकने वाली मृत्यु दर (यू-5एमआर) को कम करने के लिए मौटे तौर पर जिम्मेदार है।
यूआईपी के अंतर्गत नई पहलें:
· मिशन इंद्रधनुषः भारत सरकार ने दिसंबर 2014 में मिशन इंद्रधनुष (एमआई) की शुरुआत की जो ऐसे बच्चों के टीकाकरण को लक्ष्य करने वाला कार्यक्रम है जिन्हें या तो टीका लगा नहीं है या आंशिक रूप से लगाया गया है। ये गतिविधि सबसे ज्यादा संख्या में टीकाकरण से चूके गए बच्चों वाले जिलों पर ध्यान केंद्रित करती है। मिशन इंद्रधनुष के चार चरण पूरे किए जा चुके हैं जिनमें 3.38 करोड़ बच्चों का टीकाकरण किया गया है और उनमें से 81.67 लाख बच्चों को पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया जा चुका है। इसके अलावा 86.88 लाख गर्भवती महिलाओं को टिटनस का टीका लगाया गया है। मिशन इंद्रधनुष के अंतर्गत दो चरणों के दौरान पूर्ण प्रतिरक्षण के दायरे की सालाना दर 1 प्रतिशत से बढ़कर 6.7 प्रतिशत हो गई है।
इसका छठा चरण अक्टूबर से दिसंबर 2018 के बीच 17 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के 75 जिलों में चला है।
· सघन मिशन इंद्रधनुष (आईएमआई) को माननीय प्रधानमंत्री ने 8 अक्टूबर 2017 को गुजरात के वडनगर से शुरू किया। दिसंबर 2018 तक 90 प्रतिशत से अधिक पूर्ण प्रतिरक्षण कवरेज को तेजी से निर्मित करने के लक्ष्य के साथ सघन मिशन इंद्रधनुष को 16 राज्यों के 121 जिलों, पूर्वोत्तर राज्यों के 52 जिलों और 17 शहरी इलाकों में अंजाम दिया गया है जहां मिशन इंद्रधनुष के बार-बार चले चरणों और सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम के बावजूद प्रतिरक्षण का दायरा काफी कम रहा है।
नए टीकों का परिचय
· निष्क्रिय पोलियो टीका (आईपीवी): भारत पोलियो मुक्त हो चुका है लेकिन इस स्तर को बनाए रखने के लिए इनएक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन (आईपीवी) को लाया गया। इसे शुरू करने के बाद से अगस्त 2018 तक बच्चों को इसकी करीब 6.4 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं।
· वयस्क जापानी एनसेफेलाइटिस (जेई) टीका: जापानी एनसेफेलाइटिस एक जानलेवा वायरल रोग है जो मुख्य तौर पर 15 साल से कम उम्र के बच्चों के दिमाग पर असर डालता है। हालांकि राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी) ने 15 से 65 साल के आयुवर्ग में वयस्क जापानी एनसेफेलाइटिस टीकाकरण के लिए असम, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से 31 ऊंचे बोझ वाले जिलों की पहचान की थी। इस वयस्क जापानी एनसेफेलाइटिस टीकाकरण अभियान को असम, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के सभी 31 जिलों में पूरा कर लिया गया है जहां 15 से 65 साल के आयुवर्ग में 3.29 करोड़ लाभार्थियों को टीका लगाया गया।
· रोटावायरस टीका: छोटे बच्चों में गंभीर दस्त और मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक रोटावायरस है। वर्तमान समय में रोटावायरस टीके को आंध्र प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, असम, राजस्थान, तमिलनाडु और त्रिपुरा इन 9 राज्यों में शुरू किया गया है। इस टीके को शुरू करने से लेकर सितंबर 2018 तक रोटावायरस टीके की करीब 2.6 करोड़ खुराक बच्चों को दी जा चुकी है।
· खसरा-रुबेला (एमआर) टीकाः रुबेला संक्रमण से जन्म के समय होने वाले पैदाइशी रोगों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने के लिए रुबेला टीके को सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम में खसरा-रुबेला टीका के तौर पर लाया गया। इस अभियान को अंडमान और निकोबार द्वीप, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, दादर एवं नगर हवेली, दमन और दीव, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, लक्षद्वीप, उड़ीसा, पुड्डूचेरी, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तराखंड, मिजोरम, मणिपुर, पंजाब इन 20 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में पूरा किया जा चुका है और असम, छत्तीसगढ़, गुजरात, जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा इन 8 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में अभी जारी है। 29 अक्टूबर 2018 तक कुल 13.04 करोड़ बच्चों को इसका टीकाकरण किया जा चुका है।
· न्यूमोकोकल टीका (पीसीवी): न्यूमोकोकल निमोनिया की वजह से होने वाली रुग्णता से शिशु मृत्यु दर और न्यूमोकोकल निमोनिया की वजह से होने वाली शिशु मृत्यु दर और रुग्णता को घटाने के लिए मई 2017 में सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम में एक चरणबद्ध तरीके से न्यूमोकोकल टीका को शुरू किया गया। इसे 13 मई 2017 को शुरू किया गया था। पीसीवी को पूरे बिहार, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के 12 जिलों और राजस्थान के 9 जिलों में दिया जाता है। सितंबर 2018 तक करीब 59.48 लाख बच्चों को इसके दायरे में लाया जा चुका है।
राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस के मौके पर राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मंत्रालय ने राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के परिचालन के लिए दिशा-निर्देश, वायरल हेपेटाइटिस परीक्षण के लिए राष्ट्रीय प्रयोगशाला दिशा-निर्देश और वायरल हेपेटाइटिस के निदान और प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस कार्यक्रम को 2030 तक देश में से जनता के स्वास्थ्य के लिए खतरे के तौर पर वायरल हेपेटाइटिस को खत्म करने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया है। इस पहल का लक्ष्य वायरल हेपेटाइटिस की वजह से होने वाली रुग्णता और मृत्यु को कम करना है।
इस कार्यक्रम की प्रमुख रणनीतियों में जागरूकता निर्माण, सुरक्षित इंजेक्शन प्रथाओं और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं, स्वच्छता और स्वास्थ्य, सुरक्षित पेयजल आपूर्ति, संक्रमण नियंत्रण और प्रतिरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए निवारक और प्रोत्साहनमूलक हस्तक्षेप करना; विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ सहयोग और समन्वय करना; वायरल हेपेटाइटिस के परीक्षण और प्रबंधन को ज्यादा पहुंच मुहैया करवाना; हेपेटाइटिस बी और सी के इलाज पर ध्यान देने के साथ मानक परीक्षण और प्रबंधन नियमों के माध्यम से हेपेटाइटिस बी और सी के मरीजों के लिए इलाज रूपी मदद और निदान को प्रोत्साहन देना; राष्ट्रीय, राज्य व जिला स्तर पर और उप-जिला स्तर से प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों और स्वास्थ्य एवं आरोग्य केंद्रों तक क्षमताओं का निर्माण करना शामिल है ताकि इस कार्यक्रम को एक चरणबद्ध तरीके से सबसे निचले स्तर की चिकित्सा सेवा इकाई तक ले जाया जा सके।
प्रसव कक्ष गुणवत्ता सुधार पहल - 'लक्ष्य'
· स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रसव कक्ष और प्रसूति ऑपरेशन थियेटर में गर्भवती मां को मुहैया करवाई जाने वाली देखभाल की गुणवत्ता को सुधारने के लिए 'लक्ष्य' की शुरुआत की जिससे बच्चे के जन्म के समय होने वाले प्रतिकूल परिणामों को रोका जा सके।
· इसका लक्ष्य उन रोकी जा सकने वाली मातृ एवं नवजात मृत्यु दर, रुग्णता और मृत प्रसवों में कमी लाना है जिनका संबंध प्रसव कक्ष और प्रसूति ऑपरेशन थियेटर में प्रसव के दौरान देखभाल से है और सम्मानपूर्ण प्रसूति देखभाल सुनिश्चित करना है।
· इस पहल का कार्यान्वयन सरकारी मेडिकल कॉलेजों, जिला अस्पतालों, बड़ी तादाद में प्रसव वाले उप-जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में किया जाएगा।
· मौजूदा समय में लक्ष्य प्राप्त करने वाली इकाइयों को ये प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं:
o मेडिकल कॉलेजों को 6 लाख रुपये
o जिला अस्पतालों को 3 लाख रुपये
o उप-जिला अस्पतालों/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को 2 लाख रुपये
· इस पहल की योजना प्रसव कक्षों के गुणवत्ता प्रमाणीकरण का संचालन करना भी है।
प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान
· इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रत्येक माह की 9 तारीख को सभी गर्भवती महिलाओं को आश्वस्त, व्यापक और गुणवत्तायुक्त प्रसव पूर्व देखभाल प्रदान करना है।
· ये अभियान सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया जा चुका है।
· इस कार्यक्रम के तहत व्यापक सेवाओं के लिए 'प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान' स्थलों पर 1.7 करोड़ से ज्यादा गुणवत्तायुक्त प्रसव पूर्व परीक्षण संचालित किए जा चुके हैं।
· इस अभियान के अंतर्गत 8 लाख से ज्यादा उच्च जोखिम वाली गर्भिणियों की पहचान की जा चुकी है।
· प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों की 13,100 सरकारी स्वास्थ्य इकाइयों में संचालित किया गया है।
· सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में इस अभियान के पोर्टल पर करीब 5250 स्वयंसेवकों ने अपना नामांकन करवाया है।
सघन दस्त नियंत्रण पखवाड़ा (आईडीसीएफ)
· इसका आयोजन 2014 के बाद से हर साल जुलाई-अगस्त के दौरान किया जाता है जिसका उद्देश्य ये है कि बचपन में दस्त या डायरिया की वजह से बाल मृत्यु दर शून्य होनी चाहिए।
· सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में दस्त की वजह से होने वाली मौतों पर नियंत्रण करने के लिए एक अभियान के तौर पर आईडीसीएफ को कार्यान्वित किया जा रहा है।
