इस्‍पात मंत्रालय

वर्षांत समीक्षा 2018 : इस्पात मंत्रालय


इस्पात मंत्रालय की पहल, मेक इन स्टील – मेक इन इंडिया

#माईलवस्टीलआइडिया, इस्पात के उपयोग को लोकप्रिय बनाने के लिए

2017-18 में इस्पात सीपीएसई का कारोबार
 

Posted On: 18 DEC 2018 5:26PM by PIB Delhi

   राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 और घरेलू रूप से निर्मित आयरन एंड स्टील उत्पाद नीति 2017 के द्वारा इस्पात के उत्पादन और खपत दोनों में भारी मात्रा में वृद्धि हुई है। इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत 2013-14 में 59 किलोग्राम से बढ़कर 2017-18 में 69 किलोग्राम हो गई है। 2017-18 में भारत ने 103 मिलियन टन स्टील का उत्पादन किया है और वह जल्द ही वर्ष 2018 में दुनिया में स्टील का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन जाएगा। इस्पात उत्पादन की क्षमता 2012-13 में 97 मिलियन टन से बढ़कर 2017-18 में 138 मिलियन टन हो गई है। भारत सरकार का बुनियादी ढांचों के निर्माण पर जोर और प्रतिबद्धता, मेक-इन-इंडिया और स्मार्ट सिटी अभियान से इस्पात का खपत प्रभावशाली रूप से बढ़ा है। 50 प्रतिशत से ज्यादा इस्पात का उत्पादन माध्यम क्षेत्र में है, जिसमें देश में फैले हुए छोटे उत्पादक शामिल हैं, जो कि बड़ी संख्या में लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी मुहैया कराते हैं।

 

इस्पात मंत्रालय, आईएनएसडीएजी द्वारा कम लागत वाले आवास डिजाइनों के माध्यम से तथा पुलों, भूमिगत ऩालियों, आंगनवाड़ी, पंचायत हॉल और सामुदायिक शौचालय जैसी विभिन्न संरचनाओं के माध्यम से ग्रामीण और शहरी विकास को बढ़ावा दे रहा है।

 

इस्पात मंत्रालय ने रेलवे, सड़क परिवहन, ग्रामीण विकास, पर्यावरण और वन, कोयला और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालयों के सहयोग से स्टील के उपयोग में वृद्धि और स्टील परियोजनाओं में तेजी से विकास किया है। 

                                         

 भारतीय रेलवे की पटरियों में इस्पात का उपयोग

इस्पात मंत्रालय ने भारत में इस्पात के खपत को बढ़ाने के लिए MyGov मंच का उपयोग विचारों के स्रोत को इकट्ठा करने के लिए किया।

 

इस्पात क्षेत्र में विचारों को आमंत्रित करने के लिए #माईलवस्टीलआइडिया नामक एक प्रतियोगिता आयोजित की गई।

 

पहला पुरस्कार दिल्ली के सुमित गुप्ता को सौर पैनलों और जैव शौचालयों से युक्त इस्पात पर आधारित कम लागत वाले विस्तार किए जा सकने वाले छोटे घरों के निर्माण के आइडिया के लिए दिया गया।

 

दूसरा पुरस्कार तिरुवनंतपुरम हरीश एस को संलग्न पृथक भंडारण और विज्ञापन के लिए जगह के प्रावधानों के साथ स्टेनलेस स्टील से बने कचरे के डिब्बे के डिजाइन के आइडिया के लिए दिया गया।

 

तीसरा पुरस्कार गुजरात के नडियाद शहर के वसिममलेक को दैनिक जीवन बार-बार खुदाई के कारण में लोगों को हो रही परेशानियों से निजात दिलाने के लिए सड़कों और अपार्टमेंट में स्थायी भूमिगत इस्पात नलिकाओं के इस्तेमाल करने के आइडिया के लिए दिया गया।

 

100 स्मार्ट सिटीज मिशन, सभी के लिए आवास मिशन, कायाकल्प और शहरी रूपांतरण के लिए अटल मिशन और हाई स्पीड बुलेट ट्रेन और मेट्रो ट्रेन जैसे प्रमुख कार्यक्रम हमारे देश में इस्पात के मांग की बढ़त्तरी में बहुत सहयोग देंगे।

 

Shri Chaudhary Birender Singh

                                                     श्री बीरेंद्र सिंह

                                                                                               केंद्रीय इस्पात मंत्री

                                                    

 

स्टील उद्योग निसंदेह रूप से एक प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है जो कि किसी भी देश के आर्थिक विकास में एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

Shri Vishnu Deo Sai

                                         श्री विष्णु देव साईं

                                                                      केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री

 

 

                                                

भारत 2017 में कच्चे इस्पात के उत्पादन में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश था और जनवरी से लेकर अक्टूबर 2018 की अवधि में वह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है।

 

 

तालिका 1: इस्पात उत्पादक प्रमुख देश

(मिलियन टन में)

देश

2013

2014

2015

2016

2017

जनवरी-अक्टूबर 2018

ब्राजील

34.163

33.897

33.256

31.28

34.36

29.2

चीन

822

822.306

803.825

807.61

831.73

782.5

जर्मनी

42.645

42.943

42.676

42.08

43.30

35.6

भारत

81.299

87.292

89.026

95.48

101.46

88.4

इटली

24.093

23.714

22.018

23.37

24.07

20.6

जापान

110.595

110.666

105.134

104.78

104.66

87.2

रूस

69.008

71.461

70.898

70.45

71.49

60.3

दक्षिण कोरिया

66.061

71.543

69.67

68.58

71.03

60.4

तुर्की

34.654

34.035

31.517

33.16

37.52

31.3

अमेरिका

86.878

88.174

78.845

78.48

81.61

71.7

अन्य

278.96

283.42

273.14

271.70

289.25

234.9

कुल

1650.354

1669.45

1620.001

1626.95

1690.48

1502.0

स्रोत: डब्लूएसए, सांख्यिकीय वर्ष पुस्तक 2018

 

 

 

 

 

