Prime Minister's Office

Text of PM’s interaction in Bharat Ki Baat Sabke Saath Programme at London (18th April, 2018)

Posted On: 19 APR 2018 5:14AM by PIB Delhi

प्रसून जोशी - नमस्‍कार मोदी जी!           

प्रधानमंत्री – नमस्‍ते आपको भी और सभी देशवासियों को नमस्‍कार     

प्रसून जोशी– मोदीजी, हम स‍बको मालूम है आप कितने व्‍यस्‍त कार्यक्रम में से समय निकालकर यहां आए हैं और हमने थोड़ा सा  समय आपका चुराया है। तो, पहले तो बहुत-बहुत धन्‍यवाद। मैंने कुछ समय पहले लिखा था भारत के बारे में :

धरती के अंतस: में जो गहरा उतरेगा, उसी के नयनों में जीवन का राग दिखेगा

जिन पैरों में मिट्टी होगी, धूल सजेगी, उन्‍हीं के संग-संग इक दिन सारा विश्‍व चलेगा।’

‘रेलवे स्‍टेशन’ से आपका सफर शुरू होता है और आज ‘रॉयल पैलेस’ में आप खास मेहमान बने।

इस सफर को मोदीजी कैसे देखते हैं आप?

प्रधानमंत्री–प्रसून जी मैं सबसे पहले तो आप सबका आभारी हूं कि इतनी बड़ी तादाद में आपके दर्शन करने का मुझे सौभाग्‍य मिला है और आपने धरती की धूल से अपनी बात को शुरू किया है। आप तो कविराज हैं तो ‘रेलवे’ से ‘रॉयल पैलेस’, ये तुकबंदी आपके लिए बड़ी सरल है; लेकिन जिंदगी का रास्‍ता बड़ा कठिन होता है। जहां तक रेलवे स्‍टेशन की बात है, वो मेरी अपनी व्‍यक्तिगत जिंदगी की कहानी है। मेरी जिंदगी के संघर्ष का वो एक स्‍वर्णिम पृष्‍ठ है, जिसने मुझे जीना सिखाया, जूझना सिखाया और जिंदगी अपने लिए नहीं, ओरों के लिए भी हो सकती है। ये रेल की पटरियों पर दौड़ती हुई और उससे निकलती हुई आवाज से मैंने बचपन से सीखा, समझा; तो वो मेरी अपनी बात है। लेकिन ‘रॉयल पैलेस’, ये नरेन्‍द्र मोदी का नहीं है। ये मेरी कहानी नहीं है...

प्रसून जोशी– और जो भावना आपके अंदर....

प्रधानमंत्री– वो ‘रॉयल पैलेस’ सवा सौ करोड़ हिन्‍दुस्‍तानियों के संकल्‍प का परिणाम है। रेल की पटरी वाला मोदी, ये नरेन्‍द्र मोदी है। ‘रॉयल पैलेस’ सवा सौ करोड़ हिन्‍दुस्‍तानियों का एक सेवक है, वो  नरेन्‍द्र मोदी नहीं है। और ये भारत के लोकतंत्र की ताकत है, भारत के संविधान का सामर्थ्‍य है, कि जहां एक ऐसा एहसास होता है, कि वरना जो जगह कुछ परिवारों के लिए रिजर्व रहती है, और लोकतंत्र में अगर जनता-जनार्दन, जो ईश्‍वर का रूप है; वो फैसला कर ले तो फिर एक चाय बेचने वाला भी उनका प्रतिनिधि बन करके ‘रॉयल पैलेस’ में हाथ मिला सकता है।

प्रसून जोशी– ये जो व्‍यक्ति और नरेन्‍द्र मोदी, जो प्रधानमंत्री, देश का प्रतिनिधित्‍व करते हैं, ये दोनों एकमय हो जाते हैं, जब ऐसी जगह में आप होते हैं, या आप  स्वयं को देखते हैं कि मैं एक सफर कर चुका हूं या वो एकरस हो जाता है, सब मिल जाता है, और एक ही व्‍यक्ति रह जाता है?

प्रधानमंत्री–ऐसा है मैं वहां होता ही नहीं हूं। और मैं तो आदिशंकर के अद्ववैत के उस सिद्धांत को, किसी जमाने मेंउससे जुड़ा हुआ था तो मैं जानता हूं कि जहां मैं नहीं, तू ही तू है; जहां द्ववै नहीं है वहां द्वंद्व नहीं है, और इसलिए जहां द्ववैत नहीं है, और इसलिए अगर मैं मेरे भीतर के उस नरेन्‍द्र मोदी को ले करके जाता हूं तो शायद मैं देश के साथ अन्‍याय कर दूंगा। देश के साथ न्‍याय तब होता है कि मुझे अपने-आपको भुला देना होता है, अपने-आपको मिटा देना होता है। स्‍वयं को खप जाना होता है और तब जा करके वो पौधा खिलता है। बीज भी तो आखिर खप ही जाता है, जो वटवृक्ष को पनपाता है। और इसलिए आपने जो कहा वो मैं अलग तरीके से देखता हूं।

प्रसून जोशी– लेकिन जब देश की बात आती है तो आप उसको बहुत फोकस होकर देखते हैं और सब लोग आज बदलाव की बात करते हैं।  बदलाव पहले सोच में आता है फिर एक्‍शन में आता है, फिर एक प्रक्रिया से गुजरता है। आपसे बेहतर कौन जान सकता है इस बात को। पर बदलाव अपने साथ एक चीज और लेकर आता है, मोदीजी- अधीरता, आतुरता, बेसब्री, impatiens.

प्रधानमंत्री, अभी हम सबने देखा था और टविटर पर प्रशांत दीक्षित जी हैं, जिन्‍होंने एक प्रश्‍न पूछा भी है कि बहुत काम हो रहा है, roads बन रही हैं, रेलवे लाइन्‍स बिछ रही हैं, घर रफ्तार से बन रहे हैं। वो कहते हैं कि पहले अगर हमें दो कदम चलने की आदत थी, तो मोदीजी अब हम कई गुना ज्‍यादा चल रहे हैं, पर फिर भी बेसब्री- अभी, अभी, अभी क्‍यों नहीं की impatiens, इसे कैसे देखते हैं आप?

प्रधानमंत्री– मैं इसको जरा अलग तरीके से देखता हूं। जिस पल संतोष का भाव पैदा हो जाता है- बहुत हो गया, चलो यार इसी से गुजारा कर लेंगे, तो जिंदगी कभी आगे बढ़ती नहीं है। हर आयु में, हर युग में, हर अवस्‍था में कुछ न कुछ नया करने का, नया पाने का मकसद गति देता है, वरना तो मैं समझता हूं जिंदगी रुक जाती है। और अगर कोई कहता है कि बेसब्री बुरी चीज है तो मैं समझता हूं कि अब वो बूढ़े हो चुके हैं। मेरी दृष्टि से बेसब्री एक तरुणाई की पहचान भी है और आपने देखा होगा, जिसके घर में साइकिल है उसका मन करता है स्‍कूटर आ जाए तो अच्‍छा है; स्‍कूटर है तो मन करता है यार four wheeler आ जाए तो अच्‍छा है; ये अगर जज्‍बा ही नहीं है तो कल साइकिल भी चली जाएगी, तो कहेगा छोड़ो यार बस पर चले जाएंगे; तो वो जिंदगी नहीं है।

और मुझे खुशी है कि आज सवा सौ करोड़ देशवासियों के दिल में एक उमंग, उत्‍साह, आशा, अपेक्षा, ये उभर करके बाहर आ रही है। वरना एक कालखंड था निराशा की एक गर्त में हम डूब गए थे। और ऐसा था, चलो छोड़ो यार, अब कुछ होने वाला नहीं है, होती है, चलती है। और मुझे खुशी है कि हमने एक ऐसा माहौल बनाया है कि लोग हमसे ज्‍यादा अपेक्षा कर रहे हैं। आपमें से जो लोग बहुत पहले भारत से निकले होंगे, शायद उनको पता नहीं होगा, लेकिन आज से 15-20 साल पहले जब अकाल की परिस्थिति पैदा होती थी तो गांव के लोग सरकारी दफ्तर में जा करके memorandum देते थे, और क्‍या मांग करते थे- कि इस बार अकाल हो जाए तो हमारे यहां मिट्टी खोदने का काम जरूर दीजिए, और हम रोड पर मिट्टी डालने का काम करना चाहते हैं ताकि हमारे यहां कच्‍ची सड़क बन जाए। उस समय उतनी ही बेसब्री थी कि जरा- एक तो अकाल आ जाए, अपेक्षा करते थे, अकाल आ जाए, और मिट्टी के गड्ढे खोदने का काम मिल जाए; और फिर एक रोड पर मिट्टी डालने का अवसर मिल जाए।

आज मेरा अनुभव है, मैं जब गुजरात में मुख्‍यमंत्री था, जिसके पास single lane road है, तो वो कहता है, अरे क्‍या मुख्‍यमंत्री जी, अब डबल रोड बनाइए ना। डबल बना था, अरे साहब, अब तो, ये क्‍या है, पेबल रोड होना चाहिए, पेबल रोड होना चाहिए।

मुझे बराबर याद है, मैं उच्‍छल निझर, गुजरात के एक दम आखिरी छोर के तहसील थे, वहां से कुछ tribal लोग एक बार मुझे मिलने आए। वो कहते हैं हमें पेबल रोड चाहिए। मैंने कहा, यार मैं तुम्‍हारे इलाके में कभी स्‍कूटर पर घूम रहा था, मैं बस में आता था। मैं सालों तक जंगलों में काम किया हूं। तुम्‍हारे यहां तो रोड तो है। बोले साहब, रोड तो है, लेकिन अब हम केले की खेती करते हैं और केले हमारे एक्‍सपोर्ट होते हैं। तो इस रोड पर हम जाते हैं तो ट्रक में केले दब जाते हैं। हमारा 20% नुकसान हो जाता है, हमें पेबल रोड चाहिए ताकि हमारे केले को कोई नुकसान न हो। मेरे देश के ट्रैवल के दिल में ये पैदा होना, ये बेसब्री पैदा होना, ये मेरे लिए प्रगति के बीज बोता है। और इसलिए मैं बेसब्री को बुरा नहीं मानता।

दूसरा, आपने परिवार में भी देखा होगा- तीन अगर बेटे हैं- मां-बाप तीनों को प्‍यार करते हैं। लेकिन काम होता है तो एक को कहते हैं, अरे यार जरा देख लो। जो करेगा, उसी को तो कहेंगे ना। अगर आज, आज देश मुझसे ज्‍यादा अपेक्षा रखता है, इसलिए रखता है कि उनको भरोसा  है, यार, आज नहीं तो कल, उसके दिमाग में भर तो, कभी तो करके रहेगा ही।

तो मैं समझता हूं कि- और ये बात सही है कि देश ने कभी सोचा नहीं था कि ये देश इतनी तेज गति से काम कर सकता है। वरना मान लिया था, पहले incremental change हो जाए तो भी संतोष हो जाता था, यार, चलो यार हो गया। अब उसको नहीं होता है, उसको होता है, अरे साहब, और पहले एक दिन में जितने रास्‍ते बनते थे, अब करीब-करीब तीन गुना हम बना रहे हैं, पहले जितना काम एक दिन में होता था, वो आज तीन गुना होने लगा है। रेल की पटरी डालनी हो, रेल की डबल लाइन करनी हो, solar energy लगानी हो, टॉयलेट बनाने का काम हो, हर चीज में। और इसलिए स्‍वाभाविक है कि देशवासियों को अपेक्षा है क्‍योंकि भरोसा है।

प्रसून जोशी– जी, तो ऐसा लगता है कि जब पहले रोड उन तक पहुंचती है और जब उन तक रोड पहुंच जाती है तो वो दुनिया तक पहुंचना चाहते हैं। तो ये आशाएं एक तरफ आप जगाने की बात करते हैं और इस बेसब्री को आपने बखूबी समझा और उसकी जो positive side है कि किस तरह से वो बेसब्री जो है, वो द्योतक है आगे बढ़ने की भावना का, वो आपने हमें समझाया।

प्रधानमंत्री, लोगों की बेसब्री तो एक तरफ है, लेकिन क्‍या कभी आप बेसब्र हो जाते हैं, सरकारी व्‍यवस्‍था जिसके साथ आप का काम करते हैं। सरकारी कामकाज के तरीकों से, या कभी निराशा होती है कि चीजें मोदीजी के हिसाब से, उस स्‍पीड से नहीं चल रही हैं? वो बुलेट ट्रेन की स्‍पीड से, जिस तरह से आपके मन में घटित होती?

प्रधानमंत्री– मुझे पता नहीं था कि कवि के भीतर भी कोई पत्रकार बैठा होता है। मैं मानता हूं जिस दिन मेरी बेसब्री खत्‍म हो जाएगी, उस दिन मैं इस देश के काम नहीं आऊंगा। मैं चाहता हूं मेरे भीतर वो बेसब्री बनी रहनी चाहिए, क्‍योंकि वो मेरी ऊर्जा है, वो मुझे ताकत देती है, मुझ दौड़ाती है। हर शाम सोता हूं तो दूसरे दिन का सपना ले करके सोता हूं और सुबह उठता हूं तो लग पड़ता हूं।

जहां तक निराशा का सवाल है, मैं समझता हूं कि जब खुद के लिए कुछ लेना, पाना, बनना होता है, तब वो आशा और निराशा से जुड जाता है। लेकिन जब आप ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ इस संकल्‍प को ले करके चलते हैं; मैं समझता हूं कि निराश कभी होने का कारण नहीं बनता है।

कुछ लोगों को कभी लगता है, छोड़ो यार कुछ होने वाला नहीं है, सरकार बेकार है, नियम बेकार हैं, कानून बेकार है, ब्‍यूरोक्रेसी बेकार है, तौर-तरीके बेकार हैं; आपको ऐसे एक set of person मिलेंगे जो यही बातें बताते हैं। मैं दूसरे प्रकार का इंसान हूं। मैं कभी-कभी कहता था, अगर एक गिलास में आधा भरा हुआ है- तो एक व्‍यक्ति मिलेगा जो कहेगा  गिलास आधा है, दूसरा कहेगा गिलास आधा भरा हुआ है, एक कहेगा- आधा खाली है। मुझे कोई पूछता है तो मैं कहता हूं- आधा पानी से भरा है, आधा हवा से भरा है।

और इसलिए, अब आप देखिए, वही सरकार, वही कानून, वही ब्यूरोक्रेट, वही तौर-तरीके; उसके बावजूद भी अगर चार साल का लेखा-जोखा लेंगे और आखिरकार आपको; मैं किसी दूसरी सरकार की आलोचना करने के लिए मंच का उपयोग नहीं करूंगा, और मुझे करना भी नहीं चाहिए। लेकिन समझने के लिए comparative study के लिए आवश्‍यक होता है कि भई गत दस साल में काम किस प्रकार से होता था उसको देखेंगे तब पता चलेगा कि चार साल में कैसे हुआ। तो आपको ध्‍यान में आएगा कि तब की निर्णय प्रक्रियाएं, आज की निर्णय प्रक्रियाएं; तब के एक्‍शन, आज के एक्‍शन; आपको आसमान-जमीन का अंतर दिखेगा। मतलब ये हुआ कि इन्‍हीं व्‍यवस्‍थाओं से, अगर आपके पास नीति स्‍पष्‍ट हो, नीयत साफ हो, इरादे नेक हों और ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ करने का इरादा हो तो इसी व्‍यवस्‍था के तहत आप इच्छित परिणाम ले सकते हैं।

ये मूलभूत मेरी सोच होने के कारण, ये तो है ही नहीं कि मैं जो चाहूं वो सब होता है, लेकिन नहीं भी होता है तो मैं निराश नहीं होता हूं क्‍योंकि मैं सोचता हूं क्‍यों नहीं हुआ, आगे इसको करने का रास्‍ता- मैं इस तरफ गया था, जरा नए तरीके से करूंगा, मैं करके रहता हूं।

प्रसून जोशी– मोदीजी, यहां पर हम एक सवाल लेना चाहते हैं जो  वीडियो के माध्‍यम से हम देखेंगे। प्रियंका वर्मा जी हैं दिल्‍ली से, वो, उन्‍होंने एक सवाल आपके लिए भेजा है। देखते हैं-

Prinkya -  मोदीजी, I am Priynka from Delhi, और मेरा भी आपसे एक सवाल है कि हम Government क्‍यों choose करते हैं ताकि सरकार हमारे लिए काम कर सके। लेकिन जब से आप आए हैं तब से तो सिस्‍टम बिल्‍कुल बदल ही गया है। आपने तो सरकार के साथ-साथ हम जैसे लोगों को भी काम पर लगा दिया है, जो कि बहुत अच्‍छी बात है। पर मेरा आपसे एक सवाल है कि ऐसा पहले क्‍यों नहीं होता था? Thank You.

