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भारत: एक वैश्विक जैव-अर्थव्यवस्था महाशक्ति
10 वर्षों में, 10 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 165.7 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचा
Posted On: 05 SEP 2025 11:13AM
मुख्य बिन्दु
- भारत की जैव-अर्थव्यवस्था 10 अरब अमेरिकी डॉलर (2014) से बढ़कर 165.7 अरब अमेरिकी डॉलर (2024) हो गई है, और वर्ष 2030 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य रखा है।
- चार प्रमुख उप-क्षेत्र: जैव-औद्योगिक (47%), जैव-फार्मा (35%), जैव-कृषि (8%), और जैव-अनुसंधान (9%)।
- वर्ष 2025 में 20% एथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य को हासिल किया, जोकि निर्धारित समय से 5-वर्ष पूर्व है, जिससे किसानों की आय और विदेशी मुद्रा बचत में वृद्धि हुई।
- भारत एक वैश्विक वैक्सीन का हब है, जिसमें सीरम इंस्टीट्यूट की हिस्सेदारी वर्ष 2024 में बढ़कर 24% हो गई है।
पिछले एक दशक में, भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती जैव-अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है। वर्ष 2014 के 10 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर अब यह वर्ष 2024 में 165.7 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई है, जिसने 3.89 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4.25% का योगदान दिया है। वर्ष 2030 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ, जैव-अर्थव्यवस्था भारत की सतत विकास और नवाचार यात्रा का एक मजबूत आधार बन रही है, जो जैव-प्रौद्योगिकी, कृषि नवाचार, जैव-विनिर्माण और स्वास्थ्य सेवाओं में प्रगति से प्रेरित है।
विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, जैव-अर्थव्यवस्था पौधों, पशुओं और सूक्ष्मजीवों जैसे नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग करके भोजन, ऊर्जा और औद्योगिक वस्तुओं का उत्पादन करती है। यह उत्सर्जन कम करने, जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाने और स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता प्रदान करती है। जीन-एडिटिंग और बायोप्रिंटिंग जैसी नवाचार तकनीकों के साथ, जैव-अर्थव्यवस्था ऐसे उपाय विकसित कर रही है जो पृथ्वी की रक्षा करने के साथ-साथ आर्थिक विकास और मानव कल्याण को भी आगे बढ़ाने में प्राथमिकता देती है।
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25 अगस्त, 2025 को बायोई³ नीति (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव-प्रौद्योगिकी) की पहली वर्षगांठ के अवसर पर, केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने युवाओं के लिए बायोई³ चैलेंज और देश के पहले राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क का शुभारंभ किया, उन्होंने कहा कि ये पहल जैव-प्रौद्योगिकी को भारत की अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार को बढ़ावा के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत की जैव-अर्थव्यवस्था की सफलता के प्रमुख कारक
भारत की जैव-अर्थव्यवस्था, जिसका मूल्य वर्ष 2024 में 165.7 अरब अमेरिकी डॉलर है, यह चार प्रमुख उप-क्षेत्रों द्वारा संचालित है। प्रत्येक उप-क्षेत्र विज्ञान, नवाचार और स्थिरता में भारत की शक्ति को दर्शाता है।
