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राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2025

परंपरा में नवाचारों का समावेश

Posted On: 06 AUG 2025 1:42PM

"हमें अपने देश भर में हथकरघा की समृद्ध विरासत और जीवंत परंपरा पर बहुत गर्व है। हम अपने कारीगरों के प्रयासों की भी कद्र करते हैं, और 'वोकल फॉर लोकल' के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं।"

- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

 

 

प्रस्तावना

भारतीय हथकरघा उद्योग दुनिया के सबसे पुराने और सबसे जीवंत कुटीर उद्योगों में से एक है। हज़ारों साल पुरानी विरासत के साथ, यह भारत की समृद्ध संस्कृति और कुशल कारीगरी का प्रतीक है। भारतीय बुनकर लंबे वक्त से हाथ से कताई, बुनाई और छपाई कौशल में अपनी खासियत के लिए जाने जाते हैं। ये देश भर के छोटे-छोटे कस्बों और गाँवों में स्थित हैं, जहाँ ये कला पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है और दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ रही है।

स्वदेशी से आत्मनिर्भरता की ओर

हथकरघा क्षेत्र ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई है। 7 अगस्त 1905 को शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन ने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ आर्थिक प्रतिरोध के रूप में स्वदेशी उद्योगों, खासकर हथकरघा का समर्थन किया।

हथकरघा कारीगरों की इस विरासत के सम्मान में, भारत सरकार ने 2015 में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस घोषित किया। इस दिवस का पहला उद्घाटन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने चेन्नई में किया था। तब से, यह दिवस हर साल बुनकर समुदाय का सम्मान करने, देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में उनके योगदान को पहचान देने और भारत की हथकरघा विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने के हमारे सामूहिक संकल्प को याद रखने के लिए मनाया जाता है।

11वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस: शिल्प कौशल और उत्कृष्टता का उत्सव

11वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 7 अगस्त 2025 को भारत मंडपम, नई दिल्ली में मनाया जाएगा। इस कार्यक्रम के दौरान भारत की माननीय राष्ट्रपति की गरिमामय मौजूदगी होगी, जो 5 संत कबीर पुरस्कार विजेताओं और 19 राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओं सहित कुल 24 पुरस्कार विजेताओं को 2024 के प्रतिष्ठित संत कबीर हथकरघा पुरस्कार और राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार प्रदान करेंगी।

ये पुरस्कार राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) के अंतर्गत हथकरघा विपणन सहायता (एचएमए) घटक का हिस्सा हैं। ये पुरस्कार उन बुनकरों, डिज़ाइनरों, विपणकों, स्टार्ट-अप और उत्पादक कंपनियों के काम को मान्यता देते हैं, जो इस क्षेत्र में अपने काम के ज़रिए बदलाव लाए हैं।

प्रत्येक संत कबीर पुरस्कार में 3.5 लाख रुपए का नकद पुरस्कार, एक सोने का सिक्का (जड़ित), एक ताम्रपत्र, एक शॉल और एक प्रमाण पत्र शामिल है। प्रत्येक राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार में 2 लाख रुपये का नकद पुरस्कार, एक ताम्रपत्र, एक शॉल और एक प्रमाण पत्र शामिल है।

हथकरघा हैकाथॉन - पुरानी चुनौतियों के लिए एक नया नज़रिया

हथकरघा क्षेत्र को आधुनिक चुनौतियों के मुताबिक ढालने में मदद करने के लिए, वस्त्र मंत्रालय ने 4 अगस्त 2025 को आईआईटी दिल्ली के अनुसंधान एवं नवाचार पार्क में हथकरघा हैकाथॉन 2025 की शुरूआत की। विकास आयुक्त (हथकरघा) द्वारा राष्ट्रीय डिज़ाइन केंद्र और एफआईटीटी, आईआईटी दिल्ली के सहयोग से आयोजित यह पहल, इस क्षेत्र में नवाचारों पर आधारित विकास की दिशा में एक अहम कदम है।

