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समुद्री भारत

विजन 2030 से अमृतकाल 2047 तक

Posted On: 26 OCT 2025 9:49AM

मुख्य बिंदु

  • भारत के व्यापार का परिमाण के लिहाज से लगभग 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्री मार्गों के जरिए होता है। इससे भारत की अर्थव्यवस्था और प्रतिस्पर्धिता में इस क्षेत्र की केंद्रीय भूमिका का पता चलता है।
  • मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 में 3-3.5 लाख करोड़ रुपए के अनुमानित निवेश से 150 से ज्यादा पहलकदमियों को शामिल किया गया है। इसके अलावा जलपोत निर्माण के लिए हाल ही में 69725 करोड़ रुपए का पैकेज दिया गया है।
  • वित्त वर्ष 2024-25 में प्रमुख बंदरगाहों के जरिए 85.5 करोड़ टन माल की ढुलाई हुई जिससे समुद्री व्यापार और बंदरगाह कार्यकुशलता में ठोस वृद्धि का संकेत मिलता है।

भारतीय समुद्री मार्ग की यात्रा

भारत की आर्थिक शक्ति का प्रवाह समंदरों से होता है। भारत के व्यापार का परिमाण के लिहाज से लगभग 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्री मार्गों के जरिए होता है। वास्तव में समुद्र भारत के वाणिज्य की प्राणशक्ति है। कच्चे तेल और कोयले से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा और कृषि उत्पादों तक देश के आयात और निर्यात का बड़ा हिस्सा व्यस्त बंदरगाहों से होकर गुजरता है। ये बंदरगाह भारत को विश्व भर के बाजारों से जोड़ते हैं।1 वैश्वीकरण से आपूर्ति श्रृंखला की अंतरनिर्भरता गहरी होने और भारत के प्रमुख मैनुफैक्चरिंग और ऊर्जा केंद्र के रूप में उभरने के साथ ही बंदरगाहों और जहाजरानी की कार्यकुशलता राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धिता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है।

भारत ने खुद को वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से साहसिक कदम उठाते हुए मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 (एमआईवी 2030) की शुरुआत की।2 वर्ष 2021 में शुरू किए गए इस परिवर्तनकारी रोडमैप में 150 से ज्यादा रणनीतिक पहलकदमियों को शामिल किया गया है।3 इस विजन का उद्देश्य संवहनीयता और कौशल विकास को केंद्र में रखते हुए बंदरगाहों का आधुनिकीकरण, जहाजरानी क्षमता का विस्तार और अंतर्देशीय जलमार्गों का सुदृढ़ीकरण है। एमआईवी 2030 सिर्फ माल ढुलाई का खाका होने के बजाय व्यापार, निवेश और रोजगार का उत्प्रेरक भी है। यह भारत के आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धिता के मार्ग को प्रशस्त करता है।

एमआईवी 2030 की केंद्रीय विषयवस्तु


मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 उन 10 प्रमुख विषयों की पहचान करता है जो वैश्विक समुद्री शक्ति और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अग्रणी बनने की ओर भारत की यात्रा को आकार देंगे।

 

इंडिया मैरीटाइम वीक 2025: आगे बढ़ती समुद्री महत्वाकांक्षा

इंडिया मैरीटाइम वीक 2025 (आईएमडब्ल्यू 2025) वैश्विक समुद्री कैलेंडर की एक प्रमुख घटना है। इसका आयोजन 27 से 31 अक्टूबर तक मुंबई के नेस्को प्रदर्शनी केंद्र में किया जा रहा है।5 इसमें जहाजरानी, बंदरगाह और परिवहन समुदायों से जुड़े प्रमुख हितधारक हिस्सा लेंगे। आईएमडब्ल्यू 2025 विचार-विमर्श, सहयोग और व्यवसाय विकास का एक रणनीतिक मंच होगा। इसमें 100 से ज्यादा देशों के 1 लाख से अधिक प्रतिनिधियों, बंदरगाह संचालकों, निवेशकों, नवोन्मेषकों और नीति निर्माताओं के भाग लेने की संभावना है।6 इस 5 दिवसीय कार्यक्रम में 500 प्रदर्शक, विषय से संबंधित पैविलियन, प्रौद्योगिकी प्रदर्शन तथा बंदरगाह आधारित विकास, जलपोत निर्माण समूह और डिजिटल कॉरिडोर से संबंधित सत्र होंगे।7

