Social Welfare
भारत की लुप्तप्राय भाषाओं का दस्तावेज़ीकरण
Posted On: 12 AUG 2025 11:31AM
ऊटी के निकट नीलगिरि पहाड़ियों में रहने वाली 66 वर्षीया कुर्ताज़ वसमल्लि का कहना है, “हमारे कुलदेवता, जिन्हें तमिल में कुलदेवम कहा जाता है, का हमारे गाँव में एक मंदिर है, जिसे पोलिवो (poɬliwoʃ) कहते हैं।” उन्होंने कहा, “हमारा विश्वास है कि दैवीय शक्तियाँ मंदिर से हमारे गाँवों में आती हैं... यहाँ कोई मूर्ति पूजा नहीं होती।”
चाय और कॉफ़ी के बागानों के लिए प्रसिद्ध इन पहाड़ियों को टोडा जनजाति द्वारा पवित्र माना जाता है। यह जनजाति हज़ारों सालों से वहाँ रहती आ रही हैं। इस चरवाहा समुदाय का मानना है कि उनके देवी-देवता कभी उनके बीच ही रहा करते थे और समय के साथ इस पवित्र भूभाग का हिस्सा बन गए।

चित्र 1 - तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले में स्थित मुदुमलाई टाइगर रिजर्व
वसमल्लि अपनी मौखिक परंपराओं को अपनी मूल भाषा टोडा के माध्यम से जानती हैं। टोडा एक लुप्तप्राय प्रोटो-दक्षिण-द्रविड़ भाषा है, जो दक्षिण द्रविड़ (कन्नड़, तेलुगु और मलयालम जैसी भाषाओं) से अलग होकर अलग-थलग विकसित हुई। टोडा लोगों की संख्या अब कुछ हज़ार है। वसमल्लि समुदाय की उन बुजुर्गों में से हैं जो अपनी पारंपरिक मौखिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में प्रयासरत हैं।

वसमल्लि ने हाल ही में शिक्षा मंत्रालय के अधीन मैसूर स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) द्वारा क्रियान्वित लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा एवं संरक्षण योजना (एसपीपीईएल) टीम के साथ काम किया है। एसपीपीईएल की ओर से देश की लुप्तप्राय भाषाओं—10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं या पहले भाषाई रूप से अध्ययन न की गई भाषाओं—के दस्तावेज़ीकरण और पुरालेखन का कार्य किया जा रहा है।
एसपीपीईएल का उद्देश्य फील्ड वर्क करके, भाषाओं के व्याकरण और शब्दों का दस्तावेज़ीकरण करके, वृत्तचित्र, द्विभाषी/त्रिभाषी शब्दकोश, चित्रात्मक शब्दावलियाँ और जातीय-भाषाई प्रोफ़ाइल बनाकर, और ऑडियो फ़ाइलों सहित दस्तावेज़ीकरण के कार्य को विश्वव्यापी पहुँच के लिए ऑनलाइन रिपॉजिटरी में अपलोड करके, भावी पीढ़ियों के लिए लुप्तप्राय भाषाओं को संरक्षित और पुनर्जीवित करना है।
वर्तमान में, एसपीपीईएल ने 117 लुप्तप्राय भाषाओं की पहचान की है, और भविष्य में लगभग 500 कम-ज्ञात भाषाओं का दस्तावेज़ीकरण करने की दिशा में काम कर रहा है।
भारत सरकार की कई अन्य योजनाएँ जनजातीय और लुप्त होती संस्कृतियों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में काम करती हैं। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 स्थानीय भाषाओं के संरक्षण के लिए बहुभाषी अध्ययन को बढ़ावा देती है।
यह स्थानीय प्रयास वैश्विक चिंता को दर्शाता है। लुप्तप्राय भाषाएँ और संस्कृतियाँ एक वैश्विक परिघटना हैं। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन के अनुसार, दुनिया भर में 7,000 भाषाओं में से लगभग आधी भाषाएँ लुप्तप्राय हैं। यूनेस्को ने कई स्वदेशी भाषाओं की गंभीर स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करने और उनके संरक्षण, पुनरोद्धार और संवर्धन के लिए हितधारकों और संसाधनों को जुटाने हेतु 2022 और 2032 के बीच की अवधि को अंतर्राष्ट्रीय स्वदेशी भाषा दशक घोषित किया है।
