राष्ट्रपति सचिवालय
भारत के राष्ट्रपति ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में भाग लिया
हमारा संविधान विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में शांतिपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्रांति का स्रोत है: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु
जब बच्चे के जीवन दृष्टिकोण का निर्माण हो रहा होता है, उस चरण में संवैधानिक आदर्शों और कर्तव्यों को आत्मसात करके एक अच्छे नागरिक का व्यक्तित्व विकसित किया जा सकता है: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु
Posted On:
26 NOV 2025 7:34PM by PIB Delhi
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (26 नवंबर, 2025) नई दिल्ली में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में भाग लिया।

इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने संविधान के संस्थापकों को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने विश्व इतिहास में सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा लिखित संविधान तैयार किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान विश्व इतिहास के सबसे बड़े गणतंत्र का स्रोत है। यह विविधता में एकता का स्रोत है। यह विषमताओं की पृष्ठभूमि में स्थापित समानता का स्रोत है। यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में शांतिपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्रांति का स्रोत है। यह व्यक्तिगत गरिमा और हमारी राष्ट्रीय एकता सुनिश्चित करने का स्रोत है। यह हमारी बहुस्तरीय और बहुआयामी शासन प्रणाली का स्रोत है। यह निरंतरता और परिवर्तन का स्रोत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत का संविधान हमारा राष्ट्रीय ग्रंथ है। संविधान में निहित मूल्यों के अनुरूप संस्थाओं और व्यक्तिगत जीवन का संचालन करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।

राष्ट्रपति ने कहा कि यह राष्ट्रीय गौरव की बात है कि आम जनता से लेकर विशेषज्ञों तक, सभी का हमारे संविधान में विश्वास बढ़ता जा रहा है। "इस विषय पर संविधान क्या कहता है?" इस प्रश्न का उत्तर किसी भी कार्य या व्यवस्था की उपयुक्तता का मानदंड बन गया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान एक विधायी दस्तावेज़ होने के बावजूद, जनभागीदारी और व्यापक प्रतिनिधित्व के माध्यम से लोगों के लिए एक संदर्भ ग्रंथ बन गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भावी पीढ़ियाँ संविधान से जुड़ाव महसूस करती रहें, बच्चों को संविधान के बारे में रोचक जानकारी प्रदान की जानी चाहिए। बच्चों को नागरिक शास्त्र की पाठ्यपुस्तकों में संविधान के बारे में पढ़ाया जाता है। हालाँकि, संविधान का बाल-सुलभ संस्करण तैयार करना बच्चों में रुचि और जागरूकता बढ़ाने में बहुत सहायक होगा। यह संविधान विशेषज्ञों और विभिन्न भारतीय भाषाओं के बाल साहित्य लेखकों के संयुक्त प्रयासों से संभव हो सकता है। जब बच्चे का जीवन-दृष्टिकोण विकसित हो रहा हो, तभी संवैधानिक आदर्शों और कर्तव्यों को आत्मसात करके एक अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने व्यापक विचार-विमर्श के बाद संसदीय प्रणाली को अपनाया था। संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की शक्तियों, कर्तव्यों और प्रक्रियाओं के लिए विस्तृत प्रावधान हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि सरकार के ये तीनों अंग आपसी समन्वय के माध्यम से अपने-अपने कर्तव्यों के निर्वहन में हमारी संवैधानिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि एक समन्वित संवैधानिक व्यवस्था से हमारे नागरिकों को लाभ होगा और हमारा देश एक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य की ओर तेज़ी से आगे बढ़ेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि अन्य सेवाओं की तरह न्याय भी घर-द्वार पर उपलब्ध होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि ज़मीनी स्तर पर लोगों को कानूनी सहायता आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हमें आज़ादी के बाद से अब तक हुई प्रगति पर विचार करना चाहिए और सभी को न्याय दिलाने के लिए अथक प्रयास करने चाहिए।
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