· इसकी मुख्य गतिविधियों में जागरूकता निर्माण गतिविधियों, समर्थन गतिविधियों को तेज करना, दस्त प्रबंधन सेवा प्रावधान, ओआरएस-जिंक प्रदर्शन स्थलों की स्थापना, घर-घर जाकर आशा कर्मियों द्वारा ओआरएस का वितरण करना, कुपोषित बच्चों की पहचान और उनका इलाज करना, आशा कर्मियों द्वारा घर-घर जाकर नवजात व छोटे बच्चों की आहार गतिविधियों (आईवाईसीएफ) और आईवाईसीएफ कोनों का निर्माण करना शामिल है।
· 2014 के बाद से अब तक रोग निरोधी ओआरएस को 5 वर्ष से कम उम्र के करीब 28 करोड़ बच्चों तक पहुंचाया जा चुका है।
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
· बच्चों की जांच और जन्म के समय दोषों, रोगों, कमियों, विकास में देरी और विकलांगता के मुफ्त उपचार के लिए फरवरी 2013 में इस कार्यक्रम को शुरू किया गया।
· इसमें 30 चुनी गई स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों के मुफ्त प्रबंधन के लिए प्रावधान किए गए हैं।
· अब तकः
o 11,020 दल 36 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में तैनात है।
o 92 जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र (डीईआईसी) काम कर रहे हैं।
o करीब 82.5 करोड़ बच्चों की जांच की जा चुकी है और कार्यक्रम के शुरू होने के बाद से 1.96 करोड़ बच्चों ने इलाज की सेवाओं का लाभ उठाया है।
राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस
· मृदा संचारित कृमि संक्रमण (एसटीएच) से लड़ने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (एनडीडी) नाम से एकल दिवस रणनीति अपनाई है जहां स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों के मंचों के जरिए 1 से 19 साल के आयु वर्ग के बच्चों को कीड़े खत्म करने की दवा एल्बेंडेज़ॉल की एकल खुराक दी जाती है।
· फरवरी 2018 तक 26.68 करोड़ बच्चों को एल्बेंडेज़ॉल की खुराक दी जा चुकी है। इसके अलावा 2015 के बाद से अब तक 1 से 19 साल के बच्चों को एल्बेंडेज़ॉल की 114 करोड़ से ज्यादा खुराक दी जा चुकी है।
राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके)
· इसे 2014 में एक ऐसे समग्र कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था जिसमें एक निवारक और प्रोत्साहक रवैये को अपनाते हुए यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य, पोषण, चोट व हिंसा (लिंग आधारित हिंसा समेत), गैर-संचारी रोगों, मानसिक स्वास्थ्य और नशीली दवाओं के दुरुपयोग आदि पर ध्यान दिया जाए।
- स्वास्थ्य इकाइयों, समुदाय एवं स्कूलों को मंच के तौर पर इस्तेमाल करते हुए इसमें हस्तक्षेप किए जाते हैं:
· किशोर मित्र स्वास्थ्य क्लिनिकः ये क्लिनिक किशोरों के लिए प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं से संपर्क के पहले स्तर के तौर पर काम करते हैं। सितंबर 2018 तक देश भर में 7459 ऐसे किशोर मित्र स्वास्थ्य क्लिनिक स्थापित किए जा चुके हैं और अप्रैल 2018 से सितंबर 2018 के दौरान करीब 30.93 लाख किशोरवय लोगों ने इन क्लिनिक की सेवाओं का लाभ उठाया है। परामर्श सेवाएं प्रदान करने के लिए कुल 1681 किशोरवय स्वास्थ्य परामर्शदाता तैनात हैं। एचआईवी/एड्स के प्रबंधन और आरटीआई/एसटीआई मामलों के उपचार के लिए एकीकृत परामर्श और परीक्षण केंद्रों (आईसीटीसी) के साथ संपर्क स्थापित किए जा चुके हैं।
· साप्ताहिक आयरन फोलिक एसिड पूर्ति (डब्ल्यूआईएफएस) कार्यक्रमः इसमें पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा के अलावा स्कूल में पढ़ने वाले लड़के व लड़कियों और स्कूल से बाहर की लड़कियों को हर हफ्ते किसी देखरेख में आयरन फोलिक एसिड की गोलियां और साल में दो बाहर एल्बेंडेज़ॉल गोलियां देने का प्रावधान शामिल है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य कुल 11.9 करोड़ लाभार्थियों तक पहुंचना है जिनमें 9.4 करोड़ स्कूल के अंदर और 2.5 करोड़ स्कूल के बाहर के लाभार्थी हैं। अप्रैल 2018 से जून 2018 के दौरान हर महीने करीब 4 करोड़ लाभार्थियों (3.38 करोड़ स्कूली किशोर और 63 लाख स्कूल के बाहर की किशोरवय लड़कियां) को इस योजना के अंतर्गत कवर किया गया।
· मासिक धर्म स्वच्छता योजना (एमएचएस): इस योजना को ग्रामीण क्षेत्रों की किशोरवय लड़कियों के लिए क्रियान्वित किया जा रहा है। 2014 से सैनिटरी नैपकिन की खरीद का विकेंद्रीकरण कर दिया गया है। वित्त वर्ष 2018-19 में प्रतिस्पर्धी नीलामी की प्रक्रिया के माध्यम से सैनिटरी नैपकिन की विकेंद्रीकृत खरीद के लिए 15 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जरिए 4254 लाख रुपये आवंटित किए गए हैं। राज्य एमएचएस को क्रियान्वित करने की प्रक्रिया में हैं।
· साथिया शिक्षा कार्यक्रमः इस कार्यक्रम के अंतर्गत दो पुरुष और दो महिला यानी चार सहकर्मी शिक्षकों (साथिया) को प्रति 1000 की आबादी पर चुना जाता है और उनके द्वारा स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर किशोरों को उन्मुख किया जाना है। इस साथिया शिक्षा कार्यक्रम को 214 जिलों में लागू किया जा रहा है और अब तक 2.19 लाख साथिया चुने जा चुके हैं और एएनएम व साथिया का प्रशिक्षण प्रक्रियाधीन है।
मिशन परिवार विकास (एमपीवी)
इसे 7 राज्यों के 146 जिलों में शुरू किया गया ताकि 3 या उससे ज्यादा की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) वाले जिलों में परिवार नियोजन सेवाओं और गर्भ निरोधकों तक पहुंच को बहुत हद तक बढ़ाया जा सके।
इस कार्यक्रम में ये गतिविधियां शामिल हैं:
· इंजेक्ट किए जा सकने वाले गर्भ निरोधक उपलब्ध करवाना
· नसबंदी मुआवजा योजना
· सरकारी स्वास्थ्य इकाइयों में कंडोम बॉक्स
· एमपीवी अभियान और सारथी (आईईसी वाहन)
· नवविवाहित जोड़ों को नई पहल किट
· सास बहू सम्मेलन
परिवार नियोजन - रसद प्रबंधन सूचना व्यवस्था (एफपी-एलएमआईएस)
· आपूर्ति-श्रंखला प्रबंधन व्यवस्था को मजबूत करने के लिए शुरू की गई।
· प्रशिक्षकों का राष्ट्रीय प्रशिक्षण (टीओटी) पूरा किया जा चुका है।
· 28 राज्यों में राज्य स्तरीय प्रशिक्षण पूरे किए जा चुके हैं और 17 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों ने भी जिला स्तर का प्रशिक्षण प्रारंभ कर दिया है।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम
· राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अंतर्गत पीपीपी मॉडल में सभी जिला अस्पतालों में राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम को समर्थन किया जाना है। इस कार्यक्रम को 28 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के 445 जिलों में राज्यों के समर्थन के साथ क्रियान्वित किया गया है। गरीबों को मुफ्त डायलिसिस सेवाएं देने के प्रावधान के लिए राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को एनएचएम के अंतर्गत समर्थन मुहैया करवाया जा रहा है।
· अब तक 647 क्रियाशील डायलिसिस इकाइयां व केंद्र और 3953 डायलिसिस मशीनें क्रियाशील कर दी गई हैं और करीब 35 लाख डायलिसिस सत्र संचालित किए जा चुके हैं।
मुफ्त दवा एवं निदान सेवा पहल
· स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ऐसी दवाओं और निदान जांचों की निर्देशात्मक सूची मुहैया करवाई थी जिन्हें स्वास्थ्य सेवा सुविधा के हर स्तर पर प्रदान किया जाना है। हालांकि राज्य सरकार इसमें अतिरिक्त संख्या में दवाओं और निदान सेवाओँ का प्रावधान कर सकती है।
· प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में 285 दवाएं और 19 तरह की जांचें उपलब्ध।
· सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में 455 दवाएं और 39 तरह की जांचें उपलब्ध।
· जिला अस्पतालों में 544 दवाएं और 56 तरह की जांचें उपलब्ध।
· वर्ष 2015 के बाद से राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को 16,631 करोड़ रुपये प्रदान किए जा चुके हैं।
बायो-मेडिकल उपकरण प्रबंधन एवं रख-रखाव कार्यक्रम
· स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ऐसे उचित तंत्र ढूंढ़ने के लिए राज्यों के अधिकारियों के साथ परामर्श किया है जिनसे सुनिश्चित किया जा सके कि खरीदे जा चुके चिकित्सा उपकरणों का उपयोग और सही रख-रखाव हो रहा है या नहीं। सभी बायो-मेडिकल उपकरणों की कार्यक्षमता स्थिति सहित उनकी सूची का खाका बनाने के लिए एक विस्तृत अभ्यास भी किया गया।
· ये खाका 29 राज्यों में पूरा किया जा चुका है। इस दौरान 29,115 स्वास्थ्य इकाइयों में लगभग 4646.37 करोड़ रुपये की लागत वाले 7,60,849 उपकरणों की पहचान की जा चुकी है। इन राज्यों में 13 प्रतिशत से 34 प्रतिशत तक के दायरे में बेकार पाया गया।
· इस कार्यक्रम को कुल 26 राज्यों में क्रियान्वित किया जा चुका है
o इनमें 20 राज्यों में पीपीपी मॉडल के जरिए - आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पुड्डूचेरी, पंजाब, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर।
o 6 राज्यों में इनहाउस मॉडल के जरिए - गुजरात, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, दिल्ली, लक्षद्वीप, तमिलनाडु।
· गोवा, हरियाणा, कर्नाटक, उत्तराखंड, उड़ीसा और मणिपुर इन 6 राज्यों में आउटसोर्सिंग की निविदा प्रक्रिया में है।
स्वच्छता ही सेवा
कायाकल्प योजना की उपलब्धियों से प्रोत्साहित होकर अस्पताल और स्वास्थ्य सेवा प्रदाता राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (एनएबीएच) ने फैसला किया है कि निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवा इकाइयों का मूल्यांकन कायाकल्प योजना के मापदंडों पर ही किया जाएगा। स्वास्थ्य मंत्रालय वार्षिक आधार पर निजी अस्पतालों के द्वारा किए जाने वाले शानदार कार्य को पहचानेगा। ये एक पहल है जिसे 'स्वच्छता ही सेवा' साफ-सफाई और स्वच्छता अभियान के हिस्से के तौर पर देश के विभिन्न हिस्सों में आजमाया गया है।