प्रसून जोशी– ये जो सवाल पूछ रहीं हैं कि आप लोगों से लोगों को जोड़ते हैं, सरकार के काम के साथ। और चाहे वो गैस सब्सिडी की बात हो; कई चीजों में आप एक अपेक्षा रखते हैं जनता से, तो ये किस तरह का एक आपका?

प्रधानमंत्री–प्रियंका ने बहुत अच्‍छा सवाल पूछा है और देखिए आप 1857 से ले लीजिए 1947 तक। उसके पहले भी जा सकते हैं लेकिन मैं 1857पर जाता हूं। जब प्रथम स्‍वतंत्रता संग्राम हुआ 1857 का। आप कोई भी साल उठा लीजिए, सौ साल में कोई भी साल उठा लीजिए, हिन्‍दुस्‍तान का कोई भी कोना उठा लीजिए। कोई न कोई देश की आजादी के लिए शहीद हुआ है, देश की आजादी के लिए मर-मिटने के लिए कुछ न कुछ किया है, किसी न किसी नौजवान ने अपनी जिंदगी जेल में बिता दी है। मतलब आजादी का संघर्ष किसी भी समय, किसी भी कोने में रुका नहीं था। लोग आते थे, भिड़ते थे, शहादत मोल लेते थे, आजादी की बात चलती रहती थी।

लेकिन महात्‍मा गांधी ने क्‍या किया? महात्‍मा गांधी ने इस पूरी भावना को एक नया रूप दे दिया। उन्‍होंने जन-सामान्‍य को जोड़ा। सामान्‍य से सामान्‍य व्‍यक्ति को कहते थे अच्‍छा भाई तुम्‍हें देश की आजादी चाहिए ना? ऐसा करो- तुम झाडू़ ले करके सफाई करो, देश को आजादी मिलेगी। तुम्‍हें आजादी चाहिए ना? तुम टीचर हो, अच्‍छी तरह बच्‍चों को पढ़ाओ, देश को आजादी मिलेगी। तुम प्रौढ़ शिक्षा कर सकते हो, करो। तुम खादी का काम कर सकते हो, करो। तुम नौजवानों को मिला करके प्रभात फेरी निकाल सकते हो, निकालो।

महात्‍मा गांधी ने आजादी को जन-आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। जन-सामान्‍य को उसकी क्षमता के अनुसार काम दे दिया। तुम रेटियां ले करके बैठ जाओ, सूत कातो, देश को आजादी मिल जाएगी। और लोगों को भरोसा हो गया, हां यार, आजादी इससे भी आ सकती है।

मैं समझता हूं कि मरने वालों की कमी नहीं थी, देश के लिए मर-मिटने वालों की नहीं थी, लेकिन वो आते थे शहीद हो जाते थे, फिर कोई नया खड़ा होता था, शहीद हो जाता था।

गांधीजी ने एक साथ हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने में कोटि-कोटि जनों को खड़ा कर दिया जिसके कारण आजादी प्राप्‍त करना सरल हो गया। विकास भी, मैं मानता हूं जन-आंदोलन बन जाना चाहिए। अगर ये कोई सोचता है कि सरकार देश बदल देगी, सरकार विकास कर देगी; आजादी के बाद एक ऐसा माहौल बन गया, आजाद हो गए, सब सरकार करेगी।  गांव में एक गड्ढा भी हो, गड्ढा हुआ हो तो गांव के लोग मिलेंगे, memorandum तैयार करेंगे, एक जीप किराये पर लेंगे, तहसील के अंदर जाएंगे, memorandum देंगे। जीप किराये पर करने के खर्चे में चाहते तो वो गड्ढा भर जाता, लेकिन अब वो सरकार करेगी।

आजादी के बाद एक माहौल बन गया, से सब कौन करेगा, सरकार करेगी। इसके कारण धीरे-धीरे क्‍या हुआ, जनता और सरकार के बीच दूरी बढ़ती गई। आपने देखा- बस में भी कोई जाता है, आप लोगों ने अनुभव किया होगा- बस में अकेला बैठा है, अगल-बगल में कोई पैसेंजर  नहीं है, रास्‍ता काटना है तो वो क्‍या करता है- वो सीट के अंदर अंगुली डालता है। उसके अंदर एक छेद कर देता है, और धीरे-धीरे-धीरे उसको काटता रहता है बैठा-बैठा, ऐसे कुछ नहीं। लेकिन जिस पल उसको पता चले कि ये बस सरकार की है मतलब मेरी है, ये सरकार मेरी है, देश मेरा है, ये भाव लुप्‍त हो चुका है।

मैं चाहता हूं कि देश में ये भाव बहुत प्रबल होना चाहिए। दूसरा, लोकतंत्र, ये कोई contract agreement नहीं है कि मैंने आज ठप्‍पा मारा, वोट दे दिया, अब पांच साल बेटे काम करो, पांच साल के बाद पूछूंगा क्‍या किया है और न तो दूसरे को ले आऊंगा। ये labour contract नहीं है। ये भागीदारी का काम है और इसलिए मैं मानता हूं कि participative democracy, इस पर बल देना चाहिए। और आपने अनुभव किया होगा जब natural calamity होती है, सरकार से ज्‍यादा समाज की शक्ति लग जाती है और हम कुछ ही पलों में देखते हैं कि वो समस्‍या के समाधान निकालने में ताकत आ जाती है, क्‍यों? जनता-जनार्दन की ताकत बहुत होती है। लोकतंत्र में जनता पर जितना भरोसा करेंगे, जनता को जितना ज्‍यादा जोड़ेंगे, परिणाम मिलेगा।

सरकार बनने के बाद मैंने टॉयलेट बनाने का अभियान चलाया। आप कल्‍पना करें सरकार बना पाती? सरकार तो पहले पांच हजार बनाती होगी अब दस हजार बना लेती। कहेगी अरे पुरानी सरकार पांच हजार बनाती थी मोदी की दस हजार। दस हजार से काम कब पूरा होगा भाई?  जनता ने उठा लिया, काम पूरा हो गया।

और जनता की ताकत देखिए, भारत में सीनियर सिटिजन के लिए रेलवे के अंदरconcession है टिकटों में। मैंने आ करके सरकार में कहा कि भाई अंदर लिखो तो सही, आप जो रिजर्वेशन के लिए फॉर्म भरते हो, लिखो तो सही कि भई मैं सीनियर सिटिजन हूं, मुझे बेनिफिट मिलता है, लेकिन मैं मेरा बेनिफिट जाने देना चाहता हूं। सिम्‍पल सा था, प्रधानमंत्री के लेवल पर मैंने कभी अपील भी नहीं की थी। आप सबको आश्‍चर्य होगा, जो हिन्‍दुस्‍तान की विशेषता देखी है, हिन्‍दुस्‍तान के सामान्‍य मानवी की देशभक्ति देखी है, अभी-अभी हमने ये निर्णय किया था, अब तक 40 लाख senior citizens, जो एसी में ट्रैवल करने वाले लोग हैं, उन्‍होंने voluntarily subsidy नहीं लेंगे, ऐसा लिख करके दिया और वो पूरी टिकट ले करके जाते थे।

अगर मैं कानूनन करता कि आप सीनियर सिटिजन को AC कोच में ये बेनिफिट बंद तो जुलूस निकलता, पुतले जलते और फिर? फिर popularity rating आता, मोदी गिर गया। ये दुकान जल जाती। लेकिन आपने देखा होगा 40 लाख लोग।

मैंने एक दिन लालकिले पर से कहा- कि जो afford करते हैं, उनको गैस सब्सिडी क्‍यों लेनी चाहिए? हमारे देश में गैस सिलेंडर की संख्‍या के आधार पर चुनाव लड़े जाते थे। कोई कहते थे कि मुझे प्रधानमंत्री बनाइए, अभी 9 सिलेंडर मिलते हैं, मैं 12 सिलेंडर दूंगा; ये घोषणा की गई थी 2014 में। मैंने लोगों को उलटा कहा, मैंने कहा भाई जरूरत  नहीं है तो छोड़ दीजिए ना सब्सिडी, क्‍या जरूरत है। और आप हैरान हो जाएंगे, हिन्‍दुस्‍तान के करीब-करीब सवा करोड़ से ज्‍यादा परिवारों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी। देश में ईमानदार लोगों की कमी नहीं है। देश के लिए जीने-मरने वाले, कुछ न कुछ करने वालों की कमी नहीं है।

हम लोगों का काम है देश के सामर्थ्‍य को समझना, उनको जोड़ना और मेरी ये कोशिश है कि हमने, सरकार ने ही देश चलाना है, ये सरकार को जो अहंकार है, उस अहंकार को सरकारों ने छोड़ देना चाहिए। जनता-जनार्दन ही शक्ति हैं, उनको ले करके चलें। हम चाहें, वैसा परिणाम जनता ला करके दे देगी और इसलिए मैं जनता के साथ मिल करके काम करने के विचार को ले करके आगे बढ़ रहा हूं।

प्रसून जोशी–वाह, मोदीजी, दो लाइने वो पुरानी याद आ रही हैं कि हम नीची नजर, जो ये सरकार और जनता के बीच की दूरी जो हो गई थी-

कि हम नीची नजर करके देखत हैं चरण तुमरे, तुम जाइके बैठे हो इक ऊंची अटरिया मां।

प्रधानमंत्री– मैं तो जनता-जनार्दन से यही प्रार्थना करूंगा कि आप हमें आशीर्वाद दीजिए, कम से कम मुझे वो आदत न आ जाए।

प्रसून जी – मोदीजी बिल्‍कुल ये। ये एक सवाल हम लेते हैं इसके बाद आते हैं। आप अभी, जी-जी जरूर आप कहिए-

ऑर्डियन्‍स में से एक सवाल की हमें रिक्‍वेसट थी- श्री मयूरेश ओझानी जी एक प्रश्‍न पूछना चाहते हैं। मयूरेश ओझानी जी अपना सवाल पूछें। कृपया इस तरफ आएं।

प्रधानमंत्री– शायद एंट्री नहीं मिली होगी, कोई भी कहेगा मैं मयूरेश हूं। और दो-चार थे, खड़े हो जाएंगे।

प्रश्‍नकर्ता - नमसते मोदी जी। जब आपने सर्जिकल स्‍ट्राइक करने का अति महत्‍वपूर्ण, ऐतिहासिक और हिम्‍मतभरा कदम लिया था तब आपके मन में कैसी भावना उछल रही थी?

प्रसून जोशी–सर्जिकल स्‍ट्राइक पर आपका सवाल है।

प्रधानमंत्री– मैं आपका आभारी हूं कि आप वाणी से अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं कर पा रहे हैं लेकिन आपने एक्‍शन से अपनी भावनाओं को प्रकट किया और शब्‍दों से आपके साथी ने मुझे बात को पहुंचाया। एक तो ये दृश्‍य अपने-आप में हृदय को छूने वाला है, it touched me. भगवान रामचंद्र जी और लक्ष्‍मण का जो संवाद है, लंका छोडते समय, तब भी उन सिद्धांतों को हमने देखा है। लेकिन जब कोई टेरे‍रिज्‍म एक्सपोर्ट करने का उद्योग बना करके बैठा हो, मेरे देश के निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया जाता हो, युद्ध लड़ने की ताकत नहीं है, पीठ पर वार करने के प्रयास होते हों; तो ये मोदी है, उसी भाषा में जवाब देना जानता है।

हमारे जवानों को, टैंट में सोए हुए थे रात में, कुछ बुजदिल आकर उनको मौत के घाट उतार दें? आप में से कोई चाहेगा मैं चुप रहूं? क्‍या उनको ईंट का जवाब पत्‍थर से देना चाहिए कि नहीं देना चाहिए? और इसलिए सर्जिकल स्‍ट्राइक किया और मुझे मेरी सेना पर गर्व है, मेरे जवानों पर गर्व है। जो योजना बनी थी, उसको शत-प्रतिशत तसू भर गलती किए बिना उन्‍होंने implement किया और सूर्योदय होने से पहले सब वापिस लौट कर आ गए। और हमारी नेकदिली देखिए- मैंने हमारे अफसर जो इसको ऑपरेट कर रहे थे, उन्‍हें कहा, कि आप हिन्‍दुस्‍तान को पता चले उससे पहले, मीडिया वहां पहुंचे उससे पहले, पाकिस्‍तान की फौज को फोन करके बता दो कि आज रात हमने ये किया है, ये लाशें वहां पड़ी होंगी, तुम्‍हें समय हो तो जा करके ले आओ।

हम सुबह 11 बजे से उनको फोन लगाने की कोशिश कर रहे थे, फोन पर आने से डरते थे, आ नहीं रहे थे। मैं इधर पत्रकारों को बुला करके रखा हुआ था, हमारे आर्मी अफसर खड़े थे, पत्रकारों को आश्‍चर्य हो रहा था कि क्‍या बात है हमको बुलाया है, कोई बता नहीं रहे हैं।

मैंने कहा, पत्रकार बैठे हैं उनको बिठाइए, थोड़े वो नाराज हो जाएंगे, लेकिन सबसे पहले पाकिस्‍तान से बात करो, हमने किया है; छुपाया नहीं हमने। 12 बजे वो टेलीफोन पर आए, उनसे बात हुई, उनको बताया गया- ऐसा-ऐसा हुआ है और हमने किया है, और तब जा करके हमने हिन्‍दुस्‍तान के मीडिया को और दुनिया को बताया कि भारत की सेना का ये अधिकार था न्‍याय को प्राप्‍त करने का और हमने किया। तो सर्जिकल स्‍ट्राइक, ये भारत के वीरों का तो पराक्रम था ही था, लेकिन टेरेरिज्‍म एक्‍सपोर्ट करने वालों को पता होना चाहिए कि अब हिन्‍दुस्‍तान बदल चुका है।

प्रसून जोशी– मोदीजी, जब आपने वीरता की बात की, सेना की बात की। सेना के इतने त्‍याग के बाद भी वहां पर हम राजनीति का प्रवेश होता देखते हैं। सेना की वीरता पर लोग प्रश्‍नचिन्‍ह लगाने को तैयार हो जाते हैं। ये, इसको कैसे देखते हैं आप?