जैव-औद्योगिक क्षेत्र वर्ष 2024 में 78.2 अरब अमेरिकी डॉलर है, यह कुल जैव-अर्थव्यवस्था का लगभग आधा हिस्सा है। इसका प्रभुत्व इस बात को दिखलाता है कि जैव-आधारित समाधान जैसे जैव-ईंधन, रसायन, जैव-प्लास्टिक और विभिन्न उद्योगों में एंज़ाइम आधारित अनुप्रयोग तेजी से अपनाए जा रहे हैं। स्थिरता और हरित प्रौद्योगिकी की दिशा में बढ़ते प्रयासों ने इस क्षेत्र को भारत की जैव-अर्थव्यवस्था की आधारशिला के रूप में स्थापित किया है। यह क्षेत्र जैव-संश्लेषण प्रक्रियाओं और पुनः-संयोजक डीएनए प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है, जिसका अनुप्रयोग पेय पदार्थों से लेकर डिटर्जेंट तक में किया जाता है। यह भारत की हरित और चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते कदम को दर्शाता है।
- जैव-फार्मा और जैव-चिकित्सा
35.2% की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी और 58.4 अरब अमेरिकी डॉलर के मूल्य के साथ, यह क्षेत्र स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा नवाचार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र फार्मास्यूटिकल्स (दवाइयों), चिकित्सा उपकरण, डायग्नोस्टिक्स, बायोलॉजिक्स और प्रयोगशाला में विकसित ऑर्गेनॉइड्स का उत्पादन करता है। इसका ध्यान कैंसर इम्यूनोथेरेपी, जीन एडिटिंग, प्रिसिजन मेडिसिन और मेडटेक समाधानों जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है। भारत को किफायती बायोफार्मास्यूटिकल्स के लिए वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है।

13.5 अरब अमेरिकी डॉलर के साथ कुल जैव-अर्थव्यवस्था में 8.1% का योगदान देते हुए, जैव-कृषि, कृषि जैव-प्रौद्योगिकी पर केंद्रित है। यह उप-क्षेत्र कृषि जैव-प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देता है। इसमें आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, सटीक खेती और जैव-आधारित उत्पाद शामिल हैं। इसकी सफलता की प्रमुख कहानी बीटी कपास है, जिसने पैदावार बढ़ाया है और स्थिरता में सुधार लाया है।
- जैव अनुसंधान और जैव आईटी (जैव सेवाएं)
जैव-आईटी और अनुसंधान सेवा का भारत की जैव-अर्थव्यवस्था में 9.4% की हिस्सेदारी है, जिसका मूल्य 15.6 अरब अमेरिकी डॉलर है। इसमें कान्ट्रैक्ट रिसर्च, नैदानिक परीक्षण, जैव सूचना विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी सॉफ्टवेयर और जैव-शिक्षा शामिल है। यह क्षेत्र भारत की अनुसंधान और विकास सेवाओं में वैश्विक केंद्र के रूप में बढ़ती स्थिति को दर्शाता है, जो दवाओं की खोज, डेटा प्रबंधन और संबंधित क्षेत्रों में उचित समाधान प्रदान करता है।
ये सभी उप-क्षेत्र मिलकर दर्शाते हैं कि भारत की जैव-अर्थव्यवस्था कितनी तेजी से बढ़ रही है—स्वास्थ्य सेवा, कृषि, उद्योग और अनुसंधान को जोड़कर रोजगार सृजित करना, स्थिरता के बढ़ावा देना और दुनिया के लिए सही समाधान प्रदान करना।

जैव-अर्थव्यवस्था की जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण क्षमता
जैव-अर्थव्यवस्था में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करके और टिकाऊ कार्यप्रणालियों को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन को कम करने की प्रबल क्षमता है। यह स्वच्छ कृषि पद्धतियों, कृषि में कार्बन भंडारण, संतुलित आहार और वनों की पुनर्स्थापना का समर्थन करती है। साथ ही, यह पुनर्चक्रण, खाद्य अपशिष्ट में कमी, जैव-ऊर्जा के उपयोग और हरित औद्योगिक प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करती है। इन सभी उपायों को मिलाकर, जैव-अर्थव्यवस्था उत्सर्जन को कम करने में सहायता करती है और साथ ही स्थायित्व व संसाधन दक्षता को बढ़ावा देती है।

प्रमुख राज्यों का योगदान