वर्तमान समय में भारत डायरेक्ट रिड्युसड आयरन (डीआरआई)/ स्पंज आयरन का दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक देश है।

 

तालिका 2: डीआरआई उत्पादक देश

(मिलियन टन में)

देश

2013

2014

2015

2016

2017

जनवरी- अक्टूबर 2018

भारत

22.6

24.5

22.6

27.0

29.5

25.5

ईरान

14.5

14.6

14.5

16.0

19.4

20.6

मैक्सीको

6.1

6.0

5.5

5.3

6.0

5.0

 

मिस्र

3.4

2.9

2.5

2.6

4.7

4.7

संयुक्त अरब अमीरात

3.1

2.4

3.2

3.5

3.6

3.1

कतर

2.4

2.5

2.6

2.5

2.5

2.1

अन्य

27.5

28.4

25.0

21.4

23.0

8.4

कुल

79.6

81.3

76.0

78.3

88.7

69.4

स्रोत: डब्लूएसए, सांख्यिकीय वर्ष पुस्तक 2018

 

 

 

 

देश 2017 में दुनिया में तैयार स्टील का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता रहा है और जल्दी ही इसके दूसरे सबसे बड़े उपभोक्ता बनने की उम्मीद है।

 

 

 

तालिका 3: 2017 में इस्पात का उपयोग करनेवाले 10  प्रमुख देश

(मिलियन टन में)

देश

2013

2014

2015

2016

2017

2018 (f)

2019 (f)

चीन

741.4467

710.768

672.34

681.02

736.83

781

781

अमेरिका

95.7

106.957

96.131

91.861

97.722

99.9

101.2

भारत

73.652

76.05

80.08

83.643

88.68

95.4

102.3

जापान

65.24

67.69

62.95

62.17

64.38

64.5

64.8

दक्षिण कोरिया

51.762

55.521

55.8

57.076

56.402

54.1

54.7

जर्मनी

38.013

39.642

39.265

40.454

41.007

41.2

41.9

रूस

43.31

43.146

39.824

38.647

40.623

41.1

41.2

तुर्की

31.301

30.773

34.381

34.077

36.055

35.2

35.8

मैक्सीको

20.574

23.472

24.956

25.487

26.43

25.9

26.2

इटली

21.904

21.928

24.488

23.733

24.649

25.6

25.9

अन्य

362.8893

374.91

375.036

382.53

384.501

394

406.2

कुल

1545.792

1550.857

1505.251

1520.698

1597.279

1657.9

1681.2

स्रोत: डब्लूएसए, सांख्यिकीय वर्ष पुस्तक 2018, शॉट रेंज आउटलुक 2018

 

 

f - फोरकास्ट

 

 

 

 

 

 

 

भारत में तैयार स्टील की प्रति व्यक्ति खपत 2013 में 60 किलोग्राम से बढ़कर 2017 में 69 किलोग्राम हो गई और 2013-14 में 59 किलोग्राम से बढ़कर 2017-18 में 69 किलोग्राम हो गई।

 

तालिका 4: प्रति व्यक्ति इस्पात उपयोग (उत्पादन, एएसडीयू 000 टन में) - वित्तीय वर्ष के हिसाब से

विवरण

2013-14

2014-15

2015-16

2016-17

2017-18

 

सकल उत्पादन

95577

100681

102904

115910

126855

 प्रत्यक्ष स्टील उपयोग (एएसयू)

74096

76992

81525

84042

90706

% वृद्धि

0.8%

3.9%

5.9%

3.1%

7.9%

जनसंख्या (पर्यावरण सर्वेक्षण 17-18)

125.1

126.7

128.3

129.9

131.6

प्रति व्यक्ति एएसयू (किलो)

59

61

64

65

69

% वृद्धि

-1.7%

3.4%

4.9%

1.6%

6.2%

स्रोत: जेपीसी

 

 

 

 

 

 

2017-18 के दौरान देश में कच्चे इस्पात की क्षमता 137.9 75 मिलियन टन थी जबकि कच्चे इस्पात का उत्पादन 103.131 मिलियन टन तक पहुंच चुका था।

 

तालिका 5: कच्चे इस्पात की क्षमता और उत्पादन

( ‘000 टन में)

वर्ष

कार्य क्षमता

उत्पाद

% उपयोग

2013-14

102260

81694

80%

2014-15

109851

88980

81%

2015-16

121971

89791

74%

2016-17

128277

97936

76%

2017-18

137975

103131

75%

स्रोत: जेपीसी

 

 

 

 

भारत पिछले दो वर्षों से तैयार इस्पात का शुद्ध निर्यातक देश रहा है।

 

तालिका 6: तैयार इस्पात का व्यापार

( '000 टन में)

व्यापार

2012-13

2013-14

2014-15

2015-16

2016-17

2017-18

अप्रैल- अक्टूबर 2018

 

आयात

7925

5450

9320

11712

7227

7481

4720

 

निर्यात

5368

5985

5596

4079

8243

9619

3739

 

स्रोत: जेपीसी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

माध्यम इस्पात क्षेत्र को प्रोत्साहन

 

'मेक इन इंडिया' पहल के अंगर्गत कैपिटल गुड्स निर्माताओं के साथ समझौता ज्ञापन [एमओयू]

 

राष्ट्रीय इस्पात नीति- 2017 की परिकल्पना वर्तमान समय मे देश की स्टील उत्पादन क्षमता 137 मीट्रिक टन को 2030-31 तक बढ़ाकर 300 मिलियन टन (एमटी) करना है।

300 मिलियन टन (एमटी) क्षमता तक पहुंचने के लिए संयंत्र और उपकरणों के आयात की अनुमानित लागत 25 अरब अमेरिकी डॉलर होगी। इसके अलावा, यह अनुमान लगाया गया है कि 300 एमटी क्षमता स्तर तक पहुंचने के लिए, भारत को स्वामित्व और अन्य चीजों के आयात के लिए सालाना 500 मिलियन अमरीकी डालर खर्च करना पड़ेगा।

 