प्रधानमंत्री- देखिए, फिर एक बार मैं इस मंच का उपयोग राजनीतिक प्रतिद्वद्वियों के लिए आलोचना करने के लिए उपयोग करना नहीं चाहता हूं। मैं इतना ही कहूंगा- ईश्‍वर सबको सद्बुद्धि दे।

प्रसून जोशी–मोदीजी, ये तो बात हुई, हमने बदलाव की की, बेसब्री की की। कहते है जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि। कवि होने के नाते नहीं कह रहा हूं। सच्‍ची प्रगति वही है जो सब तक पहुंचे। कोई भी सभ्‍यता- आपने अभी कहा। जिस तरह से आपने बुजुर्गों की बात की, व्‍यंग्‍य की बात की। कोई भी सभ्‍यता स्‍वयं पर गर्व नहीं कर सकती अगर वो समाज के vulnerable ends  का ध्‍यान नहीं रख पाती है। कार्यक्रम के इस हिस्‍से में हम बात करना चाहते हैं उन वर्गों की जो शायद होकर भी हमें नहीं दिखाई देते थे। बड़ी-बड़ी योजनाओं के शोर में जिनके हित कहीं खो जाते थे। जैसे ढोल के स्‍वर में बांसुरी का स्‍वर कहीं मंथर लगता है।

प्रधानमंत्रीमोदीजी, आपने लालकिले से पहली बार टॉयलेट जैसे मुद्दे पर बात की। किसी प्रधानमंत्री ने पहली बार ऐसे अहम मुद्दे को, पर जो छोटा लगने वाला, छोटा दिखने वाला मुद्दा हो, पर बहुत अहम हो, उसे प्राथमिकता दी, ये हमने देखा। ये जो प्राथमिकताएं बदली हैं, ये प्राथमिकताएं जो आप decide करते हैं, ये किस तरह decide करते हैं, और ये issues कैसे ऊपर आए?

प्रधानमंत्री- देखिए, मैं ये तो नहीं कहूंगा कि आजादी के 70 साल में किसी सरकार का इन विषयों पर ध्‍यान ही नहीं था, ये कहना तो उनके साथ अन्‍याय होगा। तो मैं उस प्रकार से बात करता नहीं हूं और मैंने तो लालकिले से ये भी कहा था कि आज हिन्‍दुस्‍तान जहां है वहां देश आजाद होने से लेकर सभी सरकारों का, सभी प्रधानमंत्रियों का, सभी राज्‍य सरकारों का, सभी मुख्‍यमंत्रियों का, हर जन-प्रतिनिधि का कोई  न कोई योगदान है- ये मैंने लालकिले पर से कहा था और मैं इसको मानता हूं। लेकिन क्‍या कारण है कि इतनी योजनाएं हैं, इतना धन खर्च हो रहा है, सामान्‍य मानवी की‍ जिंदगी में बदलाव क्‍यों नहीं आता है?

महात्‍मा गांधी ने हम लोगों को एक सिद्धांत दिया था और मैं समझता हूं किसी भी developing country के लिए इससे बढ़िया कोई सिद्धांत नहीं हो सकता है। महात्‍मा गांधी ने कहा था, कोई भी नीति बनाएं तो उस तराजू से तोलिए कि उसका जो आखिरी छोर पर बैठा हुआ इंसान है,  उसकी जिंदगी में उस नीति का क्‍या प्रभाव होगा। मुझे महात्‍मा गांधी की ये बात मेरे गले उतर गई है कि हम नीतियां कितनी ही बढ़ाएं, बड़ी-बड़ी बात करें, लेकिन भाई जिसके लिए बना रहे हैं, वो समाज का आखिरी छोर का व्‍यक्ति, उस पर पहुंचने में हम कहां जा रहे हैं।

मैं जानता हूं मैंने ऐसे कठिन काम सिर पर लिए हैं, हो सकता है उन्‍हीं मेरे कामों को कोई negative paintभी कर सकता है, लेकिन क्‍या इसलिए इन कामों को छोड़ देना चाहिए क्‍या? गरीब जहां पड़ा है पड़े रहने देना चाहिए क्‍या? और तब जा करके आप मुझे कल्‍पना कर सकते हैं जब किसी छोटी बालिका पर बलात्‍कार होता है कितनी दर्दनाक घटना है जी। लेकिन क्‍या हम ये कहेंगे कि तुम्‍हारी सरकार में इतने होते थे, मेरी सरकार में इतने होते हैं? मैं समझता हूं इससे बड़ा गलत रास्‍ता नहीं हो सकता है। बलात्‍कार, बलात्‍कार होता है, एक बेटी के साथ ये अत्‍याचार कैसे सहन कर सकते हैं? और इसलिए मैंने लालकिले पर से नए तरीके से इस विषय को पेश किया था। मैंने कहा अगर बेटी शाम को देर से आती है तो हर मां-बाप पूछते हैं, कहां गई थी? क्‍यों गई थी? किसको मिली थी? फोन पर बात करते हुए मां देखती है, हे-बात बंद करो, किससे बात कर रही हो? क्‍यों बात कर रही हो?

अरे भाई, बेटियों को तो सब पूछ रहे हो, कभी बेटों को भी तो पूछो, कहां गए थे? ये बात मैंने लालकिले से कही थी। और मैं मानता हूं ये बुराई समाज की है, व्‍यक्ति की है, विकृति है, सब होने के बावजूद भी देश के लिए चिंता का विषय है। और ये पाप करने वाला किसी का तो बेटा है। उसके घर में भी तो मां है।

उसी प्रकार से आप कल्‍पना कर सकते हैं कि आजादी के इतने सालों के बाद भारत में sanitation का कवर 35-40 percent के आस-पास था। क्‍या आज भी हमारी माताओं-बहनों को, क्‍योंकि मैं, देखिए ये चीजें, का एक और कारण भी है- मुझे किताब पढ़के गरीबी सीखनी नहीं पड़ रही है।  मुझे टीवी के पर्दे पर गरीबी का अहसास करना नहीं है, मैं वो जिंदगी को जी करके आया हूं। गरीबी क्‍या होती है, पिछड़ापन क्‍या होता है, गरीबी की जिंदगी से कैसी जद्दोजहद होती है, वो मैं देखकर आया हूं।

और इसलिए, इसलिए मैं मन से मानता हूं- राजनीति अपनी जगह पर है, मेरी समाज नीति कहो, मेरी राष्‍ट्रनीति कहो, मुझे कहती हैं कि इनकी जिंदगी में कुछ तो बदलाव लाऊं मैं। और तब जाकर मैंने लालकिले से कहा कि हम 18 हजार गांव, जहां अभी तक बिजली नहीं पहुंची है, इसका मतलब बाकी गांवों में पहुंची है। जिन्‍होंने पहुंचाई है उनको सौ-सौ सलाम। लेकिन 70 साल के बाद 18 हजार में न पहुंचना, ये भी तो जिम्‍मेवारी हम लोगों को लेनी चाहिए।

और मैंने सरकारी दफ्तर से कहा, मैंने कहा- कब करोगे भाई? तो किसी  ने कहा सात साल लगेंगे। मैंने कहा- मैं सात साल इंतजार नहीं कर सकता। और मैंने लालकिले से घोषणा कर दी- मैं 1000 दिन में काम पूरा करना चाहता हूं। कठिन काम था, दुर्गम इलाके थे, कहीं तो extremist लोग, माओवादियों का इलाका था। 18 हजार गांवों में बिजली पहुंचाने का काम करीब-करीब पूरा हुआ। अब शायद डेढ़ सौ, पौने दो सो गांव बाकी हैं।, काम चल रहा है।

आप कल्‍पना कर सकते हैं कि गरीब मां शौचालय जाने के लिए सूर्योदय से पहले जंगल जाने के लिए सोचती हैं और दिन में कभी जाना पड़े, शारीरिक पीड़ा सहती हैं लेकिन सूरज ढलने तक का इंतजार करती हैं। वो शौचालय के लिए नहीं जाती हैं। उस मां को कितनी पीड़ा होती होगी? कितना दर्द होता होगा? उसके शरीर पर कैसा जुल्‍म होता होगा? क्‍याहम टॉयलेट नहीं बना सकते? ये सवाल मुझे सोने नहीं देते थे। और तब जा करके मुझे लगा कि मैं लालकिले पर से जा करके अपनी भावनाओं को बिना लाग-लपेट बता दूंगा, जिम्‍मेदारी बहुत बड़ी होगी। लेकिन मैंने देखा कि देश ने बहुत response दे दिया। जो मेरा करीब, आज तीन लाख गांव open defecation free हो गए और काम तेजी से चल रहा है। और इसलिए last miles delivery, ये लोकतंत्र में सरकारों की प्राथमिक जिम्‍मेवारी है।

और इसी प्रकार अभी जैसे मैंने एक बीड़ा उठाया है- पहले उठाया बीड़ा, गांव में बिजली पहुंचाऊंगा। अब बीड़ा उठाया है घर में बिजली पहुंचाऊंगा। चार करोड़ परिवार ऐसे हैं। भारत में टोटल 25 करोड़ परिवार हैं, सवा सौ करोड़ जनसंख्‍या है लेकिन करीब-करीब 25 करोड़ परिवार हैं। आजादी के 70 साल बाद चार करोड़ परिवारों में आज भी 18वीं शताब्‍दी की जिंदगी है। वो दीया जला करके गुजारा करते हैं।

मैंने बीड़ा उठाया है। सौभाग्‍य योजना के तहत मुफ्त में उन चार करोड़ परिवारों में बिजली का कनेक्‍शन दूंगा। उनके बच्‍चे बिजली में पढ़ेंगे, उनके घर में अगर कम्‍प्‍यूटर चलाना है, मोबाइल चार्ज करना है तो दुनिया से जुड़ेंगे। टीवी लाने का खर्चा मिल जाएगा तो टीवी देखेंगे, बदलती हुई दुनिया देखेंगे। वो दुनिया के साथ जुड़ने के लिए उनके अंदर भी बेसब्री मुझे पैदा करनी है। उनके अंदर वो बेसब्री पैदा करनी है ताकि वो भी कुछ करने के लिए मेरे साथ जुड़ जाएं और वही तो empowerment है। मैं गरीबों का empowerment करके गरीबी से लड़ाई लड़ने के लिए मेरे साथियों की एक नई फौज तैयार करना चाहता हूं, जो फौज गरीबों से निकली होगी और गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ेगी और तब जा करके गरीबी मिटेगी। गरीबी हटाओ के नारे से नहीं होता है।

प्रसून जोशी–मोदीजी, आप पूरी मेहनत कर रहे हैं, ये सब मानते हैं पर क्‍या अकेले आप देश बदल पाएंगे?

प्रधानमंत्री- देखिए, मैं मेहनत करता हूं, ये बात आपने कही, मैं समझता हूं देश में इस विषय में कोई विवाद नहीं है। मैं मेहनत करता हूं ये मुद्दा ही नहीं है; अगर न करता तो मुद्दा है। मेरे पास पूंजी है प्रमाणिकता। सवा सौ करोड़ देशवासियों ने मुझे यहॉं बढ़ाया है। न मेरी कोई जाति है न मेरा कोई वंशवाद है कि- मेरे पिता जी कुछ थे या मेरे दादा जी कुछ थे या मेरे नाना जी कुछ थे। कुछ नहीं है जी, तो मेरे पास पूंजीएक ही है। कठोर परिश्रम। मेरे पास पूंजी हैप्रमाणिकता। मेरे पास पूँजी है मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का प्‍यार और इसलिए मुझे ज्‍यादा से ज्‍यादा मेहनत करनी चाहिए। और मैं देशवासियों को कहना चाहूंगा कि मैं भी आपके जैसा ही एक सामान्‍य नागरिक हूं। मुझमें वो सारी कमियां हैं जो एक सामान्‍य मानवी में होती हैं।

प्रसून जोशी–जी 16 घंटे तो काम नहीं करते सामान्‍य

प्रधानमंत्री- कृपा करके कोई मुझे अलग न समझो। आप मुझे अपने जैसा ही मान लो, और हकीकत है। मैं किस जगह पर बैठा हूं, वो तो एक व्‍यवस्‍था का हिस्‍सा है, लेकिन मैं वही हूं जो आप हैं। आपसे मैं अलग नहीं हूं। मेरे भीतर एक विद्यार्थी है। और मैं, मेरे शिक्षकों का बहुत आभारी हूं कि बचपन में मुझे उन्‍होंने ये रास्‍ता सिखाया कि मेरे भीतर के विद्यार्थी को कभी मरने नहीं दिया। और मुझे जो दायित्‍व मिलता है उसे मैं सीखने की कोशिश करता हूं, समझने की कोशिश करता हूं। गलतियां नहीं होंगी, मैं जब चुनाव लड़ रहा था तो मैंने देशवासियों को कहा था, कि मेरे पास अनुभव नहीं है। मुझसे गलतियां हो सकती हैं। लेकिन मैंने देशवासियों को विश्‍वास दिया था कि मैं गलतियां कर सकता हूं लेकिन बदइरादे से गलत कभी नहीं करूंगा।

लंबे समय तक longest service Chief Minister के रूप में गुजरात में काम करने का मौका मिला, अब चार साल होने आए हैं, प्रधानमंत्री का, प्रधान सेवक का काम मुझे मिल गया है। लेकिन गलत इरादे से कोई काम नहीं करूंगा, मैंने देश को वादा किया है।

अब सवाल ये है, मैंने कभी नहीं सोचा है कि देश मैं बदल दूंगा, ये कभी नहीं सोचा है। लेकिन मेरे भीतर एक भरपूर विश्‍वास पड़ा है कि मेरे देश में अगर लाखों समस्‍याएं हैं तो सवा सौ करोड़ समाधान भी हैं। अगर मिलियन problems हैं तो बिलियन solutions भी हैं। सवा सौ करोड़ देशवासियों की शक्ति पर मेरा भरोसा है और मैंने अनुभव किया है कि कोई कल्‍पना कर सकता है- नोटबंदी। आप अगर टीवी खोल करके देखोगे तो नोटबंदी मतलब मुझे अर्जेन्‍टीना के राष्‍ट्रपति मिले थे तो वो कह रहे थे मोदीजी- मेरे अच्‍छे दोस्‍त हैं। बोले मैं और मेरी पत्‍नी बात कर रहे थे कि मेरा दोस्‍त गया। मैंने कहा, क्‍यों, क्‍या हुआ?  अरे, बोले यार तुमने जब नोटबंदी की, तो क्‍योंकि वेनेजुएला में उसी समय चल रहा था, उनके पड़ोसी हैं लोग तो उनको पता था।

तो बोले, मेरी पत्‍नी और हम दोनों चर्चा करते थे कि मेरा दोस्‍त गया। 86% currency कारोबारी व्‍यवस्‍था से बाहर हो जाए, टीवी के पर्दे पर लगातार सरकार के खिलाफ धुंआधार आक्रमण हो, लेकिन ये देशवासियों के प्रति मेरा भरोसा था, क्‍योंकि देश, मेरा देश ईमानदारी के लिए जूझ रहा है। मेरा सामान्‍य देश का नागरिक र्इमानदारी के लिए कष्‍ट झेलने को तैयार है, करने को तैयार है। अगर ये मेरे देश की ताकत है तो मुझे उस ताकत के अनुरूप अपनी जिंदगी को ढालना चाहिए। और उसी का नतीजा है कि आज जितने भी परिणाम आप देखते हैं, मोदी तो निमित्‍त है और actually मोदी की जरूरत है यहां। जरूरत क्‍या है, किसी को भी पत्‍थर मारना है तो मारेंगे किसको भाई?  किसी को कूड़ा-कचरा फैंकना है तो फेंकेंगे कहां जी? किसी को गालियां देनी हैं तो देंगे किसको?