 

समुद्री परिवर्तन का एक दशक: 2014 से 2025

भारत का समुद्री क्षेत्र आर्थिक विकास के एक नए मार्ग पर चलते हुए बंदरगाहों, तटीय जहाजरानी और अंतर्देशीय जलमार्गों में रिकॉर्ड प्रदर्शन के साथ तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस क्षेत्र की प्रगति राष्ट्र को मजबूत करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है।

भारतीय बंदरगाहों ने स्थापित किए नए मानदंड

  • भारत के बंदरगाह क्षेत्र ने जबर्दस्त परिवर्तनकारी छलांग लगाई है। बंदरगाहों की कुल क्षमता 140 करोड़ मीट्रिक टन से दोगुना होकर 276.2 करोड़ मीट्रिक टन हो गई है। क्षमता में यह वृद्धि आधुनिकीकरण और अवसंरचना विकास में बड़े निवेश को प्रतिबिंबित करती है।8
  • माल ढुलाई का परिमाण भी प्रभावशाली ढंग से बढ़ते हुए 97.2 करोड़ मीट्रिक टन से बढ़ कर 159.4 करोड़ मीट्रिक टन हो गया है।9 इससे समुद्री व्यापार और बंदरगाहों की कार्यकुशलता में जबर्दस्त वृद्धि का संकेत मिलता है। वर्ष 2024-25 में प्रमुख बंदरगाहों के जरिए 85.5 करोड़ टन माल की ढुलाई हुई। वर्ष 2023-24 में इन बंदरगाहों के जरिए सिर्फ 81.9 करोड़ टन माल की ढुलाई हुई थी।10
  • संचालन में काफी सुधार होने के परिणामस्वरूप जलपोतों के फेरों का औसत समय 93 घंटे से घट कर सिर्फ 48 घंटे रह गया है। इससे समग्र उत्पादकता और वैश्विक प्रतिस्पर्धिता में बढ़ोतरी हुई है।11
  • इस क्षेत्र की वित्तीय सुदृढ़ता में भी उछाल आया है। क्षेत्र का शुद्ध वार्षिक सरप्लस 1026 करोड़ रुपए से तेजी से बढ़ते हुए 9352 करोड़ रुपए हो गया जिससे राजस्व अर्जन और व्यय प्रबंधन में सुधार का पता चलता है।12
  • कार्यकुशलता के संकेतक भी मजबूत हुए हैं। संचालन अनुपात 73 प्रतिशत से सुधर कर 43 प्रतिशत हो जाना संवहनीय और लाभकारी बंदरगाह संचालनों की ओर एक बड़ा कदम है।13

भारतीय जहाजरानी में बेड़े, क्षमता और कार्यबल का विस्तार

  • भारत का जहाजरानी क्षेत्र लगातार विकास के मार्ग पर अग्रसर है। भारतीय ध्वज वाले जलपोतों की संख्या 1205 से बढ़ कर 1549 हो गई जो राष्ट्र की विस्तृत होती समुद्री उपस्थिति का परिचायक है।
  • भारतीय बेड़े की कुल टनधारिता भी 1 करोड़ सकल टन से बढ़ कर 1.35 करोड़ सकल टन हो गई है। इससे ज्यादा मजबूत और सक्षम जहाजरानी क्षमता का पता चलता है।
  • तटीय जहाजरानी में भी काफी गति दिखाई दी है। इसके जरिए माल ढुलाई 8.7 करोड़ मीट्रिक टन से बढ़ कर 16.5 करोड़ मीट्रिक टन हो गई है। इससे परिवहन के कार्यकुशल, किफायती और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों की ओर झुकाव को बल मिलता है।14