90 देशों में रहने वाले स्वदेशी लोगों के अधिकारों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है।
एआई और स्वदेशी अधिकार
इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र का विश्व आदिवासी दिवस (9 अगस्त) "स्वदेशी लोग और एआई: अधिकारों की रक्षा, भविष्य को आकार देना" पर केंद्रित है - जिसमें स्वदेशी समुदायों के लिए एआई की संभावनाओं और खतरों दोनों पर प्रकाश डाला गया है।
चुनौती
- एआई विकास में प्रमुख तकनीकी कंपनियों का दबदबा है, जिनमें स्वदेशी प्रतिनिधित्व बहुत कम है और एआई प्रशिक्षण में स्वदेशी ज्ञान का उपयोग बिना उचित सहमति के किया जा रहा है, जिससे औपनिवेशिक पैटर्न कायम है और डिजिटल विभाजन बढ़ रहा है।
स्वदेशी नवाचार
- पॉलिनेशियाई समुदाय रीफ़ संरक्षण परियोजनाओं के लिए एआई का उपयोग कर रहे हैं
- •न्यूज़ीलैंड का तेहिकू मीडिया माओरी भाषा के पुनरुद्धार के लिए एआई का उपयोग कर रहा है
भारतीय जनजातीय भाषा संरक्षण में एआई और प्रौद्योगिकी
- भारत का जनजातीय कार्य मंत्रालय जनजातीय शोध, सूचना, शिक्षा, संचार और कार्यक्रम (टीआरआई-ईसीई) योजना के माध्यम से एआई-आधारित भाषा संरक्षण को वित्तपोषित कर रहा है, जिसमें शामिल हैं:
- भाषा शोध एवं प्रकाशन केंद्र, वडोदरा: आदिवासी भाषाओं, संस्कृति और जीवन-कौशल के अध्ययन और दस्तावेज़ीकरण हेतु 58.70 लाख रुपये (2019-20)
- आईआईटी और भाषिणी के साथ बिट्स पिलानी: अंग्रेजी/हिंदी पाठ/भाषण को आदिवासी भाषाओं में और इसके विपरीत रूपांतरित करने हेतु एआई अनुवाद उपकरण विकसित करने हेतु 3.122 करोड़ रुपये (2024-25)
भारत की लुप्तप्राय भाषाएँ
भारत की भाषाई विविधता के सर्वेक्षण और दस्तावेज़ीकरण के प्रयास लंबे अरसे से विद्यमान हैं। भारतीय भाषाओं का पहला भाषाई सर्वेक्षण 1894 में जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा शुरू किया गया था, जिन्होंने 1901 की जनगणना के लिए भाषा सर्वेक्षण रिपोर्ट भी तैयार की थी। भारतीय भाषाई सर्वेक्षण 1903 से 1928 के बीच 25 वर्षों की अवधि में प्रकाशित हुआ था और इसमें 11 खंड (19 भागों में) हैं जिनमें 8,000 से अधिक पृष्ठ हैं जो ब्रिटिश भारत के एक बड़े हिस्से की भाषाओं और बोलियों का वर्णन करते हैं। इसमें कुल 179 भाषाएँ और 544 बोलियाँ सूचीबद्ध हैं।
भारत की 1961 की जनगणना में 1,652 मातृभाषाएँ दर्ज की गईं, जिनमें से एसपीपीईएल ने 117 लुप्तप्राय भाषाओं की पहचान की है। 2011 की जनगणना के अनुसार, दर्ज की गई तर्कसंगत मातृभाषाओं की संख्या 2,843 थी। इनमें से 1369 वर्गीकृत मातृभाषाएँ थीं, अर्थात वे भाषाई रूप से पहचानी गईं, और 1,474 अवर्गीकृत थीं। 10,000 से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली सभी मातृभाषाओं को उपयुक्त भाषाओं के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया था। 10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली मातृभाषाएँ लुप्तप्राय भाषाएँ हैं।
यूनेस्को और संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा भारत की जनजातीय और स्वदेशी भाषाओं पर जारी एक रिपोर्ट में इन भाषाओं, विशेष रूप से लुप्तप्राय भाषाओं, के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया गया है, क्योंकि किसी भाषा के नष्ट होने का अर्थ उसमें विद्यमान संस्कृति, विरासत और पारंपरिक ज्ञान का नष्ट हो जाना होता है।
भारत की लुप्तप्राय भाषाएँ देश के विविध भाषा परिवारों में फैली हुई हैं और पूरे देश में पाई जाती हैं:
क्षेत्र