तो मैं अपने-आपको सौभाग्‍यशाली मानता हूं कि मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों पर कोई पत्‍थर नहीं पड़ रहे हैं, कोई कीचड़ नहीं उछाल रहा, कोई गालियां नहीं दे रहा है। मैं अकेला हूं, लेता रहता हूं, झेलता रहता हूं। और मैं आपकी तरह कवि तो नहीं हूं लेकिन हर युग में कोई न कोई कुछ तो लिखते ही रहते हैं। आपमें से सबने लिखा होगा। लेकिन हम सब कवि नहीं बन सकते। वो तो प्रसून ही बन सकते हैं। लेकिन मैंने कभी लिखा था।

प्रसून जोशी–जी

प्रधानमंत्री- क्‍योंक मैं ऐसी जिंदगी गुजार करके आया हूं तो मेरी जिंदगी में ये सब झेलना बड़ा स्‍वाभाविक था। हम ठोकरे खाते-खाते आए हैं जी। बहुत प्रकार की परेशानियों से निकल करके आए हैं तो मैंने लिखा था कि जो लोग मुझे – मुझे पूरी कविता के शब्‍द आज याद नहीं लेकिन किसी को रुचि होगी तो मेरी एक किताब है जरूर आप देख लेना। मैंने उसमें लिखा था-

‘’जो लोग मुझे पत्‍थर फेंकते हैंमुझ पर मैं उन पत्‍थरों से ही पक्‍थी बना देता हूं और उसी पक्‍थी पर चढ़ करके आगे चलता हूं।‘’

और इसलिए मेरा concept रहा है Team India, सिर्फ सरकार में बैठे हुए लोग नहीं। ब्‍यूरोक्र्रेसी है, राज्‍य सरकार है, federal structure के लिए मेरी बहुत बड़ी प्राथमिकता है। Co-operative federalism को मैंने competitive co-operative federalism की दिशा में ले जाने का प्रयास किया है

मैंने अभी देश के 115 districts, aspiration districts को identify किया है। मैं उनको प्रेरणा जगा रहा हूं कि आप अपने स्‍टेट की जो एवरेज है, वहां तक आ जाओ, मैं आपके साथ खड़ा हूं। मैं उनको उत्‍साह बढ़ा रहा हूं और वो कर रहे हैं। और उसी का परिणाम है कि टॉयलेट का लक्ष्‍य करता हूं, पूरा हो जाता है। 18 हजार गांवों में बिजली, कोई मोदी खंभा डालने गया था क्‍या? खंभा डालने के लिए मेरे देशवासी गए थे। बिजली पहुंचाने वाले मेरे देशवासी गए थे। और इसलिए महात्‍मा गांधी की वो बात जिसे मैंने एक मंत्र के रूप में लिया है कि आजादी के लिए दीवाने बहुत थे, आजादी के लिए मरने वाले लोग भी बहुत थे, और उनकी त्‍याग-तपस्‍या को कोई कम नहीं आंक सकता है, उनकी शहादत को कोई कम नहीं आंक सकता है। लेकिन गांधी ने आजादी को जन–आंदोलन बना दिया, मैं विकास को जन–आंदोलन बना रहा हूं।

मोदी अकेला कुछ नहीं करेगा और मोदी ने कुछ नहीं करना चाहिए, लेकिन देश सब कुछ करे और मोदी में। और सरकारें कभी-कभी तो मैं कहता था, जब मैं गुजरात में था तो बात करता था, मैंने कहा- हमारा देश ऐसा है कि सरकार रुकावट बनना बंद कर दे ना तो भी देश बहुत आगे बढ़ जाता है। उन मूलभूत विचारों से मैं चलने वाला इंसान हूं।

प्रसून जोशी–कविता की आपने बात की तो आपको सामने देखकर एक कविता मैं सुना देता हूं। जो कविता, मतलब मैं कहूंगा कि भारत पर तो बहुत ही खरी उतरती है। आप पर भी बहुत खरी उतरती है। कहीं आप समझें कि मैं क्‍या कह रहा हूं-

‘कि सर्प क्‍यों इतने चकित हो? सर्प क्‍यों इतने चकित हो? दंश का अभ्‍यस्‍त हूं।

सर्प क्‍यों इतने चकित हो? दंश का अभ्‍यस्‍त हूं, पी रहा हूं विष युगों से, सत्‍य हूं, आश्‍वस्‍त हूं।

सर्प क्‍यों इतने चकित हो? दंश का अभ्‍यस्‍त हूं, पी रहा हूं विष युगों से, सत्‍य हूं, आश्‍वस्‍त हूं।

ये मेरी माटी लिए है गंध मेरे रक्‍त की, जो कह रही है मौन की, अभिव्‍यक्‍त की।

मैं अभय लेकर चलूंगा, मैं विचलित न त्रस्‍त हूं।

सर्प क्‍यों इतने चकित हो? दंश का अभयस्‍त हूं।

है मेरा उद्गम कहां परऔर कहां गंतव्‍य है?

दिख रहा है सत्‍य मुझको, रूप जिसका भव्‍य है।

मैं स्‍वयं की खोज में कितने युगों से व्‍यस्‍त हूं।

सर्प क्‍यों इतने चकित हो? दंश का अभयस्‍त हूं।

है मुझे संज्ञान इसका बुलबुला हूं सृष्टि में,

है मुझे संज्ञान इसका बुलबुला हूं सृष्टि में।

एक लघु सी बूंद हूं मैं, एक लघु सी बूंद हूं मैं, एक शाश्‍वत वृष्टि मैं।

है नहीं सागर को पाना, मैं नदी सन्‍यस्‍त हूं।

सर्प क्‍यों इतने चकित हो? दंश का अभयस्‍त हूं।

प्रधानमंत्री- प्रसून जी हम लोग, आपकी भावना का मैं आदर करता हूं, लेकिन हमारी रगों में वही भाव रहा है- वयम अमृतश्‍य पुत्र:।

इसी भाव को लेकर हम पले-बढ़े लोग हैं और इसलिए हमारे देश में हर किसी  ने दंश भी सहे हैं, जहर भी पिया है, परेशानियां भी झेली हैं, अपमान भी झेले हैं लेकिन सपनों को कभी मरने नहीं दिया है।

और ये ज़ज्‍़बा ही है जो देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने ताकत रखता है और मैं इसको अनुभव करता हूं जी।

प्रसून जोशी–यहां पर कुछ सवाल ऑर्डियन्‍स से लेते हैं। श्री सेमुअल डाउजर्ट से लेते हैं एक सवाल , जो आपसे एक सवाल पूछना चाहते हैं। जी आप अपना सवाल जरूर आपके साथ कोई खड़ा होगा उसे दे दें लिखकर। वो आप तक पहुंचेगे, आप जरा लिखकर दे दें बस। आप दे दें, मैं पूछ लूंगा। मैं आपका नाम एनाउंस कर दूंगा

सेमुअल डाउजर्ट –Good Evening Mr. Prime Minister,in the Past Obamacare, in the recent there is a talk of Modicare in India, I wanted to ask, will this lead to major change in the health sector. thank You.

प्रसून जोशी–I think मोदी केयर, ऐसे ही ओबामा केयर, मोदी केयर्स के बीच में parallel draw किया है उन्‍होंने। तो उस विषय में कि हेल्‍थ सेक्‍टर के बारे में शायद बात करना चाहते हैं।

प्रधानमंत्री–देखिए, मैं अनुभव करता हूं कि तीन बातों पर मेरा एक आग्रह है, मैं कोई बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोगों में से नहीं हूं। मेरी जिंदगी का ब्रेकग्राउंड ही ऐसा है कि मैं, हमारे मेघनाथ भाई बैठे हैं यहां पर, मैं कोई उस प्रकार की बातें करने वाली मेरी परम्‍परा नहीं है। लेकिन तीन चीजें- बच्‍चों को पढ़ाई, युवा को कमाई, बुजुर्गों को दवाई- ये चीजें हैं जो हमें एक स्‍वस्‍थ समाज के लिए चिंता करनी चाहिए। मैंने अनभव किया है कि कितना ही अच्‍छा परिवार क्‍यों न हो, कोई व्‍यसन  न हो, कोई बुराइयां न हो, कुछ न हो, बहुत अच्‍छे ढंग से चलता हो परिवार, किसी का बुरा भी न किया हो; लेकिन उस परिवार में अगर एक बीमारी आ जाए। कल्‍पना की होगी कि चलो भाई बच्‍ची बड़ी हो गई है, बेटी के हाथ पीले करने हैं, शादी करवानी है, और घर में एक व्‍यक्ति की बीमारी हो जाए, पूरा प्‍लान खत्‍म हो जाता है। बच्‍ची कुंवारी रह जाती है, बीमारी पूरे परिवार को तबाह करके चली जाती है।

एक गरीब आदमी ऑटो रिक्‍शा चला रहा है, बीमार हो गया। ये व्‍यक्ति बीमार नहीं होता है पूरा परिवार बीमार हो जाता है। सारी व्‍यवस्‍था बीमार हो जाती है। और तब जाकर हमने कुछ सोचा, तो हमने health sector में एक बड़ा holistic approach लिया है। कुछ लोग इसको मोदी केयर के रूप में आज प्रचलित कर रहे हैं। मूलत: योजना है आयुष्‍मान भारत। और उसमें हमने preventive health की बात हो, affordable health की बात हो, sustainable chain की बात हो, इन सारे पहलुओं को ले करके हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसके दो component हैं। एक- हम देश में करीब-करीब डेढ़ लाख से ज्‍यादा wellness centre create करना चाहते हैं ता‍कि अगल-बगल के 12-15 गांव के लोगों के लिए हेल्‍थ की सारी सुविधाएं उपलब्‍ध हों, और वो सारे technology driven हों। ताकि बड़े अस्‍पताल से जुड़ करे वहां पेशेंट आया है तो उसको तुरंत गाइड करें क्‍या दवाईयां चाहिए, व्‍यवस्‍था करें।

दूसरा- preventive health को बल दें। चाहे योगा हो, चाहे लाइफ स्‍टाइल हो, इन सारी चीजों को preventive health के लिए, चाहे nutrition हो। हमने एक पोषण मिशन शुरू किया है। Women and child health care के लिए, उसके द्वारा हमने काम किया है।

दुनिया के समृद्ध देशों में भी maternity leave के लिए आज भी उतनी उदारता नहीं है जितनी हमारी सरकार ने आ करके की है। मैं मानता हूं यूके के लोग भी जान करके खुश हो जाएंगे, हमने उन बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य की चिंता करते हुए, उस मां के स्‍वास्‍थ्‍य की चिंता करते हुए maternity leave, 26 week कर दिया है।

एक और पहलू है कि परिवार को एक ऐसी व्‍यवस्‍था दी जाए। भारत के करीब दस करोड़ परिवार, यानी 50 करोड़, पापुलेशन एक प्रकार से आधी जनसंख्‍या, उनको सालभर में पांच लाख रुपया तक की बीमारी का खर्चा सरकार भुगतान करेगी। एक साल में परिवार के एक व्‍यक्ति, सब व्‍यक्ति  अगर जितनी बीमारी होती हैं, पांच लाख रुपये तक का पेमेंट सरकार देगी। इसके कारण गरीब की जिंदगी में ये जो संकट आता है उससे मुक्ति मिलेगी।

मैं जानता हूं बड़ा भगीरथ काम है लेकिन किसी को तो करना चाहिए।

दूसरा- इसके कारण जो प्राइवेट हॉस्पिटल आने की संभावना है टायर-2, टायर-3 सिटी में, अच्‍छे हॉस्पिटल का नेटवर्क खड़ा होगा। क्‍योंकि उनको पता है कि पेशेंट आएगा, क्‍योंकि पेशेंट को पता है कि मेरे पैसे कोई देने वाला है, तो वो जरूर जाएगा।

थोड़ी सी बीमारी आएगी तो आज नहीं जाता है, वो कहता है छोड़ो यार दो दिन में ठीक हो जाऊंगा, वो झेल लेता है। लेकिन जब पता है तो जाएगा। अस्‍पताल को भी पता है कि भाई पेशेंट जरूरत आए क्‍योंकि पैसे देने वाला कोई और है। और इसके कारण नए हॉस्पिटल का चेन बनेगा।

और मैं मानता हूं निकट भविष्‍य में और आपमें से जो हेल्‍थ के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, एक हजार से ज्‍यादा नए अच्‍छे हॉसिपटल बनने की संभावना पैदा हुई है। ये permanent solution system से पैदा हुई है।

उसी प्रकार से दवाइयां- पैकिंग अच्‍छा होता है, दवाई लिखने वाले को भी कुछ मिलता रहता है। आप जानते होंगे डॉक्‍टरों की कॉन्‍फ्रेंस कभी सिंगापुर होती है कभी दुबई होती है, हैं। वहां कोई बीमार है इसलिए नहीं जाते हैं, फार्मास्‍यूटिकल कम्‍पनियों के लिए जरूरी है, करते हैं।

तो हमने क्‍या किया- जेनेरिक मेडिसिन्‍स, और वो उतनी ही उत्‍तम क्‍वालिटी की होती है। जो दवाई 100 रुपये में मिलती थी, वो आज  जेनेरिक मेडिकल स्‍टोर में 15 रुपये में मिलती है। करीब 3 हजार ऐसे हमने जन-औषधालय का काम किया है और, और भी हम बढ़ा रहे हैं ताकि सामान्‍य व्‍यक्ति, और उसको हम प्रचारित भी कर रहे हैं।

उसी प्रकार से अगर जाएंगे तो डॉक्‍टर बताएगा भाई हार्ट की बीमारी है। अब आपको तो पता नहीं चलता है। दिखता तो नहीं है अंदर। डर लगता है, हैं हार्ट, यार कुछ होगा तो?