भारत के अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास

  • भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) ने 2025 में रिकॉर्ड 14.6 करोड़ मीट्रिक टन माल ढुलाई की जानकारी दी। यह अंतर्देशीय जल परिवहन क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक घटना है।15 यह वृद्धि 2014 के 1.8 करोड़ मीट्रिक टन की तुलना में 710 प्रतिशत अधिक है।16
  • मौजूदा समय में चालू जलमार्गों की संख्या 3 से बढ़ कर 29 हो गई है। इससे भारत के अंतर्देशीय परिवहन नेटवर्क में बड़ी वृद्धि का पता चलता है।17
  • आईडब्ल्यूएआई ने हल्दिया मल्टीमोडल टर्मिनल (एमएमटी) को आईआरसी नेचुरल रिसोर्सेस के हाथों सौंप दिया है। यह सरकार और निजी क्षेत्र की साझीदारी से अंतर्देशीय जलमार्ग अवसंरचना के उन्नयन और बहुविध परिवहन को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। विश्व बैंक की सहायता से निर्मित पश्चिम बंगाल के इस टर्मिनल की क्षमता वार्षिक 0.30 करोड़ मीट्रिक टन है।18
  • यात्री जलयान और रो-पैक्स (सवारी और वाहन ढोने वाले जहाज) की लोकप्रियता में भी काफी इजाफा हुआ है। इनके जरिए 2024-25 में 7.5 करोड़ से ज्यादा सवारियों ने यात्रा की। इससे पता चलता है कि सुरक्षित और कार्यकुशल यात्रा के लिए लोग जल आधारित परिवहन को तेजी से अपना रहे हैं।19

महज एक दशक में भारत में "समुद्री कामगारों की संख्या 1.25 लाख से बढ़कर 3 लाख से अधिक हो गई  है, जो अब वैश्विक समुद्री कामगारों का 12% है।20 अब देश प्रशिक्षित नाविकों के मामले में दुनिया के शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ताओं में से एक बन गया है और देश तथा विदेश में नौवहन, जहाज संचालन, रसद और संबद्ध समुद्री उद्योगों में व्यापक अवसर पैदा हो रहे हैं।21

समुद्री परिवहन विकास के लिए वित्तपोषण: समर्थन और नवोन्मेष

एम्आईवी 2030 में बंदरगाहों, नौवहन और अंतर्देशीय जलमार्गों में कुल 3-3.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश का अनुमान है।22 जहाज निर्माण को बढ़ावा देने और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए हाल ही में घोषित 69,725 करोड़ रुपये के ऐतिहासिक पैकेज के साथ, भारत वैश्विक समुद्री मानचित्र पर खुद को मजबूती से स्थापित करने के लिए अपनी विशाल तटरेखा का लाभ उठाने का एक रणनीतिक मार्ग तैयार कर रहा है।23 लक्षित आवंटन और रणनीतिक पहल समग्र दृष्टिकोण के साथ सहजता से जोड़े गए हैं, जिससे प्रस्तावित निवेश को कार्यान्वित करने के उपाए किये जा रहे हैं ।

25,000 करोड़ रूपए की राशि के साथ, समुद्री विकास कोष (एमडीएफ) भारत की नौवहन क्षमता और जहाज निर्माण क्षमता के विस्तार के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, 24,736 करोड़ रूपए24 के परिव्यय वाली संशोधित जहाज निर्माण वित्तीय सहायता योजना (एसबीएफएएस) घरेलू लागत संबंधी नुकसानों से निपटने और जहाज़-तोड़ने को बढ़ावा देने के लिए है, जबकि 19,989 करोड़ रूपए के परिव्यय के साथ जहाज निर्माण विकास योजना (एसबीडीएस) ग्रीनफील्ड क्लस्टर, यार्ड के विस्तार और जोखिम कवरेज को प्रोत्साहित करती है।25 इसके अलावा, विशाखापत्तनम में 305 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित भारतीय जहाज प्रौद्योगिकी केंद्र (आईएसटीसी) जहाज डिजाइन, अनुसंधान एवं विकास, इंजीनियरिंग और कौशल विकास के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र के रूप में उभरेगा।26

पूर्वोत्तर भारत में अंतर्देशीय जलमार्ग अवसंरचना के विकास में 1,000 करोड़ रूपए से अधिक का निवेश किया गया है, जो देश के नदियों के नेटवर्क के माध्यम से परिवहन और व्यापार को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस निवेश में से, लगभग 300 करोड़ रूपए मूल्य की परियोजनाएँ पहले ही पूरी हो चुकी हैं और शेष परियोजनाएँ भी पूरी होने वाली हैं, इससे कनेक्टिविटी और क्षेत्रीय व्यपार को बढ़ावा मिलेगा। इस क्षेत्र में पर्यटन को भी बड़े पैमाने पर लाने की तैयारी की जा रही है। कोलकाता के हावड़ा स्थित हुगली कोचीन शिपयार्ड में 250 करोड़ रूपए के संयुक्त निवेश से दो लग्ज़री क्रूज़ जहाज बनाए जा रहे हैं। 2027 में शुरू होने वाले ये जहाज ब्रह्मपुत्र नदी में चलेंगे, जिससे सरकार के क्रूज़ भारत मिशन के तहत असम के नदी पर्यटन परिदृश्य में बदलाव आने की उम्मीद है।27