वर्ष 2024 तक में, महाराष्ट्र भारत की जैव-अर्थव्यवस्था में अग्रणी है, महाराष्ट्र 35.45 अरब डॉलर के मूल्य के साथ भारत की जैव-अर्थव्यवस्था में अग्रणी है, जो कुल जैव-अर्थव्यवस्था मूल्य 165.7 अरब डॉलर का 21.4% है। कर्नाटक 32.4 अरब अमेरिकी डॉलर (19.5%) के साथ इसके बाद दूसरे स्थान पर है, जबकि तेलंगाना 19.9 अरब अमेरिकी डॉलर (12%) का योगदान देता है। गुजरात 12.9 अरब अमेरिकी डॉलर (7.8%), आंध्र प्रदेश 11.1 अरब अमेरिकी डॉलर (6.7%), तमिलनाडु 9.9 अरब अमेरिकी डॉलर (6%) और उत्तर प्रदेश 7.7 अरब अमेरिकी डॉलर (4.7%) का योगदान देता है। “अन्य” श्रेणी, जिसमें विभिन्न छोटे राज्य शामिल हैं, कुल 36.4 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो जैव-अर्थव्यवस्था के मूल्य का 21.9% है।

भारत की जैव-अर्थव्यवस्था का क्षेत्रीय वितरण दक्षिणी क्षेत्र के प्रभुत्व को दर्शाता है, जिसका योगदान 45.4%(75.2 अरब अमेरिकी डॉलर) का है, जो इसके मजबूत जैव-प्रौद्योगिकी आधार और नवाचार इकोसिस्टम की तस्वीर पेश करता है। पश्चिमी क्षेत्र 30.3% (50.2 अरब अमेरिकी डॉलर) के साथ इसके बाद दूसरे स्थान पर है, जिसे प्रमुख औद्योगिक केंद्रों का समर्थन प्राप्त है। उत्तरी क्षेत्र ने 18.5% (30.6 अरब अमेरिकी डॉलर) का योगदान दिया, जो जैव-प्रौद्योगिकी उद्यमों में निरंतर वृद्धि को दर्शाता है। वहीं, पूर्वी क्षेत्र ने 5.8%(9.7 अरब अमेरिकी डॉलर) का योगदान दिया, जो उभरते अवसरों और विस्तार की संभावना का संकेत देता है। यह क्षेत्रीय विस्तार दक्षिण और पश्चिम की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है, साथ ही भारत की जैव-अर्थव्यवस्था के विकास में उत्तर और पूर्व के बढ़ते महत्व को भी दिखलाता है।
जैव-विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु बायोई3 नीति
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 24 अगस्त, 2024 भारत की पहली जैव-प्रौद्योगिकी नीति, बायोई3 नीति (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव-प्रौद्योगिकी) के लिए जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। यह नीति उच्च-प्रदर्शन वाले जैव-विनिर्माण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है और जैव-विनिर्माण तथा जैव-फाउंड्री पहल के लिए ढांचा निर्धारित करती है। इस पहल का उद्देश्य उपभोग आधारित विनिर्माण से पुनर्योजी और स्थिर प्रक्रियाओं को अपनाकर हरित विकास को प्रोत्साहित करना है।
डीबीटी और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी), के साथ उद्योग हितधारकों के एक इंटरैक्टिव मीट में, केन्द्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि वैश्विक स्तर पर 121 जैव-कंपनियों में से 21 कंपनियां भारत में हैं, जिससे हमारा देश जैव-विनिर्माण नीति को संस्थागत रूप देने वाले अग्रणी देशों में शामिल हो गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जैव-विनिर्माण भारत के आत्मनिर्भरता विजन का केंद्र-बिंदु है और कहा कि " बायोएनेबलर भारत की जैव-प्रौद्योगिकी-आधारित विकास के अगले पड़ाव का आधार हैं।"
इस विकास को आगे बढ़ाने के लिए, देशभर में 21 उन्नत बायोएनेबलर सुविधाओं की शुरुआत की गई है, जो स्टार्टअप्स, एसएमई, उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों के लिए साझा बुनियादी संरचना प्रदान करती हैं। इनके प्रमुख क्षेत्रों में सूक्ष्मजीव आधारित बायोमैन्युफैक्चरिंग, स्मार्ट प्रोटीन, स्थिर कृषि, कार्यात्मक खाद्य पदार्थ, कार्बन कैप्चर, समुद्री जैव-प्रौद्योगिकी, और अगली पीढ़ी की कोशिका एवं जीन थेरेपी शामिल है।
मुख्य प्रश्न
क्यों?
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कैसे?
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क्या?