तो डॉक्‍टर कहेगा, stent रखना पड़ेगा। तो कहता है भई चलो। फिर कहता है देखो ये दो stent हैं, ये रखोगे तो दो लाख का होगा, ये रखोगे तो एक लाख का होगा। तो वो सोचता है दो वाला क्‍यों और एक वाला क्‍यों? वो कहता है दो वाला लिया तो जीवन तक चलता है, एक वाला लिया तो 4-6 साल के बाद नया। तो फिर वो कहता है यार फिर यही लगवा लो दो वाला। तो बेचारा कर्ज से पैसा ले आता है।

मैंने जरा पूछा, मैंने कहा यार ये क्‍या चीज हैदो लाख रुपये की? मैंने negotiation शुरू किया। और आप हैरान होंगे करीब-करीब 60 से 80 पर्सेंट कीमत कम हो गई। जो डेढ लाख, दो लाख होता था, वो आज 20 हजार, 25 हजार में हो रहा है।

उसी प्रकार से knee plant, करीब-करीब अब लोगों को आदत तो रही नहीं आसन, योगा करने की। मैं कह-कहकर थक जाता हूं भाई योगा करो। अब ये चलता नहीं है तो कहते हैं चलो स्‍क्रू  फिट करवा दो। और वो बहुत पैसे लेते हैं। मैंने उनको बुलाया, वो भी खर्च....। तो ऐसे कई पहलुओं को लिया है हमने। पूरे हेल्‍थ सेक्‍टर पर holistic approach से हम काम कर रहे हैं, उसके साथ स्‍वच्‍छता भी जुड़ी हुई है।

वर्ल्‍ड बैंक का रिपोर्ट है कि भाई स्‍वच्‍छता पर अगर ध्‍यान दिया जाए तो एक परिवार का बीमारी के पीछे एवरेज साल का 7 से 12 हजार रुपये का खर्च बच जाता है। तो ऐसी कई चीजों को ले करके हमने योजना ब बनाई है। लोग इसको मोदी केयर कहें, हर एक की मर्जी है लेकिन मूलत: मेरी इच्‍छा है मेरे देशवासियों की मैं केयर करूं।

प्रसून जोशी- जी बहुत-बहुत धन्‍यवाद। मोदीजी जो आपने क्‍योंकि हेल्‍थ केयर सेक्‍टर में इतने कदम आपने उठाए हैं और शायद जो कोलाहल होता है उसमें बीच में कहीं सारी चीजें खो जाती हैं। बहुत ही बड़ी जानकारी थी ये सबके लिए। और ये सवाल पूछने के लिए सेमुअल जी का बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

आपके और भी इसके बाद engagements हैं। मुझे मालूम है कि बहुत आपका आगे भी कार्यक्रम है रात का। तो एक और सवाल लेते हैं। ये संतोष पाटिल जी का नाम मेरे पास आया है। संतोष पाटिल जी एक सवाल पूछना चाहते हैं आपसे।

संतोष पाटिल जी अपना सवाल पूछें।

संतोष पाटिल – प्रधानमंत्री जी नमस्‍कार। मैं संतोष पाटिल कर्नाटक से हूं। आज कर्नाटक के लोगों के लिए बहुत ही खुशी का दिन है। आप आपको भी पता होगा कि जगतगुरू बसवेश्‍वर जी का जयंती है। पिछली बार जब आपने लंदन को आए थे तो तब आपने जगतगुरू बसवेश्‍वर जी का प्रतिमा का अनावरण किया था।

तो मेरा प्रश्‍न आपसे ये है कि आप उनके जीवन और उनके विचार, उनको कैसे देखते हैं? और आप क्‍या उनके विचारों को कैसे आगे ले जाने के बारे में सोचते हैं? थैंक्‍यू, धन्‍यवाद।

मोदीजी – देखिए, हमारे देश का एक दुर्भाग्‍य है कि आजादी के बाद भारत की महान परम्‍परा, संस्‍कृति, इतिहास, उसको भुला देने का भरसक प्रयास हुआ है। आपको एक परिवार से बाहर कुछ पता ही नहीं चलने दिया गया है। बहुत लोगों ने तो शायद बसवेश्‍वर जी का नाम आज पहली बार सुना होगा।12th century के महापुरुष, कर्नाटक के, और मैं आपमें से किसी को रुचि हो, तो भगवान बसवेश्‍वर के वचन पढ़ने जैसे, और आज सभी भाषाओं में उपलब्‍ध हैं। सभी भाषाओं में उपलब्‍ध हैं, आज उनकी जन्‍म जयंती है। तो मैंने आज मेरे busy schedule में भी थोड़ा समय निकाला था और यहां पर जो पिछली बार जब मैं आया था तो जिस statue का मुझे अनावरण करने का मौका मिला था, तो वहां जा करके मैं खुद आज नमन करने चला गया था।

देखिए हमें हमारे लिए करवई ही नहीं है, हमारा दुर्भाग्‍य ये है जी। हमें अपनी महानताओं का पता ही नहीं है। हम मेगनाकार्टरा के लिए जानते हैं, पढ़ते हैं। हम डेमोक्रेटिक वेल्‍यूज के लिए दुनिया से सारी बातें बताते हैं। आपको जान करके खुशी होगी कि 12th century में भगवान बसवेश्‍वर ने मेगनाकार्टरा के भी पहले, लोकतंत्र के लिए पूरा जीवन खपा दिया। उन्‍होंने एक अनुभवमंडपम नाम की व्‍यवस्‍था की और समाज के सब वर्ग के लोग वहां बैठते थे और सामाजिक समस्‍याओं का चिंतन करते थे और उस जमाने में compulsory महिला प्रतिनिधि रहती थी उसमें, 12th century में। और सामाजिक समस्‍याओं का निदान निकालते थे और फिर समाज का प्रबोधन करते थे।

हमारा देश जातिवाद, ऊंच-नीच, छूत-अछूत, इसमें ऐसा बिखरा पड़ा था। भगवान बसवेश्‍वर ने इन सबको एक छत्रछाया में ला करके ऊंच-नीच, जातिवाद को समाप्‍त करके सबको जोड़ने का बहुत बड़ा काम किया था। और अभी जो आपने बेसब्री वाली बात कही थी, मुझे भगवान बसवेश्‍वर जी की एक बात याद आती है- उनका एक वचन है- उस वचन में उन्‍होंने कहा है- कि जहां ठहराव है, मुझे शब्‍द मेरे होंगे, लेकिन मुझे भाव याद है- जहां ठहराव है, वहां जिदंगी समाप्‍त है और जहां पर गति है, वहां पर जिंदगी के  नए आयाम की संभावनाएं नित्‍य नूतन होती हैं।

इस प्रकार का भाव भगवान बसवेश्‍वर के वचन में है जहां ठहराव को मृत्‍यु माना है उन्‍होंने, उस जमाने में।और इसलिए मैं समझता हूं कि लोगतंत्र के‍ लिए, women empowerment के लिए, social consciousness के लिए जो काम भगवान बसवेश्‍वर ने किया है, आज भी हमारे देश को और दुनिया को मार्गदर्शक है। तो मुझे खुशी हई और आप तो स्‍वयं कर्नाटक के हैं।

आज मुझे उनकी जन्‍म-जयंती पर वहां जाने का सौभाग्‍य मिला था और हम सब, और मैं तो चाहूंगा हमारे स्‍कूलों के बच्‍चों को भी पता होना चाहिए कि अनुभवमंडपम नाम की democratic institute कैसे उस जमाने में डेवलप की होगी। कितनी बड़ी दीर्घ दृष्टि होगी उस महापुरुष की जिन्‍होंने इस काम को किया होगा।

प्रसून जोशी–बहुत-बहुत धन्‍यवाद आपका बताने के लिए।

प्रधानमंत्री मोदी हमारे देश में साहस और  संकल्‍प की कमी नहीं है। संघर्ष करने की आदत है हमारे देश को। पर यही शक्ति कहीं और पहुंच जाती है, अगर कोई इसे दिशा दे, इसका हाथ थामे। अब हम इसी बारे में बात करना चाहते हैं। चलिए नजर डालते हैं- बहुत से सवाल आए थे और खासकर ये कि कैसे भारत एक, बस एक नज़ मांगता है, एक थोड़ा सा इशारा मांगता है और एक थोड़ा सा हाथ थामने की बात मांगता है और उसके बाद वो चल निकलता है और कई लोग हैं जो उससे लाभान्वित हुए हैं।

तो योजनाएं तो हर सरकार बनाती है, ये पूछा है किसी ने। पर आपकी सरकार की योजनाएं ये कैसे अलग हैं? ये Modi model of governance क्‍या है, जिसका हम काफी जिक्र सुनते हैं?

प्रधानमंत्रीमोदीजी –देखिए, कोई भी सरकार में आता है तो विफल होने के लिए तो आता नहीं है। हर कोई कुछ न कुछ करने के लिए ही आता है। पहले भी सरकारें आई हैं कुछ न कुछ करने के इरादे से आई हैं। लेकिन बहुत-एक देखा गया अगर हम analysis करेंगे तो एक ऐसा हमारे देश में सरकारों ने रवैया अपनाया, जिसमें लोग सरकारों पर आश्रित हो जाएं, dependent हो जाएं। सरकार के बिना उनका गुजारा ही न हो।

मैं समझता हूं ये concept समाज को अपाहिज बना देता है, दुर्बल बना देता है। अगर गरीबी हटानी है तो हम गरीबों को शक्तिशाली बना करके ही हटा सकते हैं न कि हम गरीबों को फीड कर-करके कर सकते हैं। और उनको शक्ति देने के लिए जो कुछ भी करना पड़े, करना चाहिए।

हो सकता है 100 रुपये के बजाय 200 रुपये का खर्च होगा लेकिन ultimately pay करेगा। और इसलिए मेरा मुलत: सिद्धांत जो रहा है वो ये है कि हम समाज में जो भी शक्ति है, उसको और अधिक अवसर कैसे दें? हम एक ऐसा eco-system तैयार करें, ताकि उसको कुछ साहस करने का मन कर जाए। कहीं रुकावट आ जाए तो उसको हाथ पकड़ कर कोई निकालने वाला मिल जाए। और अनुभव मेरा ये है-

अब जैसे हमने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना बनाई- आपने सुना होगा किसी जमाने में हमारे देश में लोन मेले हुआ करते थे। और लोन मेले ऐसे होते थे कि political लोग अपने चेले-चपाटों को उस लोन मेले में कतार में खड़े रखते थे, अपनी राजनीतिक शक्ति पैदा करने के लिए। और वो फिर लोन मेले से पैसे ले जाते थे और बाद में कोई पूछने वाला नहीं था, गया सो गया। पैसा बैंक का था, देश का था, जनता का था, लोन मेला गरीब के लिए था; पहली नजर में बहुत अच्‍छा लगता है। लेकिन इन लोन मेलों ने जिंदगी बदली? नहीं बदली।

हमने किया, एक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना लाए। जिसमें हमने बिना बैंक गारंटी  लोगों को पैसा देना तय किया। लेकिन ये लोन मेले से डिफरेंट था। और अलग-अलग स्‍कीम के, उसके काम के हिसाब से उसको पैसे देना, आप जान करके खुश हो जाएंगे, अब तक 11 करोड़ लोगों ने इस मुद्रा योजना का लाभ उठाया है। पांच लाख करोड़ रुपयों से ज्‍यादा पूंजी इन लोगों के हाथ में पहुंची है।

और आपको जान करके ये भी खुशी होगी कि 11 करोड़ में बैंक से मुद्रा योजना में पैसे जिनको मिले हैं, बिना गारंटी मिले हैं। कोई collateral गारंटी की जरूरत नहीं थी कि भाई तुम जमीन लाओ, ढिकना लाओ, फलानां लाओ, कुछ नहीं। 74% women हैं इसमें।

मुझे अभी इन मुद्रा योजना के तहत पैसे लेने वाले लोगों से मिलने का मौका मिला। और मैंने उनसे बातें कीं, क्‍या अनुभव आया। मैं हैरान था जी, ऐसी छोटी-छोटी चीजें उन्‍होंने शुरू की हैं और आज धीरे-धीरे वो, कोई पांच लोगों को रोजगार दे रहा है, कोई तीन लोगों को रोजगार दे रहा है, कोई दो लोगों को रोजगार दे रहा है; वो स्‍वयं में अपने-आपको को एक entrepreneur बनने की दिशा में अब नए-नए तरीके से सोच रहा है। मैं समझता हूं कि ये empowerment है।

नहीं तो पहले क्‍या था, तुम चिंता मत कर यार, सरकार में तुमको काम पर लगवा दूंगा। अब कुछ दिन मिल गया, कुछ दिन नहीं मिल गया, उसको लगता था यार यही मेरी जिंदगी, भली करेगा तो उसको चिपक कर रहता था। हमने उसको empower करने की तरफ।

अब एग्रीकल्‍चर। हमने ठान लिया है कि हम 2022, जब भारत की आजादी के 75 साल होंगे, तब तक हम देश के किसान की इन्‍कम डबल करना चाहते हैं। अब उसके लिए उसकी लागत कम होनी चाहिए, उसका जो input cost है, वो कम होना चाहिए।

हमारे देश में, यानी ये जो आप कहते हैं ना मोदी का way of governance क्‍या है?  हमारे देश में, मैं जब मुख्‍यमंत्री था, तो मैंने उस समय प्रधानमंत्री को जो सबसे ज्‍यादा चिट्ठियां लिखी हैं, वो एक ही बात पर लिखी हैं, साल में तीन-चार बार लिखना पड़ता था, हमारे देश में किसानों को हमारे राज्‍य में यूरिया की जरूरत है, हमें यूरिया का कोटा बढ़ा दीजिए, यूरिया दे दीजिए। और सरकार कहती थी, कि नहीं-नहीं इससे ज्‍यादा कोटा नहीं मिलेगा। यूरिया के लिए लोग दो-दो दिन तक कतार में खड़े रहते थे। कुछ राज्‍यों में यूरिया प्राप्‍त करने के लिए लाठीचार्ज की घटनाएं बन जाती थीं। ये क्‍यों होता था?

आप हैरान होंगे, यूरिया का कारखाना मुझे लगाना होता तो पांच-छह साल लग जाते। मैंने आने के बाद कोई नए कारखाने नहीं लगाए हैं। प्रक्रिया चल रही है, लगने वाले हैं। जो बन्‍द पड़े थे, चालू भी होने वाले हैं। लेकिन सिर्फ मैंने efficiency में परिवर्तन किया। कुछ गलत काम हो रहे थे उसको रोका है। र्इमानदारी को बल दिया, बिना कोई एकस्‍ट्रा नया कारखाना लगाए 20 लाख टन यूरिया का उत्‍पादन बढ़ गया।

दूसरा- यूरिया होता था, सब्सिडी जाती थी, करीब 80-90 हजार करोड़ सब्सिडी जाती थी यूरिया में। सब्सिडी के नाम पर यूरिया निकलता था, किसान के नाम पर निकलता था, लेकिन वो कैमिकल फैक्‍टरी में चोरी होकर चला जाता था। कैमिकल फैक्‍टरी वाला उसको रॉ मैटीरियल के लिए उपयोग करके, उसमें से कोई नई प्रॉडक्‍ट बना करके दुनिया को बेच देता था। उसको बहुत सस्‍ते में यूरिया मिल जाता था।

हमने यूरिया का neem coating किया। ये जो आपका नीम का पेड़ होता है, उसकी जो फली होती है, उसका तेल निकाला, उसमें यूरिया को मिक्‍स कर दिया। इससे परिणाम क्‍या आया?

एक- जो नीम के tree थे, उसकी फली जो बेकार में जाती थी, लोगों, इकट्ठा करने वालों को रोजगार मिल गया। नीम का तेल निकलने से उसको इसमें डालने से अब वो यूरिया जमीन के सिवाय किसी काम में नहीं आता है, चोरी बंद हो गई। तीसरा- यूरिया नीम कोटिंग होने के कारण उसकी अपनी ताकत बढ़ गई, जमीन में सुधार लाने की extra energy उसमें आई, जिसके कारण उत्‍पादन में 5 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक increase हो गया। मुझे बताइए कितने फायदे हो गए। अब ये बदलाव है कि नहीं है?

