Culture & Tourism
                            
                            
                                लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर
                        
                            
                                एक योद्धा, सुधारक और राजमाता
                        
                        
                            Posted On:
                            31 MAY 2025 5:32PM
                        
                        31 मई 2025 को लोकमाता देवी अहिल्या बाई होल्कर की 300वीं जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भोपाल में विकास की कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इसके अलावा, सरकार ने देवी अहिल्याबाई को समर्पित एक स्मारक डाक टिकट और एक विशेष सिक्का भी जारी किया। इस 300 रुपये के सिक्के पर अहिल्याबाई होल्कर का चित्र होगा। इस मौके पर आदिवासी, लोक और पारंपरिक कलाओं में योगदान के लिए एक महिला कलाकार को राष्ट्रीय देवी अहिल्याबाई पुरस्कार भी प्रदान किया गया।

20 सितंबर 2024 को प्रधानमंत्री ने ‘पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होल्कर महिला स्टार्टअप योजना’ की भी शुरूआत की थी, जिसके तहत महाराष्ट्र में महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप को शुरुआती दौर में समर्थन प्रदान किया जाएगा। इस योजना के तहत 25 लाख रुपये तक की वित्तीय मदद दी जाएगी। सरकार के निर्देशों के अनुसार, इस योजना के तहत कुल प्रावधानों का 25% पिछड़े वर्गों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा।
अहिल्याबाई होल्कर का जीवन इतिहास

राजमाता अहिल्याबाई होल्कर, मालवा राज्य की होल्कर रानी थीं। उन्हें देश की सबसे दूरदर्शी महिला शासकों में से एक माना जाता है। 18वीं शताब्दी में, मालवा की महारानी के रूप में, उन्होंने धर्म के संदेश को फैलाने और औद्योगीकरण को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई। वह अपनी बुद्धिमत्ता, साहस और प्रशासनिक कौशल के लिए जानी जाती हैं। 
31 मई 1725 को अहमदनगर (महाराष्ट्र) के जामखेड के चोंडी गाँव में जन्मी अहिल्या बेहद साधारण परिवार से थीं। उनके पिता मनकोजी राव शिंदे गाँव के मुखिया थे, जिन्होंने उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। एक छोटी बालिका के रूप में, उनकी सादगी और मज़बूत व्यक्तित्व ने मालवा क्षेत्र के सूबेदार मल्हार राव होल्कर का ध्यान आकर्षित किया। वे युवा अहिल्या से इतने प्रभावित हुए, कि 1733 में उन्होंने उनका विवाह अपने बेटे खांडेराव होल्कर से कर दिया।
शादी के बारह साल बाद, कुम्हेर किले की घेराबंदी के दौरान उनके पति खांडेराव की मृत्यु हो गई। उनके निधन के बाद अहिल्याबाई इतनी दुखी हो गईं, कि उन्होंने सती होने का फैसला किया। लेकिन उनके ससुर मल्हार राव ने उन्हें ऐसा कठोर कदम उठाने से रोका। इतना ही नहीं, उन्होंने अहिल्याबाई को अपने संरक्षण में ले लिया और उन्हें सैन्य और प्रशासनिक मामलों में प्रशिक्षित किया।
सन् 1766 में उनके ससुर मल्हार राव का निधन हो गया और अगले ही साल उन्होंने अपने बेटे माले राव को भी खो दिया। लेकिन उन्होंने अपने बेटे को खोने के दुख को खुद पर हावी नहीं होने दिया। राज्य और अपने लोगों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने पेशवा से मालवा का शासन संभालने की अनुमति मांगी। हालाँकि कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन फिर भी उन्हें सेना का समर्थन प्राप्त था, जिन्हें उन पर पूरा भरोसा था, क्योंकि वह सैन्य और प्रशासनिक मामलों में अच्छी तरह से प्रशिक्षित थीं। उन्होंने कई मौकों पर सेना का नेतृत्व किया था और एक सच्चे योद्धा की तरह लड़ाईयां लड़ीं थीं। 1767 में, पेशवा ने अहिल्याबाई को मालवा पर राज करने की अनुमति दे दी। वह सिंहासन पर बैठीं और 11 दिसंबर 1767 को इंदौर की शासक बनीं।
उनका शासन 
अहिल्याबाई ने 1754 में कुम्हेर की लड़ाई में अपने पति की मृत्यु के बाद मालवा पर नियंत्रण कर लिया। इसके बाद उन्होंने 1792 में अदम्य होल्कर सेना की नींव रखी और अपने समय की सबसे ख़तरनाक तीरंदाज़ों में से एक बन गईं।
महारानी अहिल्याबाई ने मालवा पर न्यायपूर्ण, बुद्धिमान और ज्ञानपूर्ण तरीके से शासन किया। अहिल्याबाई के शासन में, मालवा में अपेक्षाकृत शांति, समृद्धि और स्थिरता का माहौल था और उनकी राजधानी महेश्वर साहित्यिक, संगीत, कलात्मक और औद्योगिक गतिविधियों के केंद्र में तब्दील हो गई। कवियों, कलाकारों, मूर्तिकारों और विद्वानों का उनके राज्य में स्वागत किया जाता था, क्योंकि वह उनकी कला को बहुत सम्मान देती थीं।
आम आदमी की समस्याओं के हल के लिए वह हर रोज़ सार्वजनिक सभाएं करती थीं। उन्होंने खुद को न केवल एक योग्य शासक साबित किया, बल्कि अपने लोगों के लिए एक संरक्षक और मार्गदर्शक भी बनीं। उनका शासन इंदौर से कहीं आगे तक फैला हुआ था, और उनके द्वारा शुरू की गईं पहल करुणा और दूरदर्शिता दोनों को दर्शाती थी।
 