इस्पात मंत्रालय ने कैपिटल गुड्स इन स्टील सेक्टर: मेन्युफैक्चरिंग इन इंडिया पर एक कॉन्क्लेव का आयोजन 23.10.2018 को भुवनेश्वर, उड़ीसामें किया। यह कॉन्क्लेव  इस्पात के क्षेत्र में पूंजीगत वस्तुओं की घरेलू क्षमता, क्षमता निर्माण और पूंजीगत वस्तुओं के निर्माण को बढ़ावा देने की एक पहल है।

 

भारत सरकार के इस विजन को पूरा करने के लिए, सेल ने इस कॉन्क्लेव को दौरान कैपिटल गुड्स निर्माताओं (भेल, एचईसी और मेकॉन) के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए, जिससे कि इस्पात क्षेत्र से संबंधित पूंजीगत वस्तुओं के निर्माण में स्वदेशीकरण को बढ़ावा मिल सके।

 

माध्यम इस्पात उत्पादकों के लिए पुरस्कार योजना

 

इस्पात मंत्रालय ने 2018 में माध्यम इस्पात उत्पादकों द्वारा देश की अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को मान्यता देने के लिए और इन उत्पादकों को दक्षता, गुणवत्ता, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के संचालन में उच्च मानकों को प्राप्ति करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए और नवाचार, अपशिष्ट उपयोग, जीएचजी के उत्सर्जन में कमी इत्यादि को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए एक पुरस्कार योजना की शुरूआत की है।

 

दिनांक 13 सितंबर, 2018 को आयोजित माध्यम इस्पात क्षेत्र कान्क्लेव में वर्ष 2016-17 के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया।

 

घरेलू रूप से निर्मित आयरन और स्टील उत्पादों (डीएमआई एंड एसपी) की नीति

 

मई, 2017 में प्रारंभ किए गए आयरन और स्टील उत्पादों (डीएमआई एंड एसपी) के घरेलू निर्माताओं को वरीयता देने की पॉलिसी से लगभग 8,500 करोड़ रुपये के विदेशी मुद्रा की अनुमानित बचत की गई है।

 

स्टील रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी मिशन ऑफ इंडिया (एसआरटीएमआई)

 

भारत में लौह और इस्पात के क्षेत्र में राष्ट्रीय महत्व की संयुक्त सहयोगी शोध परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एसआरटीएमआई नामक एक प्रगतिशील संस्थागत तंत्र के स्थापना की ओर कदम बढ़ाया है। यह एक उद्योग संचालित प्लेटफॉर्म है और प्रारंभिक समूहों को इस्पात की प्रमुख कंपनियों द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है। एसआरटीएमआई को 14 अक्टूबर 2015 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत किया गया है। लोहे और इस्पात क्षेत्र में अनुसंधान के लिए एसआरटीएमआई सक्रिय रूप से इस्पात कंपनियों, अनुसंधान प्रयोगशालाओं और अकादमिक संस्थाओं के साथ बातचीत कर रहा है।

 

विकास और अनुसंधान के लिए बजट

 

इस्पात मंत्रालय अनुसंधान एवं विकास योजना के अंतर्गत इस्पात क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के प्रमोशन को वित्तपोषित कर रहा है। वर्ष 2018 के दौरान, 43.87 करोड़ रुपये की कुल लागत वाले 10 आरएंडडी परियोजनाओं का अनुमोदन किया गया है, जिसमें सरकारी बजट से 40.79 करोड़ रुपये की सहायता प्रदान की गई है। आरएंडडी की 25 परियोजनाएं प्रगतिशील अवस्था में है। इस्पात मंत्रालय, एमएचआरडी के अंतर्गत आने वाली आईएमपीआरआईटीटी योजना के तहत 11.04 करोड़ रुपये के कुल लागत वाली तीसरी आरएंडडी परियोजनाओं में 50 प्रतिशत (5.52 करोड़ रुपये) का वित्तपोषण कर रहा है।

 

इस्पात विकास कोष के माध्यम से आरएंडडी

 

वर्ष 2018 के दौरान, एसडीएफ की सहायता वाले आरएंडडी योजना के अंतर्गत 9 आरएंडडी परियोजनाओं को चलाया जा रहा था।

 

इस्पात प्रौद्योगिकी में उत्कृष्टत केंद्र

 

इस्पात मंत्रालय मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग में विश्व स्तर की सुविधा और इस्पात क्षेत्र में मानव संसाधन विकास का निर्माण के लिए उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। इस प्रकार की सुविधाएं लोहा और इस्पात क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा दे रही हैं और इस क्षेत्र के लिए कुशल श्रमशक्ति भी पैदा करती है। इस प्रकार के चार ऐसे केंद्र आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी, बीएचयू और आईआईटी मद्रास में स्थापित/ अनुमोदित किए गए हैं।

 

स्टील और स्टील उत्पादों का गुणवत्ता नियंत्रण

 

इस्पात मंत्रालय, बीआईएस प्रमाणन अंक योजना के अंतर्गत उत्पादों को अधिकतम कवरेज देने के साथ अग्रणी मंत्रालय है। देश में 85 प्रतिशत से ज्यादा इस्पातों का उत्पाद अनिवार्य गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों के अंतर्गत आता है। यह आदेश घटिया इस्पात उत्पादों के आयात, बिक्री और वितरण को प्रतिबंधित करता है। यह अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिए भी बेहतर स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों का निर्धारण करता है। इस्पात मंत्रालय ने अनिवार्य बीआईएस प्रमाणन योजना के अंतर्गत अब तक 47 कार्बन स्टील और 6 स्टेनलेस स्टील उत्पाद मानकों को कवर किया है। सरकार ने बुनियादी ढांचे, निर्माण, आवास और इंजीनियरिंग क्षेत्र जैसे महत्वपूर्ण अंत उपयोगी अनुप्रयोगों के लिए गुणवत्ता वाले स्टील की आपूर्ति को आसान बना रही है।

 

नेडो मॉडल परियोजनाएं

 