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कवर किए गए राज्य/केंद्र शासित प्रदेश
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भाषाओं की संख्या
|
कुछ भाषाएँ
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उत्तरी
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चंडीगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू -कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड
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25
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स्पीति, जाड़, दरमिया, गैहरी, कनाशी
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पूर्वोत्तर
|
अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा
|
43
|
ऐमोल, तांगम, शेरडुकपेन, सिंगफो, ताराओ
|
पूर्व-मध्य
|
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश
|
15
|
भुंजिया, बिरहोर, बोंडो, टोटो, गोरम
|
पश्चिम मध्य
|
गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, दमन, दीव, दादरा नगर हवेली, गोवा
|
5
|
निहाली, बराडी, भरवाड, दिवेही, भाला
|
दक्षिणी
|
तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल
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20
|
टोडा, सोलिगा, जेनु कुरुम्बा, सिद्धि, उराली
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अंडमान और निकोबार
|
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
|
9
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सेंटिनलीज़, ओन्गे, शोम्पेन, लैमोंगसे, लूरो
|
भारत में भाषा परिवार
भारत की विभिन्न भाषाएँ पाँच भाषा परिवारों से संबंधित हैं, जिन्हें व्याकरणिक विशेषताओं के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। भारत की 22 अनुसूचित और 99 गैर-अनुसूचित भाषाओं (99) का परिवार-वार समूहन इस प्रकार है:
भाषा परिवार
|
भाषाओं की संख्या
|
जो लोग इसे अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं
|
कुल जनसंख्या का प्रतिशत
|
1. इंडो-यूरोपीय
|
24
|
79,08,76,283
|
76.89%
|
2. द्रविड़
|
17
|
21,41,72,874
|
20.82%
|
3. ऑस्ट्रो-एशियाटिक
|
14
|
1,14,42,029
|
1.11%
|
4. तिब्बती-बर्मी
|
66
|
1,03,05,026
|
1%
|
5. सेमिटो-हैमिटिक
|
1
|
51,728
|
0.01%
|
अनुसूचित जनजातियों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएँ: उत्तर और पूर्वोत्तर में तिब्बती-बर्मी, मध्य/पूर्वी क्षेत्रों में ऑस्ट्रो-एशियाई, दक्षिण में द्रविड़ और अन्यत्र इंडो-यूरोपीय, जिनमें 21 इंडो-आर्यन भाषाओं के अलावा ईरानी (2) और अंग्रेजी का प्रभुत्व है।
बहुभाषावाद और लुप्तप्राय भाषाएँ
वसमल्लि टोडा में विभिन्न कहानियाँ जानती हुई बड़ी हुईं, हालाँकि उन्होंने स्कूल में तमिल और अंग्रेज़ी सीखी। वह हमेशा अपनी संस्कृति के बारे में और जानना चाहती थीं। “संयोग से मुझे टोडा भाषा की कुछ पुस्तकों की प्रति मिलीं और ध्वन्यात्मक अक्षर मिले।”

वसमल्लि ने अनेक भाषाविदों के साथ काम किया है जो उनके समुदाय में आए थे और टोडा भाषा के बारे में जानने और उसे संरक्षित करने में रुचि रखते थे। हाल ही में उन्होंने तमिल लिपि में टोडा वर्णमाला की पुस्तक (या प्राइमर) तैयार करने के लिए एसपीपीईएल टीम के साथ काम किया है।
वसमल्लि की बहुभाषी यात्रा पूरे भारत में एक व्यापक पैटर्न को दर्शाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल 121.09 करोड़ की आबादी में से लगभग 89.59 करोड़ एकभाषी, 22.90 करोड़ द्विभाषी और 8.60 करोड़ त्रिभाषी हैं।
