Social Welfare
क्लास रूम ऑफ चेंज : नई शिक्षा नीति 2020 और स्कूली शिक्षा का नया युग
Posted On: 28 JUL 2025 6:08PM
मुख्य बातें
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- • 5+3+3+4 संरचना और एनसीएफ-एसई 2023 (राष्ट्रीय स्कूली शिक्षा पाठ्यचर्या रूपरेखा) अनुभव और योग्यता आधारित शिक्षा को बढ़ावा देते हैं। सीबीएसई बोर्ड परीक्षाओं में अब 50% योग्यता-आधारित प्रश्न शामिल किये जाते हैं और विषय दो स्तरों पर उपलब्ध हैं।
- • निपुण भारत और विद्या प्रवेश में 8.9 लाख स्कूलों के 4.2 करोड़ से ज़्यादा छात्र शामिल हुए हैं।
- • 1.15 लाख से ज़्यादा एसईडीजी (सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूह) छात्र और 7.58 लाख छात्राएं समावेशी आवासीय विद्यालयों में नामांकित हैं; प्रशांत ऐप दिव्यांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम (आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम) के अनुरूप दिव्यांगता जाँच का समर्थन करता है। भारतीय सांकेतिक भाषा अब एक विषय है, जिसके लिए 1000 से ज़्यादा आईएसएल वीडियो और टॉकिंग बुक्स विकसित की गई हैं।
- • निष्ठा के तहत 4 लाख से ज़्यादा शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया है; दीक्षा के माध्यम से मूलभूत साक्षरता एवं संख्यात्मक योग्यता (एफएलएन) और प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (ईसीसीई) मॉड्यूल एकीकृत किए गए हैं। 72% स्कूलों में अब इंटरनेट की सुविधा है, और ई-जादुई पिटारा प्रारंभिक कक्षाओं में एआई-संचालित बहुभाषी शिक्षा प्रदान करता है।
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परिचय: भारतीय स्कूली शिक्षा में बदलाव
29 जुलाई, 2020 को, भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में एक नये अध्याय की शुरुआत की, जो न केवल सुधार से, बल्कि पुनर्रचना से भी संबंधित है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020) के शुभारंभ के साथ, देश ने अपने स्कूलों को ऐसे स्थानों में बदलने के लिए एक महत्वाकांक्षी रोडमैप तैयार किया है, जहाँ शिक्षा अब केवल पाठ्यपुस्तक, अंक या रटने तक ही सीमित नहीं है।
एनईपी 2020 एक ऐसी स्कूली शिक्षा प्रणाली की परिकल्पना करती है, जो लचीली, समावेशी और गहन रूप से शिक्षार्थी-केंद्रित है; जहाँ जिज्ञासा को प्रोत्साहित किया जाता है, रचनात्मकता को पोषित किया जाता है और कक्षाएँ उस दुनिया की विविधता और गतिशीलता को दर्शाती हैं, जिसे छात्र एक दिन आकार देंगे। पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति से लेकर मूल्यांकन और शिक्षक विकास तक, स्कूली शिक्षा के हर पहलू की पुनर्कल्पना करके, यह नीति सीखने के अनुभव में आनंद, प्रासंगिकता और उद्देश्य को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करती है।
भारत की समृद्ध सभ्यतागत विरासत में निहित और समानता एवं उत्कृष्टता के सिद्धांतों के मार्गदर्शन में, एनईपी 2020 'सतत विकास' लक्ष्य 4: सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना', जैसी वैश्विक प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है। यह नीति मानती है कि सार्थक शिक्षा जल्दी शुरू होनी चाहिए, इसे मजबूत नींव का निर्माण करना चाहिए और यह जीवन भर जारी रहनी चाहिए।
भारत की शैक्षिक विरासत को 21वीं सदी की माँगों के साथ जोड़ते हुए, यह नीति ऐसी कक्षाएँ बनाने की आकांक्षा रखती है, जो न केवल जानकारी देती हो, बल्कि सशक्त बनाती हो।
प्रमुख सुधार कार्यक्रम