न्यू एनर्जी एंड इंडस्ट्रीयल टेक्नोलॉजी ऑरगेनाइजेशन (नेडो), की स्थापना 1980 में जापान सरकार की एक संस्था के रूप में विकास को बढ़ावा देने, नई ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का प्रस्तुतीकरण और औद्योगिक प्रौद्योगिकी के अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए किया गया। नेडो, जापान के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय बड़े सार्वजनिक शोध और विकास प्रबंधन संगठनों में से एक है।

 

औद्योगिक प्रौद्योगिकी के स्तर को बढ़ाने के उद्देश्य से, नेडो उन्नत किस्म की नई तकनीकों के अनुसंधान और विकास की खरीद करता है। इनके विचारणीय प्रबंधन की जानकारी को रेखांकित करते हुए कि नेडो कैसे भविष्य के प्रौद्योगिकी की शुरूआत के साथ-साथ विकास के लिए मध्य-दीर्घकालिक परियोजनाओं का पता लगाती है जो कि औद्योगिक परियोजनाओं के लिए आधार बनता है, यह व्यावहारिक अनुप्रयोगों से संबंधित अनुसंधानों को भी समर्थन प्रदान करता है।

 

नेडो मॉडल परियोजनाओं के अंतर्गत, कुशल ऊर्जा, स्वच्छ और हरी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए इस्पात मंत्रालय ने, जापान सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त करके, एकीकृत इस्पात संयंत्रों में मॉडल परियोजनाओं की स्थापना के लिए सुविधा प्रदान की है। अप्रैल 2014-मार्च 2018 की अवधि के दौरान, ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली के लिए एक मॉडल परियोजना को मंजूरी दे दी गई है और इसका कार्यानवयन आईएसपी बर्नपुर में स्थित सेल के प्लांट में किया जा रहा है।

 

यूएनपीडी परियोजना

 

इस्पात मंत्रालय ने यूएनडीपी और औसएड के सहयोग से परियोजना को "अप स्केलिंग एनर्जी इफिसिएंट प्रोडक्शन इन स्मॉल स्केल स्टील इंडस्ट्री इन इंडिया" को लागू किया है। इस परियोजना के माध्यम से, 283 पुन: रोलिंग मिलों में ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकियों को लागू करने के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण का आयोजन किया गया और उत्पादकता में सुधार, ऊर्जा खपत में कमी और जीएचजी उत्सर्जन के लिए 4 इंडक्शन भट्ठी इकाइयों की शुरूआत की गई। जिसके परिणामस्वरूप इन इकाइयों में ऊर्जा खपत में औसत 24 प्रतिशत की कमी आई है।

 

                स्टील ऑथारटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल)

भिलाई स्टील प्लांट के दहन की भट्टी

 

सेल के आधुनिकीकरण और विस्तार की योजना

स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) ने अपने कच्चे इस्पात की क्षमता को 12.8 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) से बढ़ाकर 21.4 एमटीपीए तक करने के लिए अपने पांच एकीकृत इस्पात संयंत्रों, भिलाई (छत्तीसगढ़), बोकारो (झारखंड), राउरकेला (ओडिशा), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) और बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) और सलेम (तमिलनाडु) में विशेष इस्पात संयंत्रों के आधुनिकीकरण और विस्तार करने  का दायित्व उठाया है।
 

सालेम इस्पात संयंत्र, राउरकेला इस्पात संयंत्र, आईआईएससीओ इस्पात संयंत्र, दुर्गापुर इस्पात संयंत्र और बोकारो इस्पात संयंत्र के आधुनिकीकरण और विस्तार का काम पूरा हो चुका है। नई सुविधाओं का संचालन, स्थिरीकरण और उत्पादन बढ़ोतरी के अंतर्गत है।

 

भिलाई स्टील प्लांट के अंतर्गत, आधुनिकीकरण और विस्तार की प्रमुख आवश्यकताएं पूरी कर ली गई हैं। भारत के प्रधानमंत्री ने 14.6.2018 को आधुनिकीकृत और विस्तारित भिलाई इस्पात संयंत्र को देश के नाम समर्पित किया।

 

हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट के लिए संयुक्त उपक्रम

 

आरएसपी के मंडीरा डैम में 10 मेगावाट हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट की स्थापना के लिए ओडिशा हाइड्रो पावर कॉरपोरेशन (ओएचपीसी) की सहायक कंपनी की ग्रीन एनर्जी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ऑफ ओडिशा (जीईडीसीओएल) और सेल के बीच एक संयुक्त उपक्रम का गठन किया गया है। इस संयुक्त उपक्रम में सेल की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत और शेष 74 प्रतिशत हिस्सेदारी जीईडीसीओएल की होगी। संयुक्त उपक्रम कंपनी "गेडकोल सेल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (जीएसपीसीएल)" को दिनांक 6.9.2018 को निगमित किया गया है।

 

रेलवे लाइन का विकास

 

रेल मंत्रालय, छत्तीसगढ़ राज्य सरकार और सेल एकसाथ मिलकर दिल्ली-राजहर और रोघाट के बीच 95 किलोमीटर की दूरी की ब्रॉड गेज रेल लिंक का निर्माण कर रही है। रेल मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) को रेल मंत्रालय ने दिल्ली-राजहर और रोघाट के बीच इस रेल लाइन का निर्माण करने का अधिकार दिया है। वर्ष 2018 के दौरान, 17 किलोमीटर से 34 कि.मी. तक रेल लाइन के निर्माण का दूसरा खंड पूरा कर लिया गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस वर्ष अप्रैल में इस विस्तार का उद्घाटन किया और अब यह लाइन परिचालन में है।

 

एएआई के साथ एमओयू

 

सेल और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) ने अप्रैल 2018 में क्षेत्रीय कनेक्टिविटी स्कीम (आरसीएस), भारत सरकार की एक प्रमुख परियोजना उड़ान के लिए सेल के राउरकेला, बोकारो और बर्नपुर हवाईअड्डों के उपयोग पर एमओयू पर हस्ताक्षर किया है।

 