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वैश्विक खतरों के लिए समन्वित और स्थायी उपायों की आवश्यकता है
•जलवायु परिवर्तन
•असंतुलित सामग्री का उपभोग
•संसाधनों का अत्यधिक उपयोग
•अपशिष्ट उत्पादन
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जैव-प्रौद्योगिकी: एक आशाजनक दृष्टिकोण
•सक्रिय कारखाने और मशीनें
•लचीले डिजाइन तैयार करना
•अपशिष्ट से संसाधनों का पुनःउपयोग
•यथास्थान संसाधनों का प्रभावी उपयोग
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जैविक प्रणालियों का उपयोग करने वाला निर्माण
•नई टिकाऊ और कुशल विनिर्माण प्रक्रियाओं के निर्माण के लिए जीवित प्रणालियों का लाभ उठाना।
• बहुआयामी प्रक्रियाएं, मापनीय, कुशल, लागत-प्रभावी, और कम पर्यावरणीय प्रभाव।
• चिकित्सा उपचारों को आगे बढ़ाने, जैव-आधारित उत्पादों को प्रोत्साहित करने और विभिन्न उद्योगों में नवाचार का समर्थन करने की पहल।
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युवाओं के नेतृत्व में जैव-प्रौद्योगिकी समाधानों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रव्यापी बायोई3 चैलेंज
युवाओं के लिए बायोई3 चैलेंज, केन्द्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा "सूक्ष्मजीवों, अणुओं और अन्य का डिज़ाइन" विषय के अंतर्गत युवा अन्वेषकों को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम है। इसे जैव-प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आयोजित किया जाता है तथा इसमें कक्षा 6 से 12 तक के स्कूली छात्रों, विश्वविद्यालय के छात्रों, शोधकर्ताओं, संकाय, स्टार्टअप्स और भारतीय नागरिकों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण और उद्योग में चुनौतियों का समाधान करने के लिए सुरक्षित जैविक समाधान विकसित करना है।
अक्टूबर 2025 से शुरू होकर, इस चैलेंज की घोषणा हर महीने की पहली तारीख को की जाएगी। हरेक महीने के दस सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टियों को मान्यता और मार्गदर्शन के साथ ₹1 लाख का नकद पुरस्कार मिलेगा। इसके अतिरिक्त, 100 प्रतिभागियों का चयन बीआईआरएसी के माध्यम से ₹25 लाख तक की वित्तीय सहायता के लिए किया जाएगा, जिससे वे अपने विचारों को प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट समाधान में बदल सकें। इन प्रतिभागियों को देश भर के BRIC+ संस्थानों में इन्क्यूबेशन सुविधाओं और आधारभूत संरचना का भी लाभ प्राप्त होगा।
युवा प्रतिभाओं को सशक्त बनाकर और जमीनी स्तर पर नवाचार को बढ़ावा देकर, बायोई3 चैलेंज का उद्देश्य समस्या समाधान और रचनात्मकता की संस्कृति का निर्माण करने के साथ-साथ एक स्थायी व आत्मनिर्भर जैव-अर्थव्यवस्था की दिशा में योगदान देना है।
वर्ष 2025 की महत्वपूर्ण जैव-प्रौद्योगिकी उपलब्धि
- भारत ने वैश्विक स्तर पर टीकों को आसानी से सुलभ बनाकर प्रभाव बढ़ाया
भारत ने एक शीर्ष वैक्सीन निर्माता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वैश्विक वैक्सीन मार्केट रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 वैक्सीन को छोड़कर वैश्विक वैक्सीन मार्केट में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की हिस्सेदारी वर्ष 2021 में 19% से बढ़कर वर्ष 2024 में 24% हो गई। यह न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी), मीजल्स-रूबेला (एमआर), और टेटनस-डिप्थीरिया (टीथी) टीकों के अधिक उत्पादन के कारण संभव हुआ।
वैश्विक वैक्सीन मार्केट अत्यधिक संकेंद्रित है, जिसमें 10-निर्माता 80% से अधिक वैक्सीन की आपूर्ति करते हैं। इनमें से तीन—सीरम इंस्टिट्यूट, भारत बायोटेक और बायोलॉजिकल ई— भारत की कंपनियां हैं। भारतीय कंपनियों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वैक्सीन खरीद की 40% आपूर्ति की, जिसका एक बड़ा हिस्सा घरेलू स्तर पर इस्तेमाल किया गया। भारत के वैक्सीन निर्यात का लगभग 20% डब्ल्यूएचओ के अफ्रीकी क्षेत्र को गया।