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (ईसीसीई) और आधारभूत शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, प्रारंभिक शिक्षा को स्कूल सुधार के केंद्र में रखती है, यह मानते हुए कि मस्तिष्क का 85% से अधिक विकास छह वर्ष की आयु से पहले ही हो जाता है। यह नीति आधारभूत साक्षरता एवं संख्यात्मक योग्यता (एफएलएन) और ईसीसीई पर केंद्रित है। आधारभूत साक्षरता एवं संख्यात्मक योग्यता (एफएलएन) का अर्थ है - कक्षा तीन के अंत तक समझ के साथ पढ़ने और गणित की प्रारंभिक गणना करने की क्षमता। अच्छे स्वास्थ्य और सामाजिक-भावनात्मक कल्याण के साथ, एफएलएन आगे की शिक्षा और विकास के लिए एक मज़बूत आधार प्रदान करता है और बच्चों के स्कूल प्रणाली से बाहर होने की संभावना को कम करता है।
समझ के साथ पढ़ने एवं प्रारंभिक संख्यात्मक योग्यता में दक्षता के लिए राष्ट्रीय पहल (निपुण भारत) मिशन, स्कूल तैयारी एवं प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा (विद्या प्रवेश), बाल वाटिकाएँ, जो 5+3+3+4 संरचना के तहत 3 वर्ष की पूर्व-विद्यालयी शिक्षा प्रदान करती हैं, जैसे कार्यक्रम इस दिशा से जुड़ी पहलें हैं। विद्या प्रवेश कार्यक्रम 12-सप्ताह के खेल-आधारित मॉड्यूल के माध्यम से कक्षा 1 में प्रवेश करने वाले बच्चों में स्कूल के लिए तैयारी को बढ़ावा देता है। पहली बार 3-8 वर्ष की आयु के बच्चों के आधारभूत स्तर के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ-एफएस) विकसित की गयी है।

जादुई पिटारा, 3 से 6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए खेल-आधारित शिक्षण सामग्री (एलटीएम) का एक संग्रह है, जैसे खिलौने, खेल, पहेलियाँ, कठपुतलियाँ, पोस्टर आदि। एक ई-जादुई पिटारा भी शुरू किया गया है। इसके अतिरिक्त, मातृभाषा में एफएलएन सीखने के लिए स्थानीय भाषाओं में प्रारंभिक पाठ्यक्रम विकसित किए गए हैं। एफएलएन चरण के लिए शिक्षकों का क्षमता निर्माण एक अन्य प्रमुख क्षेत्र है। निष्ठा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत 12 लाख से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया है। एफएलएन शिक्षा के लिए डिजिटल तकनीक का भी उपयोग किया जा रहा है, जिसके तहत दीक्षा प्लेटफॉर्म पर आयु और विकास के अनुरूप कई भाषाओं में पठन-सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- 2026-27 तक एफएलएन हासिल करने के लिए जुलाई 2021 में निपुण भारत मिशन शुरू किया गया।
- विद्या प्रवेश: 8.9 लाख स्कूलों में कक्षा 1 के 4.2 करोड़ प्रवेशार्थी 12-सप्ताह के खेल-आधारित स्कूल तैयारी कार्यक्रम से लाभान्वित हुए।
- बालवाटिका (प्रीस्कूल): 1.1 करोड़ से अधिक बच्चे नामांकित; केंद्रीय विद्यालयों में 496 मॉडल केंद्र कार्यरत।
- खेल-खेल में सीखने के लिए जादुई पिटारा कार्यक्रम शुरू किया गया।
- पाठ्यक्रम: सभी 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने एनसीएफ-एफएस को अपनाया; 121 बहुभाषी प्रारंभिक पठन सामग्री विकसित की गयी।
- डिजिटल उपकरण: दीक्षा (राष्ट्रीय एड-टेक प्लेटफ़ॉर्म) पर 2,778 एफएलएन सामग्री; 2024 में ई-जादुई पिटारा ऐप लॉन्च किया गया।
- शिक्षक प्रशिक्षण: निष्ठा (शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम) एफएलएन के तहत 12.97 लाख शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया।
- इन पहलों का प्रभाव राष्ट्रीय शिक्षण मूल्यांकन में परिलक्षित होता है। परख राष्ट्रीय सर्वेक्षण, 2024 के अनुसार, कक्षा 3 स्तर पर, राज्य सरकार के स्कूलों के विद्यार्थियों ने निजी और शहरी स्कूलों के विद्यार्थियों से बेहतर प्रदर्शन किया तथा ग्रामीण बच्चों ने भाषा और गणित दोनों में अपने शहरी साथियों की तुलना में अधिक अंक प्राप्त किए। एएसईआर 2024 के अनुसार, सरकारी स्कूलों में कक्षा तीन के बच्चों में बुनियादी पठन स्तर 2005 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है: 2024 में 23.4% बच्चे कक्षा दो के स्तर का पाठ पढ़ सकते थे, जो 2022 में 16.3% और 2018 में 20.9% था। अंकगणित दक्षता में भी सुधार हुआ है, कक्षा तीन के 27.6% छात्र अब गणित संक्रिया, घटाव करने में सक्षम थे, जबकि 2022 में यह आंकड़ा 20.2% और 2018 में 20.9% था।