हिमाचल प्रदेश के स्टील प्रोसेसिंग यूनिट (एसपीयू) में उत्पादन

 

एसपीयू, खंडूरी, हिमाचल प्रदेश में प्रति वर्ष 100,000 टन टीएमटी बार्स की उत्पादन क्षमता के साथ नियमित उत्पादन का काम वर्ष 2018 के दौरान शुरू हुआ। इस यूनिट का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री द्वारा किया गया। एसपीयू, खंडूरी के उत्पाद मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में बेचे जाते हैं जिससे की इन क्षेत्रों की परियोजनाओं और खुदरा ग्राहकों की आपूर्ति को पूरा किया जा सके।

 

इस्पात के खपत को बढ़ावा देने के लिए अभियान

 

सेल द्वारा 2018 में लक्षित आबादी के साथ सक्रिय रूप से संलग्न रहने तथा स्थानीय ठेकेदारों, इंजीनियरों और उपयोगकर्ताओं से जुड़कर रहने और लोगों में इस्पात क उपयोगिता के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 'सेल स्टील- गांव की ओर', नामक अभियान को लॉन्च किया गय, जिसका उद्देश्य प्रारंभिक स्तर पर ब्रांड निर्माण, जनता को बाहरी रूप से जानकारी प्रदान करना, इस्पात के महत्व के बारे में दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में जानकारी प्रदान करना है। अप्रैल-नवंबर 2018 के दौरान 67 बैठकें आयोजित की गई। बैठकों में  भाग लेने वाले प्रतिभागियों में राजमिस्त्री, स्थानीय पंचायत या तहसील के प्रतिनिधि, बैंक अधिकारी, प्रोफेसर, सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी, स्टील और सीमेंट के लघु डीलर, स्थानीय उपभोक्ता, इंजीनियर और सेल के रिटेल चैनल पार्टनर शामिल थे।  

 

राउरकेला में इस्पात जन अस्पताल का आधुनिकीकरण

                   राउरकेला स्टील प्लांट, ओडिशा

  राउरकेला के सेल में 600 बिस्तरों वाले इस्पात जन अस्पताल का 295 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से आधुनिकीकरण किया गया। यह अस्पताल अब 6 विषयों में स्नातकोत्तर चिकित्सा की शिक्षा प्रदान करता है: बर्न और प्लास्टिक सर्जरी, न्यूरोसर्जरी, न्यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी, कार्डियो-थोरैसिक सर्जरी और नेफ्रोलॉजी।   इस्पात जन अस्पताल वर्तमान समय में सेल के कर्मचारियों और उनके परिवारों के अलावा स्थानीय आबादी का ईलाज कर रहा है और विभिन्न सीएसआर पहलों के अंतर्गत मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं भी प्रदान कर रहा है।   अस्पताल के आधुनिकीकरण को आगे बढ़ाने के लिए 13 अगस्त, 2018 को सेल, राउरकेला स्टील प्लांट और नेशनल बिल्डिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया है।  

सेल का टर्नओवर

  मार्च 2018 तक, सेल का टर्नओवर अबतक का सर्वाधिक लगभग 58,297 करोड़ रुपया रहा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 18.5 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। कंपनी ने मार्च 2018 के समाप्त वर्ष में 2,83 करोड़ रुपये के नकद लाभ के साथ-साथ सीपीएलवाई में 1,53 करोड़ रुपये की नकद हानि भी दर्ज की है। इसके अलावा, सेल ने वार्षिक आधार पर कारोबार में होने वाले घाटे में 80 प्रतिशत तक की कमी लाया है।   एच2 2017-18 में, यह 1,268 करोड़ रुपये के पीबीटी को पंजीकृत करके मुनाफे में तब्दील हो गई।   अपने मजबूत प्रदर्शन के साथ, सेल ने 32,284 करोड़ रुपये का कारोबार किया, जो सीपीआईएल में 23 प्रतिशत की वृद्धि है। सीपीआईएल के दौरान टैक्स में 2,028 करोड़ रुपये के नुकसान के मुकाबले, एच1 2018-19 में पीबीटी लगभग 1,676 करोड़ रुपया रहा।  

 

            राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी)

 

  निस्प नगरनार, बस्तर, छत्तीसगढ़  

3 एमटीपीए के विश्व मानकों का एकीकृत इस्पात संयंत्र की स्थापना छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में नगरनार में की गई है जिसका परिचालन 2019 में शुरू हो जाएगा। यह शून्य निर्वहन के साथ काम करेगा और इसकी रूप-रेखा को स्टेट ऑफ आर्ट टेक्नोलॉजी फॉर एनर्जी इफिसिएंट टेक्नोलॉजी के साथ मिलकर तैयार किया जा रहा है।   इस प्लांट को पानी और बिजली के सर्वोत्कृष्ट उपयोग के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें नवीनतम विधूलीयन प्रणाली, प्रदूषण उत्प्रवाही संयंत्र, प्रदूषण निगरानी प्रणाली को अपनाया गया है। सभी हवा और अन्य उत्सर्जन विश्व मानकों से उंचे और ऊपर के स्तर के हैं। कच्चा माल संचालन प्रणाली पूरी तरह से स्वचालित है और उच्च स्तर के धूल दमन प्रणाली से सुसज्जित है।   पूरे संयंत्र को 1800 एकड़ से भी कम समय जगह में स्थापित किया गया है जिसके चारदीवारी के चारों ओर 25 मीटर चौड़ाई वाली ग्रीन बेल्ट है और इसका 33 प्रतिशत क्षेत्र पेड़ों से ढका हुआ है।  

राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (रीनल)  