सागरमाला कार्यक्रम, भारत को वैश्विक समुद्री केंद्र में बदलने की एक प्रमुख पहल है। यह समुद्री भारत विजन 2030 और समुद्री अमृत काल विजन 2047 का एक प्रमुख स्तंभ है। इस कार्यक्रम को लॉजिस्टिक्स लागत में कटौती करने, व्यापार दक्षता को बढ़ाने और हरित परिवहन नेटवर्क के माध्यम से रोजगार सृजन पर केंद्रित किया गया है।28   इसके अंतर्गत 2035 तक 5.8 लाख करोड़ रुपये की लागत वाली 840 परियोजनाएं क्रियान्वित की जाएँगी जिनमें 1.41 लाख करोड़ रुपये की लागत वाली 272 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं तथा 1.65 लाख करोड़ रुपये की लागत वाली 217 परियोजनाओं का कार्य प्रगति पर है।29

भविष्य की ओर अग्रसर

भारत का समुद्री क्षेत्र एक निर्णायक दशक में प्रवेश कर रहा है, जहाँ नए कानून, बड़ी परियोजनाएँ और वैश्विक निवेश महत्वाकांक्षाएँ मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 को आकार दे रही हैं। हरित प्रौद्योगिकियों और डिजिटल नवोन्मेष पर ज़ोर देते हुए, भारत न केवल अपनी व्यापारिक माँगों को पूरा करने की तैयारी कर रहा है, बल्कि एक समुद्री क्षेत्र में अग्रणी के रूप में उभरने की भी तैयारी कर रहा है। इसी को ध्यान में रख कर समुद्री अमृत काल विज़न 2047 तैयार किया जा रहा है, जो भारत के समुद्री पुनरुत्थान का एक दीर्घकालिक रोडमैप है, जिसमें बंदरगाहों, तटीय नौवहन, अंतर्देशीय जलमार्गों, जहाज निर्माण और हरित नौवहन पहलों के लिए लगभग 80 लाख करोड़ रुपये का निवेश निर्धारित किया गया है। सरकार हरित गलियारे स्थापित करके, प्रमुख बंदरगाहों पर हरित हाइड्रोजन बंकरिंग शुरू करके और मेथनॉल-ईंधन वाले जहाजों के उपयोग को बढ़ावा देकर संवहनीय समुद्री संचालन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है।30  300 से अधिक कार्यान्वयन योग्य पहलों को रेखांकित किया गया है। यह पहलें  स्वतंत्रता के सौ साल पूरे होने तक भारत को विश्व की शीर्ष समुद्री और जहाज निर्माण शक्तियों में से एक के रूप में स्थापित करेंगी।

भारत के समुद्री परिदृश्य को नया आकार देने वाले इस विज़न को युगांतकारी  पहलों के माध्यम से आगे बढ़ाया गया है। इस यात्रा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि सितंबर 2025 में हासिल की गई जिसके अंतर्गत "समुद्र से समृद्धि-भारत के समुद्री क्षेत्र में परिवर्तन" कार्यक्रम के दौरान  27 समझौता ज्ञापनों (एमओयू) का आदान-प्रदान हुआ, जिससे 66,000 करोड़ रूपए से अधिक की निवेश संभावनाएँ बढ़ीं और 1.5 लाख से अधिक नौकरियों का मार्ग प्रशस्त हुआ। ये समझौते बंदरगाह अवसंरचना, नौवहन, जहाज निर्माण, संवहनीय गतिशीलता, वित्त और विरासत को केंद्र में रख कर किये गए हैं, जो देश को वैश्विक समुद्री और जहाज निर्माण का केंद्र बनाने के लिए भारत के एकीकृत दृष्टिकोण को दर्शाता है।

