Farmer's Welfare
“अमृतकाल: योजनाबद्ध उर्वरक नीति के माध्यम से भारत के किसानों का सशक्तिकरण”
Posted On: 03 AUG 2025 9:44AM
मुख्य बातें
- पिछले छह वर्षों में छह नए यूरिया संयंत्र चालू किए गए, जिससे उत्पादन क्षमता 76.2 एलएमटी बढ़ गई।
- भारत वैश्विक स्तर पर उर्वरकों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक बना हुआ है।
- भारत ने 2023-24 में अपना अब तक का सबसे अधिक घरेलू यूरिया उत्पादन दर्ज किया, जो 314 लाख मीट्रिक टन को पार कर गया।
- सऊदी अरब, नेपाल, भूटान और श्रीलंका के साथ नए अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का उद्देश्य दीर्घकालिक उर्वरक आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
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परिचय
कृषि उत्पादकता बढ़ाने में उर्वरकों की अहम भूमिका होती है। गुणवत्तापूर्ण बीजों और भरोसेमंद सिंचाई के साथ, ये फसल की ज्यादा उपज हासिल करने से जुड़े प्रमुख कारकों में से एक हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, विशेष रूप से हरित क्रांति के बाद, उर्वरकों का उपयोग लगातार बढ़ा है। खाद्य उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, कृषि और संबद्ध क्षेत्र भारत के जीडीपी में लगभग 16% का योगदान करते हैं और 46% से अधिक आबादी का भरण-पोषण करते हैं। यह कृषि को देश की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ बनाता है, जो न केवल खाद्य उत्पादन, बल्कि संबंधित क्षेत्रों में रोजगार और विकास को भी बढ़ावा देता है।
संसद द्वारा पारित अनुपूरक अनुदान मांगों के माध्यम से, वित्त वर्ष 2024-25 के लिए उर्वरक विभाग के बजट अनुमान को ₹1,68,130.81 करोड़ से संशोधित कर ₹1,91,836.29 करोड़ कर दिया गया। यह आवंटन, अनुमानित उर्वरक उपयोग, प्राकृतिक गैस की कीमतों और वैश्विक उर्वरक बाजार के रुझानों को ध्यान में रखते हुए, इस क्षेत्र के लिए सरकार के मजबूत समर्थन को दर्शाता है। आज, भारत वैश्विक स्तर पर उर्वरकों का दूसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्ता और तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। अध्ययनों ने उर्वरक के बढ़ते उपयोग और बेहतर फसल पैदावार के बीच एक स्पष्ट संबंध दर्शाया है। जब उर्वरक की खपत बढ़ती है, तो प्रमुख फसलों की उत्पादकता में भी सुधार होता है। इससे पता चलता है कि भारत में खेती की सफलता के लिए उर्वरक कितने महत्वपूर्ण हैं।
उर्वरक क्या हैं?