विशाखापत्तनम इस्पात संयंत्र (वीएसपी)- राष्ट्रीय इस्पत निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) कॉर्पोरेट इकाई के अंतर्गत भारत का पहला तटीय सार्वजनिक क्षेत्र का एकीकृत संयंत्र है। आरआईएनएल-वीएसपी को सूचना संरक्षा प्रबंधन प्रणाली (आईएसएमएस) के लिए आईएसओ 27001 से प्रमाणित होने का गौरव प्राप्त है।   रीनल ने अपने प्रमुख उत्पादन मौजूदा सुविधाओं जैसे पिघलाऊ भट्टियां, स्टील मेल्ट शॉप कन्वर्टर्स और धातुमल संयंत्र का आधुनिकीकरण किया है जिससे कि प्रमुख उपकरणों के उचित रख-रखाव को बनाए रखा जा सके, जो कि पिछले 2 दशकों से भी अधिक समय से काम कर रहे हैं। आधुनिकीकरण कार्यक्रमों में इकाइयों को ऊर्जा कुशल और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए नवीनतम तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। आधुनिकीकरण का काम धातुमल मशीन- 2 को छोड़कर सभी जगहों में पूरा कर लिया गया है, जिसे संभवतः 3 पिघलाऊ भट्टियां के संचालन और इष्टतम उत्पादन मॉडल पर विचार करने के बाद किया जा सकता है। आधुनिकीकरण के अलावा, एक और कनवर्टर और कोस्टर को स्थापित किया गया है जिससे कि तरल स्टील क्षमता 1 एमटीपीए बढ़ गई है, यानी यह 6.3 एमटीपीए से 7.3 एमटीपीए हो गया है। सभी आधुनिकीकृत और संशोधित इकाइयों के साथ ही अतिरिक्त कनवर्टर और कोस्टर इकाइयां परिचालन में हैं।   पिछले वर्ष इस अवधि के मुकाबले आरआईएनएल के सभी प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में सुधार दर्ज किया गया। इसने पिछले वर्ष इस अवधि की तुलना में, गर्म धातु में 18 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, जबकि तरल इस्पात में 19 प्रतिशत, तैयार इस्पात में 15 प्रतिशत और बिक्री योग्य इस्पात उत्पादन में 17 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। रीनल का बिक्री टर्नओवर 13,059 करोड़ रुपये था, जो कि पिछले साल इस अवधि से 39 प्रतिशत ज्यादा है और इस्पात की बिक्री 3.003 मिलियन टन रही, जो कि पिछले साल इस अवधि के मुकाबले 15 प्रतिशत ज्यादा है।    

मैंगनेस ओर इंडिया लिमिटेड (मोइल)  

मैंगनेस ओर इंडिया लिमिटेड (मोइल) मैंगनीज-अयस्क खनन के लिए राज्य-स्वामित्व वाली एक मिनीरत्न कंपनी है जिसका मुख्यालय नागपुर, भारत में है। बाजार में 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ, यह वित्तीय वर्ष 2008 में भारत में मैंगनीज अयस्क का सबसे बड़ा उत्पादक था। मोइल को भारत में शीर्ष 500 कंपनियों में से 486 वां स्थान प्राप्त है और वर्ष 2011 में इसे खानों और धातु के क्षेत्र में भारत के 500 कंपनियों की सूची में 9 वें स्थान पर रखा गया। मोइल 10 खानों का संचालन करता है जिसमें  महाराष्ट्र के नागपुर और भंडारा जिलों में 6 और मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में चार अवस्थित है। 10 में से सात भूमिगत खान (कंदरी, मुनसर, बेल्डोंगरी, गुमगांव, चिकला, बालाघाट और उक्वा) हैं और तीन खुली खदान (डोंगरीबुजुर्ग, सीतापतोर और तिरोदी) है। इसका बालाघाट खान एशिया का सबसे गहरा भूमिगत मैंगनीज खान है।   वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान 8.32 लाख मीट्रिक टन के उत्पादन की तुलना में वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान मैंगनीज अयस्क (गैर-प्रयोजन) का उत्पादन 9.81 लाख मीट्रिक टन रहा, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 117.91 प्रतिशत की अधिकता को दर्शाता है।   मोइल ने वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान 9.74 लाख मीट्रिक टन के मैंगनीज अयस्क (गैर-प्रयोजन) की रिकॉर्ड बिक्री दर्ज की, जबकि वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान इसका बिक्री दर 9.5 लाख मीट्रिक टन था।   मोइल ने वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान परिचालन के माध्यम से 989.8 करोड़ रुपये की तुलना में वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान 1323.46 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड कारोबार दर्ज किया है।   मोइल ने वित्त वर्ष 201-17-18 के दौरान सबसे ज्यादा 207.04 करोड़ रुपये का क्षमता व्यय किया है जबकि 2016-17 के दौरान इसका क्षमता व्यय 120.74 करोड़ रूपया था।   मोइल ने भूमिगत खानों में चलने वाले हाइड्रोलिक के बदले एक वैकल्पिक सामग्री के  रूप में एक उपयोगी संरचना और इसके तरीकों के लिए पेटेंट का आवेदन दायर किया है। उत्पाद के विकास और प्रणाली के लिए सभी प्रकार के शोध कार्यों को मोइल के मुंसर और डोंगरीबुजर्ग खान में किया गया है।   मोइल, भूमिगत खानों की रिक्तियों को भरने हेतु हाइड्रोलिक परिवहन के लिए उपयुक्त सामग्री विकसित करने के लिए परीक्षण कर रहा है। आने वाले सालों में यह भूमिगत चीजों को भरने के लिए रेत की खपत को कम करने में और नदी की रेत के खनन के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करेगा।  

धातु स्क्रैप व्यापार निगम लिमिटेड (एमएसटीसी)  