इस पहल के परिणामस्वरूप स्वच्छता और साफ-सफाई, रोगी की संतुष्टि, अस्पतालों / संस्थानों के कर्मचारियों व स्टाफ में व्यवहार परिवर्तन, स्वच्छता की तरफ रोगियों और उनके सहायकों में महत्वपूर्ण सुधार आया है। सरकारी स्वास्थ्य सेवा इकाइयों में स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति लोगों का नजरिया भी बदल रहा है।
राष्ट्रीय कैंसर, मधुमेह, हृदयवाहिका रोग और आघात रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस)
प्रमुख गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) को रोकने और उन पर नियंत्रण करने के लिए भारत सरकार देश भर के सभी राज्यों में एनपीसीडीसीएस को लागू कर रही है जिसमें ध्यान बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, मानव संसाधन विकास, स्वास्थ्य प्रोत्साहन, शीघ्र निदान, प्रबंधन और रेफरल पर होगा।
अब तक ये प्रगति रही हैः
· 36 राज्य एनसीडी प्रकोष्ठ स्थापित किए गए
· 515 जिला एनसीडी प्रकोष्ठ स्थापित किए गए
· 548 जिला एनसीडी क्लिनिक और 2591 एनसीडी क्लिनिक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बनाए गए
· 167 ह्रदय देखभाल इकाइयां (सीसीयू), 152 जिला दिवस देखभाल केंद्र बनाए गए
· 2018-2019 में सितंबर 2018 तक एनसीडी क्लिनिकों में 3.32 करोड़ से ज्यादा व्यक्तियों की जांचें की गईं
· कैंसर के लिए तृतीयक देखभाल को मजबूती
· अपने क्षेत्रों में कैंसर से सभी जुड़ी गतिविधियों पर परामर्श देने के लिए 35 राज्य कैंसर संस्थान / तृतीयक देखभाल कैंसर केंद्रों को मंजूरी
· हरियाणा के झज्जर में राष्ट्रीय कैंसर संस्थान बनाया जा रहा है
· कोलकाता में चितरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान का दूसरा परिसर बनाया जा रहा है
मधुमेह, उच्च रक्तचाप और आम कैंसर (मुंह, स्तन और ग्रीवा) के लिए जनसंख्या आधारित रोकथाम, नियंत्रण, जांच और प्रबंधन
· हाल ही में शुरू की गई मधुमेह, उच्च रक्तचाप और आम कैंसरों के लिए जनसंख्या आधारित पहल एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें जोखिम स्तर का पता लगाने के लिए आशा कर्मियों का इस्तेमाल किया जाएगा और जांच व सेवा आपूर्ति के लिए पहली पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों और प्राथमिक व द्वितीयक स्वास्थ्य सेवा ढांचे का उपयोग लिया जाएगा। ये गतिविधि एनसीडी के जोखिम कारकों पर भी जागरूकता उत्पन्न करेगी।
· एनएचएम के अंतर्गत व्यापक प्राथमिक देखभाल के हिस्से के तौर पर गैर-संचारी रोगों की जांच और प्रबंधन के लिए परिचालन संबंधी दिशा-निर्देशों को विकसित और वितरित किया जा चुका है। मेडिकल अधिकारियों, स्टाफ नर्सों, एएनएम, आशा कर्मियों के लिए प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण पूरा किया जा चुका है। 70853 आशा कर्मियों, 20532 एएनएम/एमपीडबल्यू, 3160 स्टाफ नर्सों और 4111मेडिकल अधिकारियों को अब तक प्रशिक्षित किया जा चुका है।
· 1 अक्टूबर 2018 तक 12 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के करीब 215 जिलों में जांचों को शुरू किया जा चुका है और अब तक 96,60,870 लोगों की जांच की जा चुकी है।
· एक सॉफ्टवेयर और टैबलेट एप्लीकेशन विकसित की गई है और उपयोग में लाई जा रही है। ये एप्लीकेशन सभी प्रक्रियाओं को समाहित करेगी और कुशल कार्यक्रम प्रबंधन, गुणवत्तापूर्ण सेवा वितरण, उपचार पालन और जागरूकता पैदा करने में मदद करेगी।
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी रोग (सीओपीडी) और क्रॉनिक गुर्दा रोग (सीकेडी)
· सीओपीडी और सीकेडी को रोकने और प्रबंधित करने के लिए और एनसीडी की वजह से होने वाली मौतों के लिए, इनमें दखल को एनपीसीडीसीएस के अंतर्गत शामिल किया गया है।
· अब तक एनपीसीडीसीएस के हिस्से के तौर पर सीकेडी हस्तक्षेप को 40 जिलों और सीओपीडी हस्तक्षेप को 121 जिलों में क्रियान्वित किया जा चुका है।
राष्ट्रीय बहुक्षेत्रीय कार्य योजना
गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार के 39 विभागों समेत विभिन्न हितधारकों से परामर्श करने के बाद राष्ट्रीय बहुक्षेत्रीय कार्य योजना को विकसित किया गया है। इसके विकास की योजना और प्रक्रिया के नतीजतन कई हस्तक्षेत्रों को बढ़ाया गया है जिनका सीधा असर गैर-संचारी रोगों पर होता है लेकिन स्वास्थ्य क्षेत्र के बाहर। गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण में भारत के बहुक्षेत्रीय प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र ने भी सराहा है।
अमृत (इलाज के लिए सस्ती दवा और भरोसेमंद इम्प्लांट)
· मधुमेह, सीवीडी, कैंसर और अन्य रोगों के लिए रोगियों को रियायती दरों पर दवाएं मुहैया करवाने के लिए 23 राज्यों में 146 दवा केंद्र खोले गए हैं।
· 50 प्रतिशत तक की छूट पर 5200 से ज्यादा दवाओं और अन्य उपभोग्य सामग्रियों का विक्रय किया जा रहा है।
· 30 नवंबर 2018 तक 104.75 लाख रोगियों को अमृत दवा केंद्रों से लाभ मिला है।
· एमआरपी पर दी जा रही दवाओं की कीमत 986.67 करोड़ रुपये है और इसमें 526.26 करोड़ रुपये की बचत होती है जिससे उनका जेब खर्च (आउट ऑफ पॉकेट) घट जाता है।
संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी)
भारत सरकार ने देश में टीबी की समस्या को संबोधित करने के लिए 1962 में राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम शुरू किया था। फिर 1997 में संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुझाई जाने वाली 'सीधे लिए जाने वाले उपचार लघु-कोर्स' (डीओटीएस / डॉट्स) रणनीति पर आधारित था। 2006 तक इस कार्यक्रम का पूरे देश में विस्तार किया गया। 2007 में भारत सरकार ने दवा प्रतिरोध का मुकाबला करने के लिए दवा प्रतिरोधी टीबी के प्रणालीगत प्रबंधन (पीएमडीटी) की शुरुआत की और 2013 तक पूर्ण भौगोलिक विस्तार हासिल किया।
मंत्रालय ने क्षय रोग यानी टीबी के लिए एक राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-25) विकसित की है जो पिछली राष्ट्रीय रणनीतिक योजना की सफलता और उससे सीखे गए सबकों पर निर्मित है और वैश्विक समयसीमा से पांच साल पहले 2025 तक भारत में टीबी पर सतत विकास लक्ष्य हासिल करने के लिए आवश्यक नवीन और साहसिक कदमों को समाहित किए हुए है।
आरएनटीसीपी की उपलब्धियां:
· 2 करोड़ से अधिक मरीजों का इलाज चल रहा है और भारत में 35 लाख जिंदगियां बचाईं।
· इलाज की सफलता दर आरएनटीसीपी से पहले के वक्त में जहां 25 प्रतिशत थी वो वर्तमान में तीन गुना बढ़कर 88 प्रतिशत हो चुकी है (टीबी इंडिया 2018) और टीबी से होने वाली मौतें 29प्रतिशत से घटकर 4 प्रतिशत पर पहुंच गई हैं।
· वर्तमान में टीबी की घटनाएं 3.3 प्रतिशत प्रति वर्ष के हिसाब से घट रही हैं।
· जनवरी से लेकर 30 नवंबर 2018 तक 18.62 लाख टीबी रोगी अधिसूचित किए जा चुके हैं जिनमें से 4.4 लाख निजी क्षेत्र से थे।
· 4 लाख डीओटी केंद्रों के माध्यम से 16,574 निर्दिष्ट माइक्रोस्कोपी केंद्रों और हर गांव में उपलब्ध उपचार के साथ इसे क्रियान्वित किया गया।
· भारत में टीबी देखभाल के मानक (एसटीसीआई) विकसित किए गए।
· मई 2012 में टीबी को अधिसूचित किया जाने वाला रोग बना दिया गया और 'निक्षय' विकसित किया गया जो एक मामला आधारित वेब आधारित व्यवस्था है जिसमें टीबी रोगियों की सूचना और निगरानी की जाती है।
· निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से 12 लाख से ज्यादा टीबी रोगियों की सूचना दी गई है।
· देश ने 2016 में टीबी से संबंधित सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को हासिल कर लिया है।
· 1990 के बाद से टीबी की घटनाओं में 28 प्रतिशत कमी आई है और मृत्यु 58 प्रतिशत तक कम हो गई है।
· 2007 से टीबी और एचआईवी दोनों से पीड़ित रोगियों की देखभाल करने के लिए आरएनटीसीपी और एनएसीपी द्वारा सहयोगी प्रयास क्रियान्वित किए जा रहे हैं।
· सभी एआरटी (एंटी रेट्रोवायरल थैरेपी) केंद्रों पर एचआईवी और टीबी की देखभाल की आपूर्ति के लिए एकल खिड़की शुरू की गई है। एचआईवी-टीबी की इन सेवाओं को टीबी के निदान के लिए सीबीएनएएटी के इस्तेमाल के साथ विस्तार दिया गया है। नित्य एफडीसी उपचार, सूचना संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) आधारित अनुपालन समर्थन, आईएनएच प्रिवेंटिव थैरेपी और वायुवाहित संक्रमण नियंत्रण के उपाय सभी एआरटी केंद्रों में किए जा रहे हैं।
· टीबी के उपचार के लिए अनिरंतर दवा व्यवस्था से दैनिक दवा व्यवस्था की तरफ बदलाव।
· 30 अक्टूबर 2017 के बाद से पूरे देश को डेली रेजिमन यानी रोज़ दवा व्यवस्था के दायरे में लाया गया है।
· अब तक देश भर में 10 लाख रोगियों ने रोज़ दवा व्यवस्था को शुरू कर दिया है।
· निजी क्षेत्र के रोगियों के लिए दवा तक पहुंच।
दवा प्रतिरोधी टीबी सेवाएं
· ऐसा अनुमान है कि भारत में 1.35 लाख दवा प्रतिरोधी टीबी रोगी हैं।
· जनवरी से सितंबर 2018 तक 41,250 दवा प्रतिरोधी टीबी रोगियों का उपचार किया जा चुका है।
· बैडाक्विलाइन एक नई टीबी-रोधी दवा है जिसकी खोज 40 वर्षों के बाद की गई है।
· 148 विशेष डीआर-टीबी केंद्रों समेत 428 जिला स्तरीय दवा-प्रतिरोधी टीबी केंद्रों की स्थापना की जा चुकी है।
· 7 राज्यों के 22 केंद्रों से डेलामनीड रेजिमन शुरू किए गए।