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थीम: "सपना देखो; कर दिखाओ"

 

हैकाथॉन में कॉलेज के छात्रों, फ़ैशन डिज़ाइनरों, इंजीनियरों, शोधकर्ताओं और बुनकरों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। चुने गए विचारों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली और कार्यान्वयन के लिए मंत्रालय से लगातार समर्थन भी मिला। इस पहल ने न केवल व्यावहारिक समस्याओं के समाधान को मुमकिन बनाया, बल्कि हथकरघा व्यवस्था तंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए मूल्यवान नेटवर्क भी बनाए।

सप्ताह भर चलने वाले समारोह: 1 से 8 अगस्त 2025

11वें राष्ट्रीय हथकरघा दिवस समारोह के एक भाग के रूप में, वस्त्र मंत्रालय ने भारत की समृद्ध हथकरघा विरासत का सम्मान करने और नए दर्शकों को जोड़ने के लिए नई दिल्ली में एक सप्ताह तक चलने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला तैयार की है।

बंधनों को बुनना: युवाओं को भारत की हथकरघा परंपराओं से दोबारा जोड़ना

राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय और हस्तकला अकादमी, नई दिल्ली में अपनी बुनाई को जानें अभियान (1-7 अगस्त) - यह खास पहल युवा पीढ़ी को भारत की हथकरघा परंपराओं के साथ फिर से जोड़ने के लिए डिज़ाइन की गई है, जो स्कूल और कॉलेज के छात्रों को हथकरघा के प्रति गहरी समझ प्रदान करती है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • विभिन्न राज्यों के कुशल कारीगरों द्वारा बुनाई का लाइव प्रदर्शन
  • बनारसी, चंदेरी, कांचीपुरम और पोचमपल्ली जैसी प्रतिष्ठित बुनाईयों पर इंटरैक्टिव कहानी-कथन
  • प्राकृतिक रंगाई, करघा तकनीक और वस्त्र कला पर कार्यशालाएँ
  • निर्देशित भ्रमण, प्रश्नोत्तरी और रचनात्मक स्थापनाओं सहित छात्र गतिविधियाँ

यह अभियान न केवल शैक्षिक है, बल्कि युवाओं और बुनकर समुदाय के बीच भावनात्मक और सांस्कृतिक संबंधों को भी मज़बूत बनाता है।

अन्य प्रमुख आकर्षणों में शामिल हैं:

 

जनपथ स्थित हैंडलूम हाट में साड़ी महोत्सव (3-10 अगस्त) - हथकरघा साड़ियों की 116 बुनाई प्रदर्शित करने वाली प्रदर्शनी

भारत मंडपम में फैशन शो 'वस्त्र वेद' और चाणक्यपुरी स्थित अशोका होटल में 'नाद' (7 अगस्त) - विभिन्न क्षेत्रों की खूबसूरत हथकरघा बुनाई पर 'वस्त्र वेद - भारत की हथकरघा विरासत' और विशिष्ट बुनाई पर 'नाद - बुनाई का संगीत'

भारत मंडपम में इंडिया इंटरनेशनल हैंड-विवन एक्सपो (7-9 अगस्त) - भारतीय हथकरघा को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों, निर्यातकों और बुनकरों को एक साथ लाना

 

हथकरघा: ग्रामीण भारत की जीवन रेखा और विरासत का रक्षक

हथकरघा क्षेत्र ग्रामीण भारत के जीवन का एक बड़ा हिस्सा है। कई परिवारों के लिए, यह न केवल एक परंपरा है, बल्कि उनकी आय का मुख्य स्रोत भी है। बुनाई अक्सर घर पर ही साधारण करघों का उपयोग करके की जाती है। इसे शुरू करने के लिए बहुत अधिक धन की ज़रुरत नहीं होती है, जो इसे छोटे गाँवों और कस्बों के लिए आदर्श बनाता है।