Skill development, हम कैमिकल फैक्‍टरी मान लीजिए है गुजरात में और मैं कैमिकल का Skill development कर रहा हूं पश्चिम बंगाल में, तो वो रोजगार कहां से मिलेगा उसको। अगर जहां पर जो फैक्‍टरी है, उसका मैपिंग करके उसकी requirement के अनुसार मैं अगर Skill development करता हूं तो उसको तुरंत रोजगार मिलेगा और stability भी रहती है। और इसलिए हमने देशभर में जो उद्योग जगत के लिए potential areas हैं, उसके अनुसार Skill development के मैकेनिज्‍म को हमने develop किया है, और वो भी जनभागीदारी से।

हमने कहा, चलो भई आपकी दस फैक्‍टरी हैं, ऑटोमोबाइल क्षेत्र में काम करती हैं, आप दस लोग एक institution यहां खड़ा करो, ऑटोमोबाइल के लिए जो manpower चाहिए, उसकी ट्रेनिंग आप वहां करिए। आप ही के इंजीनियर को पढ़ाने के लिए भेजिए, जो Skill develop हो जाएगा, वो नौजवान आपकी ऑटोमोबाइल इंडस्‍ट्री में उसको नौकरी मिल जाएगी। तो एक ऐसे तरीकों को हमने अपनाने का प्रयास किया है, इसका मतलब ये  नहीं कि सब हो चुका है।

हम एक सही दिशा में जा रहे हैं और इसलिए जो साह‍स करता है, उसको साथ देना, ये हमारा दायित्‍व है। साहस करने वाले को निराश नहीं होने देना। जहां जरूरत पड़े उंगली पकड़ कर आगे ले जाना तो उंगली पकड़ करके, हाथ पकड़ करके ले जाने की अगर जरूरत हो तो हाथ पकड़ करके और धक्‍का दे करके ले जाने की जरूरत पड़े तो वो भी करने के लिए सरकार ने लगातार प्रयास करना चाहिए, और वो हम कर रहे हैं।

प्रसून जोशी–मोदीजी आप पूरे, जब आप बात करते हैं, schemes की बात करते हैं, लोगों तक पहुंचने की बात करते हैं तो साफ दिखता है कि आप कितने उसमें involved हैं और कितने उसके nitty grittyसे, धागा-धागा से आप उससे जुड़े हुए हैं। लोगों को ये लगता है आपको ये पूरा एहसासहोता है कि कितना काम जा रहा है और कितना जो परिवर्तन आ रहा है। क्‍या वो लोगों को उसका पूरा एहसास हो रहा होता है? आपको लगता है पूरी तरह होता है?

प्रधानमंत्री –देखिए, देश जिस हालत में था, उसको अगर आप याद रखोगे, तब तो क्‍या हो रहा है उसका पता चलेगा। मुझे बराबर याद है जब मैं पहली बार गुजरात में मुख्‍यमंत्री बना, 2001 में। मैं कभी पुलिस थाने में  नहीं गया था, मैं कभी सरकारी दफ्तर नहीं देखा था, मैंने असेम्‍बली  नहीं देखी थी। मेरे लिए सारी दुनिया नई थी। मुझे सब सीखना था, समझना था, अभी मेरा शपथ लेना बाकी था। लेकिन लोगों को पता चल जाता है तो फिर लोग आ जाते हैं, मालाएं-वालाएं ले करके वो तो, दुनिया का रिवाज है। मैं भी सोच रहा था वाह रातों-रात।

लोग मुझे कहते कि मोदीजी कुछ करो या न करो, लेकिन कम से कम शाम को खाना खाते समय बिजली मिले, इतना तो करना। यानी जब मैं मुख्‍यमंत्री बना, तो मेरे गुजरात से मुझे ही मांग थी कि साहेब कम से कम खाना खाते समय बिजली मिले, इतना तो करना।

खैर बाद में मैंने इस मिशन को हाथ में लिया। दो-तीन साल काम किया और स्थिति ये बनी गुजरात was the first state in the country जहां 24X7 घर में बिजली मिलना संभव होगा।

लेकिन आज जो 18-20 साल का है उसको पूछो कि अंधेरा क्‍या होता है,  तो उसको मालूम ही नहीं है। खाना खाते समय बिजली नहीं होती थी, वो क्‍या होता था क्‍योंकि उसे पता ही नहीं है। तो ये सरकार हमारी अच्‍छा कर रही है, बुरा कर रही है, मैं मानूंगा कम से कम इस पांच वर्ष; मैं आगे के लिए नहीं कर रहा, इस पांच वर्ष पहले की सरकार की तुलना में हम कहां हैं, ये अगर comparative देखोगे; मैं दावे से कहता हूं हर parameter में, देश के लिए अच्‍छा करने में कोई कमी हमने नहीं रखी है।

और मेरा सौभाग्‍य है कि पहले अखबार में ये खबरों की हेडलाइन रहती थी- आज इतना गया, आज इतना गया, यही खबरें भरी रहती थीं 2014 के पहले? आज खबर होती है, मोदीजी बताइए कितना आया? मैं समझता हूं देश को ये विश्‍वास पैदा हुआ है।

पहले समय छोड़ो यार, कुछ नहीं होने वाला है। आज स्थिति बनी है, अरे ये क्‍यों नहीं होता है? मोदीजी आप बैठे हैं, क्‍यों नहीं होता है? अच्‍छीचीज है। मेरी आलोचना होती होगी लेकिन आलोचना ये नहीं होती कि मोदी नहीं करता है; आलोचना ये होती है, अरे मोदी आप कर सकते हो, ये क्‍यों नहीं करते हो, आप बताओ। मैं इसे बहुत अच्‍छा मानता हूं।

Even media भी मेरी आलोचना क्‍या करता है। मीडिया मेरी आलोचना बहुत करता है और वो बुरा है मैं नहीं मानता हूं। और वो आलोचना क्‍याकरता है अरे मोदीजी आपको बिठाया है तो ये तो आप करके दिखाओ। मैं समझता हूं ये देश की प्रगति का इसके अंदरएक सहज अहसास है कि ये होना चाहिए।

मोदी आप पहले की बात छोड़ो हुआ नहीं हुआ, आप तो कर सकते हो। ये मैं समझता हूं एक बहुत बड़ी सफलता है।

प्रसून जोशी–बहुत अपेक्षाएं आपसे हमेशा देश रखता है, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन एक चीज साफ दिखती है मुझे कि आपको अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। एक फकीरी है आपके स्‍वभाव में। ये कहां से आई है? क्‍या आप हमेशा से ही ऐसे थे? या धीरे-धीरे-धीरे-धीरे फकीरी आती चली गई?

प्रधानमंत्री – ये बहुत ही personal nature का सवाल है।

प्रसून जोशी- नहीं मोदी जी ये एक जरूरी सवाल है।

प्रधानमंत्री -  ऐसा है कि मुझे मेरी कविता के शब्‍द बहुत याद तो रहते  नहीं।

प्रसून जोशी- नहीं, कविता में कहा भी है कहीं फकीरी के कारण क्‍या हैं।

मोदीजी – बहुत पुरानी मेरी एक

प्रसून जोशी– अगर मैं आपसे ये आग्रह कर सकूं कि एक-दो लाइनें बता दें

प्रधानमंत्री – मुझे याद नहीं रहती हैं कविता, इसलिए मैं कह नहीं पाऊंगा, लेकिन मैं जरूर सोशल मीडिया में उस कविता को डाल दूंगा। क्‍योंकि मुझे याद नहीं है तो मैं। लेकिन वो गुजराती में है और रमता राम अकेला करके मैंने उस शब्‍दों को मेरे भावों को व्‍यक्‍त किया है।

देखिए, मैं समझता हूं कि ये फकीरी वगैरह जो हैं, ये मन की अवस्‍था से जुड़ा विषय है और वो inject करने से नहीं आती है। हालात उसको पैदा नहीं करते हैं। अगर वो inbuilt होता है, तब जा करके होता है। और शायद, मैं कोई अपनी तारीफ करने के लिए नहीं कह रहा हूं। मुझे क्षमा करना, लेकिन प्रसून जी ने सवाल पूछा है, मैं जवाब न दूं तो ठीक नहीं लगेगा।

जब मैं गुजरात में था मुख्‍यमंत्री के नाते तो सार्वजनि‍क समारोह में जाता था तो लोग भेंट-सौगात देते हैं, बढ़िया सा शॉल देते हैं, कभी कोई चांदी की तलवार दे देता है, कोई अच्‍छा सा ताजमहल दे देता है।  कुछ न कुछ देते रहते हैं। बहुत बढ़िया–बढ़िया पेंटिंग देते हैं, तो मैं भी इंसान हूं, मेरा भी मन करता है यार ये बहुत बढ़िया पेंटिंग है इसको घर में एक दीवार पर लगाऊंगा, मेहमान आएंगे तो अच्‍छा लगेगा। ये बढ़िया सी मूर्ति दी है, यहां रखूंगा तो बहुत अच्‍छा लगेगा। मेरा भी मन करेगा, आपका भी मन करेगा। करेगा या नहीं करेगा? मेरा मन नहीं करता था। और मैं ये सारी चीजें सरकार का जो ट्रेजरी होता है, तोशाखाना बोलते हैं, उसमें डाल देता था। वो भी बड़े तंग आ गए कि ऐसा क्‍या सब चीज आप हमारे यहां भेज देते हो। मैंने कहा मैं कहां रखूंगा भाई? मेरा कौन संभालेगा इन चीजों को? इसके लिए किसी को रखना पड़ेगा मुझे। मैं दे देता था।

फिर मैं उसका valuation करवाने लगा, फिर मैंने उसका ऑक्‍शन करवाना शुरू किया। हम लोग जानते हैं हिंदुस्‍तान में राजनेताओं के साथ ऐसी बातें, सब सच होती हैं ऐसा भी मैं नहीं कहता हूं, झूठ होती हैं ये भी मैं नहीं कह सकता। लेकिन ये तो होता कि यार वो फलाना था, कितना ले गया। लेकिन मैं गर्व से कहता हूं कि जब मैंने गुजरात छोड़ा था तो ये जो मुझे मिलती थीं चीजें, मैं उसका लगातार ऑक्‍शन करता था पब्लिक में। और ऑक्‍शन करके उससे जो पैसा आता था वो मैं girl child education के लिए सरकार में donate कर देता था। और करीब-करीब 100 करोड़ से ज्‍यादा रुपए ऑक्‍शन से और फिर लोग मुझे चैक भी देने लगे। किसी फंक्‍शन में जाता था तो चीज देने के बजाय girl child education के लिए चैक देने लगे। ये amount करीब-करीब 100 करोड़ से ज्‍यादा था, जो मैं बच्चियों की शिक्षा के लिए दे देता था।

जब मैं मुख्‍यमंत्री से निकल करके दिल्‍ली आना तय हो गया, आप लोगों ने मुझे धक्‍का मार दिया। तो मैंने मेरे अफसर जो थे उनको बुलाया। मैंने कहा भाई, ये जो मैं MLA के नाते कमाता था, क्‍योंकि MLA के  नाते पैसे मिलते थे, मैंने कहा पैसे पड़े हैं क्‍या करेंगे हम लोग? मैं कहां ले जाऊंगा? आप हैरान होंगे सुन करके। मुझे अभी याद नहीं है, शायद 5-6 लाख रुपया था। मैंने कहा भाई मैं तो कोई सरकार में दे देना चाहता हूं। और मैंने कहा मेरी इच्‍छा ये है कि गांधीनगर के सचिवालय में जो ड्राइवर और peon है, उनके लिए मैं amount छोड़ दूं आप इसकी व्‍यवस्‍था कर दीजिए। और उसके ब्‍याज में से ये ड्राइवर और उनके peon के बच्‍चों को कुछ न कुछ मदद मिलती रहे, वो पढ़ते रहें, ऐसी व्‍यवस्‍था कीजिए।

मेरे जो अफसर थे, सुन रहे थे मेरी, कुछ बोले नहीं वो। अफसर बड़े कुशल होते हैं। मुंडी ऐसे-ऐसे हिला रहे थे, मैं भी सोच रहा था कि मेरी बात मान ली, कुछ करेंगे। दो दिन के बाद उन्‍होंने कहा, साहब हम जरा घर में मिलने आना चाहते हैं। मैंने कहा, आ जाइए, क्‍योंकि मैं जाने की तैयारी कर रहा था। बोले, साहब आप ऐसा मत कीजिए। पता नहीं कब आपको पैसों की जरूरत पड़ जाए और आपके पास कोई है नहीं। मेरे अफसरों ने मुझे वो पैसे देने नहीं दिए। तो मैंने कहा यार कम से कम मैं तो क्‍या करूंगा इसे ले जाकर?

आखिरकार वो बहुत समझाने पर मान गए और सारे पैसे तो उन्‍होंने मेरे लेने से मना कर दिया लेकिन एक छोटा सा फाउंडेशन बनाया और मुझे याद नहीं आज शायद 21 हजार रुपया, इतना कुछ शायद मैं उसमें कुछ दे करके, गरीब लोगों के लिए दे करके निकल गया।

शायद मेरी जिंदगी ही, मैं ऐसे अभाव में पैदा हुआ हूं। इसलिए मुझ पर किसी चीज का प्रभाव नहीं होता है। और ये फकीरी वगैरह है वो तो शब्‍द बड़े हैं लेकिन मैं ओलिया हूं भाई, मेरा कोई लेना-देना नहीं है।

प्रसून जी – बस वो ही है सर फकीरी, उसी का हम भी जिक्र कर रहे थे।

नहीं, आपने वो हर चीज में परिलक्षित होती है। ऑर्डियन्‍स से भी कुछ और भी यहां सवाल आए, पहले में चाहूंगा कि जो पहले से यहां पर रिक्‍वेस्‍ट है उसमें एक मैं आपको बताता हूं कुछ यहां से भी सवाल हैं।

ये सवाल श्री तरणप्रीत सिंह जी पूछना चाहते हैं। श्री तरणप्रीत सिंह जी- पूछें कृपया।

तरणप्रीत सिंह –सत् श्री अकाल।

प्रधानमंत्री – सत् श्री अकाल जी।

तरणप्रीत सिंह – हमारे श्रद्धेय युवा प्रधानमंत्री जी, आप हम सभी भारतीय युवाओं के लिए एक रोल मॉडल बन चुके हैं। न केवल भारतीय युवाओं के लिए आप देश के विभिन्‍न युवाओं के लिए एक रोल मॉडल बन चुके हैं। दिन में 20-20 घंटा काम करना, यह कोई छोटी बात नहीं है। आप हमें कभी थके हुए नहीं दिखते। मेरा आपसे सवाल यही है कि आपके अंदर इतनी ऊर्जा आती कहां से है? हमें पता है कि आप योगा करते हैं, लेकिन आप हमें ये बताएं कि यह ऊर्जा हम भी अपनी लाइफ में यूज करके देश हित के लिए आगे काम कर सकें।

प्रधानमंत्री – इसके कई जवाब हो सकते हैं। एक तो जवाब अगर मुझे हंसी-खुशी की शाम के रूप में देना है तो मैं ये कह सकता हूं कि मैं पिछले दो दशक से, करीब-करीब 20 साल से daily one kg, two kg गालियां खाता हूं।