उर्वरक अकार्बनिक रसायनों से बने कन्संट्रेटेड प्लान्ट न्यूट्रिएंट्स होते हैं। इनका उपयोग पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए किया जाता है जो पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं। जैविक खाद के विपरीत, उर्वरकों में पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं और इनका प्रयोग कम मात्रा में किया जाता है।
उर्वरक उपयोग के लिए तैयार होते हैं और विभिन्न रूपों में उपलब्ध होते हैं। हालांकि, इनमें से कुछ सिंचाई या वर्षा के साथ बह सकते हैं। इसका अर्थ है कि ये अवशोषित होने से पहले ही पौधों के लिए अनुपलब्ध हो सकते हैं। उनकी संरचना के आधार पर, उर्वरकों को एकल उर्वरक, मिश्रित उर्वरक या सूक्ष्म पोषक तत्वों वाले उर्वरकों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
उर्वरकों का प्रयोग
उर्वरकों के प्रयोग का तरीका पौधों द्वारा पोषक तत्वों के अवशोषण की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। उचित समय और विधि से फसल की बेहतर प्रतिक्रिया सुनिश्चित होती है और मिट्टी में जल-अपवाह या रासायनिक प्रतिक्रियाओं से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। फसल, मिट्टी की स्थिति और सिंचाई की विधि के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग ठोस या तरल रूप में किया जा सकता है।
प्रयोग का समय:
रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बुवाई से ठीक पहले या उसके तुरंत बाद किया जाता है। सही मात्रा और उसकी फ्रीक्वेंसी फसल के प्रकार, मिट्टी की उर्वरता और मौसम पर निर्भर करती है।
उर्वरकों के फायदे
- उर्वरक बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं
- विशेष पोषक तत्वों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जा सकता है
- पैकेज्ड उत्पाद ले जाने और संग्रहीत करने में आसान होते हैं
- प्रयोग को नियंत्रित और मापा जा सकता है
- विभिन्न सांद्रता और फॉर्मूले उपलब्ध हैं
उर्वरक उद्योग का विकास
बीते एक दशक में, भारत के उर्वरक उद्योग में लगातार वृद्धि देखी गई है। कुल उर्वरक उत्पादन 2014-15 में 385.39 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) से बढ़कर 2023-24 में 503.35 लाख मीट्रिक टन हो गया है। यह प्रगति इस क्षेत्र में केंद्रित सरकारी सुधारों और निवेश के प्रभाव को दर्शाती है।
अब तक का सर्वाधिक घरेलू यूरिया उत्पादन
वर्ष 2023-24 में, भारत ने यूरिया का अब तक का सर्वाधिक घरेलू उत्पादन दर्ज किया, जो 314 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) से अधिक था। इस वृद्धि से सरकार द्वारा उर्वरक उत्पादन आधार के विस्तार और आयात पर निर्भरता कम करने पर दिए गए जोर का पता चलता है।
पिछले छह वर्षों में, देश भर में छह नए यूरिया संयंत्र चालू हो गए हैं।
इन इकाइयों ने मिलकर भारत की घरेलू यूरिया उत्पादन क्षमता में 76.2 लाख मीट्रिक टन की वृद्धि की है।
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क्षेत्रवार योगदान
2023-24 के दौरान:
- सार्वजनिक क्षेत्र ने कुल उर्वरक उत्पादन में लगभग 17.43% का योगदान दिया।
- सहकारी क्षेत्र का योगदान 24.81% रहा।
- निजी क्षेत्र ने सबसे अधिक 57.77% का योगदान दिया।
उर्वरकों की खपत और आयात निर्भरता
वर्ष 2023-24 में भारत की कुल वार्षिक उर्वरक खपत लगभग 601 एलएमटी थी। 503 एलएमटी का उत्पादन भारत में घरेलू स्तर पर किया गया, जबकि 177 एलएमटी का आयात किया गया।
आत्मनिर्भरता और आयात में कमी
भारत ने प्रमुख उर्वरकों में लगभग आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है:
- लगभग 87% यूरिया की खपत घरेलू स्तर पर पूरी की जाती है।
- 90% एनपीके उर्वरक भी देश में ही उत्पादित होते हैं।
- हालांकि, डीएपी के लिए, केवल लगभग 40% ही स्थानीय उत्पादन से आता है।
- म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) के मामले में, अभी भी 100% आयात किया जाता है।