एमएसटीसी लिमिटेड, इस्पात मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत एक मिनी रत्न श्रेणी-1 की पीएसयू है। इस कंपनी की स्थापना 9 सितंबर 1964 को लौह स्क्रैप के निर्यात हेतु एक नियामक प्राधिकरण के रूप में कार्य करने के लिए की गई थी।   एमएसटीसी के संयुक्त उपक्रम वाली कंपनी, महिंद्रा एमएसटीसी रीसाइक्लिंग प्राइवेट लिमिटेड (एमएमआरपीएल) पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से कबाड़ वाहनों और अनुपयोगी सामानों के पुनर्चक्रण और कर्तन के लिए एक संगठित व्यवस्था की स्थापना के लिए पहल को करने वाली पहली कंपनी है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, इस कंपनी ने 44000 वर्गफुट कवर क्षेत्र वाली  लगभग 6 एकड़ की जमीन ग्रेटर नोएडा मे लीज पर ली है, जो कि भारत का पहला अत्याधुनिक संग्रह और समापन केंन्द्र है और यह परिचालन की अवस्था में है।   यह कंपनी रीसाइक्लिंग के लिए दिल्ली और एनसीआर से व्यक्तियों और संस्थानों से पुराने वाहनों को खरीदती है। यह पुराने वाहनों के लिए आकर्षक दामों के प्रस्तावों के साथ इसे घर से उठाने जैसी सेवाएं प्रदान करती है। गुजरात के दाहेज एक कटाई संयंत्र के स्थापना की प्रक्रिया चल रही है, जो कि अगले वर्ष से परिचालित हो जाएगा और भारत में इस प्रकार का पहला संयंत्र होगा। यह न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराएगा बल्कि भारत में कटे हुए स्क्रैप के आयात का एक विकल्प होगा और विदेशी मुद्रा में भी बचत करेगा।   एक बार कार का स्क्रैप प्राप्त हो जाने के बाद उसे ग्रेटर नोएडा में रीसाइक्लिंग सुविधा केंद्र में ले जाया जाता है और यूरोप और अमेरिका में रीसाइक्लिंग प्रक्रिया के लिए अपनायी जाने वाली विश्व स्तरीय प्रौद्योगिकी का उपयोग करके ध्वस्त और  नष्ट कर दिया गया है।   एमएमआरपीएल की वेबसाइट cerorecycling.com की शुरूआत गई है और रेडियो विज्ञापन भी दिए जा रहे हैं, जिससे कि समाज में बड़े पैमाने पर रीसाइक्लिंग सुविधा के लाभों के बारे में और इस्पात क्षेत्र में संसाधन अनुकूलन के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके।   भारत में टुकड़ों में बंटे हुए स्क्रैप की आवश्यकता को पूरा करने के लिए, देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे 50-60 कर्तन संयंत्रों को तुरंत स्थापित करने की आवश्यकता है।                            

 केआईओसीएल

  केआईओसीएल लिमिटेड इस्पात मंत्रालय के अंतर्गत एक प्रमुख कंपनी है। यह एक मिनी-रत्न कंपनी है और इसे आईएसओ 9001:2008, आईएसओ 14001:2004 और ओएचएसएएस 18001:2007 का प्रमाणन प्राप्त है। यह एक निर्यात पर आधारित इकाई है, जिसे विशेषज्ञता लौह अयस्क खनन, निस्पंदन प्रौद्योगिकी और उच्च गुणवत्ता वाले छर्रों के उत्पादन में है।   छर्रा संयंत्र की वार्षिक क्षमता लगभग 3.5 मिलियन टन लौह अयस्क छर्रों का उत्पादन करना है। अन्य सुविधाओं में छर्रों को स्टॉकयार्ड से पोत तक सीधे लोड करने की सुविधा शामिल है। मैंगलोर संयंत्र में उत्पादित छर्रों में उच्च गुणवत्ता वाले मेटलर्जिकल गुण होते हैं और विस्फोट भट्टी और डीआरआई इकाइयों के लिए आदर्श फीड हैं।   केआईओसीएल ने एनएमडीसी के साथ लौह अयस्क लाभ और गोलीकरण संयंत्र के लिए, उड़ीसा माइनिंग कॉरपोरेशन (ओएमसी) के साथ कालीपानी, ओडिशा में 1.4 एमटीपीए क्रोम अयस्क लाभकारी संयंत्र के संचालन और प्रबंधन के लिए ओ एंड एम अनुबंध किया है और एमआरपीएल, मंगलुरु के कोक हैंडलिंग सिस्टम (क्रसर कन्वेयर) का संचालन किया है।   मेक इन इंडिया पहल के अंतर्गत, केआईओसीएल ने निर्यात के लिए ब्राजील से आयातित उच्च स्तर के अयस्कों से उच्च स्तर के छर्रों का उत्पादन किया है।   कौशल विकास पर राष्ट्रीय नीति का समर्थन करने और इसमें भाग लेने के लिए, केआईओसीएल ने राष्ट्रीय कौशल विकास निगम और क्वेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड, एनएसडीसी का एक प्रमाणिक साझेदार, के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। कर्मचारियों, अनुबंध श्रमिकों, स्थानीय युवाओं, महिलाओं, वंचित समूहों और सीपीयू सहित आस-पास के अन्य प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।   कुद्रमुख खानों के बंद होने के बाद, वित्तीय वर्ष 2017-18 में 23,27,000 मीट्रिक टन का उत्पादन और 23,00,801 मीट्रिक टन छर्रों का प्रेषण सबसे ज्यादा हैं। 31 मार्च, 2018 को स्टॉक एक्सचेंजों में कारोबार की गई बाजार मूल्य के आधार पर, केआईओसीएल को बाजार पूंजीकरण के आधार पर पांच सौ शीर्ष सूचीबद्ध कंपनियों में शामिल किया गया है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज द्वारा जारी सूची के अनुसार, शीर्ष 500 कंपनियों की सूची में केआईओसीएल का स्थान 182वां है।   केआईओसीएल ने दक्षिण कलीपानी, ओडिशा में अपने नए क्रोम अयस्क लाभप्रद संयंत्र के बचे हुए कार्यों को पूरा करने के लिए इस वर्ष जुलाई में ओडिशा माइनिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ अनुबंध समझौतों पर हस्ताक्षर किया है।  

 

                   2017-18 में सीपीएसई का कारोबार

 

 

 

लाभ कमाने वाली सीपीएसई के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत किया   स्टैंडअलोन और निष्पक्ष ई-कॉमर्स सेवा प्रदाता   ई-नीलामी का सबसे बड़ा मंच   ई-कॉमर्स में स्क्रैप का विन्यास, कोयले की बिक्री, फेरोमैंगनीज, लौह अयस्क इत्यादि   ई-नीलामी में स्पेक्ट्रम, कोल लिंकिंग, खनन पट्टा आदि भी शामिल।  