- भारत ने 20% एथेनॉल मिश्रण लक्ष्य से पहले ही हासिल किया
भारत ने वर्ष 2025 में पेट्रोल में 20-प्रतिशत एथेनॉल मिश्रण(E20) के लक्ष्य को हासिल कर लिया है, जो मूल लक्ष्य से 5-वर्ष पहले है। यह वर्ष 2014 के 1.5 प्रतिशत से काफी अधिक है और देश की स्थायी जैव-अर्थव्यवस्था के निर्माण की प्रगति को दर्शाता है। यह मिश्रित पहल, जिसे वर्ष 2001 में पायलट परियोजना के तौर पर शुरू किया गया था, हाल के वर्षों में व्यापक नीतिगत सुधारों के माध्यम से तीव्र हुई है, जिससे एथेनॉल उत्पादन की संभावनाओं को बल मिला है।
इस कार्यक्रम ने जैव-अर्थव्यवस्था को कई लाभ प्रदान किए हैं:
• किसान आय सुरक्षा: एथेनॉल सप्लाई वर्ष (ESY) 2014–15 से जून 2025 तक, किसानों को एथेनॉल फीडस्टॉक के लिए ₹1,21,000 करोड़ प्राप्त हुए, जिससे गन्ने का बकाया चुकाने में मदद मिली और मक्का की खेती की व्यवहार्यता में सुधार हुआ।
• वार्षिक प्रभाव: 20 प्रतिशत मिश्रण पर, सिर्फ इस वर्ष किसानों को ₹40,000 करोड़ का भुगतान होने की संभावना है और इससे विदेशी मुद्रा की बचत लगभग ₹43,000 करोड़ होगी।
• ऊर्जा स्वतंत्रता: जुलाई 2025 तक, एथेनॉल मिश्रण ने 245 लाख मीट्रिक टन कच्चे तेल का विकल्प प्रदान किया है और ₹1,44,087 करोड़ विदेशी मुद्रा की बचत की, जिससे ऊर्जा सुरक्षा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
यह उपलब्धि ऊर्जा, कृषि और स्थिरता को एकीकृत करने में एथेनॉल मिश्रण की भूमिका को रेखांकित करती है तथा इस प्रकार भारत की जैव-अर्थव्यवस्था में योगदान देती है।
- सटीक चिकित्सा और निवारक देखभाल
स्वास्थ्य सेवा अब व्यक्तिगत और निवारक देखभाल की ओर बढ़ रही है। भारत ने नफिथ्रोमाइसिन नामक एक स्वदेशी एंटीबायोटिक शुरू किया है, जो रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) को लक्षित करता है और दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण होने वाले कम्युनिटी-एक्वायर्ड बैक्टीरियल निमोनिया का इलाज करता है। नई वैक्सीनों में क्वाड्रिवैलेंट इन्फ्लुएंजा वैक्सीन और 14-वैलेन्ट पीसीवी शामिल हैं। जीन अनुक्रमण के माध्यम से ऑन्कोलॉजी और इम्यूनोलॉजी में बेहतर उपचार संभव हो रहा है। सीएआर टी-सेल थेरेपी रक्त कैंसर के रोगियों के लिए नए विकल्प प्रदान कर रही है। एआई आधारित डायग्नोस्टिक्स और रिमोट मॉनिटरिंग स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में बदलाव ला रहे हैं।
- वर्ष 2050 तक जैव-अर्थव्यवस्था का वैश्विक प्रभाव
जैव-अर्थव्यवस्था कई अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण योगदान देती है। इटली और स्पेन की जीडीपी में 22% हिस्सेदारी है, जबकि अमेरिका और चीन की क्रमशः 5% और 4% हिस्सेदारी है। भारत की हिस्सेदारी 4.25% है। वर्ष 2050 तक, वैश्विक जैव-अर्थव्यवस्था के 4 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 30 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 12% है। पीडब्ल्यूसी की “द वर्ल्ड इन 2050” रिपोर्ट के अनुसार, भारत, चीन और इंडोनेशिया जैसे उभरते बाजार इस वृद्धि को गति प्रदान करेंगे।
वर्ष 2050 तक, वैश्विक जैव-अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण विस्तार होने की संभावना है, और इसका विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान लगभग 2.9 ट्रिलियन डॉलर (2020) से बढ़कर 30 ट्रिलियन डॉलर होगा। यह अनुमानित 228 ट्रिलियन डॉलर के वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 12% है।