आज, हथकरघा बुनाई भारत का सबसे बड़ा कुटीर उद्योग है। चौथी अखिल भारतीय हथकरघा जनगणना (2019-20) के अनुसार, इस कार्य में करीब 35.22 लाख परिवार लगे हुए हैं। कुल मिलाकर, इनमें 35 लाख से अधिक बुनकर और संबद्ध श्रमिक शामिल हैं।

इस क्षेत्र का सबसे अहम हिस्सा इसमें महिलाओं की भूमिका है। करीब 72% आर्थिक हथकरघा बुनकर महिलाएं हैं। उनमें से कई के लिए, बुनाई आय और आर्थिक स्वतंत्रता दोनों प्रदान करती है। यही वजह है कि कई सरकारी योजनाएँ महिला बुनकरों की मदद करने और उन्हें अधिक समर्थन देने पर फोकस करती हैं।

हथकरघा महज़ कपड़ा नहीं है। वे हमारे लोगों, स्थानों और परंपराओं की कहानियाँ समेटे हुए हैं। बनारसी से लेकर कांजीवरम तक, हर बुनाई भारत की समृद्ध विरासत को दर्शाती है। पर्यावरण-अनुकूल तरीकों से निर्मित, हथकरघा ग्रामीण परिवारों की मदद करते हैं, महिलाओं को सशक्त बनाते हैं और स्थायी जीवन को बढ़ावा देते हैं। असल में ये हमारी पहचान को दर्शाते हैं।

भारतीय हथकरघा की समृद्ध विविधता

भारत का हथकरघा क्षेत्र अपने विविध प्रकार के कपड़ों के लिए जाना जाता है, जिनमें सूती, खादी, जूट, लिनन और हिमालयन बिछुआ जैसे दुर्लभ रेशे शामिल हैं। इसमें टसर, मशरू, शहतूत, एरी, मुगा और अहिंसा जैसी विशिष्ट रेशम किस्मों के साथ-साथ पश्मीना, शहतूत और कश्मीरी जैसे ऊनी वस्त्र भी तैयार किए जाते हैं।

भारत के हर क्षेत्र ने अपनी अनूठी हथकरघा शैली विकसित की है। उदाहरण के लिए, राजस्थान

अपनी टाई और डाई के लिए, मध्य प्रदेश चंदेरी के लिए और उत्तर प्रदेश जैक्वार्ड पैटर्न के लिए जाना जाता है। इन विशिष्ट परंपराओं ने भारतीय हथकरघों को उनके विस्तृत डिज़ाइन और कलात्मक मूल्य के लिए भारत और दुनिया भर में लोकप्रिय बनाया है।

अन्य प्रसिद्ध शैलियों में ओडिशा से बोमकाई, गोवा से कुनबी, महाराष्ट्र से पैठानी, ओडिशा से कोटपाड़, केरल से बलरामपुरम, पश्चिम बंगाल से जामदानी और बालूचरी शामिल हैं। हर उत्पाद पारंपरिक तरीकों से हाथ से तैयार किया जाता है, जिससे प्रत्येक उत्पाद बेहद अनोखा बन पड़ता है।

वैश्विक बाज़ारों में भारतीय हथकरघा

भारतीय हथकरघा अपनी समृद्ध बनावट, मिट्टी के रंगों और बारीक शिल्प कौशल के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। हर बुनाई एक कहानी कहती है, और यही सांस्कृतिक गहराई और विशिष्टता भारतीय हथकरघा उत्पादों को दुनिया भर के घरों और दिलों में एक खास जगह बनाती है।

 