उल्लेखनीय परियोजनाओं में ओडिशा के बाहुदा में 150 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) क्षमता वाला ग्रीनफील्ड बंदरगाह जिसमें लगभग 21,500 करोड़ रुपये के  निवेश का अनुमान है, दूसरा पटना में लगभग 908 करोड़ रुपये मूल्य की इलेक्ट्रिक नौकाओं का उपयोग करते हुए जल मेट्रो परियोजना है। इसके आलावा विदेशी बेड़े पर निर्भरता कम करने और भारत में निर्मित जहाजों को बढ़ावा देने के लिए शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया  और सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों  के बीच जहाज का स्वामित्व रखने वाली एक संयुक्त उद्यम कंपनी भी शामिल है। इसके साथ ही, पांच राज्यों में जहाज निर्माण समझौता ज्ञापन, प्रमुख शिपयार्ड निवेश, वित्तीय समझौते और गुजरात के लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर में 266 करोड़ रुपये का लाइटहाउस संग्रहालय का निर्माण जैसे कदम, भारत को  2047 तक दुनिया के शीर्ष जहाज निर्माण देशों में शुमार होने के लक्ष्य को और मजबूत करतें हैं।

न्यू मैंगलोर पोर्ट अथॉरिटी (एनएमपीए) के तहत हाल ही में आठ महत्वपूर्ण समुद्री विकास परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिनमें विदेशी पर्यटकों के लिए एक समर्पित क्रूज गेट का निर्माण और  107 करोड़ रुपये के निवेश के साथ सरकारी और निजी क्षेत्र की साझेदारी के तहत 150 बिस्तरों वाले मल्टी-स्पेशलिटी अस्पताल की स्थापना शामिल हैं। ये कदम  समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भविष्य के लिए तैयार करने की प्रतिबद्धता को दर्शातें हैं जो व्यापार, पर्यटन और आर्थिक रूप से बढ़ावा देने के लिए जरुरी हैं।

विज़न से समुद्र यात्रा तक

भारत अपनी विशाल तटरेखा को संभावनाओं के कैनवास में बदल रहा है। मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 के साथ, देश न केवल बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है, बल्कि भविष्य का निर्माण भी कर रहा है, लाखों लोगों को रोज़गार, कौशल और संवहनीय विकास से सशक्त बना रहा है। यह भारत के लिए विश्व में समुद्री क्षेत्र में अग्रणीय के रूप में उभरने का समय है, यह विज़न साबित करता है कि रणनीति और संकल्प समुद्री लहरों को समृद्धि के रास्ते पर ला सकते हैं। दुनिया भर के तेल और मालवाहक जहाजों में, भारत एक यात्री के रूप में नहीं, बल्कि भविष्य के नाविक के रूप में अपनी जगह सुरक्षित करने के लिए कृतसंकल्प है। समुद्री अमृत काल विज़न 2047 इस यात्रा को और आगे बढ़ाता है। हरित बंदरगाहों और टिकाऊ समुद्री जहाज से लेकर स्मार्ट लॉजिस्टिक्स और सांस्कृतिक विरासत परियोजनाओं तक, भारत आर्थिक विकास को पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी और वैश्विक नेतृत्व के साथ जोड़ रहा है। जहाँ विश्व मजबूत आपूर्ति श्रृंखलाओं और स्वच्छ ऊर्जा बदलावों की ओर देख रहा है, वहीँ भारत का समुद्री क्षेत्र न केवल राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए तैयार है, बल्कि आने वाले दशकों में वैश्विक व्यापार की दिशा को भी आकार देने के लिए तैयार है।

संदर्भ

बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय

https://shipmin.gov.in/sites/default/files/MoPSW%20achievemnts%20and%20initiatives%20of%20FY%202023-24_0.pdf

https://shipmin.gov.in/sites/default/files/Year%20End%20Review%2C%202024%20%28English%20version%29.pdf

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https://sagarmala.gov.in/sites/default/files/MIV%202030%20Report.pd

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https://www.pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1992273

https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2172488

पत्र सूचना कार्यालय

https://www.pib.gov.in/FactsheetDetails.aspx?Id=149248

https://www.pib.gov.in/PressNoteDetails.aspx?NoteId=154624&ModuleId=3

https://www.pib.gov.in/PressNoteDetails.aspx?id=155540&NoteId=155540&ModuleId=3

प्रधान मंत्री कार्यालय

https://www.pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=2168875

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