उर्वरक क्षेत्र में सरकार की पहल
क. उर्वरक सब्सिडी और बजटीय सहायता
वर्ष 2024-25 के लिए, उर्वरक विभाग को ₹1,91,836 करोड़ का अंतिम बजट प्राप्त हुआ, जो मूल रूप से आवंटित ₹1,68,131 करोड़ से उल्लेखनीय वृद्धि है। यह वृद्धि संसद द्वारा अनुमोदित अनुपूरक मांगों के माध्यम से संभव हुई।
पोषक तत्व आधारित सब्सिडी योजना के अंतर्गत, आवंटन को बजट अनुमान (बीई) 2024-25 में ₹45,000 करोड़ से बढ़ाकर ₹54,310 करोड़ कर दिया गया, जिससे फॉस्फेटिक और पोटाशिक उर्वरकों के लिए निरंतर सहायता सुनिश्चित हुई।
पोषक तत्व आधारित सब्सिडी योजना
सरकार ने 1 अप्रैल 2010 को फॉस्फेटिक और पोटाशिक उर्वरकों के लिए पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना शुरू की। इस योजना के तहत, डाइ-अमोनियम फॉस्फेट सहित सब्सिडी वाले पी और के उर्वरकों के लिए उनकी पोषकता के आधार पर एक निश्चित सब्सिडी प्रदान की जाती है। सब्सिडी की दरें वार्षिक या अर्धवार्षिक आधार पर तय की जाती हैं। पी और के क्षेत्र को नियंत्रणमुक्त कर दिया गया है, जिससे उर्वरक कंपनियां उचित स्तर पर अधिकतम खुदरा मूल्य निर्धारित कर सकती हैं। इन कीमतों की निगरानी सरकार द्वारा की जाती है, जबकि कंपनियां बाजार की मांग के अनुसार उर्वरकों का उत्पादन या आयात करती हैं।
28 मार्च 2025 को, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पोषक तत्व आधारित सब्सिडी योजना के लिए संशोधित दरों को मंजूरी दे दी है। ये सब्सिडी एनपीकेएस ग्रेड सहित फॉस्फेटिक और पोटाशिक (पीएंडके) उर्वरकों पर लागू होती हैं। नई दरें 2025 खरीफ सीजन के लिए लागू हैं, जो 1 अप्रैल से 30 सितंबर 2025 तक चलेगा। इस सीजन के लिए कुल सब्सिडी परिव्यय ₹37,216.15 करोड़ है। यह राशि पिछले रबी सीज़न के दौरान प्रदान की गई राशि से लगभग ₹13,000 करोड़ अधिक है।
यूरिया किसानों को 45 किलोग्राम के बैग के लिए ₹242 की निश्चित कीमत पर बेचा जाता है, यह दर मार्च 2018 से अपरिवर्तित बनी हुई है। सरकार निर्माताओं को सब्सिडी के माध्यम से लागत के अंतर की भरपाई करती है।
वैश्विक बाजार के दबावों के कारण, डीएपी (डायमोनियम फॉस्फेट) के लिए ₹3,500 प्रति टन की एकमुश्त विशेष सब्सिडी अप्रैल 2024 से मार्च 2025 तक बढ़ा दी गई थी। यह उपाय डीएपी को किफायती बनाए रखकर किसानों की मदद करता है।
ख. एक राष्ट्र एक उर्वरक (ओएनओएफ)
उर्वरक क्षेत्र में ब्रांडिंग में एकरूपता लाने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक राष्ट्र एक उर्वरक योजना शुरू की गई थी। यह देश भर में सभी सब्सिडी वाले उर्वरकों के लिए 'भारत' नामक एक ही ब्रांड नाम के उपयोग पर केंद्रित है।
इस योजना के तहत, चाहे वह यूरिया हो, डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट), एमओपी (पोटेशियम का म्यूरिएट), या एनपीके हो, सभी पोषक तत्व-आधारित उर्वरक एक ही ब्रांड लेबल के तहत बेचे जाते हैं। पैकेजिंग पर 'भारत यूरिया', 'भारत डीएपी', या 'भारत एनपीके' नाम के साथ-साथ उर्वरक कंपनी का नाम भी छोटे अक्षरों में स्पष्ट रूप से लिखा होता है।
इसका उद्देश्य किसानों के बीच भ्रम को कम करना है। पहले, एक ही उर्वरक कई ब्रांड नामों से बेचा जाता था, जिससे खरीदारों के लिए गुणवत्ता का आकलन करना मुश्किल हो जाता था। ब्रांडिंग के इस नए दृष्टिकोण से सुनिश्चित होता है कि सभी राज्यों के किसानों को सरकारी सहायता के आश्वासन के साथ समान गुणवत्ता वाला उत्पाद मिले।
ग. उर्वरक संयंत्रों का पुनरुद्धार और नया निवेश (अप्रैल 2025 तक)
नई निवेश नीति (एनआईपी) 2012 के अंतर्गत प्रमुख उर्वरक संयंत्रों का पुनरुद्धार और निवेश स्थिति:
संयंत्र का नाम
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स्थान
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प्रकार
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स्थिति
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वार्षिक क्षमता