हालाँकि, बहुभाषिकता का झुकाव प्रमुख भाषाओं की ओर अधिक है। सबसे अधिक एकभाषी लोग हिंदी (46.74 करोड़) बोलते हैं, उसके बाद बंगाली (7.98 करोड़) और मराठी (4.39 करोड़) हैं—ये सभी प्रमुख अनुसूचित भाषाएँ हैं।

टोडा जैसी लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं के लिए यह बात चुनौती प्रस्तुत करती है: बोलने वालों को अक्सर अपनी मातृभाषा को संरक्षित रखने तथा प्रमुख भाषाओं में शिक्षा और अवसरों तक पहुँचने के बीच चयन करना पड़ता है।
जनजातीय कार्य मंत्रालय इस चुनौती का समाधान द्विभाषी शब्दकोशों और त्रिभाषी शिक्षा मॉड्यूल और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के त्रि-भाषा सूत्र के समर्थन के माध्यम से करता है, ताकि जनजातीय छात्रों को व्यापक भाषाई कौशल प्राप्त करते हुए अपनी विरासत को बनाए रखने में मदद मिल सके। एसपीपीईएल ने टोडा भाषा का दस्तावेजीकरण किया है, जिसकी कोई मूल लिपि नहीं है, और उसकी ओर से बच्चों के बीच प्रचार के लिए तमिल लिपि में टोडा वर्णमाला की पुस्तक—शुरुआत करने वालों के लिए परिचयात्मक पुस्तक—प्रकाशित की जाने वाली है।
इस तरह के लिखित दस्तावेज़ों के महत्व को वासमल्ली बखूबी समझती हैं। “बुज़ुर्ग हमें और दूसरों को पहले की तरह नहीं सिखा रहे हैं और इस भाषा में और भी बहुत कुछ है। लिखित अभिलेख होना बेहतर है।” वह देखती हैं कि कई टोडा युवा अपनी संस्कृति और इतिहास के बारे में जानने में रुचि रखते हैं, जिससे उन्हें इस भाषा के भविष्य के लिए उम्मीद दिखाई देती है। “हमें ऐसी परिस्थितियाँ बनाने की ज़रूरत है, जो उन्हें उनकी जड़ों और समुदाय की ओर वापस लाएँ, साथ ही उन्हें बाहरी दुनिया से जुड़ने में भी मदद करें।”
"भाषा वह है, जो हमें मानव बनाती है। जब लोगों को उनकी भाषा के इस्तेमाल की स्वतंत्रता की गारंटी नहीं दी जाती, तो इससे उनकी विचार, राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित हो जाती है, साथ ही अधिकारों और सार्वजनिक सेवाओं तक उनकी पहुँच भी सीमित हो जाती है। दीर्घकालिक रूप से स्वदेशी भाषाओं की रक्षा के लिए इस दशक में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की लामबंदी में तेजी लानी होगी।"
- ऑद्रे अज़ोले, महानिदेशक, यूनेस्को"
लुप्तप्राय भाषाओं का दस्तावेजीकरण
वसमल्लि का कहना है, “हमारा मानना है कि दैवी शक्ति है। अगर हम ज़मीन, पेड़ों और प्रकृति की रक्षा करेंगे, तो हमें ईश्वर का आशीर्वाद मिलेगा। यही तोडा समुदाय का मूल सिद्धांत है।” उन्होंने बताया कि एक पहाड़ को कोटाजेन (kot̠ajen) कहा जाता है और तोडा समुदाय का मानना है कि उनके इसी नाम के देवता वहाँ निवास करते हैं।
टोडा की भाषाई विरासत को एसपीपीईएल के व्यापक कार्य के माध्यम से बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसमें निम्नलिखित दस्तावेजीकरण और संवर्धन के कदम शामिल हैं, जो इस प्रकार हैं:
- अभिलेखन का चरण: शब्दों, वाक्यों, गीतों और कहानियों को संग्रहित करना।
- प्रतिलेखन और विश्लेषण: अभिलेखन या रिकॉर्डिंग को लिखित रूप में परिवर्तित करना; भाषा के व्याकरण, ध्वनि प्रणालियों और शब्द-निर्माण प्रक्रिया की जाँच करना; और शब्दकोशों का निर्माण करना।
- व्याकरण का निर्माण: वाक्य निर्माण सहित भाषा के नियमों की व्याख्या करके व्याकरण लिखना।
- सांस्कृतिक दस्तावेजीकरण: आजीविका की प्रथाओं का अभिलेखन, अनुष्ठानों का दस्तावेजीकरण, त्योहारों और सामुदायिक परंपराओं का अभिलेखन।