लेकिन सीधी-सीधी बात मैं बताता हूं, एक पुरानी शायद घटना आपने सुनी होगी कि कोई तीर्थस्‍थान था एक पर्वतमाला पर और तराई के अंदर कोई संत-महात्‍मा बैठे थे। और एक आठ साल की बच्‍ची अपने तीन साल के भाई को उठा करके उस पहाड़ी पर चढ़ रही थी। उस संत ने उसको पूछा अरे बेटे तुझे थकान नहीं लग रही क्‍या?  तो उस बच्‍ची  ने जवाब दिया ये तो मेरा भाई है। तो संत ने दोबारा पूछा, अरे तुझे मैं तुम्‍हारा कौन रिश्‍तेदार है, नहीं पूछ रहा हूं- मैं तुझे पूछ रहा हूं तुझे थकान नहीं लग रही है? इसको उठाकर चल रही हो। तो उस बच्‍ची ने दोबारा जवाब दिया वो तो मेरा भाई है।

तो संत ने तीसरी बार पूछा- अरे मैं तुझे नहीं पूछ रहा हूं तेरा रिश्‍तेदार कौन है, मैं पूछ रहा हूं अरे तुझे थकान नहीं लग रही है क्‍या? तीसरी बार उस बच्‍ची ने कहा कि बापजी ये मेरा भाई है। भाई का थकान नहीं लगता।

मेरे लिए सवा सौ करोड़ देशवासी, ये मेरा परिवार है। जिस पल, आप अपने जीवन में देख लीजिए, जहां पर आप अपनापन अनुभव करते होंगे, कितने ही थक करके आए होंगे, सोने का मन करता होगा, शरीर साथ नहीं देता होगा, लेकिन टेलीफोन आ जाए कि आपके भतीजे को कुछ हुआ है, अस्‍पताल है, सारी थकान मिट जाती है, स्‍कूटर ले करके आप भागते हैं, रात भर उसकी सेवा में लगे रहते हैं, क्‍यों? आपका अपना है। थकान मिट जाती है। आप स्‍वयं जुट जाते हैं। मेरी जिंदगी भी हर पल शरीर तो, शरीर का धर्म करता ही है लेकिन उसी पल मुझे ध्‍यान में कोई अपना, कोई अपनों के लिए, कभी त्रिपुरा से कोई खबर, कभी केरल से कोई खबर, कभी दिल्‍ली से कोई खबर, तो फिर मन करता है, अरे उठो यार, चलो दौड़ो।

तो सबसे बड़ी बात है मन की अवस्‍था। दूसरी बात है कि हमें भी क्‍योंकि मैं चाहूंगा मेरी जिंदगी ऐसी है कि आज तो प्रधानमंत्री हूं तो कोई चाय भी ले आएगा, पानी भी ले आएगा। लेकिन मुझे मालूम है उसके बाद क्‍या होगा। और इसलिए मैं नहीं चाहता हूं, मैं कभी भी किसी पर बोझ बनूं। ये मेरे मन की इच्‍छा है और परमात्‍मा मेरी सहायता करे। ऐसे ही हंसते-खेलते, बातें करते चला जाऊं किसी दिन। जिंदगी में किसी पर बोझ न बनूं। और इसलिए शरीर को जितना फिट रख सकता हूं, शरीर से जितना काम ले सकता हूं, जितने नियमों का पालन कर सकता हूं, जितना भी मैं सीख पाया हूं, उसको मैं जीने का प्रयास करता हूं और मैं सभी नौजवानों से कहना चाहूंगा कि विरासत में बहुत कुछ मिल सकता है लेकिन अपने-आपको फिट रखना, ये अपने मां-बाप की विरासत के ऊपर भरोसा नहीं रख सकते। वो आपको अपने-आप करना पड़ता है।

वो विरासत में आपको ऊंचाई दे सकते हैं, विरासत में चमड़़ी का कलर दे सकते हैं, विरासत मे बढ़िया आंखें दे सकते हैं, नाक-नक्‍शे दे सकते हैं लेकिन भीतर की तबियत तो आपको संभालनी ही होती है। और मेरा अनुभव कहता है कि एक detachment जो होता है वो अपने-आप एक बहुत बड़ी ताकत होता है और दूसरा नियमों से जिंदगी जीने से आप जिस काम के लिए निकले हो, उस काम के लिए अपने-आपको योग्‍य बना सकते हो। हमने जहां हैं वहां किसी पर बोझ नहीं बनना चाहिए। हो सके उतना, हमने जीवन ऐसा जीना चाहिए कि कभी किसी पर बोझ न बनें।

प्रसून जोशी- ये फिटनेस मंत्र तो आपने दे ही दिया कि फिटनेस विरासत में नहीं मिलती। ये तो आपने यूज खुद ही करनी पड़ती है। मोदीजी बहुत सवाल हैं, मैं नाम पढ़ता हूं और देखते हैं कितने ले सकते हैं। एक अमित दूबे जी का है, एक आशुतोष दीक्षित जी का है, ये सब यहीं पर हैं, सतीश जी का है और प्रेम‍ सिंह जी का है।

अमित दूबे जी आपका सवाल पहले है लेकिन मैं पूरी handwriting पढ़ नहीं पा रहा हूं, लेकिन मुझे लगता है कि Digital India से संबंधित सवाल ये पूछना चाहते हैं।

प्रधानमंत्री - ये बात सही है देखिए, दुनिया technology driven है। हम उससे परहेज नहीं कर सकते। उसका maximum उपयोग कैसे कर सकते हैं और मैं ये मानता हूं कि information technology का जो revolution है, digital world का जो revolution है, हम artificial intelligence के युग में प्रवेश कर रहे हैं। इसमें transparency की बहुत भारी संभावना है, और इसलिए efficiency है, transparency है, easy governance है, इन सारों को देखते हुए हमने इसको बल देना चाहिए।

भारत में optical fiber network का बहुत बड़ा काम तेजी से चल रहा है। आपको हैरानी होगी पहले तीन साल में 59 villages में optical fiber network गया था, मेरे आने से पहले। योजना पथ का ज्ञान था? था,optical fiber network होना चाहिए, पता था?  था, पैसे थे? थे, काम करने वाले थे? थे, हुआ कितना? तीन साल में 59 villages. मैंने तीन साल में एक लाख से ज्‍यादा गांव में काम पूरा कर दिया है। ये फर्क है काम में, ये फर्क है।

अब जैसे हमने एक GEM योजना बनाई है, जी ई एम। कोई भी व्‍यक्ति  ये डिजिटल वर्ल्‍ड के तहत उस पर अपना रजिस्‍ट्रेशन करवा सकता है। अकेला अपने घर में छोटी प्रोडक्‍ट करता है, भारत सरकार को चाहिए तो वो बेच सकता है, कोई‍ बिचौलियों की जरूरत नहीं। बड़े-बड़े टेंडर की जरूरत नहीं, बड़ी-बड़़ी कम्‍पनियों की जरूरत नहीं।

मैं हैरान था, मुझे एक दिन तमिलनाडु से एक महिला की चिट्ठी आई। मैं regularly ऐसे at random  10-12 चिट्ठी पढ़ने का daily प्रयास करता हूं। चिट्ठियां तो हजारों आती हैं तो सब तो नहीं पढ़ पाता हूं, वो डिपार्टमेंट पढ़ता है, लेकिन मैं at random  10-12 चिट्ठी ले करके खुद पढ़ता हूं ताकि मुझे सामान्‍य मानवी की क्‍या भावनाएं हैं, उसका पता चले।

एक दिन चिट्ठी एक मेरे हाथ में आई। तमिलनाडु की एक महिला ने चिट्ठी लिखी थी। और उसने लिखा मैं हैरान हूं कि, उसकी दो बेटियां हैं, उसने वर्णन अपना लिखा है- मेरे पति नौकरी करते हैं लेकिन बेटियां बड़ी हुईं, शादी करवानी थी, घर में थोड़े पैसों की जरूरत थी तो मैंने सोचा मैं कुछ काम शुरू करूं। तो मेरी बेटियों ने कहा‍ कि तुम मुद्रा से पैसे ले लो, मुद्रा योजना से। तो बोली, मैंने apply किया, मुद्रा योजना से मुझे पैसे मिल गए। और मैं भी हैरान थी कि मुझे 15 दिन में पैसे मिल गए। फिर बोली- मैंने बाजार से सामान ले करके बेचना शुरू किया। इतने में मेरी बच्चियों ने कहा GEM में रजिस्‍ट्री कराओ। बोली- मैंने करा दी। उतने में मैंने GEM में पढ़ा कि प्रधानमंत्री कार्यालय को चाय के लिए दो थर्मस की जरूरत है। तो बोलीं- मैंने बाजार में पूछा सस्‍ते में थर्मस कहां मिलेगा?  मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय में GEM में लिखवा दिया। और GEM के आधार पर प्रधानमंत्री कार्यालय से ऑर्डर मिल गया। तो मैंने दो थर्मस देश के प्रधानमंत्री के कार्यालय को पहुंचा दिए और मुझे payment भी मिल गया। तो बोली- मेरी खुशी का पार नहीं है कि कैसे हो सकता है ये? ये digital revolution का परिणाम है कि ये संभव हुआ। वरना कहां तमिलनाडु के किसी गांव में कोई एक महिला अभी तो व्‍यापार शुरू कर रही है और उसकी चीज प्रधानमंत्री के कार्यालय तक पहुंच जाती है।

तो हमने digital revolution के द्वारा, दूसरा education और health के क्षेत्र में digital revolution बहुत बड़ी सेवा कर सकता है। अब उसकी दिशा में जाने के लिए प्रयास कर रहे हैं और मैं चाहूंगा कि भारत, और IT revolution में तो भारत का बहुत बड़ा contribution है, उसका benefit भारत के common लोगों को मिलना चाहिए और उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।

प्रसून जोशी- दूबे जी आप satisfy होंगे इस सवाल से आशा है। हम आगे बढ़ रहे हैं।

मोदीजी, भारत के साहस और संकल्‍प के बाद बात करते हैं आने वाले कल की और भारत के लक्ष्‍य की। आज भारत की ओर सारा विश्‍व एक आशा की निगाह से देख रहा है और भारत अंदर से जानता है कि अभी उसे बहुत दूर जाना है। ये नए भारत की बात है। ये new जो world order होगा, उसमें भारत का क्‍या रोल देखते हैं?

प्रधानमंत्री – आप सब अनुभव करते होंगे कि आज आपके पासपोर्ट की ताकत बढ़ी है कि नहीं बढ़ी है? विदेश में आप रहते हैं, कोई भी व्‍यक्ति जब उसको पता चलता है कि आप हिन्‍दुस्‍तान के हैं तो आपकी तरफ उसका देखने का रुतबा पहले की तुलना में बदला है कि नहीं बदला है? सच बताइए, वैसे मुझे खुश करने के लिए मत बताइए। बदला है? आपके प्रति लोग अब गर्व के साथ देखते हैं?

हिन्‍दुस्‍तान तो वो ही है, प‍हले भी था, आप भी थे, दुनिया भी थी, अब बदलाव महसूस होता है कि नहीं होता है?

ये हिन्‍दुस्‍तान ने करके दिखाया है कि आज पूरे विश्‍व में भारत का लोहा मान जाता है। सिर्फ सवा सौ करोड़ का देश है, बहुत बड़ा मार्केट है इसलिए नहीं। भारत ने अपनी नीतियों के द्वारा, संतुलित व्‍यवहार के द्वारा तनावपूर्ण विश्‍व में तुम भी भले-हम भी भले, तुम भी अच्‍छे-हम भी अच्‍छे, चलो यार बैठ लें, एक तस्‍वीर निकाल दें; इस प्रकार की रणनीति छोड़ दी है। जो सच है वो डंके की चोट पर बोलना, जो सच है हिम्‍मत के साथ उसके साथ चलना, ये सामर्थ्‍य हिन्‍दुस्‍तान ने दिखाया है।

आप कल्‍पना कर सकते हैं आजादी के 70 साल तक हिन्‍दुस्‍तान का प्रधानमंत्री इजरायल न जाए, कौन सा दबाव था? हिन्‍दुस्‍तान में दम होना चाहिए कि हिन्‍दुस्‍तान डंके की चोट पर कहे, कि जब मुझे इजरायल जाना है, मैं सीधा इजरायल जाऊंगा, और जिस दिन मुझे Palestine जाना होगा, उस दिन हिम्‍मत के साथ मैं Palestine भी जाऊंगा। मैं Saudi Arabia भी जाऊंगा, उतने ही प्‍यार के साथ उनका सम्‍मान भी प्राप्‍त करूंगा और देश की energy security के लिए जरूरत है तो मैं इरान भी जाऊंगा।

आप कल्‍पना कर सकते हैं, UAE- भारत से निकल कर एक-डेढ़ घंटे में वहां पहुंच जाएं, दो घंटे में पहुंच जाएं। 23 साल तक कोई गया नहीं था भाई। मुझे बताइए क्‍या हिन्‍दुस्‍तान के प्रति उनकी अपेक्षा हीं होगी क्‍या? कौन रोकता था आपको?  आज विश्‍व के सभी देशों के साथ हम बराबरी के साथ, और जब मैं चुनाव लड़ रहा था, तब मेरी एक विषय पर भरपूर आलोचना होती थी, भरपूर आलोचना होती थी। वो ये थी कि मोदी, चाय बेचने वाला, एक राज्‍य का मुख्‍यमंत्री। इतना बड़ा देश, क्‍या समझ आएगा उसको? और विदेश नीति तो बिल्‍कुल नहीं समझ पाएगा।

ये मेरी बहुत बड़ी आलोचना होती थी। ये इस देश का भट्ठा बिठा देगा। लेकिन आज चार साल के बाद कोई ये बात-सवाल नहीं उठा सकता है। अब उसका कारण- उसका कारण मोदी नहीं है। मोदी को सवा सौ करोड़ देशवासियों की ताकत पर भरोसा है। मोदी को हिन्‍दुस्‍तान की महान परम्‍पराओं पर आस्‍था है।

मोदी को हिन्‍दुस्तान का इतिहास, हिन्‍दुस्‍तान की संस्‍कृति, हिन्‍दुस्‍तान के जीवन के प्रति पूरी श्रद्धा है और मुझे विश्‍वास है कि मैं दुनिया को भारत का सत्‍य समझा सकता हूं और उसीका परिणाम है कि आज विश्‍व में हर क्षेत्र में- देखिए मेरे टाइम टेबल में UK में ये कॉनवेल्‍थ कंट्रीज का कार्यक्रम करने जाना था। ये भारत का गर्व है कि स्‍वयं प्रिंस चार्ल्‍स खुद भारत आए थे। क्‍योंकि पिछली बार जब कॉमनवेल्‍थ समिट हुआ माल्‍टा में, मैं नहीं जा पाया। इस बार स्‍वयं प्रिंस चार्ल्‍स आए थे। सिर्फ मुझे व्‍यक्तिगत निमंत्रण देने के लिए- ‘इस बार आप जरूर आइए।‘ 

इतना ही नहीं, इतना ही नहीं, क्‍वीन ने स्‍वंयम ने मुझे पर्सनल चिट्ठी लिखी कि इस बार तो आपको रहना ही है। ये मोदी का विषय नहीं है। ये भारत का प्रोफाइल है जिसके कारण ये संभव हुआ है।