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टिप्पणियां
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रामागुंडम (आरएफसीएल)
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तेलंगाना
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जेवीसी (पीएसयू)
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फिर से खोला गया और चालू हुआ
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12.7 एलएमटी (लाख मीट्रिक टन)
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एनआईपी-2012 के तहत संयुक्त उद्यम (जेवी)
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गोरखपुर (एचयूआरएल)
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उत्तर प्रदेश
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जेवीसी (पीएसयू)
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आईएफएल समर्थन से परिचालन में है
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12.7 एलएमटी
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₹350.55 करोड़ के आईएफएल को मंजूरी
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सिंदरी (एचयूआरएल)
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झारखंड
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जेवीसी (पीएसयू)
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आईएफएल समर्थन से परिचालन में
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12.7 एलएमटी
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₹261.04 करोड़ के आईएफएल को मंजूरी
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बरौनी (एचयूआरएल)
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बिहार
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जेवीसी (पीएसयू)
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आईएफएल समर्थन से परिचालन में
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12.7 एलएमटी
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₹283.21 करोड़ के आईएफएल को मंजूरी
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पानागढ़ (मैटिक्स)
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पश्चिम बंगाल
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निजी
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एनआईपी-2012 के अंतर्गत स्थापित
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12.7 एलएमटी
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निजी कंपनी (मैटिक्स) द्वारा स्थापित
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गड़ेपान III (सीएफसीएल)
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राजस्थान
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निजी
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नवीनतम तकनीक का उपयोग कर संचालित
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12.7 एलएमटी
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चंबल फर्टिलाइजर्स (सीएफसीएल) द्वारा संचालित
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तलचर (टीएफएल)
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ओडिशा
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जेवीसी (पीएसयू)
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ग्रीनफील्ड परियोजना कोयला गैसीकरण रूट के माध्यम से निर्माणाधीन
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12.7 एलएमटी
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पुनरुद्धार के लिए विशेष नीति स्वीकृत, परियोजना निष्पादन के अधीन
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नामरूप-IV (बीवीएफसीएल)