समग्र शिक्षा और सार्वभौमिक पहुँच: स्कूल छोड़ने वालों की संख्या में कमी, समानता में वृद्धि
"सभी के लिए शिक्षा" सुनिश्चित करने की भावना के साथ भारत सरकार ने समग्र शिक्षा के माध्यम से स्कूल पहुँच और छात्रों की संख्या में वृद्धि को पुनर्जीवित किया है, जो पूर्व-प्राथमिक से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक फैली एक एकीकृत योजना है। भारत का सकल पहुँच अनुपात (जीईआर) 2023-24 में सराहनीय ऊँचाई पर पहुँच गया: प्राथमिक में 97.8% और उच्च प्राथमिक में 96.57%। महत्वपूर्ण रूप से, बेहतर स्कूल अवसंरचना के साथ स्कूल छोड़ने की दर में भी कमी आई है - 98.4% स्कूलों में अब पेयजल, 97.1% में लड़कियों के लिए शौचालय, 85.1% में रैंप और 85.1% में बिजली की सुविधा है।
इस व्यापक कार्यक्रम में, समावेशी छात्रावास वंचित समुदाय के शिक्षार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण सहायता प्रणाली बन गए हैं। देश में अब सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों (एसईडीजी) के 1.15 लाख छात्रों के लिए 1,137 नेताजी सुभाष आवासीय विद्यालय और 7.58 लाख छात्राओं के लिए 5,269 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी) हैं।
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) राज्यों के साथ सहयोग करके और लचीले प्रवेश बिंदु (ओबीई स्तर के बच्चे और वयस्क) बनाकर, स्कूल न जाने वाले बच्चों की समस्या का सीधा समाधान कर रहा है, जिससे 2030 तक 100% सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल रही है। एनआईओएस ने अग्निवीरों के लिए 10वीं या 12वीं परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु विशेष प्रावधान विकसित किए हैं।
विद्यांजलि, समग्र शिक्षा के अंतर्गत एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है, जिसे स्कूलों को स्वयंसेवकों और संगठनों से जोड़ने के लिए शुरू किया गया है। यह प्लेटफ़ॉर्म स्कूलों को स्वयंसेवी सेवाओं और संसाधनों/सामग्री के योगदान में सहायता का अनुरोध करने की अनुमति देता है और व्यक्तियों, गैर-सरकारी संगठनों और कॉर्पोरेट्स को इन ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाता है। 30,000 से अधिक संसाधन योगदान और 34,000 से अधिक गतिविधि-आधारित कार्य सफलतापूर्वक पूरे किए जा चुके हैं। इस पहल का 1.7 करोड़ से अधिक छात्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
प्रशस्त और समावेशी कक्षाएँ: प्रत्येक बच्चे की क्षमता को सक्षम बनाना
एनईपी 2020 स्कूली शिक्षा के एक केंद्रीय स्तंभ के रूप में, समावेश को बढ़ावा देता है। डिजिटल पूर्व-मूल्यांकन उपकरण, प्रशस्त के शुभारंभ से शिक्षक दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 में सूचीबद्ध 21 दिव्यांगताओं में से किसी भी दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चों की पहचान करने और उन्हें सहायता प्रदान करने में सक्षम हुए हैं। फ्लिपबुक और मोबाइल ऐप, दोनों स्वरूपों में उपलब्ध, प्रशस्त नियमित और विशेष शिक्षकों को प्रारंभिक हस्तक्षेप के लिए उपकरण प्रदान करता है और इस प्रकार समावेशी शिक्षण वातावरण की नींव रखता है।
इसके अलावा, भारतीय सांकेतिक भाषा (आईएसएल) को माध्यमिक स्तर पर एक विषय के रूप में औपचारिक रूप से शामिल किया गया है, जो बधिर शिक्षार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। 46 विषयों पर 1,000 से अधिक आईएसएल वीडियो और बोलने वाली किताबें (टॉकिंग बुक्स) विकसित की गईं हैं और इन्हें सुलभ बनाया गया है, जिससे शिक्षण पहले से कहीं अधिक समावेशी हो गया है। इन कदमों के साथ-साथ एनआईओएस की समावेशी शिक्षा और लैंगिक नीतियों से भारत को 2021 में यूनेस्को किंग सेजोंग साक्षरता पुरस्कार मिला।