राष्ट्र निर्माण में योगदान
अहिल्याबाई ने महेश्वर में एक कपड़ा उद्योग भी स्थापित किया, जो आज अपनी महेश्वरी साड़ियों के लिए बेहद प्रसिद्ध है। उन्होंने अपना ध्यान विभिन्न परोपकारी गतिविधियों की ओर लगाया, जिसमें उत्तर में मंदिरों, घाटों, कुओं, तालाबों और विश्रामगृहों के निर्माण से लेकर दक्षिण में तीर्थस्थलों का निर्माण शामिल था। उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान 1780 में प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार और मरम्मत था। उनके इस योगदान को मान्यता देते हुए, काशी विश्वनाथ मंदिर में देवी अहिल्याबाई होल्कर की एक प्रतिमा स्थापित की गई है। गुजरात में पुराने (जूना) सोमनाथ मंदिर के निर्माण का श्रेय भी देवी अहिल्याबाई को जाता है। दिलचस्प बात यह है, कि यह मंदिर अहिल्याबाई मंदिर के नाम से लोकप्रिय है। इस मंदिर का हाल ही में पुनर्निर्माण किया गया था और इसका उद्घाटन 20 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री द्वारा किया गया था।
धर्म और दान में गहरी रुचि के चलते उन्होंने कई मंदिरों का निर्माण भी करवाया, जिनमें बारह में से दो ज्योतिर्लिंग भी शामिल हैं। उनकी दानशीलता उनके क्षेत्र से आगे बढ़कर पूरे भारत में फैल गई। सम्मानित इतिहासकारों ने अपनी तमाम पुस्तकों में उनकी प्रशंसा की है।
अहिल्याबाई ने पूरे भारत में सड़कों और विश्राम गृहों के निर्माण की शुरूआत की और हरिद्वार, काशी, सोमनाथ और रामेश्वरम जैसे तीर्थ स्थलों पर मंदिरों का जीर्णोद्धार किया। हालाँकि, उनकी सोच धर्मों से परे थी। उन्होंने किसानों का समर्थन किया और व्यापार का विस्तार किया। शिक्षा के महत्व को समझते हुए, उन्होंने कई गुरुकुलों और स्कूलों की स्थापना की। अपने समय में एक क्रांतिकारी कदम के रूप में, उन्होंने एक महिला सेना का गठन किया और उन्हें युद्ध, आत्मरक्षा और प्रशासनिक सुरक्षा में प्रशिक्षण दिया। यह सेना राज्य की रक्षा, कानून और व्यवस्था और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बन गई।
 
निष्कर्ष: अहिल्याबाई होल्कर की विरासत
‘दार्शनिक रानी’ के नाम से प्रसिद्ध अहिल्याबाई का निधन 13 अगस्त 1795 को सत्तर वर्ष की उम्र में हुआ। उनकी विरासत आज भी जीवित है और उनके द्वारा बनाए गए विभिन्न मंदिर, धर्मशालाएँ और सार्वजनिक कार्य इस बात के गवाह हैं, कि वह एक ऐसी रानी थीं जो एक महान योद्धा भी थीं। अहिल्याबाई की विरासत उनके द्वारा बनाए गए किलों में भी झलकती है और उनके द्वारा किए गए सुधारों और मूल्यों में भी, जिनमें उनका अटूट विश्वास था। उनका जीवन समाज के लिए मार्गदर्शन का एक प्रकाश स्तंभ बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जब विश्वनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया गया था, तो अहिल्याबाई होल्कर ने ही इसका पुनर्निर्माण करवाया था।
हालाँकि अहिल्याबाई का जन्मस्थान महाराष्ट्र में था, लेकिन उनका जीवन इंदौर, महेश्वर और कई अन्य क्षेत्रों में फैला हुआ था। महेश्वर के घाट, नर्मदा की लहरें और भारत की सांस्कृतिक विरासत आज भी उनकी एतिहासिक विरासत का गुणगान करती हैं। वह एक ऐसी शक्तिशाली और प्रभावशाली महिला थीं, जिन्होंने इंदौर गाँव को आज के शानदार शहर में बेहद खूबसूरती से बदल दिया।
संदर्भ
https://www.youtube.com/watch?v=PIoZpMerkmU
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2056989
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1747037
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2132972
https://www.pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRI=1799614
https://indianculture.gov.in/snippets/rajmata-ahilyabai-holkar
https://www.mptourism.com/how-ahilya-Bai-accidentally-entered-history-and-made-it-eventful.html
लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर
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