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असम
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पीएसयू के नेतृत्व वाला जेवी
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19 मार्च 2025 को कैबिनेट ने मंजूरी दी; ₹10,601.40 करोड़ के निवेश को मंजूरी दी गई
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12.7 एलएमटी (न्यूनतम)
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ब्रह्मपुत्र वैली फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीवीएफसीएल) परिसर में स्थित; पूर्वी क्षेत्र की क्षमता को बढ़ावा देने के लिए
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सारांश
- कुल जोड़ी गई क्षमता: उपरोक्त परियोजनाओं के माध्यम से 76.2 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष (एलएमटी) जोड़ी गई।
- वित्तपोषण: गोरखपुर, बरौनी और सिंदरी इकाइयों के लिए ब्याज मुक्त ऋण (आईएफएल) के रूप में ₹894.80 करोड़ आवंटित।
- नामरूप-IV: मार्च 2025 में स्वीकृत नवीनतम परियोजना, एनआईपी (नई निवेश नीति) 2012 के तहत एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से पूरी तरह से वित्तपोषित।
घ. विकसित भारत संकल्प यात्रा
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 15 नवंबर 2023 को शुरू की गई विकसित भारत संकल्प यात्रा (वीबीएसवाई) ने कृषि में ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा दिया। इस पहल का उद्देश्य किसानों को यह दिखाना था कि ड्रोन विभिन्न फसलों पर नैनो और जल-घुलनशील उर्वरकों का प्रभावी ढंग से छिड़काव कैसे कर सकते हैं।
ङ. नमो ड्रोन दीदी कार्यक्रम
- विकसित भारत संकल्प यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया।
- 2023-24 और 2025-26 के बीच स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की 15,000 महिलाओं को ड्रोन प्रदान करने का लक्ष्य।
- कृषि में, विशेष रूप से नैनो उर्वरकों और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा देता है।
- दक्षता बढ़ाता है, फसल उपज बढ़ाता है और किसानों की परिचालन लागत कम करने में मदद करता है।
- ये ड्रोन दीदी सेवा वितरण के लिए पीएम किसान समृद्धि केंद्रों (पीएमकेएसके) से जुड़ी हुई हैं।
उर्वरकों के सतत एवं संतुलित उपयोग को बढ़ावा
दीर्घकालिक उर्वरक प्रयोगों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के पांच दशकों के निष्कर्षों से पता चला है कि अकेले नाइट्रोजन-आधारित उर्वरकों का निरंतर उपयोग मृदा स्वास्थ्य और फसल उत्पादकता को नुकसान पहुंचाता है। इस तरह के प्रयोग से अन्य प्रमुख एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो गई है। यहां तक कि जब एनपीके या उससे अधिक की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग किया जाता है, तब भी द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी अंततः उपज को सीमित कर देती है। ये कमियां पौधों की वृद्धि को धीमा कर सकती हैं और शारीरिक विकारों को जन्म दे सकती हैं। नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से भूजल में नाइट्रेट संदूषण का खतरा भी बढ़ जाता है, विशेष रूप से हल्की मिट्टी में, जहां स्तर 10 मिलीग्राम एनओ3-एन/एल प्रति लीटर की सुरक्षित सीमा से ऊपर बढ़ सकता है। इससे जल के उपभोग से मानव और पशु स्वास्थ्य को गंभीर खतरा होता है।
इन खतरों को समझते हुए, सरकार ने सतत कृषि पर ध्यान केंद्रित किया है और निम्नलिखित पहलों को लागू किया जा रहा है।
1. नैनो उर्वरक पहल
नैनो उर्वरक क्या हैं?
नैनो उर्वरक पौधों के पोषक तत्व होते हैं जो नैनोमटेरियल नामक बहुत छोटे कणों में भरे होते हैं। यह परत पोषक तत्वों को धीरे-धीरे और लगातार मिट्टी में छोड़ने में मदद करती है। नियंत्रित उत्सर्जन यह सुनिश्चित करता है कि पौधे उन्हें अधिक प्रभावी ढंग से और कम बर्बादी के साथ अवशोषित करें।