बहुभाषावाद को प्रोत्साहन : एनईपी 2020 समावेशी, बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देता है, ताकि प्रत्येक बच्चे का फलना-फूलना सुनिश्चित हो सके।

पाठ्यक्रम सुधार: विषय-वस्तु के अतिभार से योग्यता-आधारित शिक्षा तक
पुराने 10+2 मॉडल के बदले एनईपी 2020 ने 5+3+3+4 संरचना की शुरुआत की, जिसे एनसीएफ-एफएस (2022) और एनसीएफ-एसई (2023) रूपरेखाओं से समर्थन मिल रहा है। इसमें (i) प्राथमिक स्तर के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ-एफएस) और (ii) स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा शामिल हैं। इनसे प्राथमिक वर्षों से लेकर माध्यमिक स्तर तक, खेल-आधारित, बहु-विषयक और अनुभवात्मक शिक्षा आधारित एक क्रांतिकारी बदलाव आया। "मृदंग" (अंग्रेजी), "सारंगी" (हिंदी), और "आनंददायक गणित” (जॉयफुल मैथमेटिक्स) जैसी पाठ्यपुस्तकें न केवल आयु के उपयुक्त हैं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संदर्भों में गहराई से निहित हैं। उल्लेखनीय रूप से, एनसीएफ खिलौना-आधारित शिक्षाशास्त्र, अंतःविषयक विषयवस्तु और बहुभाषी कक्षाओं को प्रोत्साहन देता है, जिसमें पठन सामग्री का 22 अनुसूचित भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है। कक्षा 3 से 5 के लिए एक नया विषय "हमारे आसपास की दुनिया" शिक्षार्थियों को एकीकृत, अनुभवात्मक स्वरूप में विज्ञान और सामाजिक अध्ययन से परिचित कराता है। आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और जिज्ञासा को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किए गए प्रत्येक पाठ के साथ, भारत की कक्षाओं को आनंददायक शिक्षण के गतिशील स्थानों के रूप में पुनर्कल्पित किया जा रहा है।
एनसीएफ कक्षा 3 से व्यावसायिक अनुभव और कक्षा 6 से व्यावसायिक शिक्षा को एक विषय के रूप में प्रस्तुत करने की भी अनुशंसा करता है। कौशल शिक्षा को नियमित पाठ्यक्रम के साथ जोड़ने के लिए, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क (एनसीआरएफ) अधिसूचित किया और स्कूलों में कक्षा 9 से 12 तक के लिए एनसीआरएफ के कार्यान्वयन हेतु सीबीएसई द्वारा मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) अधिसूचित की गयी है।

प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना
दीक्षा (ज्ञान साझा करने के लिए डिजिटल अवसंरचना) स्कूली शिक्षा के लिए भारत का राष्ट्रीय प्लेटफार्म है। यह 133 भारतीय भाषाओं में डिजिटल शिक्षण संसाधन प्रदान करता है। यह प्लेटफ़ॉर्म क्यूआर-कोड युक्त पाठ्यपुस्तकों का समर्थन करता है और अपनी गति से सीखने की सुविधा प्रदान करता है। यह शिक्षकों के लिए निष्ठा जैसे व्यावसायिक विकास पाठ्यक्रम प्रदान करता है। महामारी के दौरान, दीक्षा, पीएम ई-विद्या के "एक राष्ट्र, एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म" की केंद्रबिंदु रही।
राष्ट्रीय विद्या समीक्षा केंद्र (आरवीएसके) देश भर के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के वीएसके से प्राप्त प्रणालीगत स्कूली शिक्षा डेटा का एक सुपर-समन्वय कर्ता है, जो नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं में निर्णय लेने के लिए डेटा के संग्रह और विश्लेषण को सक्षम बनाता है। इसका उद्देश्य वास्तविक समय पर स्कूली शिक्षा प्रणाली के प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों (केपीआई) से संबंधित डेटा प्रदान करना है, ताकि नीति निर्माता और प्रशासक साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने में सक्षम हो सकें।