- डिजिटल पुरालेखन: रिकॉर्ड की गई सभी सामग्रियों के लिए मेटाडेटा बनाकर और उन्हें विश्वव्यापी पहुँच और दीर्घकालिक संरक्षण के लिए रिपॉजिटरी में अपलोड करके भाषा के अभिलेखों को डिजिटल रूप से संरक्षित करना।
- पुनरोद्धार करना: प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा का समर्थन करने और भाषा में साक्षरता को प्रोत्साहित करने के लिए समुदाय-संचालित प्राइमरों का निर्माण करना।
भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग
विभिन्न लुप्तप्राय भाषाओं के लिए सीआईआईएल ने अब तक 8 डिजिटल शब्दकोश प्रकाशित किए हैं। अपने दस्तावेज़ीकरण के कार्य के लिए, एसपीपीईएल विभिन्न प्रकार के उन्नत प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग करता है, जैसे:
- ऑडियो रिकॉर्डिंग के लिए उच्च-स्तरीय रिकॉर्डिंग सुविधाएँ
- दृश्य दस्तावेज़ीकरण के लिए वीडियो रिकॉर्डिंग उपकरण
- मेटाडेटा बनाने के लिए विशेष सॉफ़्टवेयर
- विभिन्न भाषाई विश्लेषण सॉफ़्टवेयर
डिजिटल अवसंरचना में डेटा के भंडारण और व्यवस्था के लिए डिजिटल रिपॉजिटरी और रिकॉर्ड की गई सामग्रियों को सूचीबद्ध करने वाली मेटाडेटा निर्माण प्रणालियाँ शामिल हैं। 17 जुलाई, 2025 को लॉन्च की गई वेबसाइट संचिका: https://sanchika.ciil.org/home, एसपीपीईएल के दस्तावेज़ीकरण कार्यों को प्रदर्शित करती है, जिसमें विभिन्न शब्दों के उच्चारण के लिए ऑडियो फ़ाइलें भी शामिल हैं। संचिका में विभिन्न लुप्तप्राय भाषाओं के सैकड़ों भाषा नमूने और ऑडियो फ़ाइलें हैं।
एसपीपीईएल "पनुहा नॉट: द पिग फेस्टिवल चौरा" जैसे लघु और दीर्घ वृत्तचित्र भी बनाता है, जो अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के चौरा द्वीप पर रहने वाली सानेन्यो जनजाति के बीच मनाए जाने वाले शूकर उत्सव के बारे में है।
जनजातीय संस्कृतियों और भाषाओं के संरक्षण के लिए अन्य योजनाएँ
जनजातीय संस्कृति और भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में अन्य मंत्रालयों द्वारा संचालित विभिन्न योजनाएँ भी कार्य करती हैं।
मंत्रालय/संगठन
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कार्यक्रम/पहल
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फोकस क्षेत्र
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संस्कृति मंत्रालय
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लोक, आदिवासी कलाओं का
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दस्तावेज़ीकरण
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शोध परियोजनाओं और प्रकाशनों के माध्यम से लोक और जनजातीय कलाओं का दस्तावेजीकरण और संवर्धन
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राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम)
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राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के अंतर्गत पांडुलिपियों, दुर्लभ पुस्तकों और अभिलेखीय सामग्रियों का डिजिटलीकरण और संरक्षण
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राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन (एनएमसीएम)
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भारत के 4.5 लाख गांवों के संबंध में कलाकारों, कला शैलियों और विरासत प्रथाओं की सांस्कृतिक संपत्ति मानचित्रण से संबंधित राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन का कार्यान्वयन