एक समय था जब humanitarian groundपर चर्चा होती थी तो ज्‍यादतर पश्चिम के देशों की चर्चा होती थी। भारत की कोई चर्चा नहीं करता था। लेकिन जब यमन में 5 हजार- 6 हजार लोग फंसे थे, उनको बाहर निकाला, तो दुनिया के कई देशों ने भारत को request की थी कि आप अपने नागरिकों को निकालते हैं, हमारे लोगों को भी यमन से निकालिए, और दुनिया के 2000 नागरिकों को बाहर निकाल करके हमने उनके यहां पहुंचाने का काम किया था।

म्‍यांमार में रोहिंग्‍या की समस्‍या हुई, दुनिया ने उस प्रश्‍न को human right, जिग्‍ना, फलाना ले करके जिसको जो अपनी पोजीशन लेनी थी, ले ली। हम वहां पर नहीं अटके। रोहिंग्‍या लोग जो बंगलादेश वापिस गए थे, हमने कहा बंगलादेश हमारा मित्र देश है, हमने स्‍टीमर भर-भरके वहां चावल लेकर पहुंचे, जो रोहिंग्‍या वहां आए हैं वो भूखे नहीं मरने चाहिए। मानवता का काम करने में भारत पीछे नहीं रहा। और म्‍यांमार के अदंर  रखैन स्‍टेट है जहां पर ये लोगों को मुसीबत थी। डेवलपमेंट नहीं हुआ है, भारत ने म्‍यांमार सरकार के समझौता किया कि हम रखैन प्रदेश के लिए, उसके विकास के लिए भारत जो कुछ भी contribute कर सकता है, हम करेंगे।

नेपाल के अंदर भूकंप आया, भारत सबसे पहला देश था कि तुरंत नेपाल पहुंचना और नेपाल के सुख-दुख की चिंता करना। भारत ने अपने व्‍यवहार के द्वारा किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना दुनिया की हर शक्ति के साथ बराबरी का व्‍यवहार और तब मीडिया ने मुझे पूछा था विदेश नीति के लिए और मैंने जवाब दिया था मेरी विदेश नीति का क्‍या होगा, क्‍या नहीं, उसकी बड़ी व्‍याख्‍या तो नहीं करता हूं, लेकिन मैंने इतना कहा था कि न हम किसी से आंख झुका करके बात करेंगे, न ही हम आंख उठा करके बात करेंगे, हम आंख मिला करके बात करेंगे। और आज, आज इस बात को आप देख सकते हैं और इसी के कारण और आज, आज विश्‍व जिस अवस्‍था में पहुंच रहा है, भारत- अगर दुनिया, ग्‍लोबल वार्मिंग और क्‍लाइमेट की चिंता करता है तो भारत इंटरनेशनलसोलर एलाइंस का solution ले करके आया है।

दुनिया टेरेरिज्‍म से परेशान है तो भारत मानवतावादी शक्तियों को एक कर-करके democratic values में विश्‍वास करने वाले लोगों को एक हो करके, मानवता के खिलाफ ये लड़ाई है। ये किसी देश, जाति, धर्म, सम्‍प्रदाय से जोड़ करके नहीं, ये मानवता के खिलाफ लड़ाई है। सभी मानवतावादी शक्तियां एक होनी चाहिए और भारत ने इसको lead किया है।

Third world countries, उनको उनके हक मिलने चाहिए, इसका प्रवक्‍ता आज भारत बना हुआ है। तो भारत ने अपनी जिम्‍मेवारियों को भलीभांति निभाने का प्रयास किया है और इसलिए आप देख रहे हैं कि आज भारत ने अपनी जगह बना ली है। हर इंटरनेशनल फोरम में आज भारत एजेंडा सेट करता है।

जी-20 Summit के अंदर black money के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए initiative  भारत ने लिया, आज जी-20 समूह के देश अपने बैंकों को real time information देने के लिए भारत के साथ समझौता कर रहे हैं और दुनिया के देशों के साथ भी समझौता कर रहे हैं।

तो भारत आज एकtrend setter बन रहा है, एक एजेंडा सेट कर रहा है, भारत अपनी अहमियत, भारत अपना प्रोफाइल दुनिया में एक नए विश्‍वास के साथ पैदा करवा रहा है।

प्रसून जोशी– आपने जो बिल्‍कुल आंख मिलाकर बात करने की बात की और एजेंडा सेट करने की बात की, I think very clear it tells us where India is going towards, where we are marching towards.

एक सवाल है, बहुत कम वक्‍त हमारे पास है, तो बहुत से सवाल लेना चाहते हैं, बहुत से सवाल आए हैं पर एक सवाल जो पहले से वेटिंग पर है, अनुश्री घिसाद जी का, कृपया अपना सवाल पूछें।

अनुश्री घिसाद – नमस्ते मोदीजी जी।

प्रधानमंत्री – नमस्‍ते।

अनुश्री घिसाद – मोदीजी आपने भारत के हित में कई अनोखे कदम उठाए हैं। और इसके नतीजे हमने सिर्फ देश में नहीं बल्कि अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी देखे हैं। बावजूद इसके आज देश में ऐसी कई सारी शक्तियां हैं जो किसी भी कीमत पर सत्‍ता हासिल करने में जुटी हुई हैं। तो क्‍या ऐसी गतिविधियों के चलते हुए आप कभी डगमगाते नहीं?

प्रधानमंत्री – देखिए, मैं मानता हूं ये लोकतंत्र की ब्‍यूटी है। लोकतंत्र में अगर विरोध नहीं होता है, आलोचना नहीं होती है, तो, तो फिर वो लोकतंत्र कैसे हो सकता हैजी? और मैं मानता हूं और ये मेरा conviction है, ये सिर्फ शब्‍द नहीं हैं। मैं मानता हूं डेमोक्रेसी की अगर उत्‍तम से उत्‍तम कोई ब्‍यूटी है तो वो criticism है।

मैं मानता हूं मोदी सरकार की भरपूर आलोचना होनी चाहिए। हर प्रकार से आलोचना होनी चाहिए। criticism से ही तप करके डेमोक्रेसी पनपती है और सरकारों को भी और शासन में बैठे हुए लोगों को भी वो सतर्क रखती है। और इसलिए अगर कोई आलोचना करता है, इसको मैं मेरा सौभाग्‍य मानता हूं। मैं उसे बुरा नहीं मानता।

लेकिन मेरी चिंता आलोचना नहीं है। दुर्भाग्‍य ये है कि आलोचना करने के लिए बहुत रिसर्च करना पड़ता है। बहुत मेहनत करनी पड़ती है। उसकी बारीकी में जाना पड़ता है, facts and figuresइकट्ठे करने पड़ते हैं। हिस्‍ट्री पूरी निकालनी पड़ती है। अब आज ऐसी आपधापी का समय है कि किसी के पास इतना टाइम ही नहीं है। बहुत कम लोग हैं जो अब ये काम कर पाते हैं। अच्‍छा, हरेक को इतनी तेजी है कि भई 24X7. मैं आगे निकलूं, ब्रेकिंग न्‍यूज मैं दूं, या वो दें, आपाधापी का युग है और इसलिए criticism ने दुर्भाग्‍य से उस मर्यादाओं को तोड़ करके allegation का रूप ले लिया है।

लोकतंत्र की अगर सबसे बड़ी ताकत है तो criticism है और लोकतंत्र का सबसे विनाशक कोई रास्‍ता है तो वो allegation है। और इसलिए एक तंदुरुस्‍त लोकतंत्र के लिएcriticism को सबसे ज्‍यादा पुरस्‍कृत करना चाहिए और allegation से बचने का प्रयास करना चाहिए।

और मैं मानता हूं कि इन मूलभूत तत्‍वों को मैं जानता हूं और मानता हूं इसलिए मैं, मुझे बराबर याद है, मैं तो सरकार में मुझे कोई अगर अच्‍छी खबर की जानकारी देता है तो मेरा सवाल रहता है कि भई ये तो ठीक है, मैं देख लूंगा बाद में। ये बताओ, इसमें वो कौन सी कमियां हैं हमारी, जरा वो दिखाओ पहले। मैं पूछता हूं सामने से। क्‍योंकि कोई पूर्ण नहीं है भई, हम सब इंसान हैं। हम में भी कमियां हैं, हमसे भी गलतियां होती हैं।

कोई है जो बताता है। अगर मैं सुनना ही बंद कर दूंगा तो फिर तो मेरी गलतियां कभी ठीक नहीं होंगी, न मेरे देश का भला होगा। और इसलिए मैं हमेशा criticism का स्‍वागत करता हूं। लेकिन मेरे पर आरोप ये है कि मोदीजी इतना criticism होता है, आप बोलते क्‍यों नहीं हैं?  अरे भाई, आपके criticism को मैं इतना महत्‍व देता हूं कि मैं उसको समझने की कोशिश करता हूं। इससे मैं सुधरने की कोशिश करता हूं। आपका मुंह बंद करना मेरा काम नहीं है। ये तो गलत रास्‍ता है। आप जो बोल रहे हैं मेरे लिए वो मूल्‍यवान चीज है।

आप जो मेरी आलोचना करते हैं वो मेरे लिए बहुत बड़ा खजाना है। वो मेरे लिए gold mine है।

प्रसून जोशी- पर ये कैसे decide करते हैं कि कौन सा criticism आप उसको महत्‍व देंगे और किसको नहीं देना चाहिए?

प्रधानमंत्री – देखिए ये तो black and white  में नहीं हो सकता कि मैं इस criticism को अच्‍छा मानूंगा, इस criticism, जैसे अब ये कार्यक्रम कर रहा हूं। मुझे और आपको दोनों को लगता होगा यार बहुत बढ़िया है। लेकिन कोई कहेगा यार मोदीजी बंद करें तो अच्‍छा है। कोई ये भी कह सकता है कि देखो यार ये मोदीजी ने आज, पता नहीं जवाब नहीं दे पाते हैं कई बार तो जा करके उन्‍होंने stage managed show कर लिया, अपना काम कर रहे हैं। उसमें से भी मैं कोशिश करूंगा, आज के मेरे जवाब जो मैं बोल रहा हूं हो सकता है कोई इसमें से निकालेगा, तो मैं जरूर सोचूंगा। हां यार ये शब्‍द मेरे से मुंह से न निकला होता तो अच्‍छा होता। मैं सोचूंगा, और मैं आज जहां पहुंचा हूं ना, साहब मुझे बहुत लोगों ने बनाया है। बहुत लोगों ने मुझे थपथपा करके कहा मोदीजी ये करो, ये नहीं करो। ये करो, नहीं ये करो। ऐसे करते करते मुझे लाया है। तो ये सब उन्‍होंने जो मेहनत की है उसको मैं मिट्टी में नहीं मिलने दूंगा।

प्रसून जोशी– यस, मोदीजी हम कार्यक्रम के अंत की तरफ बढ़ रहे हैं, हमने कहा भी, घड़ी की तरफ देखा, आपने घड़ी की तरफ देखा और मुझे लगा कि कार्यक्रम को अंत की तरफ बढ़ना चाहिए।

तो एक सवाल जो आखिरी सवाल मैं आपसे पूछना चाहता हूं, आप क्‍या चाहेंगे, इतिहास आपको कैसे याद रखे?

प्रधानमंत्री – आपमें से कोई बता सकता है कि वेद किसने लिखे थे?  दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ और आज भी पांच हजार, दस हजार साल के बाद भी दुनिया को रास्‍ता दिखाने का सामर्थ्‍य रखते हैं। आपको मालूम है क्‍या किसने लिखे थे?  अगर इतने बड़े रचियता का नाम हमें मालूम नहीं है, इतिहास में दर्ज नहीं है तो मोदी तो क्‍या है? एक छोटी सी चीज है जी।

इतिहास में नाम अंकित करने के लिए न मोदी पैदा हुआ है, न मोदी का वो मकसद है और मैं नहीं चाहता हूं मोदी को लोग उन सवा सो करोड़ देशवासियों की तरह ही एक मानें, उससे ज्‍यादा मानने की जरूरत नहीं है। आपको टीचर का काम मिला होगा, आपको ड्राइवर का काम मिला होगा, आपको व्‍यापार का काम मिला होगा, आपको खेती का काम मिला होगा, मुझे ये काम मिला है, उससे ज्‍यादा कुछ नहीं है, मैं नहीं चाहता हूं, इतिहास में अमर होने के लिए।

अगर मकसद है तो मेरा देश अजर-अमर है। दुनिया याद करे तो मेरे देश को याद करे। मेरे देश के भविष्‍य को देखे। मेरे देश के लिए दुनिया गर्व से कहे, ये एक देश है जो मानव कल्‍याण का रास्‍ता दिखा सकता है, विश्‍व को संकटों से बाहर निकालने का सामर्थ्‍य इस धरती में है। ये दुनिया को पता चले मोदी की छवि चमकाने में मुझे interest नहीं है, हिन्‍दुस्‍तान की छवि चमकाने के लिए जिंदगी खपाने में मुझे interest है।

प्रसून जोशी – मोदीजी अंत में, अंत में वो चार पंक्तियां पढूंगा जिससे मैंने यहां शुरू किया था आज, जो मैंने आज ही लिखी थीं, और ये भारत के लिए- 

एक आसमां कम पड़ता है।

एक आसमां कम पड़ता है, और आसमां मंगवा दो।

एक आसमां कम पड़ता है, और आसमां मंगवा दो।

हैं बेसब्र उड़ानें मेरी, पंख ये नीले रंगवा दो।

एक आसमां कम पड़ता है, और आसमां मंगवा दो।

हैं बेसब्र उड़ानें मेरी, पंख ये नीले रंगवा दो।

स्‍वप्‍न करोड़ों सत्‍य हो रहे, स्‍वप्‍न करोड़ों सत्‍य हो रहे,

अब उनका सत्‍कार करो, निकल पड़ा है भारत मेरा, अब तुम जय-जयकार करो।

प्रधानमंत्री– वाह, हमारे यहां राजा रंतीदेव ने कहा है और बहुत ही अच्‍छा कहा है- राजा रंती देव ने और एक राजघराने से निकली हुई बात है। उन्‍होंने कहा है-

न कामये राज्‍यम्, न स्‍वर्गम न पुर्भवम् ।

कामये दु:खतप्रानाम् आर्त्‍ते नाशनम् ।।

न मुझे राज्‍य की कामना है, न मुझे मोक्ष की कामना है, न मुझे पुनर्जन्‍म की कामना है। अगर मेरे हृदय में कामना है तो मुझे उन दुखी-दरिद्रों की सेवा करना, यही मेरी कामना है। उसी कामना को ले करके हम चलें।

मैं फिर एक बार आप सबका बहुत आभारी हूं। प्रसून जी आपका बहुत आभारी हूं कि आपने समय निकाला। मेरी जो गलतियां हो वो आप बताते रहिए, बिना संकोच बताते रहिए। ताकि उन आपके आशीर्वाद के द्वारा, आपके सुझावों के द्वारा सवा सौ करोड़ देशवासियों के कल्‍याण के लिए मैं भी कुछ अपना योगदान दे सकूं। जिस व्‍यवस्‍था के तहत मैं बैठा हूं उस व्‍यवस्‍था के तहत कुछ दे सकूं। इसी एक कामना के साथ आपने इतना समय दिया, आशीर्वाद दिए, मैं आपका बहुत-बहत आभारव्‍यक्‍त करता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

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अतुल तिवारी/शाहबाज हसीबी/हिमांशु सिंह/सतीश शर्मा/एसबीपी/निर्मल शर्मा



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