अपनी समृद्ध विरासत के आधार पर, भारत व्यावसायिक स्तर पर हथकरघा वस्त्रों का दुनिया का एकमात्र प्रमुख उत्पादक बनकर उभरा है। बेहद गर्व की बात है कि दुनिया का करीब 95 प्रतिशत हाथ से बुना कपड़ा भारत में बनता है। जबकि अन्य देशों में इसी तरह के क्षेत्र कमज़ोर हो गए हैं या खत्म हो गए हैं, भारत की हथकरघा परंपरा अपने गहरे सांस्कृतिक मूल्यों और बुनकरों के स्थायी कौशल से निरंतर फलती-फूलती रही है।

 

भारत के हथकरघा निर्यात की वैश्विक बाजारों में मजबूत मांग बनी हुई है, जो 20 से अधिक देशों तक पहुँच रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 में, संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे बड़ा गंतव्य बना रहा, जहां निर्यात 331.56 करोड़ रुपये का रहा। संयुक्त अरब अमीरात 179.91 करोड़ रुपये के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि नीदरलैंड ने 73.88 करोड़ रुपये का सामान आयात किया। फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम क्रमशः 66.14 करोड़ रुपये और 65.6 करोड़ रुपये के साथ उसके करीब थे। ये आंकड़े भारतीय हथकरघा उत्पादों के शिल्प कौशल और सांस्कृतिक मूल्य के लिए निरंतर वैश्विक प्रशंसा को दर्शाते हैं।

उत्पादों के संदर्भ में, कुशन कवर, पर्दे, टेबल लिनन और अन्य घरेलू सामान जैसे मेड-अप ने 2024-25 में निर्यात राजस्व में सबसे बड़ा हिस्सा 42.4 प्रतिशत का योगदान दिया। इसके बाद कालीन, गलीचे और चटाई जैसे फ़र्श कवरिंग का स्थान रहा, जिनकी हिस्सेदारी 40.6 प्रतिशत थी। कपड़ों के सामान का योगदान 12.7 प्रतिशत था, जबकि कपड़ों का योगदान 4.3 प्रतिशत था। कपड़ों के सामान का योगदान 12.7 प्रतिशत रहा, जबकि कपड़ों का योगदान कुल बिक्री का 4.3 प्रतिशत रहा।

अपने पारंपरिक आकर्षण और पर्यावरण-अनुकूल अपील के साथ, भारतीय हथकरघा उत्पाद दुनिया भर के खरीदारों को आकर्षित करते रहे हैं। यूरोप के लिविंग रूम से लेकर मध्य पूर्व के बुटीक तक, भारतीय बुनाई एक-एक धागे के ज़रिए अपनी छाप छोड़ रही है।

 

हथकरघा विकास के लिए सरकारी योजनाएँ

भारत सरकार, वस्त्र मंत्रालय के ज़रिए ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरे देश में हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएँ लागू करती है।

प्रमुख योजनाएँ इस प्रकार हैं:

  • राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम
  • कच्चा माल आपूर्ति योजना

ये योजनाएँ कच्चे माल, करघों, औजारों और सहायक उपकरणों की खरीद, डिज़ाइन नवाचार, उत्पाद विविधीकरण, बुनियादी ढाँचे के विकास, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विपणन और लाभार्थियों को रियायती ऋण के लिए वित्तीय मदद प्रदान करती हैं।

इन योजनाओं के तहत जारी धनराशि पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी है। 2020-21 में, यह सहायता करीब 219.85 करोड़ रुपये थी, और 2024-25 तक यह बढ़कर 367.67 करोड़ रुपये से अधिक हो गई। यह वृद्धि पूरे भारत में हथकरघा और हस्तशिल्प समुदायों को सशक्त बनाने पर सरकार के अधिक फोकस को दर्शाती है।

राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी)

राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) का उद्देश्य मान्यता प्राप्त समूहों के भीतर और बाहर आत्मनिर्भर और प्रतिस्पर्धी इकाइयाँ बनाकर हथकरघा बुनकरों के सतत् विकास को बढ़ावा देना है।