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जनपद सम्पदा प्रभाग
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जनपद संपदा प्रभाग लुप्त होती परंपराओं, अनुष्ठानों, प्रदर्शन कलाओं और मौखिक इतिहास का व्यापक फील्ड वर्क और दृश्य-श्रव्य दस्तावेजीकरण जारी रखे हुए है।
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राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव
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संस्कृति मंत्रालय राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सवों का भी आयोजन करता है, जिसमें देश भर के अनेक लोक एवं जनजातीय कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं, तथा देश की आम जनता/युवाओं के बीच समृद्ध संस्कृति के बारे में जागरूकता फैलाते हैं।
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साहित्य अकादमी
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विश्व आदिवासी दिवस
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अकादमी प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को अखिल भारतीय आदिवासी लेखक सम्मेलन का आयोजन करके विश्व आदिवासी दिवस मनाती है।
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समर्पित आदिवासी केंद्र
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मौखिक और जनजातीय साहित्य को और अधिक संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए इसने अगरतला और दिल्ली में समर्पित केंद्र स्थापित किए हैं
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उन्मेष साहित्य महोत्सव
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अंतर्राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव - उन्मेष (शिमला, 16-18 जून 2022) के पहले संस्करण में 25 से अधिक जनजातीय भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 30-35 जनजातीय लेखकों ने भाग लिया।
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जनजातीय कार्य मंत्रालय
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जनजातीय शोध संस्थान का समर्थन
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समृद्ध जनजातीय सांस्कृतिक विरासत के संवर्धन से संबंधित शोध अध्ययन/पुस्तकों का प्रकाशन/ऑडियो विजुअल वृत्तचित्रों सहित दस्तावेजीकरण
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आदिवासी चिकित्सकों और औषधीय पौधों, आदिवासी भाषाओं, कृषि प्रणाली, नृत्य और चित्रकला आदि द्वारा स्वदेशी प्रथाओं का शोध और दस्तावेजीकरण
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जनजातीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम
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जनजातीय लोगों के वीरतापूर्ण और देशभक्तिपूर्ण कार्यों को सम्मान देने के लिए, मंत्रालय ने 10 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों की स्थापना को मंज़ूरी दी है। ये संग्रहालय क्षेत्र की समृद्ध जनजातीय सांस्कृतिक विरासत को भी प्रदर्शित करेंगे।
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अनुसूचित जनजाति के छात्रों के बीच सीखने की उपलब्धि के स्तर में वृद्धि
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संदर्भ
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