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नैनो उर्वरकों को बढ़ावा देने से जुड़ी प्रमुख पहल
- उर्वरक विभाग कार्यशालाओं, वेबिनार, नुक्कड़ नाटकों, क्षेत्रीय फिल्मों और क्षेत्रीय प्रदर्शनों जैसे जागरूकता अभियानों के माध्यम से नैनो उर्वरकों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है।
- नैनो यूरिया और नैनो डीएपी अब देश भर के प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों (पीएमकेएसके) पर उपलब्ध हैं।
- उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नैनो यूरिया को विभाग की मासिक आपूर्ति योजना में शामिल किया गया है।
- भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान ने नैनो किस्मों सहित संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान का नेतृत्व किया।
- नैनो डीएपी के लिए एक "महा अभियान" सभी 15 कृषि-जलवायु क्षेत्रों में क्षेत्रीय प्रदर्शनों और किसानों के साथ बातचीत के साथ चलाया जा रहा है।
- प्रभावशीलता और अपनाने का आकलन करने के लिए 100 जिलों में नैनो यूरिया के लिए एक पायलट परियोजना चल रही है।
- प्रशिक्षित ग्राम-स्तरीय उद्यमियों के सहयोग से, आसान और लागत प्रभावी अनुप्रयोग के लिए ड्रोन छिड़काव और बैटरी चालित स्प्रेयर का उपयोग किया जा रहा है।
- उर्वरक कंपनियों को नैनो उर्वरक उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, हालाँकि वर्तमान में कोई सब्सिडी या पीएलआई (उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन) योजना नहीं है।
इन कदमों से अगली पीढ़ी की उर्वरक तकनीक के माध्यम से टिकाऊ कृषि और सटीक खेती के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का पता चलता है।
2. नीम कोटेड यूरिया (एनसीयू)
पौधों को सभी पोषक तत्वों में नाइट्रोजन की सबसे ज़्यादा जरूरत होती है। यूरिया फसलों के लिए नाइट्रोजन का मुख्य स्रोत है। हालांकि, सामान्य यूरिया की दक्षता कम होती है, क्योंकि लगभग आधी नाइट्रोजन वाष्पीकरण और निक्षालन के माध्यम से नष्ट हो जाती है। बेहतर तरीकों और नीम लेपित यूरिया का उपयोग करके इस हानि को कम किया जा सकता है। नीम कोटेड यूरिया नाइट्रोजन को मिट्टी में लंबे समय तक रहने में मदद करता है, जिससे यह पौधों के लिए अधिक उपयोगी हो जाता है।
नीम कोटेड यूरिया क्या है?
नीम कोटेड यूरिया, नीम के तेल से लेपित सामान्य यूरिया उर्वरक है। यह लेप मिट्टी में नाइट्रोजन के उत्सर्जन को धीमा कर देता है। परिणामस्वरूप, पौधे को उसकी आवश्यकता के अनुसार, धीरे-धीरे नाइट्रोजन प्राप्त होता है।
यह धीमी गति से नाइट्रोजन का उत्सर्जन फसल की वृद्धि में सुधार करता है और नाइट्रोजन की हानि को कम करता है। यह उर्वरक के अत्यधिक उपयोग को रोकने में भी मदद करता है। समान परिणाम प्राप्त करने के लिए किसानों को सामान्य यूरिया की तुलना में लगभग दस प्रतिशत कम नीम लेपित यूरिया की आवश्यकता होती है।
कुल मिलाकर, यह खेती को अधिक कुशल बनाता है और मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
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3. पीएम-प्रणाम योजना
पीएम-प्रणाम योजना (धरती माता के पुनरुद्धार, जागरूकता, पोषण और सुधार हेतु प्रधानमंत्री कार्यक्रम) एक सरकारी पहल है जिसका उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करना और संतुलित पोषक तत्वों के प्रयोग को प्रोत्साहित करना है। यह जैविक खाद, जैव उर्वरक और कम्पोस्ट जैसे पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों के उपयोग को बढ़ावा देती है। यह योजना उन राज्यों को प्रोत्साहन प्रदान करती है जो पिछले उपयोग के स्तर की तुलना में अपने रासायनिक उर्वरक उपभोग को सफलतापूर्वक कम करते हैं।
4. जैव उर्वरक और जैविक पोषक तत्वों का संवर्धन