 

 

2017-18 में लाभ कमाने वाले सीपीएसई बना   बहु-विषयक डिजाइन, इंजीनियरिंग, परामर्श में अग्रणी   केवल धातुओं और खनन क्षेत्र में ही नहीं बल्कि   इसके अलावा बिजली, तेल और गैस, बुनियादी ढांचे,   रिफाइनरीज, पेट्रोकेमिकल्स, पाइपलाइन, रेलवे इत्यादि     संगठनों से अनुबंध

 

 

इस्पात मंत्रालय के अंतर्गत लाभ कमाने वाली प्रमुख सीपीएसई   2017-18 में 35.5 मीट्रिक टन के उच्चतम उत्पादन की प्राप्ति   2017-18 में 36.1 मीट्रिक टन की रिकॉर्ड ज्यादा बिक्री

 

 

  लगातार लाभ कमाने वाली सीपीएसई   2017-18 के दौरान 9.81 लाख मीट्रिक टन का उच्चतम   गैर-प्रायोजन का उत्पादन   2017-18 में 12.01 लाख मीट्रिक टन मैंगनीज अयस्क का उत्पादन   2017-18 में 1,333.35 करोड़ रुपये का अबतक का सर्वोच्च कारोबार।

 

 

 

लाभ कमाने वाली सीपीएसई

 

2017-18 में 23.27 लाख टन का उच्चतम संचयी उत्पादन,

पिछले वर्ष की तुलना मे 57 प्रतिशत की वृद्धि

 

2017-18 में 23.00 लाख टन का उच्चतम संचयी प्रेषण

 

अर्थात, पिछले वर्ष की तुलना मे 66 प्रतिशत की वृद्धि।

 

2017-18 में संचालन से 1629 करोड़ रुपये का राजस्व,

 

पिछले वर्ष की तुलना में 75 प्रतिशत की वृद्धि।

 

 

लाभ कमाने वाली सहायक सीपीएसई।

 

इस्पात संयंत्रों में स्क्रैप और स्लैग प्रबंधन के लिए

 

उपपादन की विशेष सेवाएं

 

 

 

अपशिष्ट धातुमल के रीसाइक्लिंग से धन का निर्माण और

 

लौह, स्टील बनाने की प्रक्रिया से स्क्रैप का निर्माण

 

 

2017-18 में आरआईएनएल ने ईबीआईटीडीए पॉजिटिव बनाया

 

2017-18 में तरल स्टील का 4.972 मीट्रिक टन (प्रो.) उत्पादन,

 

 जो कि 2013-14 में 3.391 मीट्रिक टन से 46 प्रतिशत अधिक

 

2017-18 में 1, 6625 करोड़ रुपये (प्रो.) का बिक्री कारोबार,

 

पिछले साल इस अवधि के मुकाबले 31 प्रतिशत अधिक।

 

 

2017-18 के दौरान सेल के नुकसान में भारी गिरावट दर्ज

 

2017-18 में 15.983 मीट्रिक टन पर गर्म धातु का उच्चतम उत्पादन

 

पिछले वर्ष की तुलना में 4 प्रतिशत की वृद्धि के साथ

 

15.021 मीट्रिक टन कच्चे इस्पात का उच्चतम उत्पादन

 

2017-18 में 14.071 मीट्रिक टन के साथ बिक्री योग्य

 

इस्पात का उच्चतम उत्पादन

 

                     

     कॉरपोरेट खेल नीति

 

केंद्रीय इस्पात मंत्री, चौधरी बीरेंद्र सिंह ने इस वर्ष इस्पात मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाले केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) के लिए कॉर्पोरेट खेल नीति का अनावरण किया। यह नीति इस्पात मंत्रालय के सीपीएसई द्वारा खेलों के प्रचार हेतु रूप-रेखा प्रदान करती है।

 

खेल, किसी भी देश के आर्थिक विकास और मजबूती का संकेतक है और इस्पात मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाले सीपीएसई ओलंपिक खेलों के लिए पदक लानेवाले उम्मीदवारों को तैयार करने की कोशिश करेंगे। प्रतिभा खोज, छात्रवृत्ति, प्रशिक्षण और कोचिंग के लिए बुनियादी ढांचा और संस्थागत समर्थन प्रदान कर सीपीएसई अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे।

 

इस्पात सीपीएसई अपनी वित्तीय क्षमता के अनुसार, खेल गतिविधियों के लिए एक विशिष्ट बजट जारी करेंगे और यह बजट कंपनी के सीएसआर फंड से अलग होगा। इस्पात मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाले सीपीएसई ग्रामीण खेलों, दिव्यांगों के लिए खेलों, गृहिणियों की गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए वार्षिक और आवधिक खेल आयोजनों को प्रायोजित करेंगे। इस्पात मंत्रालय के सीपीएसई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेलों के आयोजनों को भी प्रायोजित करेंगे।

 

इस्पात मंत्रालय के सभी सीपीएसई एक शीर्ष खेल निकाय का गठन करेंगे जिन्हें राष्ट्रीय स्तर के खेल संस्थाओं और संघों, भारतीय ओलंपिक संघ और पैरा ओलंपिक संघ से संबद्ध किया जाएगा। महारत्न और नवरात्र वाले सीपीएसई कम से कम एक मान्यता प्राप्त खेल विषयों में खेल अकादमी की स्थापना करेंगे और सामान्य फिटनेस उपकरण तथा सुविधाओं के साथ उनके बुनियादी ढांचे को बनाए रखेंगे।

 

जनवरी 2018 से भारत इस्पात की अतिरिक्त क्षमता के साथ वैश्विक फोरम का सह-अध्यक्ष बन गया है।

 

2018 में, इस्पात मंत्रालय की स्क्रैपिंग नीति को अंतिम रूप दिया गया।

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आरकेमीणा/एएम/एबी

   



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