यह योजना बुनकरों को सहायता प्रदान करने के लिए ज़रुरत के मुताबिक, समग्र दृष्टिकोण अपनाती है। यह कच्चे माल, डिज़ाइन, तकनीकी उन्नयन, प्रदर्शनियों के ज़रिए विपणन और शहरी हाटों एवं विपणन परिसरों जैसे स्थायी बुनियादी ढाँचे के निर्माण में मदद करती है।

एनएचडीपी के अंतर्गत घटक

2014-15 से 2023-24

2024-25

 

लघु क्लस्टर विकास कार्यक्रम

 

 

 

स्वीकृत क्लस्टरों की संख्या

715

79

जारी राशि (करोड़ रुपये में)

533.17

85.99

 

शामिल लाभार्थियों की संख्या

2,16,579

12,221

 

हथकरघा विपणन सहायता

 

 

 

स्वीकृत विपणन कार्यक्रमों की संख्या

2316

177

 

जारी राशि (करोड़ रुपये में)

302.42

35.77

 

शामिल लाभार्थियों की संख्या

37,59,380

4,86,040

 

जीआई अधिनियम, 1999 के अंतर्गत पंजीकृत उत्पादों/वस्तुओं की संख्या

73

31

 

बुनकर मुद्रा ऋण

 

 

 

स्वीकृत ऋणों की संख्या

 

2,90,212

9,211

 

हथकरघा बुनकर कल्याण

 

 

 

पीएमजेजेबीवाई/पीएमएसबीवाई के तहत नामांकित बुनकर

24,86,697

1,42,126

 

 

कच्चा माल आपूर्ति योजना (आरएमएसएस)

यार्न आपूर्ति योजना (वाईएसएस), जिसे अब आंशिक रूप से संशोधित कर कच्चा माल आपूर्ति योजना (आरएमएसएस) कर दिया गया है, को 2021-22 से 2025-26 की अवधि के लिए कार्यान्वयन हेतु अनुमोदित किया गया है। इस योजना का मकसद निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्यों और घटकों के ज़रिए किफायती मूल्यों पर गुणवत्तापूर्ण यार्न की उपलब्धता सुनिश्चित करके हथकरघा बुनकरों की मदद करना है।

उद्देश्य

  • पात्र हथकरघा बुनकरों को रियायती दरों पर गुणवत्तापूर्ण यार्न और मिश्रण उपलब्ध कराना।
  • मानक मूल्य निर्धारित करना और निरंतर गुणवत्ता और आपूर्ति बनाए रखना।
  • खराब रंगाई सुविधाओं की समस्या का समाधान करने और उत्पाद विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए रंगे हुए यार्न की आपूर्ति करना।
  • मिल क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा करने में हथकरघा बुनकरों की मदद करना।

सब्सिडी

इस योजना के तहत, सभी प्रकार के धागों के लिए माल ढुलाई शुल्क की प्रतिपूर्ति की जाती है और सूती धागे, घरेलू रेशम, ऊनी और लिनन धागे तथा प्राकृतिक रेशों के मिश्रित धागे के लिए मात्रा सीमा के साथ 15% यार्न सब्सिडी दी जाती है, ताकि हथकरघा बुनकर मूल्य निर्धारण में पावरलूम के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें।

 

मुद्रा ऋण

यह योजना बुनकरों को बैंकों के माध्यम से 6% की कम ब्याज दर पर रियायती ऋण प्रदान करती है। ऋणों में मदद करने के लिए, व्यक्तिगत बुनकर 25,000 रुपये तक की मार्जिन मनी प्राप्त कर सकते हैं, जबकि संगठन 20 लाख रुपये तक प्राप्त कर सकते हैं। मंत्रालय ऋण देने को प्रोत्साहित करने के लिए बैंकों को ऋण गारंटी शुल्क का भी भुगतान करता है। इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए, बुनकरों के खातों में मार्जिन मनी के सीधे हस्तांतरण के साथ-साथ ब्याज सहायता और बैंकों को ऋण गारंटी भुगतान के लिए Handloom Weavers MUDRA portal बनाया गया है।