पीएम ई-विद्या के तहत, 200 डीटीएच टीवी चैनल देश भर के सभी छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ बनाते हैं।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों को सशक्त बनाना
एनईपी 2020 शिक्षकों को बेहतर भर्ती, प्रशिक्षण और करियर प्रगति के माध्यम से स्कूल परिवर्तन की प्रेरक शक्ति के रूप में स्थापित करती है।
प्रमुख उपलब्धियाँ:

- निष्ठा प्रशिक्षण: ईसीसीई और एफएलएन में 14 लाख से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया।
- एनईपी 2020 के तहत राष्ट्रीय एडटेक प्लेटफ़ॉर्म, दीक्षा, बहुभाषी शिक्षण संसाधन, आपसी संवाद आधारित पठन सामग्री और एकीकृत निष्ठा प्रशिक्षण मॉड्यूल प्रदान करता है, जो शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों, सभी के लिए सहायक है।
- मूल्यांकन और स्कूल प्रशासन में बदलाव

एनईपी 2020 मूल्यांकन में बदलाव लाता है, जो रटने पर आधारित परीक्षाओं की जगह पर सतत, रचनात्मक और योग्यता-आधारित मूल्यांकन को प्रमुखता देता है।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- परख, योग्यता-आधारित, रचनात्मक मूल्यांकन में बदलाव का आधार है।
- 2024 राष्ट्रीय सर्वेक्षण में 21.15 लाख छात्रों और 2.7 लाख शिक्षकों को शामिल किया गया, जिसमें ग्रामीण और सरकारी स्कूलों के कक्षा 3 के छात्रों ने अच्छा प्रदर्शन किया, जिससे निपुण भारत की पुष्टि हुई।
- समग्र प्रगति कार्ड (एचपीसी) छात्रों के विकास का 360-डिग्री दृश्य प्रदान करते हैं, जिसमें शैक्षणिक, रचनात्मकता, सामाजिक-भावनात्मक कौशल और सामुदायिक जुड़ाव शामिल हैं।
- स्कूल गुणवत्ता मूल्यांकन और आश्वासन रूपरेखा (एसक्यूएएएफ) का उद्देश्य पाँच महत्वपूर्ण क्षेत्रों, प्रशासन, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन, अवसंरचना और समावेश के माध्यम से स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार करना है।

सरकारी योजनाएँष्कर्ष
पिछले पाँच वर्षों में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने भारत में एक अधिक समावेशी, शिक्षार्थी-केंद्रित और भविष्य के लिए तैयार शिक्षा प्रणाली की नींव रखी है। इसका प्रभाव; बचपन से लेकर उच्च शिक्षा तक, सीखने के हर चरण में, सार्थक सुधारों के माध्यम से दिखाई देता है, जो छात्रों और शिक्षकों को परिवर्तन के केंद्र में रखते हैं।
बालवाटिका और निपुण भारत जैसी पहलों के जरिये, बच्चे अपनी सीखने की यात्रा मज़बूत नींव के साथ शुरू कर रहे हैं। गतिविधि-आधारित शिक्षा, बहुभाषी शिक्षा और समग्र प्रगति कार्ड के माध्यम से स्कूल अधिक आकर्षक स्थान बन रहे हैं, समग्र प्रगति कार्ड न केवल अंकों को बल्कि विकास, रचनात्मकता और कल्याण को भी दर्शाते हैं। निरंतर प्रशिक्षण, बेहतर करियर की सुविधा और उच्च-गुणवत्ता वाले डिजिटल उपकरणों तक पहुँच के माध्यम से शिक्षकों को पहले से कहीं अधिक सशक्त बनाया जा रहा है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह नीति शिक्षा को अधिक न्यायसंगत बना रही है। चाहे लड़कियों और विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए समर्थन के माध्यम से हो, भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के माध्यम से हो, या क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने के प्रयासों के माध्यम से हो, एनईपी 2020 एक ऐसी प्रणाली का निर्माण कर रही है, जहाँ प्रत्येक शिक्षार्थी को फलने-फूलने का अवसर मिले।
यह यात्रा जारी है, लेकिन प्रगति स्पष्ट है। निरंतर प्रतिबद्धता और सहयोग के साथ, एनईपी 2020 एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का वादा करती है, जो न केवल ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि प्रत्येक बच्चे में आत्मविश्वास, जिज्ञासा और क्षमता का भी पोषण करती है।
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