भारत की जैव-अर्थव्यवस्था वर्ष 2050 तक 1.4 ट्रिलियन डॉलर से 2.7 ट्रिलियन डॉलर के बीच हो सकती है, जो वर्ष 2024 में 165.7 बिलियन डॉलर थी। भारत का अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 22 ट्रिलियन डॉलर होने पर, इस क्षेत्र का योगदान 6.5% से 12% तक हो सकता है। यह वृद्धि भारत और अन्य देशों के लिए नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, तथा सतत विकास पहलों के माध्यम से आर्थिक वृद्धि और लाखों उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियां पैदा करेगा।
- भारत वर्ष 2030 तक अपनी जैव-अर्थव्यवस्था को 300 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने की योजना बना रहा है
भारत की जैव-अर्थव्यवस्था वर्ष 2023 में 151 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2030 तक 300 बिलियन डॉलर हो जाएगी, जिसमें 12.3% की सीएजीआर अनुमानित है। जैव-चिकित्सा क्षेत्र का अनुमान 128 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का है। जैव-कृषि क्षेत्र बढ़कर 39.3 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। जैव-औद्योगिक क्षेत्र का अनुमान 121 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का है, जबकि जैव-सेवा क्षेत्र बढ़कर 42.4 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। यह वृद्धि नवाचार और सतत विकास में जैव-अर्थव्यवस्था की भूमिका को सामने लाती है।

6. भारत का जैव-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप इकोसिस्टम वर्ष 2025 में 13,000 तक पहुंच जाएगा
भारत के जैव-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप्स वर्ष 2021 में 5,365 से बढ़कर वर्ष 2025 में 13,000 हो गए, जो 142% की वृद्धि है। वर्ष 2016 से वृद्धि स्थिर रही है, और वर्ष 2020 के बाद से इसमें तेज वृद्धि हुई है। बीआईआरएसी के सहायता कार्यक्रमों और बढ़े हुए निवेश ने इस गति को और बढ़ाया है। स्टार्टअप्स ने 800 से अधिक उत्पाद विकसित किए हैं और फॉलो-ऑन फंडिंग में 600 मिलियन डॉलर जुटाए हैं।

मेडटेक क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) वर्ष 2022 में 370 मिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 618 मिलियन डॉलर हो गया। हालांकि फंडिंग में उतार-चढ़ाव देखा गया, लेकिन यह इकोसिस्टम सशक्त बना हुआ है। घरेलू नवाचार और वैश्विक सहयोग भारत को जैव-प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य-तकनीक क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित करते हैं।
एक महत्वपूर्ण और तेजी से विस्तार कर रहे क्षेत्र के रूप में, भारत की जैव-अर्थव्यवस्था सतत विकास के युग में अग्रणी भूमिका निभाने की देश की तैयारी को दर्शाती है। एथेनॉल मिश्रण और वैक्सीन नेतृत्व से लेकर सटीक चिकित्सा और जैव-विनिर्माण में उपलब्धियों तक, यह क्षेत्र राष्ट्र की चुनौतियों को अवसरों में बदलने की देश की क्षमता को दर्शाता है। वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2050 तक 2.7 ट्रिलियन डॉलर तक की अनुमानित वृद्धि के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ, भारत एक वैश्विक जैव-अर्थव्यवस्था महाशक्ति के रूप में उभरने के लिए तैयार है। जैव-प्रौद्योगिकी, हरित ऊर्जा और युवा नेतृत्व वाले नवाचार पर निरंतर ध्यान देने से यह सुनिश्चित होता है कि जैव-अर्थव्यवस्था आर्थिक समृद्धि और पर्यावरणीय संरक्षण के दोहरे लक्ष्यों को प्राप्त करने में केंद्रीय भूमिका निभाएगी, , जिससे भारत सतत भविष्य के निर्माण में विश्व के लिए एक आदर्श बनेगा।
संदर्भ
Ministry of Science & Technology
PIB Backgrounder
World Economic Forum
Food and Agriculture Organisation
Ministry of Petroleum & Natural Gas
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