भारत सरकार की अन्य महत्वपूर्ण पहल

विपणन सहायता

हथकरघा बुनकरों को एक विपणन मंच प्रदान करने के लिए नियमित रूप से प्रदर्शनियाँ और जिला स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बुनकरों को देश भर में आयोजित होने वाले विभिन्न शिल्प मेलों में भाग लेने का अवसर भी प्रदान किया जाता है। एक नई पहल के रूप में, हथकरघा उत्पादों के ई-मार्केटिंग को बढ़ावा देने के लिए 23 ई-कॉमर्स कंपनियों को शामिल किया गया है।

हथकरघा उत्पादों का प्रमाणन

हथकरघा उत्पादों को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करने के लिए 2006 में हैंडलूम मार्क की शुरुआत की गई थी। 2015 में, उच्च गुणवत्ता वाले हथकरघा उत्पादों की ब्रांडिंग के लिए इंडिया हैंडलूम ब्रांड (आईएचबी) की शुरुआत की गई थी। इसका मकसद बुनकर और उपभोक्ता के बीच सीधा संबंध बनाना है, जिससे बुनकर को बेहतर कमाई और उपभोक्ता को गुणवत्ता का आश्वासन मिले। बीबा, पीटर इंग्लैंड और ओनाया जैसे प्रमुख ब्रांडों ने आईएचबी के साथ विशेष हथकरघा संग्रह लॉन्च किए हैं।

लघु क्लस्टर विकास कार्यक्रम (एससीडीपी)

लघु क्लस्टर विकास कार्यक्रम का मकसद बुनकर समूहों को महत्वपूर्ण और आत्मनिर्भर संस्थाओं के रूप में विकसित करना है। करघे और सहायक उपकरणों की खरीद, लाइट इकाइयों, वर्कशेड निर्माण, सामान्य वर्कशेड के लिए सौर प्रकाश व्यवस्था, वस्त्र डिजाइनरों की नियुक्ति और उत्पाद विकास गतिविधियों जैसे कार्यों के लिए प्रति क्लस्टर 2 करोड़ रुपए तक की आवश्यकता-आधारित वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

कौशल उन्नयन

बुनकरों और संबद्ध श्रमिकों को नई बुनाई तकनीकें सीखने, आधुनिक तकनीकों को अपनाने और नए डिज़ाइन और रंग विकसित करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रशिक्षण में पर्यावरण के अनुकूल रंगाई पद्धतियाँ, बुनियादी लेखांकन और प्रबंधन का ज्ञान, और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से परिचित कराना भी शामिल है।

हथकरघा संवर्धन सहायता (करघे और सहायक उपकरण)

इस योजना का मकसद उन्नत करघे, जैक्वार्ड, डोबी आदि को अपनाकर कपड़े की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार लाना है। इस योजना के तहत, 90% लागत भारत सरकार द्वारा वहन की जाती है, जबकि कार्यान्वयन संबंधित राज्य सरकारों की पूर्ण भागीदारी से किया जाता है।

कार्यशाला योजना

यह योजना, बुनकर के घर के पास पूरे परिवार के लिए समर्पित कार्यस्थल प्रदान करती है। प्रत्येक इकाई की लागत 1.2 लाख रुपए है। महिला, बीपीएल, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ट्रांसजेंडर और दिव्यांग बुनकरों सहित हाशिए पर रहने वाले परिवार 100% वित्तीय सहायता के पात्र हैं, जबकि अन्य लाभार्थियों को 75% सहायता मिलती है।