सरकार टिकाऊ कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए जैव उर्वरकों और जैविक पोषक तत्वों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है। राइजोबियम, एजोटोबैक्टर और पीएसबी जैसे स्वीकृत उपभेदों को और अधिक सुलभ बनाया जा रहा है। आईसीएआर संस्थान अनुसंधान और विस्तार प्रयासों का नेतृत्व कर रहे हैं। इन उपायों का उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करना और मृदा स्वास्थ्य में सुधार करना है।
5. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को उनकी प्रत्येक भूमि के लिए दी जाने वाली एक मुद्रित रिपोर्ट है। यह 12 प्रमुख मापदंडों, अर्थात् नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, पीएच (अम्लीय या क्षारीय), ईसी (विद्युत चालकता), कार्बनिक कार्बन, सल्फर, जिंक, बोरॉन, आयरन, मैंगनीज और कॉपर, का परीक्षण करके मिट्टी की स्थिति दर्शाता है। यह योजना नियमित परीक्षण के माध्यम से किसानों को उनकी मिट्टी की आवश्यकताओं को समझने में मदद करती है और हर 2 साल में मार्गदर्शन प्रदान करती है।
तकनीकी और डिजिटल हस्तक्षेप
सरकार ने उर्वरक वितरण और निगरानी में सुधार के लिए प्रमुख तकनीकी उपकरण पेश किए हैं। इन प्रयासों का उद्देश्य आपूर्ति श्रृंखला को और अधिक कुशल और किसान-केंद्रित बनाना है।
1. आईएफएमएस (एकीकृत उर्वरक प्रबंधन प्रणाली)
यह प्रणाली उत्पादन से लेकर खुदरा विक्रेता तक संपूर्ण उर्वरक आपूर्ति पर नजर रखती है। यह उर्वरक विभाग को वास्तविक समय में आवाजाही की निगरानी करने और राज्यों में स्टॉक की उपलब्धता का प्रबंधन करने में मदद करती है।
2. एमएफएमएस (मोबाइल उर्वरक प्रबंधन प्रणाली)
मोबाइल उर्वरक प्रबंधन प्रणाली (एमएफएमएस) एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जो डीलर पंजीकरण, रीयल-टाइम स्टॉक ट्रैकिंग और एमआईएस (प्रबंधन सूचना प्रणाली) और डीबीटी (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) रिपोर्ट तक पहुंच जैसी ऑनलाइन सेवाएं प्रदान करके उर्वरक वितरण में सुधार करता है। यह किसानों को आस-पास के डीलरों को खोजने और उपलब्धता की जाँच करने में मदद करता है।
अंतर्राष्ट्रीय उर्वरक सौदे और आपूर्ति समझौते
भारत पड़ोसी देशों के साथ दीर्घकालिक समझौतों और रणनीतिक निवेशों के माध्यम से उर्वरक क्षेत्र में अपने वैश्विक सहयोग को निरंतर गहरा कर रहा है। प्रमुख घटनाक्रमों में शामिल हैं:
क. सऊदी अरब: दीर्घकालिक डीएपी आपूर्ति सुनिश्चित करना
केंद्रीय मंत्री श्री जे.पी. नड्डा ने उर्वरक क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने के लिए 11 से 13 जुलाई 2025 तक रियाद और दम्मम का दौरा किया। इस यात्रा के दौरान, सऊदी अरब की मादेन और भारतीय कंपनियों आईपीएल, कृभको और सीआईएल के बीच दीर्घकालिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। ये समझौते वित्तीय वर्ष 2025-26 से शुरू होकर पांच वर्षों तक सालाना 3.1 मिलियन मीट्रिक टन डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं, जिसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। सऊदी अरब से डीएपी आयात में पहले ही 17% की वृद्धि देखी जा चुकी है, जो 2023-24 में 16 लाख टन से बढ़कर 2024-25 में 19 लाख टन हो गया है। दोनों पक्षों ने यूरिया जैसे अन्य प्रमुख उर्वरकों को शामिल करने के लिए अपने सहयोग का विस्तार करने पर भी चर्चा की।
ख. भूटान को उर्वरक सहायता
भूटान की शाही सरकार ने भारत से पांच वर्षों की अवधि के लिए प्रतिवर्ष 5,000 मीट्रिक टन उर्वरक की आपूर्ति का अनुरोध किया है। अनुरोधित उर्वरकों में यूरिया, सुफला (एनपीके), सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी), म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) और बोरेक्स शामिल हैं। भूटान ने भारतीय किसानों को दी जाने वाली दरों के समान रियायती दरों पर इन उर्वरकों की खरीद की मांग की है। इसे सुगम बनाने के लिए, उर्वरक विभाग ने आपूर्ति के प्रबंधन के लिए ब्रह्मपुत्र वैली फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीवीएफसीएल) को नामित किया है। बीवीएफसीएल वर्तमान में आयात व्यवस्था को अंतिम रूप देने के लिए भूटान के राष्ट्रीय बीज केंद्र के साथ बातचीत कर रहा है।