· सभी राज्यों में छोटी दवा व्यवस्था और बैडाक्विलाइन शुरू किए गए हैं। जनवरी से नवंबर 2018 के दौरान देश भर में 12529 एमडीआर/आरआर-टीबी रोगियों को छोटी दवा व्यवस्था पर शुरू किया गया है और 1964 एमडीआर/आरआर-टीबी रोगियों को रेजिमन (बैडाक्विलाइन या डेलामनीड) युक्त नई दवा प्रारंभ की गई है।
रैपिड मॉलीक्यूलर निदान का विस्तार
· अब तक कुल 1180 सीबीएनएएटी मशीनें परिचालित हैं।
· जनवरी से सितंबर 2018 के दौरान 17.09 लाख सीबीएनएएटी जांचें की जा चुकी हैं जबकि 2017 में इसी अवधि में जांचों की ये संख्या 7.48 लाख थी।
· 2017 की पहली तिमाही में प्रति माह प्रति लैब 118 जांचों तक सीबीएनएएटी का उपयोग था जो बढ़कर 2018 की पहली तिमाही में प्रति माह प्रति लैब 185 जांच हो गया है।
· एक स्वदेशी रैपिड मॉलीक्यूलर निदान 'ट्रूनैट' की व्यवहार्यता जानने के लिए 100 स्थलों पर उसका परीक्षण किया गया है। टीबी और डीआर-टीबी के निदान के लिए एक चरणबद्ध तरीके से इसका विस्तार किया जाएगा।
सार्वभौमिक दवा संवेदनशीलता परीक्षण (यूडीएसटी)
· 1 जनवरी 2018 के बाद से देश भर में सार्वभौमिक डीएसटी को क्रियान्वित किया जा रहा है।
· अभियान प्रणाली - चिकित्सकीय और सामाजिक रूप से कमजोर आबादी के बीच व्यवस्थित सक्रिय टीबी जांच के जरिए सक्रिय मामलों को ढूंढना (एसीएफ)।
· जनवरी से नवंबर 2018 के दौरान 6.5 करोड़ जनसंख्या की जांच की जा चुकी है और 17,223 मामलों का निदान किया जा चुका है।
· 2018 में 23 राज्यों के 337 जिलों ने एसीएफ का संचालन किया है।
निजी क्षेत्र को जोड़ना
· आरएनटीसीपी के जरिए टीबी रोगियों को सेवाओं का व्यापक प्रसार करने के लिए 10 मई 2018 को भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौता ज्ञापन के अंतर्गत आईएमए की 1700 शाखाओं में से 1000 में निजी प्रदाताओं को संवेदनशील किया जाएगा। एक अभियान प्रणाली के तहत आईएमए के सहयोग से निक्षय में नामांकन करवाने के लिए निजी चिकित्सकों का एक पंजीकरण अभियान चलाया जाएगा।
· वैश्विक निधि अनुदान का उपयोग करते हुए 45 बड़े शहरों और 348 जिलों में जेईईटी (टीबी उन्मूलन के लिए संयुक्त प्रयास) संघ के माध्यम से सार्वजनिक निजी सहयोग संस्था हस्तक्षेप प्रारंभ किया गया है जहां निजी क्षेत्र से अधिसूचना के लिए तीव्र प्रयासों, रैपिड मॉलीक्यूलर जांचों और सरकार द्वारा प्रदान करवाई दवाओं के उपयोग को त्वरित किया जाएगा।
निक्षय पोषण योजना (एनपीवाई)
· निक्षय पोषण योजना को अप्रैल 2018 से पोषण सहायता के लिए प्रति माह 500 रुपये की दर पर वित्तीय मदद प्रदान करने के लिए शुरू किया गया है।
· 1 अप्रैल से नवंबर 2018 तक निक्षय पोषण योजना के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के जरिए 4.69 लाख लाभार्थियों को 49.37 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं।
· ई-स्वास्थ्य प्रगति - कार्यक्रम प्रबंधन और निगरानी।
· यह कार्यक्रम अपने सूचना संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) आधारित उपकरण निक्षय को बढ़ा रहा है।
· आईटी आधारित पालन निगरानी उपकरण '99 डॉट्स' का उपयोग देश भर में सभी एचआईवी-टीबी रोगियों के लिए किया गया है। इसका विस्तार सभी टीबी रोगियों के लिए किया गया है।
· निक्षय औषधि - पूरे देश में दवा वितरण प्रबंधन व्यवस्था क्रियान्वित कर दी गई है और निक्षय औषधि (सभी राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर के दवा केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद स्तर के दवा केंद्र निक्षय औषधि के जरिए दवा सूची प्रदान कर रहे हैं) के माध्यम से 24,846 दवा केंद्र प्रतिवेदन कर रहे हैं।
· निक्षय उपयोग और निक्षय औषधि क्रियान्वयन को तेज करने के लिए 20,000 टैबलेट मुहैया करवाए गए हैं।
· महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में सेवाएं देने के लिए 90 सीट की क्षमता वाला कॉल सेंटर स्थापित किया जा चुका है और बाकी राज्यों में भी धीरे धीरे इसका विस्तार किया जा रहा है।
· ईसीएचओ - प्रौद्योगिकी क्षमता निर्माण सत्र सभी 148 केंद्रीय डीआर-टीबी केंद्रों पर संचालित किए जा रहे हैं।
सामुदायिक सहभागिता और बहु-हितधारक प्रयास
· टीबी को रोगी केंद्रित और सामुदायिक नेतृत्व वाला जवाब देने के लिए समुदायों को जोड़ने हेतु राष्ट्रीय टीबी मंच की स्थापना की गई है। इसी तरह राज्य और जिला स्तर के मंच भी बनाए जा रहे हैं। पिछले टीबी रोगियों व टीबी से प्रभावित लोगों और टीबी उपचार समर्थकों के 4 लाख लोगों के मौजूदा नेटवर्क से टीबी विजेता नेटवर्क बनाया जाएगा।
· राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) और श्रम व रोजगार मंत्रालय के संयुक्त कार्य समूह के सदस्य के तौर पर संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) को शामिल किया गया है। टीबी पर कार्यस्थल नीति को लेकर श्रम व रोजगार मंत्रालय के साथ विभाग काम कर रहा है।
· देश भर में नमूना परिवहन सेवाएं मुहैया करवाने के लिए आरएनटीसीपी ने डाक विभाग के साथ जोड़ा है।
· अनुसंधान और विकास - भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर), डीबीटी, डीएसटी और अन्य जैसे विभिन्न अनुसंधान विभागों द्वारा आईसीएमआर के साथ सहभागिता में टीबी अनुसंधान संघ बनाया गया है।
बहु-हितधारक भागीदारी
· टीबी प्रतिक्रिया में भागीदारी के लिए 16 अगस्त 2018 को अंतर-मंत्रालयी बैठक का आयोजन किया गया जिसमें 25 से ज्यादा मंत्रियों ने हिस्सा लिया। अलग-अलग मंत्रालयों से संपर्क रखा जा रहा है।
· बलगम नमूना परिवहन के लिए डाक सेवाओं का उपयोग करते हुए 19 सितंबर 2018 को डाक विभाग के साथ मिलकर पायलट परियोजना शुरू की गई।
सूचना शिक्षा संचार (आईईसी) गतिविधियां
लोगों को टीबी रोग के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूक करने में संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के सबसे महत्वपूर्ण घटकों में से एक समर्थन संचार एवं सामाजिक लामबंदी (एसीएसएम) है।
· 15 दूरदर्शन और 91 राष्ट्रीय / क्षेत्रीय चैनलों में 2 महीने का अभियान।
· 25 ऑल इंडिया रेडियो चैनलों और 242 निजी एफएम चैनलों में 1 महीने का अभियान।
· एक स्पॉट / शो / दिन के साथ 3023 सिनेमाघरों में डिजिटल मीडिया अभियान।
· एशिया कप क्रिकेट श्रंखला और भारत - वेस्ट इंडीज़ क्रिकेट श्रंखला के दौरान डीडी स्पोर्ट्स पर मीडिया अभियान, जिसमें 3 करोड़ दर्शक जुटाए गए।
· पूरे भारत में 7 राज्यों (302 जगहों पर) के बस टर्मिनल पर 1 महीने का अभियान।
· परफेक्ट स्वास्थ्य मेला और पार्टनर्स फोरम मीट 2018 में हिस्सेदारी।
· ट्विटर हैंडल के जरिए सितंबर 2017 से नवंबर 2018 के दौरान 750 से ज्यादा ट्वीट किए गए।
सूचना प्रौद्योगिकी पहलें
· संबद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों का डाटाबेस पोर्टल। इसके परीक्षण चरण के दौरान 3000 से ज्यादा पेशेवर इस पोर्टल पर पंजीकरण करवा चुके हैं। इस वेबसाइट पोर्टल पर इस पते a2hp.mohfw.gov.in से पहुंचा जाता है। इस पोर्टल में 10 लाख से ज्यादा संबद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के आंकड़े दर्ज करने की क्षमता है। इससे सरकार को देश में संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा पेशों की धाराओं और पेशेवरों की संख्या की जानकारी रखने में मदद मिलेगी। इसके अलावा ये परिकल्पित प्रक्रियाओं में तेजी लाने में भी मददगार साबित हो सकता है, मसलन - पेशेवरों को लाइसेंस देना, कार्यबल नीति नियोजन और शैक्षिक व चिकित्सकीय प्रथाओं के मानकों को बरकरार रखते हुए व्यवस्था में पारदर्शिता लाना आदि।
· स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के बजट, व्यय और बिल भुगतान स्थिति पर बजट डैशबोर्ड। इस बजट डैशबोर्ड में आयुष मंत्रालय और स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को भी सम्मिलित किया गया है। यहां बजट और व्यय एक स्नैपशॉट में उपलब्ध है और इसके साथ ही इसमें विभिन्न श्रेणियों जैसे प्रमुख योजनाओं, केंद्रीय क्षेत्र के व्यय, पूर्वोत्तर, एससी/एसटी, केंद्र प्रायोजित योजनाओं आदि का विस्तृत विवरण भी दिया गया है। विभिन्न संबंधित प्रस्तुतियां, अनुदान मांगें और समस्त संबंधित बजट परिपत्र भी डैशबोर्ड पर उपलब्ध हैं। इस डैशबोर्ड में इस मंत्रालय के अखिल भारतीय वेतन एवं लेखा कार्यालयों (पीएओ) के लिए बिलों की स्थिति से जुड़ी जानकारी देने की अनूठी विशेषता भी शामिल है और साथ ही इसमें बिलों के वापस होने का कारण भी बताया गया है। पारदर्शिता की दिशा में ये एक और अहम कदम है।
· एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (आईएचआईपी) के हिस्से एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) को सात राज्यों में सॉफ्ट-लॉन्च किया गया। ये अग्रणी पहल प्रकोपों का पता लगाने, रुग्णता व मृत्यु दर को कम करने और आबादियों में रोगों के बोझ को कम करने और बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए नीति निर्माताओं को लगभग वास्तविक समय के आंकड़े प्रदान करेगी। भारत सरकार की अपनी तरह की ये पहली पहल आईएचआईपी सबसे आधुनिक प्रौद्योगिकियों और डिजिटल स्वास्थ्य पहलों का उपयोग करती है। राज्य सचिवों से अनुरोध किया गया है कि इस मंच को अपनाने में उत्साह दिखाएं ताकि शीघ्र प्रकोपों का पता लगाने को मजबूत किया जा सके और सूचित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया दी जा सके। इसके अलावा इस मंच के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ब्लॉक स्तर पर 32,000 लोगों, जिला स्तर पर 13,000 लोगों और राज्य स्तर पर 900 लोगों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। इस मंच का मार्ग निर्देशन करने के लिए आईएचआईपी दृष्टिकोण और एक तत्कालगणक को भी लाया गया है।
· राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल (एनएचपी) स्वास्थ्य सेवा के लिए नागरिक पोर्टल के तौर पर काम कर रहा है और विभिन्न भाषाओं में (अभी छह भाषाएं) में नागरिकों और हितधारकों को स्वास्थ्य से संबंधित सूचनाएं मुहैया करवा रहा है। एक टोल फ्री नंबर 1800-180-1104 के जरिए सूचना प्रदान करने वाला वॉयस पोर्टल और मोबाइल एप्प भी शुरू किए गए हैं। ये स्वास्थ्य और रोगों से जुड़ी सभी जानकारियों के लिए एकल बिंदु पहुंच के रूप में सेवा देता है जिसमें स्वास्थ्य संदेश; नियमनों, मानकों, नीतियों, योजनाओं, आयोगों वगैरह पर; और डायरेक्टरी सेवाएं - अस्पताल, रक्त बैंक, एंबुलेंस आदि शामिल हैं।
· अस्पताल सूचना व्यवस्था (एचआईएस) को अस्पतालों में क्रियान्वित किया जा रहा है ताकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर तक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में बेहतर कुशलता और सेवा आपूर्ति को प्राप्त करने के लिए अस्पताल प्रक्रियाओं का स्वचालन हो सके।
· निक्षय नाम की एक मामला आधारित वेब आधारित सूचना व्यवस्था को स्थापित किया गया है और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में टीबी के सभी मामलों तक पहुंचने के लिए इसे पूरे देश में बढ़ाया गया है।
· अनुपालन निगरानी के लिए '99 डॉट्स' को क्रियान्वित किया गया है जहां एक रोगी को सिर्फ एक टोल फ्री नंबर पर मिस्ड कॉल देनी होती है और सिस्टम उनकी अनुपालन जानकारी को दर्ज कर लेता है।
· ई-सीजीएचएस (केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना) कार्ड सक्षम करते हैं कि किसी भी जगह से सीजीएचएस कार्डों को खुद प्रिंट किया जा सकता है।
· केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) का 'सुगम' - दवा, क्लिनिकल ट्रायल, आचार समिति, चिकित्सा उपकरणों, टीकों और सौंदर्य प्रसाधनों के लिए आवेदनों को ऑनलाइन जमा करवाना, उन्हें ट्रैक करना, ऑनलाइन उनकी प्रक्रिया और मंजूरी प्राप्त करना सक्षम करता है। ये सीडीएससीओ की प्रक्रियाओं में शामिल बहु हितधारकों (दवा उद्योग, नियामक, नागरिक) के लिए एकल खिड़की मुहैया करवाता है।
· दवा और टीका वितरण प्रबंधन व्यवस्था (डीवीडीएमएस) (ई-औषधि) राज्य और केंद्र शासित प्रदेश स्तर में खरीदारी, आपूर्ति श्रंखला, गुणवत्ता नियंत्रण और वित्त विभाग के काम को स्वचालित करते हुए विभिन्न दवाओं, टांकों और सर्जिकल सामान की खरीद, सूची प्रबंधन और विभिन्न राज्य / केंद्र शासित प्रदेश, जिला अस्पतालों, सीएससी और पीएचसी वगैरह में दवा गोदामों और उप दवा केंद्रों को वितरण करने का काम देखती है।
· ई-रक्त कोष को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सरकारी और निजी स्वास्थ्य इकाइयों में लाइसेंसशुदा ब्लड बैंक के लिए उपलब्ध करवाया जा रहा है। मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और आईआरसीएस दिल्ली के रक्त बैंकों में ई-रक्तकोष को शुरू किया गया है।
· मां और बच्चा ट्रैकिंग व्यवस्था (एमसीटीएस) / प्रजनन बाल स्वास्थ्य (आरसीएच) एप्लीकेशन सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में एक व्यक्ति आधारित ट्रैकिंग व्यवस्था है जिसका काम शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और मृत्यु संख्या में सुधार लाने के उद्देश्य से प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल सेवाओं और बच्चों के टीकाकरण की सेवाओं की आपूर्ति मुहैया करवाना है। एमसीटीएस / आरसीएच पोर्टल पर कुल 15.31 करोड़ गर्भवती महिलाओं और 13.11 करोड़ बच्चों को पंजीकृत किया जा चुका है।
· किलकारी एप्लीकेशन को गर्भावस्था, बच्चे के जन्म और देखभाल के बारे में हर हफ्ते मुफ्त ऑडियो संदेश देने के लिए शुरू किया गया है। असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड वर्तमान में किलकारी के दायरे में आते हैं। किलकारी के अंतर्गत करीब 16.93 करोड़ सफल कॉल (हर कॉल पर चलाई जाने वाली विषय वस्तु की औसत अवधि करीब 1 मिनट) किए गए हैं।
· मोबाइल एकेडमी एक मुफ्त ऑडियो प्रशिक्षण पाठ्यक्रम है जिसे आशा कर्मियों के ज्ञान आधार को तरोताजा करने और विस्तार देने और उनकी संचार कुशलताओं को सुधारने के लिए बनाया गया है। 2016 में शुरू किए गए मोबाइल एकेडमी के अंतर्गत वर्तमान में बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को लाया गया है। एमसीटीएस / आरसीएच पोर्टल में पंजीकृत कुल 1.52 लाख आशा कर्मियों ने मोबाइल एकेडमी पाठ्यक्रम शुरू किया है जिसमें से नवंबर 2018 तक 1,22,194 आशा कर्मियों ने पाठ्यक्रम पूरा कर लिया है।
· एएनएम ऑन लाइन (अनमोल), एकीकृत आरसीएच रजिस्टर के लिए एक टैबलेट आधारित एप्लीकेशन है जिससे एएनएम अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले लाभार्थियों के आंकड़ों को एप्लीकेशन में प्रवेश करके अपडेट कर सकती हैं। इसे प्रायोगिक रूप से आंध्र प्रदेश में शुरू कर दिया गया है और वर्तमान में आंध्र प्रदेश में 11,941 एएनएम अनमोल का उपयोग कर रही हैं। इसके अलावा इसे मध्य प्रदेश, उड़ीसा और तेलंगाना में भी शुरू किया जा रहा है।
· मेरा अस्पताल
o स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सरकारी और पैनलबद्ध निजी अस्पतालों में क्रियान्वयन के लिए एक आईसीटी-आधारित रोगी संतुष्टि व्यवस्था (पीएसएस) बनाई है। इस एप्लीकेशन का नाम 'मेरा अस्पताल' (अंग्रेजी में 'माई हॉस्पिटल') रखा गया है। रोगियों की प्रतिक्रियाएं जमा करने के लिए वेब पोर्टल, मोबाइल एप्लीकेशन, एसएमएस और इंटरैक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स व्यवस्था (आईवीआरएस) जैसे बहु-प्रणाली रवैये को अपनाया जा रहा है। ये एप्लीकेशन खुद ही रोगी से संपर्क करती है और सरकारी अस्पताल में उसके अनुभव के बारे में जानकारी इकट्ठा करती है।
o पहले चरण में 1000 से ज्यादा अस्पतालों को कवर किया जा चुका है और अब तक 14 लाख से ज्यादा प्रतिक्रियाएं प्राप्त की जा चुकी हैं।
· ऑनलाइन पंजीकरण व्यवस्था (ओआरएस) एक ढांचा है जो ऑनलाइन पंजीयन करने, फीस के भुगतान, चिकित्सक से समय लेने, ऑनलाइन डायग्नोस्टिक रिपोर्ट पाने, ऑनलाइन ख़ून की उपलब्धता के बारे में पूछताछ करने आदि के लिए विभिन्न अस्पतालों को जोड़ती है। अब तक एम्स - नई दिल्ली व अन्य एम्स (जोधपुर, बिहार, ऋषिकेश, भुवनेश्वर, रायपुर, भोपाल), आरएमएल अस्पताल, एसआईसी, सफदरजंग अस्पताल, निमहंस, अगरतला सरकारी मे़डिकल कॉलेज, जिपमेर आदि केंद्रीय अस्पतालों समेत 124 अस्पतालों को ऑनलाइन पंजीकरण व्यवस्था से जोड़ा जा चुका है। अब तक 13 लाख अपॉइंटमेंट का भुगतान ऑनलाइन किया जा चुका है।
· मोबाइल एप्पः विभिन्न मोबाइल एप्लीकेशन जो शुरू की गई हैं वो इस प्रकार हैं
o इंद्रधनुष (टीकाकरण की जानकारी के लिए)
o इंडिया फाइट्स डेंगू (उपयोगकर्ता को डेंगू के लक्षणों का पता करने, नजदीकी अस्पताल / ब्लड बैंक की सूचना पाने और प्रतिक्रिया साझा करने में सक्षम करती है)
o एनएचपी स्वस्थ भारत (रोग, जीवनशैली, प्राथमिक चिकित्सा पर सूचना देती है)
o एनएचपी निर्देशिका सेवा मोबाइल एप्प (भारत भर में अस्पतालों और ब्लड बैंकों से संबंधित सूचना प्रदान करती है)
o नो मोर टेंशन मोबाइल एप्प (तनाव प्रबंधन और उससे जुड़े पहलुओं पर सूचना)
o प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) मोबाइल एप्प (राज्यों में स्वयंसेवक चिकित्सकों द्वारा गर्भावस्था की देखभाल)
टेली-मेडिसिन
राष्ट्रीय मेडिकल कॉलेज नेटवर्क (एनएमसीएन) को ई-शिक्षा और ई-स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति के मकसद से स्थापित किया जा रहा है जहां राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (तेज गति की बैंडविड्थ कनेक्टिविटी) पर निर्भरता के साथ 50 सरकारी मेडिकल कॉलेजों को परस्पर जोड़ा जा रहा है। लखनऊ के एसजीपीजीआई में राष्ट्रीय संसाधन केंद्र को स्थापित किया गया है।
- राष्ट्रीय टेली-मेडिसिन नेटवर्क (एनटीएन): इसमें राज्यों में मौजूदा सरकारी स्वास्थ्य सेवा इकाइयों (एमसी, डीएच, एसडीएच, पीएचसी, सीएचसी) का उन्नयन करते हुए दूर दराज के क्षेत्रों में टेली-मेडिसिन सेवाएं मुहैया कराने की कल्पना की गई है। मौजूदा वित्त वर्ष में 4 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों (पूर्व में 7) को वित्तीय सहायता प्रदान की गई है ताकि एनटीएन स्थापना के द्वारा टेली-मेडिसिन सेवाएं मुहैया करवाई जा सकें।
- तीर्थ स्थानों पर टेली-मेडिसिन बिंदु: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के प्रधानमंत्री के सपने के साथ चलते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और अंतरिक्ष विभाग संयुक्त रूप से कदम उठा रहे हैं ताकि चारधाम और अन्य महत्वपूर्ण तीर्थ केंद्रों (अमरनाथ, अयप्पा और केदारनाथ) समेत विभिन्न दुर्गम भौगोलिक जगहों पर अंतरिक्ष संचार आधारित टेली-मेडिसिन बिंदु स्थापित किए जा सकें। इससे इन जगहों पर आने वाले तीर्थयात्रियों की स्वास्थ्य जागरूकता, गैर-संचारी रोगों की जांच और उन्हें विशेष परामर्श सुविधा प्रदान की जा सकेगी। अब तक अमरनाथ गुफा - जम्मू एवं कश्मीर, अयप्पा मंदिर - केरल, द्वारकाधीश मंदिर - गुजरात, काशी विश्वनाथ मंदिर - उत्तर प्रदेश और विंध्याचल देवी मंदिर - उत्तर प्रदेश में टेली-मेडिसिन बिंदु बनाए जा चुके हैं।