डिज़ाइनरों की नियुक्ति

नवीन डिज़ाइन और उत्पाद विकसित करने के लिए पेशेवर डिज़ाइनरों को क्लस्टरों के भीतर और बाहर नियुक्त किया जाता है। यह योजना उनकी फीस को कवर करती है और डिज़ाइन गतिविधियों की मदद करने और विपणन संबंध स्थापित करने के लिए पारिश्रमिक के लिए अतिरिक्त वित्तीय परिव्यय प्रदान करती है।

पारंपरिक डिज़ाइनों का संरक्षण

मंत्रालय भौगोलिक संकेत (जीआई) अधिनियम, 1999 के तहत भारत के अनूठे हथकरघा पैटर्न को पंजीकृत करने में मदद करके उन्हें सुरक्षित रखने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। यह सेमिनारों और कार्यशालाओं के माध्यम से जागरूकता को भी बढ़ावा देता है। अब तक, कुल 658 जीआई टैग वाले उत्पादों में से कुल 104 हथकरघा उत्पाद जीआई अधिनियम के तहत पंजीकृत हो चुके हैं।

उत्पादक कंपनियों के माध्यम से सशक्तिकरण

उत्पादकता और आय में सुधार के लिए, विभिन्न राज्यों में 163 से अधिक उत्पादक कंपनियां (पीसी) स्थापित की गई हैं। ये समूह बुनकरों को अपने व्यवसायों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने और बड़े बाजारों तक पहुँचने में मदद करते हैं।

जीईएम और इंडियाहैंडमेड डॉट काम के साथ डिजिटलीकरण

बुनकरों को अपने उत्पाद ऑनलाइन बेचने में भी सहायता दी जा रही है। करीब 1.80 लाख बुनकरों को सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) से जोड़ा गया है, जिससे वे सीधे सरकारी विभागों और संस्थानों को उत्पाद बेच सकते हैं। 2418 विक्रेता इंडियाहैंडमेड डॉट काम से जुड़े हैं और 11410 उत्पाद अपलोड किए गए हैं।

हथकरघा बुनकरों के लिए कल्याणकारी उपाय

वस्त्र मंत्रालय पूरे भारत में हथकरघा बुनकरों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता रहता है। प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेवाई), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) और एकीकृत महात्मा गांधी बीमा योजना (एमजीबीबीवाई) जैसी बीमा योजनाओं के ज़रिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। ये प्राकृतिक और आकस्मिक मृत्यु के साथ-साथ विकलांगता के मामलों में भी कवरेज प्रदान करती हैं।

60 वर्ष से अधिक आयु के, गरीबी में जीवन यापन करने वाले और सालाना 1 लाख रुपए से कम कमाने वाले पुरस्कार विजेता बुनकरों को 8,000 रुपए प्रति माह की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसके अलावा, उनके बच्चे (दो तक) सरकारी मान्यता प्राप्त कपड़ा संस्थानों में डिप्लोमा, स्नातक या स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए प्रति वर्ष 2 लाख रुपए तक की छात्रवृत्ति के पात्र हैं।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भारत की बुनाई परंपराओं और उन्हें जीवित रखने वाले लोगों का एक हार्दिक उत्सव है। 11वां संस्करण, न केवल प्रतिष्ठित पुरस्कारों के ज़रिए उनके योगदान को मान्यता दे रहा है, बल्कि हैंडलूम हैकाथॉन 2025 जैसी दूरदर्शी पहलों के साथ इसमें नई रफ्तार भी ला रहा है। नए विचारों, सहयोगों और प्रौद्योगिकी के ज़रिए, यह क्षेत्र सशक्तिकरण और नवीनीकरण की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।

इस खास दिन को मनाते हुए, हम अपने कारीगरों, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाने, भारत की समृद्ध बुनाई परंपराओं की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्धता दोहराते हैं, ताकि विरासत, स्थिरता और आत्मनिर्भरता के धागे एक मजबूत और जीवंत भविष्य का लगातार निर्माण करते रहें।

संदर्भ

विदेश मंत्रालय

 

सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय

 

 

वस्त्र मंत्रालय

 

हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद

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