ग. श्रीलंका में निवेश का प्रस्ताव
एफसीआई अरावली जिप्सम एंड मिनरल्स इंडिया लिमिटेड (एफएजीएमआईएल) ने 800 टन की दैनिक क्षमता वाला सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) संयंत्र स्थापित करने के लिए लंका फॉस्फेट लिमिटेड के साथ एक संयुक्त उद्यम का प्रस्ताव रखा है। प्रस्ताव के तहत, एफएजीएमआईएल 90% हिस्सेदारी रखेगा और अगले तीन से चार वर्षों में लगभग 25 से 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा। इस परियोजना की प्रगति को सुगम बनाने के लिए, उर्वरक विभाग ने श्रीलंकाई अधिकारियों के साथ बातचीत शुरू करने के लिए विदेश मंत्रालय (एमईए) से संपर्क किया है।
घ. नेपाल को उर्वरक आपूर्ति
भारत और नेपाल सरकारों के बीच 28 फरवरी 2022 को एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते में नेपाल की कृषि आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत से यूरिया और डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की आपूर्ति की रूपरेखा तैयार की गई है।
निष्कर्ष
अमृत काल के दौरान भारत की उर्वरक रणनीति पोषक तत्वों के संतुलित उपयोग, टिकाऊ तौर-तरीकों, सामर्थ्य और नवाचार पर केंद्रित है। सरकार ने नैनो और नीम आधारित उर्वरकों जैसे उन्नत विकल्प पेश किए हैं और साथ ही देश भर में प्रमुख उत्पादन संयंत्रों को पुनर्जीवित भी किया है। दक्षता और पारदर्शिता में सुधार के लिए स्मार्ट निगरानी प्रणालियों को अपनाया जा रहा है। ये प्रयास किसानों को सशक्त बनाने, पर्यावरण की रक्षा करने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए डिजाइन किए गए हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय कृषि खाद्य सुरक्षा और आर्थिक प्रगति में योगदान करते हुए मजबूत और आत्मनिर्भर बनी रहे।
संदर्भ:-
भारत का बजट
https://www.indiabudget.gov.in/economicsurvey/doc/echapter.pdf
रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय
https://www.fert.nic.in/sites/default/files/2020-082025-04/Annual_Report_Fertilizer_English.pdf
एनसीईआरटी
https://ncert.nic.in/vocational/pdf/kefc105.pdf
इफ्को
https://www.iffco.in/en/nano-Fertilizers
राज्य सभा प्रश्न
https://sansad.in/getFile/annex/267/AU3387_9X9HAs.pdf?source=pqars
मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल
https://www.india.gov.in/spotlight/soil-health-card#tab=tab-1
India.Gov
https://v2.india.gov.in/services/details/integrated-Fertilizer-management-system
कृषि विभाग-उत्तर प्रदेश
https://upagripardarshi.gov.in/staticpages/Rabifertilizeruse.aspx
पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति- रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय
https://www.pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=2116214
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2116176
https://www.pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=1886054
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2100721
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2144426
पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति -कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय
https://www.pib.gov.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=2080192
https://www.pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=104064
https://www.pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1696465
पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति -अन्य
https://www.pib.gov.in/PressNoteDetails.aspx?NoteId=152048&ModuleId=3
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