- टेली-साक्ष्य: टेली-साक्ष्य एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से चिकित्सक व्यक्तिगत रूप से अदालत जाए बगैर वीडियो कॉन्फ्रेंस सुविधा का उपयोग करते हुए न्यायिक प्रक्रिया में अपनी गवाही दे सकते हैं। इस सेवा को माननीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री द्वारा 30.12.2015 को चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर में शुरू किया गया था। रिपोर्टों के मुताबिक अब तक 4000 से ज्यादा टेली-साक्ष्य सफलतापूर्वक संचालित करवाए जा चुके हैं। इसके सफल क्रियान्वयन के बाद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याणं मंत्रालय ने इस सेवा को हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में शुरू करने का फैसला लिया।
राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी)
मलेरिया
· साल 2030 तक मलेरिया को खत्म करने की विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक पुकार के जवाब में भारत 2030 तक मलेरिया उन्मूलन करने के लिए प्रतिबद्ध है।
· उपरोक्त के जवाब में भारत ने मलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय रूपरेखा का मसौदा बनाया और फरवरी 2016 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री द्वारा उसे शुरू किया गया। उसके बाद मलेरिया उन्मूलन (2017-2022) के लिए एक राष्ट्रीय रणनीतिक योजना का मसौदा बनाया गया। ये दोनों दस्तावेज 2027 तक मलेरिया उन्मूलन के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ साथ समयबद्ध रणनीतियां भी देते हैं।
· मलेरिया उन्मूलन की पुकार के बाद भारत ने मलेरिया निदान का दायरा बढ़ाते हुए अपने हस्तक्षेप को बढ़ा दिया। इस निदान में रैपिड डायग्नोस्टिक किट्स (पीवी और पीएफ दोनों के लिए), प्रभावी मलेरिया-रोधी जैसे आर्टिमिसिनिन संयोजनों का उपयोग और लंबे समय तक चलने वाले कीटनाशक जाल (एलएलआईएन) का प्रावधान शामिल है - जिनमें 5 करोड़ अब तक पूर्वोत्तर राज्यों और उड़ीसा में वितरित किए जा चुके हैं (छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड के अधिक रोग प्रभावित क्षेत्रों में भी ऐसा किया जाएगा)।
· मलेरिया के मामलों में कमी जो 2017 के जहां 8,05,804 थे वहीं नवंबर 2018 तक 3,75,845 (53.36 प्रतिशत की कमी) रह गए।
· पीएफ मामलों में कमी जो 2017 में 5,09,229 थे, वहीं नवंबर 2018 तक 1,83,889 (63.89 प्रतिशत की कमी) रह गए।
डेंगू और चिकनगुनिया
· रोग निगरानी ऐसे पहचाने गए सेंटिनल सर्विलेंस अस्पतालों (एसएसएच) के जरिए की जाती है जहां प्रयोगशाला सुविधा का नेटवर्क पूरे देश में हो और जो शीर्ष रेफरल प्रयोगशालाओं (एआरएल) से जुड़ी हुई हो, साथ ही उसमें बैकअप समर्थन के लिए अत्याधुनिक निदान सुविधा हो।
· इन सेंटीनल सर्विलेंस अस्पतालों और शीर्ष रेफरल प्रयोगशालाओं की संख्या को बढ़ाकर क्रमशः 646 और 16 किया गया है।
· राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के मुताबिक मामला प्रबंधन पर निदानविदों के प्रशिक्षण की वजह से 2008 के बाद से डेंगू के मामलों में मृत्यु दर (प्रति 100 मामलों में मृत्यु) को 1.0 प्रतिशत (राष्ट्रीय लक्ष्य) से नीचे बनाकर रखा गया है।
· पूरे देश में 16 मई को राष्ट्रीय डेंगू दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
· 2017 के मुकाबले डेंगू मामलों में 36 प्रतिशत और मौतों में 33 प्रतिशत की कमी आई है।
· 2017 के मुकाबले 2018 में चिकनगुनिया के मामलों में 22 प्रतिशत की कमी आई है।
जापानी एनसेफेलाइटिस (जेई)
· जापानी एनसेफेलाइटिस / एक्यूट एनसेफेलाइटिस सिंड्रोम (जेई/एईएस) की वजह से होने वाली रुग्णता, मृत्यु दर और विकलांगता को घटाने के लिए 'जेई/एईएस की रोकथाम व नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम' का गठन।
· एईएस के मामलों में जेई के परीक्षण के लिए देश में कुल 139 सेंटिनल सर्विलेंस साइट लैब (एसएसएसएच) और 15 शीर्ष रेफरल लैब की पहचान की गई है।
· बच्चों में (1 से 15 वर्ष के) जेई टीकाकरण अभियान को 231 जेई रोग वाले जिलों में से 229 में पूरा कर लिया गया है।
· वयस्क टीकाकरण (15 से 65 वर्ष के) को असम, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में पहचाने गए सभी 31 जिलों में पूरा कर लिया गया है।
· राज्यों से अनुरोध किया गया है कि वे जापानी एनसेफेलाइटिस को अधिसूचित किया जाने वाला रोग बनाएं।
कालाजार
· सभी चार स्थानिक राज्यों में कालाजार एक अधिसूचित किया जाने वाला रोग है।
· कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम ने महत्वपूर्ण प्रगति की है। 2013 में इसके 13,869 मामले थे जो 70.6 प्रतिशत की कमी के साथ नवंबर 2018 में 4,073 रह गए।
· कालाजार से होने वाली मौतों में 100 प्रतिशत की कमी आई है क्योंकि 2014 में जहां इससे 11 मौतें हुईं वहीं 2017 में ये संख्या शून्य थी। 2018 में भी नवंबर तक इससे कोई मौत नहीं हुई।
· इसके मामलों की पहचान समयपूर्व करने और उनके पूर्ण उपचार को सुनिश्चित करने के लिए रोग निगरानी गतिविधियों को तेज किया जा रहा है।
· विसरल लीशमनायासिस (कालाजार) के मामलों के लिए लिपोसोमल एम्बिजोम के साथ एक दिन एक खुराक उपचार उपलब्ध है जिसने उपचार अनुपालन और परिणाम में सुधार किया है।
· इस रोग के सभी क्षेत्रों में घर के अंदर कीटनाशक छिड़काव के लिए सिंथेटिक पाइरेथ्रॉयड का उपयोग किया जाता है।
· भारत सरकार कालाजार के मामलों में 500 रुपये का मजदूरी क्षति मुआवजा प्रदान करती है और पोस्ट कालाजार डर्मल लीशमनायासिस के मामलों में संपूर्ण उपचार के लिए 4000 रुपये देती है।
· कालाजार मामले में पूर्ण उपचार सुनिश्चित करवाने के लिए आशा कर्मियों को 500 रुपये का प्रोत्साहन, सामुदायिक जागरूकता पैदा करने, सामुदायिक लामबंदी करने और घर के अंदर कीटनाशक छिड़काव (आईआरएस) के दौरान दो दौरे करने के लिए 200 रुपये दिए जाते हैं।
लिम्फैटिक फिलराइसिस
· लिम्फैटिक फिलराइसिस रोग पाए जाने वाले 256 जिलों में से 99 जिले 2018 तक ट्रांसमिशन आकलन सर्वेक्षण (टीएएस) और मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) में खरे उतरे हैं जबकि इस तुलना में 2013 में सिर्फ 5 जिलों ने टीएएस को पास किया था।
· एक नई हस्तक्षेप वाली तिहरी दवा थैरेपी आईवरमेक्टिन+डीईसी+एल्बेंडेज़ॉल (आईडीए) को मंजूर किया गया है और इसे अरवल (बिहार), सिमडेगा (झारखंड), नागपुर (महाराष्ट्र), यादगीर (कर्नाटक) और वाराणसी (उत्तर प्रदेश) इन पांच जिलों में क्रियान्वित किया जाना है।
· अरवल जिले में आईडीए को सफलतापूर्वक शुरू किया जा चुका है।
चिकित्सा शिक्षा
· देश के सभी मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के लिए एक सामान्य राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा 'राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा (एनईईटी/नीट)' को अनिवार्य कर दिया गया है। भारतीय छात्र विदेश से भी चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। विदेश से प्राथमिक चिकित्सा योग्यता (एमबीबीएस) पाने के बाद भारत में प्रैक्टिस हेतु पंजीकरण करने के लिए उन्हें विदेशी चिकित्सा स्नातकों की परीक्षा (एफएमजीई) नाम की स्क्रीनिंग परीक्षा में उत्तीर्ण होना होगा।
· स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने स्क्रीनिंग परीक्षा नियम, 2002 में संशोधन करने के भारतीय चिकित्सा परिषद् (एमसीआई) के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है जिससे विदेशी चिकित्सा कोर्स की पढ़ाई करने के लिए नीट में उत्तीर्ण होना अनिवार्य हो जाएगा। भारतीय नागरिक या विदेश में रह रहे जो भारतीय नागरिक भारत से बाहर किसी भी चिकित्सा संस्थान से प्राथमिक चिकित्सा योग्यता पाने का इरादा रखते हैं उन्हें मई 2018 या उसके बाद से विदेश में एमबीबीएस कोर्ट में दाखिले के लिए अनिवार्य रूप से नीट परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ेगा। ऐसे व्यक्तियों के लिए नीट परीक्षा का परिणाम योग्यता प्रमाणपत्र के तौर पर मान्य होगा, इसके लिए ये जरूरी है कि ऐसे व्यक्ति दाखिले के लिए स्नातक चिकित्सा शिक्षा नियम, 1997 में बताए गए पात्रता मापदंड को पूरा करते हों।
अन्य उपलब्धियां इस प्रकार हैं:
o मौजूदा राज्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों का उन्नयनः 2615 एमबीबीएस सीटों वाले कुल 36 मेडिकल कॉलेजों को मंजूर किया गया है। अब तक 36 मेडिकल कॉलेजों के लिए 1471.30 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।
o मौजूदा जिला / रेफरल अस्पतालों से नए मेडिकल कॉलेजों को जोड़ा गयाः सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों से समझौता ज्ञापन प्राप्त किए गए, अब तक 57 प्रस्ताव मंजूर किए गए, नवंबर 2018तक 57 मेडिकल कॉलेजों के लिए 7125.45 करोड़ रुपये जारी किए गए। मंजूर किए गए 57 कॉलेजों में से 22 क्रियाशील हो चुके हैं।
o नवंबर 2018 तक कुल पीजी सीटों की संख्या 37630 (4454 आईएनआई समेत) और एमडी/एमएस के बराबर मानी जाने वाली डीएनबी सीटों की संख्या 30 अक्टूबर 2018 तक 6737 । नवंबर 2018 तक कुल यूजी (एमबीबीएस) सीटों की संख्या 70412 रही।
o भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद् (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार एवं नैतिकता) विनियमावली, 2002 अधिनियम में संशोधन के साथ ये निर्धारित किया गया है कि हर चिकित्सक दवाओं को उनके जेनेरिक नाम के साथ, स्पष्ट पढ़े जा सकने वाले, संभवतः बड़े (कैपिटल) अक्षरों में लिखेगा और ये सुनिश्चित करेगा कि निर्धारित दवा और उसका उपयोग तर्कसंगत हो।
· इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं ताकि इसके उपलब्ध मजबूत मंच के जरिए कम अवधि के स्वास्थ्य सेवा कोर्स बढ़ाए जा सकें। इस समझौता ज्ञापन के अंतर्गत स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए विशेष तौर पर तैयार किए गए 10 कोर्स के पाठ्यक्रम 2025 तक 14 लाख से ज्यादा प्रशिक्षित मानवशक्ति मुहैया करवाएंगे।
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई)
इस योजना में देश के अनछुए क्षेत्रों में चिकित्सा शिक्षा, अनुसंधान और नैदानिक देखभाल में तृतीयक स्वास्थ्य सेवा क्षमता के निर्माण की परिकल्पना की गई है। इसका उद्देश्य सस्ती / विश्वसनीय तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलनों को सुधारना और देश में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा के लिए सुविधाएं बढ़ाना हैं। इस योजना के दो घटक हैं - देश के अनछुए इलाकों में एम्स जैसे नए संस्थानों की स्थापना करना और मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेजों का उन्नयन। प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के अंतर्गत अब तक ये प्रगति हुई हैः
- छह नए एम्स (एम्स – पटना, एम्स - ऋषिकेश, एम्स - जोधपुर, एम्स - भोपाल, एम्स - भुवनेश्वर और एम्स - रायपुर) के लिए जो ठेका व्यवस्था पटरी से उतर गई थी उसे फिर से पटरी पर लाया गया है और निर्माण कार्य को तेज किया गया है। जुलाई 2014 के बाद से 3000 अस्पताल बेड छह कार्यशील एम्स (पिछले एक साल में जोड़े गए 1000 बेड समेत) में जोड़े गए। 2017-18 में झारखंड और गुजरात में 2 नए एम्स की घोषणा की गई।
- छह एम्स में सेवाओं के समूह का विस्तार किया गया है और वर्तमान में हर महीने करीब 3000 प्रमुख सर्जरियां की जा रही हैं।
- एम्स रायबरेली में ओपीडी सेवाएं शुरू हुईं।
- जम्मू, कश्मीर और गुजरात में 3 एम्स के लिए जगह तय कर ली गई और महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल, असम, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, तेलंगाना और तमिलनाडु में एम्स के लिए मंत्रिमंडल की मंजूरी प्राप्त कर ली गई।
- एम्स मंगलागिरी और नागपुर में स्नातक-पूर्व एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू, प्रत्येक में 50 छात्र-छात्राओं का पहला बैच शामिल।
- 10 सरकारी मेडिकल कॉलेजों (जीएमसी) में सुपर स्पेशिएलिटी ब्लॉक और चार कॉलेजों में ट्रॉमा सेंटर का निर्माण पूरा।
- इस योजना के अंतर्गत चरण-1 और 2 में 01 जीएमसी के लिए और चरण-3 में 39 जीएमसी के लिए सुपर स्पेशिएलिटी ब्लॉक का निर्माण कार्य प्रगति पर।
- चरण-4 और 5 (ए) में उन्नयन के लिए 15 सरकारी मेडिकल कॉलेजों को लिया गया जिनमें से 11 जीएमसी उन्नयन परियोजनाओं का काम दिया गया।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एकीकृत चिकित्सा और अनुसंधान केंद्र (सीआईएमआर)
भारत की प्राचीन और पारंपरिक चिकित्सा प्रथाओं के साथ समकालीन चिकित्सा के समागम की खोज में एम्स नई दिल्ली की अग्रणी पहल है 'एकीकृत चिकित्सा एवं अनुसंधान केंद्र' जिसकी कल्पना एक अत्याधुनिक अनुसंधान केंद्र के तौर पर की गई है। इलाज के हमारे पारंपरिक तरीकों की प्रभावशीलता को स्थापित करने के लिए कठोर अनुसंधान के एक आदर्श मंच के रूप में इसे तैयार किया गया है।
वैश्विक उपस्थिति
· विश्व स्वास्थ्य सभा 2017, संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य सभा, ब्रिक्स 2018 और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा पर अस्ताना-वैश्विक सम्मेलन 2018 जैसे वैश्विक आयोजनों में भारत नियमित हिस्सेदार और प्रमुख वक्ता है।
· भारत पीएमएनसीएच (मातृ, नवजात शिशु और बाल स्वास्थ्य के लिए भागीदारी) बोर्ड की कार्यकारी समिति का सदस्य होने के साथ एक उच्च स्तरीय सलाहकार समूह का अंतरिम चेयरमैन भी है। भारत ने महिलाओं, बच्चों और किशोरों के लिए एक नवीनीकृत वैश्विक रणनीति के विकास में नेतृत्वकारी भूमिका अदा की है और इस वैश्विक रणनीति में किशोर स्वास्थ्य को शामिल करवाने में एक प्रमुख ताकत रहा है। पीएमएनसीएच ग्लोबल पार्टनर्स फोरम 2018 की मेजबानी 10 से 14 दिसंबर 2018 को दिल्ली में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने की थी।
· भारत और मेसेडोनिया ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस समझौता ज्ञापन में सहयोग के निम्नलिखित क्षेत्र शामिल हैं:
- स्वास्थ्य में क्षमता निर्माण और मानव संसाधन का अल्पकालीन प्रशिक्षण;
- मेडिकल डॉक्टरों, अधिकारियों, अन्य चिकित्सा पेशेवरों और विशेषज्ञों का आदान-प्रदान और प्रशिक्षण;
- मानव संसाधन के विकास और स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं की स्थापना में सहायता;
- सहयोग का कोई अन्य क्षेत्र जो पारस्परिक रूप से तय किया गया हो।
· भारत और जॉर्डन ने स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस समझौता ज्ञापन में सहयोग के निम्नलिखित क्षेत्र शामिल हैं:
- यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज;
- स्वास्थ्य प्रणाली शासन;
- स्वास्थ्य में सेवाएं और सूचना प्रौद्योगिकी;
- स्वास्थ्य अनुसंधान;
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य सांख्यिकी;
- स्वास्थ्य वित्त और स्वास्थ्य अर्थव्यवस्था;
- क्रॉनिक रोग नियंत्रण;
- तंबाकू नियंत्रण;
- टुबरक्यूलोसिस यानी टीबी की दवा, उपचार और निदान;
- दवाओं और चिकित्सा उपकरणों का नियमन;
- और, सहयोग का कोई अन्य क्षेत्र जो पारस्परिक रूप से तय किया गया हो।
· ईरान के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान 17 फरवरी 2018 को स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग के लिए भारत और ईरान ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस समझौता ज्ञापन में सहयोग के निम्नलिखित क्षेत्र शामिल हैं:
- मेडिकल डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों के प्रशिक्षण में आदान-प्रदान के जरिए अनुभव;
- मानव संसाधन के विकास और स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं की स्थापना में सहायता;
- दवाओं, चिकित्सा उपकरणों और सौंदर्य प्रसाधन का नियमन और सूचना का आदान-प्रदान;
- चिकित्सा अनुसंधान, नई प्रौद्योगिकियों और ज्ञान आधारित पहलों के क्षेत्र में सहयोग
- सार्वजनिक स्वास्थ्य, सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य में सहयोग
- और, सहयोग का कोई अन्य क्षेत्र जो पारस्परिक रूप से तय किया गया हो।
· बेहतर स्वास्थ्य परिणामों को प्राप्त करने में भारत और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के बीच सहयोगात्मक कार्यों को और अधिक मजबूत करने के लिए डब्ल्यूएचओ और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
· केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ब्रिक्स देशों की चिकित्सा नियामक एजेंसियों के बीच मानव उपयोग के लिए चिकित्सा उत्पादों के नियमन के क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौता ज्ञापन को मंजूरी दी। ये समझौता ज्ञापन इन पक्षों के बीच नियामक पहलुओं के बारे में बेहतर समझ की राह बनाएगा और इससे ब्रिक्स देशों को किया जाने वाला भारत के चिकित्सा उत्पादों का निर्यात बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
· केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) और अफगानिस्तान के कृषि, सिंचाई और पशुधन मंत्रालय (एमएआईएल) के बीच खाद्य सुरक्षा और संबंधित क्षेत्रों में सहयोग के लिए एक सहयोग व्यवस्था पर हस्ताक्षर को मंजूरी दी। इसमें सहयोग के क्षेत्र इस प्रकार हैं:
- संचार और सूचना के आदान प्रदान के लिए एक तंत्र की स्थापना;
- रुचि के पहचाने गए विषयों पर तकनीकी आदान प्रदान को सुगम करना, खासकर आयात प्रक्रियाओं, गुणवत्ता नियंत्रण परिचालन, नमूनाकरण, परीक्षण, पैकेजिंग और लेबलिंग के;
- संयुक्त संगोष्ठियों, कार्यशालाओं, यात्राओं, व्याख्यान और प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि का आयोजन/सुविधा;
- प्रतिभागियों की जिम्मेदारियों के भीतर उनकी रुचि के अन्य क्षेत्र जिन्हें वे पारस्परिक रूप से तय कर सकते हैं;
- ये सहयोग व्यवस्था खाद्य सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को सुधारने के लिए एक दूसरे की सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं से सीखने, क्षमता निर्माण व प्रशिक्षण और सूचना साझा करने को सुगम बनाएगी।
· केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत और डेनमार्क के बीच खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग के संबंध में समझौता ज्ञापन को कार्योत्तर (एक्स-पोस्ट फैक्टो) मंजूरी दी। इस समझौता ज्ञापन पर 16 अप्रैल 2018को हस्ताक्षर किए गए। ये समझौता ज्ञापन द्विपक्षीय संबंधों, पारस्परिक समझ और भरोसे को गहरा करने में मदद करेगा जिससे अंततः खाद्य सुरक्षा की दिशा में अपने क्षमता निर्माण प्रयासों में दोनों पक्ष मजबूत होंगे। इससे दोनों देशों में खाद्य सुरक्षा के क्षेत्रों में सर्वोत्तम प्रथाओं को समझने और खाद्य सुरक्षा से संबंधित विषयों के तेजी से समाधान निकालने को प्रोत्साहन मिलेगा। महत्वपूर्ण वस्तुओं के खाद्य व्यापार को सुगम बनाने और सर्वोत्तम प्रथाओं तक पहुंच हासिल होने से खाद्य सुरक्षा मानक को सुधारने में मदद मिलेगी।
· केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत और स्वाजीलैंड के बीच स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में समझौता ज्ञापन के लिए कार्योत्तर (एक्स-पोस्ट फैक्टो) मंजूरी दी। इस समझौता ज्ञापन पर 9 अप्रैल 2018 को हस्ताक्षर किए गए। ये समझौता ज्ञापन निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग करता हैः
- औषधि और दवा उत्पाद;
- चिकित्सा उपभोज्य उत्पाद;
- चिकित्सा उपकरण;
- सार्वजनिक स्वास्थ्य;
- संचारी रोग नियंत्रण और निगरानी;
- स्वास्थ्य पर्यटन; और
- पारस्परिक रुचि का कोई और क्षेत्र।
· भारत और बहरीन ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस समझौता ज्ञापन में निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग किया गया हैः
- प्रकाशनों और अनुसंधान परिणामों समेत सूचना का आदान-प्रदान;
- सरकारी अधिकारियों, अकादमिक कर्मचारियों, अध्येताओं, शिक्षकों, विशेषज्ञों और छात्रों की यात्राओं का आदान-प्रदान;
- कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कोर्स में हिस्सेदारी;
- निजी क्षेत्र और अकादमिक स्तर दोनों में स्वास्थ्य और चिकित्सा अनुसंधान गतिविधियों को प्रोत्साहन; और
- पारस्परिक रूप से तय किया गया किसी भी अन्य प्रकार का सहयोग।
· मार्च 2018 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) और फ्रांस के राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (इंस्टिट्यूट नेशनेल द ला सेनीतीत द ला रिशेर्च मेडिकेल - आईएनएसईआरएम) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। ये समझौता ज्ञापन पारस्परिक रुचि के क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी सहयोग के ढांचे के अंदर आईसीएमआर और आईएनएसईआरएम के संबंधों को और मजबूत करेगा। दोनों पक्षों की वैज्ञानिक उत्कृष्टता विशेषीकृत क्षेत्रों में स्वास्थ्य अनुसंधान पर सफलतापूर्वक काम करने में मदद करेगी। इस समझौता ज्ञापन का लक्ष्य चिकित्सा, जीवन विज्ञानों और स्वास्थ्य अनुसंधान के क्षेत्रों में आम रुचि के क्षेत्रों में सहयोग करने पर है। दोनों पक्षों की वैज्ञानिक उत्कृष्टता के आधार पर दोनों पक्षों ने इन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने पर अपनी सहमति दी हैः
- मधुमेह और मेटाबॉलिक विकार;
- जीन संपादन तकनीकों के नैतिकता व नियामक मुद्दों पर ध्यान के साथ बायो-एथिक्स;
- दुर्लभ रोग; और
- दोनों पक्षों के बीच चर्चा के बाद पारस्परिक रुचि के किसी भी अन्य क्षेत्र को तय किया जा सकता है।
· स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने नॉर्वे सरकार के विदेश मंत्रालय के साथ 2018 से 2020 तक तीन वर्षों के लिए नॉर्वे भारत भागीदारी पहल (एनआईपीआई) के माध्यम से स्वास्थ्य क्षेत्र के अंदर सहयोग बढ़ाने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। भारत और नॉर्वे के बीच ये सहयोग सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में रेखांकित किए गए भारत सरकार के विकास लक्ष्यों के अनुरूप है। ये सहयोग समान रुचि के वैश्विक स्वास्थ्य मसलों पर भी ध्यान केंद्रित करेगा। इस भागीदारी में मातृ, नवजात, बाल स्वास्थ्य से संबंधित क्षेत्रों को भी शामिल किया जाएगा और ये एनआईपीआई के चरण-1 और 2 के अनुभवों पर निर्मित की जाएगी। ये सहयोग अभिनव, उत्प्रेरक और रणनीतिक समर्थन पर ध्यान देना जारी रखेगा और भारत में मातृ और बाल अस्तित्व को बढ़ाने के लिए भारत सरकार की तीव्रता योजना को समर्थन देगा।
· भारत के केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और इंडोनेशिया की राष्ट्रीय दवा एवं खाद्य नियंत्रण एजेंसी (बीपीओएम) के बीच दवा उत्पादों, दवा पदार्थों, जैविक उत्पादों और सौंदर्य प्रसाधन नियामक कार्यों के क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। जकार्ता में 29 मई 2018 को इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौता ज्ञापन के एक-दूसरे की नियामक जरूरतों के बारे में बेहतर समझ निर्मित करने का अनुमान है जो दोनों देशों के लिए लाभकारी होगा। यह भारत के दवा उत्पादों के निर्यात को सुविधाजनक बना सकता है और समानता, पारस्परिकता और आपसी लाभ के आधार पर दवा उत्पादों के नियमन से संबंधित मामलों में दोनों देशों के बीच सूचना के आदान प्रदान और उपयोगी सहयोग के लिए एक ढांचा भी स्थापित करेगा। इसके अलावा यह दोनों देशों के नियामक अधिकारियों के बीच बेहतर समझ को विकसित करेगा।
· भारत और उज़्बेकिस्तान ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस समझौता ज्ञापन में सहयोग के निम्नलिखित क्षेत्रों पर काम किया जाएगा:
- चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में व्यापारिक सहयोग के विकास के लिए अवसरों का विस्तार करना जिसमें दवा उत्पादों, और चिकित्सा शिक्षा के संस्थानों की अनुसंधान प्रयोगशालाएं और शिक्षा के उपकरण भी शामिल हैं;
- प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं की मजबूती और स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं की स्थापना;
- चिकित्सा और स्वास्थ्य अनुसंधान विकास, साथ ही साथ इन क्षेत्रों में अनुभव का आदान प्रदान;
- टेली-मेडिसिन और इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य सूचना व्यवस्थाओं के क्षेत्र में अनुभव और प्रौद्योगिकियों का आदान प्रदान
- मातृ एवं बाल स्वास्थ्य संरक्षण;
- संचारी और गैर-संचारी रोग नियंत्रण और महामारी विज्ञान निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी और रणनीतियों में विकास और सुधार;
- दवा और औषधि उत्पादों का नियमन;
- पारस्परिक रुचि वाले सहयोग के अन्य क्षेत्र।
~ भारत और जापान के बीच 29 अक्टूबर 2018 को स्वास्थ्य सेवा और आरोग्यता के क्षेत्र में सहयोग ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इस सहयोग ज्ञापन में सहयोग के निम्नलिखित क्षेत्र रखे गए:
क. विशिष्ट परियोजनाओं का प्रोत्साहनः
- एक्यूट मेडिसिन, सर्जरी और ट्रॉमा देखभाल के क्षेत्र में मानव संसाधन विकसित करना, जिसमें हर क्षेत्र में योग्यता के नए इलाकों पर ध्यान भी शामिल है;
- क्लिनिकल परीक्षणों के लिए एक अत्याधुनिक संयुक्त परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना;
- देखभाल कर्मियों के प्रशिक्षु आवेदकों के लिए एक जापानी भाषा शिक्षा केंद्र की स्थापना;
- दोनों देशों में तृतीयक देखभाल केंद्रों के बीच सहभागिता स्थापना, जैसे एयूएमएस; और
- देखभाल प्रदाताओं के तकनीकी प्रशिक्षु प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए बुजुर्गों की देखभाल के बारे में प्री-लेक्चर प्रदान करने हेतु संगठनों को भेजने को समर्थन करना, जिसके लिए जापान से प्रमाणपत्र प्राप्त देखभाल कर्मियों को भेजना और पाठ्यक्रम व किताबें प्रदान करना ताकि जापान को प्रशिक्षित देखभाल-प्रदाता मुहैया किए जा सकें।
ख. बुनियादी ढांचे का विकासः
- एक केंद्रीकृत स्वास्थ्य सेवा वितरण केंद्र की स्थापना;
- स्वच्छता के वातावरण को बेहतर करने के लिए साफ-सफाई वाले और सस्ते शौचालयों तक पहुंच को बढ़ाना, जैसे किसी भी जगह काम कर सकने वाले शौचालय;
- चिकित्सा में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोगी डाटा विश्लेषण पर संस्थागत सहयोग को प्रोत्साहित करना;
- भारत में भारत-जापान नवाचारों की धुरी बनाना;
- भारत में उच्च गुणवत्ता की बीएसएल 3 लैब सुविधाएं स्थापित करना; और
- 'मेक इन इंडिया' के अंतर्गत भारत में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने पर विशेष ध्यान के साथ पॉइंट ऑफ केयर डायग्नोस्टिक समेत उच्च गुणवत्ता के चिकित्सा उपकरणों को प्राप्त करने पर सहयोग।
ग. मानव विकासः
- 'मी-बायो' और आयुर्वेद जैसे स्वास्थ्य स्वयं-प्रबंधन के लिए मानव संसाधन, अनुसंधान और परियोजना प्रोत्साहन का विकास; और
- भारत-जापान सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवा मंच को आयोजित करना।
घ. आयुष्मान भारत कार्यक्रम और अन्य पहलों और एएचडब्ल्यूएम के बीच सहक्रियता को प्रोत्साहित करने के लिए पारस्परिक रूप से तय किए गए कोई भी अन्य क्षेत्र, और
ड. इस सहयोग ज्ञापन में सोचे गए सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए पारस्परिक रूप से तय किए गए कोई भी अन्य क्षेत्र।
· स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को 2017 से 19 तक सीओपी ब्यूरो (तंबाकू नियंत्रण पर डब्ल्यूएचओ फ्रेमवर्क कन्वेंशन (एफसीटीसी) के लिए पार्टियों का सम्मेलन) के अध्यक्ष के तौर पर सेवाएं देने के लिए चुना गया है।
· भारत 'जनसंख्या एवं विकास में भागीदार' (पीपीडी) का संस्थापक सदस्य है - जो कि एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसे 1994 में जनसंख्या एवं विकास पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीपीडी) के दौरान गठित किया गया था ताकि प्रजनन स्वास्थ्य, जनसंख्या और विकास के क्षेत्र में दक्षिण-दक्षिण सहयोग को प्रोत्साहित किया जा सके। भारत वर्तमान में पीपीडी बोर्ड का उपाध्यक्ष है।
· स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एएमआर (एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध) पर भारत के नेतृत्व को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है और इस साल के शुरू में एएमआर का मुकाबला करने के लिए एक संशोधित व मजबूत राष्ट्रीय कार्य योजना जारी की जा चुकी है।
आरकेमीणा/एएम/जीबी
(Release ID: 1561123)
Visitor Counter : 993